Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:55 PM,
#50
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
अब प्रीति से सुना नहीं जा सका। "बस करो मौसी! बस करो। मझसे और नहीं सुना जा रहा है। बस मैं तो इतना कहंगी मैं उसके सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगी। वहीं मेरा प्रेमी, वही मेरा पति है।"

शीला मौसी ने प्रीति के आगे हथियार डाले और चल दी अपने घर की ओर-"अच्छा भई....मैं तो चलती हूं....." प्रीति शीला मौसी को दरबाजे तक छोड़ने आयी थी। शीला मौसी चली गई। प्रीति जल्दी से पीछे मुड़ी और घर के अन्दर आ गई। प्रीति को अन्दर आता देख प्रीति की मां ने प्रीति को आबाज लगाई- प्रीति।"

"एक मिनट विनीत , अभी आयी....” कहकर वह अन्दर चली गई। जब वह वापस आई तो उसके हाथों में चाय के दो प्याले थे। उसने दोनों प्याले मेज पर रख दिये। फिर विनीत के सामने पीढ़ा बिछाकर बैठ गई।

“कहां रह गई थीं तुम?" विनीत ने उसके बैठते ही प्रश्न किया।

"कहीं नहीं, यहीं थी बाहर। बो शीला मौसी कुछ बातें करने लगी थीं।"

"शायद तुम मुझे भूल गई थीं कि मैं भी अन्दर बैठा मक्खियां मार रहा हूंगा।" विनीत का लहजा शिकायती था।

"नहीं विनीत. तुमको तो मैं कभी नहीं भुला सकती। कभी नहीं। मर कर भी नहीं.... तुम्हारी यादें मेरी आत्मा में बसी हैं और आत्मा कभी नहीं मरती। तुम्हारी यादें भी कभी नहीं मर सकतीं।" प्रीति भावुक हो गई।

बैर छोड़ो। तुम चाय पियो, छन्डी हो जायेगी।" प्रीति ने मेज पर रखे कप की ओर इशारा करते हुए कहा। विनीत ने कप उठा लिया और छोटे-छोटे घूट लेकर चाय पीने लगा।

प्रीति ने भी अपना कप उठाया और चाय के घुट लेने लगी। कुछ पल के लिये कमरे में मौन थिरक उठता है।

"प्रीति, एक बात कहूं।” विनीत ने मौन तोड़ा।
"कहो।" प्रीति का लहजा सपाट था।

"प्रीति, मुझे डर है कि कहीं तुम्हारे पिता तुम्हें न डांटें मुझसे बातें करता देख....."

“क्यों?" प्रीति विनीत की बात अटपटी-सी लगी।

"इसलिये कि अब बो शायद तुम्हारी शादी मुझसे नहीं करना चाहेंगे। और इसीलिये वह ये भी नहीं चाहेंगे कि मैं इस तरह तुमसे मिलूं...

." चाय के मध्य प्रीति ने कहा—“जो तुम सोचते हो बैसी बात नहीं है। मां और पिताजी दोनों ही मेरी बात से सहमत हैं। बे केबल मेरी खुशी देखना चाहते हैं। और मेरी खुशी तुम हो। मेरे माता-पिता की तुम चिन्ता मत करो। आगे क्या होगा, वो सब मैं संभाल लूंगी।"

"ठीक है प्रीति....। जो भाग्य में होगा देखा जायेगा। अब मैं चलता हूं। मां मेरी राह देख रही होंगी।" वह चाय की खाली प्याली मेज पर रखकर उठा और प्रीति की मां से मिलने के लिये अन्दर गया। "मांजी नमस्ते। अब मैं चलता हूं।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:55 PM

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