RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अजय की बाकी बातों की तरह, ये बात भी अभी एक राज़ ही थी. लेकिन अब शायद अजय के हर राज़ पर से परदा उठने का समय आ चुका था और अजय की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आने वाली थी. जिसका कि मुझे बहुत बेसब्री से इंतेजार था.
मगर ऐसे समय पर कीर्ति का मेरे साथ फोन पर ना होना, मुझे बहुत अखर रहा था. क्योकि मैं चाहता था कि, जब मैं अजय से, उसकी जिंदगी के बारे मे बात करूँ, तब कीर्ति भी मेरे साथ फोन पर रहे, ताकि वो भी अजय की जिंदगी से जुड़े राज़ को जान सके. लेकिन आज जब इस राज़ के खुलने का वक्त पास आया तो, कीर्ति मेरे साथ नही थी.
इस ख़याल के मेरे मन मे आते ही, एक बार फिर मुझे, कीर्ति की यादों ने घेर लिया. वो कैसी है, क्या कर रही है. वो मुझे याद कर रही है या नही, ये सारी बात मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. लेकिन मेरे पास इन मे से किसी भी बात का कोई जबाब नही था. मुझे कीर्ति की किसी भी बात की, कोई खबर नही थी.
क्योकि आज कीर्ति से नाराज़गी के चलते, मैने घर मे भी फोन लगा कर, किसी से कोई बात नही की थी और कीर्ति ने भी सुबह से अभी तक, मेरा हाल चाल जानने की कोई कोशिश नही की थी. जिस वजह से उसकी हर बात से मैं अंजान था.
मेरा दिल अब भी, कीर्ति की आवाज़ को सुनने के लिए तड़प रहा था और कीर्ति की जुदाई मे अपने हथियार पहले ही डाल चुका था. लेकिन मेरा दिमाग़ था कि, वो किसी भी कीमत पर कीर्ति की ग़लती को माफ़ करने के लिए तैयार नही था और मेरे दिल से तरह तरह के सवाल किए जा रहा था.
मेरा दिमाग़ कह रहा था कि, यदि कीर्ति तुमसे प्यार करती है तो, वो अपनी ग़लती की माफी क्यों नही माँग लेती. यदि उसे तुमसे प्यार है तो, फिर वो तुमसे बात किए बिना कैसे रह ले रही है. यदि सुबह से अभी तक तुमने उस से बात नही की तो, उसने तुमसे बात करने की कोशिश क्यो नही की है. यदि तुम्हे उसकी कमी अखर रही है तो, फिर उसे तुम्हारी कमी क्यो नही अखर रही है और यदि उसे तुम्हारी कमी अखर रही है तो, वो तुमको मना क्यो नही रही है.
मेरे दिमाग़ की ये सारी बातें, मेरे दिल को कीर्ति से बात करने से रोक रही थी. मगर इस सब के बाद भी, मेरा दिल हर जगह, हर बात पर कीर्ति की कमी को महसूस करने से बाज नही आ रहा था और बार बार सिर्फ़ कीर्ति को ही याद किए जा रहा था.
मुझे मेरे दिल और दिमाग़ ने, एक अजीब ही उलझन मे उलझा दिया था. जिस वजह से अब मेरी अजय के बारे मे जानने की सारी उसुकता ख़तम हो गयी थी और मेरे चेहरे पर उदासी छा गयी थी.
मुझे इस तरह से किसी गहरी सोच मे गुम देख कर और मेरे अचानक से उतर गये चेहरे को देख कर, अजय को लगा कि, शायद मुझे उसका ये घर पसंद नही आया. उसने मुझे मेरी सोच से बाहर निकालने के लिए, मेरे कंधे को पकड़ कर, हिलाया और संजीदा होते हुए मुझसे कहा.
अजय बोला “क्या हुआ, क्या सोच रहे हो, क्या तुम्हे मेरा ये छोटा सा घर पसंद नही आया.”
अजय की बात सुनकर, मुझे अपनी हालत का अहसास हुआ और मैने अपने आपको संभालते हुए, अजय से कहा.
