non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:54 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।

उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।

उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।

कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।

"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"

"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।

"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।

इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"

नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।

नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।

"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"

".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"

"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
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11-24-2019, 12:54 PM,
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इधर विराज एण्ड पार्टी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ ही समय की देरी से आख़िर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग ट्रेन से बाहर आए और फिर प्लेटफार्म से बाहर की तरफ निकल गए। विराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय को फोन कर दिया था। इस लिए जैसे ही ये लोग स्टेशन से बाहर आए वैसे ही जगदीश ओबराय बाहर मिल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे बैठ कर घर के लिए निकल गए।

रास्ते में जगदीश अंकल ने मुझे बताया कि उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो माॅ मेरी वापसी की बात सुन कर नाराज़ हुईं। मगर जगदीश अंकल ने उन्हें सारी बात तरीके से बताई और ये यकीन दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा तब जाकर वो राज़ी हुई थी। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं। अतः अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। वरना मेरा प्लान ये था कि मैं यहाॅ से वापस उसी ट्रेन से लौट जाता।

मुम्बई से वापसी के लिए इसी ट्रेन को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस लिए मैं बड़े आराम से गर जाकर माॅ से मिल सकता था। ख़ैर, कुछ ही समय बाद हम सब घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दूसरे से मिले। करुणा चाची जब माॅ से मिली तो बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माफ़ियाॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया था। करुणा चाची को वो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल मिलाप हुआ। मिलने मिलाने में ही काफी समय ब्यतीत हो गया था।

मैं अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो गया था। आदित्य भी फ्रेश हो गया था। उसे मेरे साथ ही वापस गाॅव जाना था। निधी भी सबसे मिली। करुणा चाची ने उसे ढेर सारा प्यार व स्नेह दिया था। दिव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छुपकाया हुआ था। अभय चाचा खुश थे कि उनके बीवी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे। अब उन्हें उनके लिए कोई फिक्र नहीं थी। शायद यही वजह थी कि वो खुद भी मेरे साथ चलने की बात करने लगे थे। उनका कहना था कि वो खुद भी इस जंग में हिस्सा लेंगे और अपने बड़े भाई से इस सबका बदला लेंगे। मगर मैने और जगदीश अंकल ने उन्हें समझा बुझा कर मना कर दिया था।

मैने एक बात महसूस की थी कि निधी का बिहैवियर मेरे प्रति कुछ अलग ही था। इसके पहले वह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोशिश करती थी जबकि अब वो मुझसे दूर दूर ही रह रही थी। यहाॅ तक कि मेरी तरफ देख भी नहीं थी वो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही थी। मैने एक दो बार खुद उससे बात करने की कोशिश की मगर वो किसी न किसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती थी। मुझे उसके इस रूखे ब्यवहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। वो मेरी जान थी, मैं उसकी बेरुखी पल भर के लिए भी सह नहीं सकता था मगर सबके सामने भला मैं उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास वक्त नहीं था, इस लिए मैने मन में सोच लिया था कि सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी किसी भी प्रकार की नाराज़गी को दूर करूॅगा।

मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।

रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
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11-24-2019, 12:54 PM,
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अपडेट.........《 49 》

अब तक,,,,,,,

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
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अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"

"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"

पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।

"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स आल।"

उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"

"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"

"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"

"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"

कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।
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11-24-2019, 12:55 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"

"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"

"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"
"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"

"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"

अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।

कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।

शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।

"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"

"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"

"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।

"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।

"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"

"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी। सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"

"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"

"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"

"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"
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11-24-2019, 12:55 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"

"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"

"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"

कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
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रितू की जिप्सी फार्महाउस पहुॅची।
लोहे वाले गेट के पास ही शंकर और हरिया काका बंदूख लिए खड़े थे। रितू की जिप्सी को देखते ही दोनो ने गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी की गेट के अंदर बढ़ा दिया। कुछ ही पल में रितू की जिप्सी पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर रितू ने हरिया काका को आवाज़ देकर बुलाया। हरिया के आते ही रितू ने उससे जिप्सी के पीछे बड़ी सी प्वालीथिन के नीचे ढॅकी मंत्री की बेटी को उठा कर तहखाने में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कि तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही रखे।

रितू के कहने पर हरिया ने वैसा ही किया। आज एक लड़की को इस तरह तहखाने में ले आते देख हरिया काका अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। लड़की को देख कर उसके मन में ढेर सारे लड्डू फूट रहे थे। काफी दिन से लड़की गाॅड मार मार कर वो अब उकता सा गया था। अब उसे एक फ्रेश माल की ज़रूरत महसूस हो रही थी। बिंदिया को ज्यादा सेक्स करना पसंद नहीं था इस लिए हरिया को वह रोज रोज अपने पास नहीं आने देती थी। जिसकी वजह से हरिया उससे खूब नाराज़ हो जाया करता था। मगर कर भी क्या सकता था??

मन में ढेर सारे खुशी के लड्डू फोड़े वह लड़की को तहखाने में ले जाकर उसे वहीं तहखाने के फर्स पर लेटा दिया। लड़की अभी भी बेहोश ही थी। तहखाने में रस्सियों से बॅधे वो चारो असहाय अवस्था में लगभग झूल से रहे थे। उन चारों की हालत ऐसी हो गई थी कि पहचान में नहीं आ रहे थे। जिस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के और कुछ नहीं। इस वक्त चारो के सिर नीचे की तरफ झुके हुए थे। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर सामने की तरफ देख भी सकें कि कौन किसे लेकर आया है? हरिया काका ने एक नज़र उन चारों पर डाली उसके बाद वो लड़की की तरफ एक बार देखने के बाद तहखाने से बाहर की तरफ चला गया। कुछ देर में जब वो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकड़ी की कुर्सी थी।

लकड़ी की कुर्सी को तहखाने में एक तरफ रख कर वो पलटा और फिर लड़की उठा कर उस कुर्सी पर बैठा दिया। उसने लड़की के दोनो हाथों को कुर्सी के दोनो साइड एक एक करके रस्सी से बाॅध दिया। उसके बाद उसके पैरों को भी नीचे कुर्सी के दोनो पावों पर एक एक कर बाॅध दिया। लड़की के झुके हुए सिर को ऊपर उठा कर उसने कुर्सी की पिछली पुश्त से टिका दिया। कुछ देर तक हरिया काका उस लड़की को ललचाई नज़रों से देखता रहा उसके बाद वो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने का गेट बंद कर वो बाहर गेट के पास खड़े शंकर के करीब आ गया।

उधर, मंत्री की बेटी को हरिया के हवाले करने के बाद रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर उसने अपनी वर्दी को उतारा और बाथरूम में घुस गई। जब वह फ्रेश होकर बाहर आई तो कमरे में नैना बुआ को देख कर वह चौंकी। दरअसल इस वक्त वह सिर्फ एक हल्के पिंक कलर के टाॅवेल में थी।

बाॅथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ से बेड पर बैठी नैना का ध्यान उस तरफ गया तो रितू को मात्र टाॅवेल में देख कर वह हौले से मुस्कुराई। उसके यूॅ मुस्कुराने से रितू के चेहरे पर अनायास ही लाज और हया की सुर्खी फैल गई। होठों पर हल्की मुस्कान के साथ ही उसकी नज़रें झुकती चली गईं। रितू का इस तरह शरमाना नैना को काफी अच्छा लगा। उसे पता था कि उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से कितनी ही कठोर हो किन्तु अंदर से वह एक शुद्ध भारतीय लड़की है जो ऐसी परिस्थिति में शरमाना भी जानती है।

"चल मुझसे शरमाने की ज़रूरत नहीं है रितू।" नैना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू आराम से अपने कपड़े पहन ले। फिर हम बातें करेंगे।"
"शर्म तो आएगी ही बुआ।" रितू ने इजी फील करने के बाद ही हौले से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी किसी के सामने नहीं आई। भले ही वो मेरे घर का ही कोई सदस्य हो।"

"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नैना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी बच्ची। सो फील इजी एण्ड कम्फर्टेबल।"
नैना की इस बात से रितू बस मुस्कुराई और फिर पास ही एक साइड रखी आलमारी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर वापस बाथरूम में घुस गई। ये देख कर नैना एक बार पुनः मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर बाद रितू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खूबसूरत से बदन पर भारतीय लड़कियों का शुद्ध सलवार सूट था और सीने पर दुपट्टा। वो इन कपड़ों में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। नैना ने उसे गहरी नज़र से एक बार ऊपर से नीचे तक देखा फिर बेड से उठ कर रितू के पास आई और रितू का सिर पकड़ कर अपनी तरफ किया और उसके माथे पर हल्के चूम लिया।

"बहुत खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची।" फिर नैना ने मुस्कुरा कर कहा___"किसी की नज़र न लगे। ईश्वर हर बला से दूर रखे तुझे।"
"आप भी न बुआ।" रितू ने हॅसते हुए कहा___"ख़ैर छोड़िये ये बताइये आपको यहाॅ अच्छा तो लगता है न? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप यहाॅ पर इजी फील नहीं करती हैं और खुद को यहाॅ मजबूरीवश रहने का सोचती हैं?"

"अरे नहीं रितू।" नैना ने रितू का हाॅथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाने के बाद खुद भी बैठते हुए कहा___"यहाॅ मुझे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परेशानी से दूर हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त व साफ वातावरण मन को बेहद सुकून देता है। यहाॅ बिंदिया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए? पिछले कुछ दिनों में अपने कुछ अज़ीज़ों से भी मिल लिया, ऐसा लगा जैसे फिर से इस घर में वही पुराना वाला दौर लौट आया है।"

"चिन्ता मत कीजिए बुआ।" रितू ने कहा___"पुराना वाला समय फिर से आएगा। फिर से पहले जैसी ही खुशियाॅ हमारे बीच रक्श करेंगी। बस इन खुशियों को बरबाद करने वालों का एक बार किस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद फिर से वही हमारा वही संसार होगा मगर एक नये संसार के रूप में। जिसमें सबके बीच सिर्फ बेपनाह प्यार होगा। जहाॅ किसी घृणा अथवा किसी प्रकार की नफ़रत के लिए कोई स्थान हीं नहीं होगा।"

"क्या सच में तूने अपने माता पिता के लिए उनका अंजाम बुरा ही सोचा हुआ है?" नैना ने पूछा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उनके कर्मों की सज़ा भी मिल जाए और वो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इंसानों की तरह?"

"ये असंभव है बुआ।" रितू ने कठोरता से कहा__"जो इंसान इतना ज्यादा अपने सोच और विचार से गिर जाए कि वो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का सोच डाले उससे भविष्य में अच्छाई की उम्मीद हर्गिज़ नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के लिए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं किसी सूरत पर उन्हें माफ़ नहीं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के लिए कहीं पर भी कोई रास्ता नहीं छोंड़ा है। उन्होंने हर रिश्ते के लिए सिर्फ गंदा सोचा है और गंदा किया है। उन्होने अपने स्वार्थ के लिए अपने देवता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डाली। सबसे बड़ी बात तो उन्होंने ये की कि अपने ही बेटे के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शामिल किया जिस काम को किसी भी जाति धर्म में उचित नहीं माना जाता बल्कि सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पाप माना जाता है। ऐसे इंसानों को माफ़ी कैसे मिल सकती है बुआ? नहीं हर्गिज़ नहीं। ना तो मैं माफ़ करने वाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घटिया लोगों को माफ़ करेगा। एक पल के लिए अगर ऐसा हो जाए कि राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नहीं माफ़ कर सकती। हाॅ बुआ....मेरे अंदर उनके प्रति इतना ज़हर और इतनी नफ़रत भर चुकी है कि अब ये उनकी मौ से ही दूर होगी। मुझे दुख इस बात का नहीं होगा कि मेरे माॅ बाप दुनियाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कि ऐसे गंदे इंसानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मुझे इस धरती पर भेज दिया था।"

रितू की इन बातों से नैना चकित भाव से देखती रह गई उसे। उसे एहसास था कि रितू के अंदर इस वक्त किस तरह की भावनाओं का चक्रवात चालू था जिसके तहत वो इस तरह अपने ही माॅ बाप के लिए ऐसा बोल रही थी। नैना खुद भी यही समझती थी कि रितू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इंसान के मर जाने का कोई दुख या संताप नहीं हो सकता।

"माॅ बाप तो वो होते हैं बुआ जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं।" रितू दुखी भाव से कहे जा रही थी__"बाल्य अवस्था से ही अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालते हैं। सबके प्रति आदर व सम्मान करने की भावना के बीज बोते हैं। सबके लिए अच्छा सोचने की सीख देते हैं। कभी किसी के बारे में बुरा न सोचने का ज्ञान देते हैं। मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से सिर्फ यही पाठ पढ़ाया था कि हवेली के अंदर रहने वाला हर ब्यक्ति बुरा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और ना ही इन्हें अपने पास आने देना। कहते हैं इंसान वही देता है जो उसके पास होता है। सच ही तो है बुआ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को देने के लिए। वो खुद ऊॅचे दर्ज़े के बुरे इंसान थे, उनके अंदर पाप और बुराईयों का भण्डार था। वही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया। ये तो समय की बात है बुआ कि वो हमेशा एक जैसा नहीं रहता। हर चीज़ की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के लिए समय ज़रूर आपको ऐसे मोड़ पर ले आता है जहाॅ आपको हर चीज़ की असलियत का पता चल जाता है। इस लिए ये अच्छा ही हुआ कि समय मुझे ऐसे मोड़ पर ले आया। वरना मैं जीवन भर इस बात से बेख़बर रहती कि जिन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ पढ़ाया गया था कि ये सब बुरे लोग हैं वो वास्तव में कितने अच्छे थे और गंगा की तरह पवित्र थे।"

"हर इंसान की सोच अलग होती है रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और हर इंसान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा और खुशी के लिए अनैतिकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दूसरों की खुशी और भलाई के लिए अपनी हर खुशी और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। अनैतिकता की राह पर चलने वाले ये सोचना गवाॅरा नहीं करते कि जो कर्म वो कर रहे हैं उससे जाति समाज और खुद के घर परिवार पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? उन्हें तो बस अपनी खुशियों से मतलब होता है। जबकि इसके विपरीत अच्छे इंसान अपने अच्छे कर्मों से आदर्श के नये नये कीर्तिमान स्थापित करते हैं। ख़ैर छोंड़ इन बातों को और ये बता कि आगे का क्या सोचा है?"

"सोचना क्या है बुआ?" रितू ने कहा___"मेरा भाई मुझसे कह गया है कि मैं उसके वापस आने का इन्तज़ार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस किस्से का खात्मा करेंगे।"
"पर ये सब होगा कैसे?" नैना ने कहा___"तुम दोनो इस काम को अकेले कैसे अंजाम तक पहुॅचाओगे?"

"मुझे खुद पर और अपने भाई राज पर पूरा भरोसा है बुआ।" रितू ने गर्व से कहा___"आप देखना हम दोनो कैसे इस सबको फिनिश करते हैं? अब तो रितू राज स्पेशल गेम होगा बुआ। मैं बस राज के आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूॅ।"

"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है।" नैना ने हैरानी से कहा___"जबकि मेरा तो सोच सोच कर ही दिल बुरी तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने वाली क्या बात है बुआ?" रितू ने स्पष्ट भाव से कहा___"सीधी और साफ बात है कि जो लोग सिर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं वो फिर किसी चीज़ से घबराते नहीं हैं। बल्कि मौत से भी डॅट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सुरक्षा में चली जाए तो कोई ग़म नहीं है। बल्कि मुझे बेहद खुशी होगी कि मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के लिए फना हो गई जिसने वास्तव में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मुझे इज्ज़त व सम्मान दिया।"

"ऐसा मत कह रितू।" नैना की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोली____"तुझे कुछ नहीं होगा और ख़बरदार अगर दुबारा से ऐसी फालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी बच्ची। तुझे कुछ नहीं होगा क्योंकि तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धर्म की राह पर मुकीम है तू। अगर किसी को कुछ होगा तो वो उन्हें होगा जो इस देश समाज और परिवार के लिए कलंक हैं।"

"ख़ैर जाने दीजिए बुआ।" रितू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्या रखा है? होना तो वही है जो हर किसी की नियति में लिखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते हैं। बिंदिया काकी ने खाना तैयार कर दिया होगा।"

रितू की ये बात सुन कर नैना उसे कुछ देर अजीब भाव से देखती रही, फिर रितू के उठते ही वो भी बेड से उठ बैठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायनिंग हाल की तरफ बढ़ चलीं। जहाॅ पर करुणा का भाई और अभय सिंह का साला बैठा इन्हीं का इन्तज़ार कर रहा था। ये दोनो भी वहीं रखी एक एक कुर्सियों पर बैठ गई। कुछ ही देर में बिंदिया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ सोने के लिए चले गए।
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Reply
11-24-2019, 01:00 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।

उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।

उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।

कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।

"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"

"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।

"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।

इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"

नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।

नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"

".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"

"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
Reply
11-24-2019, 01:00 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 50 》

अब तक,,,,,,,,

मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।

रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
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अब आगे,,,,,,,,

उधर रितू के फार्महाउस पर!
सुबह का नास्ता पानी करने के बाद रितू बाहर की तरफ निकल गई। बाहर आकर उसने देखा कि सामने मेन गेट पर हरिया काका और शंकर काका आपस में कुछ बातें कर रहे थे। रितू उन दोनो को देखते ही उनकी तरफ बढ़ चली। कुछ ही समय में वो उन दोनो के पास पहुॅच गई। रितू को अपनी तरफ आता देख उन दोनों ने अपनी बात बंद कर दी और सम्हल कर खड़े हो गए।

"क्या हाल चाल हैं आप दोनो के काका?" रितू ने उन दोनों की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए कहा___"आप दोनों ने नास्ता पानी किया कि नहीं?"
"हम दोनों ने अभी थोड़ी देर पहले ही नास्ता पानी किया है बिटिया।" शंकर ने कहा___"बिंदिया भाभी हमारा काफी बेहतर तरीके से ख़याल रखती हैं।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है काका।" रितू ने कहा___"काकी हैं ही इतनी अच्छी कि उन्हें सबकी फिक्र रहती है।"
"हाॅ ये बात तो सच है बिटिया।" शंकर ने कहा___"हरिया बहुत किस्मत वाला है जो इसे बिंदिया भाभी जैसी जोरू मिली हैं।"

"अरे ई का कहथो रे बुड़बक?" हरिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"किस्मत वाली ता ऊ है ससुरी जो हमरे जइसन मरद मिल गवा है ऊखा। हम ता पहिले से ही किस्मत वाला हूॅ रे।"
"देखा बिटिया।" शंकर ने रितू से कहा___"ये अपने आपको जाने क्या समझता रहता है? जबकि सच्चाई तो यही है कि जबसे बिंदिया भाभी से इसका ब्याह हुआ है तब से इसके भाग्य खुल गए हैं।"

"खूब समझ रहा हूॅ रे तोहरी बातन का।" हरिया ने सिर हिलाते हुए कहा___"तू ससुरे ऊखर बहुतै बड़ाई करथै रे। तोहरे मन मा का है ई हम बहुतै अच्छी तरह से जानत हूॅ। इतना बुड़बक न हूॅ हम। पर तू ससुरे हमरी एक बात कान खोल के सुन ले, अउर ऊ या के कउनव दिन सारे हमरी मेहरारू का लइके भाग न जइहे समझा का?"

