non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:52 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
तहखाने के अंदर का नज़ारा ही कुछ अलग था जिसे मैं ऑखें फाड़े अपलक देखे जा रहा था। कुछ देर के लिए तो जैसे मेरा दिमाग़ ही कुंद पड़ गया था। तहखाने के अंदर चारो तरफ छत पर लगे सफेद एल ई डी बल्बों की तीब्र रोशनी थी। अंदर मौजूद एक एक चीज़ स्पष्ट देखी जा सकती थी। किन्तु मेरी ऑखें जिस नज़ारे को देख कर हैरत से फट गई थी वो कुछ अलग ही किस्म का था। राइट साइड की दीवार से सटे हुए चार लड़के थे। उन चारों लड़कों के दोनो हाॅथ मजबूत रस्सी से बॅधे हुए जो कि ऊपर ही उठे हुए थे। चारों लड़कों जिस्म पर इस वक्त कपड़े का कोई रेसा तक न था बल्कि वो चारो जन्मजात नंगे थे। उन चारों की शक्ल सूरत से ही पता चल रहा था कि उन चारों ने यहाॅ कितनी दर्दनाक यातनाएॅ सही होंगी।

बाहर से तहखाने में आया हुआ वो आदमी भी इस वक्त पूरी तरह नंगा था और उन चारों में से एक लड़के को उसके सिर के बालों से मजबूती से पकड़ कर अपने लंड पर झुकाया हुआ था। मैं साफ देख रहा था कि वो आदमी उस लड़के के मुख में अपने लंड को ज़बरदस्ती डाले अपनी कमर को आगे पीछे कर रहा था। उसका सिर ऊपर की तरफ था और उसकी दोनो ऑखें मज़े में बंद थी।

ये सब देख कर मेरा दिमाग़ कुछ देर के लिए हैंग सा हो गया था। फिर जैसे मुझे होश आया। मेरे अंदर क्रोध और गुस्से की आग बिजली की सी तेज़ी से बढ़ती चली गई। मेरे जबड़े कस गए और मुट्ठिया भिंच गई। मैं तेज़ी से बढ़ते हुए उस आदमी के पास पहुॅचा और अपनी पूरी शक्ति से एक लात उसके बाजू में जड़ दी। परिणामस्वरूप वो आदमी उछलते हुए पीछे की दीवार से टकराया और फिर भरभरा कर नीचे तहखाने के पक्के फर्स पर गिरा। उसके हलक से दर्द में डूबी हुई चीख़ निकल गई थी।

फर्स पड़ा वो आदमी बुरी तरह कराहने लगा था। उसकी दोनो टाॅगें आपस में जुड़ कर मुड़ गई थी और उसके दोनो हाॅथ उसकी टाॅगों के बीच उसके प्राइवेट पार्ट पर थे। मुझे समझते देर नहीं लगी कि अचानक हुए इस हमले से उसका जो प्राइवेट पार्ट उस लड़के के मुख में था वो झटके से निकल गया था और झटके से निकलने से शायद उसके प्राइवेट पार्ट में उस लड़के के दाॅत गड़ गए होंगे या फिर दाॅतों से उसका लंड छिल गया होगा।

इधर अचानक हुए इस हमले से वो लड़का भी फर्स पर लुढ़क कर गिर गया था, और बाॅकी के तीन लड़के जो दीवार से सटे रस्सियों में बॅधे खड़े थे वो इस सबसे बुरी तरह घबरा गए थे। मेरे अंदर गुस्से की आग धधक रही थी इस लिए उस आदमी को एक लात जड़ने के बाद मैं उसकी तरफ बढ़ा और झुक कर उसके सिर के बालों को पकड़ कर उसे झटके से उठा लिया। वो आदमी फिर से दर्द में कराह उठा। अभी वो सम्हला भी नहीं था कि मैने एक पंच उसके चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो फिर से उछलते हुए दूर जाकर गिरा। मैने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि मैंने तो उसकी धुनाई में कोई कसर ही नहीं छोंड़ी। वो खुद भी अपने हाथ पैर चला रहा था मगर उसकी मेरे सामने एक नहीं चल रही थी। कुछ ही देर में वो अधमरी हालत में पहुॅच गया था। जब मैने देखा कि वो फर्स पर पड़ा अब हिल डुल भी नहीं रहा है तो मैने उसे मारना बंद कर दिया।

मुझे उस पर इस लिए इतना गुस्सा आया हुआ था कि वो उस लड़के के साथ ज़बरदस्ती इतना घिनौना काम कर रहा था। मैं ये भी समझ चुका था कि वो ये काम उस लड़के के अलावा बाॅकी उन तीनों के साथ भी करता होगा। बस इसी बात पर मुझे उसके ऊपर इतना गुस्सा आया था और मैने उसे मारते मारते अधमरा कर दिया था।

उस आदमी के शान्त पड़ने के बाद मैने अपने गुस्से को काबू करने की कोशिश की और फिर तेज़ी से पलटा। मेरी नज़र फर्श पर गिरे उस लड़के पर पड़ी जिसके साथ वो आदमी वो घिनौना काम कर रहा था। मैने देखा कि वो लड़का बुरी तरह डर से काॅप रहा था। मुझे उस पर बड़ा तरस आया और उसकी हालत देख कर उस आदमी पर फिर से गुस्सा आ गया। मगर मैने अपने गुस्से को काबू किया और उस लड़के के पास उकड़ू होकर बैठ गया।

"कौन है ये आदमी?" मैने उस लड़के से पूॅछा___"और वो तुम्हारे साथ इतना घिनौना काम क्यों कर रहा था? मुझे सब कुछ साफ साफ बताओ।"

वो लड़का मेरी ये बात सुन कर कुछ न बोला बल्कि डरी सहमी हुई ऑखों से देखते रहा मुझे। मैं समझ गया कि इन चारों को उस आदमी ने इतना डरा दिया है कि ये लोग अपनी ज़ुबान तक नहीं खोल पा रहे हैं। इस बात पर मुझे उस आदमी पर फिर से बड़ा तेज़ गुस्सा आ गया। मैने अपनी ऑखें बंद कर अपने गुस्से को शान्त किया।

"देखो अब तुम्हें किसी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है समझे?" मैने उससे ज़रा अपनापन दिखाते हुए कहा__"तुम मुझे सब कुछ साफ साफ बताओ कि ये आदमी तुम लोगों के साथ ये सब क्यों कर रहा था और तुम लोग इस तहखाने में कब से कैद हो?"

"प् प्लीज़ हमें बचा लीजिए।" सहसा उस लड़के की ऑखों से ऑसू छलछला आए और वो बुरी तरह रोते हुए बोल पड़ा___"हमें इस नर्क से निकाल दीजिए। इस आदमी ने हम चारो को बहुत बुरी तरह से टार्चर किया है। ये हर रोज़ दिन में चार बार आता है और हमारे साथ यही सब घिनौना काम करके चला जाता है। हम चारो इससे अपने किये की लाखों दफा मुआफ़ी माॅग चुके हैं मगर फिर भी ये आदमी हमारे साथ ये सुलूक करता है। प्लीज़ हमे इस आदमी से बचा लीजिए। हमें यहाॅ से निकाल कर हमें हमारे घर जाने दीजिए। हम आपके पैर पकड़ते हैं, प्लीज़ प्लीज़।"

उस लड़के का ये रुदन देख कर मैं अंदर तक काॅप गया। मैं इस बात की कल्पना कर सकता था कि इन चारों के साथ किस हद तक उस आदमी ने अत्याचार किया होगा। किन्तु सहसा मेरे मन में सवाल उभरा कि वो आदमी इन लोगों के साथ ये सब किस वजह से कर रहा है? जबकि ये फार्महाउस उसका नहीं बल्कि रितू दीदी का है? क्या रितू दीदी को इस सबका पता है? या फिर ये सब उनकी जानकारी में ही हो रहा है? नहीं नहीं, रितू दीदी ऐसे घिनौने काम का सोच भी नहीं सकती हैं। तो फिर उनके फार्महाउस के तहखाने में ये सब कैसे हो सकता है? मेरे मन में हज़ारों सवाल एक साथ आकर खड़े हो गए। मगर जवाब किसी का भी नहीं था मेरे पास।

"मैने तुमसे जो कुछ पूछा है उसका सही सही जवाब दो पहले।" मैने उस लड़के से कहा___"आख़िर किस वजह से ये सब तुम लोगों के साथ कर रहा है वो आदमी? तुम सब कुछ मुझे साफ साफ बताओ। और हाॅ किसी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुमने देखा है न कि मैने कैसे उस आदमी का दो मिनट में काम तमाम कर दिया है? इस लिए तुम अब बेफिक्र रहो कि कोई तुम पर अब दुबारा ऐसा कर सकेगा। मैं तुम्हें यहाॅ से निकाल कर तुम लोगों को घर भी भेजवा दूॅगा। मगर उससे पहले तुम मुझे बताओ कि ये सब क्यों हो रहा है तुम लोगों साथ? ऐसा क्या अपराध किया है तुम लोगों ने? और अगर ये सब तुम लोगों के साथ बेवजह ही हो रहा है तो यकीन मानो मैं अपने हाॅथों से इस आदमी को मौत दूॅगा। चलो अब बताओ सारी बात।"

"ये सच है कि हम चारों ने एक साथ बराबर का अपराध किया था।" उस लड़के ने नज़रें झुका कर कहना शुरू किया___"मगर, उस अपराध के लिए हमें कानूनी तरीके से सज़ा भी तो दिलवाई जा सकती थी, मगर इन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया। बल्कि हम चारों को पकड़ कर यहाॅ ले आए और फिर हर रोज़ हमारे साथ ये घिनौना काम करते रहे। हमने इन लोगों से अपने किये की लाखों दफा मुआफ़ी माॅगी। ये तक कहा कि आप हमें गोली मार कर खत्म कर दो उस अपराध के लिए मगर ये लोग हमारी कोई भी बात नहीं माने और हमारे साथ यही सब करते रहे।"

"ओह आई सी।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"लेकिन तुम लोगों ने आख़िर किस तरह का अपराध किया था जिसकी कीमत तुम लोगों को इस रूप में चुकानी पड़ रही है? और तुमने अभी ये कहा कि "इन लोगों ने" मतलब इस आदमी के अलावा भी कोई है जो तुम लोगों के साथ ये सब कर रहा है? कौन कौन हैं इस आदमी के साथ बताओ मुझे?"

