RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मुझे दरवाजा खोलने के पहले ही, इस बात का अनुमान हो गया था कि, ये प्रिया के सिवा कोई दूसरा नही हो सकता. मेरा ये अनुमान बिल्कुल सही निकला. मैने दरवाजा खोला तो, सामने प्रिया ही खड़ी थी. वो इस समय पिंक शॉर्ट नाइटी मे थी. कमरे की दूधिया रोशनी मे उसका गोरा बदन, चाँदनी की तरह चमक रहा था.
अभी उसने 16 सावन भी नही देखे थे. लेकिन उसका गदराया हुआ बदन, किसी भी कमसिन हसीना को मात कर देने वाला था. उसके सामने इस समय यदि खुद विश्वामित्र भी खड़े होते. तो उसे देख कर मेनका को भूल कर दोबारा अपनी तपस्या से उठ कर खड़े हो गये होते. फिर मैं तो एक सीधा साधा इंसान था.
मैं भला खुद को उसकी इस गदराई जवानी को देखने से कैसे रोक पाता. उस समय मैं खुद को भी भूल गया और मेरी नज़र उसके सीने की तरफ चली गयी. जहाँ उसके सीने के गोलाइयाँ उसके ब्रा ना पहने होने की वजह से बाहर नाइटी से बाहर आती लग रही थी. वो इस समय साक्षात काम की देवी लग रही थी. जिसके काम का बान मेरे उपर चल चुका था.
अभी प्रिया के चेहरे पर गुस्से के कोई भाव नही थे. यदि कुछ था तो, सिर्फ़ एक कुटिल मुस्कान थी. उस कुटिल मुस्कान का अर्थ समझ पाना मेरे बस की बात नही थी. उसने मुझे यू दरवाजे पर ठगा सा खड़ा देखा तो, उसकी मुस्कान और भी गहरी हो गयी. मुझे उसकी आँखों मे वासना की चमक नज़र आ रही थी. वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगी.
मेरे करीब आकर उसने मुझे अपने बाहों मे जकड लिया, और अपने चेहरे को मेरे सीने मे छुपा लिया. उसकी इस हरकत से उसके बूब्स की कोमलता का अहसास मुझे अपने सीने पर होने लगा. उसके बदन का कोमल अहसास पाकर, मेरे बदन मे भी झुरजुरी सी दौड़ गयी.
प्रिया मुझे ज़ोर से अपनी बाहों के बंधन मे भीच रही थी. जिससे उसके बूब्स मेरे सीने से दब रहे थे. उस की तेज धड़कने मुझे महसूस हो रही थी. जिसे महसूस कर मेरी धड़कने भी तेज हो गयी थी. मेरे लिंग मे भी कंपन सा होने लगा था.
जो शायद प्रिया को भी महसूस हो गया था. उसने मुझे खुद से और भी ज़ोर से चिपका लिया, और मेरी पीठ पर उपर नीचे हाथ फेरने लगी. उसकी इस हरकत से मैं और भी ज़्यादा गरम हो गया. मेरे लिंग का तनाव बढ़ गया और मेरा लिंग प्रिया की जांघों से सटा हुआ था.
जिसका अहसास प्रिया को हुआ तो, वो अपनी जाँघो को मेरे लिंग पर दबाने लगी. उसकी ये हरकत मेरे लिए असहनीय हो गयी थी. लेकिन इसके बाद भी मैं कोई प्रतिक्रिया नही करने की हिम्मत ना जुटा सका. क्योकि मेरा दिल कह रहा था. ये सब ग़लत है. मगर अब मेरा शरीर, मेरा साथ नही दे रहा था की, मैं उसे खुद से अलग कर सकूँ.
मैं किसी पत्थर की बुत की तरह खड़ा रहा. प्रिया अपने बूब्स को मेरे सीने पर दबाए जा रही थी और अपनी जांघों का दबाब मेरे लिंग पर बनाए जा रही थी. प्रिया ने जब मुझे कुछ ना करते देखा तो, उसने एक पल के लिए अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा.
