RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
उसका बार खाली गया, इससे वह भयानक जन्तु और भी क्रोधित हो उठा। उसके मुख से दिशाओं को प्रकम्पित करती हुई भयानक घुरघुराहट निकाली।
युवराज ने कार्मुक कान तक खींचा। दूसरे ही क्षण तौर सर्राता हुआ जाकर उस क्रुद्ध वाराह के पंजर में घुस गया। दारुण चीत्कार के साथ वह भूमि पर लेट गया और छटपटाने लगा।
युवराज धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़े। उनका अनुमान था कि वह मृतप्राय वाराह उस समय पूर्णतया अशक्त है और उन्हें किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की सामर्थ्य उसमें नहीं है।
इसलिए वे वाराह के एकदम समीप चले गए, परन्तु ज्यों ही वे उसके सन्निकट पहुंचे, वह विचित्र गति से उठ खड़ा हुआ और सामने के घने जंगल की ओर भाग चला।
अपने शिकार को भागता देखकर युवराज विद्युत वेग से अश्व पर आरूढ़ हो गये। उनका संकेत पाकर द्रुतगामी अश्व लक्षित दिशा की ओर भाग चला, अविराम गति से। कितने ही नदी-नाले, झाड़-झंखाड़ पार किये जा चुके, परन्तु न तो वह वाराह ही रुका और न युवराज ने उसका पीछा छोड़ा।
दोनों में से किसी की गति में बाधा न पहंची। युवराज का अश्व इतना अभ्यस्त था कि ऊबड़ खाबड़ भूमि पर भी तीव्र गति से अग्रसर हो रहा था।
पीछा करने की धुन में युवराज ने इस बात का ध्यान न दिया कि उनके मार्ग में ही एक वृक्ष की शाखा बहुत नीचे तक झुकी हुई है।
दूसरे ही क्षण एक करुण चीत्कार के साथ युवराज अश्व पर से नीचे आ रहे। वृक्ष की शाखा उनके मस्तक से इतने प्रबल वेग से टकराई कि रक्त की धारा प्रवाहित हो चली। स्वामिभक्त अश्व दो-चार पग आगे बढ़कर खड़ा हो गया। युवराज कुछ क्षणों तक चेतनाहीन रहे।
परन्तु चेतना आते ही वे पुनः अश्व पर जा चढ़े। मस्तक के घाव का उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहा-ध्यान रहा तो केवल उस वाराह का, जो इस समय उनकी दुर्दशा का कारण बना।
वाराह अधिक दूर नहीं गया कि युवराज ने पुन: अपने कार्मुक पर तौर चढ़ाया। सर्राता हुआ वह तीर जाकर वाराह की ग्रीवा में घुस गया। ठीक उसी समय पास की सघन वृक्षावलि के पीछे से एक सांगी प्रबल वेग से आकर उस वाराह के पंजर में जा धंसी।
इन दोनों प्रबल आघातों को सहन न कर सकने के कारण वह दुर्दान्त वाराह भूमि पर लुढ़ककर अंतिम सांस लेने लगा। युवराज को आश्चर्य हुआ, महान आश्चर्य-यह देखकर कि उनके शिकार पर इस प्रकार आक्रमण करने वाला यह दूसरा कौन आ पहुंचा?
युवराज अपने अश्व पर से नीचे उतरे। उसी समय एक सघन वृक्षावलि से निकलकर एक बीस वर्षीय बालक उनके सम्मुख आ खड़ा हुआ।
युवराज ने ध्यानपूर्वक उस युवक पर दृष्टि डाली। देखा-उसके मुख पर अपूर्व तेज प्रस्फुटित हो रहा है। शरीर नग्न है, केवल कटि-प्रदेश पर एक साधारण-सा वस्त्र है। कटि-प्रदेश में कृपाण लटक रहा है एवं हाथ में एक सांगी। वेशभूषा से वह किरात पुत्र-सा लग रहा था।
'कौन हो तुम....?' युवराज ने पूछा उस वीर युवक से। 'मैं किरात कुमार पर्णिक हूं...।' युवक ने किंचित् हास्य के साथ उत्तर दिया। 'किरातकुमार पर्णिक...?' युवराज ने स्थिर वाणी में दोहराया। उनका हृदय तीव्र गति से क्रोधित हो उठा था, यह सोचकर कि इस धृष्ट युवक ने उनके शिकार पर अपनी सांगी चलाकर उनका घोर अपमान किया है।
'किरातकुमार पर्णिक? तुमने युवराज नारिकेल का अपमान किया है, मेरे शिकार पर अपनी सांगी चलाई है...जानते हो इसका परिणाम...?' युवराज बोले।
'इसका परिणाम...?' पर्णिक के सुंदर मुख पर पुन: हास्य रेखा नृत्य कर उठी--- क्या हो सकता है इसका परिणाम...? आप ही बताने का कष्ट कीजिये...चिर कृतज्ञ रहूंगा...।'
युवराज की देदीप्यमान मुखश्री म्लान पड़ गई, युवक की व्यंगात्मक बातें सुनकर।
उन्हें लगा, जैसे किरातकुमार के वेश में कोई आकाशीय देवता उनकी परीक्षा लेने भूतल पर उतर आया है नहीं तो एक किरातकुमार में इतना साहस कहां?
'मुझे आश्चर्य है...!' पर्णिक दो पग आगे बढ़ आया—'कि युवराज ने अपने राजप्रासाद की सुखमयी गोद त्यागकर इस कंटकाकीर्ण वनस्थली में विचरण करना कैसे स्वीकार कर लिया एवं निरीह वन्य पशुओं पर अपनी अतुलित शक्ति का दुरुपयोग करना किस प्रकार उचित समझा?'
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