RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
.........' वडराज ने सिर नहीं उठाया। '....।'
महापुजारी मौन रहे।
राजसभा ने सम्मिलित जयघोष किया। महापुजारी को युवराज के निश्चय और दृढ़ता के समक्ष नत होना पड़ा। 'वत्स...!' बोले महापुजारी—'जाओ, अपने कुल की लाज की रक्षा करो और समर में अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर अपने देश की आन रखो, परन्तु एक बात का ध्यान रखना, शिविर में बैठकर सेना का संचालन करना और युद्धभूमि में तब तक न जाना जब तक विशेष आवश्यकता न आ पड़े।'
युवराज ने श्रद्धापूर्वक महापुजारी के समक्ष सर झुकाया।
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'यह तुम क्या कह रहे हो चक्रवाल?' किन्नरी निहारिका ने कहा—'वास्तव में श्रीयुवराज रणक्षेत्र को प्रस्थान कर रहे हैं।'
'हा...। आर्य सेना ने द्रविड़राज पर आक्रमण किया है। श्रीयुवराज द्रविड़राज सेना के अध्यक्ष चुने गये हैं।'
'क्या श्रीसम्राट की सम्मति से...?'
"प्रथम तो श्री सम्राट युवराज को रणक्षेत्र में नहीं जाने देना चाहते थे, परन्तु युवराज के हठ से बाध्य हो गये। समस्त सेना गुप्त मार्ग द्वारा सीमांत की और भेज दी गई हैं। श्रीयुवराज कल प्रातःकाल प्रस्थान करेंगे।'
'क्या भवितव्य है चक्रवाल?' किन्नरी खिन्न स्वर में बोली-'जिस समय मैं शद्ध मन से महामाया के समक्ष नृत्य करती हूं तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो महामाया के मुख से भयंकर प्रलयाग्नि निकल रही है...यह देखो, मेरी दक्षिण भुजा फड़क उठी हे। अवश्य कुछ न कुछ अनिष्ट होने वाला है, चक्रवाल।'
'इधर बहुत दिनों से मैं भी अत्यंत भयभीत हो रहा है यह देखकर कि मैं जब अपने हृदय में सुखद गीत गाने की धारणा करता हूं, तो वीणा कर में लेते ही तारों से दुखद गीत की धारा प्रवाहित हो उठती है। मैं बहुत चाहता हूं कि ऐसा न हो, परन्तु महामाया की इच्छा...।'
'कल वे प्रात:काल चले जायेंगे—इधर बहुत दिनों से उनसे भेंट भी नहीं हुई है, हृदय अत्यंत व्यग्न है, चक्रवाल। हृदय में ऐसा मान होता है कि कदाचित् अब वे हमें सर्वदा के लिए त्याग कर जा रहे हैं...ऐसा प्रयत्न करो कि एक बार उनसे मिलन हो जाय, चक्रवाल...।'
'यह कैसे हो सकता है निहारिका वे युद्धकार्य में व्यस्त होगे। कल प्रात:काल मंदिर में उनके दर्शन कर लेना...।'
'केवल दर्शन से काम नहीं चलेगा, चक्रवाल। हृदय-व्यथा अब मुख द्वारा बाहर आने की चेष्टा कर रही है। अब तक वाणी मूक थी, परन्तु अब उसमें वाक्शक्ति का संचार हो गया है, वह युवराज के कर्ण-कुहरों में प्रवेश करने के लिए अधीर हो उठी है। अब तो तो दाहक अग्नि, जो असहनीय व्यथा अपने हृदय में दबाये बैठी हूं-उसे उन पर प्रकट कर देना चाहती हूं, चक्रवाल! तुम मेरा इतना उपकार कर दो...।'
किन्नरी के नेत्रों से मोती जैसे आंसू टपक पड़े।
'तुम्हें पीड़ा हो रही है?' चक्रबाल गंभीर स्वर में बोला—“विषय ज्वाला जला रही है...तुम्हारे...? मगर किन्नरी अपने देव पर अपनी व्यथा प्रकट कर उन्हें विचलित न कर देना.. इस समय उनके सामने कर्तव्य का दुर्गम-पथ है...।'
'............।'
चुप रही किन्नरौ। आंखों के आंसू पोंछ लिए उसने।
'मैं जा रहा हूं...।' बोला चक्रवाल—'अगर वे आ सके तो मैं उन्हें यहाँ तक अवश्य लाऊंगा।'
कहकर चला गया चक्रवाल। किन्नरी पलंग पर गिरकर रोने लगी। रोते-रोते उसका आंचल भीग गया। 'ओह!'
आज उसे जो दुख और जो वेदना हो रही थी वह वर्णनातीत थी। आज उसके हृदय पर जो कुछ बीत रहा है, वह असह्य था।
'किन्नरी।' लौट आकर बोला चक्रवाल—'श्रीयुवराज इस समय अधिक व्यस्त हैं। कहा है उन्होंने कि तुम आधी रात को उद्यान से मिलना। वे भी कम दुखी नहीं हैं, निहारिका...।'
और चला गया चक्रवाल। किन्नरी पलंग पर पड़ी हुई देर तक सिसकती रही। उसके नेत्रों के सामने युवराज की सौम्य प्रतिमा नृत्य करती रही।
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