RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
"राजा साहेब...!" राधा ने भीगे स्वर में तड़प कर कहा. - "मैं आपको कभी क्षमा नही करूँगी. मरते दम तक नही. आप इंसान नही शैतान हैं. आपने मुझे शादी के मंडप से उठावाते हुए यह नही सोचा था कि मेरा बूढ़ा बाबा मर जाएगा. अनगिनत लोगों का दिल टूट जाएगा. राजा साहेब भगवान कुच्छ नही देखता है. सब्र करते हुए सबकी सुनता है. देख लीजिएगा दौलत का यह घमंड एक दिन चूर चूर हो जाएगा. आप कहीं के नही रहेंगे. मेरी सिसकियाँ आपको खा जाएँगी. मेरी आहें इस खूबसूरत हवेली को खंडहर बना कर रख देंगी."
"राधा...!" सूरजभान ने सब्र से काम लिया. - "कल किसने देखा है? लेकिन फिर भी यदि मैं अपने पापों का पश्चाताप कर लूँ तो क्या तब भी तुम मुझे क्षमा नही करोगी?"
"कभी नही." राधा अटल मन से बोली - " बल्कि मैं चाहूँगी कि भगवान तुम्हे ऐसी जगह मारे जहाँ तुम पानी की एक बूँद को भी तरस जाओ. तुम्हे चिता भी नसीब ना हो. तुम्हारे शरीर को गिद्ध और कोव्वे नोच-नोच कर खा जाएँ."
"नही राधा नही. मुझसे इतनी नफ़रत ना करो कि मेरा जीना मुश्किल हो जाए. तुम्हे मुझे क्षमा करना ही होगा. मैं अपने पापों का ऐसा ही प्रायश्चित करूँगा."
राधा कुच्छ कहती उससे पहले ही मंत्री प्रताप सिंग की आवाज़ सूरजभान सिंग के कानों से टकराई. - "महाराज, गाओं से फरियादी आए हैं."
"तुम इन्हे रंगमहल पहुँचा दो. हम अभी आते हैं." सूरजभान सिंग ने अपनी स्थिति संभाल कर राधा की तरफ इशारा किया.
मंत्री प्रताप सिंग राधा को रंगमहल में छोड़ कर चला गया. राधा आकर पलंग पर बैठ गयी. पैरों को उपर समेटकर उसने घुटने के चारों और अपनी बाहें लपेट ली. और गर्दन झुका कर एक गाल घुटने पर रख लिया. उसके मानस-पटल भोला की ताश्वीर घूम गयी. उसनकी पलकों से आँसू छलक पड़े - " भोला...!" उसके होठों से एक आ टॅपकी. - "तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया? क्यों नही अपनी जान की बाज़ी लगा कर मुझे बचा लिया?" वह सिसक पड़ी.
सहसा उसने कदमों की चाप सुनी तो अपने विचारों से जागी. उसने देखा सूरजभान सिंग पधार रहे हैं. शाही लिबास में लंबा चौड़ा शरीर बहुत खिल रहा था. वह राधा के समीप ही आकर खड़े हो गये. राधा ने घृणा के कारण अपनी पलकें दूसरी ओर फेर ली.
"गाओं वाले अपनी फरियाद लेकर आए थे." उन्होने कहा. - "कल रात कुच्छ लुटेरों ने उनके झोपड़ो में आग लगा दी है."
राधा उसी प्रकार बैठी रही. घृणा से मन ही मन उसे कोस्ति रही. गाओं वाले लूटेरे को जान कर भी अंजान थे. फरियाद भी लाए तो लूटेरे के पास.
"मैने उन सभी को ही मूह माँगी कीमत दे दी है. इसलिए कि इन लूटेरों से मैं उनकी हिफ़ाज़त नही कर सका. मैने उन्हे समझा दिया है कि अब यहाँ कोई लूटेरा नही आएगा. मैने भोला की माँग भी पूरी कर दी है."
राधा की भीगी पलकें उपर को उठी. उसने आश्चर्य से सूरजभान को देखा.
"हां...!" वह बोले - "उसने तुम्हारी कीमत पंद्रह हज़ार लगाई. कहने लगा डाकुओं ने राधा को उठा लिया. मंडप में आग लगा दी. दहेज को आग में फेंक दिया. पाँच हज़ार रुपये साथ ले गये. मैं जानता हूँ, मेरे लोगों को ऐसा साहस कभी नही होगा. रुपये तो वह जितना चाहें मुझसे ले सकते हैं. परंतु मैं चुप ही रहा. तुमको भूलने के लिए उसने पंद्रह हज़ार रुपये की माँग की जो मैने तुरंत पूरी कर दी."
"पंद्रह हज़ार...!" राधा के होंठों से अचानक ही निकल गया. राधा को भोला पर बहुत क्रोध आया. जीवन भर उससे प्यार करने का दावा करने वाला केवल पंद्रह हज़ार में ही फिसल गया. उसके प्यार के सहारे ही तो उसने सूरजभान की ईट से ईट बजा देने की ठानी थी. परंतु यह सब क्या हो गया? भोला इतनी जल्दी बदल गया. यदि भोला इतनी जल्दी बदल गया तो भला दूसरे लोग उसका साथ क्यों देने लगे. फिर भी उसने सूरजभान की बातों के उत्तर में कहा - यह झूठ है. भोला कभी भी मेरी कीमत नही लगा सकता."
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