उस एक पल मे मुझे उसके चेहरे मे, कीर्ति का चेहरा नज़र आया. कीर्ति का चेहरा नज़र आते ही मुझे मेरी ग़लती का अहसास हो गया. प्रिया के चेहरे मे एक मासूमियत, एक भोलापन था. मैं प्रिया की आँखों की जिस चमक को उसकी वासना समझ रहा था. वो असल मे एक अल्हड़ लड़की का, मेरे लिए बेशुमार प्यार था.
मेरी आँखों मे प्रिया की नाराज़गी से लेकर उसके केक बनाने तक की सारी बातें घूमने लगी. अब मैं समझ चुका था कि, प्रिया को मुझसे प्यार हो गया है, और वो हर हालत मे मुझे पा लेना चाहती है. वो मुझे पाने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार है.
प्रिया की ये बात मेरी समझ मे आते ही मेरे तो होश ही उड़ गये. मैने प्रिया को समझाने की गरज से, बड़े प्यार के साथ, अपने दोनो हाथों से. उसके चेहरे को उपर उठाया और उसकी आँखों मे देख कर, मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला "क्या बात है. आज मुझ पर बहुत ज़्यादा प्यार आ रहा है. तुम्हारा इरादा तो नेक है ना."
लेकिन शायद प्रिया समझने की हद से बाहर निकल चुकी थी. या फिर वो इतनी गरम हो चुकी थी कि, कुछ समझने की हालत मे ही नही थी. उसने नशीली आँखों से मुझे देखा और फिर मेरी बात के जबाब मे, मेरे गालों को बेहताशा चूमने लगी.
मैं अजीब कशमकश मे फस गया था. मेरा लिंग था कि शांत होने का नाम नही ले रहा था, और प्रिया का साथ दे रहा था. मगर मैं ना तो कीर्ति के विस्वास के साथ धोका कर सकता था, और ना ही प्रिया के भोलेपन के साथ खिलवाड़ कर सकता था.
मैने प्रिया को अपने से अलग किया और बेड पर जाकर बैठ गया. प्रिया मेरे ऐसा करने का मतलब ना समझ सकी. उसने मुझे बेड पर बैठते देखा तो, वो आकर मेरी गोद मे बैठ गयी. उसने फिर से मेरे गले मे बाहें डाल दी और मेरे गालों को चूमना सुरू कर दिया.
मेरी उत्तेजना चरम पर थी और मैं एक ऐसे दोराहे पर खड़ा था. जहाँ पर यदि मैं प्रिया का साथ देता तो, कीर्ति का प्यार और विस्वास चकनाचूर होना था. या फिर प्रिया का साथ ना देने पर भोले मन को चोट पहुचाना था. मैं कुछ भी फ़ैसला नही कर पा रहा था.
अचानक मुझे छोटी माँ की कही बात याद आ जाती है कि, परेशानी चाहे कितनी भी बड़ी क्यो ना हो. यदि तुम उसका सामना करोगे तो, वो बहुत छोटी हो जाएगी. इस बात के दिमाग़ मे आते ही मैं अपने आपको संभालता हूँ और प्रिया के दोनो हाथ अपने गले से अलग कर देता हूँ.
मेरी इस हरकत से प्रिया के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है और वो मुझे देखने लगती है. मानो पुच्छ रही हो कि, मैने ऐसा क्यो किया. मैं उसकी इस बात के जबाब मे, उसके गालों को प्यार से चूम लेता हूँ. उसके चेहरे की मुस्कान फिर वापस आ जाती है और वो बड़े प्यार से मुझे देखने लगती है.
मैं उसके माथे पर चूमता हूँ, तो वो और भी खुश हो जाती है. मैं उसके दोनो हाथों को अपने हाथों मे लेकर उन्हे सहलाने लगता हूँ. मेरे लिंग मे अभी भी तनाव था. लेकिन मैं उसे अनदेखा करते हुए प्रिया से कहता हूँ.
मैं बोला "प्रिया तुम सच मे बहुत प्यारी हो. तुम मेरी जिंदगी मे पहले क्यो नही आई."
प्रिया बोली "तो क्या हुआ. अब तो आ गयी हूँ."