"एक लड़की है।" उस लड़के ने कहा___"उसका नाम रितू है और वो पुलिस में इंस्पेक्टर है। वहीं हम चारों को पकड़ कर यहाॅ लाई थी। उसके बाद उसने इस आदमी को हमारी ख़ातिरदारी करने का काम दे दिया था। बस उसके बाद से ही ये आदमी हमारी ख़ातिरदारी के रूप में हमारे साथ ये सब कर रहा है।"

मैं उसके मुख से रितू दीदी का नाम सुन कर मन ही मन बुरी तरह उछल पड़ा था। मुझे समझ न आया कि रितू दीदी ने इन लोगों को किस लिए पकड़ा होगा और फिर पकड़ कर यहाॅ लाया होगा? अपने आदमी को इन लोगों की ख़ातिरदारी करने का काम सौंप दिया। इसका मतलब रितू दीदी को भी ये पता नहीं होगा कि उनका ये आदमी इन लोगों की कैसी ख़ातिरदारी करता है? मुझे यकीन था कि मुजरिम को सज़ा देने के लिए रितू दीदी भले ही कानून की थर्ड डिग्री का स्तेमाल कर लेतीं मगर ऐसा घिनौना काम करने को अपने आदमी से किसी सूरत में न कहती। अरे कहने की तो बात ही दूर वो तो इस बारे में सोचती ही नहीं। मतलब साफ है कि ख़ातिरदारी की आड़ में ये घिनौना काम दीदी का ये आदमी अपनी मर्ज़ी से ही कर रहा है, जिसका दीदी को पता ही नहीं है। अब सवाल ये था कि इन लड़कों ने ऐसा कौन सा जघन्य अपराध किया था जिसकी वजह से रितू दीदी इन लोगों को कानूनन सज़ा दिलाने की बजाय यहाॅ अपने फार्महाउस के तहखाने में लाकर बंद कर दिया था?

"यकीनन तुम लोगों के साथ बहुत बुरा हुआ है।" फिर मैने उससे कहा___"उस इंस्पेक्टर को ऐसा नहीं करना चाहिये था। उसे तो तुम लोगो को कानून के सामने लेकर जाना चाहिए था। ख़ैर, अब तुम बेफिक्र हो जाओ। ये बताओ कि तुम लोगों एक साथ ऐसा कौन सा अपराध किया था?"

"वो वो हम चारों ने एक साथ एक लड़की की इज्ज़त लूटी थी।" उस लड़के ने नज़रें चुराते हुए कहा___"और फिर उसे शहर के बाहर ऐसे ही अधमरी हालत में फेंक आए थे।"
"क्या?????" उसकी ये बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका___"तुम लोगों ने किसी लड़की की इज्ज़त लूटी थी? वो भी इस तरीके से कि उसे बाद में अधमरी हालत में कहीं फेंक भी आए? ये तो सच में तुम लोगों ने बहुत बड़ा अपराध किया है। ख़ैर, उसके बाद क्या हुआ था? मेरा मतलब कि तुम लोग उस इंस्पेक्टर रितू के द्वारा पकड़े कैसे गए?"

"तीसरे दिन हम चारो दोस्त अपने फार्महाउस पर मौज मस्ती कर रहे थे।" उस लड़के ने कहा___"तभी वो इंस्पेक्टर हमारे उस फार्महाउस पर आ धमकी थी। उसने हम चारों को पहले वहीं पर खूब मारा उसके बाद हम चारों को अपनी जीप में डाल कर यहाॅ ले आई तब से हम यहीं हैं और इस आदमी के द्वारा यातनाएं झेल रहे हैं। प्लीज़ हमें यहाॅ से निकाल लो भाई, हम जीवन भर तुम्हारी गुलामी करेंगे।"

"उस लड़की का क्या हुआ?" मैने उसकी अंतिम बात पर ध्यान न दिया___"जिसकी तुम चारों ने इज्ज़त लूटी थी?"
"इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं है।" उस लड़के ने असहाय भाव से कहा___"हमने उसे उस दिन से देखा ही नहीं है और ना ही किसी ने हमें उसके बारे में बताया।"

"क्या तुम्हें इस बात का एहसास है कि जिस लड़की की तुम लोगों ने इज्ज़त लूटी है?" मैने ज़रा शख्त भाव से कहा___"उस पर क्या गुज़र रही होगी? उसके माॅ बाप पर क्या गुज़र रही होगी? अपनी हवस के लिए तुम लोगों ने किसी की लड़की का जीवन बरबाद कर दिया। तुम लोगों को तो सीधा फाॅसी पर लटका देना चाहिए।"

"हम सबको फाॅसी की सज़ा मंज़ूर है भाई।" उस लड़के ने कहा___"हमें इस बात का एहसास हो चुका है कि हमसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है। जब से जवानी की देहलीज़ पर हमने क़दम रखा था तब से किसी न किसी लड़की का जीवन हमने बरबाद ही तो किया है। इस लिए भाई फाॅसी से भी बढ़ कर अगर कोई सज़ा है तो हम चारों को वो सज़ा भी मंजूर है।"

"बहुत खूब।" मैने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"ऐसी बातें अपराध करते वक्त मन में क्यों नहीं आती हैं? ये तब क्यों समझ में आती हैं जब मौत सिर पर आकर खड़ी हो जाती है या फिर जब वैसा ही कुकर्म खुद के साथ हुआ करता है? ख़ैर, ये बताओ कि ये एहसास अब क्या इस लिये हुआ है कि खुद पर जब वैसा ही गुज़रने लगा या फिर सच में लगता है कि हाॅ तुम लोगों ने ग़लत किया था उस लड़की के साथ?"

"ये तो सच बात है भाई कि इंसान को कोई बात तभी समझ में आती है जब उसे ठोकर लगती है।" उस लड़के ने कहा___"ये बात मुझ पर भी लागू होती है। मगर मुझे इस बात का अब गहरा दुख हो रहा है भाई कि मैने उस लड़की के साथ इतना बड़ा नीच काम किया था। प्यार मोहब्बत दोस्ती ये सब कितनी खूबसूरत चीज़ें हैं जिनके लिए और जिनके आधार पर इंसान कितना कुछ कर जाता है। अगर विश्वास हो तो कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कहीं भी आ जा सकता है या फिर वो आपके भरोसे आपके ऊपर कितनी ही बड़ी जिम्मेदारी सौंप देता है। मगर ये छल कपट और ये धोखा कितनी ख़राब चीज़ें हैं जो प्यार मोहब्बत दोस्ती, और भरोसा आदि सबको नस्ट कर देता है।"

"वाह तुम तो यार किसी बहुत बड़े उपदेशक की तरह बड़ी बड़ी बातें करने लगे।" मैने सहसा ब्यंगात्मक भाव से कहा___"काश! ये सब बड़ी बड़ी बातें तब भी तुम करते और समझते जब तुम किसी लड़की का जीवन नष्ट कर रहे थे। कम से कम इससे तुम दोनो का भला तो होता। वैसे प्यार मोहब्बत दोस्ती और भरोसा जैसी बातें तुम्हारे मन में कैसे आ गईं? क्या तुमने इन्हीं के आधार पर उस लड़की का जीवन बरबाद किया है?"

