RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
अपडेट-10
दूसरे दिन सुबह जब नींद टूटी तो में अपनी माँ के बारे में सोचने लगा. मेरी माँ यानी की मेरी प्यारी राधा रानी 46 साल की है पर किसी भी हालत में 40 से ज़्यादा की नहीं लगती. माँ भी हम दोनो भाइयों की तरह ही कद्दावर कद की और सुगठित शरीर की है. माँ का शरीर मांसल और भरा हुआ है पर किसी भी हालत में मोटी नहीं कही जा सकती; एक सुंदर औरत के शरीर में जहाँ भराव होने चाहिए वहीं पर भराव हैं. गोल चेहरा और उस पर फूले फूले गाल की गालों को चूस्ते चूस्ते जी नहीं भरे, सदा मुस्कराते रसीले होंठ जिन का रस्पान करने कोई भी आतुर हो जाय, छाती पर दो कसे हुए बड़े बड़े गोल स्तन की उनका मर्दन करने हथेली में खुजली चल पड़े, फिर कुच्छ पतली कमर और कमर ख़तम होते ही भारी उभरे हुए नितंब और विशाल फैली हुई जांघें की बस उनका तकिया बना सोते रहें और सोते रहें.
खेली खाई, बड़ी उमर की, भरे बदन की सलीके से रहनेवाली औरतें सदा से ही मेरी कमज़ोरी रही है. फिर मेरी माँ तो साक्षात रति देवी की अवतार थी और हर दिन नये नये रूप में नई सजधज के साथ मेरी आँखों के आगे रहती थी तो उसकी ओर मेरा आकर्षण होना स्वाभाविक था. जैसे मुझे अजय के रूप में अनायास ही एक पटा पटाया मस्त, चिकना लौंडा मिल गया और दो ही दिन में वह मेरा दीवाना हो गया, मेरे हर हुकम का गुलाम हो गया क्या वैसे ही मेरे सपनों की रानी राधा भी मुझे मिल जाएगी. में माँ के मामले में कोई भी जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था, ऐसी कोई भी हरकत नहीं करना चाहता था कि उसका दिल दुख जाय. में धीरे धीरे माँ को अपनी बना लेना चाहता था कि उसके साथ खुल के में अपनी हवस मिटाऊ, अपने जैसी बेबाक बेशरम बना के खुल के उसके साथ व्यभिचार करूँ, बिल्कुल खुली बातें करते हुए उसके शरीर के खजाने को भोग़ू. ऐसी माँ पाने के लिए में कितना ही इंतज़ार कर सकता था. माँ के साथ यह सब करने में अजय अब मेरे लिए बढ़ा नहीं था बल्कि मेरा सहयोगी साबित होने वाला था. अजय जैसे शौकीन लौन्डे के साथ माँ को भोगने में तो और मज़ा आएगा. अजय गान्डू तो है पर पूरा मर्द भी है, एक बार उसे माँ की जवानी चखा दूँगा तो वा मेरा और पक्का चेला बन जाएगा.
सुबह 10 बजे स्टोर जाते समय माँ ने रोज की तरह नास्टा कराया. हम दोनो भाई दिन का भोजन स्टोर के कॅनटिन में ही करते थे. नाश्ता करते समय मेने माँ से कहा,
"माँ अभी कुच्छ ही दिनो पहले चंडीगढ़ में एक बहुत आलीशान मल्टिपलेक्स खुला है. उसमें बड़ी मस्त पिक्चर लगी है. उसमें शहर की सबसे अच्छी रेस्टोरेंट भी खुली है. मेने भी उसे अभी तक नहीं देखा. बोलो, तुम्हारी इच्छा हो तो शाम को पिक्चर देखेंगे और वहीं खाना खाएँगे."
माँ: "बेटा में तो आज से 10-12 साल पहले पास वाले शहर में गाँव की कुच्छ लुगाइयो के साथ 'जे संतोषी माँ' देखने गई थी. मुझे तो पिक्चर देख के बहुत मज़ा आया था. उसके बाद तो मुझे वहाँ गाँव से शहर पिक्चर दिखाने कौन ले जाता?."
