RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
अपनी कोठी के लॉन में खड़े सुपर रघुनाथ और रैना आकाश की तरफ देख रहे थे, उनकी दृष्टि आकाश में परवाज करती हुई एक छोटी-सी चिड़िया पर स्थिर थी—हां, दूर से देखने पर वह चिड़िया ही नजर आती थी, परन्तु वास्तव में वह एक छोटा-सा विमान था।
‘पिट्स’ विमान!
इस वक्त वह आकाश में काफी ऊंचाईं पर परवाज कर रहा था, अचानक ही पिट्स ने एक लम्बा गोता खाया और फिर बहुत ही तेजी से नीचे की तरफ गिरा—जब एक बार उसने गिरना शुरू किया तो धरती की तरफ गिरता ही चला गया—जैसे उड़ते हुए किसी पक्षी के पंख कट गए हों।
जख्मी पक्षी जैसे गिर रहा हो।
देखते-ही-देखते विमान इतना नीचे आ गया कि रैना और रघुनाथ उसके रंग को भी स्पष्ट देख सकते थे—वह सुर्ख रंग का, बड़ा ही खूबसूरत, छोटा-सा पिट्स था—उसे नीचे गिरता देखकर रैना का चेहरा सफेद पड़ गया, एक ही पल में उसके चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर आया। उसने जल्दी से रघुनाथ के कन्धे पर हाथ रखा और डरी-सी, उत्तेजित अवस्था में बोली, “प...प्राणनाथ!”
ड...डरो नहीं रैना!” रघुनाथ ने अपने दाएं हाथ से बाएं कन्धे पर मौजूद पत्नी के हाथ को थपथपाते हुए सान्त्वना देने की कोशिश की—जबकि वास्तविकता यह थी कि स्वयं रघुनाथ का दिल बेकाबू होकर बुरी तरह से धड़क रहा था, उसके चेहरे पर भी हवाइयां उड़ रही थीं। पिट्स अभी संभला नहीं था और उसके गिरने के अनुपात में ही रघुनाथ के कन्धे पर रैना के हाथ की पकड़ सख्त पड़ती चली गई, इस बार वह बुरी तरह घबराए हुए स्वर में कह उठी—“अरे, कहीं विमान में कोई खराबी तो नहीं आ गई है स्वामी?”
“द...देखती रहो रैना, वह संभाल लेगा!” रघुनाथ ने कहा और उसी क्षण—पिट्स को एक बहुत तेज झटका लगा—इस झटके के साथ ही रैना के कंठ से चीख निकल गई—जबरदस्त चीख के साथ वह रघुनाथ से लिपट गई थी, उसे बांहों में जकड़े रघुनाथ इस वक्त भी लाल रंग के उस खूबसूरत पिट्स को ही देख रहा था—पिट्स अब काफी नीचे था और रघुनाथ की कोठी का चक्कर लगा रहा था, रैना रघुनाथ के सीने में मुखड़ा छुपाए अभी तक कांप रही थी। रघुनाथ के चेहरे पर छाया तनाव कम हुआ, बोला—“पगली, कुछ नहीं हुआ है—देखो वह ठीक है।”
उससे यूं ही लिपटी रैना ने पिट्स की तरफ देखा। रैना का चेहरा अभी तक पीला जर्द पड़ा हुआ था। पिट्स थोड़ा ऊपर उठा, अचानक ही उसने किसी कबूतर के समान हवा में कलाबाजी खाई, थोड़ा-सा नीचे गिरा और फिर एक झटका खाकर संभल गया।
“उफ्फ!” रैना कह उठी—“आप उसे रोकते क्यों नहीं?”
“वह किसी की सुनता कहां है?”
“आप उसे सख्ती से मना कीजिए, मुझे तो बहुत डर लगता है।”
“तुमने भी तो कई बार उसे समझाया है, क्या उसने ध्यान दिया?”