"बिलकुल सही कहा भाई।" उस लड़के ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"मेरे जीवन में लड़कियाॅ तो बहुत आईं थी जिनके साथ मैने अपने इन तीनों दोस्तों के साथ मौज मस्ती की थी। वो सब लड़कियाॅ मेरे पैसों के लालच में अपना सब कुछ खोल कर हमारे सामने बेड पर लेट जाती थीं मगर इस लड़की में बात ही कुछ खास थी। ये एक ऐसे लड़के से बेपनाह प्यार करती थी जिसका नाम विराज था, विराज सिंह बघेल। मैं भी इससे प्यार करता था पर कभी कह न सका था इससे। हलाॅकि दोस्ती के रिश्ते से हमारी हैलो हाय हो जाती थी। एक दिन जाने क्या हुआ इसे कि ये मुझे लेकर उस विराज के पास गई और उससे दो टूट भाव से कह दिया कि वो उससे प्यार नहीं करती थी बल्कि उसकी दौलत से प्यार करती थी। और अब जबकि वो कंगाल हो चुका है तो उसका उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसकी इस बात से मन ही मन हैरान तो था मगर खुश भी हुआ कि चलो अब तो ये मेरे पास ही आएगी। वही हुआ भी। वो अपने एक्स ब्वायफ्रैण्ड को छोंड़ कर मेरे साथ ही कालेज में रहने लगी। मगर मुझे जल्द ही पता चल गया कि ये मेरे साथ रहते हुए भी मेरे साथ नहीं है। मैं अक्सर देखता था कि वो अकेले में बेहद उदास और दुखी रहती थी। मुझे लगा कि ये कहीं फिर से न उस विराज के पास लौट जाए, इस लिए मैने इसे अपने साथ हमेशा के लिए रखने का सोच लिया। मेरे ये तीनो दोस्त बार बार मुझसे कहते कि प्यार व्यार का चक्कर छोंड़ बस मज़े ले और हमें भी मज़ा करवा। मैने भी सोचा कि यार ऐसे प्यार का क्या मतलब जो अपना है ही नहीं। बस उसके बाद मैने वही किया जो अब तक दूसरी अन्य लड़कियों के साथ किया था। अपनी बर्थडे वाली शाम मैने इसे भी इन्वाइट किया था। जब ये उस शाम मेरे फार्महाउस पर आई तो मैने इसको कोल्ड ड्रिंक का वो ग्लास प्यार हे दिया जिस ग्लास में मैने नींद की दवा मिलाई हुई थी। कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही वो नीद के नशे में झूमने लगी। मैने सबकी नज़र बचा कर उसे अपने कमरे में ले गया और उस कमरे में मैने उसके सारे कपड़े उतार कर उसकी इज्ज़त से खूब खेला। मेरा एक दोस्त इस सबकी वीडियो भी बना रहा था। बस उसके बाद तो उसे अपनी ही बने रहना था, इस लिए वो बनी रही और हम जब भी उसे बुलाते तो उसे आना पड़ता और हम सबको खुश रखना पड़ता उसे। यही सब चलता रहा मगर कुछ दिन पहले की बात है। मैने उसे फिर से अपने बर्थडे पर इन्वाइट किया मगर उसने आने से इंकार कर दिया। कहने लगी कि उसकी तबीयत ख़राब है। मैं समझ गया कि वो बहाने बना रही है न आने का। इस लिए मैने उसे फिर से वीडियो को उसके डैड के पास भेज देने की धमकी दी। मेरी इस धमकी से उसे मेरे फार्महाउस पर आना पड़ा। उस दिन भी मैंने अपने इन तीनो दोस्तों के साथ मिल कर उसके साथ सेक्स किया और और उसी हालत में सो गए थे। रात के लगभग तीन या चार बजे के करीब मेरी ऑख खुली तो देखा कि विधी की हालत बहुत ख़राब थी। उसके प्राइवेट पार्ट से ब्लड निकला हुआ था और उसके मुख से भी। ये देख कर मैं बहुत ज्यादा घबरा गया। मुझे लगा कहीं ये मर न जाए। मगर उसे उस हालत में लेकर हम भला उतने समय कहाॅ जाते। इस लिए मैने अपने इन दोस्तो को जगाया और इन लोगों को भी विधी की हालत के बारे में बताया। ये तीनो भी विधी की वो हालत देख कर घबरा गए थे। फिर हम चारों ने सोच विचार करके फैंसला लिया कि इसे कहीं छोंड़ आते हैं। इस फैंसले के साथ ही हम चारों ने विधी को किसी तरह कपड़े पहनाए और उसे उसी हालत में उठा कर बाहर खड़ी अपनी कार की डिक्की में डाल दिया। उसके बाद हम चारो उस तरफ चल पड़े जिस तरफ पिछले कुछ साल पहले ही एक नये हाइवे का निर्माण हुआ था। रात के उस सन्नाटे में किसी के भी द्वारा देख लिए जाने का कोई ख़तरा नहीं था। हाइवे में पहुॅच कर हमने कुछ दूरी पर सड़क के किनारे झाड़ियों के पास ही विधी को डिक्की से निकाल कर चुपचाप लिटा दिया और फिर हम चारों वहाॅ से वापस फार्महाउस आ गए। उसके बाद क्या हुआ इसका हमें आज तक कुछ भी पता नहीं है।"

"क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूॅ?" उसकी बात सुनने के बाद मैने सहसा कठोर भाव से उससे पूछा___"ठीक से देखो मुझे। मेरा दावा है कि तुम मुझे ज़रूर पहचान जाओगे कि मैं कौन हूॅ?"

मेरी इस बात को सुन कर वो लड़का जो कि वास्तव में सूरज चौधरी ही था मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। उसके चेहरे पर पहले तो उलझन के भाव उभरे थे किन्तु जल्द ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे और फिर एकाएक ही आश्चर्य से मेरी तरफ ऑखें फाड़े देखने लगा। पल भर में उसका चहेरा डर और दहशत से पीला ज़र्द पड़ता चला गया। वह एकदम से ही जूड़ी के मरीज़ की तरह काॅपने लगा था।

"क्या हुआ सूरज चौधरी?" मेरे मुख से एकाएक शेर की सी गुर्राहट निकली___"पहचाना मुझे या मैं खुद अपने तरीके से बताऊॅ तुझे कि मैं कौन हूॅ??"
"वि...वि...विराऽज।" सूरज चौधरी के मुख से दहशत में डूबा स्वर निकला___"तुम वि..विराज हो। वही विराज जिसे वो विधी बेपनाह मोहब्बत करती थी।"

"और जिसके साथ तूने इतना बड़ा वहशियाना कुकर्म किया है।" मैंने गुस्से में आग बबूला होते ही उसे उसके सिर के बालों से पकड़ कर उठा लिया और फिर पीछे से उसकी गर्दन में अपने दोनो हाॅथ जमाते हुए मैने पूरी ताकत से झटका दिया। सूरज चौधरी के हलक से हृदय विदारक चीख निकल गई। दीवार पर कुंडे में बॅधी रस्सी एक झटके में ही टूट गई थी और इधर झटका लगते ही सूरज के दोनो हाॅथों में वो रस्सी गड़ सी गई थी।

"हरामज़ादे।" मैंने कहने के साथ ही सूरज को अपने सिर के ऊपर तक उठा लिया और पूरी ताकत से सामने की दीवार की तरफ उछाल दिया, फिर बोला___"तूने मेरी विधी के साथ इतना घिनौना कुकर्म किया। नहीं छोंड़ूॅगा तुझे....तुम चारों को एक एक करके ऐसी भयावह मौत दूॅगा कि उसे देख कर ये ज़मीन और वो आसमां तक थर्रा जाएॅगे।"

उधर दीवार से टकरा कर सूरज नीचे फर्श पर मुह के बल गिरा। गिरते ही उसके मुख से दर्द भरी चीख निकल गई। उसके दोनो हाथ अभी भी रस्सी से बॅधे हुए थे इस लिए वो सहारे के लिए अपने हाॅथ आगे या इधर उधर नहीं कर सकता था। इधर सूरज का ये हाल देख कर बाॅकी तीनों लड़कों के देवता कूच कर गए। वो मेरी तरफ बुरी तरह घबराए हुए से देखने लगे थे।

आगे बढ़ कर मैने सूरज के सिर के बाल पकड़ कर उसे उठाया और कहा___"तेरी कहानी सुनने से पहले मुझे लग रहा था कि तेरे साथ वो आदमी बहुत ग़लत कर रहा था मगर अब समझ में आया कि वो कितना अच्छा कर रहा था। तू जिस इंस्पेक्टर रितू की बात कर रहा था न वो मेरी बड़ी बहन है। मैं सब कुछ समझ गया अब कि तेरे यहाॅ होने का असल माज़रा क्या था?"

कहने के साथ ही मैने सूरज के पेट में अपने घुटने का ज़बरदस्त वार किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया। उसके झुकते ही मैने उसकी पीठ पर दुहत्थड़ जड़ दिया, जिससे वो फर्श पर मुह के बल गिरा। नीचे झुक कर मैने फिर उसे उसके बालों से पकड़ कर उठाया, फिर बोला___"अब सारी कहानी समझ गया हूॅ मैं। तू अपने इन कमीने दोस्तों के साथ विधी को उस दिन वहाॅ हाइवे के किनारे झाड़ियों के पास छोंड़ आया। सुबह हुई तो हाइवे से गुज़र रहे किसी वाहन में आ रहे ब्यक्ति की नज़र विधी पर पड़ी होगी तो उसने इसकी सूचना पुलिस को दी होगी। ये मामला चूॅकि हल्दीपुर का था इस लिए हल्दीपुर पुलिस थाने में मेरी बड़ी बहन रितू दीदी ही थी, उनको जब इस सबकी सूचना किसी अज्ञात ब्यक्ति द्वारा मिली तो वो उस जगह पर पहुॅच गईं। विधी की उस गंभीर हालत को देख कर दीदी ने विधी को तुरंत ही हल्दीपुर के सरकारी हास्पिटल में एडमिट कर दिया। दीदी को शायद कहीं से ये पता था कि मैं किसी विधी नाम की लड़की से प्यार करता था। इस लिए हास्पिटल में जब दीदी को डाक्टर द्वारा विधी के बारे में पता चला होगा तो उनके दिमाग़ में तुरंत ही ये बात आई होगी कि किसी विधी नाम की लड़की से ही उनका भाई विराज प्यार करता था। किन्तु उन्होंने विधी को देखा तो था नहीं पहले इस लिए उन्होंने इस बारे में कन्फर्म करने के लिए विधी से पूछताॅछ की होगी। दीदी के पूछने पर आख़िर विधी ने बता ही दिया होगा कि हाॅ वो ही वो विधी है जिसे उनका भाई विराज प्यार करता था। बस उसके बाद ही दीदी का मेरे प्रति भी हृदय परिवर्तन हुआ होगा या फिर खुद विधी ने बताया होगा उन्हें कि सच्चाई क्या है? ख़ैर, उसके बाद विधी ने दीदी से अपनी अंतिम इच्छा की बात कही और दीदी ने उससे वादा किया कि वो उसके महबूब को उसके पास ज़रूर लेकर आएॅगी। दीदी ने मेरी खोज करना शुरू किया और उन्हें मेरा दोस्त पवन मिला। पवन से दीदी ने सारी बातें बताईं होंगी। तभी तो पवन मुझसे वो सब बता नहीं रहा था बल्कि यही कहे जा रहा था कि मैं आ जाऊॅ। वाह रितू दीदी! आप ग्रेट हो दीदी। आपने मुझे मेरी विधी से मिलवाया वरना मैं तो उसे अंतिम समय में भी देख न पाता। आपने ये बहुत बड़ा उपकार किया है दीदी। आज आप मेरी नज़र में बहुत महान हो गईं हैं।"

मैं भावावेश में जाने क्या क्या कहे जा रहा था जबकि मेरे चंगुल में फॅसा सूरज बड़ी मुश्किल से अपनी पलकें उठा कर मेरी तरफ हैरत से देखे जा रहा था। शायद वो मेरी कुछ बातें समझने की कोशिश कर रहा था मगर समझ नहीं पा रहा था।

