दास्तान - वक्त के फ़ैसले
06-14-2017, 01:09 PM,
#1
दास्तान - वक्त के फ़ैसले
दास्तान - वक्त के फ़ैसले (भाग-१)
लेखक: राज अग्रवाल
*********************************************

ज़ूबी ने अपने चेहरे पर आते हुए अपने बालों को हटाया और कंप्यूटर में रिपोर्ट तैयार करने में जुट गयी। ज़ूबी को चार साल हो गये थे “रवि एंड देव” कंपनी के साथ काम करते हुए। “रवि एंड देव” देश की मानी हुई लॉ फ़र्म थी। ज़ूबी को ये नौकरी अपनी मेहनत और लगन से हासिल हुई थी। काम का बोझ इतना ज्यादा था कि कभी-कभी तो उसे १८ घंटे तक काम करना पड़ता था। वो पूरी मेहनत से काम कर रही थी और उसका लक्ष्य अपनी मेहनत से फ़र्म का पार्टनर बनने का था। उसकी गहरी नीली आँखें कंप्यूटर स्क्रीन पर गड़ी हुई थी कि उसकी सेक्रेटरी ने उसे आवाज़ दी, “ज़ूबी रवि सर अपने केबिन में तुमसे मिलना चाहेंगे।” 

ज़ूबी ने मुड़कर सेक्रेटरी की तरफ़ देखा, “क्या तुम्हें पता है वो किस विषय में मिलना चाहते हैं?” 

“नहीं मुझे सिर्फ़ इतना कहा कि मैं तुम्हें ढूँढ कर उनसे मिलने को कह दूँ” सेक्रेटरी ने जवाब दिया। 

“शुक्रिया रजनी, मैं अभी उनसे मिल कर आती हूँ। मेरे जाने के बाद मेरे केबिन को बंद कर देना,” इतना कहकर वो कमरे में लगे शीशे के सामने अपना मेक-अप ठीक करने लगी। प्रोफेशन में होने के बावजूद ज़ूबी अपने पहनावे का और दिखावे का पूरा ख्याल रखती थी। उसने अपने पतले और सुंदर होठों को खोल कर उन पर हल्के गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगायी। ज़ूबी ने फिर अपने सिल्क के टॉप को दुरुस्त किया जो उसकी भारी और गोल चूचियों को ढके हुए था। २८ साल की उम्र में भी उसका बदन एक कॉलेज में पढ़ती लड़की की तरह था। 

उसने अपनी हाई हील की सैंडल पहनी जो उसने अपने पैरों को आराम देने के लिए कुछ देर पहले खोल दी थी। वो रवि के केबिन की और जाते हुए सोच रही थी, “पता नहीं रवि सिर मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं, इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है।”

ऑफिस के हाल से गुजरते हुए उसे पता था कि सभी मर्द उसे ही घुर रहे हैं। सबकी निगाहें उसके चूत्तड़ की गोलाइयों पे गड़ी रहती थी। वो हमेशा चाहती थी कि उसकी लंबाई पाँच फुट पाँच इंच से कुछ ज्यादा हो जाये। इसी लिए वो हाई हील की सैंडल पहना करती थी। 

ज़ूबी केबिन के दरवाजे पर दस्तक देते हुए केबिन मे पहुँची। रवि ने उसे बैठने के लिये कहा।



“ज़ूबी! मिस्टर राज के केस में कुछ प्रॉब्लम क्रियेट हो गयी है” रवि ने कहा। 

ज़ूबी रवि की बात सुनकर चौंक पड़ी। मिस्टर राज हज़ारों करोड़ रुपैयों की एक मीडिया कंपनी के मालिक थे। मिस्टर राज की कंपनी रवि की कंपनी के बड़े ग्राहकों में से थी बल्कि उनकी सिफारिश से भी कंपनी को काफी बिज़नेस मिलता था। ज़ूबी पिछले एक साल से मिस्टर राज की कंपनी के टीवी और रेडियो स्टेशन के लायसेंस को सरकार से रीन्यू (नवीकरण) के काम में लगी हुई थी। 

“ज़ूबी मुझे अभी-अभी खबर मिली है कि सरकार शायद मिस्टर राज की रीन्यूअल ऐप्लीकेशन को रद्द कर दे... कारण उनकी ऐप्लीकेशन में बहुत सी बतों का खुलासा करना रह गया है” रवि ने घूरते हुए उसकी तरफ़ देखा। 

