RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
उसने कोमल का हाथ उसके चेहरे से हटा दिया. कोमल का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. शायद वो लगातार रो रही थी. गोदन्ती उसका चेहरा देख सैकड़ों मौत मर गयी.
उसे कोमल पर तरस भी आया और गुस्सा भी जो अभी तक राज की याद में रोये जा रही थी. इतना सब होने के बावजूद उस लडकी में कोई अंतर ही नही आया था. लेकिन माँ का दिल ही जानता था कि वो एक बेटी के लिए क्या करना चाहती थी और क्या होने जा रहा था?
किन्तु ये प्रकृति का नियम है. चार को बचाने के लिए एक को मारना शायद अपराध नही माना जाता. जैसे एक सांपिन माँ जब बच्चों को जन्म देती है और जब उसे बच्चों को पालने के लिए खाना नही मिलता तो वह अपने बच्चों को पालने के लिए उन्ही में से एक बच्चे को खा लेती है. जिससे बाकी के बच्चे अपना जीवन पा सकें. शायद आज वही काम गोदन्ती को करना पड़ रहा था. उसे अपने वाकी के लडके लडकियों के सम्मान जनक जीवन के लिए कोमल की कुर्वानी देनी पड़ रही थी.
गोदन्ती ने कोमल के सर पर हाथ फिरते हुए बड़े प्यार और दुलार से पूंछा, "कुछ खाएगी पीयेगी नही छोरी या भूखे रहकर मरना चाहती है?" गोदन्ती ममता के नशे में भूल गयी कि कोमल को तो वैसे भी मारा ही जाना है, फिर वो भूखी मरे या पेट भरके क्या फर्क पड़ता है?
क्या फर्क पड़ता है उसे प्यार से मारा जाय या गुस्से में? मरना तो उस अभागन लडकी को पड़ेगा ही पड़ेगा. मोहब्बत करके समाज में आराम से रहना भला इतना आसान कब से हो गया? इतना आसान होता तो इस समाज में सब मोहब्बत से ही रह रहे होते. क्यों कोई लड़ता झगड़ता? क्यों ये दुश्मनी की दीवारें खींच दी जाती? और अच्छा भी है. सब लोगों में मोहब्बत होना भी समाज के लिए खतरनाक हो सकता है.
कोमल माँ से रोती हुई बोली, “माँ क्या तुम्हें भी लगता है कि मैने जो किया गलत किया और गलत भी किया तो उसकी सजा इतनी बड़ी होनी चाहिए? क्या सजा देने का हक एक इंसान को होना चाहिए जो खुद कई बार ऐसे हालातों से गुजर चुका होता है?"
गोदन्ती इस सवाल का क्या जबाब देती? उसने तो खुद बचपन में कई बार ऐसा महसूस किया था और फिर वो इतनी पढ़ी लिखी भी नही थी कि सामाजिक विज्ञान के कठिन सवाल का उत्तर दे पाती. वो कोमल को समझाते हुए बोली, "देख छबिलिया. मुझे मेरे मन से नही समाज के मन से सोचना पडेगा. समाज की नजरों में तूने बहुत बड़ा अपराध किया है.
हम औरतें है इसलिए हमे औरतों की तरह ही रहना पड़ेगा. मर्दो की तरह रहने की कोशिश करो तो पंख कतर दिए जाते हैं. यहाँ औरत ही घर की इज्जत होती है और जब वो इज्जत अपनी ही इज्जत से खेलने लगती है तो घर की इज्जत सलामत नही रहती. बस में इससे ज्यादा कुछ नही जानती."
इतना कह गोदन्ती वहां से उठकर बाहर आ गयी. जहाँ भगत अपने आंधी भरे दिल को थामे बैठे थे. गोदन्ती के पहुचने का मतलब भगत अच्छी तरह जानते थे. गोदन्ती से बोले, “जाकर उनसे कह दूँ कि अपना काम करें?"
गोदन्ती ने विना भगत की आँखों में देखे हां में सर हिला दिया. भगत कंपकपाते बदन से बाहर खड़े लोगों के पास चले गये.
एक माँ या बाप का दिल ही जानता था कि जो हालत उनके दिल की अभी है वो उसे कैसे सह रहे हैं? अगर वे अपनी बेटी की बलि दे रहे हैं तो किस स्थिति में दे रहे हैं? क्योंकि हरएक आदमी के वस में नही कि वो अपना दिल निकाल के सामने रख दे. रखे भी तो किसके सामने? क्योंकि दिल का दर्दवहीं जानता है जिसके दिल होता है. और इन घराने के कई लोगों में तो शायद दिल था ही नही.
दूसरी तरफ राज कोमल के घराने की पंचायत से बेखबर अपनी बुआ के घर पहुंच चुका था. वंहा बात तो सबसे कर रहा था लेकिन मन और दिल उसकी देह से अलग कोमल की यादों में भटक रहे थे. उसे वो वक्त याद आ रहा था जब वो कोमल के नाजुक बदन
को अपनी बाहों में भरे उस आम के पवित्र पेड़ के नीचे बड़ी फुर्सत से लेटा था. कैसे कोमल उसको देखती थी? कैसे वो कोमल को देखता था? कैसे दोनों एक दूसरे को देखते थे? कैसे दोनों की साँसे एक दूसरे से टकराती थीं? ____ राज मन ही मन कह रहा था. काश कि कोमल और में एक हो जाते? कितना आनन्द और कितना प्यार होता दोनों के बीच. कोमल जब अपने गर्भ में आये बच्चे को जन्म देती और में बाप बन जाता. कितना सुखमय जीवन हो जाता हम दोनों का? दोनों पति पत्नी की तरह रह रहे होते. किसी मन्दिर में जा प्रेम विवाह करने का विचार तो राज ने फिल्मों में देख ही लिया था. भागने के बाद वो कोमल के साथ ऐसा ही करने वाला था. किन्तु आज सब कहीं बिखर गया था.
इस वक्त राज को ये बात खाए जा रही थी कि क्यों वो क्यों उस आम के पेड़ के नीचे रुका था? तभी क्यों न चला आया? अगर चला आया होता तो आज इस स्थिति में न होता. अपने साथ साथ कोमल की भी क्या हालत कर दी. वो यह भी सोच रहा था कि शायद लोग ठीक ही कहते थे कि वो आम का पेड़ ही मनहूस है. जब भी वहां गये कोई न कोई बुरी घटना ही हुई. वहां जाना ही नही चाहिए था. सारा काम बिगड़ गया उस मनहूस पेड़ की वजह से.
इधर भगत ने अपने घराने के लोगों के पास पहुंच संकेत दे दिया कि वे अपना काम शुरू कर सकते हैं. तिलक संतू से बोले, “संतू तू मेरे साथ आ और राजू तू अपने कमरे में पहुंच. हम छोरी को लेकर आते हैं और दद्दू तुम यहाँ की रखवारी करो कोई भी अंदर न आने पाए. चल आ संतू." इतना कह तिलक संतू को लेकर भगत के उस कमरे की तरफ बढ़ गये जहाँ कोमल अपने राज को याद कर कर के रो रही थी.
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