"ओए ये क्या बकवास कर रहा है तू?" शंकर ने एकदम से आवेश में आकर कहा__"ऐसा तू सोच भी कैसे सकता है मेरे बारे में? तू अच्छी तरह जानता है कि मेरे मन में ऐसी बदनीयती नहीं है। मैं तो भाभी की बहुत इज्ज़त करता हूॅ और उन्हें भाभी माॅ जैसा ही मानता हूॅ।"

"ई ता ससुरे तू मुह से बोल रहा है न।" हरिया ने कहा__"केहू के मन मा का है ई कउन जानथै भला, हाॅ?"
"तू जैसा है वैसा ही दूसरे को भी समझता है।" शंकर ने कहा___"इस लिए मुझे अपने लिए सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं है। ईश्वर जानता है कि मेरे अंदर क्या है?"

"मैं जानती हूॅ काका कि आपके मन में किसी के लिए कोई मैल नहीं है।" रितू ने कहा___"हरिया काका तो आपको बस छेड़ रहे हैं लेकिन मैं ये कह रही हूॅ आप भी शादी कर लीजिए और मेरे लिए एक अच्छी सी काकी ले आइये।"

"ये क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर हॅसा___"अब भला इस उमर में कौन लड़की मुझसे ब्याह करेगी? अब तो ये जीवन ऐसे ही कटेगा।"
"अरे अभी भी आप शादी कर सकते हैं काका।" रितू ने कहा___"और आपको करना ही पड़ेगा। जब आप शादी कर लेंगे तब हरिया काका आपको ये सब कह कर छेड़ेंगे नहीं।"

"हम ता ई ससुरे का समझाय समझाय के थक गयन बिटिया।" हरिया ने कहा___"पर ई ससुरा हमरी कउनव बात मानतै नाहीं है। कहैं का ता ई हमका आपन बहुतै बड़का पक्का यार मानथै पर ई बात भी सच हाय कि ई हमरी बात भी नाहीं सुनत है।"

"आप समझ नहीं रहे हैं काका।" रितू ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"शंकर काका को दरअसल बिंदिया काकी जैसी बीवी चाहिए। बात भी सही है काका अगर बिंदिया काकी जैसी बीवी शंकर काका को भी मिल जाए तो इनका जीवन और भी ज्यादा सॅवर जाए।"

"कारे ईहै बात हा का?" हरिया काका ने तिरछी नज़र से शंकर की तरफ देखा___"अउर अगर ईहै बात हा ता ससुरे ई बात तै हमका पहिले काहे ना बताए रहे? सरवा बेकार मा अब तक ते रॅडवा घूमत रहे। चल अउनव बात ना हा। हम तोहरे खातिर ऊ ससुरी बिंदिया जइसनै जोरू ढूॅढ़ब। हमरे इहाॅ अइसन मेहरारू केर कउनव कमी ना हा।"

"ये तो अच्छी बात है काका।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"आप जल्दी से वधू का इंतजाम कीजिए। उसके बाद चट मॅगनी पट ब्याह हो जाएगा। और हाॅ शंकर काका की शादी का सारा खर्चा मैं करूॅगी।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर काका एकदम से चौंक पड़ा__"भला मैं तुमसे कैसे खर्चा करवा सकता हूॅ? अरे तुमको तो मैं अपनी बेटी ही मानता हूॅ और बेटी से इस तरह अपने काम के लिए धन खर्चा करवाना अच्छी बात नहीं है। मुझे पाप लगेगा बिटिया।"

"आप भी कमाल करते हैं काका।" रितू ने कहा__"जीवन भर माॅ बाप अपने बच्चों के ऊपर अपनी पाई पाई खर्च करते रहते हैं तो क्या बच्चों का फर्ज़ नहीं बनता कि वो भी अपने माॅ बाप के ऊपर अपनी कमाई का पाई पाई खर्च कर दें? अगर आप मुझे अपनी बेटी मानते हैं तो मैं भी तो आपको अपने पिता जैसा ही मानती हूॅ। और ये मेरी इच्छा ही नहीं बल्कि खुशी की बात है कि मैं अपने शंकर काका की शादी में खूब पैसा खर्च करूॅ। मैने फैंसला कर लिया है, इस लिए अब आप इस बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे? वरना कभी बात नहीं करूॅगी आपसे।"

रितू की बातें सुन कर शंकर हैरत से देखता रह गया उसे। फिर सहसा जाने उसके अंदर कैसा भावनाओं का तूफान उठा कि उसकी ऑखों से झर झर करके ऑसू बह चले। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन पीड़ा और दुख के भाव उभर आए। ये देख कर रितू आगे बढ़ी और उसकी ऑखों से बह रहे ऑसुओं को अपने हाॅथ से पोंछा।

"ये क्या काका?" रितू ने कहा__"आप रों रहे हैं? क्या मुझसे कुछ ग़लती हो गई?"
"नहीं नहीं बिटिया।" शंकर एकदम से कह उठा___"तुमसे भला कोई ग़लती कैसे हो सकती है? तुम तो एक नेक दिल बच्ची हो बिटिया। आज वर्षों बाद इतनी खुशी महसूस हुई कि वो खुशी ऑसू बन कर इन ऑखों से छलक पड़ी। इस दुनियाॅ में इससे पहले बहुत दुख दर्द सहे थे मैने। मगर जबसे यहाॅ आया हूॅ तो ऐसा लगा जैसे मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरा भी कोई अपना है। जिसे मेरी फिक्र है।"

"मैं तो शुरू से ही आपको अपना ही मानती आ रही हूॅ काका।" रितू ने कहा___"मगर आप आज भी मुझे अपना नहीं मानते हैं। अगर मानते तो मेरे और हरिया काका के पूछने पर अपने बारे में वो सब कुछ बताते जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते हैं।"

"उस सबको बताने का कोई मतलब नहीं है बिटिया?" शंकर ने कहा___"अतीत किसी का भी हो वो जब भी याद आता है तो हमें दुख और उदासियाॅ ही देता है। मैं उस सबको याद नहीं करना चाहता। क्योंकि बड़ी मुश्किल से मैने खुद को इस हद तक सम्हाला है।"

"अपने अंदर के दर्द को बयाॅ कर देने से मन का बोझ काफी हल्का हो जाता है काका।" रितू ने कहा___"ये तो अच्छी बात है कि आप अपने उस दर्द से उबर कर आज सम्हल चुके हैं। लेकिन ये भी सच है कि अपने अंदर इतने सारे दुख दर्द को दबा के रखना भी अच्छी बात नहीं है। ऐसे में वो दर्द नासूर बन जाता है और हमें एक पल भी सुकून से जीने नहीं देता। इस लिए आप अपने के उस दुख दर्द को बाहर निकाल दीजिए और फिर नये सिरे से अपने जीवन की नई शुरूआत कीजिए।"

"रितू बिटिया बहतै भले की बात करथै शंकरवा।" हरिया ने कहा___"जो बीत गया हा उसे ता भूला दे मा ही भलाई हा। हम सरवा तोसे कब से रहा हूॅ के तू अपना ब्याह करके जीवन मा आगे बढ़। पर तू ससुरा हमरी सुनतै नाहीं है?"
"अब तो बिटिया ने अपना फैंसला सुना ही दिया है हरिया।" शंकर ने कहा___"और जिस अपनेपन से सुनाया है उसे अगर मैं ना मानूॅ तो फिर धिक्कार ही होगा मुझ पर। इस लिए अब मैं ज़रूर ब्याह करूॅगा यार।"

"हाॅ लेकिन उससे पहले।" रितू ने कहा___"मैं ये भी जानना चाहती हूॅ काका कि आपके साथ ऐसा क्या हो गया था जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते और ना ही अपने घर वालों से कभी कोई मतलब रखते हैं? आप हमें वो सब कुछ अभी बताएॅगे काका।"

"ठीक है बिटिया।" शंकर ने गहरी साॅस ली___"तुम अगर इतना ही ज़ोर दे रही हो तो सब कुछ बताता हूॅ तुम्हें। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाॅव महोबा का निवासी हूॅ। मैं छोटी जाति का हूॅ। मेरा बाप बल्ली रावत एक मिस्त्री था। जो मकानों में ईंटे की जोड़ाई का काम करता था। हम तीन भाई और दो बहन थे। मेरी माॅ बहुत शान्त स्वभाव की थी। अपने सभी बच्चों को वह बहुत प्यार करती थी। भाई बहनों में मैं सबसे बड़ा था। मैं माॅ पर गया था इस लिए मेरा स्वभाव भी सबके प्रति प्यार भरा ही था। उस वक्त मैं पच्चीस साल का हो गया था और अपने बापू के साथ रह कर मिस्त्रीगीरी पूरी तरह सीख चुका था। इस लिए जहाॅ भी काम मिलता मैं बापू के साथ ही रह कर उनके काम में हाॅथ बटाता था। मेरे सहयोग का असर ये हुआ की घर के आर्थिक हालात पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हो गए। हमारी जात बिरादरी के कुछ लोग मेरे बापू से अक्सर मेरा ब्याह कर देने को कहते रहते थे। पर पता नहीं बापू उन सबकी बातों को क्यों अनसुना कर देता था? इधर पास के ही एक गाॅव में हमारी ही जात बिरादरी में एक लड़की थी चंदा। जिसे मैं काफी पसंद करता था। वो भी मुझे बहुत पसंद करती थी। हमें जब भी समय मिलता हम एक दूसरे से ज़रूर मिल लिया करते थे। कहते हैं कि इश्क़ मुश्क़ कभी छुपता नहीं इस लिए इस बात का पता मेरे बापू को भी हो गया था। जिससे बापू मुझे इसके लिए डाॅट भी देता था कभी कभी। ख़ैर सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि एक दिन हर दिन की भाॅति मैं बापू के साथ काम पर गया हुआ था। गाॅव में ही काम चालू था तो दोपहर के समय सहसा मेरी बहन रीना भागते हुए आई और बताया कि अम्मा मर गई है। उसकी बात सुन कर हम दोनो बाप बेटा भौचक्के से रह गए। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि अम्मा मर गई है। रीना ने बताया कि अम्मा नहाने के लिए बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ से पानी खींच रही थी। तभी जाने कैसे उसका पाॅव फिसल गया और वो कुएॅ में गिर गई। अम्मा को तैरना नहीं आता था इस लिए वो पानी में डूब गई और मर गई। रीना ने बताया कि जब काफी देर तक अम्मा नहा कर न आई तो वह घर के पिछवाड़े पर बने कुएॅ में ये देखने गई कि अम्मा अब तक आई क्यों नहीं? लेकिन कुएॅ में अम्मा को न पा कर रीना कुएॅ के आस पास देखने लगी। फिर सहसा उसकी नज़र कुएॅ के अंदर पड़ी तो अम्मा को पानी की सतह पर औधे मुॅह लेटी पाया। रीना को समझते देर न लगी कि अम्मा मर गई है, बस ये कहानी थी अम्मा के मर जाने की। रीना की सारी बातें सुन कर हम दोनो बाप बेटा काम छोंड़ कर घर आ गए। गाॅव के कुछ लोगों की मदद से मेरे भाईयों ने अम्मा को कुएॅ से निकाल लिया था।

अम्मा के मर जाने का दुख सबसे ज्यादा मुझे था। लेकिन अब हो भी क्या सकता था। अम्मा का क्रिया कर्म किया गया और कुछ दिन में फिर से हमारी दिन चर्या पहले जैसी चलने लगी। अब घर में रोटी पानी मेरी दोनो बहनें ही बनाती थी। मेरे सभी भाई बहन बड़े हो गए थे और जवान भी। अम्मा के मर जाने का दुख मेरे अंदर बना ही रहा पर मैं किसी के सामने उस दुख को दिखाता नहीं था। कुछ दिन बाद एक बदलाव ये हुआ कि बापू अक्सर रात को देसी ठर्रा(शराब) लगा कर घर आने लगा और घर में सबको अनाप शनाप बकने लगा और गालियाॅ भी देने लगा। हम सब बापू के दारू पीने से परेशान से होने लगे। इधर एक बदलाव ये भी हुआ कि बापू मुझे काम पर लगा कर खुद चार चार घंटे के लिए गायब हो जाता। जबकि मैं सारा दिन काम में लगा रहता और फिर दिन ढले ही घर वापस आता। ऐसे ही दिन गुज़रते रहे।

ऐसे ही एक दिन मैं शाम को घर पहुॅचा। हाथ मुह धोकर खाया पिया और फिर घर के बाहर मैदान में चारपाई लगा कर उसमें लेट गया। दिन भर के काम से मैं काफी थक जाता था इस लिए लेटते ही मुझे नींद आ गई। अभी मुझे सोये हुए कुछ ही समय गुज़रा था कि सहसा किसी ने मेरी पीठ पर ज़ोर की लात मारी। जिससे मैं चारपाई के नीचें गिर गया। अचानक हुए इस हमले से पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु फिर तुरंत ही मेरे अंदर गुस्से का उबाल आ गया। मेरी नज़र मुझे लात मारने वाले पर पड़ी। देखा तो चारपाई के उस पार नशे में झूमता बापू खड़ा था।

"बापू तुमने मुझे मारा क्यों?" मैं लगभर नाराज़गी भरे भाव से पूछा___"और ये क्या तुम हर रोज़ देसी दारू चढ़ा के आ जाते हो। ये अच्छी बात नहीं है बापू।"
"बकवास ना कर समझा।" बापू नशे में झूमता हुआ गरजा___"मैं कुछ भी करू तुझे इससे क्या मतलब? मैं अपने पैसों की दारू पीता हूॅ तेरे बाप की नहीं समझा।"

"मेरे बाप तो तुम ही हो बापू।" मैने कहा___"मैं ये नहीं कहता कि तुम दारू न पियों मगर रोज रोज पीना अच्छी बात नहीं है। इससे तुम्हारी तबियत ख़राब हो जाएगी।"
"अरे वो सब छोंड़।" बापू ने हाॅथ को ऊपर से नीचे की तरफ झटकते हुए कहा___"ये बता कि तू अपनी नई नवेली अम्मा से मिला कि नहीं?"