ज़ूबी घबरा गयी। उसने पूरे साल भर मेहनत करके सब ऐप्लीकेशंस तैयार की थी। उसे याद नहीं आ रहा था कि उससे गलती कहाँ हुई है पर रवि के गुस्से से भरे चेहरे से पता चल रहा था कि गलती कहीं न कहीं तो हो चुकी है। 

रवि ने उसे थोड़ा नम्र स्वर में कहा, “देखो ज़ूबी मुझे पता है कि तुमने काफी मेहनत से ये ऐप्लीकेशंस तैयार की थी। मैं हमेशा से तुम्हारी मेहनत और लगन का कायल रहा हूँ। पर कभी कभी गलतियाँ घर चल कर आ जाती हैं।” 

ज़ूबी जानती थी कि ये बात कहाँ जाकर खत्म होगी, “सर अगर इस गलती का दंड किसी को मिलना है तो वो मुझे मिलना चाहिए, क्योंकि सही ऐप्लीकेशंस तैयार करने की जिम्मेदारी मेरी थी और मैं ही अपना काम अच्छी तरह नहीं कर पायी।”

ज़ूबी ने हिम्मत से ये कह तो दिया था, पर वो जानती थी कि इससे उसका भविष्य बर्बाद हो जायेगा। जो सपने उसने इस कंपनी के साथ रहते हुए देखे थे वो सब चूर हो जायेंगे और शायद उसे किसी दूसरी कंपनी में भी नौकरी नहीं मिलेगी। 

तभी रवि ने उसपर दूसरी बिजली गिरायी। 

“ज़ूबी जैसे तुम्हें पता है कि ऐप्लीकेशन पर तुम्हारे और मिस्टर राज के दस्तखत हैं, डिपार्टमेंट वाले सोच रहे हैं कि जानबूझ कर ऐप्लीकेशन में कुछ बातें छिपायी गयी हैं। और इस वजह से तुम दोनों को हिरासत में भी लिया जा सकता है और मुकदमा भी चल सकता है।”



ज़ूबी ये सुन कर दहल गयी। उसकी आँखों में दहशत के भाव आ गये। उसकी बदनामी, गिरफतारी, मुकदमा सब सोच कर वो डर गयी। कोई बात खुलासा करना रह गयी वो फ्रॉड कैसे हो सकता है। “सर आप तो जानते हैं कि मैंने ये सब जानबूझ कर नहीं किया, गलती ही से रह गया होगा।” वो रोने लगी, “सर आप ही बतायें कि मैं क्या करूँ?” 

“मैं जानता हूँ कि तुम एक मेहनती और इमानदार औरत हो, पर पहले हमें मिस्टर राज की चिंता करनी चाहिए। अगर सरकार ने हमारी फ़र्म और मिस्टर राज को जिम्मेदार ठहरा दिया तो हम सब बर्बाद हो जायेंगे।” रवि ने अपनी बात जारी रखी, “एक काम करो... तुम अपने केबिन में जाकर शांति से बैठ जाओ, और इस बात का जिक्र किसी से भी नहीं करना। ये बहुत ही नाजुक मामला है... अगर एक शब्द भी लीक हो गया तो हम बर्बाद हो जायेंगे।” 

ज़ूबी ने सहमती में अपनी गर्दन हिला दी। 

“अपने केबिन में जाओ और मेरे फोन का इंतज़ार करो। मैं मिस्टर राज से कॉन्टेक्ट करता हूँ और उन्हें सारी बात समझाता हूँ... फिर सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए” रवि ने कहा। 

ज़ूबी वापस अपने केबिन मे पहुँची। उसका दिमग काम नहीं कर रहा था कि वो क्या करे। उसे पता नहीं था कि अगर वो गिरफ़्तार हो गयी तो उसका मंगेतर आगे उससे रिश्ता रखेगा कि नहीं। वो अपनी कुर्सी पर बैठ कर बाहर देखने लगी। उसे महसूस हुआ कि उसका शरीर डर के मारे काँप रहा था। 

