RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“नो, सर । आप में कौन नुक्स निकाल सकता है । आप तो आप हैं ।”
“दैन कम टु दि प्वायन्ट ।”
“प्वायन्ट मिस्टर देवसरे की लाश की सुपुर्दगी की बाबत है, सर । पुलिस का कहना है कि पूना में पोस्टमार्टम हो चुकने के बाद सुपुर्दगी शाम तक मुमकिन हो पायेगी । आपका हुक्म था कि अन्तिम संस्कार हम करेंगे । मैंने ये जानने के लिये फोन किया है कि कहां करेंगे ? पूना में, गणपतिपुले में या मुम्बई में ।”
“पोस्टमार्टम पूना में किस लिये ?”
“क्योंकि गणपतिपुले छोटी जगह है, यहां पोस्टमार्टम की सुविधा नहीं है ।”
“मुम्बई में तो है ।”
“यहां से पूना करीब है ।”
“आज की फास्ट ट्रांसपोर्टेशन के जमाने में हर जगह करीब है ।”
“पूना करीबतर है ।”
“क्या मतलब ?”
“सर, इस मामले में मर्जी पुलिस की चलती थी इसलिये इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर ने लाश पूना भिजवाई ।”
“क्या इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर को ये नहीं मालूम था कि मरने वाला आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट था ?”
“सर, इधर कोई हमारी फार्म के नाम से भी वाकिफ नहीं ।”
“बट दैट इज नाट पासिबल । हम कोई छोटी मोटी फर्म हैं ! बंगलौर, कलकत्ता और दिल्ली में हमारी ब्रांचें हैं । फारेन से केस आते हैं हमारे पास । सारी दुनिया में हमारे बड़े रसूख वाले और स्टेडी क्लायन्ट हैं जो केस हो या न हो हमें एनुअल रिटेनर देते हैं । और तुम कहते हो कि उधर किसी ने हमारा नाम भी नहीं सुना...”
“शाहरुख खान का भी नहीं सुना, सर ।”
“क्या !”
“ऐसे कमअक्ल, नालायक, अंजान लोग बसते हैं इधर । इनकी नासमझी बयान करूं तो आप दंग रह जायें । कमबख्त रितिक को अलार्म घड़ी की कोई किस्म समझते हैं, आमिर को दशहरी आम समझते हैं, जैकी को मुम्बई का शेरिफ समझते हैं, अटल जी को कपड़े धोने का साबुन और अडवानी को गुरबानी का चौथा अध्याय समझते हैं । और तो और....”
“माथुर, माथुर, स्टाप टाकिंग लेफ्ट एण्ट राइट । फार गॉड सेक कम टु दि प्वायन्ट ।”
“यस, सर ।”
“तुम भूल रहे हो कि ट्रंककॉल पर बात कर रहे हो । ट्रंककॉल पर पैसा लगता है । और पैसा क्या पेड़ों पर उगता है ?”
“नो, सर । खदानों में से खोद कर निकाला जाता है, दरिया में जाल डाल कर पकड़ा जाता है, भट्टी में तपा कर हथौड़े से कूट कर बनाया जाता है लेकिन इतना मुझे पक्का मालूम है कि पेड़ों पर नहीं उगता ।”
“माथुर...”
“सर, जल्दी बात मुकम्मल कीजिये क्योंकि मुझे लगता है कि उस कम्बख्त क्रॉस टाक करने वाले कैजुअल लीव खत्म हो गयी है और वो फिर लाइन पर लौट आया है । देख लीजियेगा, अभी अनाप शनाप बकने लगेगा ।”
“मुझे तो लगता है कि बकने लग भी चुका है ।”
“हो सकता है । अब बताइये, सर मकतूल की लाश की बाबत मेरे लिये क्या हुक्म है ?”
“आई एम ए बिजी मैन । आई कैन नाट कम डाउन टु पूना आर गणपतिपुले । तुम लाश को मुम्बई भिजवाने का प्रबन्ध करो ।”
“ओके, सर ।”
“नाओ गैट आफ दि ट्रंक लाइन ।”
“यस, सर । राइट अवे, सर ।”
***
मुकेश रिजॉर्ट वापिस लौटा ।
उसने पार्किंग में कार खड़ी की और उसमें से बाहर निकला ।
रेस्टोरेंट के ग्लास डोर के बाहर रिंकी खड़ी थी, उसे देख कर अपने हाथ हिलाया ।
मुकेश ने भी हाथ हिलाया, वो रिंकी की तरफ बढने ही लगा था कि विपरीत दिशा से आवाज आयी - “मिस्टर माथुर !”
उसने घूम कर देखा ।
अपने कॉटेज के दरवाजे पर से मिसेज वाडिया उसे पुकार रही थी ।
“यस, मिसेज वाडिया ।” - वो उच्च स्वर में बोला ।
“फार वन मिनट इधर आना सकता ?”
“अगेन ?”
“ढीकरा, वाट डु यू मीन अगेन ?”
“नथिंग, मैडम । कमिंग राइट अवे ।”
“दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय ।”
रिंकी की तरफ देख कर उसने असहाय भाव से कन्धे उचकाये और फिर मिसेज वाडिया की ओर बढा ।
“प्लीज कम इन ।” - वो करीब पहुंचा तो मिसेज वाडिया बोली ।
“मैडम, मैं जरा जल्दी में हूं इसलिये जो कहना है यहीं कहिये ।”
“ढीकरा, बात बहुत इम्पार्टेंट होना सकता । सो प्लीज कम इन ।”
मन ही मन तीव्र अनिच्छा के भाव लिये उसने भीतर कदम रखा ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वो बोली ।
“थैंक्यू, मैडम ।”
“कल मैं तुम्हारा एडवाइस को फालो किया, सैवरल टाइम्स सब सोचा, समझा, अपना कांशस को अपना गाइड बनाया और फिर उस पुलिस ऑफिसर को फोन लगाया ।”
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