12-09-2019, 01:09 PM,
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sexstories
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RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम ने बड़े ही बेरहमी से लिंग को छेद की गहराईयो में प्रवेश कराना शुरू किया और कुछ ही पल में उसका विशाल काय लिंग अंदर घुसने लगा....जल्द ही जड़ तक उसने अपने लिंग को गान्ड के भीतर पेल दिया था....बस नीचे उसके दो अंडकोष झूलते गान्ड के नीचे दिख सकते थे...उसने लगभग घोड़ी बनाए तबस्सुम दी को चोदना शुरू किया...हर एक धक्के में गुदा की टाइटनिंग से उसे अपने लिंग पे गान्ड की टाइट पकड़ महसूस सी हुई
वो गान्ड पे चपात मारते हुए करार धक्के पेलने लगा जिसके दर्द को ना झेलने के चक्कर में तबस्सुम गान्ड ढीली छोड़ती..."आहह धीरे चोदो ना आहह दर्द हो रहा है आदम".....
."दीदी अभी तो तुम्हारी गान्ड ठीक ढंग से खुली भी नही".......
."आहह फिर भी आहह".......आदम को करहाती तबस्सुम दीदी की आवाज़ो से और ज़ोर ज़ोर से उसकी गान्ड मारने में मज़ा आ रहा था...
कुछ ही देर में धक्के तेज़ करते हुए आदम ने लगभग तबस्सुम के पूरे जिस्म को झिंजोड़ दिया उसकी दोनो चुचियाँ एकदुसरे से टकराए जा रही थी...तबस्सुम को बीच बीच में चुचियाँ पकड़ लेनी पड़ती इससे उसे दर्द हो रहा था...अब गान्ड से फ़च फ़च्छ की आवाज़ आ रही थी तेल ने गान्ड को एकदम गीला और चिपचिपा कर दिया जिससे लिंग भी चिकना हो गया और आसानी से अंदर बाहर होने लगा....कुछ ही पल में आदम चरम सीमा पर आ गया
और ठीक उसी पल उसने लिंग बाहर निकाला तो गान्ड के छेद को सिकुड़ता और खुलता पाया उसमे काफ़ी चौड़ा होल सा हो गया था...आदम ने कॉंडम निकाल फेंका और झट से लिंग को चूत के भीतर डाल दिया....उसने कस कर तबस्सुम को घोड़ी बनाए उसकी चूत को आगे से कस कर मुट्ठी में दबा लिया जिससे तबस्सुम सिहर गयी और आदम उसकी चूत में अपना आधा कप वीर्य खाली करने लगा...चूत से हल्की एक आध बूँद बाहर टपक रही थी...
तबस्सुम दीदी फारिग होके गुसलखाने चली गयी..आदम वैसे ही सुस्ताते बिस्तर पे अंगड़ाई लिए नंगा ही लेट गया...तबस्सुम दीदी के वापिस आने का इन्तिजार करने लगा....करीब 7 दिनो तक मुसलसल आदम ने अपनी दीदी तबस्सुम की दबके जबरदस्त चुदाई की...और अब तो उन दोनो के बीच सुधिया काकी भी आने जाने कम लगी थी ताकि दोनो को अकेला चुदाई का मज़ा लेने दे...करीब 7 दिन बाद..तबस्सुम ने आना बंद कर दिया क्यूंकी उसका शौहर अगले ही हफ्ते टपक पड़ा कोलकाता से...
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"हां माँ टिकेट्स हो गयी है"........आदम ने अपनी माँ को सूचना दी
"अर्रे अच्छा तो कबका हुआ उफ्फ जल्दी आ फिर".......अंजुम जैसे काफ़ी खुश हो गयी
"बस माँ 10 तारीख का है अच्छा सुनो पिताजी को मत!"......अंजुम मुस्कुराइ
"बेटा तू निसचिंत हो जा नही बताउन्गी तू बस जल्दी यहाँ आजा"......आदम भी मुस्कुराया
"ठीक है माँ मैं 2 दिन बाद वहाँ 12 तारीख तक पहुच जाउन्गा".....आदम ने कहा
"ओके बेटा ख्याल रखना बाइ लव यू"........
."आइ लव यू टू माँ".....हालाँकि ये माँ बेटे का रिश्ता था...पर ना जाने आदम को माँ को आइ लव यू कहने से क्यूँ पूरे बदन पे सिरहन सी दौड़ रही थी..जैसे वो किसी पराई औरत को प्यार का इज़हार कर रहा हो
उधर अंजुम भी बेहद खुश थी बेटा जल्दी आने वाला था...उसने ये खबर फ़ौरन समीर को फोन करके देदि
समीर : हां आंटी कहिए ?
