Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
हम जैसे ही घर के अन्दर आये, पापा ने बदहवासी भरे स्वर में सवाल पूछने शुरू कर दिए..
कैसे हो....ठीक तो हो ना...कुछ हुआ तो नहीं....मैं तो घबरा गया था....वगेरह...वगेरह...
उन्होंने बताया की उन्हें फोन आया था की सभी लोग किडनेप कर लिए गए हैं और अगर पोलिस को बताया तो कोई भी जिन्दा नहीं आ पायेगा, इसलिए वो कुछ कर नहीं पा रहे थे, सिवाए इन्तजार के..,
दादाजी" घबराने की कोई जरुरत नहीं है, कोई सिरफिरा था, जो फिरोती न चाह कर सिर्फ यातना देने में लगा हुआ था, पर हम सभी ने बड़ी हिम्मत से काम लिया वहां...और इसलिए जल्दी छूट भी गए..
अब इस बात का जिक्र करने की कोई भी जरुरत नहीं है, वो लोग खतरनाक है, उन्होंने हिदायत दी है की कोई भी बाहर जाकर कुछ ना बोले, वर्ना कुछ भी हो सकता है..
पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिलायी..
पापा "कैसी यातना....मुझे साफ़-२ बताइए...आखिर चाहता क्या था वो सिरफिरा... किसी को कुछ हुआ क्या....बोलो न पिताजी...तुम ही बोलो पूर्णिमा...क्या हुआ वहां..."
मम्मीकुछ न बोली....और जब पापा ने दादाजी को दुबारा कहा तो वो भी सोच में पड़ गए...क्योंकि दादाजी ने आज तक कोई झूठ नहीं बोला था, उनके संस्कार ही ऐसे थे शुरू से, गांधीवादी जो थे वो, वैसे भी अगर वो झूठ बोलना भी चाहते तो हमें तो पता चल ही जाता, फिर चाहे पापा के आगे तो शायद वो शर्मिंदा होने से बच जाते पर हम सभी के सामने उनकी जो छवि थी, एक सच्चे पुरुष की, वो धूमिल हो जाती, जो शायद वो कभी नहीं चाहते थे...
दादाजी"वो ...वो ...बेटा...बात ही कुछ ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगा...."
पापा- "ऐसा क्या है पिताजी, आप सभी लोग सही सलामत वापिस आ गए, मुझे इसकी सबसे ज्यादा ख़ुशी है, इसके आगे कोई भी और बात मायने नहीं रखती...आप प्लीस मुझे बताओ की हुआ क्या वहां पर..."
(दादाजी सकुचाते हुए) : "वो दरअसल....वो एक साईको था...जो चाहता था...की मैं बहु के साथ...बहु के साथ..सेक्स करूँ...और आशु अपनी बहन ऋतू के साथ भी सेक्स करे...तभी हम लोग वहां से निकल सकते हैं..."
पापा (आश्चर्य वाला चेहरा बनाने की एक्टिंग करते हुए) : "फिर....फिर क्या ...क्या आप लोगो ने....उसकी बात मान ली.."
(दादाजी गुस्से से) : "और कोई चारा भी नहीं था...बेटा....अब परिस्थितियां ही ऐसी थी की मैं...और कुछ नहीं कर पाया वहां...हमने उसकी बात का विरोध करने की बहुत कोशिश की, पुरे दो दिनों तक हम अपनी बातों पर अड़े रहे की हम ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकते...
और अंत में जब लगा की वो करे बिना बाहर निकलना संभव नहीं है तो..तो..हमने उसकी बात मानते हुए वही किया जो वो चाहता था....मुझे माफ़ कर दे बेटा...अगर तू चाहे तो मैं अभी यहाँ से चला जाता हूँ..और कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा..."
ये कहकर दादाजी ने दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया, वो अपने बेटे से आँख नहीं मिला पा रहे थे..
पापा ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी दबाई और फिर से सिरियस चेहरा बनाते हुए कहा : "ये आप क्या कह रहे हैं पिताजी... आपने वही किया जो परिस्थितियों की डिमांड थी...मैं आपको कोई दोष नहीं दूंगा...
आपने जो कुछ भी मेरे परिवार को बचाने के लिए किया वो सही था...मैं भी अगर आपकी जगह होता तो यही करता. आप शर्मिंदा न हो..आपने अपनी बहु को चोदा ..इससे मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है...और आशु ने भी अपनी बहन को चोदा, वो भी सही है...मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता..."
पापा ने साफ़-२ चुदाई के वर्डस युज़ करे ताकि दादाजी भी खुल कर सामने आ जाए..
दादाजी अपने बेटे के खुले विचार सुने और खुश हो गए, उन्होंने आगे बढकर अपने बेटे को गले लगा लिया..
अब दादाजी को क्या मालूम था की ये सब हमारा ही किया धरा है, पापा तो सिर्फ वो ही बोल रहे थे जो मैंने उन्हें बोलने को कहा था वापिस आने के बाद..
