महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में
05-27-2021, 03:00 PM,
#9
RE: महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में
अभिज्ञान शाकुन्तला नाटक

अपडेट 03

प्रथम अंक


 
(इसके बाद्‌ हिरण का पीछा करते हये, बाण चढ़ा हुआ धनुष हाथ मे लिये हुये राजा
ओर सारथि रथ पर बैठे हुये प्रवेश करते है) ।
 
सूत (रथ का सारथि)  - राजा ओर हरिण को देखकर बोलता है महराज !, हिरण  की ओर निशाना साधे हुए  परत्यञ्चा पर बान  चढ़ाये   हुए  धनुष  युक्त आप (दुष्यन्त)  को देख कर ऐस अलग रहा है  मानो हिरण का पीछा करते हुए  मैं  साक्षात्‌ धनुर्धारी शिव को देख रहा हू ।
 
राजा-- सारथि, इस मृग के द्वारा हम लोग बहुतदूर खींच लाये गये है । यह मृग तो इस समय भी-
देखो, अपने पीछे दोडते हुए हमारे रथ पर पुनः-पुनः गर्दन मोडकर मनोहरता से दृष्टि डालता हुआ, बाण लगने के भय के कारण अपने अधिकांश शरीर के पिछले भाग को अगले भाग की ओर समेटे हुये श्रम के  कारण खुले हुये मुख से  आधे चरे हुये कुशो से मार्गं को व्याप्त करता हुआ, ऊची  छलांग और चौकड़ी  भरने के कारण  ये आकाश मे अधिक ओर  पृथ्वी पर कम ही दौड रहा हे ।
 
राजा आश्चर्य के साथ बोलता है  तो क्या कारण है कि इसके पीछे-पीछे दौड़ते हुए मेरे रथ होने पर भी मेरे  को यह हरिण कठिनाई से ही  दिखाई दे रहा है । .
 
सारथि- महाराज, भूमि ऊची-नीची थी, इसलिए मेने लगाम को खीच कर रथ का वेग
(चाल) धीमा कर दिया था । इससे यह मृग अधिक दूर हो गया है । अब बराबर भूमि होने से  अब इसे  आप  सरलता से प्राप्त कर लेंगे।
 
राजा-- तो लगाम दीली कर दो।
 
सारथि-- जो आप की आज्ञा । (रथ दौड़ा के ) महाराज , देखिये-देखिये--
लगाम को ढीली कर दिये जाने पर ये रथ के घोड़े,  मानों हिरण  के वेग को सहन न कर सकने के कारण शरीर के आगे के भाग को फेलाये हुये,  शिर पर विद्यमान कलंगी  चमर  के निश्चल अग्रभाग  से युक्त, निश्चेष्ट तथा ऊपर उठे हये कानों वाले, अपने  पैरो के द्वारा  उडायी गयी धूल से भी  घोड़े अतिक्रमण न किये जाने वाले होकर दौडे रहे हें ।
 
राजा-- सच है ।  इन घोड़ों ने सूर्यं तथा इंद्र  के घोड़ो को भी  अपनी गति से परास्त कर दिया है।
रथ के वेग के कारण जो वस्तु दूर से देखने मे छोटी दिखायी पडती हे , वह अकस्मात्‌ बड़ी जो जाती है।  जो वृक्षादि वस्तु वस्तुतः  पृथक्‌ प्रथक्‌ हे वह जुडी हई  प्रतीत होती हे । जो वस्तु स्वभावतः टेढ़ी हे, वह भी ओंखो के लिये सीधी-सी हो जाती हे।  क्षण भर के लिये भी कोई वस्तु न  तो मुञ्जसे दूर है ओर न  ही पास हे । सारथि,  देखो, अब मेँ इस मृग को मारता हू । (ऐसा  कह कर राजा बाण साधने का अभिनय करते हँ)।
 
(नेपथ्य मे आवाज आती  है ) हे राजन्‌ , यह आश्रम का मृग हे, इसे मत मारिये; मत मारिये ।
 
सारथि-(सुनकर ओर देखकर) हे महाराज  ! आप के बाण के मार्ग मे  और इस मृग के बीच मेँ तपस्वी उपस्थित हो गये हें और मन कर रहे हैं ।
 
राजा- (घबराहट के साथ) तो घोडे रोक लिये जाए  ।
 
सारथि--ठीक है । (रथ को रोक दिया) ।
 
 जारी रहेगी
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RE: महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में - by deeppreeti - 05-27-2021, 03:00 PM

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