XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
घाट का पत्थर
चंद्रपुर संसार के कोलाहल से दूर छोटी-छोटी, हरी-हरी घाटियों में एक छोटा-सा गांव है। दूर-दूर तक छोटे-छोटे टीलों पर लंबी-लंबी घास के खेत लहलहाते दिखाई देते हैं। एक सुहावनी संध्या थी। लोग थके-मांदे घरों को लौट रहे थे। गांव के बाहर वाले मैदान में बालक कबड्डी खेल रहे थे। एक अजनबी, देखने में शहरी, अंग्रेजी वेश-भूषा धारण किए गांव की कच्ची सड़क पर आ रहा था। समीप पहुंचते ही बालकों ने कबड्डी बंद कर दी और उसे घेर, घूर-घूरकर देखने लगे।
'ऐ छोकरे!' अजनबी ने एक बालक को संबोधित करके कहा।
'क्यों क्या बात है?'
'देखो, तुम्हारे गांव में कोई डाक-बंगला है?'
'आपका मतलब डाक बाबू...।'
'नहीं, डाक-बंगला, मेहमानों के ठहरने की जगह।'
'तो सराय बोलो न साहब।'
'सराय नहीं, साहब लोगों के ठहरने की जगह।'
'साहब लोग तो रामदास की हवेली में ठहरते हैं। सामने राज बाबू आ रहे हैं, उनसे बात कर लें।'
'क्यों क्या बात है, रामू, श्यामू ?' राज ने समीप आते ही पूछा।
'यह बाबू रहने की जगह मांगे हैं।'
'जाओ तुम सब लोग अपने-अपने घरों को। संध्या हो गई है।'
'देखिए साहब, हम लोग बंबई जा रहे थे कि हमारी गाड़ी में कुछ खराबी हो गई। रात होने को है। इन पहाड़ियों में रात के समय यात्रा करना खतरे में खाली नहीं। रात बिताने को जगह चाहिए। पैसों की आप चिंता न करें, मुंह-मांगा दिला दूंगा।' अजनबी कहने लगा।
'तुम्हारे साथ और कौन हैं?'
'मेरे मालिक सेठ श्यामसुंदर... बंबई के रईस, उनका सैक्रेटरी और मैं उनका ड्राइवर शामू।'
'गाड़ी कहाँ हैं?'
'सामने सड़क पर।'
राज और शामू, दोनों सड़क की ओर चल दिए।
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