मैं बोला "नही प्रिया, अब बहुत देर हो चुकी है. अब मेरी जिंदगी मे कोई और लड़की है. मैं उसके प्यार के साथ धोका नही कर सकता. तुमने शाम को खुद सुना था कि, मैं किसी लड़की के बारे मे अपनी माँ से बात कर रहा था."
प्रिया बोली "हाँ सुना था. इसी वजह से मैं तुम से नाराज़ भी थी. लेकिन फिर बाद मे मैने सोचा कि, उसकी तो सगाई हो गयी है. उसका और तुम्हारा साथ, अब ख़तम हो गया है. यही सोच कर मेरा गुस्सा ख़तम हो गया और मैं तुम्हारे पास चली आई."
मैं बोला "प्रिया तुम भी मेरी तरह उसको ग़लत समझी. उसने ऐसा कुछ भी नही किया. उसकी शादी की बात पक्की ज़रूर हुई है, मगर उसने सगाई नही की है. उसने ये सब नाटक सिर्फ़ मेरे प्यार को बचाए रखने के लिए किया था. वो मुझे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है. वो मेरी खुशी के लिए ही सब कुछ करती है."
प्रिया बोली "मैं भी तुम्हे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ. मैं भी तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ कर सकती हूँ. मैं तुम्हे अपने सिवा किसी का नही होने दुगी."
प्रिया की इस बात मे उसके प्यार की गहराई के साथ साथ, उसका एक पक्का संकल्प नज़र आ रहा था. जिसने कुछ देर के लिए मुझे विचलित और सोचने पर मजबूर कर दिया. मुझे यूँ सोचता देख. प्रिया ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे थामा और अपनी तरफ घूमाते हुए कहा.
प्रिया बोली "तुम इतना सोच मे क्यो पड़ गये. तुम ये क्यो सोचते हो कि, मेरा प्यार उस लड़की से कम है. ऐसा क्या है, जो वो लड़की कर सकती है और मैं नही कर सकती. तुम चाहो तो मुझे आज़माकर देख लो. मेरा प्यार तुम्हे कही भी, उस से कम नज़र नही आएगा."
मैं बोला "तुम शायद उसके प्यार को कभी नही समझ सकती. उसका प्यार तुम्हारे और मेरे प्यार से बहुत उपर है."
मेरी इस बात से प्रिया को गुस्सा आ गया. वो गुस्से मे कहने लगी.
प्रिया बोली "मैं नही समझ सकती तो, तुम मुझे समझाओ. मैं समझना चाहती हूँ कि, ऐसा क्या है उसके प्यार मे, जो उसका प्यार हम सब से उपर है."
मैं बोला "तुम नही समझ पाओगी प्रिया. प्यार समझने की चीज़ है ही नही. ये तो दिल का दिल से रिश्ता है. जो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है. मेरा दिल यदि उसे इधर पुकारेगा तो, उसे उधर खबर हो जाएगी कि, मैं उसे पुकार रहा हूँ. उसकी हर एक साँस पर सिर्फ़ मेरा नाम लिखा है. शायद वो अभी नींद मे भी मेरे ही सपने देख रही होगी."
प्रिया बोली "मुझे ये सब नही सुनना. मुझे बस ये बताओ कि, उसका प्यार मेरे प्यार से उपर क्यो है."
मैं बोला "मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ की, ये सब समझने की बात नही है. फिर भी तुम ज़िद कर रही हो तो, मैं तुम्हे ये समझाने की एक कोशिस ज़रूर करूगा."
ये कहते हुए मैने अपना मोबाइल उठा कर कीर्ति के मोबाइल पर एक रिंग कर के कॉल काट दिया. मुझे ऐसा करते देख प्रिया ने कहा.
प्रिया बोली "क्या हुआ. इस तरह कॉल लगा कर काट क्यो दिया. क्या उसका कॉल बिज़ी जा रहा है."
मैं बोला "नही, वो तो 1:30 बजे ही सो गयी है. मैने तो सिर्फ़ इसलिए एक रिंग करके कॉल काट दिया. ताकि पता तो चले कि, उसे गहरी नींद मे भी मेरे कॉल आने का अहसास होता है या नही."
