XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-09-2021, 03:17 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
ये तुम पता करो। मेरा फोन भी मेरे पास है। मालूम करो तुम्हें फोन करने वाली कौन है?”

। “वो ही होगी, जिसने नगीना का अपहरण किया।”

मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया। “ढूंढो उसे और खत्म कर दो।”

ये सब जथूरा कोई चाल चल रहा है। जो हम सबमें झगड़ा करवाना चाहता है।”

“तुम उस मोना चौधरी की खबर लो।”

अभी जाता हूँ मैं।” ।

मोना चौधरी ने फोन बंद करके जगमोहन को दिया और बोली।

मैं ही असली मोना चौधरी हूँ। वो कोई बहरूपिया है। पारसनाथ कुछ ही देर में उसे तलाश कर लेगा।”

“हमें नहीं मालूम तुम बहरुपिया हो या दूसरी ।”

मोना चौधरी ने कड़वी मुस्कान के साथ जगमोहन से कहा।
इस बात का यकीन तुम्हें दिलाने की जरूरत नहीं समझती।

” हमें तो जरूरत है।”

क्यों?”

क्योंकि नकली मोना चौधरी के पास नगीना अभी है।”

मैं नकली नहीं, असली हूं।” फिर वो लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा से बोली-“चलो, हमें वापस दिल्ली जाना है। जिस काम के लिए मैं मुम्बई आई थी, उसकी अब जरूरत नहीं रही। बांके के बहरूपिये ने, पारसनाथ के यहां झगड़ा किया, ये जान गई हूं मैं ।”

*और।” जगमोहन बोला—“मैंने जो महाजन के यहां किया—वो।”

“वो तुम्हारा बहरुपिया था, जो महाजन को ले गया। मैं उसे ढूंढ़ निकालूंगी। अगर ये काम जथूरा कर रहा है तब वो बचेगा नहीं। हमें पूरी कोशिश करनी है कि इन हालातों के बीच, हममें झगड़ा पैदा न हो।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा। | मोना चौधरी लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा के साथ बाहर निकल गई।

चुप्पी-सी आ ठहरी वहां। देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

यो तो अजीब बातों हो रईयो हो।” बांकेलाल राठौर ने गम्भीर स्वर में कहा–“एक-दूसरों के नकली चेहरो सामनो आ रहो हो। अंम किस पर भरोसो करो हो। यो तो खोपड़ी खराबो करनो वालो बातो हौओ हो ।” ।

देवराज चौहान ने कश लिया। आंखों में गहरी सोच के भाव थे।

“सच में दिमाग खराब हो रहा है।” जगमोहन बोला।।

क्यों बाप?” रुस्तम राव देवराज चौहान से कह उठा–“तुम क्या सोचते हो?”

हम इन हालातों को समझते हुए भी, ज्यादा देर तक अपने पर काबू नहीं रख सकते ।” देवराज चौहान ने कहा।

ये क्या कहते हो?”

“मैं ठीक कह रहा हूं। जथूरा ऐसी शानदार चालें चल रहा है। कि समझते हुए भी हम कोई रास्ता नहीं चुन सकते। इसका अंत झगड़े पर ही आकर खत्म होगा और वो अपनी कोशिश में सफल हो जाएगा।” देवराज चौहान ने कश लिया।

“हम सतर्क रहकर...।”

ज्यादा देर सतर्कता का दामन नहीं पकड़े रह सकते। कभी भी कोई भी घटना, किसी का दिमाग खराब कर सकती है और कुछ भी हो सकता है।”

“देवराज चौहानो ठीको बोल्लो हो ।” । जगमोहन के होंठ भिंच गए।

हमारे पास देखते रहने के अलावा, करने को कुछ नहीं है। देखते रहो। सब्र का बांध टूटे तो दूसरे पर झपट पड़ो। बस यही होगा।”

“मैं ये नहीं होने...।”

एकाएक जगमोहन के मस्तिष्क में बिजलियां कौंधीं। उसने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया। आंखें बंद होती चली गईं। बिजली के तेज धमाके बज रहे थे उसके दिमाग में, फिर सब कुछ शांत होता चला गया। उसके बाद जगमोहन के मस्तिष्क में वो ही जगह देखी, जो वो पहले देख चुका था। वहां नगीना को उसी मुद्रा में बेहोश पड़े देखा, परंतु चंद कदमों के फासले पर, अब महाजन भी वहां बेहोशी की मुद्रा में पड़ा हुआ था। वहां की हर जगह शांत थी। समुद्र की लहरों का शोर कानों में पड़ रहा था। चट्टानों से भरी पथरली जमीन। लम्बे, हवा से हिलते पेड़। नीचे पत्थरों को छोड़कर, हर जगह घास नजर आ रही थी। एक तीन फुटा, घास में से कच्चा रास्ता, एक तरफ जा रहा था।

फिर जगमोहन सामान्य होता चला गया।

देवराज चौहान, रुस्तम राव और बांके की नजरें जगमोहन पर थीं।।

“का हो गयो थारो को, सिरो दर्दो से फट जावो का?” |

जगमोहन ने दोनों हाथ सिर से हटाए, आंखें खोलीं और देवराज
चौहान को देखा।

महाजन, नगीना भाभी के पास बेहोश पड़ा देखा। मैंने पूर्वाभास में देखा है अभी-अभी ।” ।

“तो जथूरा हमें इस तरह ले जाकर एक जगह इकट्ठा कर रहा है।” देवराज चौहान बोला।

यही लगता है।”

“वो कौन सी जगह है?”