"इतना कुछ मेरी विधी के साथ हो गया और मुझे इसका आभास तक न था।" मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मेरे दिल में हूक सी उठी। विधी के साथ हुए इस घृणित कुकर्म का सोच कर ही मेरी आत्मा काॅप उठी, मेरा दिल तड़प उठा। एकाएक ही मेरे चेहरे पर गुस्से की आग धधक उठी। मैने सूरज को उसकी गर्दन से पकड़ कर एक ही हाॅथ से ऊपर उठा लिया, फिर बोला___"तेरा और तेरे साथियों का मैं वो हाल करूॅगा कि दुबारा इस धरती पर पैदा होने से मना कर दोगे।"

"मुझे माफ़ कर दो विराज।" सूरज की ऑखें बाहर को निकली आ रही थी, फिर भी किसी तरह बोला__"मैं मानता हूॅ कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है जिसके लिए कोई मुआफ़ी हो ही नहीं सकती। मगर.....
"हरामज़ादे जब जानता है कि कोई मुआफ़ी नहीं हो सकती तो क्यों माॅग रहा है मुआफ़ी?" मैने ऊपर से ही उसे उछाल दिया। वो लहराते हुए उस जगह पर गिरा जिस जगह पर वो आदमी बेहश अवस्था में पड़ा था। सूरज जब फर्श से टकराया तो उसके हलक से चीख निकल गई और उसका बाजू ज़ोर से उस आदमी के जिस्म पर लगा।

उस आदमी के जिस्म में हरकत हुई और वो कुछ ही पलों में होश में आ गया। ऑख खुलते ही उसने अपनी तरफ बढ़ते हुए मुझे देखा तो एकाएक ही उसके चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए। जबकि मेरा ध्यान तो सूरज की तरफ था जो उस आदमी के ही पास पड़ा कराह रहा था। उसके पास पहुॅच कर मैने उसे फिर से उसके बालो से पकड़ कर उठाया।

"तूने मेरी विधी के साथ जो कुकर्म किया है उसके लिए मैं मुआफ़ी कैसे दे दूॅगा तुझे?" मैने गुर्रा कर उसे झकझोरते हुए कहा___"तू ये सोच भी कैसे सकता है कि तुझे मुआफ़ी मिल जाएगी। तुझे अगर कुछ मिलेगा तो सिर्फ वो जिसे तड़प तड़प कर और सड़ सड़ कर मरना कहते हैं।"

दीवार से सटे बाॅकी तीनों लड़कों की ये सब देख कर ही हालत ख़राब थी। मेरे चेहरे पर इस वक्त हिंसक दरिंदे जैसे भाव थे। उधर फर्श पर पड़ा वो आदमी मेरी बातें सुन कर हैरान रह गया था। फिर सहसा उसे खुद का ख़याल आया। वो सूरज की तरह ही जन्मजात नंगा था। ये देख कर वो किसी तरह उठा और एक तरफ रखे अपने कपड़ों की तरफ बढ़ गया। कपड़े उठा कर वो जल्दी जल्दी उन्हें पहनने लगा।

इधर मैने गुस्से में उबलते हुए सूरज के चेहरे पर ज़ोर का घूॅसा मारा तो वो पीछे की दीवार में ज़ोर से टकराया और फिर फर्श पर लुढ़कता चला गया। उसके नाॅक और मुख से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा था। फर्श पर गिरते ही उसकी ऑखें बंद होती चली गई। मैं समझ गया कि ये बेहोश हो चुका है।

बेहोश हो चुके सूरज के जिस्म पर मैने पैर की एक ठोकर जमाई और पलट कर बाएॅ साइड दीवार की तरफ देखा। दीवार से सटे वो तीनो लड़के रस्सियों में बॅधे ऊपर की तरफ हाॅथ किये खड़े थरथर काॅप रहे थे। ऑखों में आग और चेहरे पर ज़लज़ला लिए मैं उनकी तरफ बढ़ा।

मुझे अपनी तरफ आते देख उन तीनों की हालत ख़राब हो गई। किनारे साइड की तरफ जो बॅधा खड़ा हुआ था उसका डर के मारे पेशाब छूट गया। उनके क़रीब पहुॅच मैने पहले एक एक घूॅसा उन तीनों के जबड़ों पर रसीद किया। तीनो ही दर्द में बिलबिला उठे। मुझसे रहम की भीख माॅगने लगे किन्तु मैं इन लोगों को भला कैसे माफ़ कर सकता था? ये मेरी विधी के रेपिस्ट थे, उसके हत्यारे थे ये। इनको तो अब ऐसी मौत मरना था जिसके बारे में आज तक किसी ने सुना तक न होगा।

"तुम सबको ऐसी मौत मारूॅगा किसके बारे में किसी कल्पना तक न की होगी।" मैने भभकते हुए कहा__"तुम सब ने मेरी मासूम विधी के साथ ऐसा घिनौना अपराध किया है जिसके लिए मैं तुम लोगों को अगर कुछ दूॅगा तो है सिर्फ दर्दनाक मौत। इसके सिवा और कुछ नहीं। रहम के बारे में तो सोचो ही मत। क्योंकि वो मैं ब्रम्हा के कहने पर भी नहीं करने वाला।"

मेरी ये बात सुन कर उन तीनों के चेहरे डर से पीले ज़र्द पड़ गए। पल भर में ऐसी सूरत नज़र आने लगी उन तीनो की जैसे लकवा मार गया हो। इधर मैं पलटा। मेरी नज़र उस आदमी पर पड़ी जो सूरज के मुख में अपना लंड डाले हुए था। वो मेरी तरफ सकते ही हालत में देखे जा रहा था। मैं उसकी तरफ बढ़ा तो वो एकदम से भयभीत सा हो गया।

"मुझे माफ़ कर दो काका।" उसके पास पहुॅचते ही मैने विनम्र भाव से कहा___"मैने बिना कुछ जाने समझे आप पर हाॅथ उठा दिया। उसके लिए आप चाहें तो मुझे सज़ा दे सकते हैं।"
"अ अरे ना ना बेटवा।" हरिया काका हड़बड़ाते हुए एकदम से बोल पड़ा___"ई का कहत हो तुम? तोहरे से कउनव ग़लती ना हुई है। एसे माफी मागे के कउनव जरूरत ना है। हमहू का कहाॅ पता रहे बेटवा कि तुम असल मा हमरे रितू बिटिया के छोट भाई हो।"

"आप बहुत अच्छे हैं काका।" मैने हरिया काका के दाएॅ कंधे पर हाथ रखते हुए कहा___"आपने इन लोगों की वैसी ही ख़ातिरदारी की है जैसी इन लोगों की करनी चाहिए थी।"
"अब का करें बेटवा हमरे मन मा एखे अलावा र कउनव बात आईये न रही।" काका ने कहा___"रितू बिटिया जब हमसे कहा कि ई ससुरन केर अच्छे से ख़ातिरदारी करै का है ता हमरे मन मा इहै बात आई। बस ऊखे बाद हम शुरू होई गयन। ई ससुरन के पिछवाड़े से बजावै मा बड़ी मज़ा आई बेटवा। लेकिन अब एकै बात केर चिन्ता है कि कहीं ई बात रितू बिटिया का पता न चल जाय। ऊ का है ना बेटवा, ई अइसन काम है कि केहू का पता चल जाय ता बहुतै शरम केर बात होई जाथै न। अउर हम ई नाहीं चाही कि ई बात रितू बिटिया का पता चलै। काहे से के ई बात पता चले मा सरवा हमरी इज्जत का बहुतै कचरा होई जाई।"

"चिन्ता मत करो काका।" मैं मन ही मन उसकी बात पर और उसकी भाषा पर मुस्कुराते हुए बोला___"इस बात का पता रितू दीदी को बिलकुल भी नहीं चलेगा। लेकिन एक बात अब आप भी सुन लीजिए। वो ये कि आपने अपना काम कर लिया अब बारी मेरी है। मैं इन्हें ऐसी मौत दूॅगा कि आपने उसके बारे में कभी सोचा भी नहीं होगा। इस लिए अब आप सिर्फ तमाशा देखेंगे।"

"ठीक है बेटवा।" काका ने सिर हिलाया___"हमहू ईहै चाहिथे कि ई ससुरन का कुत्तन जइसन मौत हो। जितना बड़ा अपराध ई लोगन ने किया है न उसके लिए ई लोगन का कौनव परकार केर रियाइत ता मिलबै न करै।"
"ऐसा ही होगा काका।" मैने उन चारों पर एक एक नज़र डालते हुए कहा___"मुझे कुछ सामान चाहिए आपसे। और हाॅ बाॅकी किसी और को मत बताइयेगा कि मैं यहाॅ हूॅ।"

"ठीक है बेटवा।" काका ने कहा___"अउर सामान का चाहै का है तुमका?"
"एक रेज़र ब्लेड।" मैने कहा___"और एक प्लास चाहिए काका।"
"ठीक है बेटवा।" हरिया काका ने कहा___"हम अभी लावथैं दुई मिनट मा।"

कहने के साथ ही हरिया काका तहखाने के दरवाजे से बाहर चला गया। जबकि उनके जाते ही मैं सूरज के पास पहुॅचा और उसे उठा कर फिर से एक अलग रस्सी जोड़ कर उसे वैसे ही बाॅध दिया जैसे बाॅकी तीनो बॅधे हुए थे। सूरज को बाॅधने के बाद मैं पलटा और एक तरफ रखी पानी की बाल्टी से एक मग पानी लेकर सूरज के चेहरे पर ज़ोर से उलट दिया। पानी का तेज़ प्रहार पड़ते ही सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वो दर्द से चीखने लगा।

"तुम हमारे साथ क्या करने वाले हो?" बाॅकी तीन मे से एक ने घबराते हुए पूछा___"देखो, हम मानते हैं कि हमने बहुत बड़ा गुनाह किया है और उसके लिए अगर तुम हमे गोली मार कर जान से मार भी दो तो हमें मंजूर है मगर ऐसे तड़पा तड़पा कर मत मारो भाई। प्लीज़ कुछ तो रहम करो। उस आदमी ने तो वैसे भी हम लोगों के वो सब करके हमें जान से ही मार दिया है। तुम क्या जानो कि उस हवशी ने हमारे पिछवाड़ों की क्या दुर्गत की है?"

