RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
आगे आगे ज्योतिजी उनके बिलकुल पीछे ज्योतिजी से सटके ही सुनील जी, कुछ और पीछे सुनीता और आखिर में जस्सूजी चल पड़े। थोड़ी पथरीली और रेती भरी जमीन को पार कर वह सब झरने की और जा रहे थे। सुनीलजी ने ज्योतिजी से पूछा, "आखिर बात क्या है ज्योतिजी? आप मुझसे नाराज हैं क्या?"
ज्योतिजी ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, "भाई, हम कौन होते हैं , नाराज होने वाले?"
सुनीलजी ने पीछे देखा तो सुनीता और जस्सूजी रुक कर कुछ बात कर रहे थे। सुनील ने एकदम ज्योतिजी का हाथ थामा और रोका और पूछा, "क्या बात है, ज्योतिजी? प्लीज बताइये तो सही?"
ज्योतिजी की मन की भड़ास आखिर निकल ही गयी। उन्होंने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या? आपको क्या पड़ी है की आप सोचें की कोई आपका इंतजार कर रहा है या नहीं? भाई जिसकी बीबी सुनीता के जैसी खुबसुरत हो उसे किसी दूसरी ऐसी वैसी औरत की और देखने की क्या जरुरत है?"
सुनीलजी ने ज्योतिजी का हाथ पकड़ा और दबाते हुए बोले, "साफ़ साफ़ बोलिये ना क्या बात है?"
ज्योति ने कहा, "साफ़ क्या बोलूं? क्या मैं सामने चल कर यह कहूं, की आइये, मेरे साथ सोइये? मुझे चोदिये?"
सुनीलजी का यह सुनकर माथा ठनक गया। ज्योतिजी क्या कह रहीं थीं? उतनी देर में वह झरने के पास पहुँच गए थे, और पीछे पीछे सुनीता और जस्सूजी भी आ रहे थे। ज्योति ने सुनील की और देखा और कहा, "अभी कुछ मत बोलो। हम तैरते तैरते झरने के उस पार जाएंगे। तब सुनीता और जस्सूजी से दूर कहीं बैठ कर बात करेंगे।"
फिर ज्योति ने अपने पति जस्सूजी की और घूम कर कहा, "डार्लिंग, यह तुम्हारी चेली सुनीता को तैरना भी नहीं आता। अब तुम्हें मैथ्स के अलावा इसे तैरना भी सिखाना पडेगा। तुमने इससे मैथ्स सिखाने की तो कोई फ़ीस नहीं ली थी। पर तैरना सिखाने के लिए फ़ीस जरूर लेना। आप सुनीता को यहाँ तैरना सिखाओ। मैं और सुनीलजी वाटर फॉल का मजा लेते हैं।"
यह कह कर ज्योतिजी आगे चल पड़ी और सुनीलजी को पीछे आने का इशारा किया।
ज्योतिजी और सुनीलजी झरने में कूद पड़े और तैरते हुए वाटर फॉल के निचे पहुँच कर उंचाइसे गिरते हुए पानी की बौछारों को अपने बदन पर गिरकर बिखरते हुए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे। हालांकि वह काफी दूर थे और साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था पर सुनीता ने देखा की ज्योतिजी एक बार तो पानी की भारी धार के कारण लड़खड़ाकर गिर पड़ी और कुछ देर तक पानी में कहीं दिखाई नहीं दीं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा। क्यूंकि इतने दूर से भी सुनीलजी के चेहरे पर एक अजीब परेशानी और भय का भाव सुनीता को दिखाई दिया। सुनीता स्वयं परेशान हो गयी की कहीं ज्योतिजी डूबने तो नहीं लगीं।
पर कुछ ही पलों में सुनीता ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते हुए ज्योतिजी ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर आकर सुनीलजी का हाथ पकड़ा और कुछ देर तक दोनों पानी में गायब हो गए। सुनीता यह जानती थी की ज्योतिजी एक दक्ष तैराक थीं। यह शिक्षा उन्हें अपने पति जस्सूजी से मिली थी।
सुनीता ने सूना था की जस्सूजी तैराकी में अव्वल थे। उन्होंने कई आंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में इनाम भी पाए थे। सुनीता ने जस्सूजी की तस्वीर कई अखबारों में और सेना और आंतरराष्ट्रीय खेलकूद की पत्रिकाओं में देखि थी। उस समय सुनीता गर्व अनुभव कर रही थी की उस दिन उसे ऐसे पारंगत तैराक से तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सिखने को मिलेंगे। सुनीता को क्या पता था की कभी भविष्य में उसे यह शिक्षा बड़ी काम आएगी।