मैं बोला “कोई घर भी घर, सिर्फ़ मकान के छोटे या बड़े होने से, छोटा या बड़ा नही हो जाता. घर तो उसमे रहने वालों से छोटा बड़ा होता है और मेरा मानना है कि, जिस घर मे तुम रहो, वो घर कभी छोटा हो ही नही सकता.”
मेरी बात सुनकर, अजय के चेहरे पर मुस्कुराहट वापस आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा.
अजय बोला “ऐसा क्यो. भला मेरे रहने से कोई घर कैसे बड़ा हो सकता है.”
मैं बोला “क्योकि तुम्हारा दिल बड़ा है और जिसका दिल बड़ा हो, उसका घर कभी छोटा हो ही नही सकता. अब यदि तुम्हारा बात करना हो गया हो तो, अब अपना घर भी दिखा दो.”
अजय बोला “क्यो नही, आओ चलो, इस ग़रीब का छोटा सा आशियाना भी देख लो.”
ये कह कर वो घर की दाहिनी (राइट) तरफ बनी सीडियों (स्टेर्स) की तरफ बढ़ गया. मैं भी उसके पिछे पिछे चलने लगा. लेकिन अब मेरे मन मे एक सवाल और आ रहा था कि, यदि अजय घर की पहली मंज़िल पर रहता है तो, घर की निचली मंज़िल पर कौन रहता है. क्या अजय यहाँ किराए (रेंट) पर रहता है.
मैं ये सब सोच रहा था और हम लोग उपर पहुच गये. उपर 36*24 का छत था और छत की एक तरफ 3 कमरे बने हुए थे. उन कमरों मे से तीसरे कमरे से लगा हुआ, एक बाथरूम बना हुआ था. जिस से समझ मे आ रहा था कि, उपर के कमरे किराए पर देने के लिए ही बनाए गये है.
उपर पहुचने के बाद अजय ने तीसरे कमरे का दरवाजा खोला और मुझे अंदर चल कर बैठने को कह कर, वापस नीचे की तरफ चला गया. अजय के नीचे चले जाने के बाद, मैने कमरे की तरफ देखा.
यहाँ भी कमरे मे परदा लगा हुआ था. मैने पर्दे को हटाया और कमरे के अंदर आ गया. लेकिन अंदर का नज़ारा देख कर, मुझे अपनी आँखों देखे पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था कि, अजय जैसा करोड़पति आदमी, इस छोटे और साधारण से मकान मे रहता है.
कमरे मे परदा लगा होने की वजह से, बाहर की रोशनी अंदर नही आ पा रही थी और अंदर का कमरा एक 60 वॉट के बल्ब की पीली रोशनी से रोशन था. जिसकी रोशनी की मुझे आदत ना होने के कारण, ये रोशनी मेरी आँखों को चुभ रही थी. कुछ देर तो मुझे खुद को इस रोशनी मे ढलने मे लग गयी.
जब मुझे इस रोशनी की कुछ आदत सी हुई तो, मैने कमरे के चारो तरफ देखा. कमरे मे ज़्यादा समान तो नही था. लेकिन कमरा बेहद सॉफ सुथरा था. कमरे के दरवाजे के दाहिनी तरफ वाली दीवार से लग कर एक छोटा सा बेड था. जिसमे एक सॉफ और सुंदर सी चादर बिछि हुई थी.
बेड के पास ही सामने वाली दीवार से लग कर एक पुराना सा टीवी रखा हुआ था और टीवी के पास ही एक दरवाजा था. जो अंदर वाले कमरे मे जाने के लिए था. अंदर के कमरे मे भी बल्ब की रोशनी जा रही थी. जिस से पता चल रहा था कि, अंदर वाला कमरा ज़्यादा बड़ा नही और वहाँ शायद किचन बना हुआ है.
बेड के सामने वाली दीवार के पास लकड़ी की अलमारी और अलमारी के पास ही दीवार पर एक आईना लगा हुआ था. दरवाजे के पास बाएँ तरफ एक टेबल रखी हुई थी और टेबल पर सलीके से कुछ किताबें जमी हुई थी. उसी टेबल के पास चार चेयर और एक सेंट्रल टेबल रखी हुई थी.
