RE: Indian XXX नेहा बह के कारनामे
सुभाष के साथ धुलाई के पत्थर के पास
नेहा के घर के सामने गैरेज वाले उसके आंगन में बार-बार ताक रहे थे कि काश नेहा की एक झलक देखने को मिल जाए। ज्ञान ने खुद से कहा कि वो बहुत बदनसीब था कि सिर्फ एक बार नेहा को बिस्तर पर लेटा पाया, क्योंकी दूसरे सुबह को भी वो तो नेहा के यहाँ आने वाला ही था जबकि नेहा ने खुद उसको आने के लिए कहा
था और उसी सुबह को उसके ससुर की गाड़ी जा टकराई थी। ज्ञान को बड़ी बेसब्री थी नेहा के बिस्तर पर दोबारा चढ़ने को और उसको अपने नीचे लेने को उसी दिन से। वो इंतेजार में था और बेसब्र भी था पिछले 35 दिनों से। तकरीबन हर रोज मूठ मारता था नेहा के गरम जिश्म को सोचकर और उस दिन वाले नेहा के साथ हर गुजारे हुए पलों को सोचकर।
उसकी आँखों के सामने अब भी नेहा का नंगी जिश्म, उसकी मुश्कुराहट, उसकी नटखट अदायें और उसकी सुरीली आवाज गूंजती थी। वो आशिक हो गया था उसके जिश्म का, उसकी आवाज का और उसके बदन की खुशबू का... आज भी उसको नेहा के जिश्म की खुशबू महकती थी जब वो उसको याद करके मूठ मारता था, उसके कानों में नेहा की मीठी आवाज सुनाई देती थी, उसकी मुश्कुराहट दिखाई देती थी। इन सबको सोच-सोचकर ज्ञान दीवाना होता जा रहा था बड़े मुश्किल से खुद को संभाल रहा था और अपने आपको काबू में रखा हुआ था पिछले 35 दिनों से।
तो इस दिन को मुदत बाद सभी गैरेज वालों ने नेहा को एक टी-शर्ट और स्कर्ट में कपड़े धोने वाले पत्थर के पास जाते देखा, हाथ में कपड़े की बाल्टी लिए हुए। उसके बाल भीगे हुए थे और पानी की बूंदें टपक रही थीं उसकी पीठ पर टी-शर्ट को भिगोते हुए, क्योंकी वो अभी-अभी नहाकर निकली हुई थी पंडित के जाने के बाद।
सुभाष ने उसको सबसे पहले देखा और बहुत खुश होते हुए ज्ञान से कहा- “नेहा आज टी-शर्ट और स्कर्ट में बाहर आई है, 40 दिन हो गये क्या?"
ज्ञान जल्दी से खड़ा हआ नेहा को देखने के लिए और नेहा ने गैरेज की तरफ देखते हुए सबको एक बहुत खूबसूरत प्यारी सी स्माइल किया।
तुरंत बाद सुभाष गया नेहा से मिलने, पानी भरने के बहाने। नेहा उम्मीद कर रही थी की वो आएगा। नल के पास पहँचा सुभाष। आज फिर से नेहा वैसे ही झुक कर कपड़े धो रही थी और उसकी क्लीवेज पूरी तरह से दिख रही थी। सुभाष से रहा ना गया, और उसने नेहा के पिछवाड़े पर अपना पूरा हाथ फेरा आज। नेहा ने कुछ नहीं कहा बस मुश्कुराती रही, और सुभाष को झूठी गुस्से भरी नजर से देखा। पिछली बार जब सुभाष ने नेहा के साथ ऐसे लम्हे बिताए थे, तभी वो नेहा को पा सकता था ज्ञान से पहले ही। मगर ज्ञान ने होशियारी किया था उस सुबह को सुभाष से पहले सवेरे गैरेज आकर।
अभी नेहा ने नहाया था, उसके बल भीगे हुए थे, पीठ पर टी-शर्ट भीगी हुई थी, उसके जिश्म से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी और सुभाष उसके पास खड़ा था उसको सूंघते हुए। नेहा के जिश्म से आती खुशबू ने सुभाष के लण्ड को कड़क खड़ा कर दिया पल भर में ही। सुभाष ने अपने होंठों को नेहा की गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर फेरा तो तुरंत नेहा ने गैरेज की तरफ देखा कि कहीं ज्ञान ने सुभाष को वैसा करते तो नहीं देखा।
फिर सुभाष ने कहा- “भाभी, पिछली बार जब मैं यहाँ से गया था तो आपके बारे में सोचता रहा, आपको ऐसे कपड़े धोते हुए देखना बहुत ही पसंद है मुझे। आपको हमेशा ऐसे देखते रहने को मन करता है मेरा, और जब आप झुक कर बाल्टी में से कपड़े लेती हो तब भी आपको देखना बेहद पसंद करता हूँ, आप बहुत ही उत्तेजक लगती हो भाभी..'
