non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:01 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट........ 《 51 》

अब तक,,,,,,,,

"कुछ तो करना ही पड़ेगा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नुकसान तो दोनो तरफ से होना ही है। इस लिए कुछ करके ही नुकसान झेलते हैं। शायद ऐसा भी हो जाए कि सारा खेल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तुमने।" चौधरी ने कहा___"मगर सवाल ये है कि हम करेंगे क्या?"

"वही जो करने का सजेशन थोड़ी देर पहले अवधेश भाई ने दिया था।" अशोक ने कहा___"मगर उसमें थोड़ा चेंज करना पड़ेगा। वो ये कि लड़की के घरवालों को पहले हम दिलेरी से धरने जा रहे थे जबकि अब वही काम हम इस तरीके से करने की कोशिश करेंगे कि उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अवधेश श्रीवास्तव बोला__"मगर मुझे लगता है कि हमें एक बार ये सब करने से पहले फिर से इस बारे में सोच लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम खुद ही धर लिए जाएॅ।"
"कायर व डरपोंक जैसी बातें मत करो अवधेश।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब हम चुप भी नहीं बैटना चाहते हैं। साला हिंजड़ा बना कर रख दिया है उसने हमें। मगर अब और नहीं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे फैंसला सुना दिया था। किसी में भी इस फैंसले के खिलाफ़ जाने की हिम्मत न थी। इस लिए अब इस काम को अंजाम देने की समय सीमा पर विचार विमर्ष किया गया और उसके बाद अशोक और अवधेश अपने अपने घर चले गए। मगर आगे किसके साथ क्या होने वाला है ये किसी को कुछ पता न था।
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अब आगे,,,,,,,

उधर तहखाने में रितू जब पहुॅची तो वहाॅ की साफ सफाई देख कर खुश हो गई। अब यहाॅ पर पहले जैसी गंद नहीं थी। एक तरफ सूरज और उसके तीनो दोस्त हाथ ऊपर किये रस्सी से बॅधे खड़े थे। रितू को तहखाने में आया देख कर उन चारों की निगाह स्वयमेव ही उस तरफ उठती चली गई थी। चेहरों पर घबराहट के भाव एकाएक ही उजागर हो गए थे। चारों की हालत काफी ख़राब हो चुकी थी। ठीक से भोजन न मिलने की वजह से उनके जिस्म कमज़ोर से दिखाई दे रहे थे। दाढ़ी मूॅछें बढ़ गई थी जिससे पहचान में नहीं आ रहे थे वो। वहीं दूसरी तरफ दीवार के पास ही लकड़ी की एक कुर्सी पर मंत्री की बेटी रचना बैठी हुई थी। उसके दोनो हाॅ तथा दोनो पैर कुर्सी से इस तरह बॅधे हुए थे कि वह हिल डुल भी नहीं सकती थी।

"वाह काका।" तहखाने के फर्श पर चलते हुए रितू ने हरिया की तरफ देख कर कहा___"आपने तो कमाल ही कर दिया है। यहाॅ की साफ सफाई देख कर लगता ही नहीं है कि अभी थोड़ी देर पहले यहाॅ गंदगी का कितना बड़ा साम्राज्य कायम था।"

"ई सुसरे लोगन ने इहाॅ बड़का वाला गंदगी फेरे रहे बिटिया।" हरिया काका ने कहा___"यसे साफ तो करइन का परत ना। बस थोड़ी दिक्कत ता हुई पर हम सब बहुत अच्छे से कर लिया हूॅ।"
"हाॅ वो तो दिख ही रहा है काका।" रितू ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा___"ख़ैर, इन लोगों की ख़ातिरदारी अच्छी चल रही है न?"

"अरे बिटिया।" हरिया ने अजीब भाव से कहा___"ई कइसन सवाल हा? ई बात ता ई ससुरा लोगन का देख के ही समझ मा आ जई कि हम कितना अच्छे से ई लोगन केर खातिरदारी किया हूॅ। बस ई ससुरी छोकरिया बहुतै उछलत रही।"

"ऐसा क्यों काका?" रितू चौंकी।
"अरे ऊ का है ना बिटिया।" हरिया ने ज़रा नज़रें झुकाते हुए कहा___"ई चारो लोगन के जइसन एखरौ टट्टी पेशाब छूट गइल रहे। एसे हमका एखर नीचे का कपड़ा उतारैं का परा। पर हम सच कहत हूॅ बिटिया। हम एखे बदनवा का कछू नाहीं देखेन। एखे बावजूदव ई ससुरी चिल्लात रही यसे हम भी गुस्सा मा एक लाफा दै दिये इसको। ससुरी बहुतै गंदा गरियावत रही हमका। पर हमहू तबहिनै माने जब एखर सब कुछ साफ कर के चकाचक कर दिहे।"

"ओह तो ये बात है।" रितू मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली___"कोई बात नहीं काका। आपने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। वरना तो ये सब गंद फैलाते ही रहते न?"
"एक बार मेरे हाॅथ पैर को इस रस्सी से आज़ाद कर के देख कुतिया।" सहसा रचना ने एकाएक बिफरे हुए अंदाज़ से चीखते हुए कहा___"तेरे हाथ पैर तोड़ कर तेरे हाॅथ में न दे दूॅ तो कहना।"

रचना की इस बात से जहाॅ हरिया का पारा गरम हो गया था वहीं रितू उसे देख कर बस मुस्कुरा कर रह गई। फिर उसने सूरज और उसके दोस्तों की तरफ इशारा करते हुए रचना से कहा___"इन चारों को ग़ौर से देखो और पहचानो कि ये चारो कौन हैं?"

"मुझे नहीं पहचानना किसी को।" रचना ने पूर्व की भाॅति ही तीखे भाव से कहा___"ये सब तेरे यार हैं तू ही पहचान इन्हें।"
"मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तेरी इस गंदी ज़ुबान को काट कर तेरे पिछवाड़े में डाल दूॅ।" रितू के मुख से शेरनी की भाॅति गुर्राहट निकली___"मगर उससे पहले तुझे ये दिखाना चाहती हूॅ और बताना चाहती हूॅ कि तू जिनके दम पर इतना उछल रही है न उनकी औकात मेरे सामने कीड़े मकोड़ों से भी बदतर है। ग़ौर से देख इन चारों को। इनमें तेरा ही कोई अपना नज़र आएगा।"


रितू की ये भात सुन कर रचना ने पहले तो उसे आग्नेय नेत्रों से घूरा उसके बाद उसने उन चारों की तरफ अपनी निगाह डाली। सूरज अपनी बहन को ग़ौर से अपनी तरफ देखते देख बुरी तरह घबरा गया। वो नहीं चाहता था कि उसकी बहन उसे पहचाने। क्योंकि उसे पता था कि उस सूरत में उसकी बहन भयभीत हो जाएगी। उसने जब पहली बार ऑखें खोल कर रचना को देखा था तो बुरी तरह चौंका था साथ ही डर भी गया था। उसे रितू से इस सबकी उम्मीद नहीं थी। हलाॅकि रितू ने उससे कहा ज्ररूर था कि वो उसकी बहन को भी यहाॅ ले आएगी और वो सब उसके साथ बलात्कार करेंगे। मगर उसे लगा था कि ये सब रितू महज गुस्से में कह रही थी। जबकि ऐसा वो करेगी नहीं। मगर अब उसे समझ आ गया था कि रितू ने उस समय कोई कोरी धमकी नहीं दी थी बल्कि सच ही कहा था। जिसका प्रमाण इस वक्त रचना के रूप में उसके सामने कुर्सी पर बॅधा हुआ मौजूद था। ख़ैर उधर,

रितू की ये बातें सुन कर रचना ने जब ग़ौर से उन चारों की तरफ देखा तो एकाएक ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव आए और फिर जैसे एकाएक ही जैसे उसके दिलो दिमाग़ में विष्फोट हुआ। उसने पलट कर रितू की तरफ देखा।

"तेरे चेहरे के ये भाव चीख़ चीख़ कर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि तूने इन चारों को पहचान लिया है।" रचना के देखते ही रितू ने अजीब भाव से कहा___"और अब जब तूने पहचान ही लिया है तो पूछ इन चारों से कि ये सब यहाॅ कैसे और क्यों मौजूद हैं?"

रितू की इस बात का असर रचना पर तुरंत ही हुआ। उसके चेहरे पर एकाएक ही ऐसे भाव उभरे जैसे उसे उन चारों को इस हालत में देख कर बेहद दुख हुआ हो। ऑखों में पानी तैरता हुआ नज़र आने लगा था उसके।

"भ भाई।" फिर उसके मुख से लरज़ता हुआ स्वर निकला___"ये सब क्या है? आप चारो यहाॅ कैसे??"

रचना के इस सवाल पर सूरज चुप न रह सका। बल्कि ये कहना चाहिए कि अब उसके सामने कोई चारा ही नहीं रह गया था। इस लिए उसे अब अपनी बहन के सामने अपनी यहाॅ पर मौजूदगी का कारण बताना ही था। इस लिए चेहरे पर दुख के भाव लिए वह रचना को अपनी राम कहानी शुरू से लेकर अंत तक बताता चला गया। सारी बातें जानने के बाद रचना भौचक्की सी रह गई थी।

"और हम सब ये समझ रहे थे कि आप लोग उस घटना के चलते कहीं ऐसी जगह छुप गए हैं जहाॅ पर आप पुलिस व कानून की पहुॅच से दूर होंगे।" सारी बातें सुनने के बाद रचना ने आहत भाव से कहा___"मगर आप तो यहाॅ हैं भाई। ख़ैर, देख लिया न भाई बुरे का काम का बुरा अंजाम। कितना कहती थी आप लोगों को कि इस तरह किसी की ज़िंदगियों से मत खेलो। मगर आप लोग कभी मेरी बात नहीं सुनते थे। बल्कि हमेशा यही कहते थे कि लाइफ को एंज्वाय करो और मस्त रहो। मुझे भी ऐसा ही करने की नसीहत देते थे। मगर इससे हुआ क्या भाई? आज आप चारो यहाॅ इस हालत में मौजूद हैं। डैड को तो ख़्वाब में भी ये उम्मीद नहीं है कि उनके साहबज़ादे किस जगह किस हाल में हैं इस वक्त?"

"तूने सच कहा मेरी बहन।" सूरज ने रुॅधे हुए गले के साथ बोला___"ये सब मेरे पापों का ही प्रतिफल है। मैने कभी इस बारे में नहीं सोचा था कि जो कुछ मैं कर रहा था उसका अंजाम ऐसा भी होगा। हमेशा वही करता था जिसे करने में कदाचित मुझे दुनियाॅ का सबसे बड़ा और ज्यादा आनंद आता था। ख़ैर, मुझे अपने इस अंजाम का दुख नहीं है रचना क्योंकि ये मैने खुद ही कमाया है। दुख तो इस बात का है कि मेरी वजह से आज तू भी यहाॅ आ गई है और मैं ये सोच कर ही अंदर से बुरी तरह भयभीत हुआ जा रहा हूॅ कि जाने तेरे साथ ये इंस्पेक्टरनी क्या करेगी?"


"ये कुछ नहीं करेगी भाई।" रचना ने सहसा पुनः तीखे भाव अख़्तियार कर लिए___"इसे पता नहीं है कि इसने किसके बच्चों पर हाॅथ डाला है? इसने अब तक जो कुछ भी आपके और मेरे साथ किया है उसका अंजाम इसे ज़रूर भुगतना पड़ेगा। इसे इस बात का ज़रा सा भी एहसास नहीं है कि इसके साथ क्या क्या होगा?"

"रस्सी जल गई पर बल नहीं गया अब तक।" रितू ने रचना के सिर के बालों को पकड़ कर झटका दिया__"मुझे पता है कि तू ये सब किसके दम पर बोल रही है। मगर तुझे पता ही नहीं है कि तू जिसके दम पर ये राग अलापे जा रही है वो खुद बहुत जल्द यहाॅ तेरे सामने हाज़िर होने वाला है। मैने तेरे बाप दिवाकर चौधरी और उसके उन सभी दोगले दोस्तों को वो वीडियोज़ भेज दिये हैं जिन वीडियोज़ पर उनकी काली करतूतों का सामान मौजूद है। कितनी मज़े की बात है कि एक बेटा अपने ही बाप की ऐसी अश्लील वीडियो बना कर रखे हुए था जो अगर किसी के हाॅथ लग जाएॅ तो वो बड़ी आसानी से इसके बाप को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा दे।"

रितू की ये बात सुन कर रचना तो चौंकी ही साथ ही साथ सूरज और उसके दोस्त भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। पलक झपकते ही उनके चेहरों पर से रहा सहा रंग भी उड़ गया।

"कुछ समझ आया तुझे?" इधर रितू ने रचना के बालों को ज़ोर से खींचा___"सारे शहर को अपनी मुट्ठी में रखने वाला तेरा बाप और उसके दोस्त अब मेरी गुलामी करने पर मजबूर हैं। मैं अगर उसे कहूॅ कि टट्टी खा तो उसे खाना पड़ेगा। अब बता किसके दम पर इतना उछल रही है तू? जबकि मैने तो यहाॅ तक सोचा हुआ कि जिस दिन तेरा बाप और दोस्त यहाॅ आएॅगे तो उनके स्वागत में तुझे ही नंगी करके उनके सामने डाल दूॅगी। फिर देखूॅगी कि नंगी और गोरी चमड़ी को उस हालत में देख कर कैसे उनके खून में उबाल आता है?"

"नहींऽऽ।" रितू की बात को समझते ही तहखाने में रचना के साथ साथ सूरज और उसके दोस्तों का आर्तनाद गूॅज उठा, जबकि सूरज गिड़गिड़ाया___"प्लीज ऐसा मत करना इंस्पेक्टर। मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ता हूॅ। हर चीज़ के अपराधी मैं और मेरा बाप है ये सच है मगर मेरो बहन बेकसूर है। उसे इस सबमें मत घसीटो प्लीज।"

"हाहाहाहाहा ई का?" सहसा वहीं पर खड़ा हरिया ज़ोर से हॅस पड़ा___"ई का बिटिया। ई सरवा ता एतने मा ही गला फाड़ै लाग। कउनव सच ही कहे रहा कि जब बात ससुरी अपने मा आवथै तबहिन समझ मा आवथै कि ओसे का मज़ा मिलथै? ई ससुरन के साथ ता इहै होय का चाही बिटिया। हम भी देखूॅगा कि ऊ सबसे ई लोगन केर का हाल होथै?"

