RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
गोरा रंग छर्हरे बदन <18 वर्ष की रंगीली रास्ते के सहारे अपने जानवरों के वाडे में घन्घरा-चोली पहने अपने पशुओं के गोबर से उपले बना रही थी…
बिना चुनरी के उसके सुन्दर गोले-गोरे अल्पविकसित उभार उसकी कसी हुई चोली से अपनी छटा बिखेर रहे थे,
पंजों के उपर बैठी जब वो उस गोबर को मथने के लिए आगे को झुकती तो उसके अनारों के बीच की घाटी कुच्छ ज़्यादा ही अंदर तक अपनी गहराई को नुमाया कर देती…
रास्ते से निकलते सेठ धरमदास की ठरकी नज़र उस बेचारी पर पड़ गयी…, वो तुरंत वहीं ठिठक गये, और खा जाने वाली नज़रों से उसकी कमसिन अविकसित जवानी का रस लेने लगे…
उन्हें खड़ा होते देख, साथ चल रहे उनके मुनीम भी रुक गये और अपने मालिक की हरकतों को परखते ही चस्मे के उपर से उनकी नज़रों का पीछा करते हुए रसीली की कमसिन जवानी को देखते ही अपनी लार टपकाते हुए बोले –
ये बुधिया बघेले की बेटी है मालिक,
सेठ – कॉन बुधिया…?
मुनीम – वोही, जिसकी ज़मीन और मकान दोनो ही हमारे यहाँ गिरबी रखे हैं…
ये सुनकर सेठ की आँखें रात के अंधेरे में जगमगाते जुगनुओ की मानिंद चमक उठी…
मुनीम की बात सुनते ही सेठ के लोमड़ी जैसे दिमाग़ ने वहीं खड़े-खड़े इस कमसिन सुंदरी को भोगने का एक बहुत ही शानदार प्लान बना लिया…, और उनकी आँखें हीरे की तरह चमक उठी…
अपने सेठ की आँखों की चमक को पहचानते ही मुनीम बोला – बुधिया को बुलाऊ सरकार…
सेठ ने मुस्कुराती आँखों से अपने मुनीम की तरफ देखा और अपनी धोती को उपर करने के बहाने, अंगड़ाई ले चुके लंड को मसलते हुए बोले –
तुम सचमुच बहुत समझदार हो मुनीम जी…. चलो बुधिया के पास चलते हैं…
बुधिया का घर उसके जानवरों के बाँधने वाली जगह यानी घेर से थोड़ा चल कर गाओं के अंदर था,
कच्चे मिट्टी के अपने छोटे से घर के आगे बने चबूतरे पर चारपाई पर बैठा बुधिया, अपने दो पड़ौसीयों के साथ हुक्का गडगडा रहा था,
सबेरे-सबेरे जन्वरी फेब्रुवरी के महीने में खेती-किसानी का कोई खास काम तो होता नही, गाओं में लोग बस ऐसे ही आपस में बैठ बतिया कर समय पास करते हैं…
हुक्का गडगडाते हुए उसकी नज़र उसके घर की तरफ आते हुए सेठ धरमदास और उसके मुनीम पर पड़ी…
बेचारे के तिर्पान काँप गये, सोचने लगा, आज सबेरे-सबेरे ये राहु-केतु मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे हैं, अभी कुच्छ महीने पहले ही तो बसूली करके ले गये हैं..
अब अगर इन्होने कोई माँग रख दी, तो.. ? ये सोचकर वो अंदर तक काँप गया…
4 बच्चों और खुद दो प्राणी को पालने लायक ही अनाज बचा था बेचारे के पास,
अब और इसको कुच्छ देना पड़ा तो…, भूखों मरने की नौबत आ सकती है…!
अभी वो हुक्के की नई (नली का सिरा जिसे मूह में देकर धुए को सक करते हैं) को उंगली के सहारे मूह पर लगाए इन्ही सोचों में डूबा हुआ ही था, तब तक वो दोनो उसके चबूतरे तक पहुँच गये,
बुधिया के दोनो पड़ौसी सेठ को देख कर चारपाई से खड़े होकर दुआ-सलाम करने लगे, तब जाकर उसकी सोच को विराम लगा,
वो फ़ौरन हुक्के को छोड़ खड़ा हुआ और अपनी खीसें निपोर कर बोला – राम-राम सेठ जी, आज सबेरे-सबेरे कैसे दर्शन दिए…?
सेठ – राम-राम बुधिया… कैसे हो भाई… सब कुशल मंगल तो है ना…?
बुधिया– आप की कृपा से सब कुशल मंगल है सेठ जी…आइए, कैसे आना हुआ..?
सेठ – बस ऐसे ही गाओं में आए थे, कुच्छ लोगों से हिसाब-किताब वाकी था, सोचा एक बार तुम्हारे हाल-चाल भी पुच्छ लें…
बुधिया हिसाब-किताब की बात सुनकर फिर एक बार अंदर ही अंदर काँप गया, लेकिन अपने दर्र पर काबू रखने की भरसक कोशिश करने के बाद भी उसकी आवाज़ काँपने लगी और हकलाते हुए बोला –
ल .ल्ल्लेकींन…सेठ जी मेने तो इस बरस का हिसाब कर दिया था…
सेठ उसकी स्थिति भली भाँति समझ चुके थे, सो उसे अस्वस्त करते हुए बोले – अरे तुम्हें फिकर करने की ज़रूरत नही है बुधिया…तुमसे तो बस ऐसे ही हाल-चाल जानने चले आए…!
सेठ जी की बात सुनकर उसकी साँस में साँस आई, और एक लंबी गहरी साँस छोड़ते हुए बोला – तो फिर बताइए सेठ जी ये ग़रीब आपकी क्या सेवा कर सकता है..
सेठ – सेवा तो हम तुम्हारी करने आए हैं बुधिया, सुना है तुम्हारी बेटी जवान हो गयी है, शादी-वादी नही कर रहे हो उसकी…!
भाई बुरा मत मानना, जवान बेटी ज़्यादा दिन घर में रखना ठीक बात नही है..
बुधिया – हां सेठ जी शादी तो करनी है, लेकिन ग़रीब आदमी के पास इतना पैसा कहाँ है,
अब आपसे तो कुच्छ छुपा हुआ नही है, जो होता है उसमें से आपका क़र्ज़ चुकाने के बाद उतना ही बच पाता है, कि बच्चों के पेट पाल सकें…
शादी में लड़के वालों को लेने-देने, उनकी खातिर तबज्जो करने में बहुत खर्चा लगता है,
अब नया क़र्ज़ लूँ तो उसे चुकाने के लिए कहाँ से आएगा, यही सब सोचकर अभी तक चुप बैठा हूँ…!
|