"नई नवेली अम्मा??" मैं एकदम से चकरा गया__"ये तुम क्या बोल रहे हो बापू?"
"ठीक ही तो बोल रहा हूॅ बुड़बक।" बापू लड़खड़ा सा गया___"अरे आज मैं तुम सबके लिए एक नई अम्मा ले आया हूॅ। मैं जानता हूॅ कि अपनी अम्मा के मर जाने से तुम सब बहुत दुखी थे इस लिए मैने फिर से ब्याह कर लिया और तुम सबके लिए एक अम्मा ले आया।"

मैं बापू की बात सुन कर उछल पड़ा था। हैरत से ऑखें फाड़े नशे में झूमते बापू को देखे जा रहा था। किन्तु तभी मुझे एहसास हुआ कि लगता है बापू को दारू ज्यादा चढ़ गई है इस लिए अनाप शनाप बके जा रहा है।

"अंदर जाओ बापू।" फिर मैने कहा___"तुम्हें दारू आज ज्यादा चढ़ गई है। इस लिए अंदर जाओ और जो थोड़ा बहुत खाना खाना हो खाओ और आराम से सो जाओ।"
"तू साले मुझे बता रहा है कि मुझे चढ़ गई है?" बापू एकदम से चीख पड़ा था, बोला___"अरे इतनी सी बार बराबर दारू मुझे नहीं चढ़ती मादरचोद। मैं जो कह रहा हूॅ उसे मानता क्यों नहीं? चल आ मेरे साथ तुझे दिखाता हूॅ कि अंदर तेरी नई अम्मा है कि नहीं।"

बापू मेरा हाॅथ पकड़ कर अंदर की तरफ खींच कर ले जाने लगा। मैं चाहता तो अपना हाॅथ एक झटके में उससे छुड़ा लेता मगर मैं कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था इस लिए उसके खींचने पर उसके पीछे पीछे अंदर की तरफ खिंचता चला गया। अंदर बरामदे में मेरे सभी भाई बहन बैठे थे। घर कच्चे मकान का था। बाहर से आने पर पहले बड़ा सा बरामदा पड़ता था, उसके बाद दो कमरे थे। जिसमे एक कमरे में सामान वगैरा रखा रहता था। जबकि दूसरा कमरा बापू का था। कमरे में जो लकड़ी का दरवाजा था उसमें अंदर की तरफ कुण्डी नहीं थी।

बापू मुझे खींचते हुए उसी कमरे की तरफ बढ़ा और झटके से कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया। जबकि मैंने तुरंत ही अपना हाॅथ छुड़ा लिया था। अंदर दाखिल होते ही बापू ऊॅची आवाज़ में एक तरफ उॅगली का इशारा करते हुए बोला___"ये देख शंकर, ये है तेरी नई अम्मा। अरे देख न बेटीचोद तुझे यकीन नहीं हो रहा था न। देख ये बैठी है तेरी अम्मा चारपाई पर।"

मैंने अंदर की तरफ सिर करके चारपाई की तरफ देखा तो चौंक पड़ा। सच में अंदर रखी चारपाई पर कोई औरत बैठी थी। नई साड़ी में बड़ा सा घूॅघट किये थी वह। इस लिए मैं उसका चेहरा न देख सका। पर इतना काफी था मुझे हैरत में डालने के लिए। मैं उस औरत को देखने के बाद आश्चर्य से बापू की तरफ देखा। मुझे अपनी तरफ देखता देख बापू बड़े अजीब भाव से मुस्कुराया और फिर कमरे से बाहर बरामदे में आ गया।

"क्यों बापू?" मैने भारी आवाज़ में कहा__"क्यों किया ऐसा? हम कोई बच्चे तो नहीं थे जो हम अम्मा के बिरा जी नहीं सकते थे। तुम तो देख ही रहे हो बापू कि तुम्हारे बच्चे खुद अब ब्याह करने लायक हो गए हैं फिर खुद ब्याह करने की क्या ज़रूरत थी तुम्हें?"

"ज़रूरत थी बेटवा।" बापू ने कहा___"बल्कि बहुत ज़रूरत थी मुझे। तेरी अम्मा तो मर गई मगर मेरी जज्ञस्मानी ज़रूरतों को अब कौन पूरी करता? वैसे तेरी अम्मा के रहते हुए भी कुछ नहीं होता था। अच्छा हुआ साली मर गई। मुझ पर और मेरे लौड़े पर ज़रा सा भी तरस नहीं आता था उसे। जब भी उससे कहता कि आज बहुत दिल कर रहा है एक बार दे दो तो साली ऐसी बिदकती थी जैसे दुधारू गाय हो।"

"ये तुम क्या बकवास कर रहे हो बापू?" मैने पूरी शक्ति से चीखते हुए कहा___"शर्म आनी चाहिए तुम्हें अपने बेटे के सामने उसकी अम्मा के लिए ऐसा बोलने पर।"
"इसमें शर्म कैसी बछुवा?" बापू ढिठाई से मुस्कुराया___"जो सच बात है वही तो बोल रहा हूॅ मैं।"

"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बेहूदा बातें।" मैने गुस्से से कहा और पलट कर बाहर की तरफ अपनी चारपाई के पास आ गया। मेरा दिमाग़ बहुत ज्यादा ख़राब हो गया था। मगर ये भी सच था कि अब हो भी क्या सकता था?

मैं अपने अंदर हज़ारों तरह की बातें लिए चुपचाप चारपाई पर लेट गया। मुझे बापू पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मगर मैं कुछ कर नहीं सकता था। इस लिए अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से काबू किये हुए ऑखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा था। मगर कम्बख्त ऑखों में नींद का दूर दूर तक कोई आभास भी नहीं हो रहा था।

अभी मुझे लेटे हुए कुछ ही देर हुई थी कि तभी अंदर से किसी औरत की चीख सुनाई दी। मेरी ऑखें खुल गईं मगर मैं उठा नहीं। मैं समझ चुका था कि बापू अपनी नई नवेली जोरू के पास ही होगा और उसके साथ वही कर रहा होगा जो हर शादी शुदा मर्द औरत करते हैं शादी के बाद। इस लिए मैं चुपोआप लेटा रहा। मैं इस बात से हैरान ज़रूर हुआ कि बापू को ज़रा भी शर्म नहीं है कि घर में उसके पाॅ पाॅच जवान बच्चे मौजूद हैं और वो कमरे से क्या सुना रहा है उन्हें।

मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से मेरे कानों में औरत की चीख़ सुनाई दी साथ ही बापू की गालियाॅ भी। किन्तु इस बार मैं चीख़ सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा था। क्योंकि चीख़ में शामिल मेरा नाम था। उस आवाज़ को मैं लाखों में पहचान सकता था। ये चंदा की चीख़ थी। जी हाॅ, ये चंदा ही थी। मगर मैं चकित इस बात पर था कि वो यहाॅ कैसे? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से ज़ोरदार चीख़ मेरे कानों पर पड़ी। इस बार मुझे स्पष्ट सुनाई दिया और मुझे बिलकुल भी संदेह न हुआ। ये यकीनन चंदा ही थी, मेरी चंदा। ये जान कर कि वो चीख़ मेरी चंदा की ही है मैं एकदम से पागल सा हो गया और चारपाई से उतर कर बिजली की सी तेज़ी से अंदर की तरफ भागा। पलक झपकते ही मैं बरामदे में पहुॅच गया।

मेरी नज़र कमरे के दरवाजे के पास खड़े मेरे मॅझले भाई जगन पर पड़ी। वो अधखुले दरवाजे से कमरे के अंदर की तरफ देख रहा था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। मुझे लगा कि वो अंदर वो सब देख रहा है जो कदाचित मेरा बापू मेरी चंदा के साथ करने की कोशिश कर रहा होगा। मैं भला ये कैसे बर्दास्त कर सकता था? मैने देखा कि बरामदे के दाहिनी तरफ मेरी दोनो बहने यानी रीना तथा मीना ज़मीन पर ही एक पुराना चद्दर बिछा कर लेटी हुई थी और उनके बगल से ही मेरा छोटा भाई मदन लेटा हुआ था। बरामदे के बाईं तरफ कोने में रसोई थी।

जगन को इस तरह चोरी छुपे अंदर की तरफ देखते हुए देख कर मैं तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा और पीछे से ही उसकी शर्ट का कालर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और फिर उसे पलटा कर एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। उसको इस सबकी उम्मींद हर्गिज़ भी न थी। इधर मैं इतने पर ही न रुका था, बल्कि उसको पकड़ कर पूरी शक्ति से एक तरफ उछाल दिया। वो लड़खड़ाता हुआ दीवार से टकराया और नीचे गिर गया। तभी मेरे कानों में चंदा की चीख़ फिर से पड़ी। मेरा ध्यान उस तरफ गया तो मैं जगन की तरफ न जा कर पलटा और तेज़ी से कमरे के अंदर की तरफ दौड़ गया।

कमरे के अंदर का नज़ारा देख कर मैं गुस्से से पागल हो गया। मेरा बापू चंदा के ऊपर चढ़ा हुआ उसका ब्लाऊज फाड़ रहा था। नशे की हालत में उसे ज़रा भी होश नहीं था कि वो क्या कर रहा है? बापू के नीचे दबी चंदा बुरी तरह छटपटाए जा रही थी और चीखे जा रही थी। ये सब देख कर मैं उस तरफ बिजली की सी तेज़ी से लपका और फिर मैने बापू को पीछे से पकड़ कर पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा और फिर कमरे के फर्श पर लगभग फेंक दिया। बापू नशे में लड़खड़ाता ज़मीन पर लुढ़कता चला गया था।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी चंदा को इस तरह हाॅथ लगाने की?" मैने गुस्से से चीखते हुए झुका और बापू को दोनो हाॅथों से पकड़ कर उठा लिया___"तू इतना गिर गया है कि तुझे ये भी होश नहीं आया कि तू किसके साथ ये नीचता कर रहा है?"

"अबे छोंड़ मादरचोद।" बापू नशे में ज़ोर से चिल्लाया__"मुझे अपनी नई नवेली मेहरिया के साथ सुहागरात मना लेने दे। साला कैसा बेटा है तू कि अपने बाप को उसकी मेहरारू के पास भी नहीं जाने देता?"
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11-24-2019, 01:00 PM, (This post was last modified: 11-24-2019, 01:01 PM by sexstories.)
RE: non veg kahani एक नया संसार
"ज़ुबान को लगाम दे बापू।" मैने बापू के कालर को पकड़ कर उसे झकझोरते हुए कहा___"वरना यहीं पर ज़िंदा गाड़ दूॅगा तुझे। तुझे पता था न कि मैं चंदा को पसंद करता हूॅ और उसी से शादी करना चाहता हूॅ इसके बावजूद तूने मेरी चंदा से ब्याह कर लिया। ऐसा क्यों किया बापू? चंदा तो तेरी अपनी बेटी के समान ही थी फिर क्यों उससे ब्याह किया तूने? तुझे अपने इस बेटे की खुशियों का ज़रा भी ख़याल नहीं आया?"

"बकवास ना कर हरामखोर।" बापू मुझसे छूटने की कोशिश करते हुए चीखा___"वो तेरी अम्मा है समझे। बार बार मेरी चंदा मेरी चंदा की रट क्यों लगा रहा है तू?"
"क्योंकि चंदा मेरी ही थी बापू।" मैने चीखा___"मैं उससे प्रेम करता था और करता रहूॅगा। तू भी तो जानता था ये सब। फिर क्यों उससे ब्याह रचाया तूने? क्यों अपने बेटे का गर बसने से पहले ही उजाड़ दिया तूने? अरे तुझे अपना ब्याह ही करना था तो किसी दूसरी लड़की से कर लेता बापू। चंदा से ब्याह करके तूने मेरी खुशियों का गला क्यों घोंट दिया?"

"अरे मुझे कुछ नहीं पता था इस बारे में।" बापू ने कहा__"और फिर अगर तू चंदा को पसंद ही करता था और उससे ब्याह ही करना चाहता था तो तुझे बताना चाहिये था न। पर तूने तो कभी बताया ही नहीं। अब अगर मैने उससे ब्याह कर लिया तो इसमे मेरी क्या ग़लती है?"

"सारी ग़लती है तेरी।" मैं पूरी शक्ति से चीखा___"तूने चंदा से उसकी मर्ज़ी के बिना ब्याह किया है। ये बात मैं अच्छी तरह जानता हूॅ। तूने चंदा के बाप को पैसों का लालच दिया होगा। तभी चंदा के बाप ने अपनी बेटी का ब्याह तुझसे किया होगा। उस कसाई को भी अपनी बेटी की खुशियों से कोई लेना देना नहीं था। तभी तो ऑख बंद करके उसने एक बूढ़े से अपनी कम उमर बेटी का ब्याह कर दिया। मुझे पता है कि चंदा इस ब्याह हे खुश नहीं है। अगर खुश होती तो वो इस तरह चीखती नहीं।"

"अरे शुरू शरु में हर औरत थोड़ा बहुत चीखती है उर घबराती है।" बापू ने कहा___"मगर जब एक बार लौड़ा अंदर गया तो सारी घबराहट और सारा चीखना बंद हो जाता है। वही तो करने जा रहा था मैं। मगर ससुरी ज्यादा ही उछल रही थी। लेकिन कोई बात नहीं, सुहागरात तो मैं मना के ही रहूॅगा।"

मैं बापू की इस बात से बुरी तरह तिलमिला गया। मेरे अंदर गुस्से की ज्वाला धधक उठी। मैं बापू को खींच कर कमरे से बाहर लाया और बरामदे में लाकर ज़ोर का झटका दे कर ज़मीन पर पटक दिया। बापू के मुख से दर्द में डूबी चीख निकल गई। वो मुझे गंदी गंदी गालियाॅ बकने लगा। मेरा गुस्सा और बढ़ गया। मैंने उसे उठा कर दीवार से सटा दिया और उसकी गर्दन पर अपने दोनों हाॅथ ताकत से जमा दिये। नतीजा ये हुआ कि बापू बुरी तरह छटपटाने लगा। उसकी ऑखें बाहर को निकलने के लिए आतुर हो उठीं। मुझे गुस्से में अब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मैं मजबूती से बापू का गला दबाए जा रहा। तभी पीछे से किसी ने मेरे सिर पर किसी ठोस चीज़ का वार किया। मेरे हलक से चीख़ निकल गई। ऑखों के सामने पहले तो रंग बिरंगे तारे नाचे उसके बाद ऑखों के सामने अॅधेरा सा छाता चला गया। मैं दोनो हाॅथों से अपना सिर थामे लहरा कर वही बरामदे की ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़ा। उसके बाद मुझे याद नहीं कि आगे क्या हुआ?

जब मुझे होश आया और मेरी ऑखें खुलीं तो एकाएक ही तेज़ प्रकाश से मेरी ऑखें चुॅधिया गईं। मैने धीरे धीरे करके अपनी ऑखें खोलीं तो ऑखों के सामने खुला आसमान नज़र आया। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया इसके बाद जब मैने ग़ौर से हर चीज़ को देखा तो थोड़ा थोड़ा समझ आया। मैने झटके से उठने की कोशिश की तो मेरे मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। सिर के पिछले भाग में तेज़ पीड़ा हुई थी। मेरा एक हाॅथ स्वतः ही उस चोंट वाले हिस्से पर चला गया। मुझे मेरे हाॅथ में कुछ चिपचिपा सा महसूस हुआ। मैं धीरे धीरे करके उठा और वहीं पर बैठ गया।

बैठ कर मैने इधर उधर देखा तो पता चला कि मैं किसी खेत के बीच पर बैठा हुआ हूॅ। एक तरफ लगभग दो सौ गज की दूरी पर गाॅव की आबादी दिख रही थी। किनारे पर बने अपने घर को पहचानने में मुझ ज़रा भी देर न लगी। इसका मतलब मैं अपने घर के पिछवाड़े ही दो सौ गज की दूरी पर था। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया तो मेरी ऑखों के सामने पिछली रात की सारी घटना किसी चलचित्र की भाॅति घूमने लगी।

सब कुछ याद आते ही मुझे सबसे पहले चंदा का ख़याल आया। मेरे मन में विचार उठा कि चंदा कैसी होगी अब? पिछली रात बापू ने क्या किया होगा उसके साथ? कहीं बापू ने चंदा की इज्ज़त तो तार तार तो नहीं कर दिया? हे भगवान, अब क्या होगा? मेरी चंदा लुट गई होगी और मैं अपनी चंदा की सुरक्षा भी न कर सका। ये सब विचार मन में आते ही मैं एकदम से दुखी हो गया और मेरी ऑखों से ऑसू बह चले। मुझे चंदा की बेहद फिक्र होने लगी। इस लिए अपने दर्द की परवाह किये बिना मैं उठा और अपने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ चला। मैने महसूस किया कि ये सुबह का वक्त था। आसमान में सूर्य का प्रकाश अभी ज्यादा तेज़ न हुआ था।

मैं अपने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था। मेरे मन में बस एक ही बात चल रही थी कि चंदा कैसी होगी अब? मैं भगवान से प्रार्थना भी करता जा रहा था कि चंदा को कुछ न हुआ हो। कुछ ही समय में मैं घर के पिछवाड़े की तरफ पहुॅच गया। एक तरफ वही कुआॅ था जिसमें गिर कर मेरी अम्मा मर गई थी। कुएॅ वाली जगह से कुछ ही दूरी के फाॅसले से चलते हुए मैं घर के पिछवाड़े पर आ गया। पीछे की दीवार से चलते हुए मैं उस हिस्से पर आया जहाॅ पर घर की दीवार खत्म हो जाती थी और फिर लकड़ी की बाउंड्री चारो तरफ से बनाई गई थी। मैं लकड़ी की उस बाउंड्री के शुरूआती हिस्से पर आया ही था कि मेरे कानों में मेरे मॅझले भाई जगन की आवाज़ पड़ी तो मैं रुक गया।

"रीना ने सही वक्त पर शंकर के सिर पर लट्ठ मारी थी बापू।" जगन की आवाज़___"वरना तुम्हारा तो कल्याण ही कर दिया था शंकर ने।"
"हाॅ ये तो सही कहा तूने।" बापू की आवाज़___"सब कुछ वैसा ही करना था जैसा कि हमने तरकीब बनाई थी। मगर तूने अपना काम सही से नहीं किया जगन। वरना शंकर को इतना गुस्सा नहीं आता और ना ही तुझे उससे मार खानी पड़ती।"

"ये दरवाजे से तुम्हारी और चंदा की फिल्म देख रहा था बापू।" मदन कह उठा___"जबकि मैने और रीना ने इसे मना भी किया था कि तरकीब के अनुसार हमें चुपचाप यहीं पर लेटे रहना है। मगर ये नहीं माना और अंदर की फिल्म देखने लगा। उधर जैसे ही चंदा की चीख़ शंकर के कानों में वैसी ही वो दौड़ते हुए यहाॅ आ गया और दरवाजे पर जगन को इस तरह अंदर की तरफ झाॅकते देख उसे क्रोध आ गया। बस फिर तो इसको पिटना ही था बापू।"

"हाॅथ तो मैं भी उठा सकता मदन।" जगन ने तीखे भाव से कहा___"मगर मैने सोचा कि उससे काम न बिगड़ जाए। इस लिए मैने उस कमीने शंकर पर हाॅथ नहीं उठाया। वरना गुस्सा तो मुझे भी भयंकर आ गया था उस पर।"
"अच्छा हुआ कि तुमने हाॅथ नहीं उठाया उस पर।" रीना ने कहा___"वरना कुछ और ही होने लगता और हमारा खेल बिगड़ जाता।"

"ये सब तो ठीक है बापू।" मीना की आवाज़___"मगर मुझे अब तक ये समझ नहीं आया कि ये सब चक्कर क्या है? मतलब ये कि अम्मा के रहने पर भी और उसके मरने के बाद भी तुम्हारी जिस्मानी ज़रूरत तो हम दोनो बहनें मिल कर पूरी कर ही देती थीं। फिर तुम्हें चंदा से ब्याह करने की क्या ज़रूरत पड़ गई? क्या इस लिए कि अब तुम्हारा हमसे दिल भर गया है? दूसरी बात शंकर भाई को इसमें लपेटने का क्या मतलब है?"

