Hindi Antarvasna - आशा (सामाजिक उपन्यास)
10-12-2020, 01:24 PM,
#18
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
सरला चाय के कप और केतली लेकर किचन में से निकली उसने कप और केतली आशा के सामने मेज पर रख दी और स्वंय भी उसके सामने बैठ गई ।
“रात को कितने बजे आई थी तू ?” - सरला ने कपों में चाय उंढेलते हुए पूछा ।
“दस बजे ।” - आशा ने उत्तर दिया ।
“दस बजे ।” - सरला हैरानी से बोली ।
“हां । उस समय तू वापिस नहीं आई थी ।”
“वो तो हुआ लेकिन तू इतनी जल्दी कैसे लौट आई थी ? सिन्हा साहब के साथ फिल्म देखने नहीं गई ।”
“गई थी ।”
“डिनर के लिये नटराज नहीं गई ।
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कुछ वजह हो गई थी ।”
“क्य वजह हो गई थी ?”
आशा ने उसे सारी घटना कह सुनाई ।
“मैं तो रात को दो बजे के करीब आई थी ।” - सारी बात सुन चुकने के बाद सरला बोली - “तू सोई पड़ी थी । मैंने यही समझा था कि तू भी आधा पौना घण्टा पहले ही आई होगी ।”
“नहीं, मैं दस बजे आ गई थी ।”
“मतलब यह हुआ कि अर्चना माथुर ने तुम्हारा पचास प्रतिशत प्रोग्राम कट कर दिया ।”
“मेरे पर तो अहसान ही किया उसने । मैं तो, भगवान कसम सिन्हा साहब की हरकतों से इतनी दुखी थी कि मेरा जी चाह रहा था कि सारे तकल्लुफ छोड़कर फौरन वहां से घर की ओर भाग खड़ी होऊं ।”
“अच्छा ।” - सरला आंखें फैलाकर बोली - “कोई हरकतें भी हुई थीं ।”
उत्तर में आशा ने उसे सिनेमा के बाक्स में घटी सारी घटना कह सुनाई ।
“आशा तू पागल है ।” - सरला गम्भीर स्वर से बोली ।
“अच्छा ! क्यों ?”
“तू सिन्हा जैसे मोटे मुर्गे को यूं ही छोड़े दे रही है । तेरी जगह मैं होती तो उसे उंगलियों पर नचाती ।”
“वह बड़ा हरामजादा आदमी है । ऊपर से ही चिकना चुपड़ा शरीफजादा लगता है । भीतर से तो पूरा शैतान है । वह तुम्हारे रईस दे पुत्तर जैसा बबुआ नहीं है जिसे तुम उंगलियों पर नचा लो । वह तो तुम्हें समूचा हजम कर जाये तो डकार भी न ले ।”
“ऐसी की तैसी उसकी ।”
“सिनेमा हाल में मुझसे कुछ शरारत न कर पाने की वजह से वह भड़का हुआ पहले ही था, बाहर आकर जब उसने अर्चना माथुर को देखा तो उसके मुंह से यूं लार टपकने लगी थी जैसे जिन्दगी में पहले कभी औरत ही न देखी हो ।”
“अर्चना माथुर में उसे सैक्स की सन्तुष्टि की सम्भावना दिखाई देने लगी होगी न ?”
“सम्भावना क्या, वह तो गारन्टी की बात थी । सिन्हा और अर्चना माथुर की सूरतें बता रही थीं कि दोनों में बड़ा पुराना रिश्ता था ।”
“जरूर होगा । वह तो बेहद मर्दखोर औरत है । इतने सालों से फिल्म इन्डस्ट्री में है । ढेर सारा रुपया कमाने और नये नये मर्द फंसाने के अलावा उसने बम्बई में किया ही क्या है । मुझे तो अगर किसी स्टूडियो लाइटमैन, या झाड़ू लगाने वाला भी यह कहे कि वह आर्चना माथुर का प्रेमी रह चुका है या अब भी है तो मैं फौरन विश्वास कर लूंगी । हमारे अम्बरसर में भी एक ऐसी औरत थी । बड़े रईस घर की बहू थी, बला की खूबसूरत थी । लेकिन तांगे रिक्शे वालों से भी आंखें लड़ाती रहती थी । एक बार क्या हुआ कि...”