करीब एक घंटे के लंबे इंतज़ार के बाद रवि का फोन आया, “ज़ूबी राज एक कॉनफ्रेंस के सिलसिले में होटल अंबेसडर के सुइट नंबर १५०४ में है। उसने तुम्हें तुरंत ऐप्लीकेशन की कॉपी लेकर बुलाया है। तुम तुरंत चली जाओ... मैं थोड़ी देर में आता हूँ।”



“ठीक है सर! मैं अभी चली जाती हूँ।” 

फोन पर थोड़ी देर खामोशी छायी रही। 

“ज़ूबी तुम्हें पता है ना कि ये मीटिंग हमारी फ़र्म के लिये कितनी महत्वपूर्ण है।” थोड़ी और खामोशी के बाद, “और तुम्हारे लिए भी।” 

ज़ूबी ने रवि को बताया कि उसे पता है। 

काँपती हुई ज़ूबी ने फाइल उठाई और होटल अंबेसडर की ओर चल दी।

करीब डेढ़ घंटे की बहस के बाद भी ज़ूबी मिस्टर राज को ये नहीं समझा पायी कि उससे गलती कैसे और कहाँ हुई। ये बात राज को झल्लाय जा रही थी और आखिर वो गुस्से में बरस पड़ा। “क्या तुम मुझे ये बताने की कोशिश कर रही हो कि तुम्हें ये नहीं पता कि क्या और कौनसी बातें ऐप्लीकेशन मे छूट गयी हैं। मैं ही बेवकूफ़ था जो इतने महत्वपूर्ण काम पर “रवि एंड देव” पर भरोसा किया। क्या तुम कोई जवाब दे सकती हो?” राज गुस्से में जोर से बोला। 

ज़ूबी की आँखों में आँसू आ गये। आज तक राज ने उसे बहुत इज्जत और अच्छे व्यवहार से ट्रीट किया था। ४५ साल का राज एक कसरती बदन का मर्द था। वो गुस्से में अपने हाथ का मुक्का बना कर दूसरी हथेली पे मार रहा था जैसे कि एक ही वार में ज़ूबी को मार गिरायेगा। 

राज ज़ूबी की ओर देख कर अपने आप से कह रहा था, “क्या बदन है इसका। भारी-भारी चूचियाँ और इतनी पतली कमर। पता नहीं बिस्तर में कैसी होगी।” जब ज़ूबी कागज़ों से भरी टेबल पर झुकी तो राज को उसकी लंबी टाँगें और बड़े-बड़े कुल्हों की झलक मिली। “थोड़ी देर में ही इसकी गाँड ऐसे मारूँगा कि ये याद रखेगी।” 

“ज़ूबी! मैंने अपने क्रिमिनल लॉयर से बात कर ली है, उसका कहना है कि अगर मैंने तुम पे और तुम्हारी फ़र्म पे भरोसा करके साइन किये हैं तो मुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं आता है। अब तुम फँस चुकी हो... मैं नहीं। मुझे टेंशन है कि मेरा करोड़ों का नुकसान हो जायेगा।” राज ने उसे घूरते हुए कहा। 

“मैं समझ सकती हूँ सर” ज़ूबी अपनी गर्दन झुकाते हुए बोली। 

“क्या समझती हो तुम, कि तुम्हारी जैसी नासमझ वकिल की वजह से मैं अपना करोड़ों का नुकसान होने दूँगा। याद रखना तुम कि अगर मेरा एक पैसे का भी नुकसान हुआ तो मैं तुम्हारी पूरी लॉ फ़र्म बंद करवा दूँगा।” 

“सर मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।” ज़ूबी गिड़गिड़ाते हुए बोली, “सर कुछ भी जो आप कहें।” 

राज थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा, “ठीक है मैं अपने क्रिमिनल लॉयर से बात करता हूँ कि वो तुम्हें कैसे बचा सकता है। जब तक मैं बात करता हूँ, तुम एक काम करो... अपने कपड़े उतार कर नंगी हो जाओ और मेरे लंड को चूसो... सिर्फ़ इसी तरह तुम मेरी मदद कर सकती हो।” 

ज़ूबी पत्थर की बुत बन कर खड़ी थी। राज फोन पर अपने वकिल से बात कर रहा था, “हाँ वो तो फँसेगी ही पर उसकी फ़र्म को भी काफी नुकसान होगा, क्या कोई तरीका नहीं है कि इन सबसे छुटकारा मिल सके?” 