"ये सारा चक्कर तो इस जगन की वजह से ही चलाना पड़ा मेरी राॅड बेटी।" बापू की आवाज़___"असल बात ये थी कि इसे भी पता चल गया था कि शंकर चंदा से प्रेम करता है और उससे ब्याह करना चाहता है। अब भला जगन ये कैसे बरदास्त कर लेता कि उसका बड़ा भाई जिसे वो बचपन से ही पसंद नहीं करता है वो किसी वजह से खुश हो जाए? इस लिए शंकर और चंदा के विषय में पता चलते ही ये मेरे पास आया और मुझसे बोला कि शंकर का ब्याह चंदा से किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए। इसने एक दो बार चंदा को देखा था इस वजह से ये भी उसे पसंद करने लगा था। मगर इसे ये बात अच्छी तरह पता थी कि चंदा इसके प्रेम को स्वीकार नहीं करेगी। इस लिए इसने सोचा कि अगर चंदा इसकी नहीं तो शंकर की भी नहीं होगी। मैने इससे पूछा कि फिर ये चाहता क्या है तो इसने कहा कि कुछ ऐसा करो बापू कि चंदा इस घर में हमेशा के लिए आ जाए और हम सब मिल कर जीवन भर उसे भोगें। बात क्योंकि सबके भले की थी इस लिए मुझे भी इसकी बात पसंद आई। मगर सवाल ये था कि ऐसा होगा कैसे? क्योंकि चंदा तो शंकर से प्रेम करती थी और शंकर उससे ब्याह भी करना चाहता था। मैं भले ही उसे ब्याह से इंकार कर देता मगर उसकी वो सती सावित्री अम्मा उसकी खुशी ही देखती और नतीजा ये होता कि वो शंकर का ब्याह उस चंदा से ज़रूर करा देती। जबकि ऐसा हम चाहते ही नहीं थे। इस लिए हमने सोचा कि सबसे पहले हमें अपने रास्ते से शंकर की उस ससुरी अम्मा को ही हटाना पड़ेगा। वैसे भी वो साली किसी काम की तो थी नहीं। खुद तो मुझे कभी देती नहीं थी ऊपर से उसके डर से हम आपस में भी मज़ा नहीं कर पाते थे। इस लिए उसे अपने रास्ते से हटाने का सोच लिया हमने। ये बात तो तुम सबको पता ही है कि कैसे हम लोगों ने मिल शंकर की अम्मा को अपने रास्ते से हटाया था। वो शंकर साला आज भी यही समजता है कि उसके अम्मा की मौत महज एक हादसा था जो भगवान के विधान के हिसाब से हो गया था। मगर उसे क्या पता कि उसकी अम्मा को हमने कैसे सोच समझ कर अपने रास्ते से हटाया है? हर दिन की तरह उस दिन भी मैं शंकर को लेकर काम पर चला गया था और तुम सबको समझा दिया था कि कब क्या करना है। बस तुम लगों ने वैसा ही किया था। यानी कि जैसे ही शंकर की अम्मा नहाने के लिए कुएॅ में गई तो जगन और मदन भी छुप कर उस तरफ चल दिये। शंकर की अम्मा ने जब बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ में डाला और पानी से भरी बाल्टी को खींचना शुरू किया तो तभी जगन और मदन दोनो ने मिल कर अम्मा को पीछे से धक्का दे दिया। जिससे अम्मा रस्सी बाल्टी सहित कुएॅ में जा गिरी। उसको तैरना तो आता नहीं था इस लिए थोड़ी ही देर में साली पानी में डूब गई। कुछ घंटे बाद जब वो वापस पानी की सतह पर आ गई तो जगन और मदन दोनो ही समझ गए कि अम्मा का राम नाम सत्य हो चुका है। इस लिए तुरंत ही अंदर आकर रीना को कह दिया कि अब वो आगे का काम करे। रीना भागती हुई हमारे पास आई और अम्मा के मरने की सूचना हमें दी। बस उसके बाद का तो सबको पता ही है कि क्या कैसे हुआ?"

"अम्मा के मरने का तो पता है बापू।" मीना ने कहा___"मैं चंदा वाले चक्कर का पूछ रही हूॅ। उसके बारे में बताओ।"
"अम्मा के मर जाने से हमारा रास्ता साफ हो गया था।" बापू ने कहा___"मगर शंकर बेचारा ज़रूर अपनी अम्मा के मर जाने से ग़मज़दा हो गया था। जब कुछ दिन उसकी अम्मा को मरे हो गए तो हमने आगे का काम शुरू किया। मैं हर दिन शंकर को काम पर लगा कर चार चार घंटे के लिए गायब हो जाता और सीधा चंदा के गाॅव उसके घर पहुॅच जाता। चंदा का बाप मंगा साकेत थोड़ा लालची किस्म का था और गॅजेड़ी भी था। काम धाम करके जो भी कमाता उसे वह गाॅजा पीकर और देसी चढ़ा कर उड़ा देता था। मैने उसकी इसी आदत का फायदा उठाया और रोज़ उसे देसी दारू पिलाता और खुद भी पीता। कुछ ही दिन में मेरी उससे खूब बनने लगी। एक तरह से मैं उसका पक्का यार बन गया था। ख़ैर, इसी तरह कुछ दिन गुज़र गए। जब मुझे लगने लगा कि अब मुख्य बात आगे बढ़ाने से नुकसान नहीं है तो मैने उससे मुद्दे की बात छेंड़ दी। सबसे पहले तो मैने बस उसके मन और विचार का ही पता लिया। चंदा के ब्याह के बारे में पूछा उससे तो कहने लगा कि उसे चंदा के ब्याह की ही चिंता है। मगर आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब होने की वजह से वो चंदा का ब्याह कर नहीं पा रहा है। मैंने उसे एक सुझाव दिया कि किसी ऐसे शख्स से वह चंदा का ब्याह कर दे जो उमर में चंदा से थोड़ा बहुत बड़ा हो। इससे उसे ज्यादा दहेज भी नहीं देना पड़ेगा। मेरी बात उसे जॅच गई। आख़िर उसे अपने हालात का तो पता ही था इस लिए बेबसी मे ही सही किन्तु उसे इस बारे में सोचना ही पड़ा। उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कौन ब्यक्ति है जो चंदा से उमर में थोड़ा बहुत बड़ा हो और उसे दहेज न देना पड़े तो मैने यूॅ ही मज़ाक में उससे कह दिया कि मेरे साथ ही कर दे अपनी चंदा का ब्याह। मैं दहेज में उससे कुछ नहीं मागूॅगा बल्कि उल्टा उसे ही थोड़ा बहुत रुपया पैसा दे दूॅगा। मैने ये बात उससे बस उसका मन देखने के उद्देष्य से कही थी वो भी हॅसते हुए। वो मेरी ये बात सुन कर हैरान तो हुआ मगर फिर बोला कि यार अगर सच में तुम मेरी चंद से ब्याह कर लो तो मुझे कोई ऐतराज़ न होगा। हाॅ उमर ज़रूर तुम्हारी थोड़ी क्या बहुत ज्यादा है मगर कोई बात नहीं। लड़के बच्चे तो पहले से ही हैं तुम्हारे तो बच्चे के लिए कोई झंझट ही नहीं रहेगी। कहने का मतलब ये कि मज़ाक में कही हुई मेरी बात चल गई। बस फिर क्या था? मैने ज़रा भी देर नहीं की और फटाफट चंदा से ब्याह कर लिया मैने। इस ब्याह में मैने चंदा के बाप को पूरे पचास हज़ार रुपये दिये थे। कुछ ब्याह के खर्च के लिए और कुछ खुशी से। इतने सारे पैसे एक साथ पाकर चंदा का बाप भी खुश हो गया था। इस ब्याह में कोई ताम झाम करने का मैने पहले ही मना कर दिया था। इस लिए किसी को ज्यादा कुछ पता भी नहीं चला। उस दिन भी मैं चंदा के बाप को देसी दारू पिलाकर और पीकर आया था जिस दिन मैने चंदा से ब्याह रचा कर उसे घर लाया था। मुझे पता था कि शंकर को जब ये सब पता चलेगा तो वो पागल सा हो जाएगा। मगर कुछ कर नहीं पाएगा। क्योंकि सबसे बड़ी सच्चाई तो यही बन जाएगी न कि चंदा अब उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि अम्मा है। अगर उसमें ज़रा सी भी ग़ैरत होगी तो वो खुद ही इस गर की छोंड़ कर कहीं चला जाएगा या फिर जीवन भर अपनी चंदा को अम्मा के रूप में देख कर अंदर ही अंदर तड़पता रहेगा। जबकि हम सब हर दिन हर रात उसकी चंदा का भोग लगाएॅगे।"

बाहर दीवार की ओट में खड़ा मैं बापू की ये सब बातें सुन रहा था। मेरा चेहरा ऑसुओं से तर था। अपनी जगह पर मैं इस तरह खड़ा रह गया था जैसे किसी ऋषी ने मुझे पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया हो। इतना बड़ा छल, इतना बड़ा अपराध किया था इन लोगों ने मिल कर जिसकी कोई सीमा नहीं थी। एक बाप के अपनी ही बेटी के साथ नाजायज़ संबंध थे और मेरे दोनो भाइयों के अपनी बहनों के साथ। ये एक ऐसी सच्चाई थी जिसे मैं सब कुछ सुन लेने के बावजूद हजम नहीं कर पा रहा था। मेरे अंदर जज़्बातों का भयंकर तूफान चालू था। ऐसा लग रहा था जैसे सारी कायनात को एक झटके में शोलों के हवाले कर दूॅ। मगर ऐसा करना मुझसे संभव न था। जबकि उधर,,,,

"ये सब छोंड़ो बापू।" तभी जगन की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी___"अब तो जो होना था वो तो हो ही गया। हमने कल रात जी भर के चंदा के मज़े लिए। कसम से बापू बड़ा ही कड़क माल थी चंदा। साली ने ग़जब का मज़ा दिया।"
"मज़ा तो हमने ज़बरदस्ती लिया भाई।" मदन ने कहा___"वो तो हमें हाॅथ भी नहीं लगाने दे रही थी। बार बार हमसे रहम की भीख माॅग रही थी और अपनी इज्ज़त की दुहाई दे रही थी। मगर हमने तो मज़ा करना था सो किसी तरह कर ही लिया। बाद में तो उसके भी कस बल ढीले पड़ गए थे। साली ऐसे लेटी रह गई थी जैसे कह रही हो कि आओ और कर लो जो करना हो। हाहाहाहा।"

"नया माल मिल गया तो कल रात हम बहनों की तरफ देखा भी तुम लोगों ने।" रीना की आवाज़ में शिकायत थी, बोली___"सच कहती हैं औरतें कि सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। नया और ताज़ा बिल मिल गया तो भोसड़े की तरफ फिर देखते भी नहीं मर्द।"

"अरे ऐसी कोई बात नहीं है मेरी रंडी बेटी।" बापू की आवाज़___"बस कल रात की ज़रा बात ही अलग थी न इस लिए। बाॅकी ये तो तू भी जानती है न कि नया नौ दिन तो पुराना सब दिन। इस लिए चिंता मत कर तुम दोनो हमारी असली माल ही हो।"

"बापू बड़ा दिल कर रहा है।" जगन की आवाज़___"ऐसा लगता है कि फिर से चंदा रानी के पास जाऊॅ और तबीयत से उसकी बजा कर आऊॅ।"
"भाई तूने तो मेरे मुह की बात कह दी।" मदन की आवाज़ सुनाई दी___"मेरा भी बहुत दिल कर रहा है चंदा को पेलने का। चल दोनो एक एक बार तबीयत से पेल कर आते हैं उसे। क्यों बापू तुम्हें भी चलना है???"

"अरे नहीं भई।" बापू की हॅसी की आवाज़___"तुम दोनो ही जाओ। मुझमें अभी इतनी शक्ति नहीं है कि तुम लोगों का साथ दे सकूॅ। साला कल रात दारू के नशे में समझ में ही नहीं आया कितनी मेहनत हो गई मुझसे। अब जब दारू उतरी तो समझ आ रहा है कि टाॅगों में जान ही नहीं है।"

"हाहाहाहाहा ले भाई।" मदन के ठहाकों की आवाज़ गूॅजी___"बापू तो गया काम से। चल हम दोनो ही किला फतह करके आते हैं।"
"हाॅ हाॅ जाओ जाओ।" मीना की आवाज़___"कर लो किला फतह। मगर याद रखना लौट कर हमारे पास ही आओगे।"

"जाने दे मेरी राॅड बिटिया।" बापू बोला___"नया माल है न इस लिए उसकी चुलुक कुछ ज्यादा ही होती है। याद कर जब इन लोगों तुम दोनो के साथ जब किया था तो कैसे सारा दिन तुम दोनो के पीचे पीछे घूमते रहते थे?"
"अच्छी तरह याद है बापू।" मीना के हॅसने की आवाज़ आई___"ये दोनो हम दोनो बहनों के पीछे पीछे लगे ही रहते थे। इन लोगों को तो ये भी होश नहीं रहता था कि अम्मा को अगर पता चल गया तो क्या ग़जब हो जाएगा?"

बाहर खड़ा मैं ये सब सुन रहा था और अंदर ही अंदर गुस्से की आग में जला जा रहा था। मुझे लग रहा था कि अभी जाऊॅ और सबको एक साथ खत्म कर दूॅ। मेरे हाॅथों की दोनों मुट्ठियाॅ कस गईं थी। जबड़े शख्ती से भिंच गए थे। नथुने फूल कर गुब्बारा हुए जा रहे थे। तभी,,,,

"ओएऽऽ बाऽऽऽपू ग़जब हो गया रे।" जगन की लगभग बदहवाशी से भरी आवाज़ सुनाई दी___"सब गड़बड़ हो गया। अब क्या होगा बापू???"
"अरे क्या हुआ?" बापू ने घुड़की सी दी___"क्यों चिल्ला रहा है? क्या गड़बड़ हो गया???"

