RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
निक्की सीधा अपने कमरे में आकर बिस्तर पर गिरी. फिर एक लंबी साँस छोड़ने के बाद अपने पापा और दीवान जी के मूह से सुनी बातें याद करने लगी. वो खुश थी, लेकिन उसे ये समझ में नही आ रहा था कि वो खुश क्यों है? जिस इंसान से वो अपने तिरस्कार का बदला लेना चाहती थी उसी इंसान के साथ अपने विवाह की बात सुनकर उसका मन इतना प्रसन्न क्यो हो रहा है? वह तो रवि को नीचा दिखाना चाहती थी, फिर आज क्यों उसे अपनी माँग में सजाने की सोच रही है? शायद ये रवि की अच्छाई थी जिसने निक्की के मन से सारा मैल निकाल दिया था. निक्की का मन ये जान चुका था कि रवि लाखों में एक है. जो इंसान उसके नग्न शरीर को त्याग दे वो कोई साधारण इंसान हो ही नही सकता. रवि की यही अच्छाई उसकी खुशी का कारण था. वो इस बात से आनंद महसूस कर रही थी कि रवि जैसा सभ्य पुरुष उसका पति होने वाला है.
निक्की अपने ख्यालो में रवि को बसा कर मन ही मन मुस्कुराइ फिर मन में बोली - "अब कहो मिस्टर रवि, अब मुझसे भाग कर कहाँ जाओगे? अब ऐसे बंधन में बाँधने वाली हूँ कि ज़िंदगी भर मेरे साथ रहना पड़ेगा. फिर देखना कैसे बदला लेती हूँ तुमसे. बहुत सताया है तुमने मुझे.....अब मैं सताउन्गि तुम्हे."
अगले ही पल उसके मन में विचार आया क्यों ना वो अभी उसके कमरे में जाकर उसे इस रिश्ते की बात बताए. उसे छेड़ उसे परेशान करें.
वो मुस्कुराती हुई उठी और अपने कमरे से बाहर निकल गयी. फिर अपने कददम रवि के कमरे की तरफ बढ़ाती चली गयी. कुच्छ ही देर में वो रवि के कमरे के बाहर खड़ी थी. अभी वो दरवाज़े पर दस्तक देना ही चाहती थी की उसकी नज़र दरवाज़े की कुण्डी पर गयी जो बाहर से बंद थी.
दरवाज़ा बंद देख निक्की के माथे पर शिकन उभरी. उसने अपनी घड़ी में समय देखा. इस वक़्त 5 बजे थे. वो कुच्छ देर खड़ी सोचती रही फिर सीढ़ियों से उतरती हुई हॉल में आई. उसने एक नौकर से रवि के बारे में पुछा तो पता चला कि वो अपनी बाइक से कहीं गया हुआ है.
निक्की सोच में पड़ गयी. कुच्छ दिनो से वह नोटीस कर रही थी कि रवि शाम को अक्सर हवेली से बाहर जाने लगा है. लेकिन वो कहाँ जाता था क्यों जाता था इस बात को जानने का प्रयास उसने कभी नही किया था. पर जाने क्यूँ आज उसके मन में एक अंजानी सी शंका घर करती जा रही थी.
वह बेचैनी से हॉल में टहलती हुई एक ही बात सोचती जा रही थी - 'कहीं रवि का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर तो नही चल रहा है? लेकिन उसे ऐसा करने की ज़रूरत ही क्या है. अगर वो सच में औरत की कमी महसूस करता होता तो वो मेरे पास आता. मैं तो उसके लिए हर घड़ी उपलब्ध थी. मुझे ठुकराकर उसे कहीं और भटकने की ज़रूरत क्या है?
"कुच्छ भी हो सकता है निक्की." उसके मन ने धीरे से सरगोशी की - "मिज़ाज़ और मौसम के बदलते देर नही लगती. तू इस तरह आँख मुन्दे पड़ी रहेगी तो ऐसा ना हो कि पक्षी दाना कहीं और चुग जाए. तुम्हे सच्चाई का पता लगाना ही होगा कि वो शाम को कहाँ जाता है? कहीं ऐसा ना हो कि वो तेरे सामने साधु का ढोंग करता हो और बाहर भँवरा बनकर गाओं के फूलों का रस चूस्ता फिरता हो."
इस विचार के साथ ही निक्की का चेहरा सख़्त हो उठा. वह तेज़ी से हवेली से बाहर निकली. फिर अपनी जीप में बैठ कर जीप को घाटियों की ओर भागती चली गयी.
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