प्रिया बोली "ऐसा कैसे होगा. यदि वो जाग भी रही होती. तब भी तुम्हारे इतने से कॉल को देख नही पाती. फिर भला नींद मे कैसे उसे पता चल सकेगा. मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा कि, तुम ये सब करके आख़िर साबित क्या करना क्या चाहते हो."
मैं बोला "मैं सिर्फ़ यही साबित करना चाहता हूँ कि, वो मुझे कितना प्यार करती है. तुम देख लेना इतने से मे ही उसका कॉल आ जाएगा."
मेरी बात सुनकर प्रिया हंस दी और कहने लगी.
प्रिया बोली "तुम पागल हो. क्या ऐसा भी कभी होता है."
मैं प्रिया की इस बात का कोई जबाब दे पाता. उस से पहले ही नये मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और इस तरह से मोबाइल अपने कान मे लगाया कि, प्रिया को भी हमारी बात सुनाई दे सके. मेरे कॉल उठाते ही कीर्ति ने उनीदी सी आवाज़ मे कहा.
कीर्ति बोली "सॉरी जान. मुझे बहुत गहरी नींद लगी थी. इसलिए तुम्हे तुरंत कॉल नही लगा सकी. लेकिन तुम अभी तक सोए क्यो नही."
मैं बोला "मुझे नींद नही आ रही थी. इसलिए तुझे कॉल किया था. लेकिन तू तो बहुत गहरी नींद मे है. ऐसा कर तू सो जा."
कीर्ति बोली "नही जान. ऐसी कोई बात नही है. तुमको सुबह उठना था. इसलिए मैने सोने की जल्दी की थी. नही तो मैं तुमसे रात भर भी बात करती रहूं. तब भी मुझे नींद नही आएगी. लेकिन तुम्हे नींद क्यो नही आ रही. क्या तुम्हे कोई बात परेशान कर रही है."
मैं बोला "हाँ, मुझे एक बात बहुत परेशान कर रही है."
कीर्ति बोली "क्या बात है जान. मुझे बताओ. हो सकता है कि, मैं तुम्हारी परेशानी दूर कर सकूँ."
मैं बोला "मेरी कोई बात तुझसे छुपि नही है. मगर समझ नही पा रहा कि, ये बात तुझे कैसे बताऊ."
मेरी बात सुनकर कीर्ति की नींद उड़ चुकी थी. ऐसा मुझे उसकी बातों से समझ मे आ चुका था. उसने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली "जान ऐसी क्या बात हो गयी है. जिसे बोलने के लिए तुम्हे इतना सोचना पड़ रहा है. तुमको जो भी बात बोलना है. जल्दी से बोल दो. अब मुझे सच मे घबराहट हो रही है."
मैं बोला "बात ऐसी है कि, यहाँ एक लड़की को मुझसे प्यार हो गया है. वो हर हालत मे मुझे अपना बनाना चाहती है. उसकी इस बात से ही मेरी नींद उड़ गयी है."
मैं कीर्ति से बात कर रहा था और प्रिया मेरी गोद मे बैठी उसकी सारी बात अपने कानों से सुन रही थी. अभी हम लोगों की बात चल ही रही थी कि, तभी मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी. दरवाजे पर निक्की खड़ी हम लोगों को देख रही थी. उस पर नज़र पड़ते ही मैं थोड़ी देर के लिए सकपका गया.
लेकिन फिर मैने प्रिया को निक्की के दरवाजे पर खड़े होने का इशारा किया. प्रिया ने निक्की को दरवाजे पर खड़े देखा लेकिन वो मेरी गोद से उठी नही. उसने निक्की की तरफ देखा और उसे चुप रहने का इशारा कर अपने पास आने को कहा. निक्की भी हम लोगों के पास आकर खड़ी होकर बात समझने की कोशिश करने लगी. उधर से कीर्ति मेरी हँसी उड़ाते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली "जान ये तो अच्छी बात है. तुम हो ही ऐसे कि, हर लड़की तुम्हे अपना बनाना चाहती है."
