RE: Desi Chudai Kahani मकसद
मुझे पूरी उम्मीद है कि अपने खादिम को आप भूले नहीं होगे लेकिन अगर इत्तफाकन ऐसा हो गया हो तो मैं आपका अपना परिचय फिर से दिए देता हूं । बंदे को सुधीर कोहली कहते हैं । बंदा प्राइवेट डिटेक्टिव के उस दुर्लभ धन्धे से ताल्लुक रखता है जो हिन्दुस्तान में अभी ढंग से जाना-पहचाना नहीं जाता । तम्बाकू जो आलू के पौधे की तरह प्राइवट डिटेक्टिव की कलम को भी आप विलायत की देन समझिए । बस, यूं जानिए कि प्राइवेट डिटेक्टिव की फसल हिंदुस्तान में अभी शुरू ही हुई है । आप जानते ही हैं कि एकाध पौधा बाहर से आ जाता है तो नई फसल चल निकलती है । हिंदुस्तान में और प्राइवेट डिटेक्टिव अभी उग रहे हैं, अभी बढ़ रहे हैं उनकी कलम अभी कटनी बाकी है एकाध अधपका काट लिया गया था तो वह फेल हो गया था । फल फूलकर मुकम्मल पेड़ अभी खाकसार ही बना है । कहने का मतलब यह है कि इसे आप कुदरत का करिश्मा कहें या युअर्स ट्रूली का, पूछ है आपके खादिम की दिल्ली शहर में - सिर्फ मेरी व्यवसायिक सेवाओं के तलबगार मेरे क्लायंट्स में ही नहीं, शहर के वैसे दादा लोगों में भी जैसों के दो प्रतिनिधि उस घड़ी मेरे सामने खड़े थे और जो मुझे ये चायस दे रहे थे कि मैं अभी मरना चाहता था या ठहर के ।
उन दोनों दादाओं की निगाहों के सामने मैंने कुर्त्ता-पाजामा उतारकर जींस जैकेट वाली पोशाक धारण की । कपड़ों की अलमारी में ही बने एक दराज में मेरी 38 केलीबर को लाइसेंसशुदा स्मिथ एंड वैसन रिवॉल्वर पड़ी थी लेकिन उन दोनों की घाघ निगाहों के सामने उस तक हाथ पहुंचाने का मौका मुझे न मिला ।
अन्त में मैंने डनहिल का एक सिगरेट सुलगाया और बोला - “अब क्या हुक्म है ?”
“हुक्म नहीं” पहलवान बोला, “दरखास्त है, भैय्ये ।”
“वही बोलो ।”
“नीचे सड़क पर तुम्हारे फ्लैट वाली इस इमारत के ऐन सामने हमारी कार खड़ी है तुमने हमारे साथ चल कर उस पर सवार हो जाना है और फिर कार यह जा वह जा । बस इतनी सी बात है ।”
“बस ?”
“हां सिवाय इसके कि अगर यहां से कार तक के रास्ते में तूने कोई शोर मचाया या कोई होशियोरी दिखाने की कोशिश की तो गोली भेजे में । गोली अन्दर दम बाहर ।”
“खलीफा, मेरा दम बाहर हो गया तो तुम्हारी फीस की दुक्की तो पिट गई !”
“वो तो है ।” वो बड़ी शराफत से बोला, “लेकिन क्या किया जाए, भैय्ये ! धन्धे में नफा-नुकसान तो लगा ही रहता है ।”
“नुकसान काहे को, उस्ताद जी !” हामिद भड़का “ये करके तो दिखाए कोई हरकत मैं न इसकी...”
“रिवॉल्वर के दम पर अकड़ रहा है, साले !” मैं नफरत भरे स्वर में बोला, “इसे एक ओर रख दे और फिर अपने उस्ताद को रेफरी बनाकर यहीं मेरे से दो-दो हाथ करले, न तेरी हड्डी-पसली एक करके रख दूं तो मुझे अपने बाप की औलाद नहीं, किसी चिड़ीमार की औलाद कह देना ।”
“उस्ताद जी !” हामिद दांत किटकिटाता हुआ कहर भरे स्वर में बोला, “अब पानी सिर से ऊंचा हो गया है ...”
“तो डूब मर साले !” मैं बोला ।
“ठहर जा हरामी के पिल्ले...”
हामिद मुझ पर झपटा लेकिन तभी पहलवान बीच में आ गया ।
“लमड़े !” पहलवान सख्ती से वोला, “होश में आ । काबू में रख अपने आपको । तेरी ये हरकत तुझे पच्चीस हजार की पड़ेगी ।”
“अब मुझे परवाह नहीं । अल्लाह कसम, मैं इसे ...”
“मुझे परवाह है समझा !”
“समझा ।” हामिद मरे स्वर में वोला ।
“ये कोई” मैं बोला, “चरस-वरस तो नहीं लगाता !”
“क्या मतलब ?”
“चरसी या स्मैकिए ही यू एकाएक भड़कते हैं । जरूर ये ....”
पहलवान के भारी हाथ का झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल से टकराया ।
“ये अकलमंद के लिए इशारा था ।” वह बोला, तब पहली बार उसके स्वर में क्रूरता का पुट आया था, “अब साबित करके दिखा कि तू अकलमंद है ।”
“वो तो मैं हूं ।” मैं कठिन स्वर में बोला ।
“फिर तो तुझे अब तक याद होगा कि नीचे सड़क पर इमारत के सामने क्या है ?”
“तुम्हारी कार है ।”
“तुमने हमारे साथ नीथे चलकर क्या करना है ?”
“कार में बैठ जाना है ।”
“और ये सब कुछ कैसे होना है ?”
“चुपचाप ।”
“शाबाश !”
फिर उसके इशारे पर मैंने फ्लैट की बत्तियां बुझाई और उसके मुख्य द्वार को ताला लगाया । फिर मुझे दायें-बायें से ब्रैकेट करके वे मुझे नीचे सड़क पर लाए जहां एक काली एम्बैसडर खड़ी थी । हामिद कार का अगला दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और मुझे कार के भीतर अपने आगे धकेलता हुआ पहलवान पीछे सवार हो गया । कार तत्काल वहां से दौड़ चली ।
“हमने मोतीबाग जाना है ।” पहलवान बोला, “आजकल सडकों पर पुलिस की गश्त बहुत है । रात को बहुत पूछताछ होती है । हमारी गाड़ी को भी रोका जा सकता है । तब पुलिस की सूरत देखकर तुझे होशियारी आ सकती है । भैय्ये मेरी यही नेक राय है तुझे कि पुलिस के सामने कोई लफड़ा करने की कोशिश न करना । कोई बेजा हरकत की तो जो पहली जान जाएगी, वो तेरी होगी ।”
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