Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:00 PM,
#72
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
मुझे भी कुछ नहीं मिला प्रीति। जेल से निकलने के बाद यही सोचा था कि मेरी जिन्दगी फिर से संवर जायेगी....परन्तु....!"

"विनीत ....।” प्रीति ने कहा-"जो तूफान आया था, वह तो चला गया....."

"परन्तु बरबादी के चिन्ह तो छोड़ गया।” विनीत ने बात पूरी की।

"हां, और अब उसी बरबादी को तुम्हें अपनी जिन्दगी समझना पड़ेगा विनीत ! तुम्हें उसे ही सब कुछ समझकर जिन्दा रहना पड़ेगा।"

"मैं भी यही सोच रहा हं प्रीति। कम-से-कम मुझे उस समय तक तो जिन्दा रहना ही पड़ेगा जब तक मैं इस निर्णय पर नहीं पहुंच जाता कि मेरी वहनें इस दुनिया में मौजूद हैं अथवा नहीं। उसके बाद भाग्य में जैसा होगा देखा जायेगा। परन्तु प्रीति....।"

"परन्तु क्या....?"

"तुम्हारी शादी....?" विनीत की इस बात पर प्रीति धीरे से मुस्करायी। उसकी इस मुस्कराहट में क्या रहस्य था, इस विषय में विनीत कुछ भी न समझ सका।

प्रीति ने कहा-"विनीत , मेरी शादी हो चुकी है।"

"कौन है वह?"

"मेरा देवता।"

"देवता...."

"हां....जिसके चरणों में मैं अपना सर्वस्व अर्पण कर चुकी हूं।"

"परन्तु है कौन?" विनीत ने पूछा।

"तुम....." प्रीति ने कहा।

सुनकर विनीत बुरी तरह चौंका। वह आश्चर्य से प्रीति के चेहरे की ओर देखता रह गया। वह समझ नहीं पाया कि प्रीति क्या कह रही है। साफ बात थी—प्रीति ने अभी तक शादी नहीं की थी। जवानी को उसने आंसुओं में डुबो दिया था। उसने कुछ क्षणों की खामोशी के बाद कहा-"मैं....लेकिन....।"

"प्रेम त्याग चाहता है विनीत ....और मैंने अपने प्रेम के लिये बहुत कुछ किया है। तुम्हें शायद याद हो कि मैंने तुमसे कुछ कहा था....."

"क्या....?"

"मैंने कहा था, मेरे जीवन में तुम्हारे सिवाय कभी कोई नहीं आ सकता....मेरी आत्मा पर तुम्हारे सिवाय कभी किसी का अधिकार नहीं हो सकता। ईश्वर साक्षी है कि मैंने पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य को निभाया है....अपने बचन को निभाया है।"

“मैं इसे मूर्खता कहूंगा प्रीति....।"

"विनीत ....।” प्रीति जैसे चीख उठी।

“यह तुमने अच्छा नहीं किया।"

"मैं जानती हूं...." प्रीति ने शांत स्वर में कहा।

"और जानने के बाद भी....."

“मैंने केवल अपने वचन को पूरा किया है विनीत ....।" प्रीति बोली-“मैं नहीं चाहती कि मेरे माथे पर बेवफाई का दाग लगे। और तुम जब भी मिलो....मुझसे नफरत करो....।"

"लेकिन प्रीति....।" विनीत ने उसकी बात रोककर कहा—“तुम्हें यह सोच लेना चाहिये था कि जो इन्सान कभी भी मेरा नहीं हो सकता, उसके लिये अपने को तिल-तिल गलाने से क्या लाभ....?"

"विनीत ......" प्रीति ने अचरज से उसकी ओर देखा।

"अब मैं चल रहा हूं प्रीति।" विनीत ने अपने स्थान से उठते हुये कहा—“यदि जिंदा रहा तो कभी फिर मिलूंगा।"

"और मेरा प्यार....?"

"तुम्हारा प्यार...?"

"क्या मेरी साधना का फल मुझे नहीं मिलेगा?"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:00 PM

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