RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
सूरजभान सिंग रामगढ लौटने के पश्चात मंत्री प्रताप सिंग को बुला कर राधा से हुई भेंट की जानकारी दी और कहा कि कल वे पूरे क़ाफ़िले के साथ कृष्णा नगर जाएँगे और राधा को पूरे सम्मान के साथ लेकर आएँगे. राधा की खामोशी ने उनके अंदर ये विश्वास जगा दिया था कि वह उन्हे क्षमा कर देगी.
अगले रोज़ सूरजभान सिंग एक छोटा मोटा क़ाफ़िला लेकर कृष्णा नगर के लिए रवाना हुए. कृष्णा नगर के समीप पहुँच कर क़ाफ़िले को रोक दिया और मंत्री प्रताप सिंग के साथ गाओं के अंदर परविष्ट हो गये.
दोनो घोड़े पर सवार बस्ती में पहुँचे तो उन्हे देखने वालों की भीड़ जमा होने लगी. छोटे बच्चे उनके पिछे हो लिए. एक जगह पर रुक कर सूरजभान ने घोड़े की लगाम खींची तो प्रताप सिंग घोड़े से उतर गया. एक बूढ़ा आदमी खड़ा बहुत गौर से इन्हे देख रहा था. वह उसी के पास पहुँचा.
"बाबा, यहाँ कोई राधा नाम की लड़की रहती है? उसके साथ उसका बूढ़ा बाबा हरीदयाल भी है. दोनो कुच्छ ही दिन पहले रामगढ से यहाँ आकर बसे हैं."
"कहीं आप उस आदमी की तो बात नही कर रहे हैं जो मूर्तियाँ बनाता है?"
"हां...हां वोही. हम उसी की बात कर रहे हैं." दोनो ने एक साथ कहा.
"वे लोग तो चले गये."
"कहाँ...?" सूरजभन ने चौंक कर पुछा.
"कुच्छ पता नही. इस बात का पता हमें कल रात चला जब मेरी पत्नी उनके लिए रोटी लेकर गयी."
"रोटी?"
"हाँ. केयी दिनो से उन्होने कुच्छ नही खाया था. हम उनकी मदद करना चाहते थे पर वे मुफ़्त में किसी प्रकार की सहायता लेना पसंद नही किए. इसलिए मैने उनसे भगवान कृष्णा की एक मूर्ति खरीद ली. दिन के वक़्त मैं खुद खाना बना कर उन्हे देने चला गया था. राधा को तो बुखार भी था. फिर भी पता नही क्यों वे लोग चले गये."
सूरजभान सिंग के दिल पर बिजली गिर पड़ी. उन्होने माथा पकड़ लिया. उनकी आँखें छलक पड़ी. वे खुद से बड़बदाए - "नही ऐसा नही हो सकता. राधा कहीं नही जाएगी. मैं उसे ढूँढ कर ही दम लूँगा. बस्ती-बस्ती, शहर-शहर, देश-विदेश वह जहाँ कहीं भी होगी मैं उसे खोज निकालूँगा. उसकी खोज में अपनी सारी दौलत लूटा दूँगा. पर उसे पाकर ही रहूँगा."
प्रताप सिंग ने उन्हे धीरज बँधाया. सूरजभान ने उस बूढ़े से भगवान कृष्णा की मूर्ति खरीद ली फिर दोनो पिछे लौट गये.
दीन बीते. केयी दिन बीते. लगभग एक वर्ष बीत गया. सूरजभान ने राधा की खोज में दूर दूर तक अपने आदमी भेजे पर उसका कहीं भी पता नही चला. सूरजभान राधा की याद में सुखते चले गये.
फिर वह दिन भी आया जब भारत का पुनर्जन्म हुआ. 15 अगस्त 1947. भारत गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद हो गया. सूरजभान तथा दूसरे सभी राजाओं की रियासत ख़त्म हो गयी. परंतु सूरजभान को इसका दुख नही था. उनके पास अभी भी इतनी दौलत थी कि उनके कयि पीढ़ियों तक को काम करने की ज़रूरत महसूस नही होने वाली थी. सूरजभान ने पूरे गाओं के लोगों में कंबल और अनाज बाँटे. लोग उनके बदले हुए स्वाभाव से हैरान थे.
कुच्छ दिनो बाद सूरजभान किसी काम से देल्ही गये. वह एक भीड़ भरे बाज़ार से गुज़र रहे थे कि तभी उनकी दृष्टि राधा पर पड़ी. उन्होने उसका घर तक पिछा किया. फिर लोगों से पुच्छ-ताछ भी किए. पता चला फादर फ्रांसिस नाम के किसी पादरी ने उन्हे रहने के लिए घर मूहाय्या कराया है. फादर फ्रांसिस एक नेक़ दिल इंसान थे. भूले भटकों को शरण देना उनके स्वाभाव में था. उनका अपना स्कूल और अस्पताल था. जहाँ मुफ़्त शिक्षा और मरीजों को मुफ़्त में इलाज किया जाता था.