अंजुम : हां समीर आदम ने बताया है कि वो 12 तारीख को उतरेगा नड्ल्स स्टेशन पे तुम उसे पिक अप कर लेना तुम तो जानते हो गुस्सेदार है थोड़ा यहाँ आते ही कहीं झगड़ा शुरू ना कर दे लोगो से (समीर मुस्कुराया)
समीर : आंटी मैने आपको कहा था ना बस आप मुझे तारीख दीजिए बस आदम को कैसे भी मैं वापिस जाने नही दूँगा ये काम आप मुझपे छोड़ दीजिएगा
अंजुम : अच्छा समीर बेटा तुम्हारी माँ सोफीया से बात करनी थी
समीर थोड़ा हिचखिचाया उसने नज़र इधर उधर करते हुए हकलाए स्वर में अंजुम को जवाब देता है
समीर : आंटी माँ बाथरूम में है वो नहा रही है
अंजुम : ओह अच्छा अच्छा कोई बात नही ठीक है बेटा फिर मैं बाद में ही बात करती हूँ
समीर : अच्छा आंटी बस आप बेफिकर रहिए आदम भला उसकी माँ से कैसे दूर हो सकता है? जब मैं अपनी माँ से दूर नही रह सका
अंजुम : तुम्हारे जैसा बेटा हर माँ को मिले जो अपनी माँ का इतना ख्याल रखता है
समीर : हाहाहा थॅंक यू आंटी अच्छा मैं फोन रखता हूँ आंटी
अंजुम : ओके बेटा बाइ
समीर : बाइ (इतना कहते हुए समीर ने फोन रख दिया)
अंजुम ने समीर को पहले से ही आदम के आने की तारीख दे दी थी उस दिन उसकी माँ ने अंजुम को उसके बेटे का नंबर देके कहा था कि वो जब भी आए तो बस समीर को बता दे वो उससे मिलने का इच्छुक है वो उसे घर ले आएगा...अंजुम ने भी सहमति ज़ाहिर की...इस बारे में आदम को कुछ नही मालूम था...वो तो खुद समीर की प्रेज़ेन्स से घबरा जाता था वो था ही कुछ ऐसा मिस्टीरियस बाकी लड़को से अलग
समीर बाथरूम के पास आया और उसने दरवाजे पे हल्की दस्तक दी..."माँ माँ?"....लेकिन जवाब की जगह माँ की उल्टियों की आवाज़ सुन समीर चौंका...वो बौखलाए कुछ देर तक सोफीया का नाम पुकारता रहा...अचानक से सोफीया अपना मुँह पोंछते हुए बाहर आई उसकी आँखो में आँसू थे शायद पेट पे ज़्यादा दबाव और उल्टी के वक़्त हालत कुछ ऐसी ही होती है
समीर : माँ मैं!
सोफीया : अर्रे कुछ नही हुआ बाहर का कुछ खा लिया था शायद इस वजह से पेट खराब हो गया क्यूँ तू इतना बौखला गया?
समीर : माँ मुझे लगा कि आपको उल्टियाँ किसी और वजह से !
सोफीया ने पैनी नज़रो से समीर की ओर देखा...."डर मत मैं प्रेग्नेंट नही हुई हूँ पर हां मैने कॉपर टी लगवा लिया था तेरे पिताजी के जाने के बाद ताकि तेरे और हमारे प्यार में कोई कमी ना रहे".........
समीर की आँखे भावुक हो उठी
समीर ने अपनी रोती माँ के दोनो बाज़ुओ को पकड़ लिया "माँ आपको ये तक़लीफ़ सहने की ज़रूरत नही आप निकलवा हो कॉपर-टी मैं चाहता हूँ कि हमारे बीच जो अधूरापन रह गया उसे पूरा!".....
सोफीया ने समीर के होंठ पे उंगली रखी
सोफीया : नही नही समीर हम इस हद तक तो पहुच चुके हैं अब नही समीर लोग क्या कहेंगे?
समीर : टू हेल विद देम मुझे आप तक़लीफ़ में नही चाहिए...क्या होगा? ज़्यादा से ज़्यादा आप मेरे बच्चे की माँ बन जाएगी ना होने दीजिए मैं तो चाहता हूँ कि हमारे दो के बीच कोई तीसरा हमारा ही आए
सोफीया समीर के इस जुनून को देख सहम सी उठी...वो अपने बेटे के सीने से लग गयी..."तू फिकर मत कर सोफीया ज़माना मुझे तेरा हाथ थामने से नही रोक पाएगा".....समीर की आँखो में जैसे गुस्सा उबल उठा दुनिया के लोगो के प्रति....जिस समाज में उनके रिश्ते का कोई वजूद नही हो सकता था और अगर होता भी तो पाप होता
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