RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
वॉल क्लॉक ने रात्रि के एक बजने की सूचना दी तो डॉली ने करवट बदली और उठ गई।
आंखों में नींद का नाम न था। शाम राज एवं शिवानी का वार्तालाप उसने सुना था। राज उससे विवाह करना चाहता था। शिवानी भी यही चाहती थी। यूं राज के अंदर उसने कोई बुराई न देखी थी। वह पढ़ा-लिखा था, सुंदर था। दोष था तो केवल यह कि वह विकलांग था, किन्तु उसका विकलांग होना मात्र एक दुर्घटना थी। फिर भी राज का निर्णय उसे पसंद न आया था। इस संबंध में उसने कई बार अपने हृदय को टटोलकर देखा था और तब यह पाया था कि वह जय के अतिरिक्त अन्य किसी को कभी नहीं चाह सकेगी। न जाने प्रीत की ऐसी कौन-सी डोरी बंधी थी जय से। न जाने जय में ऐसा क्या था कि वह केवल एक ही मुलाकात में हमेशा के लिए उसकी हो गई थी।
डॉली के सामने अब ऐसी कोई विवशता भी न थी जिसके लिए वह राज से विवाह करती। अब तो अपनी राह उसने खोज ली थी। सोचा था-कहीं-न-कहीं कोई नौकरी उसे मिल ही जाएगी।'
तभी कोई पीछे से उसके कंधे पर झुका और उसने धीरे से कहा- 'क्यों लगा लिया न रोग?'
डॉली ने चौंककर देखा-यह शिवानी थी जो हमेशा उसी के साथ सोती थी। शिवानी ने उससे फिर कहा- 'क्यों नाम भी नहीं बताएगी उस जालिम का?'
'नींद नहीं आई?' डॉली ने पूछा।
'आई तो थी।'
'फिर?'
'तुझे बैठे देखा तो टूट गई।'
'मैं तो यूं ही।'
'सिर में दर्द होगा-है न?'
'हां।'
'और दिल में भी।' शिवानी हंस पड़ी।
'तंग न कर।'
'अभी तक नाराज है क्या? मैंने तो अपने अपराध की क्षमा भी मांग ली थी।'
'वह कोई अपराध न था।' डॉली ने कहा और लेट गई।
तभी शिवानी ने उसे अपनी ओर खींच लिया और बोली- 'एक बात पूछनी थी तुझसे।'
'वह क्या?'
'भैया तुझे कैसे लगते हैं?'
....
'क्यों?'
'यूं ही पूछ बैठी।'
'इसमें पूछने की क्या बात है? अच्छे हैं।'
'न जाने भैया को क्या हो गया है।'
'क्या हुआ?'
'उन्हें कोई लड़की पसंद ही नहीं आती।'
'यह तो उनके मन की बात है। इसमें मैं क्या कर सकती हूं।' डॉली ने शुष्क लहजे में कहा और करवट बदल ली।
शिवानी ने उस पर झुककर कहा- 'तू चाहे तो उन्हें समझा सकती है।'
'ना बाबा! मैं ऐसे किसी चपड़े में नहीं पड़ती। और वैसे भी यह तो उनका अपना निजी मामला है।'
शिवानी समझ न पाई कि अपने मन की बात किस प्रकार कहे। उसे यह भी भय था कि कहीं डॉली उसकी बात सुनकर नाराज न हो जाए। कुछ क्षणोपरांत वह बोली- 'एक बात पूछू?'
'वह क्या?'
'तूने अपने विषय में तो कुछ सोचा होगा?'
'अभी तो अपने पैरों पर खड़े होने की बात सोची है।'
'उसके पश्चात?'
'यह अभी नहीं सोचा।'
'विवाह तो करेगी?'
'नहीं, जीवन-भर नहीं।'
'ऐसा कैसे हो सकता है।' शिवानी ने कहा 'अब नहीं तो फिर शादी तो तुझे करनी ही पड़ेगी।'
'अभी ऐसी आवश्यकता नहीं। कभी होगी तो सोच लूंगी। अब तू मेरा पीछा छोड़ और सोने दे।'
'ऊंडं! अभी नहीं।'
'देख मुझे नींद आ रही है।'
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