Kamukta Story कांटों का उपहार
कांटों का उपहार
लेखक-रानू का बहुचर्चित उपन्यास
रामगढ़ का इलाक़ा. दूर दूर तक फैला हुआ. सुबह की किरणें चप्पे चप्पे पर अपना जाल बुन चुकी थी. बच्चो ने धूप और मिट्टी से खेलना आरंभ कर दिया था.
वातावरण स्वच्छ था। नीले गगन की चादर पर पक्षी उन्मुक्त उड़ रहे थे। किसान अपने हल संभाले बैलों की जोड़ी सहित खेतों पर निकल चुके थे। ऊबड़- खाबड़ पगडंडियां, टेढ़े- मेढ़े रास्ते, छोटे-बड़े झोपड़े, खपरैल के मकान, ईंट और पत्थर के मकान।
और राधा, राजा सूरजभान सिंग के बगल में उनके राजमहल की सबसे उँची मज़िल पर एक किनारे खड़ी इस कस्बे का नक़्शा आज पहली बार देख रही थी जिसकी वह एक साधारण सी गोरी थी. पलकों पर आँसू झिलमिला रहे थे. जिसके चारो और फैला काजल उसके जीवन के समान अंधकारमय बन चुका था. माथे पर सिलवटें थी. माथे की बिंदिया उजड़ी हुई, लटे बिखरी, होठ सूखे, ब्लाउस के बटन टूटे हुए, कपड़े केयी जगह से फटे हुए. उपर से देखने पर वह उसी नदी की तरह गंभीर और शांत थी जिसकी गोद में अनगिनत अरमानों की लाशें दम तोड़ कर चुप चाप बैठ जाती है.
"यह देख रही हो राधा?" सूरजभान ने हाथ के इशारे से पूरब दिशा की ओर इशारे करते हुए कहा - "यह सारा इलाक़ा जहाँ तक तुम्हारी दृष्टि जा रही है सब हमारा है. मेरा है." उन्होने शब्द 'मेरा' पर विशेष ज़ोर दिया. - "मैं राजा हूँ और यहाँ के लोग मेरी प्रजा. यह सब मैं तुम्हे दे दूँगा. तुम्हारे कदमो में बिच्छा दूँगा"
राधा कुच्छ नही बोली केवल सामने देखती रही, जहाँ कुच्छ ही दूरी पर एक विशाल पेड़ था. इसकी जड़ में सेमेंट का एक चबूतरा बना हुआ था जिसकी सतह पर खून से अनगिनत बेगुनाहों की कहानी लिखी हुई थी. उसने अपनी आँखें बंद कर ली और होठ भिच लिए. उसकी आँखों में एक तश्वीर घूम गयी. उसकी बड़ी बेहन कम्मो की. कम्मो तीन वर्ष पहले सूरजभान के पिता विजयभान सिंग की वासना का शिकार हो गयी थी. और फिर किसी को अपना मूह ना दिखा सकने के कारण उसने एक रात इसी पेड़ की टहनी से लटक कर फाँसी लगा ली थी. सुबह जब उसके बापू ने इंसाफ़ माँगते हुए दुहाई दी तो विजयभान ने उसी पर झूठा इल्ज़ाम लगा कर उसे मौत की नींद सुला दिया था. इस अंजाम को देख कर गाओं वालों के दिल में विजयभान सिंग का डर समा गया था. ग़रीब गाओं वाले उसके ज़ुल्म सहने पर विवश थे. रात दिन चुप चाप एक ही दुआ माँगा करते थे कि ईश्वर उसे इस धरती से उठा ले. और ऐसा हुआ भी. ईश्वर ने गाओं वालों की दुआओं को सुन लिया. वह दो माह पहले ऐसे बीमार हुए कि फिर उठ ना सके. उनके मरने पर गाओं वाले बहुत खुश हुए. पर यह खुशी बहुत थोड़े समय के लिए थी. उसके स्थान पर उसका बेटा सूरजभान सिंग आ बैठा. सूरजभान सिंग बचपन से लंडन में रहे थे. वह भी अपने बाप दादाओं की तरह विलासिता में किसी भी प्रकार से कम नही थे.
एक रोज़ सूरजभान मंत्री प्रताप सिंग के साथ किसी काम से शहर जा रहे थे. तभी उनकी नज़र राधा पर पड़ी. राधा भोला के साथ थी. भोला उसके बचपन का साथी था. बचपन में ही उनके माता पिता ने उनकी मँगनी कर दी थी. राधा सूरजभान सिंग की गाड़ी की आवाज़ सुन कर भोला के साथ खेत की मेड़ की आड़ में छिप गयी. परंतु फिर भी सूरजभान सिंग की नज़र से खुद को नही बचा पाई. पहली ही नज़र में उसकी कयामत ढाती जवानी सूरजभान सिंग के दिल में उतर गयी. सूरजभान सिंग उस समय जल्दी में थे. प्रताप सिंग से उसके बारे में थोड़ी पुछ-ताछ करके अपने रास्ते बढ़ गये. चौथे दिन जब वह शहर से लौटे तो उसी दिन राधा की भोला के साथ शादी थी. उन्होने उसी रात अपने डाकू भेज कर राधा को मंडप से उठवा लिया और बल पूर्वक उसके शरीर को भोगा.
राधा ने सूरजभान सिंग को दिल से बद-दुआ दी. उसका बस चलता तो वह उसका मूह नोच लेती. लेकिन ग़रीब लड़की थी-केवल तड़प कर रह गयी.
सूरजभान सिंग के दिल को चोट पहुँची. उन्होने राधा की बाँह थामी और उसे दूसरी ओर ले गये. पश्चिम दिशा की ओर...! काफ़ी दूर कुच्छ एक ताड़ के पेड़ों पर गिद्ध बैठे हुए दिखाए पड़ रहे थे. उन्होने फिर कहा - "वह उन ताड़ के पेड़ों से भी बहुत दूर, जहाँ तुम्हारी नज़र भी नही पहुँच सकती. सब हमारा है. मैं यह सब कुच्छ तुम्हे दे दूँगा. तुम्हे इस इलाक़े की रानी बना दूँगा. यहाँ के निवासी तुम्हारी प्रजा होंगे. लेकिन एक शर्त...मुझे क्षमा कर दो. मेरे प्रति अपने दिल में जगह बना लो. अपनी उदासी भूल कर एक बार मुस्कुरा दो. मुझे इस संसार में और कुच्छ भी नही चाहिए. तुम खुद खुद जानती हो मुझे संसार में किसी चीज़ की कमी नही रही है. मैने जो कुच्छ भी चाहा वह एक इशारे पर मेरे कदमों में आ गिरा. परंतु कल रात तुम्हारे शरीर को अपनाने के बाद ही ना जाने क्यों मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानों मैने तुम पर बहुत ज़ुल्म किया है. तुम्हारी इन काली आँखों में जाने कैसा जादू है की इनके प्रतिबिंब को देख कर मेरे अंदर का मानव जाग उठा है. मेरे अंदर की इंसानियत मुझे धिक्कार रही है. राधा...क्या तुम मुझे क्षमा करके मुझे एक नया जीवन जीने का मौक़ा नही दोगि?"
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