RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
जय और डॉली दोनों सिनेमा देख रहे थे। जब इंटरवल हुआ तो दोनों ने निगाहें पर्दे से हटाकर एक-दूसरे को देखा और मुस्करा दिए। अंधेरे के कारण दोनों की आंखों में कुछ पानी-सा भरा हुआ था। जय का हाथ डॉली की कमर में था।
'क्यों जी, बाहर चलना है?' जय ने हाथ कमर में से निकालते हुए पूछा।
'क्या करेंगे।'
'पानी....।'
'मुझे प्यास नहीं।'
'क्यों, पिक्चर पसंद आ रही है?'
'पिक्चर तो जो है सो है, परंतु भय से प्राण निकले जा रहे है
'क्यों भय कैसा? डैडी से कह देना कि माला के साथ सिनेमा चली गई थी।'
'डैडी भला क्या कहते? जो थोड़ा-बहुत कहते थे, विवाह के बाद उसकी भी छुट्टी हो गई है।'
'तो फिर भय किस बात का?'
'ऐसे ही, न जाने मन में एक भय-सा क्यों बैठा हुआ है। सोचती हूं कि कहीं राज न आ गया हो!'
'आने से पहले सूचना तो देगा।'
'कभी-कभी वह सूचना दिए बिना भी आ जाता है।'
'आ भी जाए तो क्या हुआ? छोड़ो भी कैसी बात छेड़ी है, सारा मजा किरकिरा हो गया। वह क्या पास खड़ा है जो इतना डर रही हो?'
'यदि यहीं बैठे किसी परिचित व्यक्ति ने उसे इसकी सूचना दे दी तो?'
'यहां ऐसा है ही कौन। यह कहकर जय ने अपने चारों ओर बैठे हुए लोगों की ओर देखना शुरु किया और घूमकर पिछली सीटों पर भी देखा। अचानक उसकी दृष्टि पहली सीट पर ही रुक गई। वह आंखे फाड़-फाड़कर देखने लगा।'
'क्यों? क्या बात है?' डॉली ने घूमकर पीछे देखा और उसके मुंह से अनायास ही निकल गया,
'राज तुम!' और डॉली को काटो तो खून नहीं। राज का मुख लाल हो रहा था। उसकी आंखें जलते हुए अंगार के समान दिखाई दे रही थीं। राज ने उन दहकते अंगारों से डॉली की ओर देखा और अपनी सीट छोड़कर बाहर निकल गया। डॉली भी उसके पीछे-पीछे बाहर निकल आई। वह सिनेमा के एक स्तंभ के पास मौन खड़ा था। डॉली उसके निकट पहुंची और धीरे-से बोली, 'राज!'
'क्या कुछ और सुनना बाकी है जो....।' क्रोध से राज के होंठ कांप उठे।
'देखो, चारों ओर खड़े मनुष्य क्या कहेंगे! चलो घर चलें।'
'तुम अंदर जाओ। कहीं उस बेचारे का मजा किरकिरा न हो जाए।' और यह कहता हुआ वह सिनेमा के बरामदे से बाहर आ गया और तेजी से फुटपाथ पर पैर बढ़ाता हुआ अपने घर की ओर जाने लगा।
डॉली जब घर पहुंची तो राज को उसने अपने कमरे में लेटे रोते पाया। डॉली उसके निकट बैठ गई। उसका हृदय भर आया। ममतामयी नारी मानों थोड़ी देर के लिए उमड़कर बाहर आ निकली और वह राज के सिर पर हाथ फेरते हुए मुस्कराकर बोली 'कैसी अनोखी बात है। पुरुष भी क्या इस प्रकार रोया करते हैं?'
'ठीक कहती हो।' राज धीरे-से बोला, 'पुरुषों का रोना शोभा नहीं देता। मेरी आंखों में देखा। अब वह रो चुकी हैं। वे आंसू सूख चुके हैं। भविष्य में यह भूल मुझसे न होगी।' वह उठ बैठा।
डॉली ने अपनी बांहें उसके शरीर के चारों ओर लपेटते हुए कहा, 'मुझसे नाराज हो?'
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