नेहा उसको देखकर हँस रही थी फिर कहा- “देखो कहानियां मत सुनाओ मुझे और बहाने मत बनाओ, मुझे अच्छी तरह से पता है कि तुम क्या देखते हो और तुम मुझसे क्या चाहते हो? सब पता है मुझे.."
सुभाष ने तुरंत नेहा के ठीक पीछे खड़े होते हुए उसको पीछे से ही जकड़ा, अपने हाथों को उसके पेट पर करते हए और अपने लण्ड को उसकी गाण्ड पर दबाया। फिर अपनी जीभ को नेहा के पीछे गर्दन पर उसके भीगे बालों को हटाकर फेरते हुए कहा- "नेहा भाभी, आप कितनी अच्छी महक रही हो..”
नेहा अब भी बहुत गरम थी 35 दिनों के व्रत के बाद। और फिर से रास्ते के उस पार गैरेज में देखने के बाद नेहा बोली- “तुम्हारा बास ज्ञान, वहाँ से हमको देख नहीं पाएगा... क्या तुमको वहाँ से मैं दिखती हूँ जब यहाँ होती
हूँ तो..."
सुभाष ने कहा- “नहीं, यहाँ नहीं दिखता, फिर भी थोड़ा उस तरफ चलते हैं, उधर गैरेज में से बिल्कुल नहीं दिखता..."
नेहा सुभाष का हाथ थामे चंद कदम और बगल में गई जिस जगह पहली बार प्रवींद्र ने उसको खड़े-खड़े चोदा था, जब वो कपड़े धोने को आई थी इस जगह। दोनों को सब कुछ जल्दी करना था क्योंकी गैरेज से और कोई भी आ सकता था वहाँ।
और देर ना करते हुए सुभाष ने नेहा को बाहों में भर लिया और उसकी जीभ नेहा के मुंह में थी। दोनों एक दूसरे के जीभ को चूसरहे थे। सुभाष के हाथ नेहा की नर्म स्कर्ट उठा रहे थे उसकी गाण्ड पर से, उसकी पैंटी को अपनी हथेली पर महसूस करते हुए। नेहा को इसकी सख्त जरूरत थी, पंडित से करने के बाद उसके जिश्म की आग शांत नहीं हुई थी बल्की और भड़क गाइ थी, तो उसको और भी ज्यादा प्यास बुझानी थी। साफ शब्दों में नेहा को चुदाई की और सख़्त जरूरत थी। जब सुभाष का हाथ उसकी पैंटी पर पहुँचा, उसकी चूत के पास तो नेहा फिर से बिल्कुल गीली हो गई।
अब क्योंकी दोनों बाहर थे तो सब कुछ बहुत जल्दी, तेजी से करना था। जल्दी से सुभाष ने नेहा की बाहों को ऊपर उठाकर उसकी टी-शर्ट को बाहर निकाला और अपने सर को उसकी दोनों चूचियों के बीच में घुसाया और अपने चेहरे को उसकी नर्म चूचियां पर महसूस करते हुए सुभाष को जैसे जन्नत का सफर करने को मिल गया। नेहा ने उससे जल्दी करने को कहा, तो सुभाष बिना अप्रीशियेट किए जल्दी से उसकी चूचियों को चूसने लगा अपने हाथों से उन्हें मसलते हुए।
सुभाष भूखा लग रहा था, प्यासा लग रहा था, कहा- "इनको पीने का मन कर रहा है भाभी, दूध है यह पिला दो ना भाभी..."
नेहा ने मुश्कुराते हुए कहा- “7 महीने बाद अपना दूध पिला दूंगी तुमको...'