"बापू वो वो चंदा।" मदन की लड़खड़ाती हुआ आवाज़ सुनाई दी___"अंदर वो चंदा ऐसे पड़ी है जैसे मर गई है।"
"क्या बकता है मादरचोद??" बापू की जैसे चीख ही निकल गई थी, बोला___"बहनचोद साले शुभ शुभ बोल।"

"मदन सच कह रहा है बापू।" जगन की आवाज़__"हम दोनों जब अंदर गए तो देखा चंदा चारपाई पर आधी लटकी हुई पड़ी थी एकदम वैसी ही नंगी हालत में जैसे कल रात हम छोंड़ कर आए थे उसे। मैने उसकी नाॅक के पास उॅगली रखी और उसकी कलाई की नब्ज भी देखी। मगर ना ही उसके नाॅक से साॅस आ जा रही है और ना ही नब्ज चलती हुई महसूस हो रही है। इसी लिए हमें लग रहा है कि चंदा का राम नाम सत्य हो गया है। अब क्या होगा बापू? चंदा अगर सच में मर गई और ये बात गाॅव वालों को पता लग गई तो हम कहीं के न रह जाएॅगे बापू।"

जगन की इन बातों के बाद कुछ देर तक कोई आवाज़ न आई। जैसे उधर सबको साॅप सूॅघ गया हो। बाहर खड़ा मैं भी ये सुन कर जैसे बेजान लाश में तब्दील हो गया था। जिसका डर था वो तो हो ही चुका था किन्तु इस सबका परिणाम ये निकलेगा ये मैने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। मुझे लगा कि मैं दहाड़ें मार कर रो पड़ूॅ मगर मैने अपने अंदर के मचलते हुए जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था। जबकि उधर,

"ये तो सच में बहुत ही बुरा हुआ।" बापू की आवाज़ में डर व भय झलक रहा था___"ये सब हमारी वजह से ही हुआ है। हमने अपने मज़े के चक्कर में ये भी नहीं सोचा कि कच्ची उमर की उस चंदा के साथ इतना कुछ एक ही बार में नहीं करना चाहिए था। वरना उसका परिणाम यकीनन यही निकलेगा। दूसरी बात हमने शंकर को रात में खेतों पर फेंक आए थे। वो उस वक्त बेहोशी हालत में था। संभव है कि उसे अब तक होश भी गया होगा। अब अगर इस परिस्थिति में वो यहाॅ आ गया तो हम सोच भी नहीं सकते हैं कि वो क्या कर डालेगा? चंदा को इस हाल में देखेगा तो वो यकीनन हम सबके लिए काल बन जाएगा।"

"बापू शंकर की इस बात से मेरे दिमाग़ में एक ज़बरदस्त तरकीब आई है।" जगन की आवाज़___"अगर कहो तो उगलूॅ मुख से??"
"अरे तो उगल ना मादरचोद।" बापू चीखा__"क्या तब उगलेगा जब तेरी अम्मा चुद जाएगी साले??"
"मेरी दोनो अम्मा को तो तुमने ही चोद डाला है बापू।" जगन के हॅहने की आवाज़___"ये अलग बात है कि तुमने हमें हमारी पहली अम्मा को पेलने का मौका नहीं दिया जबकि उसको पेलने की हमारी हसरत साली धरी की धरी रह गई।"

"बकवास ना कर बहनचोद।" बापू गुर्राया___"पहले तरकीब उगल मुख से। साला सत्यानाश हो गया हमारा।"
"बापू तरकीब ये है" जगन की आवाज़___"कि चंदा की इस मौत में हम उस मादरचोद शंकर को फॅसा देते हैं।"
"वो कैसे?" बापू का चौंका हुआ स्वर उभरा__"मेरा मतलब कि हम शंकर को चंदा की मौत में कैसे फॅसा सकते हैं?"

"बड़ी सीधी सी बात है बापू।" जगन ने कहा___"हम सबको बताएॅगे कि ये सब शंकर ने ही किया है। हम गाॅव वालों को बताएॅगे कि तुमने जिस चंदा से ब्याह किया उसे शंकर पहले से ही पसंद करता था और उससे ब्याह भी करना चाहता था। जबकि चंदा तो शंकर को जानती भी नहीं थी। शंकर ने जब देखा कि वो जिसे पसंद करता था और जिससे ब्याह करना चाहता था वो तो खुद उसके ही बाप की जोरू बन गई तो शंकर ये सहन न कर सका। उससे ये सहन न हुआ कि जिसे वो खुद अपनी जोरू बनाना चाहता था वो खुद उसके बाप की ही जोरू बन कर उसकी अम्मा बन गई। इस लिए वो रात को देशी दारू पी कर आया और ज़बरदस्ती बापू के कमरे में घुस गया। कमरे में उसने जबरदस्ती चंदा की इज्जत को लूटा और फिर उसकी जान भी ले ली।"

"तरकीब तो अच्छी है बेटवा।" बापू की आवाज़___"पर गाॅव वाले यकीन कैसे करेंगे? वो तो पूछेंगे न कि शंकर ने ये सब हम सबकी मौजूदगी में कैसे कर लिया? तब क्या जवाब देगा तू?"
"हम उनसे कहेंगे कि शंकर ने कमरे के दरवाजे पर इस तरह मोटी सी लकड़ी से टेक लगा दिया था कि उस दरवाजे को लाख कोशिशों के बाद भी हम सब खोल नहीं पाए।" जगह कह रहा था___"कमरे का वो दरवाजा तभी खुला जब शंकर ने चंदा का काम तमाम कर दिया था। उसके बाद वो खुद ही बाहर आ गया था। उसके हाथ में मोटी सी वही लकड़ी थी जिससे उसने दरवाजे पर टेक लगाया हुआ था। हम सब ये डर से कुछ न बोल सके थे कि कहीं वो गुस्से में हम लोगों को मारना न शुरू कर दे। बस इतनी बात काफी है गाॅव के लोगों को यकीन दिलाने के लिए।"

"ऐसा तुझे लग रहा है।" बापू की आवाज़___"जबकि कुछ लोग ये भी पूछ सकते हैं कि जब हमारे घर में ये सब हो रहा था तो हमने शोर शराबा करके गाॅव वालों को क्यों नहीं बुला लिया? तब क्या कहेंगे हम?"
"हम कह देंगे बापू कि हमें उस वक्त कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करें और क्या न करें?" जगन ने कहा__"बस गाॅव वालों को हमारी बात पर यकीन करना ही पड़ेगा। वैसे भी गाॅव के लोगों को ये उम्मीद भला कहाॅ होगी इस सबकी जो हम लोगों ने किया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी हमारी बात को साबित करेगी जब शंकर यहाॅ पर मौजूद नहीं रहेगा। शंकर की ग़ैर मौजूदगी भी गाॅव वालों को यकीन दिलाने में पुख्ता वजह रहेगी।"

"लेकिन शंकर यहाॅ मौजूद क्यों नहीं होगा भला?" बापू की आवाज़___"वो भला कहाॅ चला जाएगा?"
"ग़ौर करने वाली बात है बापू।" जगन ने कहा__"शंकर की जानकारी में और उसके सामने इतना कुछ हो गया है उसकी प्रेमिका के साथ। तो भला वो अब यहाॅ किस वजह से लौट कर आएगा? दिल का मामला बड़ा विचित्र होता है बापू। उसका इस संसार में उसके प्रेमी के अलावा दूसरा कोई नहीं रह जाता और जब उसके रहते उसकी प्रेमिका का ये हाल हो जाए तो भला वो अपना मुह दिखाने के लिए यहाॅ क्यों रहेगा? बल्कि वो तो कहीं पर चुल्लू भर पानी की तलाश करेगा ताकि उसमें डूब कर वो मर सके।"

"वाह भाई वाह क्या लच्छेदार बात कही है मेरे मादरचोद बेटे ने।" बापू की प्रशंशा में डूबी हुई आवाज़__"ये तो कमाल ही हो गया। इतनी बड़ी और इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में नहीं आई। जबकि तूने साबित कर दिया कि तू इस संसार का सबसे बड़ा वाला कमीना इंसान है।"

"बापू तारीफ़ करने का भला ये कौन सा तरीका है?" मदन ने हॅसते हुए कहा___"जगन ने ग़लत क्या कहा भला? सारी बातों को सोच कर उसने इस सबसे बचने की जो तरकीब बताई है वो यकीनन लाजवाब है। इस लिए अब हमें बिलकुल भी देर नहीं करना चाहिए। बल्कि तुरंत ही जगन की इस तरकीब पर अमल करना चाहिए।"

"सही कह रहा है तू।" बापू की आवाज़___"इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास। अतः अब हम जगन की इस तरकीब के अनुसार ही काम शुरू करते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

उधर वो सब तरकीब पर अमल करने की बातें कर रहे थे जबकि इधर मेरे गुस्से की जैसे इंतहां हो गई थी। इतनी घटिया सोच और ऐसे पापी लोगों का इस समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। मेरे दिलो दिमाग़ उन सबके लिए घृणा और नफ़रत में निरंतर इज़ाफा होता चला गया था। मैं तुरंत ही अपनी जगह से हिला और लकड़ी की उस बाउंड्री के इस पार से चलते हुए घर के सामने की तरफ आया और सामने से अंदर की तरफ बढ़ चला।

बरामदे के बाहरी तरफ दीवार पर टेक लगा कर रखी हुई कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ी। मेरे जिस्म में दौड़ते हुए लहूॅ में जैसे एकदम से उबाल आ गया। मैं तेज़ी से उस कुल्हाड़ी की तरफ बढ़ा और उसे दाहिने हाॅथ से उठा कर बरामदे की तरफ बढ़ा। अंदर दाखिल होते ही मुझे जगन और मदन मेरी तरफ पीठ किये खड़े नज़र आए। इससे पहले कि कोई कुछ महसूस कर पाता मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की तरह चला और खचाऽऽक से जगन की गर्दन पर पड़ा। कुल्हाड़ी वार लगते ही जगन की गर्दन आगे की तरफ झूल गई। उसके कटे हुए धड़ से खून का मानो फब्बारा सा उठ गया। इधर मैं इतने पर ही नहीं रुका। बल्कि किसी के होश में आने से पहले ही एक बार पुनः मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की सी तेज़ी से चला और इस बार मदन के सीने में गड़ता चला गया। सीने में इस लिए कि वो ऐन वक्त पर मेरी तरफ घूम गया था।

पल भर में इस सबको देखते ही मेरी दोनो बहनों के हलक से चींखें निकल गई। बापू के सामने ही उसके पैरों के पास जगन मृत अवस्था में खून से लथ पथ पड़ा था। ये देख कर बापू को जैसे लकवा सा मार गया था। उसकी घिग्घी बॅध गई थी। इधर मेरी एक बहन मीना बाहर की तरफ तेजी से भागी। मैने पलट कर तेज़ी से कुल्हाड़ी चला दी। कुल्हाड़ी उड़ते हुए मीना की पीठ पर गड़ती चली गई और वो प्रहार के वेग में मुह के बल ज़मीन पर गिरी। वो मछली की तरह कुछ देर तड़पी और फिर शान्त पड़ गई। मैने आगे बढ़ कर उसकी पीठ से एक ही झटके में कुल्हाड़ी को खींच लिया।

उधर रीना के चिल्लाने से जैहे बापू को होश आया। अतः वो तुरंत उठा और कमरे के अंदर की तरफ शोर मचाते हुए भागा। उसके पीछे ही रीना भी भागी। कमरे के अंदर जा कर दोनो ने दरवाजे को बंद कर अपने अपने हाॅथों से दरवाजे पर ताकत से दबाव बढ़ा दिया।

"दरवाजा खोल बापू।" मैं कुल्हाड़ी लिए शेर की तरह गरज उठा था___"आज मेरे हाॅथों तुम सबकी मौत निश्चित है।"
"ये तूने किया शंकर?" अंदर से बापू की भय से काॅपती हुई आवाज़ आई___"तूने अपने हाॅथों अपने ही भाई और बहन को काट कर मार डाला। आख़िर ऐसा क्या हो गया है तुझे कि तूने ये नरसंघार कर दिया?"

"मुझसे क्या पूछता है हरामज़ादे?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"इस सबका कारण तो तू ही है। मैने तेरी और तेरे इन पिल्लों की सारी बातें सुन ली हैं। तूने अपने मतलब के लिए मेरी अम्मा को कुएॅ में गिरा कर मार डाला। उसके बाद तूने मेरी मासूम चंदा के भोले भाले बाप को फॅसा कर उसकी बेटी से ब्याह किया। सिर्फ इस लिए कि तू उस मासूम और निर्दोष के साथ मज़े कर सके और ये सब तूने उस मादरचोद जगन के कहने पर किया। ये बता कि तुझे एक बार भी नहीं लगा कि जो ते कहने जा रहा है वो सबसे बड़ा पाप है? अपनी ही बेटियों के साथ तू मुह काला करता है। तेरे दोनो बेटे अपनी ही बहन के साथ नाजायज़ संबंध बनाते हैं। इतना ही नहीं तू खुद भी उन के साथ ये सब करता है। अरे तुझसे बड़ा इस संसार में कौन होगा बापू? तूने दो पल के मज़े के लिए रिश्तों को भी नहीं बक्शा। मेरी देवी जैही माॅ को मार डाला तूने और तेरे इन पिल्लों ने।"

"ये सब झूॅठ है शंकर भाई।" रीना रोते बिलखते हुए चिल्ला पड़ी___"तुम जो समझ रहे हो वैसे कुछ भी नहीं है।"
"तू चुप कर बदजात लड़की।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया था, बोला___"तुझे तो अपनी बहन कहते हुए भी मुझे शर्म आती है ऐ बेहया। तुझमें इतनी ही हवश की आग भरी हुई थी तो कहीं भाग जाती किसी के साथ। कम से कम रिश्तों पर कलंक तो न लगता। मगर नहीं, तू अपने बाप और भाई की राॅड बन गई न। नहीं छोंड़ूॅगा, किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा। दरवाजा खोल वरना इसी कुल्हाड़ी से इस दरवाजे को काट काट कर टुकड़े टुकड़े कर दूॅगा और फिर वैसे ही टुकड़े तुम दोनो नाली के कीड़ों के करूॅगा।"

"हमें माफ़ कर दे शंकर।" बापू ने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हमसे सच में बहुत बड़ा पाप हो गया है। लेकिन आख़िरी बार माफ़ कर दे हमें। अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करेंगे हम। देख तूने अपने ही दो भाई और एक बहन को मार डाला। अब कम से कम हमें तो छोंड़ दे।"

"तू बाहर निकल बेटीचोद।" मैने चिल्लाया___"उसके बाद बताता हूॅ कि कैसे माफ़ करता हूॅ मैं?"
"भगवान के लिए भाई।" रीना बुरी तरह रो रही थी__"बस एक बार माफ़ कर दे। सच कहती हूॅ जीवन भर तेरी टट्टी खाऊॅगी मैं।"

"मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि दरवाजा खोल।" मैं गुस्से में चीखा___"वरना दरवाजे को काटने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा। उसके बाद मैं तुम दोनो का क्या हस्र करूॅगा तुम सोच भी नहीं सकते।"
"बेटा माफ़ कर दे न।" बापू गिड़गिड़ाया___"अरे मैं तेरा बाप हूॅ रे। तुझे बचपन से पाल पोष कर बड़ा किया है।"

"तो कौन सा बड़ा काम किया है तूने?" मैने कहा__"तू मुजे बचपन में ही मार देता तो अच्छा होता। कम से कम आज ये सब देखने सुनने को तो न मिलता। मेरी मासूम सी चंदा को तुम लोगों ने रौंद रौंद कर मार डाला। मेरी देवी जैसी अम्मा को मार डाला तुम लोगों ने। अगर तुम लोग मेरी अम्मा और चंदा को वापस मुझे लाकर दे दो तो माफ़ कर दूॅगा। वरना भूल जाओ कि मैं माफ़ कर दूॅगा तुम दोनो को।"

अंदर से कोई वाक्य न फूटा उन दोनों के मुख से। बस दोनो के रोने की आवाज़ें गूॅजती रही। मेरा गुस्सा प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था। मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैं कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करने लगा। मेरे ऐसा करते ही रीना और बापू ज़ोर ज़ोर से चीखने लगे और रहम की भीख माॅगने लगे। मगर मैं न रुका बल्कि लगातार कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करता चला गया। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही देर में लकड़ी का वो दरवाजा कट कट कर टुकड़ों में निकलने लगा। थोड़ी ही देर में मुझे रीना का हाॅथ नज़र आया जो दरवाजे पर टिका हुआ था। मैने गुस्से में आव देखा न ताव, कुल्हाड़ी का वार सीधा उसके हाॅथ पर किया। खचाऽऽऽच की आवाज़ के साथ ही रीना का हाॅथ उसकी कलाई से कट गया। खून का तेज़ फब्बारा उछल कर फैल गया। कलाई से हाॅथ कटते ही रीना की हृदय विदारक चीख गूॅज गई। वो दरवाजे से हट कर अपने दूसरे हाॅथ से कटे हुए हाॅथ को पकड़े पीछे हटती चली गई। उसका ये हाल देख कर बापू भी मारे डर के पीछे की तरफ भागा। दोनो के जाते ही दरवाजे पर से उन दोनो का दबाव हट गया।

[size=large]मैने दरवाजे पर ज़ोर से एक लात मारी तो दरवाजा खुलता चला गया और इसके साथ ही उन दोनो की चीखना चिल्लाना भी बढ़ गया। मैं दरवाजे के अंदर दाखिल हुआ और उन दोनो की तरफ बढ़ने ही वाला था कि मेरी न
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11-24-2019, 01:01 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
कमरे के अंदर आहट महसूस होते ही वो लड़का बुरी तरह चौंक कर पलटा और मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत सिर्फ कुछ पलों तक ही रही। उसके बाद उसने इस तरह से अपना रंग बदला कि भला गिरगिट क्या बदलता होगा। यहाॅ पर उसने इस कहावत को पूरी तरह सिद्ध कर दिया कि "उल्टा चोर कोतवाल को डाॅटे"। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाहिए था वही सब वो मुझे ऊॅची आवाज़ में कहने लगा था। उसके मुख से अपने लिए ये सब सुन कर मैं भौचक्का सा रह गया। हैरत व अविश्वास से मेरा मुह तथा मेरी फट पड़ी थी। जबकि वो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही देर में बाथरूम से कुमुद बिटिया कपड़े पहन कर बाहर निकली। मैने उसकी तरफ देखा तो चौंक गया, उसका चेहरा ऑसुओं से तर था और वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे बिना कुछ बोले ही ऑखों से कह रही हो कि___"क्यों चाचू, ऐसा क्यों किया तुमने? मैं तो आपकी बेटी जैसी ही हूॅ और आपको अपने पिता जैसा ही सम्मान देती हूॅ। फिर आपने मुझ पर गंदी नज़र डाली। क्यों चाचू क्यों? क्या आप हवस में इतने अंधे हो गए कि आपको मुझमें आपकी कुमुद बिटिया की जगह एक ऐसी लड़की दिखने लगी जिसके साथ अपनी हवस को मिटाया जाए?"

उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह दिया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई ज़रूरत नहीं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात समझ गया था। उसके चेहरे पर तुरंत ही हिकारत के भाव उभरे तथा उसमें शामिल हो गई घृणा। जिसके तहत उसने तुरंत ही अपना मुह फेर लिया जैसे अब वो मुझे देखना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दुनियाॅ बरबाद हो गई। चार सालों का मेरा विश्वास मेरा प्यार व स्नेह एक पल में ही जैसे नेस्तनाबूत हो गया था।

ये एहसास होते ही मेरे अंदर तीब्र पीड़ा हुई। मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मैने अपनी सफाई में कुछ भी कहना गवाॅरा न किया और मैं आगे भी कहना नहीं चाहता था। क्योंकि सबसे बड़ा होता है विश्वास। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मुझे तक़लीफ इसी बात पर हुई कि उस लड़की ने ये कैसे यकीन कर लिया कि मैंने उस पर गंदी नज़र डाली थी? उसे अपने भाई पर संदेह क्यों न हुआ जिसने सचमुच ही वो काम किया था। क्या सिर्फ इस लिए कि वो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?

वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बॅगले से निकल जाने के लिए कह दिया। मैं भी दुखी मन से उठा और अपनी बंदूख सम्हाले बॅगले से बाहर निकल गया। किन्तु मैं बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब के आने का इन्तज़ार था। मुझे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही वहाॅ से जाकर ये साबित नहीं करा देना चाहता था कि मैं वास्तव में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने जाकर ये दर्शाना चाहता था कि मैं गुनहगार नहीं हूॅ।

शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बॅगले पर लौट कर आए। मैं सारा दिन भूखों प्यासा मुख्य दरवाजे पर किसी गुलाम की तरह खड़ा रह गया था। रह रह कर मेरे मन में ख़याल आता कि यहाॅ से कहीं ऐसी जगह चला जाऊॅ जहाॅ से कोई इंसान दुबारा वापस नहीं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को अपना चेहरा दिखाना एक बार। मेरे अंदर औरत जात के प्रति जो नफ़रत कहीं खो सी गई थी वो फिर से उभर कर आ गई थी। ख़ैर, मेजर साहब आए और बॅगले के अंदर चले गए। मुझे पता था कि वो लड़का और कुमुद मेजर साहब को मिर्च मशाला लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। लेकिन मुझे परवाह नहीं थी अब। मुझे उम्मीद थी कि मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हर्गिज़ भी नहीं सोच सकते। आख़िर देश दुनियाॅ देखी थी उन्होंने। उनको इंसानों की पहचान थी।

मगर मेरी उम्मीदों पर बिजली उस वक्त गिरी जब मेजर साहब ने मुझे बुलाया और मुझे डाॅटना शुरू किया।
"हमें तुमसे ऐसे गंदे कर्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी शंकर।" मेजर साहब ने कड़ी आवाज़ में कहा___"हमें तुम पर कितना भरोसा था। हम तुम्हें कभी ग़ैर नहीं समझते थे। मगर तुमने अपनी ज़ात दिखा दी। शुरू में जब तुमने कहा था कि तुम दुनियाॅ का हर काम कर सकते हो लेकिन कोई ग़लत काम नहीं करोगे भले ही चाहे भूॅखों मर जाओ तो हम तुम्हारी उस बात से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर आज जो कुछ तुमने किया है उससे हमें बहुत दुख पहुॅचा है। हमारी बेटी तुम्हें हमारे जैसा ही पिता का सम्मान देती थी और तुमसे लाड प्यार करती मगर तुमने उस पर ही गंदी नज़र डाल दी। मन तो करता है कि तुमसे ये बंदूख छीन कर इसकी सारी गोलियाॅ तुम्हारे सीने में उतार दें मगर नहीं करेंगे ऐसा। इतने साल की वफ़ादारी का अगर यही इनाम लेना तो कोई बात नहीं। मगर अब तुम्हारे लिए यहाॅ कोई जगह नहीं है। निकल जाओ यहाॅ से और दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना हमें वरना हमसे ये उम्मीद न करना कि हम तुम्हें ज़िंदा छोंड़ देंगे।"

बस, मेजर साहब की ये बातें सुन कर मैं बुरी तरह अंदर से टूट कर बिखर गया। मैं अब एक पल भी यहाॅ लुकना नहीं चाहता था। इस लिए घुटनों के बल बैठ कर मैने अपने कंधे से बंदूख निकाली और मेजर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड़ कर नमस्कार किया और फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया। मेरे अंदर ऑधी तूफान मचा हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार कर रोऊॅ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था। खड़े होकर मैने एक बार कुमुद बिटिया की तरफ देखा तो उसने जल्दी से अपना मुह फेर लिया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टूट कर हाल के फर्श पर गिर गया।

उसके बाद मैं एक पल के लिए भी नहीं रुका। वहाॅ से बाहर आकर मैं सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ अपने कमरे में गया और वहाॅ से अपना सामान एक थैले में भर कर कमरे से बाहर आ गया। बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर मैं एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके बाद बॅगले में क्या हुआ इसका मुझे कुछ पता नहीं। वहाॅ से आने के बाद मैं एक सुनसान जगह पर दिन भर यूॅ ही दुखी मन से बैठा रहा। ये संसार बहुत बड़ा था मगर इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे मैं अपना कहता। जो मुझे समझता और मेरे दुखों को महसूस करता। वर्षों पहले एक दुख से उबरा था, आज फिर एक दुख ने मुझे वहीं पर ले जाकर पटक दिया था। ख़ैर, समय का काम है बदलना। इस लिए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भूलने की कोशिशें करने लगा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। मैं कोई न कोई काम कर लेता जिससे मुजे दो वक्त की रोटी मिल सके और रातों को कहीं भी लेट कर सो जाता। यहीं मेरी ज़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक दिन हरिया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने मुझमें ऐसा क्या देखा कि ये मुझे यहाॅ ले आया और फिर मैं तब से यहीं का रह गया। यहाॅ पर हरिया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। बिंदिया भाभी में मुझे एक माॅ की झलक दिखने लगी और रितू बिटिया के रूप में एक ऐसी नेक दिल लड़की मिल गई जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मुझे उसमें अपनी बेटी ही नज़र आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपूर परिवार ही मिल गया है। लेकिन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि किसी दिन मेरी किस्मत और सबका वो भगवान फिर से न मुझसे रूठ जाए और मुझे फिर से उसी दुख दर्द में ले जाकर पटक दे जहाॅ से उबरने में मुझे एक युग लग जाता है।"

अपने गुज़रे हुए कल की दुख भरी कहानी बता कर शंकर ने गहरी साॅस ली और अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसुओं को पोंछा। उसके सामने ही खड़े हरिया व रितू की ऑखों में भी ऑसू थे। शंकर की कहानी में वो इतना डूब गए थे कि उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही वो सब घट रहा था।

हरिया को जाने क्या सूझा कि वो झपट कर शंकर को अपने गले से लगा लिया और फूट फूट कर रो पड़ा। शंकर उसे इस तरह रोता देख मुस्कुराया। ये अलग बात थी कि उसकी ऑखें भी बह चली थी। रितू आगे बढ़ कर उन दोनो को एक दूसरे से अलग किया।

"काका आपने अपने अंदर इतना बड़ा दुख छुपा के रखा हुआ था।" रितू ने दुखी मन से कहा___"जिसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही दुखदायी था। मगर आप चिंता मत कीजिए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दुख में जाने नहीं दूॅगी जिससे आपको जीने में तक़लीफ हो।"

"भगवान करे ऐसा ही हो बिटिया।" शंकर ने कहा__"मैं भी तुम लोगों को छोंड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। तुम सबसे इतना लगाव हो गया है कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो यकीनन ये दुख सहन नहीं कर पाऊॅगा मैं।"
"अरे तू फिकर काहे करथै ससुरे?" हरिया ने कहा__"हम अइसन अब कउनव सूरत मा न होंय देब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खुश रख। अउर हाॅ ई हमरा वादा हा कि हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुंदर लड़की से करब जउन तोहरी ऊ ससुरी बिंदिया भौजी जइसनै होई।"

हरिया की ये बात सुन कर शंकर और रितू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा रितू को कुछ याद आया।
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उधर हवेली में!
कई सारी गाड़ियाॅ हवेली के बाहर विसाल मैदान में आकर रुकीं। सभी गाड़ियों के सभी दरवाज़े एक साथ खुले और उनमें से कई सारे अजनबी लोग बाहर निकले। सभी आदमियों में ज्यादातर आदमी हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डथ टाइप के थे। जबकि कुछ आदमी साधारण कद काठी के थे। वो सब हट्टे कट्टे आदमियों से घिरे हुए थे।

हवेली के बाहर अजय सिंह के कुछ आदमी हाॅथों में बंदूख लिए खड़े थे। उन लोगों ने जब इतने सारे आदमियों को एक साथ हवेली की तरफ आते देखा तो उनके चेहरों का रंग सा उड़ने लगा। उन्हें लगने लगा अब ये कौन सी नई मुसीबत आ गई यहाॅ? सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि ये सब क्या है? किन्तु जवाब किसी के पास नहीं था।

"ठाकुर साहब से कहो कि हम लोग उनके कहे अनुसार अपने आदमियों को यहाॅ लेकर आ गए हैं।" एक आदमी ने अजय सिंह के एक आदमी से कहा___"हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। इस लिए अभी हमें जाना होगा किन्तु हमारे ये आदमी उनके किसी भी आदेश का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेंगे।"

उस आदमी की ये बात कदाचित गार्ड की समझ में न आई थी। इसी लिए वह मूर्खों की तरह उस आदमी को देखता रह गया। उसके चेहरे पर उलझन के से भाव उभर आए थे।

"अरे भाई ऐसे क्यों देख रहे हो हमें?" आदमी ने चौंकते हुए कहा__"हम सब ठाकुर साहब के बिजनेस वाले फ्रैण्ड्स हैं। अतः जल्दी जाओ और उन्हें बताओ कि मिस्टर कमलनाथ और उनके साथ सभी उनके दोस्त यहाॅ आए हुए हैं।"

गार्ड के चेहरे पर फैले उलझन के भाव कम तो न हुए किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि पाॅकिट से मोबाइल निकाल कर किसी को फोन लगाया। उधर से काल रिसीव करते ही उसने कहा___"मालकिन, कुछ लोग मालिक से मिलने आए हैं। कह रहे हैं कि उनके बिजनेस से संबंधित फ्रैण्ड्स हैं। मेरे लिए क्या आदेश है मालिकन?"
"............।" उधर से कुछ कहा गया और इसके साथ ही काल कट हो गई।

"आप कृपया एक मिनट रुकिये।" फिर उस गार्ड ने बड़ी विनम्रता से कहा___"मालकिन आ रही हैं बाहर।"
"ओके नो प्राब्लेम।" उस आदमी ने कहा और दूसरी तरफ पलट कर इधर उधर देखने लगा।

कुछ ही देर में हवेली का दरवाजा खुला और प्रतिमा उसमे से बाहर निकली। उसके पीछे ही उसका बेटा शिवा भी था। हवेली के बाहर इतनी सारी गाड़ियाॅ और इतने सारे लोगों को देख कर वो चौंकी। मनो मस्तिष्क में एक ही बात चकरघिन्नी की तरह नाचने लगी कि 'कहीं फिर से कोई सीबीआई वाले नहीं आ गए यहाॅ'।

प्रतिमा की देखते ही गार्ड ने उस आदमी के पास जाकर उसे बताया कि मालकिन आ गई हैं। वो आदमी पलट कर प्रतिमा के पास आया।
"नमस्कार भाभी जी।" उस आदमी ने खुशदिली से हाॅद जोड़ कर नमस्कार करते हुए बोला__"हम सब ठाकुर साहब के फ्रैण्ड सर्कल के लोग हैं। ठाकुर साहब से कल मीटिंग में हमारी कुछ बातें हुई थी। जिसके तहत उन्होंने हमसे हमारे कुछ बेहतरीन आदमियों की माॅग की थी। सो इस वक्त हम उसी सिलसिले में यहाॅ आए हैं। हमारे पास ज्यादा समय नहीं है इस लिए हम ठाकुर साहब से मिल कर तुरंत ही यहाॅ से जाना चाहेंगे। उसके बाद ये उनका काम है कि वो हमारे इन आदमियों के द्वारा क्या काम लेते हैं?"

प्रतिमा उस आदमी की बातों से समझ गई कि कल अजय सिंह किसी ज़रूरी मीटिंग में था इसी लिए शाम को देर से आया था। तो इसका मतलब मीटिंग इस सबके लिए थी। किन्तु समस्या ये थी कि ये लोग जिससे मिलने आए थे उसे तो सीबीआई वाले सुबह ही अपने साथ ले गए थे। इस लिए अब वो इन्हें क्या जवाब दे यही उसकी समझ में नहीं आ रहा था। सच्चाई बताने पर संभव है कि बात बिगड़ जाती। अगर इन लोगों को अभी पता चल जाए कि अजय सिंह को सीबीआई वाले ले गए हैं तो ये लोग तुरंत ही यहाॅ से रफूचक्कर हो जाएॅगे।

"क्या बात है भाभी जी?" उस आदमी ने कहा___"आप किसी गहरी सोच मे डूबी हुई प्रतीत हो रही हैं। कहिए सब ठीक तो है न? ठाकुर साहब को बुलाइये हम उनसे मिलना चाहते हैं।"
"ठाकुर साहब तो इस वक्त हवेली के अंदर नहीं हैं।" फिर प्रतिमा को बहाना बनाना पड़ा___"सुबह ही कहीं चले गए थे। कहाॅ गए हैं इस बारे में कुछ बताया भी नहीं उन्होंने।"

"ओह आई सी।" उस आदमी ने कहा___"कोई बात नहीं भाभी जी। हम फोन पर बात कर लेंगे उनसे। अच्छा अब हम चलते हैं। हम अपने इन आदमियों कों यहीं पर छोंड़े जा रहे हैं।"
"अरे ऐसे कैसे चले जाएॅगे आप लोग?" प्रतिमा ने औपचारिकता के भाव से कहा___"अंदर आइये और कम से कम चाय या काॅफी तो पीकर ही जाइये। वरना आपके ठाकुर साहब मुझे ही डाॅटेंगे कि मैने आप लोगों को बिना चाय पानी करवाए ही जाने दिया।"

"इसकी ज़रूरत नहीं है भाभी जी।" आदमी ने हॅसते हुए कहा___"आपने कह दिया इतना ही बहुत है हमारे लिए। अच्छा अब हम चलते हैं, नमस्कार।"
"नमस्कार जी।" प्रतिमा ने भी प्रत्युत्तर में अभिवादन किया।

इसके बाद वो जितने भी साधारण कद काठी के आदमी सूट बूट पहने आए थे वो सब गाड़ियों में सवार होकर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद प्रतिमा ने बाॅकी बचे हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डर आदमियों की तरफ देखा।

"बेटा इन सबको सर्वेंट क्वार्टर में ले जाओ।" फिर प्रतिमा ने शिवा से कहा___"और इनके रहने का इंतजाम करो। तब तक मैं सविता(नौकरानी) से कह कर इन लोगों के लिए चाय पानी का उचित बंदोबस्त कराती हूॅ।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और हवेली की सीढ़ियाॅ उतर कर नीचे आ गया उन लोगों के पास।

उन सबको लेकर शिवा हवेली के पूर्व दिशा की तरफ बने सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गया। ये सर्वेंट क्वार्टर अजय सिंह ने साल भर पहले ही बनवाया था। उन लोगों के जाने के बाद प्रतिमा भी अंदर की तरफ चली गई। उसके चेहरे पर सहसा गहन चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। उसे पता था कि अजय सिंह के जो बिजनेस संबंधी दोस्त आए थे वो अजय सिंह से फोन पर ज़रूर बात करेंगे। लेकिन जब अजय सिंह का फोन नहीं लगेगा तो वो सब परेशान भी हो जाएॅगे। उस सूरत में उनका क्या रिऐक्शन होगा इसका कुछ भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

प्रतिमा को समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वो क्या करे? उसने मदद के उद्देश्य से ही अपनी इंस्पेक्टर बेटी रितू को फोन लगाया था किन्तु उसने काल को रिसीव न करके कट कर दिया था। ये प्रतिमा के लिए शायद आख़िरी सबूत था कि उसकी बेटी ने सचमुच ही अपने माॅ बाप के खिलाफ़ बगावत कर दी थी।

अंदर प्रतिमा ने सविता को उन आदमियों के लिए चाय का कह दिया और खुद आकर ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे से चिन्ता व परेशानी के भाव जा ही नहीं रहे थे। वो कुछ भी करके अजय सिंह को सीबीआई के चंगुल से बाहर निकालना चाहती थी। हलाॅकि उसे पता था कि ऐसे मामलों में अपराधी का कानून की गिरफ्त से बाहर आना बेहद मुश्किल काम होता है किन्तु इसके बावजूद प्रतिमा अजय सिंह को बाहर निकालना चाहती थी।

सहसा प्रतिमा को अपने पिता जगमोहन सिंह का ख़याल आया। प्रतिमा का बाप जगमोहन सिंह आज कल इलाहाबाद हाई कोर्ट में बतौर क्रिमिनल लायर था। ऊम्र से ज्यादा अधेड़ नहीं लगता था। कहा जाता है कि जगमोहन सिंह बहुत ही काबिल व तेज़ तर्रार वकील था। चाहे जैसा भी केस हो, मुहमाॅगी फीस मिलने पर वह अपने मुवक्किल को बाइज्ज़त बरी करा लेता था। मगर यहाॅ पर प्रतिमा के लिए सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो अपने बाप से मदद माॅगे तो माॅगे कैसे?