“थोड़ा उसकी उम्र और उसके भविष्य का ध्यान दो, बेचारी मर जायेगी। उसकी फ़र्म के बारे में सोचता हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए। हाँ वो इस समय मेरे पास ही खड़ी है।” 

“क्या तुम ये कहना चाहते हो कि अब उसका और उसकी फ़र्म का भविष्य मेरे हाथ में है...? तो ठीक है मैं सोचुँगा कि इस लड़की को इस समस्या से बचाना चाहिए कि नहीं।” 

राज ज़ूबी को घुरे जा रहा था, जैसे वो उसके आगे बढ़ने का इंतज़ार कर रहा हो। राज होटल की कुर्सी पे अपनी दोनों टाँगों को फैलाये बैठा था।

अपने आपको भविष्य के सहारे छोड़ते हुए ज़ूबी ने अपनी ज़िंदगी की राह में अपना पहला कदम बढ़ा दिया। उसने गहरी साँस लेते हुए अपने हाथ अपने टॉप के ऊपर के बटन पर रखे और बटन खोलने लगी। थोड़ी ही देर में उसका टॉप खुल गया और उसने उसे अपने कंधों से निकाल कर उसे उतार दिया। फिर उसने अपनी स्कर्ट के हुक खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। अपनी हाई हील्स की सैंडल निकाले बगैर उसने स्कर्ट को उतारा और सैंडलों के अलावा सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में राज के सामने खड़ी थी। 

ज़ूबी राज को देख रही थी कि उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया हो पर वो वैसे ही अपनी कुर्सी पर बैठा रहा। 

ज़ूबी सोच रही थी कि आगे वो क्या करे कि इतने में राज ने फोन के माउथ पीस पर हाथ रख कर कहा, “अब तुम किसका इंतज़ार कर रही हो। जल्दी से अपनी पैंटी और ब्रा उतार के मेरे पास आओ।” 

ज़ूबी ने अपनी ब्रा के हुक खोल कर अपनी ब्रा उतार दी। उसकी गोल -गोल चूचियाँ बाहर निकल पड़ी। फिर उसने अपनी पैंटी नीचे कर के उतार दी। उसने देखा कि राज उसकी चूत को घूर रहा था। उसने अपने मंगेतर के कहने पर कल ही अपनी चूत के बल साफ किये थे। उसे शरम आ रही थी कि आज कोई मर्द उसकी चूत को इस तरह घूर रहा है। 

राज अभी भी फोन पर बात कर रहा था। वो अपनी कुर्सी से उठा और ज़ूबी को देख कर अपनी पैंट की ज़िप की ओर इशारा किया। ज़ूबी उसके पास आ घुटनों कल बैठ गयी। फिर उसने उसकी पैंट के बटन खोले और उसके सुस्त पड़े लंड को अपने हाथों में ले लिया। फिर अपने होठों को खोल कर अपनी जीभ से उसके लंड के सुपाड़े को चाटने लगी। 

ज़ूबी ने आज से पहले अपने मंगेतर के सिवाय किसी और के लंड को नहीं चूसा था। अपने मंगेतर का भी सिर्फ़ एक बार जब वो काफी नशे में हो गया था और उसे चूसने की जिद की थी। पर आज उसके पास कोई चारा नहीं था। उसने अपना पूरा मुँह खोल कर राज के लंड को मुँह में ले लिया और चूसने लगी। उसकी जीभ का स्पर्श पाते ही लौड़े में जान आ गयी और वो ज़ूबी के मुँह में पूरा तन गया। 

राज ने अपनी पैंट नीचे खिसका दी। ज़ूबी एक हाथ से उसके लंड को पकड़े हुए थी और अपने मुँह को ऊपर नीचे कर रही थी जैसे कोई लॉलीपॉप चूस रही हो। राज हाथ बढ़ा कर उसकी चूचियों के निप्पल को अपने अंगूठे और अँगुली में ले कर भींचने लगा। उसके छूते ही निप्पल में जान आ गयी और वो खड़े हो गये। 