"जब अपने पर बीतती है तभी एहसास होता है कि दर्द और तक़लीफ़ क्या होती है।" मैने उससे गुर्राते हुए कहा___"तुम लोगों को तब इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि जिन जिन लड़कियों के साथ तुम सबने कुकर्म किया है उन पर उस वक्त क्या गुज़री रही होगी?"

"सच कहा भाई।" एक दूसरे लड़के ने कहा___"लेकिन अब जो हो गया उसे लौटाया तो नहीं जा सकता न। हमें हमारे गुनाहों की इतनी सज़ाएॅ तो मिल ही चुकी हैं। तुम हमें एक ही बार में जान से मार दो। मगर वो सब न करो भाई जो तुम अपने मन सोचे बैठे हो। प्लीज भाई हम पर रहम करो।"

"शट-अऽऽऽप।" मैं पूरी शक्ति से दहाड़ा___"यहाॅ तुम लोगों की मर्ज़ी से कुछ नहीं होगा, बल्कि वही होगा जो मैं चाहूॅगा। मैं क्या चाहता हूॅ इसका पता जल्द ही तुम चारो को चल जाएगा।"

मैने इतना कहा ही था कि हरिया काका तहखाने में पुनः दाखिल हुए। उनके हाॅथ में वो सामान था जो मैने उनसे मॅगवाया था। यानी कि रेज़र ब्लेड और प्लास। मेरे हाॅथ में सामान पकड़ाने के बाद हरिया काका ने तहखाने का दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर एक तरफ खड़े हो गए। इधर सामान लिए मैं उस सामान को सरसरी तौर पर देख ही रहा था कि मेरा मोबाइल फोन बज उठा।
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11-24-2019, 12:52 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
हवेली पर!
अपने कमरे में रितू आराम कर रही थी। ऊपर छत के कुण्डे पर घूम रहे पंखे को एकटक घूर रही रितू के चेहरे पर इस वक्त गहन सोचो के भाव थे। उसके मन में कई सारी बाॅतें चल रही थीं। आज जब वह हवेली में आई तो उसका सामना अपने डैड से उस हिसाब से हो ही गया था जिसका उसे अंदेशा था कि देर सवेर ऐसा होगा ही।

उसके डैड ने उससे जो कुछ कहा था उससे अब ये बात खुल ही चुकी थी उनकी बेटी उनके पक्ष में नहीं है। उनके आदमी ने जो ख़बर उसके बारे में उसके डैड को दी थी उसका उसके पास कोई पुख्ता सबूत तो नहीं था किन्तु ज़हन में ये बात तो पड़ ही गई थी कि रितू किस तरफ करवॅट ले सकती है? हलाॅकि उसने अपनी तरफ से अपनी सफाई में अपने डैड को समझा बुझा तो दिया था किन्तु उसे ये भी एहसास था कि मौजूदा हालात में इस वक्त भले ही उसका बाप कोई कठोर क़दम उसके साथ न उठाये मगर जिस वक्त उसे पक्के तुर पर पता चल जाएगा कि उसके आदमी की वो ख़बर यकीनन सच ही थी तो वक्त अजय सिंह कोई भी कठोर क़दम उठा सकता है।

रितू के ज़हन में ये सारी बातें चल रही थीं। उसे इस बात का भी अंदेशा हो चुका था कि अब उसका बाप सच्चाई का पता लगाने के लिए संभव है कि उसके पीछे अपने आदमी लगा दे। उस सूरत में रितू को क्या करना था ये उसने भली भाॅति सोच लिया था। रितू अभी ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसका मोबाइल बज उठा। मोबाइल के बजने से वो सोच के गहरे सागर से हक़ीक़त की दुनियाॅ में आई और सिरहाने रखे मोबाइल को एक हाॅ से उठा कर उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे हरिया काका नाम को देखा तो उसके चेहरे पर सोच के भाव उभर आए।

"कहिए काका क्या बात है?" फिर उसने काल को रिसीव करते ही कहा।
"..........।" उधर से हरिया काका ने उसे जो कुछ बताया उसे सुन कर रितू बुरी तरह चौंक पड़ी थी। उसके चेहरे पर पल भर में चिंता व परेशानी के भाव उभर आए थे।

"ये आपने बहुत अच्छा किया काका।" रितू ने कहा___"जो मुझे फोन कर दिया आपने। ख़ैर, आप बाॅकी सबका ध्यान रखियेगा मैं बात करती हूॅ उससे।"

ये कह कर रितू ने काल कट कर दी। उसके चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव कम नहीं हो रहे थे। हरिया काका ने उसे फोन पर सारी बात बता दी थी कि विराज तहखाने में उन चारों लड़कों के साथ क्या करने वाला है। उसने ये भी बताया कि विराज इस वक्त गुस्से में आग बबूला हुआ पड़ा है और उससे रेज़र ब्लेड के साथ साथ एक प्लास भी मॅगवाया है। हरिया काका से बातें जानने के बाद रितू समझ गई कि विराज को अब सब कुछ पता चल गया है। इस लिए अब उसे डर था कि कहीं विराज उससे इस बात के लिए नाराज़ न हो जाए कि विधी के साथ इतना कुछ हुआ जिसे उसने विराज से नहीं बताया। इस परिस्थिति में वो क्या क़दम उठा लेगा इसका अंदाज़ लगाना मुश्किल था। यही बात थी कि रितू एकाएक चिन्तित व परेशान हो गई थी। काफी देर तक वो इन्हीं सब ख़यालों में खोई रही, उसके बाद उसने मोबाइल पर विराज का नंबर देख कर उसे काल लगा दिया। उसे अंदर से डर भी लग रहा था कि विराज जाने कैसा रियेक्ट करे उससे।

".........।" उधर से काल रिसीव किये जाने पर ही रितू के कानो में विराज की आवाज़ पड़ी। उसने उधर से कुछ कहा।
"तुम्हें मेरी कसम है मेरे भाई।" रितू ने बहुत ही संतुलित लहजे में कहा___"तुम जहाॅ पर हो वहाॅ से किसी को भी कुछ किये बग़ैर वापस बाहर आ जाओ। मैं जब आऊॅगी तो तुम्हें सब कुछ समझा दूॅगी।"

".........।" उधर से विराज ने कुछ कहा।
"प्लीज़ भाई।" रितू ने विनती सी की___"अपनी इस बहन की बात मान जाओ। बस एक बार। उसके बाद मैं खुद तुम्हें उस सबके लिए इजाज़त दे दूॅगी। मगर अभी मेरी बात मान जाओ और वहाॅ से बाहर आ जाओ।"

"..........।" उधर से विराज ने फिर से कुछ कहा।
"अभी तुझे कुछ पता नहीं है मेरे भाई।" रितू ने सहसा गंभार होकर कहा___"तू मेरे आने का इंतज़ार कर मैं तुझे सारी बातें बताऊॅगी और ये भी कि उससे और क्या करना चाहती हूॅ मैं?"

".........।" उधर से विराज ने कुछ कहा।
"हाॅ भाई।" रितू ने कहा___"मैं जल्द ही तेरे पास आ रही हूॅ। मगर फिलहाल तू वहाॅ से बाहर आ जा।"
"...........।" उधर से विराज ने फिर से कुछ कहा।
"थैंक्स मेरे स्वीट भाई।" रितू के चेहरे पर राहत के भाव उभरे___"यू आर सो स्वीट। लव यू सो मच।"

ये कह कर रितू ने मुस्कुराते हौए काल कट कर दी। कुछ देर तक जाने क्या सोचती रही वो। उसके बार वह बेड से उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। लगभग दस मिनट बाद वह बाथरूम से बाहर निकली और फिर पुलिस की यूनीफार्म पहन कर तथा सिर पर पीकैप व हाथ में पुलिसिया रुल लिये वह कमरे से बाहर आ गई।


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11-24-2019, 12:52 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
[size=large]रितू जैसे ही अपनी जिप्सी में बैठ कर हवेली से बाहर गई वैसे ही इधर प्रतिमा के कमरे की खिड़की से बाहर देखते हुए शिवा ने होठों पर मुस्कान सजाते हुए अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को फोन लगाया। एक मिनट से भी कम समय तक उसने किसी से फोन पर बात की उसने बाद उसने काल कट कर दी।

इधर हवेली से बाहर निकलते ही रितू ने भी किसी को फोन लगाया और उससे कुछ देर बात की। उसकी जिप्सी गाॅव से बाहर की तरफ जा रही थी। गाव से बाहर जाने वाले रास्ते से कुछ दूर जाने पर ही रितू को अपनी जिप्सी के पीछे एकाएक ही एक ब्लैक जीप आती बैक मिरर में दिखी। ये देख कर रितू के होठों पर मुस्कान फैल गई।

सौ मीटर के फाॅसले पर पीछे से आ रही कार रितू को बराबर बैक मिरर में दिख रही थी। हलाॅकि रितू समझ गई थी कि पीछे आ रही जीप में यकीनन उसके बाप का ही कोई आदमी है, लेकिन फिर भी पक्के तौर पर जाॅचने के लिए रितू ने मन बनाया। नहर पर बने पुल के पास पहुॅचते ही रितू ने बाॅए साइड वाले रास्ते की तरफ अपनी जिप्सी की मोड़ लिया। जबकि दाएॅ साइड के रास्ते में आगे उसका फार्महाउस पड़ता था।

