Horror Sex Kahani अगिया बेताल
10-26-2020, 12:57 PM,
#86
RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
पत्तर मेरे सामने भी रख दिया। फिर मैंने देखा - वह रमणी अपने कर कमलों से भोजन परोस रही है। मुझे यह सब आनंदित प्रतीत हुआ और मैंने उसके मंद-मंद मुस्कुराते गुलाबी लबों को मन ही मन चूम लिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके प्रति कौन-सी भावना मेरे मन में जाग रही है - क्या यह प्रेम की भावना थी, परंतु कैसा प्रेम ! मेरी निगाह में तो नारी सिर्फ भोग-विलास की वस्तु थी। परंतु उसके चेहरे के साथ मेरी यह मनोवृति भी किसी बंधन में जकड़ी प्रतीत होती थी।

धीरे-धीरे वह मेरे समीप आती चली गई फिर पलकें झुकाए मिष्ठान परोस कर चली गई। उसके साथ राम नाम का दुपट्टा ओढ़े एक महंत जैसा व्यक्ति भी था - उसकी निगाह बार-बार मेरी तरफ उठ जाती थी।

एकाएक मेरा पड़ोसी उठा और महंत के पास पहुंच गया फिर वह मेरी तरफ इशारा करके कुछ बताने लगा। महंत की मुख-मुद्रा कठोर बन गई। वह मेरी तरफ आने लगा।

फिर अन्य लोगों की निगाह भी मेरी तरफ उठ गई।

मेरे पास आकर उसने रूखे स्वर में पूछा - “कौन जाति का है तू।”

तब तक मैं मिष्ठान साफ कर चुका था।

“जाति से क्या लेना... खाना खिलवाओ, भूख लगी है।

“अरे -- यह शूद्र है।” मेरा पड़ोसी बोला - “राम-राम हम भोज ग्रहण नहीं करेंगे... क्यों भाइयों?”

“हां हां शूद्रों के साथ बैठकर हम भोजन करें….।”

“हम अपना धर्म भ्रष्ट नहीं कर सकते।”

“पंडित लोगों !” मैंने जोर से कहा - “इस बात का क्या सबूत है कि मैं शूद्र हूँ - क्या मेरे चेहरे पर लिखा है ?”

“बक-बक बंद कर... तेरी शक्ल बताती है - तेरे शरीर की बदबू ...तेरे कपड़ों से पता चल रहा है कौन तुझे पंडित मानेगा। अगर पंडित होता तो फौरन बता कौन गांव का पंडित है।” इस बार महंत बोला।

“भूखों को भोजन देने से पुण्य मिलता है महंत - इन पंडितों के पेट तो पहले से भरे हैं।”

“इसे उठाओ यहां से वरना हम उठ रहे हैं।” पंडितों की बिरादरी ने ऐलान किया।

“चल उठ…।” महंत ने जोर से कहा - “उठता है या नहीं।”

“नहीं उठा तो….।” मुझे क्रोध आ गया।

“तो तुझे अभी उठवा कर फेकता हूं अरे कल्लू... रामू...।” उसने आवाज दी।

दो हट्टे-कट्टे नौकर महंत की तरफ बढ़ने लगे। मैं समझ गया - अब मेरी शामत आ गई। मुझे उन सब पर बेहद क्रोध आ रहा था। वह रमणी भी मुझे देख रही थी, परंतु उसका चेहरा भावहीन था। उसने अपने मुख से अभी तक एक शब्द भी नहीं कहा था।

इससे पहले कि मुझे उठार बाहर किया जाता मैंने उस युवती के सामने अपनी भारी तोहीन महसूस की और अगले पल बेताल को याद किया। बेताल तुरंत हाजिर हुआ।

मैंने उसे महंत की तबीयत दुरुस्त करने का हुक्म दिया।

एक पल बाद महंत चीख पड़ा - वह हवा में उठता चला गया और जमीन से चार फीट ऊपर जाकर लटक गया। महंत बुरी तरह हाथ पांव मार कर चीख रहा था। और इस दृश्य को देखते ही सबकी हवा खराब हो गई थी। ऐसा दृश्य तो शायद उस में से किसी ने भी जिंदगी में नहीं देखा होगा।

