RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
सुबह जब मुझे नाश्ते के लिए बुलाया गया तो मैंने कह दिया कि मेरा मन नहीं
है। मैं ऐसे ही बिस्तर पर पड़ा था।
थोड़ी देर में मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरे कमरे में आया है, मैंने उठकर
देखा तो सिन्हा आंटी अपने हाथों में खाने का बर्तन लेकर आई थीं। उन्हें
देखकर मेरी फिर से फट गई और मैं सोचने लगा कि आज तो पक्का डांट पड़ेगी।
मैं चुपचाप अपने बिस्तर पर कोहनियों के सहारे बैठ गया। आंटी आईं और मेरे
सर पर अपना हाथ रखकर बुखार चेक करने लगी- बुखार तो नहीं है, फिर तुम खा
क्यूँ नहीं रहे हो। चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ और नाश्ता कर लो।
आंटी का बर्ताव बिल्कुल सामान्य था, लेकिन मेरे मन में तो उथल पुथल थी।
मैंने अचानक से आंटी का हाथ पकड़ा और उनकी तरफ विनती भरी नजरों से देखकर
कहा,"आंटी, मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। आप गुस्सा तो नहीं हो न।
मैं वादा करता हूँ कि दुबारा ऐसा नहीं होगा।" मैंने अपने सूरत ऐसी बना ली
जैसे अभी रो पड़ूँगा।
आंटी ने मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ा और मेरी आँखों में देखा। उनकी
आँखें कुछ अजीब लग रही थीं लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग कुछ भी सोचने समझने की
हालत में नहीं था। आंटी ने मेरे माथे पर एक बार चूमा और कहा,“ मैं तुमसे
नाराज़ या गुस्से में नहीं हूँ लेकिन अगर तुमने नाश्ता नहीं किया तो मैं सच
में नाराज़ हो जाऊँगी।”
मेरे लिए यह विश्वास से परे था, मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। लेकिन जो
भी हुआ उससे मेरे अंदर का डर जाता रहा और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
पता नहीं मुझे क्या हुआ और मैंने आंटी के गाल पर एक चुम्मी दे दी और भाग कर
बाथरूम में चला गया। मैं फ्रेश होकर बाहर आया, तब तक आंटी जा चुकी थीं।
मैंने फटाफट अपना नाश्ता खत्म किया और बिल्कुल तरोताज़ा हो गया।
आंटी ने मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ा और मेरी आँखों में देखा। उनकी
आँखें कुछ अजीब लग रही थीं लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग कुछ भी सोचने समझने की
हालत में नहीं था। आंटी ने मेरे माथे पर एक बार चूमा और कहा,“ मैं तुमसे
नाराज़ या गुस्से में नहीं हूँ लेकिन अगर तुमने नाश्ता नहीं किया तो मैं सच
में नाराज़ हो जाऊँगी।”
मेरे लिए यह विश्वास से परे था, मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। लेकिन जो भी
हुआ उससे मेरे अंदर का डर जाता रहा और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। पता
नहीं मुझे क्या हुआ और मैंने आंटी के गाल पर एक चुम्मी दे दी और भाग कर
बाथरूम में चला गया। मैं फ्रेश होकर बाहर आया, तब तक आंटी जा चुकी थीं।
मैंने फटाफट अपना नाश्ता खत्म किया और बिल्कुल तरोताज़ा हो गया।
अचानक मुझे पप्पू और रिंकी की मुलाकात की बात याद आ गई, मैंने पप्पू को कह
तो दिया था कि मैं इन्तजाम कर लूँगा लेकिन अब मुझे सच में कोई उपाय नज़र
नहीं आ रहा था।
तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंधी और मुझे एक ख्याल आया। मैंने फिर से अपने
आप को अपने बिस्तर पर गिरा लिया और अपने इन्सटिट्यूट में भी फोन करके कह
दिया कि मैं आज नहीं आ सकता।
मैं वापस बिस्तर पर इस तरह गिर गया जैसे मुझे बहुत तकलीफ हो रही हो।
थोड़ी ही देर में मेरी बहन मेरे कमरे में आई मेरा हाल चाल जानने के लिए।
उसने मुझे बिस्तर पर देखा तो घबरा गई और पूछने लगी कि मुझे क्या हुआ।
मैंने बहाना बना दिया कि मेरे सर में बहुत दर्द है इसलिए मैं आराम करना चाहता हूँ।
दीदी मेरी हालत देखकर थोड़ा परेशान हो गई। असल में आज मुझे दीदी को शॉपिंग
के लिए लेकर जाना था लेकिन अब शायद उनका यह प्रोग्राम खराब होने वाला था।
दीदी मेरे कमरे से निकल कर सीधे आंटी के पास गई और उनको मेरे बारे में
बताया। आंटी और सारे लोग मेरे कमरे में आ गए और ऐसे करने लगे जैसे मुझे कोई
बहुत बड़ी तकलीफ हो रही हो।
उन लोगों का प्यार देखकर मुझे अपने झूठ बोलने पर बुरा भी लग रहा था लेकिन
कुछ किया नहीं जा सकता था। दीदी को उदास देखकर आंटी ने उसे हौंसला दिया और
कहा कि सब ठीक हो जायेगा, तुम चिंता मत करो।
दीदी ने उन्हें बताया कि आज उनको मेरे साथ शोपिंग के लिए जाना था लेकिन अब
वो नहीं जा सकेगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और मांगने लगा कि
आंटी दीदी के साथ शोपिंग के लिए चली जाये।
भगवान ने मेरी सुन ली। आंटी ने दीदी को कहा कि उन्हें भी कुछ खरीदारी करनी है तो वो साथ में चलेंगी।
अब दीदी और मेरे दोनों के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। दीदी क्यूँ खुश थी ये
तो आप समझ ही सकते हैं लेकिन मैं सबसे ज्यादा खुश था क्यूंकि दीदी और आंटी
के जाने से घर में सिर्फ मैं और रिंकी ही बचते। प्रिया तो स्कूल जा चुकी
थी।
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