सौ मीटर आगे जाने पर ही रितू को मिरर में वो जीप उसी रास्ते की तरफ मुड़ती दिखी। आगे लगभग पाॅच किलो मीटर की दूरी पर मोड़ था और वहीं से दूसरे गाॅव की आबादी शुरू होती थी। जिसकी वजह से मोड़ पर मुड़ने के बाद पीछे वाले को आगे वाला वाहन दिखाई नहीं देता था। आगे कुछ दूरी पर एक चौराहा पड़ता था। रितू ने जिप्सी को चौराहे पर एक साइड रोंका और उतर कर बगल में एक दुकान थी। वो दौकान तरफ बढ़ गई। दुकान से उसने एक पेप्सी की बाट ली और वहीं पर खड़े खड़े पीने लगी।

कुछ ही देर में उसे चौराहे की तरफ आती हुई वो जीप दिखी जिसमें उसके बाप का एक आदमी ड्राइविंग शीट पर बैठा था। चौराहे पर रितू की जिप्सी को देख उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे और फिर वो एकदम से जीप को तेज़ रफ्तार से दौड़ाते हुए चौराहे के पार निकल गया। उसकी इस हड़बड़ाहट को देख कर रितू के होठों पर मुस्कान उभर आई।

पेप्सी को पीकर रितू ने दुकान वाले को पैसे दिये और फिर सामने चौराहे के उस तरफ एक बार सरसरी तौर पर अपनी नज़र दौड़ाई जिस तरफ उसके बाप के आदमी की वो जीप गई थी। उसके बाद वो अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ी तथा उसमें बैठ कर जिप्सी को यू टर्न दिया और फिर वापस उसी रास्ते की तरफ बढ़ चली जिस तरफ से वो आई थी। इस बार रितू की जिप्सी की रफ्तार ज्यादा थी।

पुल के बगल से सीधा जो रस्ता था उसी तरफ उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी जा रही थी। बैक मिरर में उसकी नज़र बराबर थी। उसके पीछे लगी वो जीप उसे कहीं नज़र न आई। पुल से काफी दूर आकर रितू ने जिप्सी को एक ऐसी जगह पर सड़क से अलग करके खड़ी किया जिस जगह पर दाएॅ साइड काफी सारे पेड़ पौधे व झाड़ियाॅ थी। यहाॅ से सड़क पर से चल रहा कीई वाहन देखा तो जा सकता था किन्तु सड़क से इस तरफ का आसानी से देखा नहीं जा सकता था।

जिप्सी से उतर कर रितू ने सबसे पहले होलेस्टर में दबे अपने सर्विस रिवाल्वर को निकाला। रिवाल्वर का चेम्बर खोल कर उसने चेम्बर के सभी खानों को देखा। सभी खानों में गोलियाॅ मौजूद थीं। ये देख कर उसने चेम्बर को वापस बंद कर रिवाल्वर को होलेस्टर के हवाले किया और एक आगे बढ़ कर सड़क के कुछ पास ही एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई। इस वक्त उसके चहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे। बहुत ही धीमी आवाज़ में उसके मुख से निकला____"साॅरी डैड, अब आपका कोई भी आदमी मेरी ख़बर आप तक नहीं पहुॅचा पाएगा। इतना ही नहीं आप वो सब हर्गिज़ भी नहीं कर पाएॅगे जिस किही भी चीज़ के करने का आपने मंसूबा बनाया हुआ है। मेरे भाई के पास पहुॅचने वाले हर शख्स को सबसे पहले मुझसे टकराना होगा।"

चेहरे पर कठोरता और ऑखों में आग लिए रितू चुपचाप पेड़ के ओट में खड़ी उस जीप के आने का इन्तज़ार करने लगी थी। इन्तज़ार करते करते लगभग पन्द्रह मिनट गुज़र गए मगर अभी तक वो जीप इस तरफ आती समझ न आई। रितू को लगा वो जीप में बैठा आदमी आएगा भी या नहीं। किन्तु ऐसा नहीं था, क्योंकि तभी रितू के कानों में किसी वाहन के आने की आवाज़ सुनाई देने लगी थी।

कुछ ही देर में मोड़ से इस तरफ मुड़ती हुई वो जीप दिखी। रितू ने महसूस किया कि जीप की रफ़्तार कम थी। शायद वो आदमी धीमी रफ़्तार से इधर उधर का मुआयना करते हुए आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि जिसका वो पीछा कर रहा था वो इतना जल्दी कहाॅ गायब हो गई? इस तरफ मुड़ने के बाद आगे का रास्ता काफी दूर तक सीधा ही था। उस सीधे रास्ते पर दूर दूर तक उसे रितू दिखाई नहीं दे रही है। ये देखते देखते ही उसने जीप की रफ़्तार कम कर दी। रितू को लगा कि कहीं वो यहीं पर ही न रुक जाए और वही हुआ भी। उस आदमी ने सामने की तरफ देखते हुए ही जीप को एकदम से खड़ी कर दिया।

जीप खड़ी करने के बाद उसने इधर उधर देखा और फिर सहसा उसने अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाला। रितू को समझते न लगी कि वो शायद इस बात की सूचना उसके बाप को देना चाहता है कि रितू एकाएक ही उसकी नज़रों से ओझल हो गई है। रितू के मन में ख़याल आया कि उस आदमी को इस बात की सूचना नहीं दे पाना चाहिए। इस ख़याल के आते ही उसने बिजली की सी तेज़ी से ऐक्शन लिया।

जिस जगह पर रितू पेड़ के पीछे खड़ी थी वहाॅ से वो आदमी आगे की तरफ बाएॅ साइड से जीप में बैठा था। जीप ऊपर से पूरी तरह बेपर्दा टाइप की थी। ड्राइविंग शीट पर बैठा वो आदमी दाहिने हाॅथ पर मोबाइल लिए कुछ कर रहा था। रितू समझ गई कि वो उसके बाप को फोन लगाने ही वाला है। ये देख कर रितू ने होलेस्टर से रिवाल्वर निकाल कर निशाना लगाया और फिर.....धाॅयऽऽ।"

अचूक निशाना, रिवाल्वर से निकली गोली सीधा उस आदमी के दाहिने हाॅथ में मौजूद उसके मोबाइल की स्क्रीन के चिथड़े उड़ाती हुई पार होकर सामने जीप के शीशे से टकराई थी। अचानक हुए इस हमले से वो आदमी मानो सकते में आ गया था। दाहिने हाॅथ को अपने बाएॅ हाॅथ से थामे वह उसे सहलाने लगा था। ड्राइविंग शीट पर बैठा वो इधर उधर देखे जा रहा था।

इधर रितू फायर करते ही तेज़ी से जीप की तरफ बढ़ी। कुछ ही देर में वो जीप के पास पहुॅच गई। अपने इतने क़रीब इस तरह अचानक रितू के आ जाने से वो आदमी एकदम से हक्का बक्का रह गया था। चेहरे पर डर और घबराहट के भाव कत्थक करते नज़र आने लगे थे

रितू ने देर नहीं की बल्कि बिना किसी भूमिका के उसने दोनो हाॅथो से उस आदमी की शर्ट के कालर को पकड़ा और फिर एक झटके मे ही खींच कर ड्राइविंग शीट से बाहर खींच लिया। उस हट्टे कट्टे आदमी को बाहर खींच कर रितू ने उसे वहीं सड़क पर लगभग फटक दिया। आदमी के हलक से चीख़ निकल गई। रितू जानती थी कि उस आदमी ने अगर रितू को अपनी मजबूत बाहों में पकड़ लिया तो फिर उससे छूट पाना आसान नहीं होगा। इस लिए रितू ने उसे सम्हलने का मौका ही नहीं दिया। बल्कि लात घूॅसों पर रख दिया उसे।

सड़क पर गिरे हुए उस आदमी की सिर्फ चीखें निकल रही थी। सहसा उसके हाॅथ में रितू का पाॅव आ गया और उसने झटके से रितू का वो पाॅव पकड़ कर उछाल दिया। नतीजा ये हुआ कि रितू लहराते हुए सड़क पर पीठ के बल गिरी। रितू के मुख दर्द में डूबी हल्की सी चीख निकली। उधर उस आदमी को जैसे मौका मिल गया था। इस लिए वो झट से उठा और सम्हल कर उठ रही रितू के सिर के बाल पकड़ कर उसे जीप की तरफ ही झटके से धकेल दिया। रितू का सिर जीप के किनारे पर लगे मोटे लोहे के पाइप से टकराया। रितू की ऑखों के सामने तारे नाचने लगे और सहसा उसे अपनी ऑखों के सामने अॅधेरा सा दिखने लगा।

लोहे का वो पाइप रितू के सिर पर ज़ोर से लगा था। जिसके कारण तुरंत ही रितू के सिर से खून रिसने लगा था। अभी रितू दर्द को सहते हुए खुद को सम्हाल ही रही थी कि उस आदमी ने एक बार से उसके सिर को उसी लोहे के पाइप पर झटक दिया। रितू की चीख निकल गई। चोंट पर चोंट लगने से खून का रिसाव तेज़ हो गया।

"मैने मालिक से झूॅठ नहीं बोला था लड़की।" उस आदमी ने दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा___"उस दिन तू ही थी उस जीप में जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। मगर पक्के तौर पर चूॅकि किसी को पता नहीं था इस लिए मुझे भी लगा कि शायद उस जीप में तेरे सिवा कोई ही न रहा हो। दूसरी बात हम में से कोई ये सोच ही नहीं सकता था कि हमारे मालिक से गद्दारी करने वाली खुद मालिक की ही छोकरी होगी।"

ये सब कहने के साथ ही उस आदमी ने पीछे से एक मुक्का रितू के पेट के बगल पर रसीद कर दिया। हट्टे कट्टे आदमी का मुक्का लगते ही रितू को भयानक दर्द हुआ। उसकी घुटी घुटी सी चीख फिज़ा में फैल गई।