"बिलकुल काका।" रितू ने कहा___"ये काम भी आपको ही करना है और कैसे करना है ये आप जानो।"
"अरे चिंता न करा बिटिया।" हरिया अंदर ही अंदर खुशी से झूमता हुआ बोल पड़ा___"ई काम ता हम बहुतै अच्छे से करूॅगा। कउनव शिकायत ना होई तोहरा के, ई तोहरे हरिया काका के वादा बा। ऊ ससुरे मंत्रीवा केर ओखे ई छोकरिया के साथ बहुतै अच्छे से ख़ातिरदारी करूॅगा हम।"

"शाबाश काका।" रितू मुस्कुराई___"मुझे आपसे यही उम्मीद है। मुझे पता है आप अपना काम बहुत अच्छे से करते हैं।"
"हाॅ ई ता हा बिटिया।" हरिया काका गर्व से अकड़ते हुए बोला___"हम आपन काम बहुतै अच्छे से करता हूॅ। कउनव परकार केर शिकायत का मौका नाहीं देता हूॅ। समय आवैं ता पहिले फेर तू देख लीहा। हम ई ससुरन के नानी केर नानी ना याद दिलाई ता कहना।"

"नहीं नहीं।" रचना तो भयभीत होकर चीखी ही किन्तु सूरज बुरी तरह भयभीत होकर रो पड़ा था___"ये सब मत करो इंस्पेक्टर। ये आदमी बहुत ज़ालिम है। प्लीज मेरी बहन के साथ कुछ भी ऐसा वैसा मत करो। जो कुछ करना है हमारे साथ करो।"

"और चीखो।" रितू बिजली की तरह सूरज के पास पहुॅची थी, गरजते हुए बोली___"और तड़पो। मगर कोई फायदा नहीं होगा। मैं तुम सबका वो हाल करूॅगी कि किसी भी जन्म में ये सब करने के बारे में सोचोगे भी नहीं और अगर सोचोगे भी तो कर नहीं पाओगे। क्योंकि नामर्द कुछ कर नहीं सकते और तुम सब हर जन्म में नामर्द ही पैदा होगे।"

"अगर ये बात है।" सहसा सूरज ने अजीब भाव से कहा___"तो मुझमें और तुममें क्या फर्क़ रह गया इंस्पेक्टर? हर अपराध की तो यकीनन सज़ा होती है मगर उस सज़ा में वो सब तो नहीं होता न जिस सज़ा को पाप कहा जाए या उसे अनैतिक करार दिया जाए? तुमने जो कुछ करने का सोचा हुआ है वो तो हर तरह से अनैतिक है, पाप है।"


"तुम्हारे मुख से अनैतिक व पाप पुन्य की ये बातें अच्छी नहीं लगती मिस्टर।" रितू ने कहा___"मुझे तुमसे ज्यादा इन चीज़ों का ज्ञान है। मुझे पता है कि मैं क्या करने जा रही हूॅ। तुम्हें इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि तुम तो अनैतिक व पाप कर्म करने के आदी हो। इस लिए बस खुली ऑखों से उस सबको देखने के लिए तैयार हो जाओ जो बहुत जल्द यहाॅ दिखने वाला है।"

"इस कुतिया के सामने मत गिड़गिड़ाओ भाई।" सहसा रचना बोल पड़ी___"ये खुद भी वैसा ही कर्म करने वाली लगती है, वरना ऐसी बातें इसके दिमाग़ आती ही नहीं। पुलिस वाली है न, इस लिए हर किसी के नीचे लेट जाती होगी। ऐसी नौकरी में होता ही यही है आहहहहह।"

"तोहरी माॅ को चोदूॅ छिनाल।" रचना की बात सुनते ही हरिया आग बबूला होकर उसको धर दबोचा था___"तोहरी ई हिम्मत की हमरी बिटिया के बारे मा अइसन कहथो। रुक अबहिन हम तोहरा का बताथैं कि कउन केखर सामने लेटत है?" हरिया ने सहसा रितू की तरफ देखा__"बिटिया तू जा इहाॅ से। हम एखर ई ज़बान बोलैं का अंजाम दिखावथैं।"

"नहीं प्लीज उसे छोंड़ दो।" रितू के कुछ कहने से पहले ही सूरज चीख पड़ा था___"उसकी तरफ से मैं माफ़ी माॅगता हूॅ। प्लीज इंस्पेक्टर इस आदमी को कहो कि मेरी बहन को कुछ न करे।"
"काका इसे बस थोड़ा सा डोज देना।" रितू ने सूरज की बात की तरफ ध्यान दिये बिना हरिया से कहा___"बाॅकी इसके साथ आग़ाज़ तो इसका बाप करेगा। आप समझ रहे हैं न मेरी बात?"

"हम सब समझ गया हूॅ बिटिया।" हरिया ने कहा__"अब तू जा इहाॅ से। हम ई ससुरी का बतावथैं कि तोहसे अइसन बोलैं का अंजाम का होथै?"
"मेरे साथ अगर कोई बद्दतमीजी की तो अंजाम अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए।" रचना चीखी___"छोंड़ दो मुझे। वरना बहुत पछताओगे तुम सब।"

रितू ने उसकी तरफ हिकारत भरी दृष्टि से देखा और तहखाने के बाहर की तरफ चली गई। उसके इस तरह जाते ही सूरज गला फाड़ कर चिल्लाने लगा था। बार बार कह रहा था कि उसकी बहन को छोंड़ दो। मगर रितू न रुकी। जबकि रितू के जाते ही हरिया ने लपक कर तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर वापस पलट कर सूरज की तरफ बढ़ा।

"का रे मादरचोद।" हरिया ने सूरज के पेट में एक लात जमाते हुए कहा___"काहे अइसन गला फाड़ रहा है? अब बता तोहरी ई राॅड बहन केर का खातिरदारी करूॅ हम? हमरा ता बहुतै मन करथै कि तोरी ई बहनिया केर मदमस्त जलानी केर मजा लूॅ मगर हमरी बिटिया ने ऊ सब केर इजाजत ना दिये रही। एसे अब हम तोरे साथै आपन ऊ पसंद वाला काम करूॅगा।"
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11-24-2019, 01:01 PM,
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"नहीं नहीं प्लीज काका।" हरिया की बात समझ कर सूरज बुरी तरह हिल गया, बोला___"वो सब मत करो। मैं अपनी बहन के सामने वो सब नहीं करना चाहता।"
"अबे बुड़बक।" हरिया ने सूरज के चेहरे पर अपनी हथेली फेरते हुए कहा___"हम ससुरे तोहरी इच्छा थोड़ी न पूछत हूॅ। हम ता अपनी पसंद केर बात करत हूॅ। अउर ऊ ता होबै करी बछुवा काहे से के ऊ हमरी ख्वाहिश केर बात हा। एसे चल अपना पिछवाड़ा खोल।"

सूरज नहीं नहीं करता ही रह गया मगर हरिया भला कहाॅ मानने वाला था। उसने सूरज की रस्सी को ऊपर से छोरा और मजबूती से पकड़ कर उसके कच्छे को एक हाॅथ से नीचे सरका दिया। रचना ये सब अपनी खुली ऑखों से देख रही थी। जैसे ही हरिया ने उसके भाई के कच्छे को नीचे किया वैसे ही उसे झटका लगा। आश्चर्य से उसकी ऑखें फटी रह गईं। फिर सहसा जैसे उसे होश आया उसने झट से अपनी ऑखें बंद कर ली। भला वो अपने भाई को नग्न हालत में कैसे देख सकती थी?

उधर हरिया ने सूरज को पकड़े ही उसे रचना के पास खींच कर लाया और उसके सामने लाकर रचना की तरफ देख कर बोला___"ई देख ससुरी हम तोहरे ई भाई के साथ का करथूॅ। हम चाहूॅ ता अबहिन दुई मिनट मा तोहरे भाई का ई दुई इन्च का लौड़ा तोहरी चूॅत मा पाल दूॅ मगर पेलूॅगा नाहीं। ऊ ता तोहरा बाप अपने लौड़ा से तोहरी चूत का पेलेगा। ई बखत ता हम तोहरे ई भाई की गाड पेलूॅगा। ई देख।"

हरिया की बातों ने रचना के होश उड़ा दिये थे। उसे पहली बार एहसास हुआ कि वो कितनी खतरनाक जगह पर आ गई है। यहाॅ पर उसकी उसके भाई की और उसके बाप की चलने वाली नहीं थी। ये सोच सोच कर ही वह थरथर काॅपे जा रही थी। उसने शख्ती से अपनी ऑखें बंद की हुई थी। उधर सूरज शर्म की इंतेहां की हद से गुज़र रहा था। आत्मग्लानी और अपमान में डूबा था वह। वह बुरी तरह हरिया से छूटने की मसक्कत कर रहा था। किन्तु छूट नहीं पा रहा था। उसमें अब इतनी ताकत भी न बची थी कि वो कोई ज़ोर आजमाइश कर सके।

हरिया ने मजबूती से पकड़ कर उसे आगे की तरफ झुका दिया और अपनी धोती को एक साइड कर अपने हलब्बी लौड़े को बाहर निकाल लिया। एक हाथ से अपने लौड़े को पकड़ कर उसने सूरज की गाड में निशाना लगा दिया। इसके साथ ही सूरज की हृदय विदारक चीख तहखाने में गूॅज गई। सूरज के लाख प्रयासों के बावजूद उसके हलक से चीख निकल गई थी और वो हो गया जिसे वह किसी सूरत में होने नहीं देना चाहता था। इधर अपने भाई की इतनी भयानक चीख सुनकर रचना बुरी तरह डर गई। उसने पट्ट से अपनी ऑखें खोल कर अपने भाई की तरफ देखा और ये देख कर तो उसकी ऑखें ही बाहर की तरफ उबल पड़ी कि उसके भाई की गाड में हरिया का मोटा तगड़ा लौड़ा जड़ तक घुसा पड़ा था। जबकि सामने की तरफ झुका हुआ उसका भाई झटके खा रहा था। उसकी ऑखों से ऑसू बह रहे थे। रचना को अपने भाई की इस दसा पर बड़ा अजीब सा लगा। उसकी अंतर्आत्मा तक काॅप गई थी ये भयावह मंज़र देख कर। उसे एकाएक ही एहसास हुआ कि उसके भाई की ये दसा उसकी वजह से ही हुई है। अगर उसने रितू को वो सब न कहा होता तो शायद ये सब न होता। उसे खुद पर बेहद गुस्सा आया। मगर अब क्या हो सकता था। अपने भाई को इस दीनहीन दसा में देख कर उसकी ऑखों से ऑसू बहने लगे।

उधर हरिया थोड़ी देर रुकने के बाद अपनी कमर को झटका देना शुरू कर दिया था। सहसा उसने अपने सिर को ज़रा सा घुमा कर रचना की तरफ देखा। रचना और हरिया की ऑखें आपस में टकरा गईं। रचना ने घबरा कर तुरंत ही अपनी ऑखें बंद कर अपने सिर को झुका लिया। ये देख कर हरिया मुस्कुरा उठा। उसके बाद तो जैसे तहखाने में हरिया के झटकों से निकलती थाप थाप की आवाज़ें और सूरज की घुटी घुटी सी गूॅजती रहीं। जहाॅ एक तरफ अपने दोस्त की इस दसा पर उसके तीनो दोस्त बेहद दुखी थे वहीं दूसरी तरफ रचना अपने भाई की इस दसा पर थरथर काॅपे जा रही थी।
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11-24-2019, 01:02 PM,
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तहखाने से बाहर आकर रितू तेज़ तेज़ क़दमों के साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ गई थी। कमरे में आते ही उसने आलमारी से अपना वो मोबाइल निकाला जिसे उसने अपने एक मुखबिर से खरिदवाया था। उस फोन को अपनी पाॅकेट में डाल कर उसने अपने आईफोन को स्विच ऑफ किया और उसे भी अपनी जेब में डाल लिया। उसके बाद उसने आलमारी से अपना सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे चेक किया तत्पश्चात उसे भी अपनी जीन्स की बेल्ट में खोंस लिया। टाप के ऊपर उसने एक लेदर की जाकेट पहना और टेबल से जिप्सी की चाभी लेकर वह कमरे से बाहर निकल गई।

बाहर लान में एक तरफ खड़ी जिप्सी में बैठ कर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और मेन गेट से बाहर आ गई। इस बार उसकी जिप्सी का रुख पुल की तरफ न होकर उस तरफ था जिस तरफ फार्महाउस के बगल से एक अन्य रास्ता किसी दूसरी जगह की तरफ जाता था। रितू ने इस रास्ते को जानबूझ कर चुना था क्योंकि उसे पता था कि नहर पर बने पुल की तरफ वाले रास्ते पर आगे ख़तरा था। उसके बाप के आदमी कहीं भी उसे मिल सकते थे। हलाॅकि रितू को पता था कि उसके बाप को सीबीआई वाले ले गए थे। किन्तु फिर भी उसे ये तो एहसाह था ही कि उसके बाप के आदमी खुले घूम रहे हैं।

लगभग दस मिनट बाद रितू ने जिप्सी को एक ऐसी जग। पर रोंका जहाॅ पर एक पवन चक्की लगी थी। दाहिने तरफ दूर एक पहाड़ था जो कि गेरुए रंग का था। बाॅकी दूर दूर तक सुनसान इलाका पड़ा हुआ था। पवन चक्की से लगभग पचास गज की दूरी पर ही रितू ने मेन सड़क हे उतार कर जिप्सी को रोंका हुआ था। कुछ देर आस पास का जायजा लेने के बाद उसने अपने जीन्स की पाॅकेट से नये मोबाइल को निकाला और उसे स्विच ऑन किया। स्विच ऑन होते ही उसने उस पर कोई नंबर डायल कर उसने मोबाइल को कान से लगा लिया।

"क्या हाल चाल हैं तेरे मंत्री?" उधर से फोन उठाते ही रितू ने मर्दाना आवाज़ में कहा था।
"मेरे हाल की छोंड़।" उधर से मंत्री का लगभग तीखा स्वर उभरा__"तू अपने हाल की चिन्ता कर।"
"ओहो ऐसा क्या?" रितू ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"मेरे हाल का क्या होने वाला है भला?"

"चिंता मत कर।" उधर से मंत्री ने कहा___"बहुत जल्द तेरा हाल बेहाल करने वाला हूॅ मैं। मुझे पता चल गया है कि मेरे साथ ऐसा दुस्साहस करने वाला तू कौन है। इस लिए अब मैं तेरा वो अंजाम करूॅगा जो आज तक किसी ने ना तो सोचा होगा और ना ही सुना होगा।"

मंत्री दिवाकर चौधरी की इस बात से रितू बुरी तरह चौंकी। उसके मन में सवाल उभरा कि मंत्री को भला उसके बारे में कैसे पता चल गया? क्या कमिश्नर साहब ने उसे उसके बारे में बताया? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। कमिश्नर साहब उसके बारे में उसको तो क्या बल्कि किसी को भी कुछ नहीं बता सकते। उन्हें पता है कि मंत्री इस प्रदेश के लिए कितना हानिहारक है। उन्होंने मंत्री के खिलाफ़ इस जंग को अंजाम तक पहुॅचाने का खुद हुक्म दिया था। फिर भला वो कैसे उसके बारे में उसे बता देंगे? नहीं नहीं ऐसा संभव नहीं है। तो फिर मंत्री को उसके बारे में कैसे पता चल गया? रितू का दिमाग़ तेज़ी से इधर उधर भाग दौड़ कर रहा था। मगर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सहसा उसके मन में ख़याल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके ही पुलिस डिपार्टमेन्ट का कोई पुलिस वाला मंत्री को सब कुछ बताया हो। मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्योंकि ये केस बहुत ही गोपनीय था। इसके बारे में कमिश्नर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था। सहसा रितू को उन पुलिस वालों की याद आई जिन्हें उसने सूरज के फार्महाउस में सूरज से लड़ाई करने के बाद सस्पेण्ड किया था। रितू की लगा कि यकीनन उन्हीं ने मंत्री को सब कुछ बताया होगा। क्योंकि उन्हें तो पता ही था कि उसने सूरज और उसके दोस्तों से फार्महाउस पर लड़ाई की थी और उन चारों को अधमरा कर दिया था। रितू को यकीन हो गया कि उन पुलिस वालों ने ही मंत्री को सब कुछ बताया है और अब मंत्री उसके लिए काल बन कर अपना क़हर बरसाने वाला है।

"क्या हुआ चौहान के बच्चे?" रितू को इतनी देर से ख़ामोश जान कर उधर से मंत्री ने चहकते हुए कहा___"हवा निकल गई क्या तेरी?"