मैं खड़ा खड़ा कमरे का नज़ारा कर रहा था कि, तभी मेरी नज़र बेड पर रखे एक अख़बार (न्यूसपेपर) पर पड़ी. मैं आकर बेड पर बैठ गया और अख़बार के पन्ने पलटने लगा. पन्ने पलटते पलटते मेरी नज़र एक कविता पर पड़ी. जो किसी महिला कवियत्रि तृप्ति ने लिखी थी. कविता का शीर्षक था प्रतीक्षा.
वैसे तो मुझे कविता या शेर और शायरी पढ़ने का शौक बिल्कुल भी नही था. ना ही इसमे कही गयी बातें मेरे दिमाग़ मे चढ़ा करती थी. फिर भी कीर्ति के साथ रहते रहते, अच्छी शायरी जमा करना मेरी आदत मे शामिल हो गया था. ताकि वो शायरी मैं कीर्ति को भेज सकूँ.
लेकिन किसी कविता को पढ़ने का ये मेरा पहला मौका था. इस कविता का शीर्षक, मेरे इस समय की परिस्थिती से मेल ख़ाता था. जिसकी वजह से मैं अपने आपको ये कविता पढ़ने से ना रोक सका और कविता पढ़ने लगा.
“प्रतीक्षा”
“बस तेरी प्रतीक्षा मे, गुज़ार दी जिंदगी हम ने.
तुम जो आए नही तो, उजाड़ ली जिंदगी हम ने.
सब्र की सीमाएँ थी, हम प्रतीक्षा कब तक करते.
काग़ज़ों को स्याहियों से, हम भरा कब तक करते.
तुमने ना भूलने की, हम से कसम ले डाली थी.
छोड़ कर ना जाउन्गा, अपनी बात भी उसमे डाली थी.
एक अगर रूठेगा तो, उसे दूसरा मनाएगा.
वादे ये प्यार के, कोई तोड़ कर ना जाएगा.
वादा निभाया मैने, और लाज बच गयी तेरी भी.
अगले जनम मे मिलने की, आस बच गयी मेरी भी.
मुक्त करती हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से.
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से.”
कविता की पहली लाइन पढ़ते ही, मेरी आँखों मे कीर्ति का चेहरा घूमने लगा था और कविता की हर लाइन मुझे कीर्ति के दिल के दर्द का अहसास करा रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था कि, जैसे ये कविता कीर्ति ने ही लिखी हो.
क्योकि इसकी हर लाइन मे मुझे, मेरी और कीर्ति की कहानी नज़र आ रही थी और इसकी आख़िरी लाइन मे मुझे अपना कीर्ति से किया हुआ वो वादा याद आया, जो मैने मुंबई से घर वापस पहुचने पर कीर्ति से किया था. जब कीर्ति ने मेरे मरने की बात के उपर से, मुझे तमाचा मारा था. मेरी आँखों मे उस दिन का मंज़र किसी फिल्म की तरह घूमने लगा.
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मैं बोला “मैं तुझे बहुत दुख देता हूँ ना.”
कीर्ति भी मेरे पास ही नीचे आकर बैठ गयी और मेरे हाथों को चूमते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “मुझे तुम्हारा दिया हर दर्द कबुल है. मैं तुम्हारा हर दर्द हंसते हंसते सह सकती हूँ. लेकिन यदि तुम्हे कोई आँच भी आए तो, मैं सह नही पाती हूँ. मुझे माफ़ कर दो. मैने वेवजह तुम पर हाथ उठाया. मगर मैं क्या करती. मैं उस बात को भुला नही पा रही थी. जिसकी वजह से मेरा सब कुछ लुट जाने वाला था.”
मैं बोला “सॉरी, अब आगे से ऐसा कुछ नही होगा.”
कीर्ति बोली “तुम हमेशा ऐसा ही कहते हो. लेकिन बार बार वही करते हो. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”
मैं बोला “लेकिन तूने भी तो वही किया है. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”
कीर्ति बोली “मैने जो किया सिर्फ़ अपने आपको सज़ा देने के लिए किया है. यदि तुम मेरी जान को नुकसान पहुचाओगे तो, मैं तुम्हारी जान को भी नुकसान पहुचाउन्गी. मैं तुमसे ये पहले ही बोल चुकी हूँ.”