राज ने फोन पर बात करना जारी रखा। 

“ज़ूबी खान नाम है उसका। हाँ यार तुम जानते हो उसे... वही जिसने लॉ परीक्षा मे स्टेट में टॉप किया था। हाँ वही...। अरे वो यहीं है इस वक्त... मेरे लंड को चूस रही है... तुम्हें क्या लगता है... मैं मजाक कर रहा हूँ...? थोड़ी देर में मैं उसकी चूत चोदने वाला हूँ।” 

राज की बातें सुनकर ज़ूबी का चेहरा शर्म से लाल हो गया। फिर भी वो जोरों से उसके लंड को चूस रही थी। वो जानती थी कि उसके पास बस एक यही उपाय है अपने आप को इस मुसीबत से बचाने का। उसने लंड चूसना जारी रखा। 

राज ने फोन नीचे रखा और अपने दोनों हाथ ज़ूबी के सिर पर रख कर अपने लंड को और अंदर उसके गले तक डाल दिया। उसकी बढ़ती हुई साँसों के देख कर ज़ूबी समझ गयी कि उसका लंड अब पानी छोड़ने वाला है। 

“हाँआँआँआँ चूऊऊसो ओहहहहह और जोर से चूसो” राज अपने लंड को और अंदर तक घुसेड़ कर बड़बड़ा रहा था। 

ज़ूबी एक हाथ से उसके लंड की गोलियों को सहला रही थी और दूसरे हाथ से उसके लंड को पकड़े चूस रही थी। थोड़ी देर में राज का लंड अकड़ना शुरू हो गया। राज ने अपने दोनों हाथों का दबाव ज़ूबी के सिर पर रख कर अपने लौड़े को और अंदर गले तक डाल दिया और अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी।

ज़ूबी ना चाहते हुए भी उसके लंड से निकला पूरा पानी गटक गयी। राज अपने लंड को उसके मुँह मे तब तक अंदर बाहर करता रहा जब तक कि उसका लंड थोड़ा ढीला नहीं पड़ गया। ज़ूबी उसके लंड को अपने मुँह से निकालने को डर रही थी कि कहीं वो नाराज़ ना हो जाये पर राज ने अपना लंड उसके मुँह से निकाल लिया। उसके लंड के निकलते ही उसके पानी की धार ज़ूबी के चेहरे से होती हुई उसकी छाती और टाँगों पर चू पड़ी। 

तभी फोन की घंटी बजी और राज फोन उठा बात करने लगा। बात करते हुए उसने ज़ूबी को उसके कंधों से पकड़ कर खड़ा कर दिया। राज ने उसे घुमा कर इस तरह खड़ा कर दिया कि ज़ूबी की पीठ उसकी तरफ़ थी। 

फोन पर बात करते हुए राज पीछे से अपने हाथ उसकी छाती पर रख कर उसके मम्मे मसल रहा था। ज़ूबी ने महसूस किया की उसका लंड उसकी गाँड की दरार पर रगड़ खा रहा है। राज उसके कान में धीरे से बोला, “जाओ जाकर बिस्तर पर लेट जाओ, अब मैं तुम्हें चोदूँगा।” 

जैसे ही ज़ूबी बिस्तर की ओर बढ़ी, राज उसके बदन को घुरे जा रहा था। क्या पतली कमर है और क्या गोल गोल चूत्तड़। उसने ऐसे बदन जिम में कई देखे थे। उसके भरे चूत्तड़ों को देख कर राज के मुँह में पानी आ रहा था, “आज मैं इसकी गाँड मार के रहुँगा” वो सोच रहा था। 

ज़ूबी जैसे ही बिस्तर पर लगे कवर को हटाकर उसमें घुसने लगी तो राज बोला, “ज़ूबी तुम बेड के ऊपर नंगी ही लेटी रहो... मैं तुम्हारे नंगे बदन को देखना चाहता हूँ और अपने सैंडल मत उतारना।” 

राज उसे घुरे जा रहा था। वो जानता था की ज़ूबी आज हर वो काम करेगी जो वो कहेगा। उसकी उभरी और भरी हुई चूचियाँ फिर एक बार उसके लंड में जान फूँक रही थी। 

पिछले आधे घंटे से राज ज़ूबी के ऊपर लेटा हुआ अपने भारी लंड को उसकी चूत में अंदर बाहर कर रहा था। ज़ूबी की दोनों टाँगें राज की कमर से लिपटी हुई थी। राज अपने हाथों से उसके दोनों चूत्तड़ों को पकड़े हुए था और अपने लंड को आधा बाहर निकालते हुए पूरी ताकत से उसकी चूत में पेल रहा था। 