मंत्री का ये वाक्य सुन कर रितू के ज़हन में जैसे विष्फोट सा हुआ। सारा मामला पल भर में उसकी समझ में आ गया। उसे समझ में आ गया कि मंत्री ने उस रेप पीड़िता लड़की यानी विधी के चलते ये पता लगाया है। उसने पता किया होगा कि उसके बच्चों ने जिस लड़की के साथ रेप को अंजाम दिया था वो लड़की विधी थी जो उसके ही बच्चों के काॅलेज में पढ़ती थी। मंत्री ने अपनी तरफ से छानबीन की होगी कि इस मामले में पुलिस ने तो अपना हाॅथ नहीं डाला और ना ही कोई केस वगैरह हुआ। मगर लड़की के साथ जो कुछ हुआ उसे उसके घर वाले सहन नहीं कर सके। इस लिए संभव है कि लड़की के बाप ने अपनी बेटी के साथ हुए इस अत्याचार का बदला लेने के लिए ये सब किया है। रितू ने स्वीकार किया कि मंत्री का सोचना एकदम जायज़ है।क्योंकि उसके साथ ये सब करने की वजह सिर्फ और सिर्फ विधी के बाप के पास ही थी और अब वह इस मामले को जान कर विधी के घर वालों के ऊपर क़हर बन कर टूटने वाला है।

रितू ने राहत की साॅस तो ली किन्तु उसे अब विधी के माॅ बाप की चिंता सताने लगी थी। वो जानती थी कि इस केस से विधी के घर वालों का कोई लेना देना नहीं है। वो बेचारे तो बेक़सूर हैं। रितू विधी के पैरेन्ट्स के लिए फिक्रमंद हो उठी थी। मगर फिर जैसे उसे ख़याल आया कि उसे इतना चिंता करने की क्या ज़रूरत है? उसके पास तो मंत्री और उसके साथियों के खिलाफ़ सबूत के रूप में ऐसा डायनामाइट है जो अगर पब्लिक के सामने आ जाए तो मंत्री और उसके साथी एक ही पल में उस डायनामाइट के विष्फोट से तहस नहस हो जाएॅगे। इस ख़याल के आते ही रितू के खूबसूरत होठों पर मुस्कान फैल गई। जबकि,

"लगता है तेरे सभी देवता कूच कर गए हैं चौहान।" उधर से मंत्री का ठहाका गूॅजा___"तुझे समझ आ गया होगा कि अब तेरे साथ क्या होने वाला है। मगर चिंता मत कर। मैं तुझे एक सुनहरा मौका देता हूॅ। सुना है कि तेरी बीवी बहुत सुंदर है, बिलकुल वैसी ही जैसी तेरी वो बेटी थी जिसे हमारे बच्चों ने रगड़ रगड़ कर पेला था। हो भी क्यों न, आख़िर खूबसूरत माॅ की कार्बन काॅपी जो थी। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि अगर तुझे अपनी और अपने परिवार की ज़रा सी भी फिक्र है तो तू अपनी उस खूबसूरत बीवी को हमारे हरम में ले आ। अगर तेरी बीवी ने मुझे और मेरे सभी साथियों को खुश कर दिया तो सोचूॅगा कि तुझे तेरी इस हिमाक़त के लिए माफ़ कर दूॅ।"

"ज्यादा उड़ मत रंडी की औलाद।" रितू ने मर्दाना आवाज़ में गरजते हुए कहा___"तूने अगर मेरे बारे में ऐसा वैसा सोचने की कोशिश की तो सोच लेना कि तेरी बेटी मेरे कब्जे में ही है। उसके साथ मैं क्या क्या करूॅगा ये तू सोच भी नहीं सकता। मुझे अपनी ज़रा सी भी परवाह नहीं है क्योंकि मैं छोटा आदमी हूॅ और बेटी के मरने के बाद वैसे भी अब मुझमें जीने की कोई ख्वाहिश नहीं है। मगर तेरा क्या होगा नाली के कीड़े? तू तो इस प्रदेश की नाॅक और कान है न। तेरे वो रंगीन वीडियो अभी भी मेरे पास हैं। मैं चाहूॅ तो इसी वक्त उन्हें सोसल मीडिया पर डाल कर तेरी और तेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ा दूॅ। उसके बाद तेरे पीछे प्रदेश की जनता और पुलिस इस तरह कुत्तों की तरह दौड़ पड़ेगी कि साले तुझे कहीं पर छुपने की जगह भी न मिलेगी।"

रितू की इन खतरनाक बातों से उधर सन्नाटा सा छा गया। ऐसा लगा जैसे मंत्री को साॅप सूॅघ गया हो। सच ही तो था। उसे कदाचित इस बात का ध्यान ही नहीं रह गया था कि उसके सबसे बड़े रक़ीब के पास उसके खिलाफ़ कितना बड़ा डायनामाइट मौजूद है।

"अब बोलता क्यों नहीं हरामज़ादे?" रितू ने पुनः दहाड़ते हुए कहा___"तेरी अम्मा मर गई क्या? एक बात कान खोल कर सुन ले। तू ये मत समझना कि मैं यहाॅ पर अकेला हूॅ और तेरे आदमी मुझे पल भर में हजम कर जाएॅगे। इतना कमज़ोर भी नहीं हूॅ मैं। मुझे तेरे क्रिया कलाप की पल पल की ख़बर है और मैने अपने चारो तरफ गुप्त रूप से ऐसे आदमी लगा रखे हैं जो मुझे सुरक्षा भी प्रदान करते हैं और ये भी बताते हैं कि तेरा अगला क़दम क्या होने वाला है। इस लिए तू कुछ भी करने या सोचने से पहले ये ज़रूर सोच लेना कि तेरी कोई भी छोटी बड़ी हरकत तेरा वो अंजाम कर देगी जिसके बारे में अभी मैने तुझे बताया था। तेरी बेटी और वो चारो लड़के मेरे कब्जे में हैं और मैं चाहूॅ तो तेरी बेटी के साथ तेरे ही बच्चों की वैसी वीडियो क्लिप बना कर तुझे भेज दूॅ जैसी वीडियो तेरे पास मैं पहले भी भेज चुका हूॅ। यकीन न हो तो बोल, मुझे तेरी बेटी की हाॅट वीडियो बनाने में ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा।"

"नहीं नहीं प्लीज ऐसा ग़ज़ब मत करना।" उधर से मंत्री का गिड़गिड़ाहट से भरा स्वर उभरा___"मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ता हूॅ। मुझसे ग़लती हो गई जो मैने तुम्हें वो सब कहा। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूॅगा जिससे मुझे खुद ही गर्त में डूब जाना पड़े। मगर,,,,

"अटक क्यों गया हिजड़े?" रितू गुर्राई___"बोल न, मगर क्या?"
"मगर मैं ये जानना चाहता हूॅ।" मंत्री ने कहा___"कि ये सब कब तक चलेगा? मेरा मतलब है कि तुम्हें जो चाहिए वो मैं बिना सोचे समझे देने को तैयार हूॅ। मगर तुम मेरे बच्चों को कुछ भी नहीं करोगे।"

"तू मेरे सामने कोई कंडीशन रखने की पोजीशन में कहाॅ है कुत्ते?" रितू ने कहा___"और तू भला मुझे देगा क्या? तेरी औकात क्या है मुझे कुछ देने की? तू तो साले खुद ही भिखारी है। हर पाॅच साल में भिखारी की तरह जनता के सामने हाॅथ फैलाए पहुॅच जाता है। ये अलग बात है कि जनता की भीख का तू गंदे तरीके से फल देता है। उसी का अंजाम तो भुगतना है तुझे। इस प्रदेश से तेरे जैसे लोगों की सल्तनत ही नहीं बल्कि नामो निशान तक मिटाने का सोच लिया है मैने।

और हाॅ, किसी भी तरह की रियायत की उम्मीद मत करना। क्योंकि वो तेरे जैसों के लिए मेरी अदालत में है ही नहीं।"

"मैं मानता हूॅ कि मेरे बच्चों ने तुम्हारी बेटी के साथ बहुत बुरा सुलूक किया था।" उधर से मंत्री का धीर गंभीर स्वर उभरा___"और ये भी मानता हूॅ कि मैने अपने कार्यकाल में प्रदेश की जनता के साथ बहुत बुरा किया है। मगर जो गुज़र गया उसे तो लौटाया नहीं जा सकता न? हाॅ इतना वचन ज़रूर देता हूॅ कि आइंदा से प्रदेश की जनता के साथ कुछ भी बुरा नहीं करूॅगा बल्कि हर दम हर पल अच्छा करने की कोशिश करेगा। मैने जिसका जो भी बुरा किया है उसका नुकसान मैं दोगुने भाव से भरूॅगा।"
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11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"तू क्या भरेगा दोगले इंसान।" रितू ने फटकार सी लगाते हुए कहा___"तू तो सिर्फ जनता का खून चूसना जानता है। आज ये सब इस लिए बक रहा है क्योंकि मैने तेरे पिछवाड़े में डंडा घुसाया हुआ है। वरना तू अपनी वही औकात दिखाता जो हमेशा से सबको दिखाता आया है। मैं तेरी किसी भी बातों पर आने वाला नहीं हूॅ। तेरा और तेरे साथियों का अंजाम मेरे द्वारा लिखा जा चुका है चौधरी। इस लिए मुझसे रहम की भीख मत माॅग। बल्कि मरने से पहले अगर कुछ अच्छा करना चाहता है तो उन मजलूम लोगों के कुछ कर जिनका तूने खाया है और जिन पर तूने अत्याचार किया है। संभव है कि तेरे ऐसा करने पर मैं तेरे अंजाम को बदतर न होने की सूरत पर विचार करूॅ।"

"मैं करूॅगा चौहान।" उधर से मंत्री के स्वर में राहत के भावों की झलक दिखी___"ज़रूर करूॅगा मैं। मैं हर उस ब्यक्ति का भला करूॅगा जो मेरे द्वारा किसी भी तरह से सताया गया है और ये काम मैं आज से ही नहीं बल्कि अभी से करना शुरू कर दूॅगा। बस तुम मेरे बच्चों के साथ कुछ बुरा मत करना।"

"पहले जो कह रहा है उसे करके तो दिखा चौधरी।" रितू ने कहा___"अगर मुझे नज़र आया कि तेरी वजह से प्रदेश की समूल जनता खुश हो गई है तो यकीन मान तेरे अंजाम की स्थित में ज़रूर कुछ कमी कर दूॅगा।"
"ओह बहुत बहुत शुक्रिया चौहान।" मंत्री ने खुश होकर कहा___"मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूॅ कि बहुत जल्द तुम प्रदेश की इस जनता को मेरी वजह हे खुश होते हुए देखोगे।"
"ओके बेस्ट ऑफ लक।" रितू ने कहा और काल कट कर दी।

मंत्री दिवाकर चौधरी से बात करने के तुरंत बाद ही रितू ने उस मोबाइल फोन को स्विच ऑफ कर दिया था। इस वक्त उसके चेहरे पर असीम राहत के भाव थे। राहत के भाव इस लिए कि उसने विधी के माॅ बाप को चौधरी के क़हर से किसी तरह बचा लिया था। मगर उसे पता था कि चौधरी बहुत ही दोगला इंसान है। संभव है कि उसने उसे झूॅठा आश्वासन दिया हो। जबकि वो करे वही जो उसने उससे शुरू में कहा था। अतः रितू का अब पहला काम यही था कि किसी तरह से विधी के माॅ बाप को मंत्री के क़हर से सुरक्षित करे। मगर समस्या ये थी कि कैसे? क्योंकि विधी का गाॅव हल्दीपुर के बाद पड़ता था। जिसका रास्ता दो तरफ से था। एक हल्दीपुर से तो दूसरा नहर के पास से जो दूसरा रास्ता गया था। ये दोनो रास्ते ऐसे थे जिन पर मौजूदा हालात में जाना ख़तरे से खाली नहीं था। क्योंकि रितू को पता था कि उसका बाप भले ही इस वक्त सीबीआई के सिकंजे में था मगर उसके साथी और उसके आदमी तो आज़ाद ही थे जो हर तरफ फैले हुए होंगे।

रितू के लिए आज बस का दिन और रात किसी तरह गुज़ारनी थी। कल तो उसका भाई विराज आ ही जाएगा। हलाॅकि वो चाहती तो पुलिस प्रोटेक्शन ले सकती थी और धड़ल्ले से कहीं भी आ जा सकती थी किन्तु वह अपने प्यारे भाई राज की बात को टालना नहीं चाहती थी। उसने भी तो वादा किया था उससे कि वो ये जंग उसके साथ ही मिल कर लड़ेगी। मगर अब चूॅकि विधी के माॅ बाप की सुरक्षा का सवाल था तो उसे कुछ तो करना ही था। इस लिए अब वो यही सोच रही थी कि विधी के माॅ बाप को किस तरह से सुरक्षित करे?

पवन चक्की के पास जिप्सी में बैठी रितू कुछ देर तक इस समस्या के बारे में सोचती रही। उसके बाद उसने इस सबको अपने दिमाग़ से झटका और जिप्सी को स्टार्ट कर वापसी के लिए मुड़ गई।
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11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर हवेली में!
सुबह से दोपहर और दोपहर से अब शाम होने वाली थी। प्रतिमा अपने कमरे में बेड पर पड़ी हुई थी। सारा दिन उसने इसी सोच विचार में गुज़ार दिया था कि वो अपने बाप से कैसे बात करे? हलाॅकि इस बीच उसने मुम्बई में अपनी बड़ी बहन से फोन पर अपने बाप जगमोहन सिंह का मोबाइल नंबर ले लिया था। उसकी बहन इस बात से हैरान भी हुई थी। उसके पूछने पर प्रतिमा ने उसे सारी बातें बता दी थी कुछ बातों को छोंड़ कर। किन्तु अपने बाप का मोबाइल नंबर लेने के बाद भी प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपने पिता को फोन लगाए।

उसकी इस हालत से शिवा भी परेशान था। उसने उन आदमियों का गेस्ट हाउस में रहने का इंतजाम भी कर दिया था। चिंतित व परेशान तो वो खुद भी था अपने बाप के लिए मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद ऐसा क्या करे जिससे सारी समस्याएॅ खत्म हो जाएॅ।

इस वक्त भी वो अपनी माॅ के कमरे में ही आया हुआ था और कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर बैठा हुआ था। उसकी नज़रें अपनी माॅ के मुरझाए हुए चेहरे पर केन्द्रित थीं। उसे इस बात से तक़लीफ भी हो रही थी कि वो कुछ कर नहीं पा रहा था। उसे आज समझ आ रहा था कि खुद कोई काम करना कितना मुश्किल होता है। आज तक तो वह बनी बनाई जलेबी ही खा रहा था। मगर जब खुद ही जलेबी बनाने का नंबर आया तो उसका दिलो दिमाग़ जैसे कुंद सा पड़ गया था। उसे पहली बार लगा कि बेबसी क्या होती है? सब कुछ होते हुए भी कुछ न कर पाना किसे कहते हैं?

"ऐसे कब तक हताश बैठी रहेंगी माॅम?" फिर उसने प्रतिमा को देखते हुए ही कहा___"ये तो आपको भी पता है कि हम अगर कुछ करना भी चाहें तो नहीं कर सकते। इस लिए अगर नाना जी के द्वारा हमारी समस्या का समाधान हो सकता है तो क्यों नहीं बात करती आप उनसे? दोपहर से देख रहा हूॅ मैं आपको। आप इसी तरह गहरी सोच में डूबी बैठी हुई हैं। इस तरह भला कब तक बैठी रहेंगी आप? आप जानती हैं कि डैड को सीबीआई के चंगुल से निकालना कितना ज़रूरी है। डैड के बिजनेस से संबंधित साथियों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए भेज दिये हैं। अब उनको हम यूॅ ही तो चुपचाप यहाॅ नहीं बैठाए रह सकते न? इस लिए माॅम आप अपने दिमाग़ से सारी बातों को निकालिए और नाना जी को फोन लगा कर उनसे बात कीजिए।"

"कैसे फोन लगा दूॅ बेटा?" प्रतिमा ने सहसा हताश भाव से कहा___"और किस मुह से फोन लगाऊॅ अपने बाप को?"
"क्या मतलब माॅम??" शिवा चकराया।
"तुम इस सब को जितना आसान समझते हो न वो इतना आसान नहीं है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा सोचो कि अपने बाप से संबंध तोड़े मुझे कितने साल हो गए। अपनी खुशी व अपने स्वार्थ के लिए मैने अपने उस पिता को त्याग दिया था जिनका इस दुनियाॅ में हम दोनो बहनों के सिवा दूसरा और कोई नहीं था। मैं ही सबसे ज्यादा अपने पिता की लाडली थी और मैने ही उन्हें सबसे ज्यादा दुख दिया और निराश भी किया। आज मुझे इस बात का बखूबी एहसास है बेटा कि अपनी औलाद की बेरुखी के चलते एक बाप ने आज तक कितनी तक़लीफ़ और कितना दुख सहा होगा। ये सवाल तो उठेगा ही बेटा कि इसके पहले मुझे अपने बाप की याद क्यों नहीं आई? इसके पहले मैने क्यों ये जानना भी ज़रूरी नहीं समझा कि जगमोहन सिंह नाम का कोई ब्यक्ति जो कि मेरा बाप है वो ज़िंदा भी है या कि मर गया है? आज अगर मुझ पर ये मुसीबत न आती तो ज़ाहिर है कि आइंदा भी मैं अपने बाप से बात करने के बारे में सोचती भी नहीं। ये ऐसी बात है बेटा जिसकी वजह से मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही कि मैं अपने बाप को फोन लगा कर उससे बात कर सकूॅ। जबकि इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी समस्या के बारे में जानकर मेरा बाप मेरी मदद करने से हर्गिज़ भी इंकार नहीं करेगा।"

