Hindi Antarvasna - चुदासी
11-13-2021, 01:42 PM,
RE: Hindi Antarvasna - चुदासी
अब्दुल ने मेरी पीठ पर खड़े होकर मुझे रूम के एक कोने पर पड़े टेबल को पकड़कर झुकने को कहा। मैं वहां । जाकर उसके कहे मुताबिक झुक कर खड़ी हो गई। अब्दुल ने मेरे पीछे आकर मेरी गाण्ड में पहले तो एक उंगली डाली, फिर दूसरी, और फिर तीसरी। मैं मेरे होंठों को दबाकर खड़ी थी क्योंकि मैं जानती थी कि अब्दुल मुझे। आगे दर्द कम हो उसके लिए ये सब कर रहा है। फिर अब्दुल ने उसकी उंगलियां अंदर ही अंदर थोड़ी देर तक गोल-गोल घुमाई तो मेरे मुँह से दर्द भरी सिसकी निकल गई।

फिर उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और पीछे जाकर खड़ा हो गया और मेरी गाण्ड पे उसका लण्ड टिकाकर बोला- “थोड़ा दर्द होगा रानी, सह लेना.." और मैं कुछ बोलँ उसके पहले ही धक्का दे दिया।

अब्दुल का धक्का जोर का झटका था, मेरे मुँह से चीख निकल गई।

अब्दुल- “अभी तो आधा ही गया है...” कहकर अब्दुल ने और एक धक्का दे दिया।

मैं दूसरी बार चीख पड़ी।

अब्दुल मेरी पीठ पर झुक के मेरा मुँह पीछे की तरफ खींचकर जबान से जबान लड़ाने लगा, उसके हाथ मेरे मम्मों को सहला रहे थे। मैं थोड़ी नार्मल हुई तो अब्दुल मेरी पीठ पर से ऊपर होकर खड़ा हो गया और धीरे-धीरे करके उसने लण्ड पीछे लिया और फिर आगे किया। दो-तीन बार धीरे-धीरे आगे-पीछे करके वो जल्दी से करने लगा, उसका एक हाथ मेरी चूत पर था और वो उंगली से मेरी चूत को सहला रहा था। खड़े-खड़े इस तरह से पीछे से चुदवाना मुझे बहुत मुश्किल लग रहा था, पर अब क्या एक बार 'हाँ' बोलकर फिर से 'ना' कहना ठीक नहीं लग रहा था मुझे। वैसे भी मैंने आज अब्दुल को खूब सताया था।

अब्दुल मेरी दोनों तरफ से चुदाई कर रहा था, आगे की तरफ उंगली से और पीछे की तरफ लण्ड से। वो गाण्ड में लण्ड पेलता था तब मेरी कमर थोड़ी आगे सरकती थी और चूत में उंगली ज्यादा अंदर तक जाती थी। फिर वो लण्ड को पीछे लेता था तब वो आगे से उंगली भी थोड़ी पीछे सरकाता था। कुछ पलों में मुझे भी मजा आने लगा, मेरे मुँह से आनंद की सिसकारियां निकलने लगीं।

अब्दुल उसके हाथों से मेरे उरोजों को भी जोरों से मसल रहा था, जो मुझे और भी मस्त बना रहा था। लेकिन अब्दुल के धक्कों की रफ़्तार इतनी बढ़ गई थी की मैं दो बार ज्यादा झुक गई और गिरते-गिरते रह गई। बहुत दिन बाद मैं आज फिर से सेक्स करते वक़्त पसीने से तरबतर हो गई थी और शायद अब्दुल भी, जिससे हम दोनों के बदन चिपक रहे थे। अब्दुल के मुँह से निकलने वाली सिसकियों की आवाज धीरे-धीरे बढ़ने लगी, वो। अंजाने में बढ़ रही थी या वो जानबूझकर ऐसे निकाल रहा था ये समझ में नहीं आ रहा था।

