RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
जोगलेकर ने भी अपनी गलती को महसूस किया। वह खाली बैग को अभी-भी सीने से लगाकर रखे हुए था जबकि काम होते ही उसने उसे कहीं फेंक देना चाहिए था।
"अब्बी का अबी तुमेरा बैग खाली...इसका अंदर कोई भूत-प्रेत होएला था क्या?" जग्गू जगलर उसकी ओर शंकित दृष्टि से देखता हुआ बोला-"जो पलक झपकते जिनी का माफिक उड़न छू हो गयः...ऐ! क्या! जग्गू बगलर की नजर चील की नजर से चास्तीं तेज है।"
"वो...उसके अंदर दावत का खाना था। दरअसल मै धन सेठ की दावत में जा नहीं सका तो उसने तमाम सारा खाना पैक करके भिजवा दिया। मैंने सोचा कि खाना खराब न हो जाए-इसलिए उसका घर पहुंचना भी जरूरी है। यहां का कुछ पता नहीं कितनी देर लग जाए।"
"कौन धन्नू सेठ...?"
"वही...साकी नाके वाला। कबाड़ का काम करता है न?"
"अपुन नेई जानता।" "
है उधर...साकी नाके में।"
"होएगा तो अपनु कू क्या करने का...अबी तू इधर का बोल। सब बरोबर है न...?"
"हां...सब ठीक है। छोटा सावन्त आ जाए तो उसे और दिखा लेना का...बसा।"
सिर हिलाता जग्गू जगलर वहां से आगे बढ़ गया। उसके जाते ही जोगलेकर ने सबसे पहला काम उस बैग को ठिकाने लगाने का किया। उसे लगा कि अगर अचानक ही सटीक चहाना उसके द्वारा फिट न हो गया होता तो सब गड़बड़ हो जाती।
जग्गू जगलर का उस वक्त संतुष्ट होना बेहद जरूरी था।
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अन्टाप हिल कोठी नम्बर वन-वन नाइन के फाटक पर राज की कार को सेकने की कोशिश की गई मगर राज उसे तेज रफ्तार से दौड़ाता हुआ सीधा कोठी के ड्राइन वे के मध्य में रुका।
आनन-फानन कई गनर दौड़कर उसकी कार के गिर्द जा पहुंचे।
"बाहर निकल...आज जग्गू जगलर तेरे से सास अगला पिछला हिसाब बरामर कर डालेगा...क्या! जग्गू जगलकर वो चीज है जो किसी की उधारी बाकी नेई रखता...अक्खी उधारी चुकता कर डालता...निकल बाहर कू।" वह विषाक्त स्वर में बोला।
"अपने बाप से पूछकर आया न...।" राज कार से बाहर निकला। उसने एक नजर चारों से तनी हुई गनों पर इस प्रकार डाली मानो गनों के स्थान पर फूल मालाओं को देख रहा हो। उसी अंदाज में उसने अपने लिए सिगरेट सुलगा ली। फिर वह कहने लगा "रंजीत सावन्त को अगर बाप मानता हो तो उसे और धरम सावन्त को बाप समझता हो तो उसे जाकर बोल कि उसका बाप आया है। पुरानी मार अगर भूला न हो तो काम फुर्ती से कर। कहीं ऐसा न हो कि टाइम पूरा हो जाए और मैं यहां से चलता बनूं
जोगलेकर पीछे था।
मगर अचाम्भित था क्योंकि वह इतना पीछे भी नहीं था कि उस तक राज की नजर पहुच न पाती। उसकी नजर एक पल के लिए भी जोगलेकर के ऊपर न ठहरी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने जोगलेकर को कभी देखा ही न हो।
"अब तू जाएगा है तो जाएगा किधर...ये जग्गू जगलर का ठिकाना है। इधर आदमी आता अपनी मर्जी से पन जाता अपुन का मर्जी से...तू डंडा चला को भी कुछ नेई कर सका....अपुन तेरे कू इधरिच खोल डालेगा...अब्बी का अबी!"
__ "बाप लोग से पूछा क्या...बिना पूछे कोई काम बिगाड़ेगा तो तेरा क्या होगा मालूम तुझे...मुझे मालूम मैं तुझे तेरे बारे में बताता हूं। तू बिना पूछे कोई कदम उठाएगा तो रंजीत तेरा भेजा निकाल डालेगा। तेरी तिक्का बोटी कर डालेगा...साले सांड! तू अपने आपको समझता क्या है।"
राज जैसे ही उसकी ओर लपका, वह उल्टे कदमों से वापस भाग निकला।
तमाम गनर अचम्भित रह गए जब उन्होंने देखा कि एक निहत्थे आदमी से डरकर जग्गू जगलर जैसी शातिर भाग खड़ा हुआ।
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फिर भी उन लोगों ने एकजुट होकर जब गने तानी तब जाकर राज रुका।
___ "तुम्हारे बड़े बाप ने मुझे यहां बुलाया है। पूछताछ कर लो...कहीं ऐसा न हो, मुझे रोकने के चक्कर में तुम्हारी नौकरी जाती रहे।"
इसी बीच जग्गू जगलर की पोर्टिको के समीप पुन: वापसी हुई।
"आने दो उसे...बड़े साहब बुला रहे हैं।" वह वहीं से चिल्लाकर बोला।
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