सुभाष ने नेहा की बातों पर ध्यान नहीं दिया और चूसता चाटता गया उसकी दोनों चूचियों को मजे लेते हुए।
और लगे हाथ सुभाष उसकी ब्रा को अनहक करता जा रहा था जब तक उसको बिल्कुल निकालकर जमीन पर गिरा ना दिया, और नेहा बार-बार बाहर झाँक रही थी।
फिर सुभाष नीचे बैठ गया नेहा की टाँगों के आगे, वो खड़ी थी दीवार से पीठ किए हुए। सुभाष ने नेहा की पैंटी को नीचे खींचा और उसकी शेवन चिकनी चूत पर उसका मुँह गया। सुभाष ने ऊपर से चूत को चाटना शुरू किया और धीरे-धीरे नीचे चाटता गया जब तक कि उसका जीभ नेहा के गीले हिस्से पर पहुँचा तो सुभाष को नमकीन लज्जत आई जीभ पर तो उसके जिश्म में एक कंपकंपी सी उठी, पर वो चाटता गया और जीभ को चूत के छेद पर घुमाया सुभाष ने। नेहा धीरे-धीरे सीसकने लगी तड़पते हुए। फिर उसकी तड़प बढ़ने लगी और उसका जिश्म ऐंठने लगा सुभाष के बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़े।
फिर सुभाष खड़ा हुआ और अपने पैंट की जिप खोला और अपने लण्ड को नेहा के पेट पर दबाया फिर रगड़ा, मगर तब तक नेहा नीचे बैठ गई थी और उसके लण्ड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। सुभाष मुश्कुराया, फिर हँसा और नेहा के मुँह में लण्ड अंदर-बाहर करने लगा खड़े पोजीशन में ही। नेहा के एक हाथ ने सुभाष का लण्ड पकड़ा हुआ था और दूसरा हाथ सुभाष की कमर, बल्की उसकी गाण्ड पर थअ। उसके मुँह में सुभाष के लण्ड का आना जाना था।
क्योंकी सब जल्दी-जल्दी कर रहे थे, इसलिये नेहा को फिर से खड़ा होना पड़ा क्योंकी सुभाष इंतेजार कर रहा था उसके अंदर लण्ड घुसाने के लिए। सुभाष ने नेहा की एक टांग को ऊपर उठाकर उसकी जाँघ पकड़े हुए थामा, और अपना लण्ड नेहा की चूत में ठूसा जो आसानी से अंदर घुस गया गीली होने के कारण। तब सुभाष ने नेहा को जरा सा ऊपर उठाया उसकी गाण्ड पकड़कर, और नेहा ने अपनी दोनों टाँगों को सुभाष की कमर पर क्रॉस कर दिया, उसकी चूत के अंदर उसके लण्ड के साथ। फिर नेहा ने अपनी बाहों को सुभाष के कंधे पर करके उसको जकड़ा।
अब नेहा का मुँह सुभाष का जीभ खा रही थी और नीचे उसकी चूत सुभाष का लण्ड खा रही थी। एक के बाद एक जबरदस्त धक्का दिए जा रहा था सुभाष और हॉफने लगा था, उसको बेहद मजा आ रहा था इतनी खूबसूरत जवान भाभी को चोदते हुए, साथ-साथ नेहा की जीभ, गाल, गला, चूचियों को चूस भी रहा था, चूत में धक्का देते हुए। फिर बहुत ही जल्द सुभाष झड़ने को आया और गुर्राया कि वो झड़ने वाला है।
नेहा ने अपनी नर्म आवाज में उसके कानों में धीरे से तड़पती आवाज में कहा- “मेरे अंदर ही झड़ सकते हो फिकर की कोई बात नहीं कुछ नहीं होगा, मेरी गहराई में वीर्य छोड़ो सुभाष, ऊओहह.. इस्स्स्स... आआह्ह.."
... ओऊव्वव...
और सुभाष ने अपनी तरफ से तड़पती आवाज में आवाजें निकाली- “अरे वाहह... वाह... हाँ... सस्स्स्स बहुत मजा आ रहा है भाभी... ओहह... माई गोड, यू अरे ग्रेट नेहा भाभी... हाँ आहह... इस्स्स्स ..."
और सब हो गया बहुत जल्दी, सब तेजी के साथ हुआ, जैसे अचानक था सब कुछ, बिना सोचे समझे, बिना प्लान किए बस सब हो गया जल्दी-जल्दी। फिर बड़ी तेजी से नेहा ने अपनी टी-शर्ट बिना ब्रा के पहना और ब्रा और पैंटी को टब में डाल दिया धोने के लिए, फिर जल्दी से बाहर देखते हुए कि कोई देख तो नहीं रहा, कपड़े धोने वाले पत्थर के पास चली गई।
पर हाँ दो टीनेजर्स जो गैरेज में अप्रैटिस थे वह दोनों नेहा की तरफ देख रहे थे पत्थर के पास आते हुए।
फिर सुभाष ने लौटने से पहले नेहा को किस किया, नेहा ने उस किस को रेस्पांड किया और उससे कहा- “अपने बास से कहना कि वो मुझसे मिले आज। उस शाप वाले ने रेंटल के बारे में कुछ बातें बताने को कहा है उसको.."
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