मैं बोला "तुझे हँसी सूझ रही है, और इधर मेरी जान पर बनी हुई है."
कीर्ति बोली "तुम अपनी जान की चिंता मत करो. उसे कुछ नही होने वाला. तुम तो बस अपनी चिंता करो कि, दो दो लड़कियों को कैसे संभालोगे."
ये कह कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी. उसे हंसते देख मैने गुस्से मे कहा.
मैं बोला "मैं यहाँ परेशान हूँ और तुझे रात के 2:30 बजे मज़ाक सूझ रहा है. यदि मैं उसके साथ चला गया तो, रोती रह जाएगी."
मेरी बात सुन कर वो कुछ देर के लिए शांत हो गयी. फिर बड़े ही संजीदा होकर कहने लगी.
कीर्ति बोली "जान मैं नही जानती कि, वो लड़की कौन है. लेकिन यदि वो तुमको पसंद है और तुम उसे अपना बनाना चाहते हो तो, तुम्हे मेरी तरफ से पूरी छूट है. मैं तुम्हे किसी बात के लिए मना नही करूगी. तुम मुझे लेकर ज़रा भी परेशान मत हो. मैं तुमसे पहले ही बोल चुकी हूँ कि, तुम्हारी खुशी मे ही मेरी खुशी है."
मैं बोला "तू अपने आपको समझती क्या है. जब देखो तब मुझसे कहती रहती है कि, मैं जिसे चाहूं, उसे अपना बना लूँ. ये कैसा प्यार है तेरा. जो कभी मुझे किसी के पास जाने से नही रोकता. मुझे तो लगता है कि, तू मुझे प्यार ही नही करती."
कीर्ति बोली "जान मैं तुम्हे किसी का होने से रोक तो सकती हूँ. लेकिन क्या मैं तुम्हारे दिल मे किसी को रहने से रोक सकती हूँ. यदि मैं तुम्हे ज़बरदस्ती अपना बना भी लेती हूँ, और तुम्हारे दिल मे कोई दूसरा हो तो, तुम जिंदगी भर उसके लिए तड़प्ते रहोगे. क्या ऐसे मे मैं तुम्हे तड़प्ता देख कर खुश रह सकुगी. नही जान तब मैं तुम्हे पाकर भी नही पा सकुगी. यही वजह है कि, मैं कभी तुम्हे किसी का होने से नही रोकती. यदि तुम्हारे दिल मे मैं हूँ तो फिर मेरी जगह कोई नही ले सकता. लेकिन यदि कोई और है तो फिर उसकी जगह मैं नही लेना चाहती. मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हे खुश देखना चाहती हूँ. मुझे इस बात से फ़र्क नही पड़ता कि तुम्हारी खुशी की वजह मैं हूँ या कोई और है."
मैं बोला "तेरा प्यार बड़ा अजीब है. जो सब कुछ देना तो जानता है, पर कुछ लेना नही जानता."
मेरी बात सुन कर कीर्ति ठंडी साँस लेकर एक शायरी बोलने लगी.
कीर्ति बोली "
फूल से किसी ने पूछा.
तूने खुसबू दी तुझे क्या मिला.
फूल ने कहा लेना देना तो व्यापार है.
जो देकर कुछ ना माँगे वही तो प्यार है."
मैं बोला "बंद कर अपनी शायरी करना. मुझे ये बता कि, मैं उस लड़की की बात का क्या जबाब दूं."
कीर्ति बोली "इसमे सोचना क्या है. यदि वो लड़की तुम्हे पसंद नही है तो, उसे ना बोल दो और यदि पसंद है तो, उसे हाँ बोल दो. अब ये फ़ैसला तो तुम्हे ही करना है कि, वो तुम्हे पसंद है या नही है. इसमे तो मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकती."
मैं बोला "मुझे लगता है कि, मुझे भी उस से प्यार हो गया है. मैं सिर्फ़ तेरे से ये जानना चाहता हूँ कि, यदि मैं उसे हाँ कह देता हूँ, तब तू क्या करेगी."
