RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 37
इस वक़्त 2 बजे हैं. सुगना अपने खेत में काम पर लगा हुआ है. किंतु उसका मन काम पर नही है, कारण है कंचन....! जो अभी कुच्छ देर पहले चिंटू के साथ उसे खाना खिलाने आई थी. वैसे तो उसके लिए रोज़ शांता खाना लेकर आती थी. पर आज उसने कंचन और चिंटू को भेज दिया था. संभवतः....ऐसा उसने दिनेश जी के साथ कुच्छ पल बिताने के लिए किया होगा.
कंचन कुच्छ खोई खोई और उदास सी थी. उसके अंदर कल शाम से ही उदासी छाई हुई थी जब रवि ने कहा था कि अब वे दोनो कुच्छ दिनो तक नही मिल सकेंगे. वह सुगना के सामने ब्लात मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी. ताकि सुगना को उसकी उदासी का पता ना चले.
कंचन और चिंटू के जाते ही सुगना अपने काम पे लग गया. किंतु कंचन से मिल लेने के बाद उसका मन काम पर नही लग रहा था. आज उसे कंचन उदास सी लगी थी. कंचन की उदासी उससे छुपि नही रह पाई थी. सुगना इसी बात की चिंता में डूबा हुआ था कि अगर कमला जी ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया तो कंचन कैसे जी पाएगी? वह मन ही मन प्रण कर रहा था - "कुच्छ भी हो मैं कंचन को दुखी नही देख सकता.....उसके लिए मुझे जो भी करना पड़े मैं करूँगा. पर उसे उसकी सारी खुशियाँ देकर रहूँगा."
अभी सुगना इन्ही विचारों में गुम था कि उसके कानो से जीप की आवाज़ टकराई. उसने आवाज़ की दिशा में नज़र दौड़ाया तो उसे दीवान जी की जीप आती दिखाई दी.
दीवान जी पर नज़र पड़ते ही सुगना के माथे पर बल पड़ गये और चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच गयीं.
जीप कुच्छ दूरी पर आकर रुकी. दीवान जी जीप से उतरे और सुगना की तरफ देखने लगे.
सुगना फावड़ा ज़मीन पर रखकर दीवान जी के तरफ बढ़ गया. वो समझ चुका था कि दीवान जी उसी से मिलने आएँ हैं. हालाँकि उसके अतिरिक्त कुच्छ और भी लोग थे जो कुच्छ-कुच्छ फ़ासले में अपने खेतों में काम कर रहे थे. पर दीवान जी का उन लोगों से कभी कोई संबंध नही रहा था.
"नमस्ते दीवान जी." सुगना दीवान जी के निकट जाकर बोला.
उसने दीवान जी को ध्यान से देखा. उनके चेहरे पर परेशानी के भाव थे.
"नमस्ते !" दीवान जी सुगना के नमस्ते का उत्तर देते हुए बोले - "कैसे हो सुगना?"
"अच्छा हूँ, मालिक की कृपा है. आप सुनाए.....आपको कौनसा कष्ट आन पड़ा है, जो आज 20 साल बाद मेरी खबर लेने की सोचे?" सुगना के शब्दों में व्यंग का पुट था.
"मैं कंचन के बारे में तुमसे कुच्छ बातें करने के लिए आया हूँ."
"कंचन?" उसके मूह से बेशखता निकला.दीवान जी के होंठों से कंचन का नाम सुनकर वह बुरी तरह से चौंक उठा था. उसका दिल किसी अंजनी आशंका से जोरों से धड़क रहा था. वह सवालिया नज़रों से दीवान जी की तरफ देखते हुए बोला - "मैं समझा नही? आप कंचन के बारे में क्या बात करना चाहते हैं?"
"सुगना मेरी बात का बुरा मत मान'ना. मैं बहुत विवश होकर यहाँ तक आया हूँ." दीवान जी अपने शब्दों में पीड़ा भरते हुए बोले."
"दीवान जी, आप जो भी कहना चाहते हैं साफ साफ कहिए. पहेलियों की भाषा ना तो मुझे पहले कभी समझ में आई और ना अब आ रही है." सुगना बेचैनी से भरकर बोला.
"ठाकुर साहब निक्की का विवाह रवि से करना चाहते हैं. इस रिश्ते से रवि की मा भी खुश हैं. लेकिन तुम्हारी बेटी कंचन रवि और निक्की के आड़े आ रही है. सुगना मैं कंचन का बुरा नही चाहता पर उसकी वजह से निक्की की.......!"
"बस दीवान जी." सुगना तैश में आकर गरजा. - "आप किसका कितना भला चाहते हैं ये मैं खूब जानता हूँ. रही बात कंचन की......तो मैं एक बात आपको बता देना चाहता हूँ. कंचन मेरा गुरूर है. उसके उपर किसी भी तरह का लान्छन मैं सहन नही करूँगा. कंचन और रवि एक दूसरे से प्यार करते हैं. बीच में तो निक्की आ रही है. या शायद आप आने की कोशिश कर रहे हैं"
"अपनी हद में रहकर बात करो सुगना." दीवान जी क्रोध में चीखे. - "कंचन तुम्हारी बेटी है और निक्की की दोस्त है इसीलिए यहाँ तक आया हूँ, नही तो यहाँ तक आने की ज़रूरत भी ना पड़ती मुझे. आगे तुम खुद समझदार हो. तुम चाहो तो मैं तुम्हे कुच्छ पैसे भी दे सकता हूँ. कहीं कोई दूसरा अच्छा सा लड़का देखकर कंचन की शादी कर दो."
"संसार की कोई भी वास्तु, मुझे कंचन से अधिक प्रिय नही है. उसकी खुशी के लिए मैं खुद को बेच सकता हूँ." सुगना का स्वर चट्टान की तरह सख़्त था. - "एक बात आप अपने मन में अच्छी तरह उतार लीजिए दीवान जी. अगर कंचन को हल्की सी भी खरोंच तक आई तो हवेली की दीवारें ढह जाएँगी. इंट से इंट बजा दूँगा हवेली की. मैं आज भी वही सुगना हूँ, थोड़ा बूढ़ा ज़रूर हुआ हूँ पर इतना भी नही कि अपनी बेटी की रक्षा ना कर सकूँ."
सुगना के गुस्से से भरी सूरत देखकर दीवान जी उपर से नीचे तक काँप गये. वो सुगना के गुस्से से परिचित थे. उन्होने मौक़े की नज़ाकत को समझा और नर्म स्वर में बोले - "तुम नाहक बिगड़ रहे हो सुगना. मैने तो सदेव तुम्हारा भला चाहा है. कभी कंचन और निक्की में कोई फ़र्क नही समझा. पर शायद तुम मुझे समझ नही पाए. ठीक है, अब मैं चलता हूँ. ईश्वर तुम्हारा भला करे." ये कहकर दीवान जी जाने के लिए मुड़े.
"विधाता पर मुझे पूरा भरोसा है दीवान जी." सुगना उत्तर में बोला - "वो बड़ा ही न्यायी है. जिसकी जो मंज़िल है उसे वहाँ तक ज़रूर पहुँचाएगा. नमस्ते !"
दीवान जी एक पल ठहरकर सुगना की तरफ देखे. फिर तेज़ी से जीप में सवार हो गये. उनके बैठते ही जीप वापस मूडी और देखते ही देखते सुगना की नज़रों से ओझल हो गयी.
सुगना चिन्तीत मुदारा में खड़ा उन्हे जाते हुए देखता रहा.
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