“बस, बस, बस” - आशा उसकी बात काटकर बोली - “सुबह सवेरे चाय के साथ अगर ‘साडे अम्बरसर’ का किस्सा खाया जाये तो बदहजमी हो जाती है ।”
“मेरी सुन तो ।”
“फिर कभी सुनूंगी ।”
“आशड़ी दी बच्ची ।” - सरला तनिक नाराज स्वर से बोली - “आखिर मेरी अम्बरसर की बातों से इतनी तुझे चिढ क्यों है ?”
“मुझे चिढ नहीं है । लेकिन तुम्हारे स्टाक में अब अमृतसर का कोई नया किस्सा बाकी नहीं है । तुम हमेशा मुझे वही बात सुनाती हो जो मैं तुम्हारे मुंह से कम से कम दस बार सुन चुकी होती हूं । रिक्शे तांगे वालों की सहेली अमृतसर की जवान सेठानी का किस्सा भी तुम किसी न किसी सन्दर्भ में मुझे कम से कम बीस बार सुना चुकी हो ।”
“मुझे याद नहीं रहता कि मैं किसको कौन सी बात सुना चुकी हूं और कौन सा बात अभी सुनानी है ।” - सरला मासूम स्वर से बोली ।
“तुम ऐसा करो ।” - आशा विनोदपूर्ण स्वर से बोली - “तुम अपने अमृतसर के किस्सों पर नम्बर लगा लो और उन नम्बरों की एक एक लिस्ट मुझे और अपने सब जानकारों को दे दो । फिर जब तुमने अमृतसर का कोई किस्सा सुनाना हो तो पूरी बात दोहराने की जगह केवल उसका नम्बर बता दिया करो जैसे अमृतसर का किस्सा नम्बर आठ, किस्सा नम्बर तेरह वगैरह और मैं फौरन समझ जाया करूंगी कि तुम क्या कहना चाहती हो और फिर...”
“चूल्हे में जाओ ।” - सरला नाराज स्वर से बोली ।
आशा हंस पड़ी ।
सरला चुपचाप चाय पीने लगी ।
“सरला ।” - आशा ने बड़े प्यार से पुकारा ।
सरला चुप रही ।
“सरला !” - आशा फिर बोली ।
“बको ।” - सरला मुंह बिगाड़कर बोली ।
“बदमाश सेठानी का क्या किस्सा था वह ?”
“तुम्हारा सिर था ।”
“अच्छा, चाय तो दे ।”
सरला ने केतली उठाई और आशा का कप दुबारा भर दिया ।
“अच्छा, अपने उस नये आशिक की कोई बात सुना ।” - आशा बोली ।
“कोई बात नहीं है ।” - सरला अपना कप भी दुबारा भरती हुई नाराज स्वर से बोली ।
“कल रात को तू एक बजे वापिस आई थी, वह जरूर मिला होगा तुझे ।”
“तुझे क्या ?”
“और मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि वह जरूर तुम्हें जूहू लेकर गया होगा ।”
“कैसे ?”
“तुम्हारे दायें कपोल पर मुझे उसके दांत का निशान दिखाई दे रहा है ।”
“हट पागल, यह तो मच्छर के काटे का निशान है ।”
“उसके दांत का नहीं ?”
“नहीं ।”
“मतलब यह कि वह कल तुम्हें नहीं मिला था ?”
“मिला था लेकिन हम घूमते ही रहे ।” - सरला उत्साहपूर्ण स्वर से बोली । क्षणिक नाराजगी दूर हो चुकी थी । वह फिर मूड में आ गई थी - “कल उसने मुझे मगरमच्छ की खाल का पर्स खरीदकर दिया ।”
“अच्छा, बड़ा महंगा होगा वह तो ।”
“हां । पूरे बारह हजार का अभी दिखाती हूं तुम्हें ।” - और सरला उठकर कमरे के कोने की ओर बढी जहां सूटकेस रखे थे ।
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