RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
"यह सच है राधा." उन्होने गंभीर होकर कहा - "यह बात तुम उसी से पुछ लेना. मैने उसका दिल टटोला तो उसने स्पस्ट शब्दों में कह दिया कि अब वह तुम्हे किसी भी अवश्था में स्वीकार नही करेगा."
राधा का दिल टूट गया. वह सिर झुकाए सिसक पड़ी.
"राधा, मुझे क्षमा कर दो. तुम चाहो तो मैं तुम्हे अपनी पत्नी बनाने को तैयार हूँ."
"पत्नी...!" राधा ने त्रिशकृत भाव से कहा - "भारतीय नारी एक ही बार पत्नी बनती है. और वह मैं बन चुकी हूँ. भोला की पत्नी. मेरी सगाई उसके साथ बचपन में ही हो चुकी है."
"लेकिन अब वह तुम्हे नही अपनाएगा."
"मैं खुद भी अपना सब कुच्छ लूट जाने के बाद उसके पास नही जाना चाहती. खास कर ऐसी अवश्था में जबकि उसने मेरे दिल को सख़्त ठेस पहुँचाई है. लेकिन मैं मरना भी नही चाहती. मैं अपने खानदान की आखरी निशानी हूँ. मैं ज़िंदा रहूंगी और ज़िंदा रह कर यह देखना चाहती हूँ कि ऐसे आदमी का क्या हश्र होता है जिसने अपने आनंद के लिए मेरा खानदान लूट लिया."
"राधा...!" सूरजभान की पलकें भीग गयी. राधा की बातें बरच्छियों की तरह उनके दिल पर चुभने लगी. वह बोले - "क्या इस संसार में मेरे लिए कोई ऐसा प्रय्श्चित नही जिसके कारण तुम मुझे प्यार ना सही क्षमा ही कर सको?"
"हरगिज़ नही."
"मेरा विश्वास करो राधा. मैं तुम्हे चाहता हूँ, तुमसे प्यार करता हूँ. तुम्हारी खुशी के लिए अपना सब कुच्छ भेट चढ़ा देना चाहता हूँ. अपना राज्य, राजमहल सब कुच्छ त्याग दूँगा. चाहें तो मुझे आज़मा लो, मेरी परीक्षा ले लो. मैं कभी भी तुम्हे निराश नही करूँगा."
"यदि ऐसी बात है तो मुझे आज़ाद कर दीजिए. मैं अपने बाबा के पास जाना चाहती हूँ." राधा ने यहाँ से बच निकलने का रास्ता ढूँढा.
सूरजभान के दिल पर निराशा ने दूसरी बात की. - "ठीक है राधा. तुम अपने घर जा सकती हो. अब मैं तुम पर कोई दबाव नही डालूँगा."
सूरजभन ने ताली बजाई. तत्काल एक आदमी भीतर आया.
"इन्हे सुरखित महल से बाहर छोड़ आओ." उन्होने अपने आदमी को आदेश दिया.
राधा गुप्त रास्तों से होती हुई महल से बाहर निकल गयी.
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