मैं बोला “ठीक है आज के बाद से हम दोनो ही एक दूसरे की जान को नुकसान नही पहुचाएगे.”
कीर्ति बोली “ऐसे नही, तुम मेरी कसम खाकर बोलो कि, तुम चाहे मेरे बारे मे कुछ भी सुन लो. लेकिन तब तक कोई ऐसा कदम नही उठाओगे. जब तक ये साबित ना हो जाए कि, तुमने जो सुना है वो सही है.”
कीर्ति की इस बात पर मैने उसे छेड़ते हुए कहा.
मैं बोला “यानी कि साबित होने के बाद मैं कुछ भी कर सकता हूँ.”
कीर्ति बोली “ज़्यादा मज़ाक मत करो. भगवान भी चाहेगा. तब भी मैं तुम्हे छोड़ कर नही जा सकती. मौत भी मुझे तुमसे दूर नही कर सकती. अब तुम सीधे से मेरी कसम खाते हो या फिर मैं कुछ और करूँ.”
मैं बोला “ख़ाता हूँ बाबा. मैं तेरी कसम खाकर बोलता हूँ कि, अब चाहे कैसी भी बात क्यो ना हो. मैं कभी बिना सोचे समझे और सच्चाई का पता किए बिना ऐसा कोई भी कदम नही उठाउँगा. जिसके उठाने से तुझे तकलीफ़ हो.”
कीर्ति बोली “ये हुई ना कोई बात. अब मैं सच मे बहुत खुश हूँ.”
मैं बोला “तू भी तो कसम खा. तू भी तो आए दिन ये हाथ काट कर मुझे तकलीफ़ देती रहती है.”
कीर्ति बोली “ओके मैं भी कसम खाती हूँ कि, जब तक तुम मेरी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाओगे. तब तक मैं भी तुम्हारी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाउन्गी.”
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उस दिन की बात याद आते ही, सबसे पहले मुझे, कल रात को अपनी शराब पीने की हरकत का पछ्तावा हुआ. क्योकि चाहे कल रात को शराब पीने के बाद, मेरी कीर्ति से ज़्यादा बात ना हुई हो, मगर मेरी जितनी भी उस से बातें हुई थी, उस से उसे इस बात का अहसास ज़रूर हो गया होगा कि, मैने शराब पी रखी है.
अभी तक मुझे सिर्फ़ ये दिख रहा था कि, कीर्ति ने मेरे दिल को चोट पहुचाई है और उसने मेरा अपमान किया है. मुझे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नज़र नही आ रही थी. लेकिन अब मुझे अपनी शराब पीने की ग़लती सॉफ नज़र आ रही थी.
अब मेरी इस ग़लती के बाद, कीर्ति के मेरे सामने झुकने का सवाल ही पैदा नही होता था. शायद यही वजह रही होगी कि, रात के बाद से, उसने मुझे कोई कॉल करने की कोसिस नही की थी.
लेकिन अपनी ग़लती नज़र आने के बाद भी मैं कीर्ति के सामने झुकने को तैयार नही था. क्योकि भले ही मैने ग़लती की थी, मगर उस ग़लती को करने की शुरुआत तो, कीर्ति की तरफ की गयी थी. यदि कीर्ति ने ग़लती नही की होती तो, मेरे फिर भी ग़लती करने का सवाल ही पैदा नही होता.
आख़िर मे मुझे कीर्ति के सामने ना झुकने और उसे कॉल लगाने का एक तरीका समझ मे आ गया. मैने बिना देर किए मोबाइल निकाला और कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल जाते ही, कीर्ति ने फ़ौरन मेरा कॉल उठा लिया.
उसके कॉल उठाने से ही, मैं समझ गया था कि, कीर्ति की भी नाराज़गी कम नही हुई है. वरना वो मेरा कॉल उठाने की जगह, मेरा कॉल काट कर, मुझे दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाती. उसने कॉल उठाते ही मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “हाँ बोलो.”
मैं बोला “मुझे कुछ नही बोलना.”
कीर्ति बोली “जब कुछ बोलना नही तो, कॉल क्यो लगाया.”
मैं बोला “मैं अभी अजय के दूसरे घर मे आया हूँ, इसलिए तुम्हे कॉल लगाया था.”