ज़ूबी के दोनों हाथ राज की पीठ पर थे और राज जब पूरी ताकत से धक्का लगाता तो ज़ूबी को अपना शरीर पिसता हुआ महसूस होता। वो दिवार पर लगे शीशे में देख रही थी की राज का भारी शरीर कैसे उसके नाज़ुक बदन को रौंद रहा था। 

मन में डर और इस बे-इज्जती के बावजूद अब उसके शरीर और टाँगों ने विरोध करना छोड़ दिया था। चुदाई इतनी देर चल रही थी की अब उसे भी आनंद आ रहा था। वो भी अपने कुल्हे उछाल कर उसका साथ दे रही थी। उसे ऐसा लग रहा था की राज का लंड नहीं बल्कि उसके मंगेतर का लंड उसे चोद रहा है। जब भी राज का लंड उसकी चूत की जड़ पर ठोकर मारता तो उसके मुँह से सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहहहहह आहहहहहहह” 

आखिर में राज का शरीर अकड़ने लगा और उसने ज़ूबी को जोर से बाँहों में भींचते हुए अपना लंड पूरा अंदर डाल कर अपना पानी छोड़ दिया। ज़ूबी ने भी सिस्करियाँ भरते हुए उसके साथ ही पानी छोड़ दिया। 

राज थोड़ी देर उसके बदन पर लेटा अपनी साँसों को काबू में करता रहा और फिर पलट कर बिस्तर पर लेट गया। जैसे ही राज उसके शरीर से हटा, ज़ूबी बिस्तर से लड़खड़ाते हुए उठी और अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गयी। 

ज़ूबी अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर आयी तो देखा की राज अभी भी बिस्तर पर नंगा लेटा है और वो टीवी का रिमोट पकड़े चैनल बदल रहा है। 

“देखो इसे?” राज ने कहा। 

ज़ूबी की नज़रें जैसे ही टीवी स्क्रीन पर पड़ी तो उसने देखा की वो उसकी और राज की चुदाई की फ़िल्म थी। राज ने उसके साथ चुदाई का पूरा वीडियो टेप बना लिया था। 

“ज़ूबी” उसने कहा, “आज से मैं “रवि एंड देव” कंपनी को अपने इशारों पर नचा सकता हूँ और साथ ही आज से तुम्हें हर वो काम करना है जो मैं चाहुँगा।”

ज़ूबी ये टेप देख कर घबरा गयी थी और अपनी किस्मत को कोस रही थी कि वो कहाँ तो एक सफ़ल वकील बनने आयी थी और अब हालात उसे एक वेश्या बना रहे थे। 

“तुम अपना फोन नंबर, घर का पता और मोबाइल नंबर लिख कर दे दो और जब मैं तुम्हें बुलाऊँ, तुम्हें आना पड़ेगा” राज ने उसे घूरते हुए कहा।

ज़ूबी समझ गयी थी कि उसके पास कोई चारा नहीं था, इसलिए उसने जल्दी से सब लिखा और लगभग भागते हुए कमरे से बाहर चली गयी। 

राज के होठों पर एक सफ़ल मुस्कान थी। 

दूसरे दिन ज़ूबी अपने ऑफिस पहुँच कर मिस्टर रवि से मिली, “सर हालातों को देखते हुए मिस्टर राज के साथ कल की मीटिंग अच्छी गयी। मुझे लगता है की समस्या का कोई ना कोई हल निकल ही आयेगा।” 

जो कुछ भी उसके और राज के बीच हुआ था वो उसने नहीं बताया और ना ही टेप के बारे में। ये भी नहीं बताया की राज का फोन सुबह आया था और उसने कहा था की आज से जब भी वो उससे मिले तो ब्रा और पैंटी ना पहने। 

“मेरी मिस्टर राज के साथ थोड़ी देर में मीटिंग होने वाली है। ज़ूबी तुम यहीं ऑफिस में रहना... हो सकता है मिस्टर राज को तुम्हारी ज़रूरत पड़े” रवि ने उससे कहा। 