दरअसल, जब प्रतिमा ने अपने बाप को बताया कि वह अजय सिंह से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती है तो जगमोहन सिंह बुरी तरह भड़क गया। उसे प्यार शब्द से ही नफ़रत थी। पता नहीं ऐसा क्या था कि प्रेम प्रसंग होने पर वह आपे से बाहर हो जाता था। उसके घर में नियम कानून बड़े शख्त थे। उसकी दो ही बेटियाॅ थी। जिनमें से प्रतिमा छोटी वाली थी। जबकि पहली बेटी मुम्बई में रहती थी, जहाॅ आजकल अजय सिंह की बेटी नीलम रहती है। जगमोहन सिंह को कोई बेटा नहीं था। धन दौलत की शुरू से ही कोई कमी नहीं थी। ख़ैर, बाप के साफ इंकार कर देने पर प्रतिमा ने पहली बार अपने बाप से मुहज़ुबानी की थी और साफ शब्दों में कह दिया था कि वो शादी करेगी तो अजय सिंह से ही वरना वो कभी किसी से शादी नहीं करेगी। जगमोहन को अपनी इस बेटी की धृष्टता पर बेहद गुस्सा आया और उसने उसी वक्त कह दिया उससे कि आज के बाद वो उसके लिए मर गई है। बस प्रतिमा ने आव देखा न ताव, बाप का घर छोंड़ दिया और सीधा अजय सिंह के पास पहुॅच गई। अजय सिंह के साथ ही वह रहने लगी। इस बीच वो प्रग्नेन्ट हो गई तो आनन फानन में अजय सिंह और प्रतिमा ने आपस में कोर्ट मैरिज कर ली थी।

तब से लेकर अब तक प्रतिमा ने कभी भी अपने बाप से कोई मतलब नहीं रखा था और ना ही उसके बाप जगमोहन ने। प्रतिमा की इस बगावत से उसकी बड़ी बहन को धक्का तो ज़रूर लगा था किन्तु वो कर भी क्या सकती थी? ऐसे ही समय गुज़रता गया। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन से फोन पर ही हाल समाचार ले लिया करती थी। दोनो बहनें वर्षों से एक दूसरे से न मिली थी।

ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा इन्हीं सब यादों में खोई थी। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। माॅ का साया तो पहले ही उसके सिर से उठ गया था। दोनो बहनों में ये सबसे ज्यादा लाड प्यार में पली पढ़ी थी और शायद यही वजह थी कि जिद्दी हो गई थी। जिसका नतीजा ये हुआ था कि उसने अपने बाप के खिलाफ़ जाकर अजय सिंह से शादी कर ली थी। मगर आज के हालात बहुत और तब के हालात में बहुत फर्क़ हो गया था। आज के हालात में प्रतिमा किसी के भी सामने झुकने और किसी के भी नीचे लेटने को तैयार थी। बदले में उसे अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त से बाहर चाहिए था।

प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो दुबारा अपने बाप से बात कर सके। शादी वाली बात को तो वर्षों हो गए थे। किन्तु इन वर्षों में उसने एक बार भी अपने बाप से बात करना ज़रूरी नहीं समझा था। और आज जब बुरा वक्त आया तो उसे अपने बाप का ख़याल आया और उससे मदद माॅगने का भी। प्रतिमा को पहली बार लगा कि उसे अपने बाप से इस तरह मुहज़ुबानी नहीं करनी चाहिए थी और ना ही तैश में आकर इस तरह बाप के घर की दहलीज़ को छोंड़ देना चाहिए था। मामले को प्यार से और समझा बुझा कर भी सुलझाया जा सकता था। आज अगर ग़ौर किया जाए तो दो दो बेटियाॅ होने के बाद भी उसका बाप घर में अकेला ही था। सोचने वाली बात है कि उतने बड़े घर में उसका बाप पिछले कितने ही वर्षों से अकेला रह रहा है। क्या उसे अपने उस अकेलेपन से दुख नहीं होता होगा? क्या उसे इस बात का दुख नहीं होगा कि उसकी बेटी ने आज तक उसकी सुधि तक न ली। अपनी खुशियों को गले लगा कर अपने बाप को अकेला छोंड़ दिया। तन्हाई इंसान को जीते जी मार डालती है। मगर उसने कभी अपनी इस बेटी को फोन करके उस सबका गिला न किया था।

प्रतिमा को बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि उससे कितनी बड़ी भूल हुई है। कहते हैं कि माॅ बापप का गुस्सा या नाराज़गी जीवन भर के लिए नहीं होती। आख़िर बाप को औलाद के आगे हार जाना ही होता है। मगर यहाॅ तो जगमोहन दोनो तरफ से हारा हुआ बाप बन चुका था। प्रतिमा की ऑखों से पश्चाताप के ऑसू बह रहे थे। उसे इस बात का बखूबी एहसास था कि भले ही उसके बाप ने उसे त्याग दिया था मगर आज भी वो अपनी बेटियों के मंगलमय जीवन की कामना करता होगा। ये सब सोच सोच कर प्रतिमा को भारी दुख हो रहा था। उसे अपनी अज्ञानता और अपने छोटेपन का शिद्दत से एहसास हो रहा था मगर अब रोने से क्या हो सकता था? पच्चीस साल का वक्त थोड़ा सा नहीं होता अपने बाप से अनबन किये हुए।

प्रतिमा को लगने लगा कि ये जो कुछ भी आज उसके और उसके परिवार के साथ हो रहा है वो सब उसी का फल है जो उसने इतने वर्षों से बाप को दुखी किया हुआ है। ये सब सोच कर ही प्रतिमा को चक्कर सा आने लगा। उसने अपना सिर दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। तभी ड्राइंग रूम में शिवा दाखिल हुआ। अपनी माॅम को इस तरह पीड़ा में देख वह घबरा सा गया। तुरंत ही प्रतिमा के पास पहुॅचा वह और उसे उसके कंधों से पकड़ कर झकझोरा।

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने घबरा कर कहा___"आप ठीक तो हैं न माॅम? प्लीज़ बताइये न क्या हुआ है आपको?"
"कुछ नहीं बेटा।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"बस थोड़ा चक्कर सा आ गया था।"
"आप इतना टेंशन क्यों लेती हैं माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के चेहरे को दोनो हथेलियों में लेकर कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। डैड बहुत जल्द वापस आ जाएॅगे।"

"हाॅ बेटा।" प्रतिमा ने कहीं खोए हुए से कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। तेरे डैड जल्द ही हमारे पास वापस आ जाएॅगे।"
"आप चलिये माॅम।" शिवा ने प्रतिमा को उठाते हुए कहा___"अपने कमरे में आराम कीजिए आप और हाॅ ज्यादा सोच विचार मत किया कीजिए।"

शिवा की बात का प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया और कमरे की तरफ शिवा के साथ बढ़ गई। कमरे में बेड पर प्रतिमा को लेटा कर शिवा रसोई की तरफ बढ़ गया। रसोई में सविता चाय बनाकर केतली में डाल रही थी। ये देख कर शिवा वापस बाहर की तरफ आया और हवेली से बाहर आ गया। बाहर उसने एक आदमी को बुलाया और अंदर ले गया उसे। अंदर आकर उसने सविता से कहा कि वो चाय नास्ता काका को पकड़ा दे। सविता ने वैसा ही किया। शिवा और वो आदमी दोनो ही चाय नास्ता का सामान लिये सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गए।
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11-24-2019, 01:01 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर फार्महाउस पर!
शंकर काका की कहानी से माहौल थोड़ा गंभीर सा हो गया था किन्तु हरिया काका की मज़ेदार बातों से फिर से खुशनुमा हो गया था। रितू को सहसा कुछ याद आया तो उसने हरिया काका की तरफ देखा।

"अरे काका।" फिर उसने कहा___"इन सब बातों के बीच हम ये तो भूल ही गए कि तहखाने में मंत्री की बेटी कैद है और वो कल से भूखी प्यासी भी होगी।"
"हाॅ बिटिया।" हरिया काका के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे___"ई ता सही मा हम भुलाय दीन्हें रहे। ऊ ससुरी मंत्रीवा की छोकरिया अबे तक ता ज़रूरै भूख पियास से मरत होई।"

"आप भी कमाल करते है काका।" रितू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे आप उस बेचारी को ऐसे ही मार देंगे। जबकि अभी तो मुझे उसके अंदर की गर्मी निकालनी है। चलिये देखें तो सही क्या हाल चाल हैं उसके?"
"हाॅ हाॅ चला बिटिया।" हरिया काका ने बंदूख को शंकर के हाथ में थमाते हुए कहा___"अब ता देखहिन का पड़ी कि ऊ ससुरी अबे ज़िंदा बा के मर गईल है।"

रितू हरिया की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने की तरब बढ़ गई। उसके पीछे पीछे हरिया भी चल रहा था। कुछ ही देर में वो दोनो तहखाने के दरवाजे के पास खड़े थे। हरिया ने चाभी हे तहखाने का दरवाजा खोला और एक साइड हट गया। रितू दरवाजे के अंदर की तरफ दाखिल हो गई। अभी वो दो तीन सीढ़ियाॅ ही नीचे उतरी थी कि सहसा उसे रुक जाना पड़ा और जल्दी से पैन्ट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुह व नाॅक पर रखना पड़ा।

तहखाने में तेज़ दुर्गंध फैली हुई थी। मतलब साफ था अंदर मौजूद सूरज और उसके दोस्त या फिर सूरज की बहन में से किसी का टट्टी पेशाब छूट गया था जिसकी वजह हे अंदर दुर्गंध फैली हुई थी। रितू से बर्दास्त न हुआ तो वो वापस तहखाने से बाहर आ गई।

"काका इन लोगों ने तो यहाॅ गंध फैला रखी है।" रितू ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"ऐसे में अंदर जाया नहीं जाएगा। इस लिए सबसे पहले आप तहखाने का हाल सही करवाइये। उसके बाद ही आगे का कार्यक्रम होगा।"
"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम इहाॅ की सफाई करवाता हूॅ तब तक तू बाहर रहा।"
"ठीक है काका।" रितू ने कहा___"मैं कुछ देर के लिए कमरे में जा रही हूॅ। जब यहाॅ का सब ठीक हो जाए तो आप मुझे बुला लीजिएगा।"

ये कह कर रितू वहाॅ से बाहर आकर इस तरफ से अंदर गई और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर रितू बेड पर लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि नैना बुआ भी कमरे में आ गई और बेड के किनारे भाग में बैठ गई।

"आइये बुआ।" रितू ने अधलेटी अवस्था में कहा__"आप भी आराम से लेट जाइये।"
"चल ठीक है तू कहती है तो लेट जाती हूॅ।" नैना ने रितू के इस तरफ आते हुए कहा___"अच्छा ये बता कि तेरे इस फार्महाउस पर और क्या क्या होता है?"
"क्या मतलब??" रितू बुरी तरह चौंकी___"यहाॅ क्या क्या होता है से आपका क्या मतलब है?"

"इतनी नासमझ व बुद्धू नहीं हूॅ मैं जितना तू समझ रही है मुझे।" नैना ने कहा___"यहाॅ आए मुझे कुछ समय तो हो ही गया है। मैने महसूस किया है कि ये फार्महाउस असल में मुजरिम लोगों के लिए एक ऐसी जेल की तरह है जिसकी कैद से मुजरिम का निकल पाना नामुमकिन ही नहीं बल्कि असंभव है। कह दे भला कि मैं झूॅठ कह रही हूॅ?"

रितू चकित भाव से देखती रह गई अपनी बुआ को। किन्तु फिर तुरंत ही सम्हल भी गई। चेहरे पर शशंक भाव लाते हुए बोली___"ये सब आपने खुद महसूस किया है या ये सब बातें किसी के द्वारा पता चली है आपको?"

"बात अगर सच है तो इस बात से कोई मतलब ही नहीं रह जाता मेरी बच्ची कि मुझे ये सब कैसे पता चला?" नैना ने स्पष्ट भाव से कहा___"दूसरी बात मुझे इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं है कि तू इस फार्महाउस पर क्या कर रही है। बल्कि खुशी है कि मुजरिमों को उचित सज़ा दे रही है तू। मगर मैं बस यही कहूॅगी कि ऐसे कामों में अपनी जान का ख़तरा भी बहुत होता है इस लिए अपना भी ख़याल रखना।"

"ख़तरा तो हर इंसान के जीवन में होता है बुआ।" रितू ने कहा___"चाहे वो कोई आम इंसान हो या फिर कोई ऐसा इंसान जो हर वक्त ख़तरों के बीच ही रहता है। मैं इस फार्महाउस पर इसके पहले कभी भी किसी मुज़रिम को कानून अपने हाॅथ में लेकर नहीं आई बुआ और नाही ऐसा करने का मैने कभी सोचा था। मगर ये सब तो मैने तब किया जब विधी का मामला आया। हमारे देश में किसी मुजरिम को उसके संगीन से भी संगीन अपराध के लिए कोई शख्त सज़ा नहीं हो पाती। इसकी कई सारी वजहें हैं मगर मुख्य वजहें ये हैं कि हमारा कानूनी सिस्टम बहुत कमज़ोर व ढीला है। कोर्ट में आज भी लाखों ऐसे संगीन अपराधों के केस फाइलों के नीचे दबे हुए हैं जिनकी समयावधी का पता चलते ही हमारा कानून पर से विश्वास उठने लगता है। दूसरी बात हमारा यही कानूनी सिस्टम बड़े लोगों और मंत्री मिनिस्टरों के हाॅथ की कठपुतली बना हुआ है। जबकि सच्चाई ये है कि कानून की नज़र में कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता। अगर अपराध देश के सबसे बड़े ब्यक्ति ने किया है तो उसे भी वैसी ही सज़ा मिलनी चाहिए जो किसी आम मुजरिम को मिलती है। मगर ये सब कहने की बातें हैं बुआ, हकीक़त में ऐसा होता नहीं है। कानून के इसी कमज़ोर सिस्टम की वजह से एक शरीफ आदमी मजबूरीवश जुर्म का दामन थाम बैठता है।"

"तुम जिन चीज़ों की बात कर रही हो बेटा।" नैना ने गहरी साॅस ली___"वो हमेशा ऐसी ही रहेंगी। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इससे भी बदतर बन जाएॅगी। इस लिए इस विषय पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। तुमने कहा कि विधी का मामला जब सामने आया तब तुमने ऐसा क़दम उठाया। विधी के बारे में भी तुमने ही मुझे बताया था कि उसके साथ चार ऐसे लड़कों ने घिनौना कुकर्म किया था जो बड़े बाप की पैदाईश हैं। मैं ये कहना चाहती हूॅ कि ऐसे बड़े बाप की औलादों को यहाॅ लाकर और उनको सज़ा देने से कहीं तुम पर तो कोई ख़तरा नहीं आ जाएगा। आख़िर सवाल तो बड़े लोगों का है न। जिनके ये बच्चे हैं उन्हें अगर पता चल जाए कि उनके बच्चों को तुमने क्या और कैसे सज़ा दी है तो यकीनन वो बड़े लोग तुझ पर बिजली बन कर गिरेंगे।"

"फिक्र मत कीजिए बुआ।" रितू ने सहसा कठोर भाव से कहा___"मैंने उन सबका अच्छा खासा इंतजाम किया हुआ है। आप यूॅ समझिये कि उन बड़े बड़े खलीफाओं की जान मेरी मुट्ठी में कैद है। आज की डेट में वो सब ऐसी कठपुतलियाॅ बने हुए हैं जो सिर्फ मेरे ही इशारे पर नाचने के लिए मजबूर हैं। वो अपनी मर्ज़ी से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो मुझे पसंद ही न आए।"

"ऐसा तेरे पास उनके खिलाफ क्या है?" नैना ने चकित भाव से पूछा___"जिसकी वजह से वो सब बड़े बड़े सूरमा तेरे इशारों पर नाचने के लिए मजबूर बन गए हैं?"

