RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
तत्पश्चात् किन्नरी के प्रकम्पित हाथों ने थाली में से थोड़ा-सा कुंकुम उठाकर युवराज के शुभ ललाट पर लगा दिया।
आरती की क्रिया समाप्त हो चुकने पर चक्रवाल ने पुन: वीणा उठाई। उसकी तर्जनी ने वीणा के झिलमिलाते तारों का स्पर्श किया। प्रकृति को गुंजरित कर देने वाली सुमधुर झंकार निकल पड़ी उस मोहिनी वीणा से। साथ ही किन्नरी के नूपुर ध्वनि कर उठे-छूम छननन!
उसी समय बाल सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रांगण में से होती हुई युवराज के सुंदर मुख पर नृत्य कर उठी।
चक्रवाल ने गाया 'अलस भाव त्याग सजनी, प्राथ किरण आई।'
किन्नरी ने अपने कलापूर्ण कटिप्रदेश को मरोड़कर एवं अपने सुकोमल शरीर को कम्पित करके 'अलस भाव त्याग सजनी' का भाव दर्शाया, तत्पश्चात् युवराज के मुख पर नृत्य करती हुई उस स्वर्णिम किरण की ओर संकेत करके प्रथम किरण आई' की व्यंजना की।
पुन: उसके नूपुर बज उठे छूम छनन! चक्रवाल की तर्जनी, वीणा के तारों पर नृत्य करती रही एवं उसी के ताल के साथ-साथ किन्नरी की नर्तन-कला भी प्रवाहित होती रही।
चक्रवाल गाता रहा 'सुषमा की निधि अपार, क्यों न उठे पलक भार। तन्द्रावश यों निहार सहसा मुस्कराई। अलस भाव... किन्नरी ने यावत जगत की ओर हाथ उठाकर 'सुषमा की निधि अपार' का संकेत किया, पुन: भूमि पर बैठ दोनों नेत्र बंद कर क्यों न उठे पलक भार' प्रदर्शित किया, तत्पश्चात् अपने दोनों मादक नयन अौन्मिलित कर तन्द्रावश यों निहार का भाव बताया एवं अधरों पर एक मधुर मुस्कान लाकर 'सहसा मुस्काई' की व्यंजना की।
सब अवाक् थे—उस कलामयी सुंदरी की अप्रतिम कला का अवलोकन कर। मरणोन्मुख को जीवित कर देने वाली थी उस किन्नरी की नर्तनकला।
युवराज के हृदय-प्रदेश में उस किन्नरी का अपूर्व प्रदर्शन देखकर एक अवर्णनीय स्पन्दन-सा होने लगा। उनका हृदय कला का पुजारी था और किन्नरी निहारिका थी कला की साक्षात् प्रतिमा।
मधुर झंकार के साथ चक्रवाल ने वीणाभूमि पर रख दी। पूजनोत्सव समाप्त हुआ। सब चले गये।
किन्नरी अपने प्रकोष्ठ में आई। युवराज और चक्रवाल धीरे-धीरे संभाषण करते हुए अपने प्रकोष्ठ की ओर जाने लगे।
'चक्रवाल!'
'आज्ञा श्रीयुवराज?'
'आज तो किन्नरी की कला अपूर्व थी।'
'उसकी कला अद्वितीय है, श्रीयुवराज! और यह उसके लिए परम गौरव की बात है कि श्रीयुवराज के हृदय में उसकी कला के प्रति इतना आकर्षण है....।'
"तुम समझते हो आज से...? परन्तु मैं बहुत दिनों पूर्व से उसकी कला का आदर करता आ रहा हूं। भला स्वर्गिक कला का कौन आदर नहीं करेगा?' __
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