में: "अरे माँ अब पूरनी बातों को भूल जाओ. अब में हूँ ना. तुम्हें खूब पिक्चर दिखाउन्गा. में 5 बजे घर आ जाउन्गा और आज बाहर का ही मज़ा लेंगे." माँ ने खुश हो हामी भर दी.
शाम को मेरे स्टोर में कुच्छ काम आ गया तो मेने माँ को मोबाइल पर कह दिया कि वह रेडी हो कर 6 बजे तक स्टोर में ही आ जाए वहीं से सीधे सिनिमा हॉल में चले जाएँगे. मेने अड्वान्स में 2 टिकेट्स बुक करवा रखी थी और शो ठीक 6.30 पर शुरू होने वाला था. माँ सजधज के 6 बजे स्टोर में आ गई. माँ ने हल्के गुलाबी रंग की सारी और मॅचिंग ब्लाउस पहन रखा था. हल्के मेक अप में भी माँ का रूप निखरा हुआ था. हम फ़ौरन स्टोर से निकल गये और 15 मिनिट में हम बाइक पर हॉल में पहून्च गये. हॉल बहुत ही शानदार बना था. हॉल के इंटीरियर मन को मोहने वाले थे. पिक्चर शुरू होने के कुच्छ देर पहले हम हॉल में आ गये.
कुच्छ ही देर में हॉल की बत्तियाँ गुल हो गई और कुच्छ अड्स के बाद पिक्चर शुरू हो गई. पिक्चर कुच्छ रोमॅंटिक और बहुत मस्त थी. हीरो हीरोइन की च्छेड़छाड़, मस्त गाने, द्वि अर्थि संवाद, बेडरूम सीन इत्यादि सारा मसाला था. पिक्चर 9 बजे के करीब ख़तम हो गई. कुच्छ देर मल्टिपलेक्स के शॉपिंग सेंटर्स देखे और फिर रेस्टोरेंट में आ गये. माँ की पसंद पुछ्के खाने का ऑर्डर दिया, तबीयत से दोनोने भोजन का आनंद लिया और 10.30 के करीब घर पहून्च गये. हमारी आजकी शुरुआती शाम बहुत ही अच्छी गुज़री. माँ को सब कुच्छ बहुत अच्छा लगा.
घर पहून्च कर माँ बहुत खुश थी. सोफे पर बैठते हुए माँ बोली, "विजय बेटा तुम मेरा कितना ख़याल रखते हो. तुम्हारे साथ पिक्चर देख के, घूम के, होटेल में खाना ख़ाके बहुत अच्छा लगा. यहाँ शहर में लोग अपने हिसाब से जिंदगी जीते हैं. में तो गाँव में लोगों का ही सोचती रहती थी कि लोग क्या सोचेंगे, लोग क्या कहेंगे और अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गँवा दी."
माँ की यह बात सुनते ही में बोल पड़ा,"माँ गँवा कहाँ दी अभी तो शुरू हुई है."
माँ पिक्चर की बात छेड़ते हुई बोली,"बताओ इन सिनेमाओं की हेरोइनों के रख-रखाव और अंदाज़ के सामने हम लोगों की क्या जिंदगी है?"
में,"माँ वे हीरोइन तुम्हारे सामने क्या हैं? वो तो पाउडर और क्रीम में पूती हुई रहती हैं. तुम्हारे सामने तो ऐसी हज़ारों हीरोइन पानी भरती हैं."
माँ,"अच्छा तो ऐसा मेरे में क्या देखा है?"
में,"तुमको क्या पता है कि तुम्हारे में क्या है. कहाँ तुम्हारा सब कुच्छ नॅचुरल और उनका सब कुच्छ बनावटी और दिखावटी"
"तूँ आजकल बातें बड़ी प्यारी प्यारी करते हो और आजकल मेरा लाड़ला बहुत शरारती हो गया है. यह सब ऐसी पिक्चर देखने का असर है." माँ ने मेरी और देख हँसके कहा.
में,"माँ तुम्हारी ऐसी मुस्कराहट पर तो में सब कुच्छ कुर्बान कर दूँ."
हम कुच्छ देर इसी तरह बातें करते रहे और फिर माँ उठ खड़ी हुई और अपने रूम की ओर चल दी. में भी अपने रूम में आ गया और बेड पर पड़ा पड़ा काफ़ी देर माँ के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई.
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