पिट्स पर ही नजरें गड़ाए रघुनाथ ने कहा। रैना कुछ जवाब न दे सकी—पिट्स अब भी कोठी का चक्कर लगाता हुआ बार-बार हवा में कलाबाजियां खा रहा था, दोनों की नजरें अभी पिट्स पर जमी हुई थीं कि एक कार कोठी के लॉन में दाखिल हुई, रैना छिटककर रघुनाथ से अलग हो गई।
वे दोनों ही पहचानते थे, कार विजय की थी।
कार रुकी और दरवाजा खोलकर विजय चहकता हुआ बाहर निकाल—“हैलो प्यारे तुलाराशि, ये सुबह-सुबह लॉन में कौन-सी फिल्म का प्रणय दृश्य फिल्माया जा रहा है?”
“त....तुम?” उसे देखते ही रघुनाथ भड़क उठा, “सुबह-सुबह तुम यहां क्यों आए हो?”
“हाय-हाय!” हाथ नचाता हुआ विजय उसकी तरफ बढ़ा—“हमें देखते ही तो तुम इस तरह भड़कते हो प्यारे जैसे छतरी को देखकर साली भैंस भड़कती है, अबे हम मेहमान हैं और सुबह-सुबह जब किसी के घर में मेहमान आता है तो...।”
“मैं पूछता हूं तुम यहां क्यों आए हो?” उसकी बात बीच में ही काटकर रघुनाथ गुर्रा उठा।
“अपनी रैना बहन के हाथ के बने आलू के असली घी में तले हुए लाल-लाल परांठे खाने!”
“मेरे घर को होटल समझ रखा है क्या तुमने?” रघुनाथ भड़क उठा—“आंख खुली, मुंह उठाया और परांठे खाने सीधे यहां चले आए—कोई परांठा-वरांठा नहीं मिलेगा, यहां से फूटते नजर आओ।”
“देखा रैना बहन?” अचानक ही विजय ने अपनी सूरत रोनी बना ली—“ये घोंचू हमारी कितनी बेइज्जती खराब करता है, अब तुम्हीं कहो—क्या हमें बहन के घर के आलू के परांठे भी नहीं मिलेंगे?”
अभी तक किंकर्तव्यविमूढ़-सी खड़ी रैना को जैसे होश आया, वह संभलकर बोली, “नहीं-नहीं, आप रोते क्यों हैं भइया, इनकी तो आदत ही ऐसी है—मैं तुम्हें परांठे बनाकर खिलाऊंगी।”
“हां-हां, इसे खूब सिर पर चढ़ाओ—गाजर का हलवा बनाकर खिलाओ इसे।” रघुनाथ भड़का।
जवाब में विजय ने उसे ठेंगा दिखाने के साथ ही मुंह से खूब लम्बी जीभ बाहर निकालकर भी चिढ़ाया। उसी पोज में विजय उसे चिढ़ाने वाले अन्दाज में कह रहा था— “ऊं....ऊं...ऊं!”
“अबे, मुझे चिढ़ाता है साले!” कहने के साथ ही रघुनाथ विजय पर झपटा, जबकि एक ही जम्प में विजय अपना स्थान छोड़ चुका था, विजय आगे-आगे दौड़ रहा था— रघुनाथ उसके पीछे।
विजय ने उसे रैना के चारों तरफ अनेक चक्कर कटा दिए थे।
लाख चाहकर भी रैना अपनी हंसी न रोक पा रही थी। खिलखिलाकर हंस रही थी वह—सारे लॉन में उसकी खिलखिलाहटें गूंज रही थीं, विजय को पकड़ने के चक्कर में रघुनाथ की सांस फूल गई।
हवा में पिट्स अभी तक कलाबाजियां खा रहा था।
“अब रहने भी दीजिए, आप भी विजय भइया के साथ बच्चे बन जाते हैं।” बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोककर रैना ने रघुनाथ से कहा।
रघुनाथ रुक गया और सांसों को नियन्त्रित करने की चेष्टा करता हुआ बोला—“हां-हां, ये तो अभी-अभी पैदा हुआ है—तुम हमेशा इसी का पक्ष लेती हो रैना, इसे तुम्हीं ने सिर पर चढा रखा है।”
“तुमने वह कहावत नहीं सुनी प्यारे तुलाराशि कि सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ!”
