Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:07 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"हां....तुम्हें इस कमरेको छोड़ना ही पड़ेगा।"

"आप तो बुजुर्ग हैं....समझदार हैं। आप एक बात बताइये...क्या दुनिया में मेहनत-मजदूरी करके जीना पाप है....?"

“नहीं तो......"

"फिर....?"

"फिर क्या?"

"आप इस बात को पाप क्यों समझते हैं?"

"अनीता बेटी।" शर्मा जी ने आत्मीयता से कहा था-"तुम कहां जाती हो और क्या करती हो, यह बात मुझसे छपी हुई नहीं है। हकीकत तो यह है कि तुम्हारी जैसी लड़की आज तक मेरी आंखों के सामने से नहीं गुजरी। अन्यथा आजकल....। लेकिन बेटी, इस दुनिया के मुंह को कौन बंद करे? जो जिसके मन में आता है, कह डालता है।"

"ठीक कहते हैं आप....।"

"लेकिन क्या करूं....?" शर्मा जी के स्वर में विवशता थी—“परसों बागेश्वर नाथ ही कह रहे थे....."

"क्या....?"

"कहते हुये शर्म आती है।”

"परन्तु चाचा जी....आप यह तो सोचिये कि इस कमरे को छोड़कर मैं जाऊंगी कहां? मुझे रहने के लिये जगह कौन देगा....?"

"ठीक कहती हो।"

“अब आप बताइये...मैं क्या करूं?"

शर्मा जी खामोशी से कुछ सोचने लगे थे। कुछ देर के बाद उन्होंने कहा था- कचहरी रोड पर मेरे वहनोई का मकान है। एक कमरा भी खाली है। मैं उनसे कह दूंगा।"

"परन्तु वह भी तो....."

“शायद ऐसी बात न हो।” शर्मा जी अच्छे आदमी थे। उन्होंने अपने वहनोई से बात कर ली थी। उसे कचहरी रोड पर उनके मकान में एक कमरा मिल गया था। फिर वही क्रम.... मेहनत-मजदूरी..... परन्तु बहां भी मुसीबत खड़ी हो गयी थी। मकान-मालिक का लड़का अनिल सुधा की ओर बड़ी अजीब सी निगाहों से देखता था। छत पर आता था और पतंगबाजी करता था। बाप की अकेली औलाद थी, अतः छूट मिली हुई थी। एक दिन सुधा ने कहा था-"दीदी....!"

"क्या बात है?"

"वह अनिल है न......"

"हां....हां....क्या बात है...?"

"वह....।" सुधा कुछ कहना चाहती थी।

"कुछ कहेगी भी....!"

"वह आज दिन में ऊपर आया था। एक पेपर दे गया है।"

"कहां है....दिखा....."

सुधा ने पेपर लाकर उसे दे दिया था। उसने उस पेपर को पड़ा था। अनिल ने सुधा के नाम प्रेम-पत्र लिखा था। यह भी लिखा था कि यदि वह उसके प्रेम को स्वीकार कर ले तो वह उसके कपड़े खरीदकर ला देगा। पत्र की भाषा अश्लील थी। पढ़कर उसे क्रोध तो आया परन्तु वह अपनी बेबसी पर एक आह भरकर रह गई। उसने सुधा को समझाते हुए कहा था-"तू फिक्र मत कर....मैं जल्दी ही सब कुछ ठीक कर लूंगी।" अगले दिन उसे काम पर तो जाना ही पड़ा परन्तु मन बेचैन हो रहा। सुधा को वह अपने साथ भी नहीं रख सकती थी। शाम को लौटी तो सुधा को आंसू बहाते पाया था। देखकर उसकी धड़कनें बढ़ गई थीं। किसी अनहोनी बात से वह कांप उठी थी।

"क्या बात है।"

"दीदी....वह अनिल....."

"हो...हां....फिर....?"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:07 PM

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