"ये सच है माॅम कि आपने अपने पिता जी से बात न करके अब तक बहुत बड़ी भूल ही की है।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"मगर ये भी सच है कि इस बारे में सोचते रहने से भी क्या होगा? वो सब अपनी जगह से गायब तो नहीं हो जाएगा। भूल इंसान से ही होती है, आपसे भी हुई है। भले ही आपकी वो भूल माफ़ी के लायक हो या ना हो। मगर किसी भी भूल या अपराध के चलते यूॅ चुप तो नहीं बैठे रहा जा सकता। उसके लिए सबसे पहले अपने अपराधों के लिए नाना जी से माफ़ी माॅगनी होगी आपको। वो जो भी इसके लिए सज़ा दें उसे आपको स्वीकार करना ही पड़ेगा। हलाॅकि मुझे ऐसा लगता है कि नाना जी आपको कोई सज़ा देंगे ही नहीं। मगर औपचारिकता तो करनी ही पड़ेगी आपको। उन्हें भी इस बात का बोध होगा कि चलो मुसीबत में ही सही किन्तु उनकी बेटी को उनका ख़याल तो आया। बस, उसके बाद तो सब कुछ आसान ही हो जाना है माॅम। इस लिए मैं तो यही कहूॅगा कि आप ये सब सोचना छोंड़िये और नाना जी को हिम्मत बाॅध कर फोन लगाइये।"
प्रतिमा अपने बेटे शिवा की इस सूझ बूझ भरी बातें सुन कर चकित रह गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा ऐसी समझदारी भरी बातें भी कर सकता है। मगर चूॅकि शिवा की बातें न्यायपूर्ण व तर्कसंगत थी इस लिए उसे भी इस बात का एहसास हुआ कि इस तरह सोचते रहने से भला क्या होगा? आख़िर बिना फोन किये अथवा बिना बात किये किसी भी समस्या का समाधान तो होने वाला नहीं है। उसके लिए शारीरिक और मानसिक कर्म तो करना ही पड़ेगा।

"तुमने बिलकुल ठीक कहा बेटे।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जो हो गया और जो कुछ मैने किया है उसका सामना तो मुझे करना ही पड़ेगा। अतः मैं अब ज़रूर अपने पिता जी को फोन लगाऊॅगी। उनसे अपने किये की माफ़ी भी मागूॅगी। उनसे कहूॅगी कि अपनी बेटी की इस संगीन भूल को हो सके तो माफ कर दें और अपनी कृपा मुझ पर बरसा दें।"

"ये हुई न बात।" शिवा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"मुझे यकीन है माॅम कि नाना जी आपको कुछ नहीं कहेंगे। दुख तो होगा उन्हें मगर उससे भी ज्यादा खुशी भी होगी उन्हें कि उनकी लाडली बेटी ने आख़िर उन्हें याद करके फोन तो किया।"

"तेरे मुह में घी शक्कर हो बेटा।" प्रतिमा ने प्रसन्नतापूर्ण भाव से कहा___"ईश्वर करे तू जैसा कह रहा है वैसा ही हो।"
"ऐसा ही होगा माॅम।" शिवा ने जोशीले अंदाज़ के साथ कहा___"आप बिलकुल भी इस सबकी चिंता न करें। बस मोबाइल निकालिये और लगा दीजिए नाना जी को फोन।"

प्रतिमा ने अपने बेटे के उस चेहरे को कुछ देर तक देखा जो इस वक्त हज़ार हज़ार वाॅट के बल्बों की तरह रोशन था। फिर बेड के सिरहाने पर ही रखे अपने मोबाइल को एक हाथ से उठाया और अपने पिता का नंबर ढूॅढ़ कर काॅपते हाॅथों से उसे डायल कर दिया। काल लगाते ही प्रतिमा के हृदय की गति असाधारण रूप से तेज़ हो गई। दिलो दिमाग़ में एक अजीब सा एहसास मानो ताण्डव सा करने लगा। मन में एक अंजाना सा भय अपने पाॅव पसारने लगा। उधर काल लगाते ही रिंग जाने की आवाज़ प्रतिमा के कानों में सुनाई देने लगी। उसकी नज़र जब शिवा पर पड़ी तो शिवा को मोबाइल का स्पीकर ऑन करने का इशारा करते हुए पाया। प्रतिमा ने हड़बड़ा कर जल्दी से मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया। तभी,,,,

"यस जगमोहन सिंह स्पीकिंग हियर।" उधर से बहुत ही खुर्राटदार आवाज़ उभरी। प्रतिमा को उस आवाज़ से ही ऐसा लगा जैसे उसकी हवा शंट हो गई हो। प्रत्युत्तर में उसके मुख से कोई लफ्ज़ न फूट सका। जबकि,

"हैलो हू इज देयर?" जगमोहन की आवाज़ पुनः उभरी।
"पि..पिता...जी।" प्रतिमा ने बहुत हिम्मत करके आख़िर टूटे हुए शब्दों से कह ही दिया___"म..मैं आ..आपकी बेटी प्रतिमा बोल..रही हूॅ।"

प्रतिमा की इस बात से उस तरफ सन्नाटा सा छा गया। जबकि उधर के छा गए इस सन्नाटे ने प्रतिमा की हृदय गति को मानो रोंक सा दिया। उसके मनो मस्तिष्क में तरह तरह की आशंकाएॅ पल भर में उत्पन्न हो गईं।

"आ..आपने..सुना पिता जी??" प्रतिमा ने उस तरफ की ख़ामोशी से भयभीत होकर पुनः लरज़ते हुए स्वर में कहा___"मैं..आपकी बेटी प्रतिमा बोल रही हूॅ।"
"हाॅ सुन तो लिया है मैने।" उधर से जगमोहन का अजीब सा अंदाज़ झलका___"मगर सोच रहा हूॅ कि ऐसा कैसे हो सकता है और क्यों हो सकता है?"

"ज जी मैं कुछ समझी नहीं पिता जी।" प्रतिमा का मनो मस्तिष्क जैसे चकरा सा गया।
"समझने की ज़रूरत भी क्या है तुम्हें?" उधर से जगमोहन के लहजे में एकाएक ही जैसे शिकायत और नाराज़गी के भाव एक साथ घुल मिल गए थे___"जब समझने का वक्त था तो तुमने उस वक्त बेहतर तरीके समझ तो लिया ही था। अब और कुछ समझने की भला तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ गई?"

"मु मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी।" प्रतिमा की ऑखों से सहसा ऑसू छलक पड़े, उसकी आवाज़ एकदम से भारी हो गई, बोली___"मैने आपका बहुत दिल दुखाया है। जबकि मुझे पता है कि बचपन से लेकर युवा अवस्था तक आपने मेरी हर इच्छा को ऑख बंद करके पूरी की थी। बदले में मैने आपको दुख तक़लीफ़ और रुसवाई के सिवा कुछ भी नहीं दिया।"

"अरे ये क्या???" जगमोहन का ऐसा स्वर उभरा जैसे उसे प्रतिमा की इस बात पर ज़रा भी यकीन न आया हो। अतः बोला___"ये मैं क्या सुन रहा हूॅ भई? आज मेरी बेटी के मुख से इस लहजे में ऐसी बातें निकल रही हैं जिन बातों का मेरी बेटी के मुख से निकलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। सबसे पहले मुझे ये बता कि तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

प्रतिमा कुछ बोल न सकी। अपने पिता की इन बातों में चुपे तंज को समझ कर उसकी रुलाई फूट गई। उसे अपने पिता की इन तंजपूर्ण बातों का ज़रा भी बुरा नहीं लगा था। बल्कि रुलाई तो उसकी इस बात पर फूटी थी आज उसका वही बाप उससे इस लहजे में बात कर रहा था जो बाप इसके पहले उससे सिर्फ प्यार से बातें करता था। बिना माॅ की थी दोनों बहनें। मगर उस बाप नें माॅ बनकर भी अपनी बेटियों की परवरिश की थी।उसने दूसरी शादी नहीं की, बल्कि पना सम्पूर्ण जीवन और अपनी सम्पूर्ण खुशियाॅ अपनी बेटियों पर कुर्बान कर दिया था। जगमोहन अपनी दोनो बेटियों को जी जान से चाहता था मगर उसकी जान तो जैसे उसकी छोटी बेटी प्रतिमा पर बसती थी। इसका कारण ये था कि प्रतिमा बिलकुल अपनी माॅ पर गई थी। मगर प्रतिमा पर जिसकी जान बसती थी आज वही बाप अपनी बेटी से तंजपूर्ण बातें कर रहा था। प्रतिमा को इस बात का एहसास था कि उसके बाप का ये तंज दरअसल उसके अंदर छुपे दर्द रूपी गुबार का महज एक मामूली सा हिस्सा है।

"ये क्या बेटा?" उधर से जगमोहन का स्वर एकदम से भारी सा हो गया___"अपने बाप के अंदर छिपे दर्द रूपी इस गुबार को क्या ज़रा सा भी नहीं निकलने देना चाहती तू? इसे निकल जाने देती तो कदाचित दिल का दर्द कुछ कम हो जाता। मगर ख़ैर, जाने दे। मैं तो ख्वाब में भी तुझे रुलाने का सोच नहीं सकता, ये तो फिर भी हक़ीक़त है।"

प्रतिमा का हृदय बुरी तरह काॅप कर रह गया। वो ये सोच कर बुरी तरह फफक फफक कर रो पड़ी कि उसके बाप का दिल कितना विसाल है। अपने अंदर छुपे असहनीय दर्द के बावजूद वह अपनी बेटी को रुलाना नहीं चाहता। बाप की इस महानता ने प्रतिमा को इतना छोटा और मामूली बना कर रख दिया कि उसे अपने आप से एकाएक घृणा सी होने लगी। उसकी ऑखों के सामने पल भर में वो सारे मंज़र घूम गए जो अब तक उसने किया था और उस मंज़र को देखते ही प्रतिमा को लगा जैसे दुनियाॅ में उससे बड़ा कोई पापी नहीं है। प्रतिमा का जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें पाताल तक समाती चली जाए। मगर हाए रे किस्मय! ऐसा भी नहीं हो सकता था। उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का इतना भयंकर ज्वारभाॅटा मचल उठा कि उसे लगा कि कहीं उसका दिल उसका सीना फाड़ कर बाहर न उछल पड़े। अगले ही पल उसे ज़ोर का चक्कर आया और वह बेड पर एक तरफ गिर गई।

"माॅऽऽऽम।" शिवा जो एकटक प्रतिमा को ही देख रहा था वो अपनी माॅ को इस तरह चक्कर खा कर गिरते देख बुरी तरह चीखते हुए सोफे से उठ कर प्रतिमा की तरफ लपका था, बदहवाश सा प्रतिमा के चेहरे को थपथपाते हुए बोला___"क्या हुआ माॅम? आप ठीक तो हैं न? प्लीज बताइये न माॅम...क्या हो गया आपको? प पानी..पानी स सविता ऑटी...कहाॅ हैं आप? प्लीज जल्दी से पानी लाइये। डाॅक्टर को बुलाईये।"

शिवा बुरी तरह घबरा गया था और उसी घबराहट में चीखे जा रहा था। वहीं बेड पर ही पड़े प्रतिमा के मोबाइल से भी जगमोहन की घबराई हुई आवाज़ गूॅज रही थी। वो उधर से पूछे जा रहा था___"क्या हुआ बेटी? तू ठीक तो है न? तू चिंता मत कर मेरी बेटी। मैं तुझसे ज़रा सा भी नाराज़ या गुस्सा नहीं हूॅ। अरे तू तो मेरी लाडली बेटी है न।"

उधर शिवा के चिल्लाने का असर जल्द ही हुआ था। सविता जो कि नौकरानी थी वो तुरंत ही हाॅथ में पानी का ग्लास लिए भागते हुए आई। वो खुद भी बुरी तरह घबराई हुई लग रही थी।

"शिवा बेटे क्या हुआ है मालकिन को?" सविता ने पानी का ख्लास शिवा को पकड़ाते हुए बोली थी।
"पता नहीं ऑटी।" शिवा ने दुखी भाव से कहा___"माॅम तो नाना जी से फोन पर बातें कर रही थी। फिर जाने क्या हुआ इन्हें कि चक्कर खा कर बेड पर गिर गई हैं। आप प्लीज जल्दी से डाक्टर को फोन कीजिए और उनसे कहिए कि वो दो मिनट के भीतर यहाॅ आ जाएॅ।"

"ठीह है बेटा।" सविता ने कहा___"मैं अभी डाक्टर साहब को फोन लगाती हूॅ।" ये कह कर सविता वहाॅ से चली गई। जबकि इधर कमरे में मोबाइल में से गूॅजती जगमोहन की आवाज़ पर सहसा शिवा का ध्यान गया। उसने लपक कर मोबाइल उठा लिया।

"नाना जी मैं शिवा बोल रहा हूॅ।" फिर शिवा ने सीघ्रता से कहा___"देखिए न माॅम को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रही हैं। ऐसा क्या कह दिया है आपने जिसकी वजह से मेरी माॅम की ये हालत हो गई है?"
"ब बेटा मैने तो ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा था।" उधर से जगमोहन का भारी स्वर उभरा___"मगर तुम चिंता मत करना बेटे। तुम्हारी माॅ को बस चक्कर आया हुआ है और कुछ नहीं। डाक्टर आएगा वो अच्छे से चेकअप कर लेगा। तुम मुझे बताओ कि कहाॅ से बोल रहे हो? मैं सारे काम धाम छोंड़ कर अभी यहाॅ से तुम लोगों के पास आ रहा हूॅ।"

"नाना जी मैं जिला गुनगुन के हल्दीपुर गाॅव से बोल रहा हूॅ।" शिवा ने मन ही मन खुश होते हुए कहा था___"आप जब यहाॅ पहुॅचेंगे तो किसी से भी पूछ लीजिएगा कि ठाकुर साहब की हवेली जाना है। बस कोई न कोई आपको हवेली तक छोंड़ने ज़रूर आ जाएगा आपके साथ।"
"ओह ठीक है बेटा।" उधर से जगमोहन ने कहा___"बस तुम अपनी माॅ का अच्छे से ख़याल रखना। मैं कल तक तुम्हारे पास हर हालत में पहुॅच जाऊॅगा।"

इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने काल को कट कर दिया। जबकि शिवा के होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने पलट कर प्रतिमा को देखा और ग्लास में भरे पानी को अपनी हथेली में लेकर प्रतिमा के चेहरे पर छिड़कना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में प्रतिमा को होश आ गया। उसने पलकों को लपलपाते हुए अपनी ऑखें खोल दी। शिवा ने उसे बेड पर अच्छे से लिटाया और बेड के किनारे पर ही बैठ गये।

"पि पिता जी।" होश में आते ही प्रतिमा दुखी भाव से कह उठी थी।
"डोन्ट वरी माॅम।" शिवा ने प्रतिमा के हाथ को पकड़ कर हल्का सा दबाया___"इवरीथिंग इज अब्सोल्यूटली फाइन एण्ड फार काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन आपके पिता जी कल यहाॅ आ जाएॅगे।"

"क्याऽऽ???" शिवा की बात सुन कर प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी थी।
"यस माॅम।" शिवा ने मुस्कुराते हुए कहा___"एण्ड यू नो व्हाट आपके इस चक्कर ने कमाल कर दिया।"
"क्या मतलब???" प्रतिमा हैरान।
"मतलब ये कि जो चीज़ बातों में नहीं हो सकती थी वो चीज़ आपके इस चक्कर से हो गई।" शिवा ने उत्साहित भाव से कहा___"क्या सही समय पर आपको चक्कर आया माॅम।"

"ये तू क्या बकवास कर रहा है??" प्रतिमा के चेहरे पर एकाएक शख्त भाव उभर आए___"ये सब तुझे मज़ाक लग रहा है? तुझे मेरे और मेरे पिता की भावनाओं का ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ? कैसा बेटा है तू मेरा? तुझे इस सब में भी एक चाल नज़र आई? मेरा यू चक्कर खाकर गिर जाना भी तुझे किसी कामयाबी का हिस्सा नज़र आया? वाह बेटा वाह...आज तूने साबित कर दिया कि तू सिर्फ और सिर्फ अपने बाप पर गया है। तेरे लिए किसी के जज़्बात किसी के दुख दर्द कोई मायने नहीं रखते। आज अगर मुझे चक्कर की वजह से दिल का दौरा पड़ जाता तब भी शायद तुझे और तेरे बाप को कोई फर्क़ नहीं पड़ता।"