पंडित लोग उठ खड़े हुए।

कल्लू और रामू महंत को जमीन पर खींचने का प्रयास कर रहे थे, परंतु उनकी हर कोशिश नाकामयाब हो रही थी।

“महंत ! अब तो सारी जिंदगी इसी प्रकार लटका रहेगा।” मैंने कहा और उठ खड़ा हुआ।

पंडित लोग मुझे देख देखकर भयभीत हो रहे थे।

“महाराज…. क्षमा…. देवता…. क्षमा...।” महंत गिड़गिड़ाया।

उसके बाद सभी लोग मेरे कदमों में लंबे लेट गए।

मैं उनके लिये भगवान पुत्र बन गया था। वह सब अपनी करनी के लिये क्षमा मांग रहे थे। मैं अब भी उस रमणी को देख रहा था जो हाथ जोड़े खामोश खड़ी थी। उन ब्राह्मणों की चिंता किए बिना मैं सीधा रमणी के पास पहुंचा।

“देवी ! अगर तुम कह दोगी तो हम इन्हें क्षमा कर देंगे।”

“अहो भाग्य मेरे जो आप के रूप में ईश्वर के दर्शन हो गए।” वह धीमे स्वर में बोली - “मुझे अबला का उद्धार कीजिए महाराज… और उस पापी महंत को क्षमा कर दीजिए।”

“एवं अस्तु।” मैंने हाथ उठाया और बेताल को संकेत किया।” महंत धड़ाम से जमीन पर आ गिरा। जमीन पर गिरते ही अचेत हो गया।

“देवी ! हमें भूख लगी है - क्या अपनी कमल करों से हमें भोजन नहीं कराओगी।”

“आप तो अंतर्यामी है - मुझे मामूली प्राणी का आपके सामने क्या अस्तित्व.. आप आसन पर विराजिए देवता... हम सब लोग आप की उपासना करेंगे।”

इस प्रकार उस देवी के कारण मैं अंतर्यामी बन गया। मुझे शीघ्र ही ज्ञात हुआ कि यह विधवा है, भरी जवानी में जब वह विवाह के तीन वर्ष भी नहीं गुजरे थे, उसका पति दुर्घटना में मारा गया था - वह स्वयं काफी धनवान बाप की इकलौती बेटी थी और अब दान-पुण्य करने में अपना जीवन बिता रही थी। उसका नाम विनीता था।

सारे गांव में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई थी और थोड़ी ही देर में वहां जमघट लग गया था। स्त्रियां, बच्चे, बूढ़े, जवान मुझ पर फूलमालायें अर्पण कर रहे थे और मेरे कदमों की धूल माथे पर लगा रहे थे।

अपने आप को ईश्वर के रूप में महसूस करके मुझे एक सुखद अनुभव हो रहा था - वे सब मुझे कितना मान दे रहे थे, ऐसा सम्मान मुझे जीवन में कभी नहीं मिला था।

उन लोगों ने मुझे जाने ही नहीं दिया।

मैं उस वातावरण में इतना खो गया कि मुझे ध्यान नहीं रहा कि मुझे बेताल को बलि देनी है।

“प्रभो…।” विनीता ने विनती की - “क्या आप मंदिर के पूजा ग्रह में रहकर हमारा उद्धार नहीं करेंगे…. वह मंदिर मैंने बनवाया है प्रभो... क्या आप मुझे सेवा का अवसर देंगे।”

वीणा की मधुर झंकार जैसा स्वर !

मैं कैसे बयान करता कि मुझ पर क्या बीत रही थी।

मैंने उसे स्वीकृति प्रदान की तो मेरी जय जयकार होने लगी।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल - by desiaks - 10-26-2020, 12:57 PM

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