फिलहाल सुनीता की आँखें अपने पति और ज्योतिजी की जल क्रीड़ा पर टिकी हुई थीं। उनदोनों के चालढाल को देखते हुए सुनीता को यकीन तो नहीं था पर शक जरूर हुआ की उस दोपहर को अगर उन्हें मौक़ा मिला तो उसके पति सुनीलजी उस वाटर फॉल के निचे ही ज्योतिजी की चुदाई कर सकते हैं। यह सोचकर सुनीता का बदन रोमांचित हो उठा। यह रोमांच उत्तेजना या फिर स्त्री सहज इर्षा के कारण था यह कहना मुश्किल था।
सुनीता के पुरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी। सुनीता भलीभांति जानती थी की उसके पति अच्छे खासे चुदक्कड़ थे। सुनीलजी को चोदने में महारथ हासिल था। किसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना सम्मान और आनंद देते थे की वह औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के लिए बेताब रहती थी। जब सुनीता के पति सुनीलजी अपनी पत्नी सुनीता को चोदते थे तो उनसे चुदवाने में सुनीता को गझब का मजा आता था।
सुनीता ने कई बार दफ्तर की पार्टियों में लड़कियों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दूसरी के कानों में सुनीलजी की चुदाई की तारीफ़ करते हुए सूना था। उस समय उन लड़कियों और औरतों को पता नहीं था की उनके बगल में खड़ीं सुनीता सुनीलजी की बीबी थी।
शायद आज उसके पति सुनीलजी उसी जोरदार जस्बे से ज्योतिजी की भी चुदाई कर सकते हैं, यह सोच कर सुनीता के मन में इर्षा, उत्तेजना, रोमांच, उन्माद जैसे कई अजीब से भाव हुए।
सुनीता की चूत तो पुरे वक्त झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से कस के जोड़कर सुनीता उसे छिपाने की कोशिश कर रही थी ताकि जस्सूजी को इसका पता ना चले।
सुनीता झरने के किनारे पहुँचते ही एक बेंच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। जस्सूजी ने जब सुनीता को नहाने के लिए पानी में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो बोले, "क्या बात है? वहाँ क्यों बैठी हो? पानीमें आ जाओ।"
सुनीता ने लजाते हुए कहा," जस्सूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी ड्रेस में आते हुए शर्म आती है। और फिर मुझे पानी से भी डर लगता है। मुझे तैरना नहीं आता।"
जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझसे शर्म आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती?"
जब सुनीता ने जस्सूजी की बात का जवाब नहीं दिया तो जस्सूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े हुए और पानी के बाहर आ गए। बेंच पर से तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछते हुए कैंप की और जाने के लिए तैयार होते हुए बोले, "सुनीता देखिये, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ। अगर आप को मेरे सामने आने में और मेरे साथ नहाने में हिचकिचाहट होती है क्यूंकि आप मुझे अपना करीबी नहीं समझतीं तो मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से ज्योति और सुनीलजी के साथ नहाइये और वापस कैंप में आ जाइये। मैं आप सब का वहाँ ही इंतजार करूंगा।"
यह कह कर जब जस्सूजी खड़े हो कर कैंप की और चलने लगे तब सुनीता भाग कर जस्सूजी के पास पहुंची। सुनीता ने जस्सूजी को अपनी बाहों में ले लिया और वह खुद उनकी बाँहों में लिपट गयी। सुनीता की आँखों से आंसू बहने लगे।
|