ज़ूबी डरी और सहमी हुई अपने केबिन मे पहुँची। उसे राज के रुतबे के बारे में मालूम था और वो जानती थी की अगर उसने उसकी बात नहीं मानी तो वो कुछ भी कर सकता था। 

अपने केबिन में दाखिल होने से पहले वो साथ में लगे बाथरूम मे गयी और अपनी ब्रा और पैंटी उतार दी। उसने दीवार पर लगे शीशे मे अपने आप को देखा तो शर्मा गयी। उसके सिल्क के टॉप में से उसके मम्मे साफ़ झलक रहे थे। उसके निप्पल साफ़ टॉप में से बाहर को निकालते दिखायी पड़ रहे थे। 

ज़ूबी जल्दी से अपनी ब्रा और पैंटी अपने हाथों में लिए दौड़ती हुई अपने केबिन में वापस आ गयी। केबिन में आने के बाद उसने अपना बिज़नेस कोट पहन लिया जिससे उसके टॉप में से छलकती चूचियों को ढांपा जा सके। 

ज़ूबी अपनी कुर्सी पर बैठ कर काम करने की कोशिश कर रही थी पर उसका सारा ध्यान मिस्टर राज और मिस्टर रवि के बीच चल रही मीटिंग पर था। थोड़ी देर बाद मिस्टर रवि का फोन आया, “ज़ूबी मिस्टर राज तुमसे अभी तुम्हारे केबिन में मिलना चाहेंगे।” 

“ठीक है सर... उन्हें भेज दीजिए, मैं इंतज़ार कर रही हूँ” ज़ूबी ने जवाब दिया। 

ज़ूबी अपनी कुर्सी पे चिंतित बैठी थी। हज़ारों ख्याल उसके दिमाग में घूम रहे थे। फिर भी वो पूरी कोशिश कर रही थी कि वो चेहरे से चिंतित ना दिखे। थोड़ी देर में उसके केबिन के दरवाजे पर दस्तक हुई और उसकी सेक्रेटरी मिस्टर राज के साथ अंदर आयी। राज के पीछे एक और व्यक्ति केबिन में दाखिल हुआ जिसे देख कर एक बार के लिये ज़ूबी को थोड़ी राहत मिली। 

राज ने उस व्यक्ति को दरवाज़ा बंद करने के लिये कहा और ज़ूबी से उसका परिचय कराया। “ज़ूबी ये मिस्टर अमित मेरे दोस्त हैं जो लायसेंस रीन्यूअल डिपार्टमेंट में काम करते हैं। इन्होंने ही हमारी ऐप्लीकेशन की गल्तियों को पकड़ा है।” ज़ूबी ने एक मुस्कान के साथ उससे हाथ मिलाया। 

मिस्टर अमित दिखने में ही एक सरकरी मुलाज़िम लग रहा था। पुराने स्टाइल के कपड़े, बालों में मन भर तेल और नाक पर मोटे काँच का चश्मा। पर अपनी पोज़िशन की वजह से थोड़ा कठोर स्वभाव का लग रहा था। ज़ूबी ने देखा की उसकी पैंट जो उसके पेट के नीचे लटक रही थी, शायद तब खरीदी गयी थी जब उसका साइज़ ३४ था जो कि आज लगभग ४० था। 

राज ने धीरे से ज़ूबी से कहा, “ज़ूबी हम जिस विषय पर बात करने वाले हैं उसमें थोड़ा समय लग सकता है।” 

ज़ूबी ने अपनी सेक्रेटरी को फोन लगाया, “मेरे आने वाले हर फोन को रोक देना, मैं मिस्टर राज और मिस्टर अमित के साथ एक जरूरी मीटिंग में हूँ।”

“ज़ूबी मिस्टर अमित चाहते हैं की हम तीनों मिलकर इस समस्या का हल निकाल लें। पर किसी को मालूम नहीं होना चाहिए की हमने साथ में मुलाकात की है। और मैंने इन्हें ये भी बता दिया है की सारी ऐप्लीकेशन तुमने ही तैयार की हैं।” राज ने मीटिंग शुरू करते हुए कहा।

करीब एक घंटे की बहस के बाद ज़ूबी को पता चला कि अगर लायसेंस रीन्यू नहीं हुए तो राज की कंपनी को कितना घाटा हो सकता है। मिस्टर अमित अगर नयी ऐप्लीकेशन से पुरानी वाली बदल भी देते हैं तो इन्हें अपने और साथी को मिलाना होगा। जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, राज के चेहरे पर झल्लाहट के भाव आते जा रहे थे। 