"म माॅम।" शिवा बुरी तरह से झेंपते हुए बोला___"ये आप क्या कह रही हैं?"
"शटअप।" प्रतिमा ज़ोर से चीखी थी। उसकी ऑखों से एकाएक ऑसू बह चले___"क्या नहीं किया मैने और क्या नहीं दिया मैने तुम दोनो बाप बेटों को? मगर मेरे त्याग और बलिदान का कोई मोल नहीं है तुम दोनो की नज़र में। मैने वो काम भी किया जिसके लिए कोई भी भारतीय औरत किसी भी सूरत में तैयार नहीं हो सकती। मैने अपने साथ साथ अपनी आत्मा तक को जहन्नुम में झोंक दिया मगर उसका भी कोई मोल नहीं तुम लोगों की नज़र में। अभी तक तो नहीं मगर अब एहसास हो रहा है कि मेरे कर्मों की सज़ा मुझे मिलनी शुरू हो गई है।"

"आई एम स्वारी माॅम।" शिवा ने सिर झुकाते हुए कहा___"मेरा वो मतलब हरगिज़ भी नहीं था जो आप समझ बैठी हैं। मैं तो.....
"बस।" प्रतिमा ने अपना दाहिना हाथ उठा कर अपने पंजे से उसे रुकने का संकेत देते हुए कहा___"कुछ भी सफाई देने की ज़रूरत नहीं है। मैं कोई बच्ची नहीं हूॅ जिसे किसी भी तरह की बातों से बहला फुसला दिया जाए। मेरे सीने में भी एक दिल है जिसमें प्यार मोहब्बत और ममता का सागर उछाल मारता है। मगर तूने और तेरे बाप ने कभी उसकी कद्र नहीं की।"

"आप बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"जबकि मैं क़सम खा कर कहता हूॅ कि मेरे कहने का वो मतलब नहीं था। हाॅ मैं ये मानता हूॅ कि मैंने वो सब उस समय कह दिया जबकि हालात वैसे नहीं थे। इसी लिए मैं आपसे उसके लिए माफ़ी भी माॅग रहा हूॅ। और दूसरी बात मुझे पहली नज़र में यही लगा कि आपने चक्कर खा कर गिरने का नाटक किया है। इस लिए आपके नाटक को ज़ारी रखने के लिए मैं भी ज़ोर से चीखते हुए आपके पास आकर वो सब आपसे कहने लगा था। क्योंकि ये तो मुझे पता ही था कि मोबाइल चालू हालत में है और नाना जी को वो सब कुछ साफ साफ सुनाई देगा जो कुछ हम यहाॅ करेंगे और ऐसा हुआ भी। तभी तो जब मैने देखा कि आपके चक्कर खाने से उधर नाना जी भी चिंतित व परेशान हो उठे हैं तो मैने जल्दी से मोबाइल उठा कर उनसे बात की थी और उन्हें आपके बारे में सब कुछ बताया था। उसके बाद उन्होंने यहाॅ आने के लिए कहा और यहाॅ का पता पूछा मुझसे तो मैने बता दिया। बस, यही हुआ था। उसके बाद मुझे लगा कि नाटक खत्म हो गया है तो मैने आपके चेहरे पर पानी छिड़क कर आपको होश में ले आया और आपसे वो सब कहा। मगर आपने तो कुछ और ही मुझे सुना दिया।"

"तभी तो कहती हूॅ कि तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है।" प्रतिमा ने दुखी भाव से कहा__"अगर होता तो उसी वक्त समझ जाते कि वो कोई नाटक नहीं बल्कि हक़ीक़त था। तुम्हें समझना चाहिए था कि वर्षों की बिछड़ी एक बेटी अपने बाप से बात कर रही थी। उस वक्त बाप बेटी के दिलों में भावनाओं का कैसा ज्वार भाॅटा ताण्डव कर रहा होगा? ये उन प्रबल भावनाओ का ही असर था कि मेरा दिल उन भीषण जज़्बातों को सहन न कर पाया और मैं चक्कर खा कर गिर गई थी। मगर, जैसा कि मैने कहा तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है। तभी तो मेरी उस हालत को भी नाटक समझ लिया।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए माॅम।" शिवा ने सहसा भारी लहजे में कहा___"मुझसे सच में बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मगर आइंदा ऐसा नहीं होगा माॅम, ये मेरा वादा है आपसे।

आप तो जानती हैं कि आपकी अहमियत मेरी लाइफ में कितनी है। मैं ऐसा कोई काम कर ही नहीं सकता जिससे आपके दिल को ठेस पहुॅचे। बस एक बार माफ़ कर दीजिए न।"

प्रतिमा ने इस वक्त शिवा के चेहरे पर उभरे हुए मासूम से भावों को देखा तो सहसा उसकी ममता जाग गई। उसने तुरंत ही शिवा को पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया और कस कर अपने सीने से भींच लिया। तभी किसी के आने की आहट से दोनो ही अलग हुए। कुछ ही पलों में सविता ने कमरेएं प्रवेश किया। उसने बताया कि डाक्टर साहब आ गए हैं। सविता की बात सुन कर शिवा बेड से उठ कर कमरे से बाहर की तरफ चला गया। थोड़ी ही देर में अजय सिंह का फैमिली डाक्टर अनिल जैन शिवा के साथ कमरे में दाखिल हुआ। अनिल जैन चालीस की उमर का तथा मध्यम कद काठी का ब्यक्ति था। अजय सिंह जैसे इंसान से संबंध रखने वाला ये पहला ऐसा ब्यक्ति था जो शक्ल और सीरत से शरीफ़ था।

शिवा ने अनिल को प्राथमिक बातें बताईं कि क्या हुआ था उसकी माॅम को। उसके बाद अनिल ने चेकअप करना शुरू किया। थोड़ी देर तक प्रतिमा को चेक करने के बाद उसने कुछ दवाईयाॅ दी और उन्हें सेवन करने की विधि बताई। फिर उसने शिवा को अपने साथ बाहर आने का इशारा करते हुए कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

"क्या बात है डाक्टर अंकल?" शिवा ने बाहर आते ही सहसा गंभीरता से पूछा___"मेरी माॅम पूरी तरह ठीक तो हैं न?"
"चिंता की कोई बात नहीं है बेटा।" अनिल ने कहा__"बस थोड़ी कमज़ोरी थी इस वजह से उन्हें चक्कर आया था। ठाकुर साहब आएॅ तो उनसे कहना कि मैने उन्हें याद किया है। अगर उनके पास समय हो तो कुछ समय के लिए मेरे पास ज़रूर आएॅ वो।"
"जी बिलकुल डाक्टर अंकल।" शिवा ने विनम्रता से कहा___"मैं डैड को ज़रूर आपके पास जाने के लिए कहूॅगा।"

उसके बाद डाक्टर अनिल जैन हवेली से अपना थैला लिये चला गया। शिवा भी वापस अपने माॅम के पास आ गया। सविता रात के लिए खाना बनाने चली गई थी। उसे प्रतिमा ने कह दिया था कि कुछ और लोगों को साथ में लेकर उन लोगों के लिए भी खाना बना लेना जो लोग आज गेस्टरूम में ठहरे हुए हैं। कुछ देर अपनी माॅ के पास बैठने के बाद शिवा प्रतिमा के ही कहने पर गेस्टरूम की तरफ चला गया। जबकि प्रतिमा अपने पिता के आने के बाद उससे मिलने के सुनहरे ख़याल बुनने लगी।
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11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर विराज की तरफ!
रात हुई तो विराज और आदित्य ने थोड़ा बहुत खाना खाया। हलाॅकि खाना पीना वो लोग लेकर नहीं चले थे इस लिए एक स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो वहीं इन दोनो ने अपने लिए खाने की कुछ चीज़ें ले लिये थे और फिर ट्रेन में ही दोनो ने बैठ कर खा लिया था।

नीलम की मौजूदगी में मैने इतना ज़रूर किया कि अपनी शीट पर आदित्य को बैठा दिया था और आदित्य की शीट पर मैं बैठ गया था। इससे हुआ ये कि अब नीलम की तरफ मेरी पीठ हो गई थी। हलाॅकि इस तरफ बैठने से मेरी पीठ भी उसे दिखाई नहीं देनी थी। ख़ैर खाना पीना करके हम दोनो ही आराम से लेट कर सो गए थे। नींद भी ज़बरदस्त लगी थी क्योंकि हम दोनो लगातार यात्रा ही कर रहे थे।

रात के किसी प्रहर हमें शोर सा सुनाई दिया। ऐसा लगा जैसे कुछ लोग आपस में झगड़ा कर रहे थे। ये एसी का डिब्बा नहीं था। मैने जानबूझ कर एसी में टिकट बनवाने को नहीं कहा था जगदीश अंकल से। रिजर्वेशन वाले डिब्बे में भी कुछ लोग जनरल डिब्बे की भीड़ देख कर घुस आते थे। ख़ैर, उस शोर शराबे की वजह से हमारी नींद टूट गई और हमारी ऑखें खुल गई।

शोर शराबा मेरे पीछे की तरफ से सुनाई दे रहा था। आदित्य जैसे ही उठ कर अपनी शीट पर बैठा वैसे ही उसकी नज़र मेरे पीछे उस तरफ पड़ी जिस तरफ शोर हो रहा था। आदित्य ने देखा कि चार पाॅच लड़के मेरे पीछे की तरफ वाली शीट के पास फर्श पर खड़े थे और शीट पर बैठे हुए यात्रियों को अनाप शनाप बके जा रहे थे। उन लड़कों की आवाज़ों के बीच कुछ औरतों व लड़कियों की भी आवाज़ें आ रही थी। इस बीच मैं भी उठ कर अपनी शीट पर बैठ गया था। मैने ये सोच कर अपने पीछे की तरफ नहीं देखा कि कहीं नीलम की नज़र मुझ पर न पड़ जाए। किन्तु उस वक्त मैं चौंका जब नीलम की तेज़ तेज़ आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बस रोने ही वाली हो।

ये जान कर मेरे मनो मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। मुझे समझते देर न लगी कि उन लड़कों से नीलम तथा अन्य लोगों की कहा सुनी हो रही है। मुझे ये तो समझ न आया कि आख़िर बात क्या हुई है किन्तु इतना ज़रूर समझ गया कि नीलम इस तरह किसी से झगड़ा करने वाली लड़की नहीं है। उस हालत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि वो ट्रेन में अकेली सफर कर रही हो। मुझे लगा नीलम इस वक्त बेहद परेशान हालत में है। मेरे अंदर का भाई जाग गया। बात भले ही चाहे जो हो मगर मैं ये हर्गिज़ भी बरदास्त नहीं कर सकता था कि कोई ऐरा गैरा मेरी बहन को कुछ उल्टा सीधा कहे या उससे किसी तरह का झगड़ा करे।

मैने आदित्य को इशारा किया। आदित्य मेरा इशारा समझ गया। उसके बाद हम दोनो ही उस तरफ चल दिये। इस बीच मैने जल्दी से अपने मुख और नाक को रुमाल से ढॅक लिया था। कुछ ही पल में हम दोनो उन लड़कों के पास पहुॅच गए। मैने एक लड़के को हल्का सा दबाव देकर एक तरफ किया और शीट की तरफ देखने की कोशिश की। मैं देख कर चौंका कि नीलम अपनी शीट पर बैठी सिसक रही थी। उसके बगल से ही एक और लड़की बैठी हुई थी। उसकी हालत भी नीलम जैसी ही थी। मुझे समझ न आया कि नीलम और वो लड़की सिसक क्यों रही हैं? जबकि उन दोनो के बगल से एक औरत भी बैठी थी जिसके साथ एक दस बारह साल का लड़का था। नीलम की सामने की शीट पर दो आदमी व दो औरतें बैठी हुई थी। उनके चेहरों पर लगभग बारह बजे हुए थे।

"ओये कौन है बे तू?" सहसा उस लड़के ने मुझे धक्का देते हुए कहा जिसे दबाव देकर मैं अंदर शीट की तरफ देखने लगा था, बोला___"और तू मुझे एक तरफ करके अंदर कहाॅ घुसा आ रहा है? क्या तुझे भी ये दोनो लौंडियाॅ पसंद आ गई हैं?"

"पसंद तो आएॅगी ही दिनेश।" एक अन्य लड़के ने हॅस कर कहा___"आख़िर माल तो ज़बरदस्त ही है न।"
"अरे तो पहले हमें तो चखने दे भाई।" दिनेश नाम के उस लड़के ने कहा___"उसके बाद ये भी चख लेगा।"
"कैसे चख लेगा यार?" तीसरे लड़के ने कहा___"हम साले इतनी देर से इन मालों से कह रहे हैं कि बाथरूम चलो मगर ये हैं कि सुनती ही नहीं हैं हमारी बात।"

उन लड़कों की इन बातों से ही ज़ाहिर हो गया था कि माज़रा क्या है। मगर मैं हैरान इस बात पर था कि वहाॅ पर बैठे बाॅकी सब उन लड़कों की बददमीची सहन कैसे कर रहे थे? या फिर वो सब डर रहे थे कि ये लड़के कहीं उनकी औरतों या बेटियों को कुछ कहने न लगें। ये यो हद ही हो गई थी। सबको अपनी फिक्र थी, कोई ये नहीं सोच रहा था कि दूसरी लड़कियाॅ भी तो किसी की बहन बेटी होंगी। इस सबसे मेरा दिमाग़ बेहद ख़राब हो चुका था। मैने पलट कर आदित्य की तरफ देखा। वो मुझे देखते ही समझ गया कि क्या करना है।

"ओ भाई ज़रा बात तो सुन।" मैने अपनी आवाज़ बदलते हुए कहा दिनेश नाम के उस लड़के से कहा___"तेरे अगर और भी साथी इस ट्रेन में हों तो फोन करके बुला ले उन्हें। क्योंकि अब जो तुम लोगों के साथ होने वाला है उसके बाद तुम लोगों हास्पिटल पहुॅचाने वाला भी तो कोई होना चाहिए न।"


"ओये चिकने।" दिनेश से पहले ही उसका एक अन्य साथी बोल पड़ा___"ज्यादा हीरोपंती करने का शौक चढ़ा है क्या तेरे को? चल फूट ले इधर से वरना हम लोगों से पंगा लेने का अंजाम अच्छा नहीं होगा समझा? और हाॅ आपन के और भी छोकरे लोग इस ट्रेन में मौजूद हैं। इस लिए आपन एक ही बार तेरे से बोलेगा कि इधर से खिसक ले तू।"

"किसी ने सच ही कहा है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।" मैने गुस्से से उबलते हुए उस लड़के का कालर पकड़ा और ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया___"तुम जैसे गटर के कीड़ों को मसलना ही बेहतर होता है।"

मैने जैसे ही उस लड़के को अपनी तरफ खींचा तो एक अन्य हरकत में आ गया। अभी वो हरकत में आया ही था कि आदित्य ने धर लिया उसे। इधर मैने उस लड़के के चेहरे पर ज़ोर का पंच जड़ दिया। उनमें से किसी को भी इस सबकी उम्मीद नहीं थी। चेहरे पर ज़ोरदार पंच पड़ते ही उस लड़के की नाक की हड्डी टूट गई और भल्ल करके खून बहने लगा। वो बुरी तरह बिलबिलाते हुए अपनी नाक को अपने दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। अचानक हुए इस हमले से दो लड़के जो अभी खाली थे वो भी हरकत में आ गए। आस पास फर्श पर खड़े हुए लोग एकदम से उस जगह से दूर हटते चले गए।

आदित्य ने जिस लड़के को धरा था उसका एक हाॅथ पकड़ कर ज़ोर से उमेठ दिया। जिससे वो दर्द में चीखा। हाॅथ उमेठते ही आदित्य ने पीछे से अपने घुटने का वार उसके पिछवाड़े पर किया तो उसका सिर ऊपर की शीट पर लगे लोहे के पाइप से टकराया। उसके हलक से चीख निकल गई। इधर दो लड़को के हाथ में पलक झपकते ही जाने कहाॅ से चाकू प्रकट हो गया था। मतलब साफ था कि वो चारो पेशेवर अपराधी थे। मगर उन्हें क्या पता था कि आज उनका पाला उनसे भी बड़े खलीफा से पड़ गया था।