"तुझे पता है आज मालिक ने मुझे साफ साफ कहा है कि अगर गद्दार के रूप में तू ही निकले तो तुझे मैं खुद ही इस गद्दारी की सज़ा दूॅ।" उस आदमी ने कहा___"मालिक को इस बात से अब कोई मतलब नहीं रह गया है कि गद्दार कौन है। उनके लिए अपना और पराया सब बराबर हैं। इस लिए ऐ छोकरी, तू अब सज़ा पाने के लिए तैयार हो जा। मैं पहले तेरे इस खूबसूरत जिस्म का मज़ा लूटूॅगा और फिर तेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाऊॅगा। हाहाहाहाहा कसम से पहली बार लग रहा है कि मालिक की सेवा करने का कुछ अच्छा फल मिल रहा है।"

रितू के कानों से उस आदमी की ये सब बातें टकराई तो उसके अंदर गस्से की ज्वाला धधक उठी। उसने अपने दाहिने हाॅथ को पीछे ले जाकर उस आदमी के सिर को उसके बालों से पकड़ा और पूरी ताकत से ऊपर से आगे की तरफ खींचा। वो आदमी तो पीछे से आगे न आ पाया क्योंकि वो वजनदार और हट्टा कट्टा था किन्तु सिर के बाल इतनी तेज़ी से खींचे जाने पर उसके मुख से दर्द भरी सीत्कार गूॅज उठी। इसके साथ ही रितू के सिर के बालों पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई।

रितू ने एक पल का भी समय नहीं गवाॅया। उसके हाॅथ के नीचे से निकल कर उसने बिजली की सी तेज़ी से उस आदमी के बगल से आकर अपने दाहिने हाॅथ की कराट ज़ोर से उसकी गर्दन के पिछले भाग पर लगाई। नतीजा ये हुआ कि झोंक में उस आदमी का माॅथा उसी लोहे के पाइप से टकराया जिस पाइप पर अभी कुछ देर पहले रितू का सिर टकराया था। माॅथे पर लोहे का पाइप लगते ही वो आदमी दर्द से बिलबिलाया और दोनो हाॅथों से अपना माॅथा सहलाने लगा। पलक झपकते ही उसके माथे पर एक गोल सा गोला उभर आया जो हल्के नीले रंग का था।

रितू को तेज़ गुस्सा आया हुआ था। इस बार वो रुकी नहीं बल्कि जूड़ो कराटे और कुंगफू के ऐसे करतब दिखाए कि दो मिनट में ही उस आदमी को धरासाई कर दिया। एक बार पुनः वो हट्टा कट्टा आदमी सड़क पर पड़ा था, किन्तु इस बार वो दर्द से बुरी तरह कराह रहा था।

"तेरे जैसे पालतू कुत्तों का इलाज़ बहुत अच्छी तरह से करना आता है मुझे।" रितू किसी शेरनी की भाॅति गुर्राई___"चल आज तुझे इसका ट्रेलर भी और इसका अंजाम भी दिखाऊॅगी। तेरे जैसे कुत्तों का और अपने उस हरामी बाप का क्या हस्र होगा ये वक्त ही बताएगा।"

रितू की बात उस आदमी ने कोई जवाब न दिया, बल्कि वो जवाब देने की हालत में ही नहीं रह गया था। रितू ने नीचे झुक कर उस आदमी की कनपटी के पास मौजूद एक ऐसी खास जगह पर कराट मारी कि पल भर में वो आदमी बेहोश हो गया। उसके बेहोश होते ही रितू ने उस आदमी के एक हाॅथ को पकड़ कर खींचते हुए सड़क के किनारे पर लगाया और फिर पलट कर उस तरफ बढ़ चली जिस तरफ उसने अपनी जिप्सी को झाड़ियों और पेड़ों के पीछे छुपाया था।

थोड़ी ही देर में रितू जिप्सी को लेकर सड़क पर आ गई। जिप्सी को उस आदमी के पास खड़ी कर वो जिप्सी से नीचे उतरी और फिर उस आदमी के बेहोश जिस्म को किसी तरह उठा कर जिप्सी के पीछे डाल दिया। उसके बाद वो उस जीप के पास गई जिसमें बैठ कर वो आदमी यहाॅ आया था। उस जीप के इग्नीशन से चाभी निकाल कर रितू ने अपनी पैन्ट की पाॅकेट में डाला और वापस जिप्सी के पास आकर ड्राइविंग शीट पर बैठ गई।

उस आदमी को वहीं पर छोंड़ कर रितू ने अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ दौड़ा दिया। ऑधी तूफान बनी जिप्सी कुछ ही समय में फार्महाउस पहुॅच गई। फार्महाउस के मेन गेट पर ही हरिया और शंकर काका खड़े दिखे रितू को। रितू को आते देख शंकर ने लोहे वाला गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी को गेट के अंदर की तरफ बढ़ा दिया। हरिया काका के पास जिप्सी को रोंक कर रितू ने अपनी पैन्ट की पाॅकेट से चाभी निकाली और शंकर की तरफ देखते हुए कहा___"शंकर काका मेरी गाड़ी से इस आदमी को बाहर निकाल कर वहीं तहखाने में डाल कर फटाफट आइये।"

"अच्छा बिटिया।" शंकर ने कहा और अपनी बंदूख को हरिया के हवाले कर जिप्सी के पास आया और उस आदमी को अपनी मजबूत बाहों से खींच कर बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उसे उसने अपने कंधे पर लादा और अंदर तहखाने वाले हिस्से की तरफ बढ़ गया।

"काका आप ये चाभी लीजिए।" रितू हरिया की तरफ चाभी उछालते हुए कहा___"और मेरी इस गाड़ी से शंकर काका को भी साथ ले जाइये। बीच रास्ते पर ही उस आदमी की जीप खड़ी मिलेगी आपको। उसे वहाॅ से यहाॅ लेकर आना है।"

"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम अभी शंकरवा का लइके जाथैं। लेकिन बिटिया ऊ ससुरा आदमी कउन है? अउर कहाॅ से मिल गवा ऊ तुमका?"
"मेरे डैड का पालतू कुत्ता है काका।" रितू ने नफ़रत के भाव से कहा___"मेरे डैड ने उसे मेरे पीछे लगाया हुआ था मेरी निगरानी के लिए। मैने उस कमीने को बीच में ही धर लिया और यहाॅ ले आई। अब आप इसकी भी ख़ातिरदारी कीजिएगा।"

"अरे बिलकुल बिटिया।" हरिया के चेहरे पर एकाएक ही खुशी के भाव उभरे लेकिन फिर जैसे उसे कुछ याद आया तो उसने फिर नार्मल भाव से कहा___"ऊ ससुरे की ख़ातिरदारी हम बहुत अच्छे से करूॅगा।"

तभी शंकर काका आता हुआ दिखाई दिया। उसके पास आते ही रितू ने उसे भी समझा दिया और हरिया के साथ अपनी जिप्सी से भेज दिया। उन दोनो के जाते ही रितू अंदर मकान की तरफ बढ़ चली।
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मैं रितू दीदी के कमरे में बड़ी बेचैनी से इधर से उधर टहल रहा था। रह रह कर सूरज की बातें मेरे ज़हन में ज़हर सा घोल रही थी। मुझे उन चारों पर भयानक गुस्सा आ रहा था। किन्तु दीदी ने फोन करके मुझे तहखाने से बाहर आ जाने के लिए कह दिया था। मुझे इस बात से बेहद तक़लीफ़ हो रही थी कि मेरी विधी के साथ कितना घिनौना कुकर्म किया गया था जिसके बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं था और ना ही ये सब किसी ने मुझसे बताया था। मैं सोच रहा था की अगर इत्तेफाक़ से या संयोगवश मैं हरिया काका के पीछे उस तहखाने में न जाता तो मुझे पता भी न चलता कि मेरी विधी के साथ और क्या हुआ था।

मुझे इस सबके लिए पवन और दीदी दोनो पर गुस्सा भी आ रहा था मगर मैं इस बात से खुद को तसल्ली दिये हुए था कि इन्हीं की वजह से ही तो मैं अपनी विधी को अंतिम बार मिल सका था। उसके त्याग और बलिदान को जान सका था वरना सारी ज़िंदगी मैं उस मासूम व निर्दोष को कोसता रहता। इस लिए ये सब सोच कर मैं अपने गुस्से को शान्त किये हुए था। मैने खुद को बहुत समझाया था तब जाकर मुझे कुछ राहत मिली थी और सबसे ज्यादा रितू दीदी पर प्यार आया कि उन्होंने मेरे और विधी के ख़ातिर कितना कुछ किया था।

मुझे एहसास था कि रितू दीदी अब पहले जैसी नहीं रही थी बल्कि अब वो बदल गई थी। बचपन से लेकर अब तक मेरे प्रति जो उनके अंदर द्वेष या नफ़रत का भाव था वो अब बेपनाह प्यार व स्नेह में परिवर्तित हो गया था। जिस रितू दीदी से बात करने के लिए मैं अक्सर तरसता था आज वही दीदी मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगी हैं। इस बात से मैं बेहद खुश भी था। किन्तु हालात के मद्दे नज़र मैं अपनी इस खुशी को ज़ाहिर नहीं कर पा रहा था। इस वक्त मैं उनके कमरे में टहलते हुए उनके आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रहा था।

तभी कमरे का दरवाजा खुला और पुलिस इन्स्पेक्टर की वर्दी में रितू दीदी ने कमरे में प्रवेश किया। मैं उन्हें आज पुलिस की वर्दी में देख कर देखता ही रह गया। उनके खूबसूरत बदन पर ये पुलिस की वर्दी काफी जॅच रही थी। ऐसा लगता था कि पुलिस की ये वर्दी सिर्फ उन्हीं के लिए ही बनी थी। मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख दीदी के होठों पर मुस्कान उभर आई और फिर सहसा उनके चेहरे पर हया की सुर्खी भी नज़र आने लगी।

"ऐसे क्यों देख रहा है राज?" रितू दीदी ने मीठी सी आवाज़ में नज़रें झुकाते हुए कहा।
"देख रहा हूॅ कि मेरी रितू दीदी इस पुलिस की वर्दी में कितनी खूबसूरत लग रही हैं।" मैने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"ऐसा लगता है कि ये वर्दी दुनियाॅ में सिर्फ आपके लिए ही बनी है।"