कीर्ति बोली "मुझे क्या करना है. जो करना होगा. वो लड़की ही करेगी. मैं तो आराम की नींद सोउंगी. वैसे भी तुम्हारे जैसे बुद्धू के साथ रह पाना मेरे बस की बात नही है. तुम्हारे साथ तो कोई पागल लड़की ही रह सकती है. क्या मैं जान सकती हूँ कि, वो पागल लड़की कौन है. जिसने तुम्हे भी अपने प्यार मे पागल बना दिया है."
मैं बोला "हाँ क्यो नही जान सकती. वो लड़की कोई और नही रिया की छोटी बहन प्रिया है."
कीर्ति बोली "ये तो बहुत अच्छी बात है. वैसे भी प्रिया तुम्हे पहली ही नज़र मे भा गयी थी. अब तुम भी उसे अच्छे लगने लगे हो. अब तो तुम दोनो की खूब जमेगी. लेकिन देखो उसे मेरे बारे मे कुछ मत बताना. कहीं ऐसा ना हो कि, मेरी वजह से तुम लोगों का बन रहा रिश्ता टूट जाए."
मैं बोला "तू उसकी चिंता मत कर. वो तेरे बारे मे यही जानती है कि, तेरी सगाई पक्की हो गयी है और तूने मेरे साथ धोका किया है."
मेरी ये बात सुनकर कीर्ति गुस्से का नाटक करते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली "गुड, तुम लड़कों को ये बहुत अच्छी तरह से आता है कि, एक लड़की का प्यार पाने के लिए दूसरी लड़की को बेवफा बना दो. मैने तो ऐसा कुछ भी नही किया."
मैं बोला "तू कहती है तो, मैं उसे सारी सच्चाई बता देता हूँ. मुझे कुछ भी बताने मे कोई परेशानी नही है. मैं भला तुझे बेवफा बताकर क्यो किसी लड़की का प्यार पाना चाहूगा."
कीर्ति बोली "तुम सच मे ही बुद्धू हो. अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी. क्या अब मैं मज़ाक भी नही कर सकती. तुम्हे उसे कुछ भी बताने की ज़रूरत नही है. वो यदि मुझे बेवफा समझती है तो, मुझे इसमे कोई परेशानी नही है."
मैं बोला "तुझे सच मे मेरे उसके पास चले जाने से कोई दुख नही हो रहा."
कीर्ति बोली "नही, मुझे सच मे कोई दुख नही है. मेरे मन से तो एक बोझ उतर गया है. अब यदि मेरी कहीं शादी पक्की भी हो जाती है तो, मुझे मम्मी पापा का दिल नही तोड़ना पड़ेगा. कुछ भी हो वो मेरे पता पिता है. उनकी खुशी को पूरा करना मेरा फ़र्ज़ है. अब कम से कम मैं अपना फ़र्ज़ तो निभा सकुगी."
मैं बोला "मैं तो बेकार मे ही डर रहा था. अब मेरे मन से भी सारा बोझ उतर गया. अब मैं भी चैन से रह सकुगा."
कीर्ति बोली "अब यदि तुम्हारा बोझ उतर गया है तो, अब तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो. मुझे बहुत नींद आ रही है."
मैं बोला "ओके गुड नाइट."
कीर्ति बोली "गुड नाइट."
मगर कीर्ति ने गुड नाइट कहने के बाद भी कॉल नही काटा. तब मैने कहा.
मैं बोला "क्या हुआ. फोन क्यो नही रख रही."
कीर्ति बोली "नही आज मैं कॉल नही रखुगी. आज तुम कॉल रखो."
मैं बोला "लेकिन हमेशा तो तुम ही रखती हो."
कीर्ति बोली "हाँ हमेशा मैं ही फोन रखती हूँ. मगर आज मेरा मन फोन रखने का नही है. आज तुम ही फोन रखोगे."
मैं बोला "यदि तेरा मन बात करने का है तो, हम बात करते है. फोन रखने की ज़रूरत क्या है."
कीर्ति बोली "नही, मुझे बहुत नींद आ रही है. बस आज मेरा दिल फोन रखने का नही कर रहा है. प्लीज़ आज तुम फोन रखो ना."