मैं अब थक चुकी थी, मैं थोड़ी और झुक चुकी थी, चुदाई का नशा न होता तो मैं कब की बैठ गई होती। मेरे मुँह से भी लयबद्ध सिसकारियां निकल रही थीं, मेरे बदन से कोई खून का कतरा-कतरा खींचकर निकाल रहा हो ऐसा मुझे लग रहा था। मेरी सांसें भारी होने लगी थी। मैंने मेरा हाथ नीचे किया और अब्दुल का हाथ पकड़कर उसकी उंगली जोरों से अंदर-बाहर करवाने लगी तो मेरा बदन किसी धनुष की तरह खिंचने लगा और मैं झड़ने लगी। झड़ते ही मैं जोरों से हाँफने लगी और मैंने अब्दुल का हाथ खींचकर मेरी चूत में से उसकी उंगली के साथ निकाल दिया।

अब्दुल- “छूट गई क्या रानी?” अब्दुल ने पूछा।

मैंने सिर हिलाकर 'हाँ' कहा।

अब्दुल ने उसकी जो उंगली मेरी चूत में थी वो मेरे होंठों पर रगड़ी और उसे चूसने को कहा। मैं अब्दुल की उंगली होंठों से दबाते हुये जोरों से चूसने लगी और वो जोरों से मेरी गाण्ड मारने लगा। कुछ ही पल में वो भी झड़ने लगा। उसके लण्ड में से जब तक वीर्य निकलता रहा तब तक उसने उसका लण्ड मेरी गाण्ड में से नहीं। निकाला और जैसे ही निकाला तो मेरी दोनों टांगों पर से उसका वीर्य नीचे उतरने लगा। मैं झुक के टेबल की धार पकड़कर मेरे हाथ पर मेरा सिर टिकाकर घुटनों पे बैठी हुई थी। इस वक्त मुझमें मेरे पैर पर खड़े होने की भी हिम्मत नहीं थी
।\

अब्दुल मेरे पास आया और बाजू में बैठकर मेरे बालों को सहलाने लगा, पूछा- “मम्मी की याद आई ना रानी?”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

तब उसने उसका सवाल बहुत ही प्यार से दोहराया- “नानी की याद आई ना?” वो जो मुझे प्यार जता रहा था ना उसमें प्यार नहीं उसकी मर्दानगी का अभिमान था।

लेकिन मेरे पास उसकी बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था। मैंने सिर हिलाया- “हाँ..."

अब्दुल बहुत खुश हो गया, इस उमर में उसमें इतना दम वो भी बिन वियाग्रा के। ये सब सोचकर शायद वो खुश हो रहा था। अब्दुल ने मुझे उठाकर बेड पर लेटाया और मेरे ऊपर आ गया। वो मेरे होंठों को चूसने लगा और मेरे मुँह में अपनी जबान डालकर मेरी जबान को सहलाने लगा।

कुछ पल बाद मैंने उसे रोका- “बहुत हो गया अब्दुल, अब छोड़ो...”

अब्दुल- “क्यों थक गई?”

मैं- “हाँ...”

अब्दुल- “थोड़ी देर पहले मैं भी ना बोल रहा था तो तू मानी थी?”

मैं- “तो ये बात है?”

अब्दुल- “हाँ..."

मैं- “चल एक काम कर, उस वक़्त मैंने जो किया था पहले वो कर..."

अब्दुल- “तूने... तूने क्या किया था?”

मैं- “मैंने तुम्हारा लण्ड खड़ा किया था, मैंने तुम्हें गरम किया था। तू मुझे गरम करके दिखा?” मैंने कहा।

मेरी बात सुनकर अब्दुल मेरे सामने देखता रहा और फिर बोला- “चलो ये भी करते हैं...

वैसे मैं अब यहां से निकलना चाहती थी, लेकिन जब तक खुशबू का फोन ना आए तब तक निकलना नहीं चाहती थी।
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