“अगर तुम किसी दिन मेरे हत्थे चढ़ गए विजय तो मैं सारी कहावतें तुम्हें अच्छी तरह समझा दूंगा।” रघुनाथ की सांस अभी तक फूल रही थी—“जरा ऊपर देखो!”
“ऊपर क्या है प्यारे?”
“विकास को तुम्हीं ने बिगाड़ा है, देखो जरा कैसे-कैसे खतरनाक खेल खेलने लगा है वह?”
विजय ने पिट्स की तरफ देखा, बहुत निचाई पर उसने अभी-अभी एक कलाबाजी खाई थी— कलाबाजी खाते समय पिट्स इतना नीचे था कि एक बार को तो विजय जैसे व्यक्ति का दिल भी धड़क उठा—मगर शीघ्र ही स्वयं को नियन्त्रित करके बोला—“क्या उसे अपना प्यारा दिलजला चला रहा है?”
“हां और उसके साथ ही विमान में धनुषटंकार भी है, पिछले कुछ ही दिनों से उन्हें यह शौक चर्राया है, विकास फ्लाइट पर निकलकर हवा में यही खतरनाक खेल खेलता है।”
“म...मगर प्यारे, इसमें बुराई क्या है?”
“लो, सुन लो अपने लाड़ले भइया की बात!” रघुनाथ ने रैना से कहा—“इसे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती!”
विजय ने रैना की तरफ देखा, जबकि रैना एकाएक ही गम्भीर हो गई थी, बोली—“ये ठीक कह रहे हैं भइया, विकास का ये खेल मुझे अच्छा नहीं लगता, डर लगता है—वह तुम्हारी बात मान जाएगा भइया, तुम्हीं उसे यह खतरनाक खेल खेलने से रोको न?”
“अगर तुम कहती हो रैना बहन तो, ये...ये लो!” विजय धम्म से लॉन में पड़ी एक चेयर पर बैठ गया और बोला—“हम यहां जमकर बैठ गए हैं, दिलजला कभी तो फ्लाइट खत्म करके यहां लौटेगा, हम तब तक यहां से नहीं उठेंगे जब तक कि उसके कान उखाड़कर नाक की जगह और नाक उखाड़कर कान की जगह नहीं लगा देंगे, मगर ये सारा काम हम रिश्वत लेकर करेंगे।”
“रिश्वत?”
“आलू के परांठे।”
“मैं अभी बनाकर लाई!” कहने के साथ ही रैना मुड़ी और कोठी के ऊपर हवा में कलाबाजियां खाते पिट्स पर एक नजर डालकर अन्दर चली गई।
रघुनाथ अभी तक विजय को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था, जबकि विजय ने किसी निहायत ही शरीफ आदमी की तरह उससे कहा—“बैठिए रघुनाथ जी!”
उसे आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ रघुनाथ उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया, बीच में लकड़ी की बनी एक लॉन टेबल पड़ी थी। टेबल के चारों तरफ कुल मिलाकर चार लॉन चेयर्स थीं। विजय ने दोनों कोहनियां मेज पर टिकाईं और थोड़ा झुकता हुआ बोला—“दिमाग लगाकर, बहुत ही गौर से सोचने की बात है रघुनाथ जी, जरा कल्पना कीजिए—जब हम दिलजले के नाक कान की जगह और कान नाक की जगह लगा देंगे तो देखने में वह कैसा लगेगा?”
“तुम ये बकवास बन्द नहीं करोगे?” रघुनाथ दांत पीसता हुआ गुर्राया।
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