RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
और शुभ समाचार के लिए अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। वह दिन आ ही पहुंचा जब लेडी डॉक्टर ने धीरे-से कमरे के किवाड़ खोले। राज उसे आश्चर्य भरी दृष्टि से देख रहा था। वह मुस्कराकर बोली, 'राज बाबू, बधाई हो! लड़का हुआ है!'
"डॉली कैसी है?'
"सब ठीक है।' लेडी डॉक्टर ने देखा कि यह शुभ समाचार सुनकर राज के मुख पर कोई विशेष प्रसन्नता न आई। उसने सोचा शायद शरमाता है, 'आप अंदर जा सकते हैं।' उसने मुस्कराते हुए कहा।
कोई बात नहीं। राज यह कहते हुए दूसरे कमरे में चला गया। इस प्रकार बीस दिन बीत गए, परंतु राज बच्चे को न देखने गया। डॉली ने यह सब देखा और सिटपिटा-सी गई। फिर क्रोध में भर उठी और राज के पास पहुंची। राज ने उसे देखकर मुंह फेर लिया। 'क्या पूछ सकती हूं कि यह बेरुखी क्यों है?'
'डॉली मैं कुछ दिनों से परेशान हूं, मुझे अकेला छोड़ दो।'
'यह तुम्हें क्या होता जा रहा है? आखिर मैं भी कोई हूं। मुझे भी पता चलना चाहिए।'
'तुम्हें अब यह पूछने का अधिकार नहीं रहा।'
राज का यह उत्तर सुनते ही डॉली का सिर चकरा गया। वह फिर संभली और बोली, 'मेरा अधिकार तो समाप्त हो गया परंतु उस अबोध बालक का क्या अपराध है जिसे तुमने अपनी गोद में अभी तक नहीं लिया? भला ऐसे कठोर हृदय पिता भी होते हैं?'
'तुम सच कहती हो। एक पिता को इतना कठोर हृदय न होना चाहिए। आज्ञा हो तो बुलाऊं इसके पिता को।'
'राज!'
'ठीक कह रहा हूं। बधाई तो अवश्य आई थी परंतु बेचारा स्वयं चलकर न आ सका। शायद लंगड़ी टांग से यह चढ़ाई नहीं चढ़ सकता।'
डॉली स्तब्ध रह गई। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। उसे लगा, अब वह एक क्षण भी अपने को संभाल न सकेगी। वह गिर पड़ी और बेहोश हो गई।
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बरसात की एक तूफानी रात थी। बादल गरज रहे थे। राज अपने कमरे में सो रहा था। दूसरे कमरे में डॉली खिड़की में बैठी चुपचाप कुछ सोच रही थी। वह बहुत उदास थी। राज द्वारा लगाए गए इस आरोप ने उसे असीम दुःख पहुंचाया था। उसका हृदय रो रहा था परंतु आंखों में एक भी आंसू न था। लगता था कि वह सब आंसू पी चुकी हैं और आंखें पथरा चुकी हैं। वह पथराई आंखों से कभी बाहर तूफान को देखती और कभी पालने में पड़े नन्हें बालक को देखती। डॉली ने बरसात के सात दिन और सात रातें इसी प्रकार ऐसे ही बैठे बिता दी। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से इतनी घृणा कर सकता है, वह यह न जानती थी। उसके सामने बार-बार मुंडेर का वह दृश्य आता और राज काले कपड़े पहने उसे मृत्यु का निमंत्रण देता दिखाई देता। वह यह देख मुस्करा देती। अब उसे ऐसी बातें भयभीत न कर सकती थी।
एक रात जब राज अपने कमरे में बैठा था तो उसने डॉली की आवाज सुनी। वह चौंक पड़ा। डॉली कह रही थी, 'मैं कल बंबई जा रही हूं।'
राज ने मुड़कर देखा, डॉली निर्भय होकर उसके सामने खड़ी थी। राज चुपचाप उसे देखता रहा। वह फिर बोली, 'यदि आप चाहें तो कुसुम को भी साथ ले जाऊं?'
'परंतु अचानक यह क्या सूझा तुम्हें?'
'मैं आज्ञा लेने नहीं, सूचना देने आई हूं।'
राज एकटक उसके मुख की ओर देखता रहा। वह अनुभव कर रहा था कि अब उसे डॉली को रोकने का कोई अधिकार नहीं और न ही उसमें अब इतना साहस है। राज को मौन देखकर डॉली ने फिर पूछा, 'तो आपने कुसुम के बारे में क्या सोचा?'
कुछ देर चुप रहकर राज बोला, 'वह तुम्हारे साथ नहीं जा सकती।' यह कहकर राज सामने की खिड़की की ओर देखने लगा।
डॉली वहां से जा चुकी थी। डॉली ने दसरे दिन रात की गाडी से जाने का निश्चय किया। जब जाने का समय आया तो वह राज से मिलने गई। राज अपने कमरे में अकेला बैठा मानों इसी समय की प्रतीक्षा कर रहा था। डॉली अंदर आई, तो उठ खड़ा हुआ। डॉली बोली, 'तो मैं जा रही हूं।' उसने एक अटैची केस मेज पर रखते हुए कहा, 'ये मेरे गहने हैं। जब कुसुम बड़ी हो और उसका विवाह करने लगें तो मेरी ओर से यह कह देना कि तुम्हारी मा ने मरते समय यह तुम्हारे लिए दिए थे।' यह कहकर डॉली उस ओर बढ़ी जिधर कुसुम सो रही थी। यह अच्छा हुआ कि कुसुम इस समय सो रही है। नहीं तो मुझे इतनी सरलता से न जाने देती। यह कहते ही उसने कुसुम को चूम लिया।
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