कीर्ति बोली “तो इसमे मैं क्या करूँ. इस से मेरा क्या मतलब.”
मैं बोला “इस से तुम्हारा कोई मतलब नही है. मुझे लगा कि, तुम्हे कॉल लगाना चाहिए तो, मैने लगा दिया. अब यदि तुम कॉल चालू रखना चाहती हो तो, चालू रख सकती हो और यदि कॉल बंद करना चाहती हो तो, बंद कर सकती हो. मैं मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ. तुम्हे जो ठीक लगे, तुम कर लेना.”
ये बोल कर, मैने मोबाइल जेब मे रख लिया. लेकिन मेरा सारा ध्यान मोबाइल की तरफ ही लगा हुआ था. कुछ देर तक मोबाइल चालू रहने के बाद, अचानक कट गया. मुझे लगा कि, शायद गुस्से की वजह से कीर्ति ने कॉल काट दिया है.
मगर कॉल काटने के अगले ही पल, कीर्ति के दूसरे मोबाइल से, मेरे दूसरे मोबाइल पर कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और उस से कहा.
मैं बोला “हाँ, क्या हुआ.”
कीर्ति बोली “कुछ नही, वो मेरा हाथ लग जाने से कट गया था.”
मैं बोला “ठीक है, मैं मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ.”
ये कह कर मैने मोबाइल वापस अपने जेब मे रख लिया. मगर मैं कीर्ति के, कॉल के अचानक कट जाने की वजह, अच्छी तरह से समझ गया था और इसके समझ मे आते ही, खुद ब खुद मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी.
असल मे वो इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि, मेरे उस नंबर पर ज़्यादा बॅलेन्स नही होगा. इसलिए वो मेरे उस नंबर का बॅलेन्स खर्च करना नही चाहती थी. जिस वजह से उसने, उस नंबर पर से मेरा कॉल काट कर, मुझे इस नंबर पर कॉल लगाया था.
उसकी इस हरकत से मेरे दिल को बहुत सुकून मिला और मेरी खोई हुई भूख फिर से वापस आ गयी थी. मैं अभी कीर्ति की हरकत मे ही खोया हुआ था कि, तभी अजय बिसलेरी की 3 बॉटल्स लेकर आ गया. उसने बिसलेरी की बॉटल्स सेंट्रल टेबल पर रखते हुए, मुझसे कहा.
अजय बोला “तुम बाहर बाथरूम मे जाकर मूह हाथ धो लो. तब तक मैं खाना लगाता हूँ.”
ये कहते हुए अजय ने, मुझे टवल थमा दिया और वापस नीचे चला गया. मैं भी उठ कर मूह हाथ धोने चला गया.
मैं जब तक मूह हाथ धोकर वापस आया, तब तक अजय सेंट्रल टेबल पर खाने की दो थाली लगा चुका था. किचन की लाइट जल रही थी. इसलिए मेरे लिए ये अनुमान लगाना मुस्किल था कि, ये खाना कहाँ से आया है.
कीर्ति मेरे साथ मोबाइल पर बनी हुई थी और अजय की बातों से उसे ये भी समझ मे आ गया होगा कि, मैं यहाँ खाना खाने आया हूँ. मैने वापस आकर खाना लगे देखा तो, बेड पर बैठते हुए अजय से कहा.
मैं बोला “क्या ये खाना तुमने बनाया है.”
मेरी बात सुनकर अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.
अजय बोला “नही, मेरा खुद का खाना नीचे से बन कर आता है. मैं यहाँ पेयिंग गेस्ट हूँ, इसलिए मुझे खाना बनाने की ज़रूरत नही पड़ती. अब तुम बेकार का सवाल करना छोड़ो और ये बोलो कि खाना तुम इस सेंट्रल टेबल पर ही खा लोगे या फिर तुम्हारे खाना खाने के लिए डाइनिंग टेबल का इंतज़ाम किया जाए.”
अजय की इस बात का जबाब भी मैने उसी के अंदाज़ मे देते हुए कहा.