नैना के पूछने पर रितू ने कुछ पल सोचा और फिर उसने वीडियो वाली सारी बात बता दी उसे। ये भी बताया कि उसने खुद मर्द की आवाज़ में फोन पर मंत्री से बात भी की थी और कल तो वो मंत्री की बिगड़ैल बेटी को भी पकड़ कर ले आई है जो इस वक्त तहखाने में बंद है। सारी बातें जानने के बाद नैना का मुह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।

"हे भगवान!।" फिर उसके मुख से निकला___"ये तू क्या कर रही है रितू? लड़कों की बात तक तो ठीक था और लड़कों के बापों तक भी ठीक था किन्तु लड़की को क्यों कैद कर किया तूने? ये ठीक नहीं है मेरी बच्ची। उन लोगों ने घृणित कर्म किया क्योंकि वो उनकी फितरत थी मगर तेरी फितरत तो ऐसी नहीं है न बेटा? इस लिए मेरी बात मान और मंत्री की बेटी को छोंड़ दे तू।"

"आपने बहुत दूर तक का सोच लिया बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"जबकि मेरा ऐसा करने का कोई इरादा ही नहीं है। मेरा मकसद तो बस ये है कि मैं उन्हें भी उस चीज़ का एहसास कराऊॅ जिस चीज़ को करने में उन्हें सबसे ज्यादा मज़ा आता है। मैं उन्हें दिखाना चाहती हूॅ बुआ कि जब वैसा ही सब कुछ अपने साथ होता है तब कैसा प्रतीत होता है? जब अपने ऊपर वैसा जुल्म होता है तो कितनी तक़लीफ़ होती है? हाॅ बुआ यही, बस यही एहसास कराना चाहती हूॅ मैं उन सबको।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" नैना ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"जो भी करना इस बात का ख़याल रखते हुए करना कि तुम एक अच्छे संस्कारों वाली लड़की हो जो किसी का भी बुरा नहीं कर सकती।"
"अच्छा अब आप आराम कीजिए बुआ।" रितू ने बेड से उतरते हुए कहा___"मैं ज़रा तहखाने में उन सबका हाल चाल देख लूॅ।"
"ठीक है जाओ।" नैना ने कहा और आराम से लेट गई।

रितू कमरे से निकल कर बाहर आ गई। उसने अपने आईफोन के बाईब्रेशन को महसूस किया था। वो समझ गई थी कि हरिया काका ने ही उसे मिस काल दिया था। मतलब साफ था कि उसने तहखाने की गंदगी को साफ कर दिया था। ख़ैर, कुछ ही देर में रितू तहखाने में पहुॅच गई। अब वहाॅ पर कोई गंध नहीं थी। बल्कि सबकुछ एकदम से साफ सुथरा हो गया था।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ!
इस वक्त मंत्री के सभी साथी ड्राइंगरूम में जमा हुए बैठे थे। सबके बीच ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। अभी थोड़ी देर पहले ही मंत्री दिवाकर चौधरी अपने आवास पर अपने साथियों के साथ आया था। दिवाकर चौधरी कल शाम से चिंतित व परेशान था। कल शाम को ही आया ने बताया था कि रचना बेटी जिम से नहीं लौटी है। चौधरी को पहले इस बात पर ज्यादा चिंता की बात नज़र नहीं आई थी। उसे लगा था कि रचना अपनी फ्रैण्ड्स के साथ होगी। किन्तु जब आधी रात गुज़र जाने पर भी रचना न आई तो चौधरी को चिंता सताने लगी। उसने रचना की जान पहचान वाली सभी लड़कियों को फोन लगा कर रचना के बारे में पूॅछा था। मगर सबने यही कहा कि रचना उनके पास नहीं है। एक लड़की ने बताया कि शाम को जिम से बाहर आते समय रचना उसके साथ ही थी किन्तु फिर वो अपनी स्कूटी लेकर घर के लिए निकल गई थी।

दिवाकर चौधरी को कल सारी रात नींद नहीं आई थी। अपनी बेटी के लौटने के इंतज़ार में वह जागता ही रहा था। मगर रात गुज़र गई और अब ये दूसरा दिन शुरू होकर दोपहर भी हो रही थी। फिर भी रचना के बारे में कोई ख़बर न मिली थी उसे। चौधरी के लिए चिंता वाली सबसे ज्यादा बात ये थी कि रचना का मोबाइल फोन कल से लगातार बंद बता रहा था। दिवाकर चौधरी को अब अपनी बेटी की बहुत ज्यादा चिंता सता रही थी। उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली थी मगर रचना को ढूॅढ़ पाने में वह नाकाम रहा था। दूसरी चिंता की बात ये थी कि उसका बेटा और बेटे के तीनों दोस्तों का भी कहीं कोई पता नहीं चल रहा था। ये सब बातें चौधरी की रातों की नींद उड़ाए हुई थी।

"बड़ी हैरत की बात है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"पहले हम अपने बच्चों के लिए चिंतित व परेशान थे। उसके बाद हम अपने लिए परेशान हो गए उन वीडियोज़ की वजह से और अब रचना बेटी के लिए परेशान हो गए हैं। पिछले कुछ समय से ये सब हमारे साथ क्या होने लगा है इसका अंदाज़ा भी है किसी को?"

"हमसे सबसे बड़ी ग़लती ये हुई कि हमने हर चीज़ को तुच्छ व ग़ैरमामूली समझा।" अशोक मेहरा ने कहा__"पर अब हमें गंभीरता से इस सबके बारे में सोचना पड़ेगा चौधरी साहब। हमें शुरू से हर घटना पर ग़ौर करना होगा। हमारे साथ राहू कुतू का ये चक्कर तब से शुरू हुआ जबसे हमारे बच्चों ने उस लड़की का रेप किया था। उस रेप के बाद से ही हमारे बच्चे गायब हुए हैं और अब तक हमें उनकी कोई खोज ख़बर नहीं लगी है। उसके बाद उस अंजान ब्यक्ति का हमें वो वीडियोज़ भेजना, साथ ही उसकी वो धमकी भरी बात। और अब रचना बेटी का अकस्मात गायब हो जाना। ये सारी घटनाएॅ इस बात की तरफ स्पष्ट रूप से इशारा करती हैं कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है। दूसरा कोई शख्स ऐसा करने का सोच भी नहीं सकता है।"

"मैं अशोक की इन बातों से पूरी तरह सहमत हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"ये सच है कि सारी घटनाओं का केन्द्र बिन्दु उस लड़की के रेप वाली वो घटना ही है। ऐसे मामलों में आम तौर पर वही होता है जो ऐसे हर रेपिस्ट के साथ होता है। यानी रेप पीड़िता के घरवाले पुलिस में एफआईआर दर्ज़ करवाते हैं और अदालत से इंसाफ की गुहार लगाते हैं। हलाॅकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि कोई भी शरीफ ब्यक्ति अपनी बदनामी नहीं कराना चाहता इस लिए केस को रफा दफा करवा लेता है किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदनामी से नहीं डरते और इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा पार कर जाते हैं। मगर हैरत की बात है कि जिस लड़की के साथ हमारे बच्चों ने रेप किया उस पर किसी ने कोई ऐक्शन ही नहीं लिया। जबकि कानून के ही डर से हमारे बच्चे शायद कहीं छुप गए और आज तक लौट कर घर नहीं आए। दूसरी बात ये कि हमने भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि रेप के बाद उस लड़की का क्या हुआ? जबकि हमें ऐसे मामले की पल पल की ख़बर रखनी चाहिए थी। आज उस घटना को घटे क़रीब क़रीब दो हप्ते हो गए होंगे।"

"ये सच है कि हमने हर चीज़ को मामूली ही नहीं समझा बल्कि उसे नज़रअंदाज़ भी किया।" दिवाकर चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने को मिल रहा है। मगर, अब भी शायद कुछ नहीं बिगड़ा है। हमें इस मामले में अपनी तरफ से जाॅच पड़ताल करनी चाहिए। सबसे ज्यादा उस लड़की के बारे में, क्योंकि घटनाओं का सिलहिला उस रेप से ही शुरू हुआ है। संभव है कि हमें कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे हमें सारी बातों का पता चल जाए। हलाॅकि हमने उस दिन पुलिस कमिश्नर से फोन पर पूॅछा था कि हमारे बच्चों के लापता होने में अगर पुलिस का हाॅथ हुआ तो अच्छा नहीं होगा। इस पर कमिश्नर ने साफ साफ कहा था कि हमारे बच्चों पर कानून का हाॅथ तभी पड़ सकता था जबकि रेप पीड़िता के घरवालों ने थाने में एफआईआर दर्ज़ करवाया होता। इस लिए जब ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है तो हमारे बच्चों पर कानून कोई कार्यवाही कैसे कर देगा? इस लिए ये तो साफ है कि हमारे बच्चों के गायब होने में नुलिस या कानून का कोई हाॅथ नहीं है। मगर बच्चे गायब हैं ये सच बात है। इस लिए अब इसका पता लगाना बेहद ज़रूरी है कि ये सब किसने किया है हमारे बच्चों के साथ? दूसरा मामला वो वीडियो भेजने वाला है। वीडियो भेजने वाले ने उस दिन फोन पर स्पष्ट कहा था कि उसके पास हमारे खिलाफ ऐसे ऐसे सबूत हैं जिनके बेस पर वो हमें जब चाहे बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। उसकी इस बात पर हमने ये निष्कर्श निकाला था कि संभव है कि उसी ने हमारे बच्चों को पकड़ा हो और फिर उन्हें टार्चर करके उनसे हमारे खिलाफ़ उन वीडियो के रूप में सबूत प्राप्त किया होगा।"

"फिर तो ये साबित हो गया चौधरी साहब कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है।" अशोक मेहरा बीच में बोल पड़ा___"आपकी बातों में यकीनन ठोस सच्चाई है। यकीनन हमारे बच्चे उस वीडियों भेजना वाले के पास ही हैं। इस बात से ये भी सोचा जा सकता है कि रचना बेटी को भी उसी ने किडनैप किया होगा।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"अभी तक हमें वस्तुस्थित का ज़रा भी एहसास नहीं था किन्तु अब हो रहा है और समझ में भी आ रहा है कि वोडियो भेजने वाला हमसे चाहता क्या है?"

"क्या चाहता है वह??" दिवाकर चौधरी फिरकिनी की मानिंद अवधेश की तरफ घूम कर पूछा था।
"हो सकता है कि इन मामलों के तहत उस वीडियो भेजने वाले के संबंध में जो थ्यौरी मेरे दिमाग़ में बनी है वो ग़लत भी हो।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"किन्तु फिर भी प्रकट कर रहा हूॅ। बात उस लड़की के रेप से ही शुरू हुई। रेप पीड़िता के घरवालों को जब इस बात का पता चला होगा कि रेप करने वाले लड़के बड़े बाप की औलाद हैं तो वो समझ गए कि पुलिस में एफआईआर दर्ज़ कराने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि बड़े लोगों के प्रभाव से सीघ्र ही इस केस को इतना कमज़ोर बना दिया जाएगा कि उसमें कोई दम नहीं रह जाएगा। बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उल्टा लड़की को ही कोर्ट में चरित्रहीन और बदचलन साबित कर दिया जाए। उस सूरत में इंसाफ तो मिलने से रहा ही ऊपर से समाज के बीच उनकी जो इज्ज़त खाक़ में मिलेगी उसकी भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं हो सकती थी। इस लिए लड़की के घरवालों ने अपनी बेटी के साथ हुए रेप का बदला लेने के लिए दूसरा तरीका अपनाया। दूसरा तरीका ये था कि किसी तरह वो हमारे बच्चों को पकड़ लें और फिर अपने तरीके से जो चाहे सज़ा दें उन्हें। अब तक वो इसी लिए अपने हर काम में सफल रहे क्योंकि हमने इन सब चीज़ों की तरफ ध्यान ही न दिया था। ध्यान तो तब आया जब मामला हमारे हाॅथ से निकल गया। हाॅ चौधरी साहब, मामला हमारे हाॅथ से निकल ही तो गया है। क्योंकि उस ब्यक्ति के पास हमारे खिलाफ जो सबूत है वो हमें किसी भी पल बीच चौराहे पर नंगा होकर दौड़ने पर मजबूर कर देगा।"

"तो तुम्हारे हिसाब से ये सब लड़की के घरवालों ने किया है?" चौधरी ने कहा___"मतलब कि उन लोगों ने हमारे बच्चों को पकड़ा और उनसे हमारे खिलाफ़ सबूत भी प्राप्त कर लिए?"
"जी बिलकुल।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"आप खुद सोचिए कि ऐसा करने की उनके सिवा भला किसके पास वजह थी? ये तो एक यथार्थ सच्चाई है न चौधरी साहब कि बेवजह कभी कुछ नहीं होता है। इस लिए ये सब करने की वजह सिर्फ और सिर्फ रेप पीड़िता के घरवालों के पास थी। दूसरा ब्यक्ति ऐसा करने का शौक तो नहीं रख सकता न?"

"चलो मान लिया कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों ने किया है।" चौधरी ने कहा___"किन्तु सवाल ये है कि उन्हें हमारी बेटी को भी किडनैप या पकड़ने की क्या ज़रूरत थी? हमारी बेटी ने तो कोई गुनाह नहीं किया था न? फिर क्यों उसे पकड़ा उन्होंने?"

"संभव है कि रचना बेटी के ज़रिये।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"वो हमें ये एहसास दिलाना चाहते हों कि जब वैसा ही रेप केस हमारे साथ हो तो हमें कैसा लगेगा? हमें उससे कितनी तक़लीफ़ होगी?"

अवधेश श्रीवास्तव के इस तर्क से दिवाकर चौधरी कुछ बोल न सका। जैसे निरुत्तर हो गया था वह या फिर कदाचित उसे बात समझ में आ गई थी कि अवधेश का तर्क बिलकुल सही था। ख़ैर, अवधेश श्रीवास्तव की उस बात से कुछ देर सन्नाटा छाया रहा।

"तो अब क्या किया जाए?" सहसा अशोक मेहरा ने उस सन्नाटे को चीरते हुए कहा___"अगर हम सही लाइन पर हैं तो हमारा अगला क़दम अब क्या होना चाहिए?"
"बड़ा सीधा व सरल जवाब है अशोक।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारा अगला क़दम ये होना चाहिए कि हमें जल्द से जल्द उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों को धर लेना चाहिए। उसके बाद खुद ही हम अपने तरीके से उनका क्रिया कर्म करेंगे।"

"तुम तो ऐसे कह रहे हो अवधेश जैसे कि ये सब वैसा ही आसान काम हो जैसे थाली से दाल चावल का निवाला बना कर उसे खा लेना आसान होता है।" अशोक ने कहा___"जबकि हमें इस बात पर भी ज़रा ग़ौर कर लेना चाहिए कि जिस ब्यक्ति को हम धर लेने के लिए अपने क़दम बढ़ाने जा रहे हैं उसने क्या इस सबके बारे में नहीं सोचा होगा? बल्कि ज़रूर सोचा होगा भाई, उसे भी इस बात का अच्छी तरह से पता है कि हम क्या चीज़ हैं। अगर वो हमारे बच्चों को धर लेगा तो सबसे पहले हमारा शक़ उसी पर ही जाएगा। उस सूरत में हम उसकी उस धृष्टता के लिए उसका क्या हस्र करेंगे ये बात भी उसने ज़रूर सोची होगी। अब सोचने वाली बात ये है कि जब उसने ये सब सोचा होगा तो अपने बचाव का कोई न कोई रास्ता भी सोचा होगा। ऐसे ही तो नहीं कोई साॅप के बिल में अपना हाॅथ डाल देता है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में दम है।" अवधेश श्रीवास्तव ने जैसे स्वीकार किया__"और उसके जिस बचाव वाले रास्ते की तुम बात कर रहे हो वो यकीनन यही हो सकता है कि आज की डेट में उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत के रूप में वो वीडियो रूपी ब्रम्हास्र है।"

"बिलकुल ठीक समझे।" अशोक ने कहा__"इस लिए अब हम अगर कोई क़दम भी उठाएॅ तो ज़रा सोच समझ कर उठाएॅ। क्योंकि अगर उसे पता चल गया कि हम उसके खिलाफ़ कुछ करने जा रहे हैं तो संभव है कि अगले ही पल वो हम पर क़यामत बरपा दे।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि हम कुछ कर ही नहीं सकते।" सहसा चौधरी आवेश में कह उठा__"उस साले ने हमें पंगु बना कर रख दिया है। मगर ऐसा कब तक चलेगा यार? हमें कुछ तो करना ही पड़ेगा न? वरना वो दिन दूर नहीं जबकि हम चारों किसी चौराहे पर नंगे दौड़ लगा रहे होंगे।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नुकसान तो दोनो तरफ से होना ही है। इस लिए कुछ करके ही नुकसान झेलते हैं। शायद ऐसा भी हो जाए कि सारा खेल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तुमने।" चौधरी ने कहा___"मगर सवाल ये है कि हम करेंगे क्या?"

"वही जो करने का सजेशन थोड़ी देर पहले अवधेश भाई ने दिया था।" अशोक ने कहा___"मगर उसमें थोड़ा चेंज करना पड़ेगा। वो ये कि लड़की के घरवालों को पहले हम दिलेरी से धरने जा रहे थे जबकि अब वही काम हम इस तरीके से करने की कोशिश करेंगे कि उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अवधेश श्रीवास्तव बोला__"मगर मुझे लगता है कि हमें एक बार ये सब करने से पहले फिर से इस बारे में सोच लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम खुद ही धर लिए जाएॅ।"
"कायर व डरपोंक जैसी बातें मत करो अवधेश।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब हम चुप भी नहीं बैटना चाहते हैं। साला हिंजड़ा बना कर रख दिया है उसने हमें। मगर अब और नहीं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे फैंसला सुना दिया था। किसी में भी इस फैंसले के खिलाफ़ जाने की हिम्मत न थी। इस लिए अब इस काम को अंजाम देने की समय सीमा पर विचार विमर्ष किया गया और उसके बाद अशोक और अवधेश अपने अपने घर चले गए। मगर आगे किसके साथ क्या होने वाला है ये किसी को कुछ पता न था।
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