“अमित ज़ूबी को हमारी परिस्थिति के बारे में अच्छी तरह मालूम है। उसे ये भी मालूम है की गलती उससे हुई है। वो अच्छी तरह जानती है की मैं इसकी कंपनी को बर्बाद कर सकता हूँ पर इन सबसे मेरा जो घाटा होगा वो तो पूरा नहीं होगा ना” राज का गुस्सा साफ़ दिखायी दे रहा था। 

“ज़ूबी इस कंपनी के बोर्ड पर है और हमारी हर तरह से सहायता करने को तैयार है... है न ज़ूबी।” ज़ूबी ने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी। 

राज ने अपना अगला कदम बढ़ाया। वो खड़ा होकर ज़ूबी के डेस्क के पास चहल कदमी करने लगा, “अमित हमें इस काम को अंजाम देना है। तुम्हें अच्छी तरह पता है की कैसे अंजाम दिया जाता है।” 

फिर उसने ज़ूबी की तरफ़ देखा, “ज़ूबी जरा खड़ी हो जाओ।” 

ज़ूबी काँपती टाँगों पर उसकी बात मानते हुए खड़ी हो गयी। 

राज चलते हुए ज़ूबी के पीछे आ गया और अमित उसे घुरे जा रहा था। उस करोड़पति ने ज़ूबी का कोट उतार दिया और उसके टॉप में से झलकती चूचियाँ साफ़ दिखायी देने लगी। 

“अमित मैंने इस गुड़िया से कहा था की आज वो ब्रा नहीं पहने।” ज़ूबी के निप्पल अचानक ही तन गये थे। राज ने पीछे से उसके टॉप की ज़िप खोल दी और ज़ूबी पत्थर की मुरत बनी सहमी सी खड़ी थी। ज़ूबी की निगाहें अमित के चेहरे पर टिकी थी जो हैरत से उसकी और घूर रहा था। 

राज ने ज़ूबी के टॉप को उसकी दोनों बाँहों से अलग करते हुए उतार दिया। अब वो कमर से उपर तक पूरी तरह नंगी खड़ी थी। पता नहीं डर के मारे या ठंड के मारे उसके निप्पल पूरी तरह से खड़े थे। 

राज ने पीछे से उसकी चूचियों को मसलते हुए कहा, “अमित तुम्हें नहीं लगता की हम इस मामले को सुलझा लेंगे।” 

“हाँ... हाँ! हम सुलझा लेंगे मिस्टर राज... आप चिंता ना करें।” अमित एक भूखे शिकारी की तरह ज़ूबी के बदन को घूरते हुए कहा। 

“ज़ूबी तुम्हें नहीं लगता की हम इस दलदल से बाहर आ जायेंगे।” राज ने उसके स्कर्ट के हुक को खोलते हुए कहा। 

“हाँ मिस्टर राज हम जरूर बाहर आ जायेंगे।” ज़ूबी ने उसकी हरकतों का बिना कोई विरोध करते हुए कहा। 

ज़ूबी ने अमित की ओर देखा जो कामुक निगाहों से उसके बदन को घुरे जा रहा था। थोड़ी देर में उसने उसका हाथ अपने चूत्तड़ पर रेंगते हुए महसूस किया। उसके एक चूत्तड़ पर राज हाथ फिरा रहा था और दूसरे पर अमित का। 

इतने में राज ने अपनी एक अँगुली ज़ूबी की चूत मे घुसा दी और अंदर बाहर करने लगा। ज़ूबी की निगाहें अपने केबिन के दरवाजे पर लगी हुई थी और वो अल्लाह से दुआ कर रही थी कि उसके केबिन में कोई ना आये। वो सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने मेज़ का सहारा ले कर घोड़ी बन गयी थी। 

ज़ूबी ने अपने पीछे कपड़ों की सरसराहट सुनी। राज ने थोड़ी देर के लिए अपने हाथ उसके चूत्तड़ से हटा कर अपनी बेल्ट को खोला और अपनी पैंट के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया। उसने अपने खड़े लंड को ज़ूबी की चूत के छेद पर टिका दिया।
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