मैं बोला “यार भूख के मारे तो मेरा बुरा हाल हो रहा है और तुमको डाइनिंग टेबल की पड़ी हुई है. अब ज़्यादा तकल्लूफ मत करो और खाना सुरू करो.”
ये कहते हुए मैने एक चेयर खीची और सेंट्रल टेबल के पास आकर बैठ गया. मुझे बैठते देख अजय भी एक चेयर पर बैठ गया. अभी हम खाना खाना, शुरू ही करने वाले थे कि, तभी मुझे बाहर से किसी लड़की की आवाज़ आती सुनाई दी.
मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी, इसलिए मैं उसे देख नही सका. अजय मेरे सामने था और उसका मूह दरवाजे की तरफ था. उस लड़की ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही अजय से कहा.
लड़की बोली “अज्जि भैया, आप जल्दी जल्दी मे ये पापड नीचे ही भूल कर आ गये थे. दीदी ने मुझे ये पापड आपको देने के लिए भेजा है.”
लड़की की बात सुनकर, अजय ने उस लड़की की तरफ देखा और फिर बहुत ही मासूम बनते हुए उस से कहा.
अजय बोला “ये तो तुमने बहुत अच्छा किया. लेकिन अब ये पापड देने के लिए तुम खुद अंदर आ रही हो या फिर ये पापड खुद ही चल कर अंदर आने वाले है.”
अजय की बात सुनकर, एक तरफ तो मैं अपनी हँसी रोक नही पाया. वही दूसरी तरफ वो लड़की, अपना पैर पटकते हुए, अंदर आ गयी और पहली बार मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी. वो लगभग मेरी ही उमर की थी.
उसकी आवाज़ तो कोयल की तरह सुरीली थी ही और अब जब मैने उसे देखा तो, देखता ही रह गया. उसने सुरीली आवाज़ ही नही बल्कि, कयामत की सुंदरता भी पाई थी. वो एक दम दूध की तरह सफेद थी और उसकी आँखे नीली थी. जो उसको ऑर भी ज़्यादा सुंदर और सेक्सी बना रही थी.
उस ने इस समय एक शॉर्ट पॅंट और वाइट टी-शर्ट पहनी हुई थी. उसका शॉर्ट पॅंट उसकी गोरी गोरी जाँघो मे कसा हुआ था और उसकी टी-शर्ट इतनी ढीली और लंबी थी कि, उसका आधे से ज़्यादा शॉर्ट पॅंट, उस से ढका हुआ था. जिस से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, जैसे उसने नीचे कुछ पहना ही ना हो.
उसके इस पहनावे को देख कर, मुझे अचानक ही प्रिया की याद आ गयी. क्योकि दोनो के पहनावे मे कोई खास ज़्यादा अंतर नही था. प्रिया की याद आते ही, मैं उस लड़की की सुंदरता की तुलना प्रिया की सुंदरता से करने लगा.
लड़की सच मे ही बेहद खूबसूरत थी. लेकिन प्रिया के साथ उसकी तुलना करने से, उसकी सुंदरता फीकी लगने लगी थी और आज पहली बार मुझे प्रिया की सुंदरता का अहसास हो रहा था.
मैं प्रिया और उस लड़की की सुंदरता की तुलना करने मे खोया हुआ था. तभी उस लड़की ने सेंट्रल टेबल पर पापड रख कर, ठुनक्ते हुए अजय से कहा.
लड़की बोली “ये लीजिए आ गये आपके पापड, मगर दोबारा मेरा मज़ाक उड़ाया ना तो, ये पापड जैसे आए है, वैसे ही वापस भी चले जाएँगे.”
ये बोल कर लड़की फिर से पैर पटकते हुए वापस चली गयी और अजय मुस्कुरा कर उसे जाते हुए देखता रहा. उसके चले जाने के बाद अजय ने मुझसे कहा.
अजय बोला “ये नेहा है और ये प्रिया की बहुत ही खास सहेली है.”
मुझे उस लड़की या उसके नाम को जानने मे, कोई खास दिलचस्पी नही थी. क्योकि मुझे जिस लड़की मे दिलचस्पी थी. वो भले ही इस वक्त मुझसे नाराज़ चल रही थी, फिर भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और ये ही बात मुझे मन ही मन गुदगुदा रही थी.
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