एक लड़के ने जैसे ही अपना चाकू वाला हाथ ऊपर हवा में उठा कर मुझ पर चलाया तो मैने उसके उस हाॅथ को एक हाॅथ से हवा में ही रोंका और दूसरे हाॅथ से उसकी कलाई पर कराट का वार किया जिससे उसके हाथ से चाकू छूट कर फर्श पर गिर गया। चाकू के गिरते ही मैने उसके पेट में ज़ोर की लात मारी तो वो झोंक में ही बाएॅ साइड के डंडे से टकरा कर फर्श पर चित्त गिर पड़ा। उधर ऐसा ही हाल आदित्य की तरफ भी था। कहने का मतलब ये कि दो मिनट के अंदर ही वो चारो लड़के ट्रेन के फर्श पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे और हम दोनो से रहम की भीख माॅगने लगे थे।

"जी तो करता है कि।" मैने खूंखार भाव से कहा__"जो घिनौना कर्म तुम लोगों ने किया है उसके लिए तुम सबके हाथ पैर तोड़ कर तुम सबके हाॅथों में दे दूॅ। मगर मैं यहाॅ पर ज्यादा बखेड़ा नहीं करना चाहता। इस लिए जितना जल्दी हो सके यहाॅ से दफा हो जाओ वरना ये भी सोच लेना कि जिस बखेड़े की अभी मैं बात कर रहा हूॅ उससे मैं डरता भी नहीं हूॅ।"

मेरी इस बात का असर फौरन ही हुआ। वो चारो बुरी तरह लड़खड़ाते हुए फर्श से उठे और नौ दो ग्यारह हो गए। उन चारों के जाते ही मैं वापस पलटा और नीलम की देखा तो चौंक गया। वो मुझे ही देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि सहसा वह अपनी जगह से उठी और बिजली की तरह दौड़ कर मुझसे लिपट गई।

"राऽऽज मेरे भाई।" फिर वो मुझसे लिपटी फूट फूट कर रोने लगी थी। उसकी इस क्रिया से जहाॅ मैं भौचक्का रह गया था वहीं शीट पर बैठी वो दूसरी लड़की भी हैरान रह गई थी। तभी मुझे ध्यान आया कि उन लड़कों से लड़ते वक्त जाने कब मेरे मुख से रुमाल निकल गया था। शायद यही वजह दी कि नीलम जान गई थी कि मैं वास्तव में कौन हूॅ।

"ओह राज।" मुझसे लिपटी नीलम रोते हुए कह रही थी___"तुम यहाॅ भी मेरी इज्ज़त बचाने के लिए पहुॅच गए। इतने अच्छे और इतने महान कैसे हो सकते हो तुम? ये सच है कि अगर तुम नहीं होते तो कदाचित वो लड़के मुझे और सोनम दीदी को अपनी उन अश्लील बातों से ही मार देते।"

"बस चुप हो जाओ।" मैने उसे खुद से अलग कर उसके चेहरे को अपने दोनो हाॅथ की हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"कुछ नहीं होता। मैं जब तक ज़िंदा हूॅ तुम्हारा कीई भी बुरा नहीं कर सकता।"

मेरी ये बात सुन कर नीलम एकटक मेरी ऑखों में देखने लगी। कुछ इस तरह जैसे मेरी ऑखों में कुछ तलाश कर रही हो। आस पास मौजूद लोग हमारी तरफ ऑखें फाड़े देख रहे थे। मुझे ये सब बड़ा अजीब सा लगने लगा।

"जाओ अब अपनी शीट पर बैठ जाओ।" मैंने सहसा गंभीर भाव से कहा___"सब लोग अजीब तरह से इधर ही देख रहे हैं।"
"देखने दो राज।" कहने के साथ ही नीलम पुनः मुझसे छुपक गई, फिर बोली___"मुझे किसी की कोई परवाह नहीं। मैं बस इतना जानती हूॅ कि मैं ऐसे शख्स की पनाहों में हूॅ जिसना मेरी अस्मत की दो दो बार रक्षा की है। इस पनाह में आकर मुझे ऐसा एहसास हो रहा है मेरे भाई जैसे ये जगह मेरे लिए दुनियाॅ की सबसे महफूज़ और सबसे सुंदर जगह है। राज, मुझे अपनी इस पनाह से अब कभी जुदा न करना।"

"हाॅ बाबा नहीं करूॅगा।" मैने नीलम को खुद से अलग करके कहा___"अब जाओ अपनी शीट पर बैठ जाओ। और हाॅ मैं अगली शीट पर ही हूॅ। अगर किसी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे आवाज़ लगा देना।"

"तुम भी मेरे पास ही बैठ जाओ न राज।" नीलम ने किसी बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा___"या फिर ऐसा करो कि मुझे भी अपने पास बैठा लो। मैं तुम्हारे पास ही रहना चाहती हूॅ। प्लीज मेरी इतनी सी बात मान जाओ न।"

नीलम की इस बात से मैं एकदम से उसकी तरफ देखता रह गया। फिर मैने चेहरा घुमा कर आदित्य की तरफ देखा और सामने शीट पर बैठी सोनम की तरफ भी। दोनो मुझे ही देख रहे थे। मुझे समझ न आया कि अब मैं क्या करूॅ?

"तुम अपनी सोनम दीदी को अकेला छोंड़ कर कैसे मेरे पास बैठ सकती हो?" मैने कहा___"और उधर मेरे साथ मेरा दोस्त आदित्य भी तो है। मैं उसे अकेला छोंड़ कर तुम्हारे पास भला कैसे बैठ जाऊॅगा? इस लिए ये बेकार की ज़िद छोंड़ो और अपनी शीट पर बैठ जाओ। मैं पास में ही तो हूॅ।"

"हाॅ लेकिन मुझे तब भी तुम्हारे पास ही बैठना है।" नीलम ने बुरा सा मुह बना लिया___"अपने दोस्त से कह दो कि यहाॅ मेरी शीट पर सोनम दीदी के साथ बैठ जाएॅ।"
"ये कैसी ज़िद है नीलम?" मैने हैरान___"अगर सोनम दीदी को इस बात से ऐतराज़ हुआ तो?"

मेरी बात सुन कर नीलम ने झट से पलट कर सोनम की तरफ देखा और फिर कहा___"दीदी, क्या आपको इनके यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है?"
"क क्या मतलब??" नीलम के द्वारा एकाएक ही इस तरह पूछने पर सोनम लगभग हड़बड़ा गई थी।
"मैं ये पूछ रही हूॅ आपसे।" नीलम ने मानो अपने वाक्य को दोहराया___"कि क्या आपको राज के दोस्त के यहाॅ पर बैठने से ऐतराज़ है?"

सोनम ने नीलम की इस बात पर बड़े अजीब भाव से उसकी तरफ देखा। नीलम को देखने के बाद मेरी तरफ और फिर आदित्य की तरफ। सबको देखने के बाद पुनः नीलम की तरफ देखते हुए कहा___"अगर तू यही चाहती है तो ठीक है। मुझे कीई ऐतराज़ नहीं है इनके यहाॅ बैठ जाने से।"

"ओह थैंक्यू सो मच दीदी।" नीलम ने खुश होकर कहा___"आप सच में बहुत अच्छी हैं।"
"चल चल अब मस्का मत लगा।" सोनम ने कहा___"जा बैठ जा राज के पास। मगर उसे परेशान मत करना ज्यादा।"
"ओ हैलो।" मैं एकदम से बोल पड़ा___"कोई मेरे दोस्त से भी जानना चाहेगा कि उसे यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है कि नहीं?"
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11-24-2019, 01:02 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मेरी इस बात से नीलम व सोनम एकदम से चुप हो गई। मैने आदित्य की तरफ देखा तो उसे मुस्कुराते हुए पाया। तभी नीलम व सोनम की नज़रें एकदम से आदित्य की तरफ दौड़ गईं। जैसे उसे देख कर ही ऑखों से पूछ रही हों कि आपको ऐतराज़ है क्या यहाॅ बैठने से? आदित्य उनकी ऑखों में उभरे सवाल का आशय समझ कर बोला__"ठीक है मैं सोनम जी के पास ही बैठ जाता हूॅ।"

"लो राज।" आदित्य के मुख से ये सुनते ही नीलम ने मेरी तरफ देख कर कहा___"अब तो किसी को कोई ऐतराज़ नहीं है। सो अब मैं तुम्हारे साथ ही अगली वाली शीट पर बैठूॅगी। चलो अब हम जल्दी से अपनी शीट पर चलते हैं।"

मरता क्या न करता की तर्ज़ पर मैं हैरान परेशान होकर नीलम के साथ वापस अपनी शीट पर आ गया। जबकि आदित्य सोनम के पास ही नीलम वाली शीट पर बैठ गया। इधर मेरी शीट पर आते ही नीलम मेरे बगल से ही धम्म से बैठ गई। बैठते ही उसने अपना एक हाथ मेरी काख से डाल कर मेरा एक हाॅथ मानो अपने कब्जे में ले लिया था।

"अरे अब ये क्या है?" नीलम के ऐसा करते ही मैने हैरानी से कहा___"सोना नहीं है क्या? चलो जाओ ऊपर वाली शीट पर लेट कर सो जाओ।"
"मुझे नींद नहीं आ रही है राज।" नीलम ने एकदम से बच्चियों वाले अंदाज़ से कहा___"तुम भी मत सोना। हम सारी रात ढेर सारी बातें करेंगे। मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं।"

"वो सब तो ठीक है।" मैने एकाएक अजीब भाव से कहा___"मगर क्या तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हो रहा कि आज सूरज पश्चिम दिशा से निकल रहा है? ये तो कमाल हो गया न कि जो नीलम मुझसे कभी बात करना तो दूर कभी मुझे देखना तक गवाॅरा नहीं करती थी आज वही नीलम मुझसे सारी रात ढेर सारी बातें करेंगी?

यकीन नहीं हो रहा मुझे। ये चमत्कार है या फिर खुली ऑखों का मेरा कोई ख़्वाब?"

मेरी इन बातों से नीलम को झटका सा लगा। अभी तक जो चेहरा एकदम से ताज़े गुलाब की मानिंद खिला हुआ दिख रहा था वो मेरी इन बातों से पलक झपकते ही मुरझा गया था। उसके चेहरे पर पल भर में गहन पीड़ा व दुख के भाव उभर आए और ऑखों में ऑसू रूपी समंदर मानों हिलोरें लेने लगा था। कुछ कहने के लिए उसके होंठ बस थरथरा कर रह गए थे।

"मुझे मेरे उन सभी बुरे कर्मों की सज़ा दो राज।" नीलम ने रुऑसे स्वर में कहा___"यकीन मानो, तुम्हारी हर सज़ा को मैं खुशी खुशी क़बूल कर लूॅगी। मगर अब तुम्हारी किसी भी तरह की बेरुखी सहन नहीं कर पाऊॅगी मैं। मुझे पता है कि मैने तुम्हारे साथ अब तक क्या किया था। किन्तु अगर ग़ौर से सोचोगे तो इस सबमें तुम्हें ज़रूर समझ आएगा कि उस सबमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी। मैने तो वही किया था अब तक जो बचपन से हमें सिखाया गया था। सही ग़लत का पाठ तो हमें हमारे माॅ बाप ने ही बचपन से पढ़ाया था। जबकि वास्तव में सही ग़लत क्या है वो अब समझ आया है मुझे। मैं सच कहती हूॅ मेरे भाई कि मैं अपने उन सभी कर्मों के बारे में सोच सोच कर बेहद दुखी हूॅ। मुझे अपने आप से घृणा होती है।"

"इंसान जिन्हें दिल से चाहता है।" मैने कहा___"वही अगर ऐसा करें तो तक़लीफ़ तो यकीनन होती है नीलम। मैने कभी भी तुम सबके बारे में ग़लत नहीं सोचा था। बल्कि हमेशा यही चाहता था तुम सब मुझसे उसी तरह बातें करो हॅसो बोलो जैसे बाॅकी सब करते थे। मगर मुझे आज तक समझ न आया कि हमने ऐसा कौन सा गुनाह किया था हमें आप सबकी सिर्फ नफ़रत मिली। ख़ैर, ये सब तो कल की बातें है मगर मैं ये जानना चाहता हूॅ कि आज ऐसा क्या हो गया है कि तुम्हें वही राज अपना भाई लगने लगा और इतना ही नहीं बल्कि दुनियाॅ का सबसे अच्छा इंसान भी लगने लगा। क्या सिर्फ इस लिए कि मैने इत्तेफाक़ से दो बार तुम्हारी इज्ज़त की रक्षा की या फिर इसकी कोई दूसरी वजह है?"

"इंसान का चरित्र जैसा भी हो राज।" नीलम ने गंभीर भाव से कहा___"वो दूसरों के सामने उजागर हो ही जाता है। ये अलग बात है कि इसमें थोड़ा बहुत समय लग जाता है। तुम लोगों के जिस चरित्र का पाठ हम भाई बहनों को बचपन से पढ़ाया गया था उसे हमने ये सोच कर यकीन के साथ मान लिया क्योंकि हम यही समझते थे कि कोई भी माॅ बाप अपने बच्चों को ग़लत नसीहत नहीं देते हैं। मगर जो ग़लत होता है उसका भी पर्दाफाश हो ही जाता है एक दिन। तुमने मेरी दो बार इज्ज़त बचाई इसे संयोग समझो या समय का बदलाव, जिसके फलस्वरूप मुझे ये समझ आया कि अपने जिस माॅ बाप से मैने तुम लोगों के चरित्र का पाठ पढ़ा था वो दरअसल झूॅठा भी तो हो सकता था। क्योंकि एक बुरे इंसान से अच्छे कर्म की उम्मीद नहीं की जा सकती। जबकि तुमने जो किया वो निहायत ही अच्छे कर्म की पराकाष्ठा थी। तुम्हारे उस कर्म ने मुझे ये सोचने पर बिवश कर दिया कि तुम वैसे नहीं हो जैसा मेरे माॅ बाप ने अब तक समझाया था। बस, इंसान जब किसी के बारे में गहराई से सोचता है तो उसे कुछ न कुछ तो एहसास होता ही है कि हक़ीक़त क्या है? अब तक तो मैने तुम्हारे बारे में उस तरीके से सोचा ही नहीं था राज मगर उस हादसे के बाद जब मैने तुम्हारे बारे में आदि से अंत तक सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि तुम बुरे नहीं हो सकते। इंसान को अपनी सफाई में कुछ भी कहने का अधिकार है जबकि हमने तो तुम लोगों की किसी बात को सुनना ही कभी गवाॅरा नहीं किया था। ऐसे में भला हमें कैसे समझ आता कि सच क्या है? हमसे यकीनन ग़लती हुई है राज और मैं इस ग़लती को ज़रूर सुधारूॅगी। घर पहुॅचते ही माॅम डैड से बताऊॅगी कि कैसे तुमने दो दो बार उनकी बेटी की इज्ज़त की रक्षा की है।"

"तुम्हारे बताने से कुछ नहीं होने वाला नीलम।" मैने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"तुम्हें तो अभी सारी असलियत का पता ही नहीं है। मगर मेरा दावा है कि जब तुम्हें सारी सच्चाई का पता चलेगा तो तुम्हारा दिल हाहाकार कर उठेगा।"

"क्या मतलब??" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"तुम्हारी इन बातों का क्या मतलब है राज? तुम किस असलियत की बात कर रहे हो?"
"मैं तुम्हें इस बारे में खुद कुछ नहीं बताऊॅगा।" मैने गंभीर भाव से कहा___"क्योंकि मेरे बताने पर तुम्हें यही लगेगा कि मैं तुम्हारे माॅम डैड के विषय में बेवजह ही अनाश शनाप बक रहा हूॅ। इस लिए इस सबके बारे में तुम्हें खुद ही पता करना होगा नीलम। जब तक तुम्हें खुद सारी बातों का पता नहीं चलेगा या तुम खुद अपनी ऑखों से नही देख लोगी तब तक तुम दूसरे की बताई हुई बात का यकीन नहीं कर सकोगी।"

"आख़िर ऐसी कौन सी बातें हैं राज?" नीलम के चेहरे पर गहन चिंता के तथा सोचने वाले भाव उभरे___"जिनके बारे में तुम बात कर रहे हो? तुम मुझे बताओ राज, मुझे तुम्हारी हर बात पर यकीन होगा।"
"नहीं होगा नीलम।" मैने पुरज़ोर लहजे में कहा__"कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर यकीन करना बेहद मुश्किल होता है। यहाॅ तक कि अगर इंसान खुद अपनी ऑखों से भी देख ले तो यकीन नहीं कर पाता। इस लिए मेरे कुछ भी बताने का कोई मतलब नहीं है। तुम खुद सारी बातों का पता लगाओ और फिर उन पर विचार करो।"

"क्या रितू दीदी भी उन सारी बातों को जानती हैं?" नीलम ने कहा___"जिनके बारे में तुम बात कर रहे हो?"
"हाॅ।" मैने कहा___"रितू दीदी को आरी असलियत का पता है।"
"तो क्या यही वजह है कि।" नीलम ने कहा___"आजकल वो माॅम डैड के ख़िलाफ हैं?"
"हाॅ यही वजह है।" मैने कहा___"अब तुम सोच सकती हो कि भला ऐसी वो क्या बातें होंगी जिसके चलते तुम्हारी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ हो गई हैं?"