हम सभी बैठ कर बातें कर रहे थे की सोनी हाथ में पानी की ट्रे लेकर अन्दर आई..मुझे देखकर वो मुस्कुराने लगी और एक आँख मारकर मुझे अपने मिशन की बधाई दी...और फिर उसने सभी को पानी दिया,
जैसे ही वो दादाजी को पानी देने के लिए झुकी उसकी नजर तो दद्दू की धोती पर ही अटक कर रह गयी...वहां से उठता हुआ विशाल खम्बा उसे साफ़ दिखाई दे रहा था, पर कपड़ों के अन्दर से ही...उसकी चूत में सुरसुरी सी होने लगी...ये देखकर...और वो झुकी की झुकी रह गयी... दादाजी ने भी जब देखा की पानी लेने के बाद भी सोनी झुक कर अपनी फूटबाल को ढकने का कोई प्रयत्न नहीं कर रही है तो उनकी नजरों में भी हरामीपन उतरने लगा..जिसे देखकर पापा ने एक और पासा फेंका..

पापा : "पिताजी...आप थक गए होंगे, आप जाकर आराम कर लो...मैं ऑफिस जा रहा हूँ...पिछले दो दिनों से जा ही नहीं पा रहा था...अगर आप चाहो तो ये सोनी आपकी मालिश कर देगी...बड़ी अच्छी मालिश करनी आती है इसे....मेरी भी की है इसने कई बार....आप करवा कर देखो, अपनी सारी थकान उतर जाएगी....."
और ये कहकर वो ऑफिस के लिए निकल गए..
उनके जाते ही ऋतू उछल कर मेरे पास आ गयी और बोली : "भैय्या.....तुमने सुना , पापा को हमारे सेक्स करने से कोई प्रोब्लम नहीं है...वाव.....मजा आएगा अब तो...दादाजी...मम्मी...आप भी अब परेशान मत होना, जो आपकी मर्जी हो वो करो...और मेरी जो मर्जी होगी...वो मैं करुँगी..." और ये कहते हुए ऋतू उठकर दादाजी की गोद में आकर बैठ गयी...
दादाजी उसकी इस बात से और हरकत से सकते में आ गए, मुझे मालुम था की जब वहां फार्म हॉउस में दादाजी की नजरें पहले भी थी ऋतू के ऊपर और जब वो मुझसे चुद रही थी, तब भी उसके ऊपर थी... और अब , जब सभी कुछ साफ़ हो चूका है, और किसी को भी चुदाई से कोई परेशानी नहीं है, तो दादाजी के लंड में फिर से तनाव आने लगा, पहले तो उस सोनी ने अपने फल दिखा कर दादाजी को परेशान कर दिया था और अब उनकी पोती खुद ही उनसे चुदने के लिए तैयार बैठी है...
वो कुछ न बोले, और मेरी और मम्मी की तरफ देखने लगे..
मम्मी : "पिताजी, ये सही कह रही है, अब हमें घर पर किसी से भी कोई पर्दा करने की कोई जरुरत नहीं है, मैं तो आपके बेटे के बारे में पहले से ही जानती थी की उन्हें जब ये सब पता चलेगा तो वो कुछ नहीं कहेंगे... क्योंकि वो कई बार मुझे अपने दोस्तों से चुदवा चुके है...और तो और, आपके दुसरे बेटे, राकेश ने भी मुझे कई बार चोदा है..और इन्होने आपकी दूसरी बहु आरती को भी.."
मम्मी की बात सुनकर दादाजी का मुंह खुला का खुला रह गया...उनके सामने नए-२ राज जो खुल रहे थे.
इसी बीच ऋतू ने अपनी टी शर्ट को उतार दिया और अपनी ब्रा भी खोल कर नीचे गिरा दी..दादाजी की आँखों के सामने ऋतू के चुचे लहलहाने लगे..जिन्हें देखकर किसी के मुंह में भी पानी आ जाए...
ऋतू ने दादाजी का चेहरा अपनी छाती पर दबाया और बोली : "प्लीस दादाजी...चुसो न इन्हें...जब से मैंने आपका वो लम्बा लंड देखा है, मेरी तो हालत ही खराब है, मुझे वो किसी भी कीमत पर चाहिए दादाजी...प्लीस...दोगे न..बोलो दादाजी...दोगे न अपनी ऋतू को अपना लम्बा लंड....."
ऋतू दादाजी का चेहरा अपनी छाती पर रगड़ रही थी और अपनी गांड उनके लंड पर...और उसकी रसीली बातें सुनकर एक दम से दादाजी जैसे फट से पड़े....
दादाजी : "अह्ह्हह्ह......ऋतू.....मेरी बच्ची.....मैंने तुझे अपनी गोद में खिलाया है...और आज तो जवान होकर मेरी गोद में नंगी बैठी है...मैंने इस दिन के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था..... पर सच कहूँ तो तेरी नंगी जवानी देखकर मैंने अपने आप पर किस तरह काबू पाया था वहां उस कमरे में...ये मैं ही बता सकता हूँ.....
मुझे था की मुझे बहु की चूत तो मारनी ही पड़ेगी वहां से निकलने के लिए...और वो मैंने मारी भी...पर मेरी आँखों के सामने हमेशा तेरा नंगा शरीर था, जिसे देखकर मेरा मन कई बार डोला...और आज तू खुद ही मुझसे चुदना चाहती है....ऊऊओ .....बेटी.......आज मैं तुझे ऐसे मजे दूंगा की तू भी याद रखेगी..."
मैंने मन ही मन सोचा की ऋतू के लिए इससे अच्छा हो भी क्या सकता है...उसके तो मजे आ गए..
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