XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
05-30-2020, 02:07 PM,
#63
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
यह सुनते ही डॉली की आंखों में आंसू उमड़ आए और वहां से उठकर कमरे में चली गई। कमरे में डॉली बिस्तर पर औंधी लेटी चादर से लिपटकर रो रही थी।

शंकर उसके पास जाकर बोला, 'तुम रोने क्यों लगी?'

"कुछ नहीं। चलिए बाहर चलें।' "क्या करेंगे आप पूछकर?'

'आपकी इच्छा। मैंने तो एक हितैषी के नाते पूछा था। अपने आंसू पोंछ डालिए, राज भैया आने वाले होंगे।' शंकर ने जेब से रूमाल निकालकर डॉली की ओर बढ़ाते हुए कहा।

'मैं आ गया हूं।' राज की आवाज सुनकर डॉली कांप उठी। रूमाल उसके हाथ से गिर गया। शंकर ने नीचे झुककर रूमाल उठा लिया और राज की ओर देखकर बोला, 'आओ राज, आज बहुत देर से आए!' शंकर मुस्करा रहा था।

डॉली ने देखा कि शंकर के मुख पर किसी प्रकार की घबराहट न थी। न उसका चेहरा डॉली की भांति पीला ही पड़ा था। उसके चेहरे पर वही आभा थी जो पहले थी। राज ने डॉली को तिरछी नजर से देखा। डॉली सहम गई। उसे लगा मानों राज उसे शंकित होकर देख रहा है।
'यह सहानुभूति और रोने का नाटक कैसा हो रहा था?'राज ने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।

'ऐसे ही कुछ बीती बातें याद याद करके रोने लगीं।' शंकर ने उत्तर दिया।


"क्यों डॉली, क्या याद आ रहा है जो....'

'कुछ नहीं। इन्होंने घुड़सवारी की बात छेड़ी तो मुझे वे दिन याद आ गए जब मैं घुड़सवारी किया करती थी।' डॉली ने बात काटते हुए कहा।

शंकर उसकी ओर आश्चर्य भरी दृष्टि से देखने लगा।

'तो तुम प्रसन्नता से यहां भी सवारी कर सकती हो, किसी ने रोका तो नहीं है।'

'अवश्य। राज भैया, मैं तुम्हें कहने ही वाला था कि इससे डॉली का मन भी लगा रहेगा?'



'परंतु तुम्हें यह कैसे पता चला कि डॉली उदास है?'

'अनुभव किया है परंतु निश्चय से नहीं कह सकता।'

'अच्छा तो फिर सवारी का प्रबंध हो जाए।'

'बहुत अच्छा।'

'परंतु दो नहीं, तीन घोड़ों का। मैं भी चलूंगा।'

'तुम तो जा ही रहे हो। तुम्हारे बिना भला डॉली किस प्रकार जाएगी? अच्छा अब मैं चलता हूं, देर हो रही है।'

'खाना बिल्कुल तैयार है।'

"फिर कभी सही। अब आज्ञा चाहता हूं।'

'तुम्हारी इच्छा।' राज ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा और शंकर चला गया।

'कुसुम कहां है?'

'सो रही है।'

'डॉली!'

'जी!'

'अपना दुखड़ा सुनाकर उसकी सहानुभूति का पात्र बनना मूर्खता है।'

'अपना हाथ-मुंह धो लीजिए। खाना तैयार है।' डॉली ने कहा।

'मैं तुमसे कुछ कह रहा हूं?'

'व्यर्थ छोटी-छोटी बातों को कुरेदना भी मैं अच्छा नहीं समझती। यदि आप नहीं चाहते तो मैं सवारी के लिए नहीं जाऊंगी।'

'वह तो अब हमें जाना ही होगा।'

'ऐसी भी क्या विवशता है?'

'मैं तो केवल यह चाहता हूं कि शंकर के बजाय तुमने मुझसे कहा होता।'

'अच्छा उठिए। बातों के लिए सारी रात पड़ी है।'
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RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर - by hotaks - 05-30-2020, 02:07 PM

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