RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“सोच रही होगी कि कहीं किसी सेठ की तिजोरी तोड़ कर तो यह अंगूठी नहीं निकाल लाया मैं ।”
“अशोक, सच बताओ । वाकई यह अंगूठी पचास हजार रुपये की है ?”
“हां ।”
लेकिन आशा के चेहरे पर विश्वास की छाया भी प्रकट नहीं हुई ।
“अभी तुम कहां गये थे ?” - उसने अशोक से पूछा ।
“फोन करने ।” - अशोक बोला ।
“किसे ?”
“अभी तुम्हें सब कुछ मालूम हो जायेगा ।”
आशा चुप हो गई ।
उसी क्षण सड़क पर एक चमचमाती हुई इम्पाला गाड़ी आकर रुकी ।
“आओ ।” - अशोक आशा का हाथ थामता हुआ बोला ।
आशा ᣛबान्ध से नीचे उत्तर आई ओर बोली - “कहां ?”
अशोक ने उत्तर नहीं दिया । वह आशा का हाथ थामे सड़क की ओर बढा । वह इम्पाला गाड़ी के समीप पहुंचा ।
इम्पाला में से एक वर्दीधारी शोफर बाहर निकला । उसने अशोक को ठोक कर सलाम किया और कार की पिछली सीट का द्वार खोल दिया ।
आशा के नेत्र फैल गये । वह भौंचक्की सी कभी अशोक को और कभी शोफर को देखने लगी
“गाड़ी में बैठो, आशा ।” - अशोक शान्ति से बोला ।
“ल ल लेकिन... लेकिन...” - आशा हकलाई ।
“बैठो तो ।” - अशोक अनुरोधपूर्ण स्वर से बोला ।
आशा झिझकती हुई गाड़ी में बैठ गई । अशोक भी उसकी बगल में बैठ गया । शोफर ने द्वार बन्द कर दिया और ड्राइविंग पर जा बैठा ।
“कहां चलू साहब ?” - शोफर ने आदरपूर्ण स्वर से पूछा ।
“जे पी कहां है ?” - अशोक ने पूछा ।
“वे तो इस समय नेपियन सी रोड पर अर्चना माथुर की कोठी पर हैं ।”
“वहां क्या है ?”
“पार्टी है, साहब ।”
“वहीं चलो ।”
शोफर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी ।
“जे पी कौन है ?” - आशा ने बौखलाये स्वर से प्रश्न किया - “और ये गाड़ी किसकी है ? हम कहां जा रहे हैं ?”
“जे पी मेरे डैडी का नाम है, गाड़ी तुम अपनी ही समझ लो और मैं इस समय तुम्हें डैडी से मिलवाने ले जा रहा हूं ।”
“नेपियन सी रोड पर अर्चना माथुर जैसी मशहूर फिल्म स्टार की कोठी पर ? पार्टी में ?”
“हां ।” - अशोक सहज स्वर से बोला ।
“तुम्हारे डैडी तो भायखला में रहते हैं न और रिटायर...”
“वह सब भूल जाओ ।”
“अशोक ।” - आशा एकाएक बड़े ही गम्भीर स्वर से बोली ।
“हां ।”
“मेरी ओर देखो ।”
“लो ।” - और अशोक उसके नेत्रों में झाकने लगा ।
“तुम कौन हो ?”
“मैं अशोक हूं ।”
“वह तो तुम हो । अशोक होने के भलावा तुम और क्या हो ?”
“अशोक होने के इलावा मैं इनसान हूं, तुम से मुहब्बत करता हूं, जल्दी ही तुम से शादी करने वाला हूं और इस समय मैं तुम्हें अपने डैडी के पास ले जा रहा हूं ताकि वे अपनी होने वाली बहू को एडवांस में आशीर्वाद दे सकें ।”
“अशोक किसी गलतफहमी में मत पड़ो । मैंने कभी भी तुम से नहीं कहा कि मैं तुम से शादी करूंगी ।”
“ठीक है लेकिन मुझे विश्वास है मैं जल्दी ही तुम्हारा इरादा बदल दूंगा ।”
“अशोक तुमने मुझे अभी भी नहीं बताया है कि तुम कौन हो ?”
उसी क्षण कार एक विशाल कोठी के कम्पाउण्ड में प्रवेश कर गई और पोर्टिको में आ रुकी ।
एक वर्दीधारी वेटर ने आगे बढकर कार का दरवाजा खोला और अशोक को सलाम किया ।
“आओ ।” - अशोक बोला ।
आशा सकुचाती हुई कार से बाहर बाहर निकल आई ।
अशोक ने उसकी बांह पकड़ी और उसे कोठी के भीतर ले चला ।
कोठी का हाल मेहमानों से भरा हुआ था । वहां मर्दों से ज्यादा औरतें थीं । सब कीमती परिधानों में लिपटे हुए लिये पुते शरीर थे । हर किसी के चेहरे पर एक विशेष प्रकार की चमक थी जो केवल पैसे वालों के चेहरे पर ही सम्भव हो सकती है । विलायती शराब के दौर चल रहे थे । लगता था कि किसी को भी शराब पीने, गगनभेदी ठहाके लगाने, और मेजबान की तारीफ में कसीदे पढने के सिवाय कोई काम नहीं था ।
“हल्लो.. अशोक !”
आवाज पहचानने में आशा को देर नहीं लगी । वही स्वर था, स्वर में वही मादकता थी, वही अर्चना माथुर थी और वैसे ही कीमती परिधान में लिपटी हुई हजार वाट के बल्ब की तरह जगमगा रही थी, जैसे आशा ने उसे पहले मैट्रो सिनेमा के बाहर देखा था ।
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