“मैं समझ नहीं पाया। लेकिन समुद्र के किनारे चट्टानों-भरी पथरीली जमीन है। वहां घास भी है, पेड़ भी, पगडंडी भी।

” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं नहीं जानता कि वो जगह कहां पर है।”

छोरो समझो का?

" समझेला है बाप ।”

तभी जगमोहन के कानों में पोतेबाबा की फुसफुसाहट गूंजी। “बहुत देर से तेरे से बात नहीं हुई जग्गू।” जगमोहन चौंककर पलटा। कुछ भी नजर नहीं आया।

पोतेबाबा।” जगमोहन के भिंचे होंठों से निकला। लगता है तू भी मेरे बिना उदास हो गया जग्गू।

” तू कमीना है।” जगमोहन ने दांत पीसकर कहा।
पोतेबाबा के हंसने का स्वर गूंजा।।

पोतेबाबा आ गयो छोरो ।

” नजर नेई आरेला बाप ।” तभी देवराज चौहान ने सिगरेट का धुआं आवाज की तरफ फेंका।।

अगले ही पल पोतेबाबा की आकृति सी नजर आई। चेहरे की आकृति । धुएं की लकीरों जैसी।

“ये सब जथूरा का फेंका कालचक्र है।” पोतेबाबा की आवाज सबने सुनी–“इससे कोई बच नहीं सकता।”

“जथूरा का कालचक्र हमारे सामने फेल हो जाएगा।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

ऐसा कभी नहीं हो सकता। अभी भी वक्त है। मान जा, पीछे हट जा। जथूरा के हादसों में दखल न दे।”

“जो बात नहीं हो सकती, वो कह ही मत।”

“तुम सब का बुरा वक्त आने वाला है। एक वक्त ऐसा आएगा कि तुम लोग अपनी परछाईं पर भी शक करने लगोगे कि वो भी तुम्हारी है कि नहीं। इतने तंग आ जाओगे कि एक-दूसरे की जान लिए बिना नहीं रह पाओगे।”

तंम तो दूर बैठो के मजे लियो हो।” ।

जग्गू, जथूरा नहीं चाहता है कि तुम पूर्वजन्म की यात्रा करो। मामूली सी तो बात है। तुम लोग क्यों...।”

। “मुझे पूर्वाभास कौन करा रहा है पोतेबाबा?” जगमोहन ने पूछा।

ये पता चल जाता तो जथूरा कब का इस मामले को खत्म कर देता। परंतु उसका पता नहीं चल रहा ।” |

“हमें कैसे पता कि पूर्वजन्म को कौन-सा रास्ता जाता है। जथूरा तो खामखाह डर रहा है।” जगमोहन मुस्कराकर बोला । |

“जो तुम्हें पूर्वाभास करा रहा है, वो तुम लोगों को पूर्वजन्म में प्रवेश करने वाले रास्ते पर ले जाएगा।”

ऐसा होगा?”

हां ।”

तो तुम्हें पहले से ही पता है कि ये सब होने वाला है तो हमें रोक क्यों रहे हो?" जगमोहन ने कहा।

“इसलिए कि अगर तुम मान जाओ तो ये सफर रोका जा सकता है। या देवा या मिन्नो में से एक मर जाएं तो पूर्वजन्म की यात्रा हमेशा-हमेशा के लिए रुक जाएगी। तुम लोगों की पूर्वजन्म की यात्रा जथूरा के हक में अच्छी नहीं रहेगी। इसलिए रोका जा रहा है तुम सबको। अगर जथूरा ने तुम लोगों की ये यात्रा रोक दी तो जथूरा बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जाएगा।”

“तड़प रहा होगा जथूरा, हमें रोकने को ।”

“कोशिश तो वो कर ही रहा है। मान जाओ जग्गू। फायदे में रहोगे।”

नगीना कहां है?"

“नगीना और नील सिंह सुरक्षित हैं। एक जगह पर दोनों बेहोश पड़े हैं तुम...।”

यही वो वक्त था, जब देवराज चौहान ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाली और जहां पोते बाबा के खड़े होने का अहसास था, उस तरफ करके गोली चला दी।

तेज धमाका गूंजा फिर सब कुछ शांत हो गया। दो पलों तक तो कोई स्वर ही न उभरा।

“तुमने अपनी कोशिश कर ली देवा ।” पोतेबाबा का मुस्कराता स्वर सबके कानों में पड़ा।

देवराज चौहान के होंठों से गहरी सांस निकली फिर कह उठा।
तो गोली तेरे को नहीं लगी।”

लगी। इस तरह जैसे तुम लोगों को छोटा-सा कंकर लगता है, वैसे मुझे गोली लगी। तुम क्या समझते हो कि तुम्हारे ये मामूली से खिलौने मेरा अहित कर सकेंगे? नहीं, तुम लोग मेरे को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। मैं हर तरफ से सुरक्षित होकर, इस दुनिया में आया हूँ।” |
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