मेरी बात सुन कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरफ देखती रही। मैं समझ सकता था कि वो इन सब बातों के चलते अपने दिलो दिमाग़ को विचारों भॅवर में डुबा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। उसके बाद मैने उसे सो जाने का कह दिया। हलाॅकि मैं जानता था कि अब उसे सारी रात नींद नहीं आने वाली थी। वो रात भर इन्हीं बातों को सोचती रहेगी कि आख़िर ऐसी कौन सी सच्चाई है जिसकी मैं बात कर रहा हूॅ और जिस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बर्थ पर लिटाने के बाद मैं भी अपने नीचे वाले बर्थ पर लेट गया और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आख़िर क्या करेगी नीलम जब उसे अपने माॅ बाप और भाई की असलियत का पता चलेगा? वो कैसा रिऐक्ट करेगी जब उसे पता चलेगा कि उसके माॅ बाप ने किस तरह इस हॅसते खेलते परिवार को बरबाद किया था? सब कुछ जानने के बाद क्या नीलम भी अपनी बड़ी बहन की तरह अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था। तभी सहसा मुझे अजय सिंह का ख़याल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश अंकल को फोन करके अजय सिंह के साथ एक धाॅसू खेल खेलने का कह दिया था। ये उसी का परिणाम था कि इस वक्त अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त में था। मगर अब जबकि मैं कल दोपहर तक हल्दीपुर रितू दीदी के फार्महाउस पहुॅच जाऊॅगा तो अजय सिंह को भी सीबीआई की गिरफ्त से आज़ाद कर देने का समय आ जाएगा।

अजय सिंह जब सीबीआई की गिरफ्त से निकल कर अपनी हवेली पहुॅचेगा तब वो प्रतिमा को जो कुछ बताएगा उसे सुन कर सबके पैरों के नीचे से ज़मीन गायब हो जाएगी। अजय सिंह का दिमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते फटने को आ जाएगा मगर उसे कुछ समझ नहीं आएगा। वो इस तरह किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थित में बैठा रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शून्य में खोया हुआ सा रह जाता है।
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11-24-2019, 01:03 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट.........《 52 》

अब तक,,,,,,,,

मेरी बात सुन कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरफ देखती रही। मैं समझ सकता था कि वो इन सब बातों के चलते अपने दिलो दिमाग़ को विचारों भॅवर में डुबा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। उसके बाद मैने उसे सो जाने का कह दिया। हलाॅकि मैं जानता था कि अब उसे सारी रात नींद नहीं आने वाली थी। वो रात भर इन्हीं बातों को सोचती रहेगी कि आख़िर ऐसी कौन सी सच्चाई है जिसकी मैं बात कर रहा हूॅ और जिस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बर्थ पर लिटाने के बाद मैं भी अपने नीचे वाले बर्थ पर लेट गया और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आख़िर क्या करेगी नीलम जब उसे अपने माॅ बाप और भाई की असलियत का पता चलेगा? वो कैसा रिऐक्ट करेगी जब उसे पता चलेगा कि उसके माॅ बाप ने किस तरह इस हॅसते खेलते परिवार को बरबाद किया था? सब कुछ जानने के बाद क्या नीलम भी अपनी बड़ी बहन की तरह अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था। तभी सहसा मुझे अजय सिंह का ख़याल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश अंकल को फोन करके अजय सिंह के साथ एक धाॅसू खेल खेलने का कह दिया था। ये उसी का परिणाम था कि इस वक्त अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त में था। मगर अब जबकि मैं कल दोपहर तक हल्दीपुर रितू दीदी के फार्महाउस पहुॅच जाऊॅगा तो अजय सिंह को भी सीबीआई की गिरफ्त से आज़ाद कर देने का समय आ जाएगा।

अजय सिंह जब सीबीआई की गिरफ्त से निकल कर अपनी हवेली पहुॅचेगा तब वो प्रतिमा को जो कुछ बताएगा उसे सुन कर सबके पैरों के नीचे से ज़मीन गायब हो जाएगी। अजय सिंह का दिमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते फटने को आ जाएगा मगर उसे कुछ समझ नहीं आएगा। वो इस तरह किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थित में बैठा रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शून्य में खोया हुआ सा रह जाता है।

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अब आगे,,,,,,,,,

उधर रितू मंत्री दिवाकर चौधरी से फोन पर बातें करने के बाद अपने फार्महाउस पहुॅची। उसने जिप्सी को तेज़ रफ्तार से दौड़ाया था और पाॅच मिनट में ही फार्महाउस पहुॅच गई थी। उसे मंत्री की बातों पर ज़रा सा भी ऐतबार नहीं था। हलाॅकि उसने धमकी के रूप में मंत्री को तगड़ी डोज दी थी। मगर इसके बावजूद वो इस बात से संतुष्ट नहीं हो पाई थी कि मंत्री की वजह से विधी के माॅ बाप अब सुरक्षित हैं। उसे पता था कि मौजूदा वक्त में भले ही मंत्री ने उससे वादा कर लिया था कि विधी के माॅ बाप को कुछ नहीं कहेगा मगर वो अपने इस वादे पर ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकता था। क्योंकि वो मंत्री था, वो ये बरदास्त नहीं कर पाएगा कि कोई ऐरा ग़ैरा उसे किसी चीज़ के लिए बिवश करे।

फार्महाउस पर पहुॅच कर रितू तेज़ क़दमों से चलती हुई अपने कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर सबसे पहले उसने अपनी पाॅकेट से उस मोबाइल की निकाल कर आलमारी में रखा जिस नये मोबाइल से उसने मंत्री से बात की थी। उसके बाद उसने अपने आईफोन को स्विच ऑन किया। फोन के स्विच ऑन होते ही उसने पुलिस कमिश्नर को काल लगाया और मोबाइल कान से सटा लिया।

"यस ऑफिसर।" उधर से कमिश्नर का प्रभावशाली स्वर उभरा___"क्या प्रोग्रेस चल रही है तुम्हारे ऑपरेशन की?"
"ऑपरेशन तो अभी सफलता पूर्वक चल ही रहा है सर।" रितू ने सहसा गंभीर भाव से कहा___"मगर इस बीच एक प्रोब्लेम आ गई है।"

"व्हाट??" उधर से कमिश्नर का चौंकता हुआ स्वर उभरा___"कैसी प्रोब्लेम आ गई है? इवरीथिंग ओके न?"
"यस सर।" रितू ने कहा___"बट प्रोब्लेम ये है कि मंत्री दिवाकर चौधरी के साथ जो कुछ मौजूदा समय में हो रहा है उसके वजह का उसने अपने तरीके से पता लगाया है। मेरा मतलब है कि वो ये समझता है कि उसकी इस बरबादी के पीछे विधी के घरवालों का हाॅथ है। उसे लगता है कि उसके बच्चों को विधी के बाप ने किडनैप किया है।"

"ऐसा तो उसे लगेगा ही ऑफीसर।" कमिश्नर का स्वर उभरा___" मऐसे मामले में कोई भी ब्यक्ति सर्व प्रथम विधी के घर वालों पर ही शक करेगा, क्योंकि मंत्री के साथ ये सब करने की वजह सिर्फ विधी के घर वालो के पास ही है। इस लिए अगर मंत्री सारी बातों पर विचार करके ये नतीजा निकाला है कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घर वाले ही कर रहें हैं तो उसका सोचना ग़लत नहीं है। ख़ैर, तुम बताओ कि अब तुम क्या चाहती हो?"

"ज़ाहिर सी बात है सर।" रितू ने कहा___"कि मंत्री के इस नतीजे के बाद अब विधी के माॅ बाप पर मंत्री का खतरा हो गया है। आप जानते हैं कि इस मामले में उन बेचारों का दूर दूर तक कोई हाॅथ नहीं है। वो तो बेकार में ही इस मौत रूपी खतरे में फॅस पड़े हैं। इस लिए मैं चाहती हूॅ सर कि विधी के माॅ बाप को जल्द से जल्द सुरक्षा मुहय्या कराएॅ आप।"

"ऐसा करना सही नहीं होगा ऑफिसर।" कमिश्नर ने समझाने वाले भाव से कहा___"क्योंकि अगर हम विधी के माॅ बाप को पुलिस प्रोटेक्शन देंगे तो मंत्री के सामने सारी बातें ओपेन हो जाएॅगी। उस सूरत में उनके ऊपर ख़तरा और भी बढ़ जाएगा। ये ऑपरेशन चूॅकि सीक्रेट है इस लिए इसकी सारी चीज़ें सीक्रेट ही रहें तो बेहतर होगा।"

"मगर सर।" रितू ने कहा___"विधी के घर वालों को सुरक्षित तो ईरना ही होगा हमें। वरना उनके ऊपर मंत्री का क़हर कभी भी टूट पड़ेगा।"
"एक काम करो तुम।" कमिश्नर ने कहा___"विधी के माॅ बाप को भी अपने पास ही रखो।"

"लेकिन सर।" रितू ने कहा___"उन्हें मैं अपने पास लेकर कैसे आऊॅगी? संभव है कि मंत्री ने अपने आदमी उनके आस पास निगरानी में लगा दिये हों। उस सूरत में जब वो देखेंगे कि मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान किसी के द्वार ले जाए जा रहे हैं तो वो ज़रूर उस बात की सूचना मंत्री को दे देंगे और हमारा पीछा भी कर सकते हैं।"

"रिस्क तो लेना ही पड़ेगा ऑफिसर।" कमिश्नर का गंभीर स्वर___"तुम चौहान को फोन करके कहो कि वो तुम्हें किसी ख़ास जगह पर आकर मिलें उसके बाद उस खास जगह पर हमारे पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उन्हें वहाॅ से रिसीव कर लेंगे। पुलिस के वो आदमी चौहान और उनकी पत्नी को किसी खास जगह पर ही लेकर आ जाएॅगे जहाॅ से तुम उन्हें रिसीव कर अपने साथ ले जाना।"

"दैट्स ए गुड आइडिया सर।" रितू ने कहा___"हलाॅकि रिस्की तो ये भी है किन्तु जैसा कि आपने कहा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। इस लिए ऐसा ही करते हैं सर।"
"ठीक है।" कमिश्नर ने कहा___"तुम ऐसा ही करो। मगर होशियारी और सतर्कता से।"
"यस सर।" रितू ने कहा।

इसके साथ ही काल कट गई। रितू के चेहरे पर इसके पहले जहाॅ चिंता व परेशानी के भाव थे वहीं अब राहत के भाव झलकने लगे थे। यद्यपि उसे पता था कि ऐसा करना भी रिस्की ही था। क्योंकि मंत्री ने अगर अपने आदमियों को विधी के माॅ बाप की निगरानी में लगा दिया होगा तो यकीनन वो लोग जान जाएॅगे और पीछा करेंगे। मगर ये भी सच था कि विधी के माॅ बाप को सुरक्षित करना ज़रूरी था। अतः रितू ने मोबाइल में विधी के पापा का नंबर खोज कर काल लगा दिया।

"हैलो अंकल मैं रितू बोल रही हूॅ।" उधर से काल रिसीव किये जाते ही रितू ने कहा था।
"ओह हाॅ रितू बेटा।" उधर से मिस्टर चौहान का तनिक चौंका हुआ स्वर उभरा___"कैसी हो तुम? उस दिन के बाद से फिर आई नहीं तुम। क्या विधी के जाने से सारे रिश्ते खत्म हो गए? मेरा दामाद तो अपनी मरहूम पत्नी की अस्थियाॅ तक लेने नहीं आया। ऐसी उम्मीद तो न थी मुझे उससे।"

"राज की जगह उसके नाम से अस्थियाॅ लेने मैं ही तो आई थी अंकल।" रितू ने कहा___"आप से बताया तो था हालातों के बारे में।"
"ओह हाॅ हाॅ बताया था तुमने बेटा।" उधर से चौहान का स्वर उभरा___"क्या करूॅ बेटी कुछ याद ही नहीं रहता। जब से बेटी हमें छोंड़ कर गई है तब से एकदम अकेले हो गए हैं हम दोनो। सच कहें तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। ये ज़िंदगी तो बस बोझ सी लगने लगी है।"

"ऐसा मत कहिए अंकल।" रितू ने दुखी भाव से कहा___"विधी के चले से आप दुखी मत होइये। मैं भी तो आपकी बेटी ही हूॅ। आप मुझे अपनी विधी ही समझिये अंकल। मैने तो उसी दिन आप सबसे रिश्ता बना लिया था जिस दिन विधी को मैने अपनी छोटी बहन बनाया था। उसके जाने का हम सबको बेहद दुख है मगर ये भी सच है कि इस दुख को लेकर बैठा तो नहीं रहा जा सकता न। आप बिलकुल भी दुखी मत होइये और ना ही ये समझिए कि आप अब अकेले हो गए हैं। हम सब आपके ही तो हैं। आपका हम पर वैसा ही हक़ है जैसा कि विधी पर था आपका।"

"ओह शुक्रिया बेटी।" चौहान का लरज़ता हुआ स्वर उभरा___"तुमने ये कह कर सच में मुझे अकेलेपन के एहसास से मुक्त करवा दिया। मेरे दिल में जीने की चाह जाग उठी है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि अब कैसे हालात हैं वहाॅ पर?"

"हालात तो अभी काबू में ही हैं अंकल।" रितू ने कहा___"मगर एक गंभीर समस्या पैदा हो गई है।"
"क कैसी समस्या बेटा?" चौहान के स्वर में एकाएक चिंता के भाव आ गए थे___"सब ठीक तो है न?"

रितू ने संक्षेप में चौहान को मंत्री से संबंधित सारी बातें बता दी। चौहान ये जान कर चकित था हो गया था कि उसकी बेटी के साथ कुकर्म करने वालों को रितू खुद सज़ा दे रही है। इस बात से चौहान को बड़ी खुशी भी हुई। किन्तु रितू ने मौजूदा हालातों के बारे में जो कुछ भी उसे बताया उससे वो चिंतित भी हो उठा था।

"इस लिए अंकल।" सारी बातें बताने के बाद फिर रितू ने कहा___"मैं चाहती हूॅ कि आप और ऑटी जितना जल्दी हो सके तो घर से निकल कर मेरे पास आने की कोशिश कीजिए।"
"लेकिन बेटा।" उधर से चौहान ने कहा___"उस मंत्री ने हमारे आस पास निगरानी के लिए अपने आदमियों को लगाया होगा तो उस सुरत में हम भला कैसे निकल पाएॅगे यहाॅ से?"
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11-24-2019, 01:03 PM,
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"उसका भी इंतजाम कर दिया है मैने।" रितू ने कहा___"आप बस वो करते जाइये जो मैं कहूॅ।"
"ठीक है बेटा।" चौहान ने कहा___"बताओ क्या करना है हमें?"
"आप अपना ज़रूरी सामान लेकर इसी वक्त तैयार हो जाइये।" रितू ने कहा___"थोड़ी ही देर में मेरे पुलिस डिपार्टमेन्ट के आदमी सादे कपड़ों में आपको लेने आएॅगे। आप उनके साथ चले आइयेगा। उसके बाद का काम मेरे पुलिस के वो आदमी और मैं सम्हाल लेंगे।"

"ठीक है बेटा।" उधर से चौहान ने कहा___"जैसा तुम कहो।"
"ओके फिर आप जल्दी से तैयारी कर लीजिए।" रितू ने कहा___"मैं अपने आदमियों को भेजती हूॅ आपके पास।"

इसके साथ ही रितू ने काल कट कर दी। कुछ पल रुकने के बाद उसने फिर से किसी को फोन लगाया और थोड़ी देर तक किसी से कुछ बातें की। उसके बाद काल कट करके बेड पर आराम से लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि उसका फोन बज उठा। उसने मोबाइल फोन उठाकर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो सहसा उसके चेहरे पर सोचो के भाव उभरे।

"कहो प्रकाश क्या ख़बर है?" रितू ने सोचने वाले भाव से काल रिसीव करते ही पूछा।
"...........। उधर से कुछ कहा गया।
"ओह तो ये बात है।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"वैसे कितने आदमी होंगे वो लोग?"
"...........।" उधर से प्रकाश नाम के आदमी ने फिर कुछ कहा।

"चलो अच्छी बात है।" रितू ने कहा___"और कुछ?"
"...........। उधर से फिर कुछ कहा गया।
"क्या???" रितू चौंकी___"डाक्टर भला किस लिए आया था वहाॅ?"
"...........।" उधर से पुनः कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" रितू ने कहा___"लेकिन माॅम को चक्कर कैसे आ गया था? क्या तुमने पता नहीं किया?"

