RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘ओके...आई विल ट्राइ।’’ कहते हुए कबीर ने गाना शुरू किया,
‘‘...खूबसूरत बात ये, चार पल का साथ ये,
सारी उमर मुझको रहेगा याद,
मैं अकेला था मगर, बन गई वो हमस़फर...।’’
कबीर गाते-गाते अचानक रुक गया।
‘‘क्या हुआ कबीर?’’ माया ने पूछा।
‘‘कुछ नहीं; रात बहुत हो गई है, मुझे घर जाना चाहिए।’’
‘‘हाँ, रात बहुत हो गई है; तुम यहीं क्यों नहीं रुक जाते?’’
‘‘नो माया, इट वोंट लुक राइट।’’
‘‘बहुत परवाह है लोगों की?’’
‘‘लोगों की नहीं, तुम्हारी।’’
‘‘अगर मेरी परवाह है तो रुक जाओ, मैं कह रही हूँ।’’
‘‘तुम्हारे इरादे तो ठीक हैं न माया?’’ कबीर ने शरारत से पूछा।
‘‘शटअप कबीर, तुम प्रिया के बॉयफ्रेंड हो।’’ माया ने कबीर को झिड़का।
‘‘आई कैन मैनेज टू गर्लफ्रेंड्स।’’ कबीर ने फिर शरारत की।
‘‘बट आई कांट शेयर माइ बॉयफ्रेंड विद एनीवन।’’
‘‘हूँ, मतलब तुम मुझे प्रिया से ब्रेकअप करने को कह रही हो?’’
‘‘कबीर, म़जाक की भी कोई हद होती है।’’ माया ने फिर से कबीर को झिड़का।
‘‘और अगर मैं कहूँ कि मैं म़जाक नहीं कर रहा तो?’’ कबीर की आँखों में अब भी शरारत थी।
‘‘तो मैं कहूँगी कि तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड को चीट कर रहे हो; अब जाओ, जाकर उस कमरे में सो जाओ।’’ माया ने कबीर को धक्का देते हुए कहा।
कबीर, माया को गुडनाइट कहकर सोने चला गया। माया भी अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई; मगर उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे बार-बार कबीर की बातें याद आ रही थीं। ‘इतनी स्पीड से कहाँ जाओगी माया?’ , ‘तुम्हारी स्पीड लिमिट कितनी है माया?’, ‘‘माया को कौन से रंग पसंद हैं, कौन से फूल पसंद हैं, कैसी तस्वीरें पसंद हैं, माया कितनी रोमांटिक है,...’’ उसने तो इन सब बातों के बारे में कभी सोचा भी न था; उसे तो बस अपने करियर और सक्सेस की ही फ़िक्र थी, और वो उस फ़िक्र में ही व्यस्त थी। मगर व्यस्त ही सही, अच्छी खासी चल रही थी उसकी ज़िंदगी। ‘ज़िंदगी चलकर पहुँचे कहाँ, यह फिलासफी ही तय करती है।’ माया की ज़िंदगी की फिलासफी क्या थी... क्या अर्थ देना चाहती थी वह अपने जीवन को? माया, करवटें बदलते हुए यही सोचती रही। नींद उसे बहुत देर तक नहीं आई।
कुछ दिन बाद माया ने कबीर को फ़ोन किया, ‘‘हे कबीर! देयर इ़ज ए गुड न्यू़ज; अवर फ़र्म वांट्स टू इंटरव्यू यू; और अगर तुम उन्हें पसंद आए तो तुरंत ज्वाइन करना होगा।’’
‘‘तुम्हें मेरे पसंद आने पर शक है?’’ कबीर ने म़जाक किया।
‘‘ये नौकरी का इंटरव्यू है, किसी लड़की के साथ डेट नहीं।’’ माया ने भी उसी शरारत से जवाब दिया।
‘‘ओके, कब है इंटरव्यू?’’
‘‘कल; मैं तुम्हें डिटेल ईमेल करती हूँ।’’
‘‘थैंक्स माया।’’
कबीर, नौकरी को लेकर अधिक उत्साहित नहीं था, मगर माया का साथ उसे अच्छा लगने लगा था। माया, उसकी आवारा उमंगों को काबू करना चाहती थी। कबीर को अपनी आवारगी पसंद थी, मगर फिर भी उसका मन माया की लगाम में कस जाना चाह रहा था। माया के बॉसी रवैये में उसे एक सेक्स अपील दिखने लगी थी; जैसी उसे कभी लूसी की अदाओं में दिखी थी। प्रिया की आँखों में कबीर ने एक तिलिस्म देखा था, जिसमें भटककर वह अपनी मंज़िल ढूँढ़ना चाहता था। मगर माया तो पूरी की पूरी एक तिलिस्मी हुकूमत थी। इस हुकूमत में एक अजीब सा आकर्षण था, उसकी किशोरमन की फैंटेसियों की झाँकी थी, उसके अतीत की कल्पनाओं का बिम्ब था। यौवन का प्रेम, किशोर मन की कल्पनाओं की छवि होता है। प्रेम की ललक अतीत के प्रेम की ललक होती है।
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