मैं बोला "ठीक है. जैसी तेरी मर्ज़ी. गुड नाइट."
कीर्ति बोली "गुड नाइट."
इसके बाद मैने कॉल काट दिया और प्रिया की तरफ देखने लगा. प्रिया और निक्की बड़े ही गौर से मेरी और कीर्ति की बातें सुनने मे लगे थे. निक्की को ये सब बातें समझ मे नही आ रही थी कि, हम लोग ये क्या कर रहे है. इसलिए वो चुप चाप खड़ी होकर हमारी बातें सुन रही थी.
वही प्रिया अब भी कुछ सोच रही थी. शायद वो कीर्ति की बातों का कुछ मतलब निकालने की कोशिस कर रही थी. जब प्रिया थोड़ी देर तक कुछ नही बोली. तब मैने उस से कहा.
मैं बोला "क्या अब भी तुम्हे लगता है कि, तुम्हारा या मेरा प्यार इस लड़की के प्यार की बराबरी कर सकता है."
मैने जब कीर्ति का नाम लेने की जगह अपनी बात मे उस लड़की बोला. उस वक्त मैने निक्की की तरफ देखा. ताकि वो भी यदि कुछ कहे तो, कीर्ति का नाम ना ले. प्रिया मेरी बात को कुछ देर तक सोचती रही. फिर कहने लगी.
प्रिया बोली "मेरे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है. कोई लड़की ऐसे हंसते हंसते, अपने प्यार को खुद से जुदा करके कैसे इतने आराम से सो सकती है."
मैं बोला "तुम ये क्यो सोचती हो कि, वो सो गयी होगी. अभी तक वो मेरे सामने, अपने आँसू रोक कर रखी थी. अब वो फोन रखने के बाद रो रही होगी."
हमारी बात सुन कर अब निक्की से नही रहा गया. वो बीच मे बोल ही पड़ी.
निक्की बोली "आप लोगों ने, इतनी रात को ये क्या तमाशा लगा रखा है. किसी भोली भाली लड़की के जज्बातों के साथ खेलना, क्या कोई अच्छी बात है. आप लोगों को उसके प्यार का मज़ाक बना कर, क्या मिल रहा है."
मैं बोला "मैं उसके प्यार का मज़ाक नही बना रहा. मैं बस प्रिया को ये समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि, जो लड़की मुझे प्यार करती है. उसके प्यार की बराबरी ना तो, मेरा प्यार कर सकता है और ना ही प्रिया का प्यार कर सकता है."
मेरी बात सुन कर प्रिया मेरी गोद से उठ कर खड़ी हो गयी और गुस्से मे कहने लगी.
प्रिया बोली "तुम्हारे पास इस बात का क्या सबूत है कि, वो अभी सोई नही है और रो रही है. हो सकता है कि, उसे सच मे तुम्हारे जाने का कोई फरक ना पड़ा हो."
निक्की बोली "प्रिया आख़िर ये चल क्या रहा है. ये इन दोनो के आपस का मामला है. इस से तुझे क्या लेना देना है कि, ये दोनो क्या करते है और क्या नही करते."
निक्की अपनी बात बोलकर, गुस्से मे प्रिया को देखने लगी. उसे प्रिया की इन हरकत का मतलब समझ मे नही आ रहा था. मैं चाहता था कि निक्की को सब सच पता चल जाए. ताकि वो ही प्रिया को समझा सके. लेकिन प्रिया की स्थिति भी समझता था.
प्रिया पर इस समय मेरे प्यार का जुनून सवार था. वो जो कुछ भी कर रही थी. सिर्फ़ मेरा प्यार पाने के लिए ही कर रही थी. ये अलग बात थी की, उसका ये प्यार एक तरफ़ा था. फिर भी मैं प्रिया के प्यार की कदर करता था. इसलिए मैं चाहते हुए भी निक्की से कुछ ना बता सका. शायद ये कीर्ति के प्यार का ही असर था. जो मुझे प्रिया के दिल को ठेस लगाने से रोक रहा था.
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