"..........।" उधर से प्रकाश ने कुछ बताया।
"ओह तो ये बात है।" रितू चौंकने के साथ मुस्कुराई भी___"चलो ठीक है प्रकाश। बहुत अच्छी ख़बर दी है तुमने। ऐसी ही अंदर की ख़बर देते रहना और हाॅ ज़रा होशियार और सतर्क रहना।"

ये कह कर रितू ने फोन काट दिया। उसके चेहरे पर इस वक्त कई तरह के भावों का आवागमन चालू हो गया था। ख़ैर उसके बाद रितू अपने डिपार्टमेन्ट के पुलिस वालों के फोन काल का इन्तज़ार करने लगी। लगभग बीस मिनट बाद रितू का आईफोन बजा। रितू ने तुरंत काल को रिसीव किया। काल पुलिस के आदमियों का ही था। उन्होंने बताया कि वो लोग मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान को लेकर चल दिये हैं और बताई हुई जगह पर आ रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि आस पास ऐसा कोई आदमी नहीं दिखा जिस पर किसी तरह का ज़रा सा भी संदेह किया जा सके।

पुलिस के उस आदमी से बात करने के बाद रितू भी बेड से उठी और जिप्सी की चाभी लेकर कमरे से बाहर की तरफ निकल पड़ी। सीढ़ियों से उतर कर जब वो नीचे आई तो ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर नैना और कुरुणा का भाई बैठा दिखा उसे। रितू नीचे आते देख नैना ने उससे कहा___"रितू बेटा, तुम्हारे ये मामा जी कह रहे हैं कि इन्हें अब अपने घर वापस जाना है। कह रहे हैं बहुत काम बाॅकी है घर में।"

"क्यों मामा जी इतना जल्दी?" रितू ने कहा___"अभी तो हमने आपसे ठीक से बातें भी नहीं की है और आप जाने की बात करने लगे।"
"बातें तो हो ही गई हैं रितू बेटा।" हेमराज ने कहा__"अब मुझे जाने दो। बहुत काम है। तुम्हें तो पता है दूसरे की नौकरी में अपनी मनमर्ज़ी तो नहीं चलती न।"

"ठीक है मामा जी।" रितू ने कहा___"जैसा आपको अच्छा लगे। तो कब जा रहे हैं आप?"
"मैं तो तैयार ही बैठा हूॅ बेटा।" हेमराज ने कहा___"बस तुम्हारे आने का ही इन्तज़ार कर रहा था।"
"ओह।" रितू ने कहा___"चलिए फिर। मैं भी उधर ही जा रही हूॅ। सो आपको भी छोंड़ दूॅगी।"

रितू के कहने पर हेमराज सोफे से उठा और बगल से ही रखे एक छोटे से बैग को पीठ पर लाद कर बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे रितू भी चल दी। थोड़ी ही देर में वो दोनो जिप्सी में सवार सड़क पर चल रहे थे। दोनो के बीच थोड़ी बहुत बात चीत होती रही और फिर वो नहर वाली जगह के पास बने पुल के इसी तरफ रुक गए।

लगभग बीस मिनट बाद सामने से एक टोयटा आती दिखी। रितू को पहचानने में ज़रा भी देरी न हुई कि उस गाड़ी में उसके पुलिस के ही आदमी हैं। कुछ ही देर में वो गाड़ी रितू के पास आकर रुकी। गाड़ी के आगे पीछे के दरवाजे खुले। अगले दरवाजे से पुलिस का एक आदमी उतरा जबकि पीछे के दरवाजे से विधी के माॅ बाप उतरे।

रितू उनके पास जाकर उन्हें नमस्ते किया और उन्हें अपने साथ ला कर अपनी जिप्सी की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उन दोनो के बैठने के बाद रितू ने पुलिस वालों से कहा कि वो हेमराज को हरीपुर छोंड़ आएॅ जो यहाॅ से लगभग तीस किलो मीटर की दूरी पर था। रितू के कहने पर वो पुलिस वाले हेमराज की अपनी गाड़ी में बैठा कर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद रितू भी अपनी जिप्सी को स्टार्ट कर वापस फार्महाउस की तरफ चल दी।

विधी के माता पिता की सुरक्षित करके रितू अब बेफिक्र हो चुकी थी।

अब वो बेफिक्री से कोई भी काम कर सकती थी। रास्ते में रितू ने विधी के माॅ बाप को विराज के बारे में भी बता दिया कि वो कल दोपहर तक मुम्बई से वापस आ जाएगा। ऐसे ही बातें करते हुए ये लोग कुछ ही समय में फार्महाउस पहुॅच गए। जिप्सी से उतर कर रितू विधी के माता पिता को अंदर ले गई। जहाॅ पर नैना बुआ बैठी थी। रितू ने नैना को विधी के माॅ बाप का परिचय दिया और कहा कि इनके रहने के लिए एक कमरा साफ सुथरा करवा दें। थोड़ी देर ड्राइंग रूम में उन सबसे बातचीत करने के बाद रितू अपने कमरे में चली गई।
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11-24-2019, 01:03 PM,
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अजीब संयोग था।
जैसा कि रितू को पहले से ही अंदेशा था कि मंत्री अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। कहने का मतलब ये कि जैसे ही मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान रितू के फार्महाउस पहुॅचे थे वैसे ही मंत्री ने अपने आदमियों को गुप्त तरीके से विधी के घर के आस पास निगरानी के लिए लगा दिया था। किन्तु मुश्किल से आधे घंटे बाद ही मंत्री के आदमी ने मंत्री को फोन करके बताया कि जिस ब्यक्ति की निगरानी में हम लोग यहाॅ आए थे उसके घर में तो ताला लगा हुआ है। कुछ लोगों ने बताया कि एक सफेद रंग की गाॅड़ी आई थी जिसमे चौहान अपनी बीवी को लिए बैठ गया था। उसके हाॅथ में एक बड़ा सा बैग भी था। उन दोनों के बैठते ही वो सफेद रंग की गाड़ी चली गई थी।

फोन पर अपने आदमी की ये ख़बर सुन कर मंत्री भौचक्का सा रह गया था। वो समझ गया कि भले ही उसने अपने बच्चों के किडनैपर से वादा किया था इसके बाद भी किडनैपर को उसके वादे पर ऐतबार न हुआ था। शायद यही वजह थी कि किडनैपर ने वक्त रहते अपनी सुरक्षा के मद्दे नज़र अपने घर में ताला लगा कर कहीं ऐसी जगह नया ठिकाना बना लिया था जिस जगह के बारे मंत्री को पता तक न चल सके। फोन पर अपने आदमी की ख़बर सुनने के बाद इस वक्त मंत्री अपने उन्हीं तीनों साथियों के साथ ड्राइंगरूम में गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था।

"शिकार हमारे हाॅथ से बहुत ही आसानी से निकल गया चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उसे आपके वादे के बावजूद पता था कि आप ऐसा कोई क़दम उठाएॅगे। इसी लिए तो उसने फौरन ही अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर लिया। सबसे बड़ी बात ये कि आपको ऐसे वक्त में ऐसा कोई क़दम उठाना ही नहीं चाहिए था। क्योंकि संभव है कि इससे हमें भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाए। दूसरी बात जब आपको पता चल ही गया था तो उस बात को फोन पर उस किडनैपर को बताना ही नहीं चाहिए था बल्कि आपको जो करना था वो उस किडनैपर की जानकारी में आए बग़ैर ही करना चाहिए था।"

"ग़लती तो हमसे यकीनन हो गई है अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने अफसोस भरे भाव से कहा___"हमें लगा कि जब हम उसे बताएॅगे कि उसकी असलियत हम जान गए हैं तो उसके होश उड़ जाएॅगे और अपने बुरे अंजाम का सोच कर वो सब कुछ हमारे हवाले कर देगा जिसके बलबूते पर वो इतना उछल रहा है। इतना ही नहीं वो हमारे बच्चों को भी सही सलामत हमारे पास भेज देगा। इसके बाद वो हमसे अपने उस अपराध की माफ़ी माॅगेगा। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो तो हम पर और भी ज्यादा हावी हो गया था।"

"अब जो होना था वो तो हो ही गया चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा ने कहा___"और इस पर अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है। इस लिए हमें अब ये सोचना चाहिए कि अब आगे हमें क्या करना है? वैसे उस चौहान के अचानक अपने घर से गायब हो जाने से एक बात तो साफ हो गई है कि वो अकेला इस काम में नहीं है। बल्कि कोई और भी है जो उसकी मदद कर रहा है।"

"ये तुम कैसे कह सकते हो?" दिवाकर चौधरी के माथे पर बल पड़ा___"और भला कौन ऐसे मामले में उसकी मदद कर सकता है? जबकि सब जानते हैं कि ये मामला हमसे संबंधित है। भला हमसे दुश्मनी मोल लेने का दुस्साहस दूसरा कौंन कर सकता है?"
"कोई तो होगा ही चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मैने भी अपने तरीके से उस लड़की के बारे में पता लगाया है।"
"क्या मतलब?" चौधरी के साथ साथ सुनीता व अवधेश भी चौंके थे, जबकि अवधेश ने ही पूछा___"क्या पता लगाया है उस लड़की के बारे में?"

"यही कि वो लड़की हमारे बच्चों के ही कालेज में पढ़ती थी।" अशोक मेहरा कह रहा था___"और हमारे बच्चों की फ्रैण्ड ही थी। किन्तु उसके बारे में एक बात ये भी पता चली कि वो लड़की किसी दूसरे लड़के को चाहती थी और फिर एक दिन अविश्वसनीय तरीके से उस लड़के से प्रेम संबंध तोड़ लिया था। उस लड़के से अलग होने के बाद ही वो सूरज के क़रीब आई थी। सूरज के ही एक दूसरे दोस्त ने इस बारे में बताया कि विधी नाम की वो लड़की उस लड़के से संबंध ज़रूर तोड़ लिया था कि किन्तु अकेले में अक्सर वो उस लड़के की याद में ही रोती रहती थी।"

"लेकिन इस मैटर से उस बात का कहाॅ संबंध है अशोक भाई जिसकी बात तुम कर रहे हो कि चौहान की मदद कोई दूसरा भी कर रहा है?" अवधेश ने कहा था।

"संबंध क्यों नहीं हो सकता भाई?" अशोक मेहरा ने कहा___"खुद सोचो कि जो लड़की अपने प्रेमी से अलग होकर उसकी याद में इस तरह रोती थी तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो फिर से अपने प्रेमी से मिलने की चाह कर बैठे और मिल ही जाए? दूसरी ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि इश्क़ मुश्क कभी दुनियाॅ से नहीं छुपता। संभव है कि विधी और उसके प्रेमी के उन प्रेम संबंधों की ख़बर दोनो के घर वालों को भी रही हो। लेकिन किसी कारणवश मिल न पाएॅ हों वो दोनो या फिर मिलने वाले रहे हों। मगर तभी लड़की के साथ रेप सीन हो गया। लड़की के साथ हुए हादसे का पता विधी के प्रेमी को लगा होगा और उसने अपनी प्रेमिका के साथ हुए इस जघन्य अपराध का बदला लेने के लिए उतारू हो गया हो। जिसका नतीजा आज इस रूप में हमारे सामने है।"

"तम्हारी बातों में वजन तो है अशोक।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"मगर ये महज तुम्हारी संभावनाएॅ हैं जो कि ग़लत भी हो सकती हैं। फिर भी अगर तुम्हारी बातों को मान भी लिया जाए तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारे बच्चों को किडनैप करने वाला चौहान नहीं बल्कि उस लड़की का प्रेमी है।"

"बिलकुल।" अशोक ने कहा___"एक पल के लिए ये सोचा जा सकता है कि लड़की के बाप ने अपनी बेटी के साथ हुए उस कुकर्म का बदला ये सोच कर न लिया कि बदला लेने से वो सब तो वापस मिलने से रहा जो इज्ज़त के रूप में लुट चुका है। या फिर ये भी सोच लिया होगा कि कानूनन भी वो हमारा कुछ नहीं कर पाएगा। मगर लड़की का प्रेमी बदला लेने के सिवा कुछ और सोचेगा ही नहीं और वही वो कर रहा है।"

अशोक मेहरा की इस बात से ड्राइंग रूम में कुछ देर के लिए ब्लेड की धार की मानिंद सन्नाटा छा गया। सभी के चेहरों पर गहन सोचों के भाव नुमायाॅ हो उठे थे।

"मुझे लगता है कि अशोक भाई साहब का ये सोचना एकदम सही है।" सहसा इस बीच पहवी बार सुनीता ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"क्योंकि जिस प्रकार से उसने इतने कम समय में हमारे बच्चों को और हमारी रचना बेटी को किडनैप किया है उस तरह से वो चौहान तो कम से कम कर ही नहीं सकता। वो लड़का जवान है और गरम खून है। रेप केस होने के दूसरे दिन ही जिस तरह से उसने हमारे बच्चों को हमारे ही फार्महाउस से किडनैप किया और इतना ही नहीं बल्कि हमारे खिलाफ़ ऐसा खतरनाक सबूत वहाॅ से प्राप्त किया वो चौहान के बस का तो हर्गिज़ नहीं था। आज जब उसे चौधरी साहब से ये पता चला कि मंत्री महोदय उसकी ये असलियत जान गए हैं कि वो दरअसल चौहान ही है तो उसे चौहान की फिक्र हुई इसी लिए उसने वक्त रहते चौहान को सुरक्षित कर दिया और हमारी पहुॅच से शायद दूर भी कर दिया है।"

"अरे वाह।" दिवाकर चौधरी ने हैरत से ऑखें फैलाते हुए कहा___"क्या खूब दिमाग़ लगाया है मेरी राॅड ने। असलियत भले ही कुछ और ही हो मगर जिस तरह से अशोक और सुनीता ने अपनी बातें रखीं उससे यही लगता है कि ये सब लड़की के उस प्रेमी का ही किया धरा है। ख़ैर, अब सवाल ये है कि लड़की का वह प्रेमी कौन है जिसके पिछवाड़े में इतनी ज्यादा मिर्ची लग गई कि वो अपनी जाने बहार के साथ हुए उस काण्ड का बदला लेने लगा है। आख़िर पता तो चले कि वो किस खेत की पैदाईश है जिसने हम पर हाॅथ डालने का दुस्साहस किया है।"

"मैने उस लड़के का पता भी करवाया है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"वो लड़का हल्दीपुर का है। बड़े घर परिवार से ताल्लुक रखता है किन्तु।"
"किन्तु क्या अशोक?" चौधरी के माथे पर शिकन पैदा हुई।
"पता चला है कि लड़के के ताऊ ने उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर रखा है।" अशोक मेहरा ने कहा___"लड़के के ताऊ का नाम ठाकुर अजय सिंह है। हल्दीपुर में बड़ी भारी किन्तु शानदार हवेली है तथा अच्छी खासी ज़मीन जायदाद भी है।खुद अजय सिंह एक बड़ा कारोबारी इंसान है। परिवार की आपसी कलह की वजह से उसने अपने मॅझले किन्तु स्वर्गवाशी भाई विजय सिंह के उस लड़के को और लड़के की माॅ बहन को हवेली से बेदखल कर दिया है।"
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