XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-20-2021, 11:42 AM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
सोहनलाल ।” नानिया कह उठी–“जगमोहन की बात मानो। उसने किताब को पूरा पढ़ा है।”

मैं कहां उसकी बात को इंकार कर रहा हूं।”

“अब क्या किया जाए?” सरदार जगमोहन के पास आकर बोला।

जगमोहन ने सरदार को देखा फिर बोला।

“तुम एक पुतला तैयार करो ।”

“पुतला?”

“हीं। उसमें घास-फूस भरकर, उसे इंसान के जैसा बना दो।” जगमोहन ने कहा।

“उससे क्या होगा?”

“पता नहीं क्या होगा। मैं तो सिर्फ बेकार कोशिश करने की सोच रहा हूं।”

“मैरे खयाल में पुतले से कोई फायदा नहीं होगा।” सरदार बोला।

“क्यों?”

क्योंकि वो चलकर बाहर नहीं जा सकता। तुम क्या करोगे, क्या उसे बाहर को फेंकोगे?” ।

“यही सोच रहा था कि ऐसा करने पर जो मुसीबत आनी हो पुतले पर आए।” जगमोहन ने कहा।

“ये तो बचकानी बात है।”

कुछ न करने से तो कुछ करना बेहतर है।” जगमोहन मुस्कराया।

बेकार का काम करने से बेहतर है कि आराम कर लिया जाए। जल्दी मत करो। हमें आराम से सोचना चाहिए।” सरदार ने कहा।

“ठीक है। वापस बस्ती में चलते हैं। लेकिन तुम पुतला जरूर बनाना। जो मेरे दिमाग में आया है, वो कर लेने दो।”

“ठीक है, पुतला बन जाएगा।”

जगमोहन ने नानिया और सोहनलाल को देखा। तभी उसे ध्यान आया कि कोमा ने उसका हाथ थाम रखा है।

चलो, वापस बस्ती में चलते हैं।” जगमोहन ने कहा-“वहां कुछ सोचेंगे।” कोमा के हाथ में फंसा अपना हाथ छुड़ा लिया।

सब उस रास्ते को पार करके बाहर निकले और बस्ती की तरफ चल पड़े। सोहनलाल नानिया के पास से हटकर जगमोहन के पास आकर बोला।।

*आखिर कोई तो सुरक्षित रास्ता होगा ही।” ।

होना तो चाहिए।” जगमोहन ने सिर हिलाया-“परंतु उस रास्ते के बारे में किताब में कुछ नहीं लिखा।”

हमें ही सोचना पड़ेगा।” जगमोहन ने सिर हिला दिया।

जग्गू।” साथ चलती कोमा कह उठी–“मैं तुम्हें परेशान नहीं देख सकती।”

“क्यों?”

तुम मुझे अच्छे लगते हो। मैं तुम्हें खुश देखना चाहती हूं।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा। नानिया भी पास आ पहुंची। वो बोली। “अब हम क्या करेंगे सोहनलाल?” देखेंगे कि...।” ।

“ओह।” एकाएक कोमा ठिठकी और कह उठी–“मेरे हाथ में कुछ था, वो तो मैं वहीं भूल आई।”

जगमोहन रुका। बाकी सब भी रुक गए।

कोई बात नहीं।” जगमोहन ने कहा-“दोबारा जब आएंगे तो तब ले लेना।”

“मैं अभी लाऊंगी। बहुत जल्दी आ जाऊंगी।” कहकर कोमा पलटकर भाग खड़ी हुई।

सब वहीं खड़े रह गए।

कोमा कहां गई है?” सरदार ने पूछा।

“अपनी कोई चीज उस कमरे में भूल गई है। वो लेने गई है।” सोहनलाल ने कहा।

“लेकिन उसके पास तो कुछ भी नहीं था।” सरदार कह उठा–“वो खाली हाथ थी।”

कुछ होगा। तुमने ध्यान नहीं दिया होगा।” ।

आ जाएगी।” नानिया बोली-“वो सामने तो वो जगह है।”

एकाएक जगमोहन बुरी तरह चौंका।।

“ओह।” उसने उस तरफ देखा, जहां कोमा गई थी। अब वो नजर नहीं आ रही थी।

क्या हुआ?” सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

वो, वो पागल, हम सबके लिए, अपनी जान गंवाने गई है।” जगमोहन चीखा।

“तुम्हारा मतलब कि वो कालचक्र से बाहर निकलने गई है।” सोहनलाल के होंठों से निकला।

जगमोहन तेजी से उस तरफ दौड़ पड़ा, जिधर कोमा गई थी। बाकी सब भी जगमोहन के पीछे दौड़े।

कोमा वापस उस कमरे में पहुंच गई थी, जहां कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता था। चंद पल वो खड़ी उस रास्ते के पार हवा में हिलते पेड़ों को देखती रही फिर आगे बढ़ने लगी। उसके चेहरे पर गम्भीरता थी। दृढ़ता थी। वो फैसला ले चुकी थी कि जग्गू की इस परेशानी को दूर करना है उसने।

तभी उसके कानों में जगमोहन की आवाज़ पड़ी।

कोमा। रुक जाओ कोमा।”

आगे बढ़ती कोमा मुस्कराकर बुदबुदा उठी। ‘तो जग्गू समझ गया कि मेरे इरादे क्या हैं। तभी तो दौड़ा आया।।

कोमा उस जगह पर जा पहुंची, जहां से दीवार हटी थी। दो कदम का फासला था और उसने कालचक्र से बाहर होना था। तभी हांफता हुआ जगमोहन वहां पहुंचा।

रुक जाओ कोमा।” जगमोहन तेज स्वर में बोला “ऐसा मत करो। कोई और रास्ता निकल आएगा।” ।

कोमा ने एक बार भी पलटकर पीछे नहीं देखा और आगे बढ़ गई।

। “कोमा।” जगमोहन चीखा।

परंतु तब तक कोमा कालचक्र से बाहर निकलकर उस बाग के हिस्से में जा पहुंची थी।

जगमोहन ठगा-सा खड़ा उसे देखता रह गया।

वहां बहती तेज हवा में कोमा के बाल उड़ते स्पष्ट महसूस हो रहे थे। जगमोहन अवाकु-सा उसे देखता रहा।

उसी पल बाकी सब भी वहां आ पहुंचे और कोमा को कालचक्र से बाहर देखकर ठगे से रह गए।

ये...ये तो बाहर निकल गई।” सरदार के होंठों से निकला। कोमा को कुछ नहीं हुआ।” नानिया बोली-“सुरक्षित है वो।


तभी कोमा ने पलटकर उन सबको देखा। अगले ही पल उसके होंठ हिलते देखे।

वो कुछ कह रहीं थी। परंतु उसकी आवाज इथर किसी को सुनाई न दे रहीं थी। फिर अगला पल कयामत का था जैसे।
उस तरफ, ऊपर से कहीं, बड़ा-सा पत्थर गिरा कोमा पर। कोमा उस पत्थर के तले पिसती चली गई।

न-हींऽ...ऽ...ऽ...।” नानिया चीख उठी।

जगमोहन जड़ रह गया था। सोहनलाल ने आंखें बंद कर ली थीं। सरदार हक्का-बक्का खड़ा था।

“वो-वो मर गई।” सरदार के होंठों से निकला।
हमारा काम आसान कर गई।” जगमोहन ने फीके स्वर में कहा। कोमा की मौत का उसे बहुत दुख था।

अब वो सब आजाद थे। कालचक्र से बाहर आ चुके थे।
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