सूरजभान सिंग फादर फ्रांसिस से मिलने उनके घर पहुँचे. उनसे मिलकर उनके सामने अपना हृदय खोल कर रख दिया.
"राजा साहेब, सुबह का भुला अगर शाम को घर लौटे तो उसे भुला नही कहते" फादर को उनसे सहानुभूति हुई - "मुझे राधा अपने बाबा के साथ सड़क पर बेहोंशी की हालत में पड़ी मिली थी. वे लोग कयि दिनों के भूखे प्यासे भी थे. मैं उन्हे अपने अस्पताल ले आया. उसका इलाज कराया. उसकी आप-बीती सुन कर मुझे उस पर बड़ी दया आई. अपनी कहानी सुनते समय राधा ने आपके विरुढ़ इतनी घृणा प्रकट की थी कि मैं खुद भी..." फादर कहते कहते चुप हो गये.
"उसने जो कुच्छ भी कहा वह सत्य ही है." सूरजभान ने गंभीर होकर कहा. - "वह कभी इस बात पर विश्वास करना ही नही चाहती कि मैं बदल चुका हूँ. इसलिए अब आप ही कोई ऐसा मार्ग बताएँ कि जिस पर चल कर मैं राधा का विश्वास जीत सकूँ. उसे अपना बना सकूँ."
"इसके काई रास्ते हैं." फादर ने कुच्छ सोचकर कहा. - "मेरा मतलब, राधा एक ग़रीब लड़की है. उसका बाबा एक खुद्दार आदमी है अकारण किसी की सहायता लेना पसंद नही करता. इसलिए आप चाहें तो उनकी परेशानी दूसरे तरीकों से हल कर सकते हैं. राधा के बाबा एक मूर्तिकार हैं आप चाहें तो उनकी मूर्तियाँ अपने किसी आदमी के ज़रिए अधिक से अधिक दाम देकर खरीद सकते हैं. उसे कोई अच्छा काम दे सकते हैं. आपकी जानकारी के लिए एक और बात बता दूं कि राधा आपके बच्चे की मा बन चुकी है. आप चाहें तो उस बच्चे को अच्छी ट्रैनिंग दिला सकते हैं. उसे पढ़ा सकते हैं. पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप दिलवा सकते हैं. आपके इस प्रकार की सहायता से राधा को किसी बात का ज्ञान भी नही चलेगा. भविश्य में जब कभी राधा को यह मालूम होगा कि आपने बिना किसी स्वार्थ के छिप छिप कर ऐसा किया है. उसका जीवन सुधर दिया. उसके बच्चे का भविश्य बनाने में कोई कमी नही रखी तो निसचिंत ही वह आपको क्षमा कर देगी और आपके पास चली आएगी."
"अफ ! बस...बस फादर. अब मैं सब समझ गया." सूरजभान तड़प कर बोले. उनकी आँखें खुशी से चमक उठी. फादर फ्रांसिस की सलाह को उन्होने दिल ही दिल में प्रशन्शा की. - "आपने जो जो कहा है, मैं वह सब करूँगा. उसकी खुशी के लिए ज़रूरत पड़ी तो अपना सब कुच्छ भेंट चढ़ा दूँगा. पर उसका विश्वाश जीत कर रहूँगा."
सूरजभान ने इस सहयोग के लिए फादर के अस्पताल के लिए एक मोटी रकम दान में दिया. फिर जाने के लिए उनसे आग्या माँगी. वह जाने के लिए मुड़े ही थे कि तभी उनकी नज़र सामने की टेबल पर रखी पत्थर की एक मूर्ति पर पड़ी. प्रभु जीसस की मूर्ति. वह पत्थर उन्हे जाना पहचाना सा लगा.
"फादर, क्या यह मूर्ति राधा के बाबा की बनाई हुई तो नही है?"
"आपका अनुमान सही है." फादर मुस्कुरा कर बोले. - "यह मूर्ति राधा के बच्चे के जन्म के बाद उसके बाबा ने मुझे भेंट की थी."
"अगर आपको इस मूर्ति की अधिक ज़रूरत नही है तो मुझे दे दीजिए"
"ओह्ह ! ज़रूर...ज़रूर." फादर ने तुरंत उस मूर्ति को उठा कर उनके हाथ में थमा दिया. - "लेकिन क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ?"
"बस यूँ समझ लीजिए कि मैं राधा से संबंधित हर चीज़ को अपने पास रखना चाहता हूँ. आप निश्चिंत रहें, हमारी जाती से यीशू मसीह के व्यक्तित्व को कभी भी ठेस नही पहुँचेगी. हम सभी धर्मों का आदर करते हैं."
फादर के होंठ मुस्कुरा उठे. - "राधा के प्यार ने आपको बहुत ज़ज़्बाती बना दिया."
सूरजभन हल्के से मुस्कुरा दिए. फिर उनसे हाथ मिला कर बाहर निकल गये.
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