RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“अभी क्या कहा था तुम ने ?” - आशा ने विचित्र स्वर से पूछा ।
“मैंने कहा था, तुम मुझसे शादी कर लो ।” - अशोक सुसंयत स्वर से बोला - “वास्तव में इतनी महत्वपूर्ण बात कहने के लिये मैं किसी अब से बेहतर मौके की तलाश में था । लेकिन क्योंकि अभी बातों का सिलसिला ही ऐसा चल पड़ा था तो मैंने सोचा कि क्यों न अपने मन की बात अभी कह दूं । आखिर कभी तो कहनी ही है ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है !” - आशा बड़बड़ाती हुई सी बोली । वह चलती चलती रुक गई और बिजली के खम्बे से पीठ टिका कर खड़ी हो गई ।
अशोक भी खम्बे का सहारा लेकर खड़ा हो गया और बोला - “क्यों नहीं हो सकता । मैं तुमसे मुहब्बत करता हूं । जिस दिन से तुम्हें देखा है, उसी दिन से मुहब्बत करता हूं । मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं । अब अगर तुम पहले से ही किसी और से शादी करने का इरादा कर चुकी हो या मैं वैसे ही तुम्हें पसन्द नहीं हूं तो अलग्र बात है ।”
“यह बात नहीं है ।” - आशा धीरे से बोली - “तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो लेकिन आज तक मैंने तुम्हारे और अपने विषय में इस सन्दर्भ में नहीं सोचा । मेरे मन में यह विचार तो कभी आया ही नहीं कि तुम्हारी और मेरी शादी भी सम्भव है । मैंने तुम्हें हमेशा एक छोटे से नासमझ, ओवर एक्टिड, शरारती बच्चे जैसा समझा है ।”
“मैं तुम्हें बच्चा दिखाई देता हूं !” - अशोक तनिक नाराज स्वर से बोला ।
“तुम बच्चे नहीं हो लेकिन मैं तुम्हें अपनी मानसिक प्रतिक्रिया बता रही हूं ।”
“तुम्हारे ख्याल से क्या उम्र होगी मेरी ?”
“यही बीस-बाइस साल ।”
“मैं चौबीस साल का हूं ।” - अशोक छाती फुला कर बोला ।
“फिर भी मैं तुमसे बड़ी हूं ।”
“नहीं !” - अशोक अविश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं पच्चीस साल की हूं और जल्दी ही छब्बीस की होने वाली हूं ।”
“मैं नहीं मानता । तुम्हारी उम्र ज्यादा से ज्यादा इक्कीस साल होगी ।”
“अशोक ।” - आशा उसकी बात अनसुनी करती हुई बोली - “जिस शाम को मैं पहली बार तुम्हारे साथ पीने के लिये टी सेण्टर गई थी । उस दिन घर लौटते समय जानते हो तुम्हारे बारे में मैंने क्या सोचा था ?”
“क्या सोचा था ?”
“मैंने सोचा था कि अगर आज मेरा छोटा भाई जिन्दा होता तो वह भी तुम्हारे जैसा खूबसूरत और तेज तर्रार नौजवान होता ।”
“आशा, तुम एकदम किताबी बातें कर रही हो । आज की जिन्दगी में इतनी गहरी भावुकता की कतई गुंजायश नहीं है । तुम्हारे कह देने भर से मैं तुम्हारा भाई थोड़े ही बन जाऊंगा ।”
“शायद तुम ठीक कहते हो ।” - आशा अनमने स्वर से बोली ।
“तुमने कभी सिगमंड फ्रायड का नाम सुना है ?” - अशोक ने प्रश्न किया ।
“हां, सुना है । वह ‘बेन हर’ में हीरो था न ?”
अशोक के चेहरे पर बरबस मुस्कराइट आ गई ।
“मैडम ।” - वह बोला - “एक साथ महज आधी दर्जन शब्दों के वाक्य में दो भयंकर गलतियां कर रही हो ।”
“क्या मतलब ?”
“जिस आदमी का जिक्र तुम कर रही हो, उसका नाम सिगमंड फ्रायड नहीं स्टीफेन बायड था और वह बेहनर में हीरो नहीं, विलेन था । हीरो दार्लस्टन हरस्टन था ।”
“अच्छा ।” - आशा लज्जापूर्ण स्वर से बोली - “सिगमंड फ्रायड कौन था ?”
“सिगमंड फ्रायड एक बहुत बड़े लेखक और विचारक का नाम है जो स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्धों के विषय में अथारिटी माना जाता है । सिगमंड फ्रायड ने कहा है कि औरत और मर्द में केवल एक ही रिश्ता सम्भव है और वह है सैक्स का रिश्ता । बाकी सारे रिश्ते झूठे हैं, समाज द्वारा लोगों पर जबरदस्ती थोपे गये हैं और...”
“तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं एक पुरूष हूं और तुम मेरा विपरीत तत्व स्त्री हो । मैं तुम से मुहब्बत करता हूं । और तुम से शादी करना चाहता हूं । तुम्हारा पति बनना चाहता हूं, भाई नहीं ।”
“अशोक, तुम मेरी बात...”
“जल्दबाजी में कोई फैसला मत करो ।” - अशोक उसकी बात काट कर बोला - “जो कुछ मैंने कहा है, उसे गम्भीरता से सोचो लेकिन भावुक मन से नहीं तर्कपूर्ण मस्तिष्क से । उसके बाद भी अगर तुम्हारा यही फैसला होगा कि तुम पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती तो मैं इसरार नहीं करूगा ।”
आशा चुप रही ।
“तुम्हें याद होगा जब पहली बार हम टी सेन्टर से निकलकर मैरिन ड्राइव के बान्ध पर जाकर बैठे थे तो मैंने तुमसे कहा था कि मैं एक लड़की से मुहब्बत करता हूं और अगर तुम मुझसे शादी के लिये उससे हां कहलवा दोगी तो मैं तुम्हारा भारी अहसान मानूंगा ?”
“याद है ।” - आशा धीरे से बोली ।
“आशा, वह लड़की तुम ही हो । मैं पहले दिन से तुमसे मुहब्बत करता हूं और मुझे पूरा विश्वास है, तुम मेरी मुहब्बत को ठुकराओगी नहीं ।”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“आओ चलें - एकाएक अशोक बदले स्वर से बोला । आशा फिर अशोक के साथ पथरीले फुटपाथ पर चल पड़ी ।
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