"अच्छा जी।" रितू दीदी हॅस दी, बोली___"क्या सच कह रहा है भाई?"
"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"आप तो मेरी वैसे भी दुनियाॅ की सबसे अच्छी और खूबसूरत दीदी हैं, ऊपर से इस पुलिस की यूनीफार्म पहने हुए। कसम से दीदी आप बहुत ही क्यूट और ब्यूटीफुल लग रही हैं। मेरी आपसे गुज़ारिश है कि आपने ये जो पुलिस की नौकरी छोंड़ का सोचा हुआ है उस सोच को आप अपने ज़हन से निकाल दें। मैं आपको हमेशा ऐसे ही पुलिस की इस वर्दी में देखना चाहता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने आगे बढ़ कर मेरे गालों पर सहलाते हुए कहा___"तो फिर अब तेरी ये दीदी पुलिस की नौकरी मरते दम तक नहीं छोंड़ेगी। भले ही चाहे जैसी भी परिस्थिति आ जाए। तुझे पता है राज, मेरी इस नौकरी से मेरे माॅम डैड और वो कमीना शिवा कोई भी खुश नहीं हैं। आज तेरे मुख से ये बात सुन कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं खुश हूॅ कि तुझे मेरा नौकरी करना और पुलिस की इस वर्दी में देखना अच्छा लग रहा है। काश! ये सब मैने बहुत पहले सोचा होता। मैने सोचा होता कभी तेरे बारे में तो कभी भी मैं तुझसे दूर न रहती। भाई क्या होता है ये मुझे अब पता चला है राज। वरना तो भाई के नाम से ही नफ़रत हो गई थी मुझे। तुझसे एक ही विनती है अपनी इस दीदी को कभी खुद से दूर न करना। मैंने अपने उन रिश्तों से नाता तोड़ लिया है जिन रिश्तों के द्वारा मेरा ये वजूद दुनियाॅ में आया है। अब अगर मेरा कोई है तो सिर्फ तू है मेरे भाई। जो गुज़र गया उसे तो मैं लौटा नहीं सकती राज मगर आज जो है और जो आने वाला है उसे सवाॅरने की पूरी कोशिश करूॅगी मैं। बस तू और तेरा साथ बना रहे। बोल न भाई, तू मुझे अपने साथ रखेगा न?"

ये सब कहते हुए रितू दीदी की ऑखों से ऑसू बहने लगे थे। मैने तड़प कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। वो मुझसे कस के लिपट गईं और खुद को ज़ार ज़ार न रोने की नाकाम कोशिश करने लगीं। मैं उन्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकता था। उनका कैरेक्टर हमेशा से ही बहादुर लड़की का रहा था मगर इस वक्त कोई देखे तो किसी कीमत पर यकीन करे कि ये लड़की बहादुर भी सकती है। बाहर से पत्थर की तरह कठोर दिखने वाली इस लड़की के सीने में भी एक नन्हा सा दिल है जो धड़कना भी जानता है अपनों के लिए।

"मत रोइये दीदी।" मैने उनकी पीठ को सहलाते हुए कहा___"आप रोते हुए बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती हैं। आप तो मेरी सबसे ज्यादा बहादुर दीदी हैं। चलिए अब चुप हो जाइये।"
"मुझे रो लेने दे राज।" दीदी मुझसे और भी कस के लिपट गईं, बोलीं____"तुझे नहीं पता कि जब से मुझे असलियत का पता चला है तब से मैं कितना अंदर ही अंदर इन वेदनाओं में झुलस रही हूॅ। वो कैसे लोग हैं मेरे भाई जो अपनी ही बहन बेटी के बारे में इतना गंदा सोच सकते हैं? वो कैसे लोग हैं राज जिनको रिश्तों की कोई क़दर ही नहीं है? सिर्फ अपनी हवस के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार बैठे हैं।"

"अब कुछ मत कहिए दीदी।" मैने दीदी को खुद से अलग कर उनके ऑसुओं से तर चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों के बीच लेकर कहा___"पाप करने वालों की उमर बहुत लम्बी नहीं होती है उनकी नियति में बहुत जल्द सड़ सड़ के मर जाना लिखा होता है। जो गुनाह जो पाप उन्होने किया है उसकी उन्हें ज़रूर सज़ा मिलेगी दीदी। बस वक्त का इन्तज़ार कीजिए।"

"तू उन सबको अपने हाॅथों से मौत की सज़ा देगा।" रितू दीदी ने कहा___"मैंने उन सबको सिर्फ तेरे लिए ही छोंड़ दिया था। मैं चाहती थी कि इन्होंने जिनके साथ पाप किया वही इन्हें अपने हाॅथों से सज़ा दें। और हाॅ, तू अपने मन में पल भर के लिए भी ये ख़याल मत लाना कि तू ऐसा करेगा तो मैं तुझे कुछ कहूॅगी। मैं सच कहती हूॅ राज, मुझे इस बात का ज़रा सा भी दुख नहीं होगा कि तूने मेरे माॅम डैड और शिवा को मौत दी।"

"आप शायद दुनियाॅ की पहली ऐसी लड़की हैं दीदी जिसे इस सबसे कोई दुख नहीं होगा।" मैने दीदी की ऑखों में देखते हुए कहा___"किन्तु आप ऐसा कह रही हैं ये हैरत की बात है मेये लिए।"
"इसमें हैरत कैसी राज?" रितू दीदी ने कहा___"हर इंसान को अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल मिलता है। मेरे घर वालों को भी मिलेगा। तक़लीफ़ तो तब होती है जब अच्छे कर्मों का फल बुरा मिलता है, लेकिन इन लोगों ने तो सिर्फ बुरा कर्म ही किया है अपनी ज़िंदगी में। इन लोगों के मर जाने से मुझे कोई दुख नहीं होगा मेरे भाई, बल्कि इस बात का मलाल ज़रूर रहेगा कि ईश्वर ने मुझे ऐसे माॅ बाप और ऐसा भाई क्यों दिया था?"

रितू दीदी की इन बातों को सुन कर मैं हैरानी से उनकी तरफ देखता रह गया था। मुझे उन पर बड़ा स्नेह आया। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हल्के से चूॅम लिया। मेरे इस तरह चूमने पर वो हौले से मुस्कुराईं।

"तू सच में बड़ा हो गया है राज।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"इस बात से मुझे खुशी है कि तू बड़ा हो गया है और समझदार भी। हलाॅकि ये बात तो मैं पहले भी जानती थी कि तू एक समझदार लड़का है। सबके प्रति तेरे दिल में प्यार इज्ज़त व सम्मान की भावना है। ख़ैर छोंड़ इन सब बातों को, ये बता कि तू तहखाने में कैसे पहुॅच गया था?"

"वो हरिका काका के बिहैवियर से मुझे उन पर संदेह हुआ।" मैने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"आप तो जानती ही हैं कि अगर किसी के मन में किसी तरह का संदेह हो जाता है तो वो हर पल यही प्रयास करता रहता है कि उसे जिस चीज़ पर संदेह हुआ है वो उसके सामने साफ तौर पर खुल जाए या उसकी हकीक़त पता चल जाए। बस हरिया काका के मामले में यही हुआ था। मुझे उन पर संदेह हुआ और जैसे ही वो तहखाने वाले रास्ते की तरफ गए तो मैं भी शंकर काका की नज़रों से खुद को छुपा कर हरिया काका के पीछे चला गया। उनके पीछे जाने से तहखाने में जो सच्चाई मुझे पता चली उसने मुझे मुकम्मल तौर पर हिला कर रख दिया। मुझे पता चला कि तहखाने में मौजूद उन चारो हरामज़ादो ने मेरी विधी के साथ क्या किया था? उसके बाद फिर मुझे वही करना था जो ऐसी परिस्थिति में कोई भी करता। मगर ऐन वक्त पर आपका फोन आ गया और मैं उन कमीनों के साथ वो न कर पाया जो करने का मैने फैंसला कर लिया था।"

"मुझे माफ़ कर दे राज।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"पर तुझे नहीं पता कि उन लोगों के साथ साथ मैं और किन किन लोगों के साथ क्या क्या करने वाली हूॅ? इन चारों को आसान मौत मारने का कोई मतलब नहीं है मेरे भाई। मैंने ऐसा कुछ करने का सोचा हुआ है जिसके बारे किसी ने सोचा भी नहीं होगा।"

"क्या करने का सोचा है आपने?" मैने दीदी के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए कहा___"क्या मुझे नहीं बताएॅगी आप?"
"बात कुछ ऐसी है मेरे भाई।" रितू दीदी ने सहसा पलट कर दूसरी तरफ अपना चेहरा करते हुए कहा___"कि मैं तुझे बता नहीं सकती। बस इतना समझ ले कि इन लोगों ने अगर नीचता की हद को पार किया था तो मैं इन्हें सज़ा देने में इनके साथ नीचता की इन्तेहां कर दूॅगी।"

"क्या मतलब???" मैं दीदी की बात सुन कर बुरी तरह चौंका था___"ऐसा क्या करने वाली हैं आप??"
"मैने कहा न राज।" रितू दीदी ने दूसरी तरफ मुॅह किये हुए ही कहा___"कि मैं तुझे इस बारे में कुछ बता नहीं सकती।"
"लेकिन दीदी।" मैं उनके पास जाते हुए बोला___"आपने तो सोच लिया है कि आपको उन चारों को क्या सज़ा देना है लेकिन बात जब नीचता की हो तो मैं ये कैसे सह सकता हूॅ कि मेरी बहन कोई नीचता वाला काम करे? नहीं दीदी आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी। आप मुझे बताइये कि उन चारों के साथ साथ और कौन कौन ऐसे हैं जिनको उनके गुनाहों की सज़ा देनी है? मैं खुद अपने हाॅथों से उन्हें बद से बदतर सज़ा दूॅगा।"

"मुझे मजबूर मत कर मेरे भाई।" रितू दीदी सहसा मेरी तरफ पलट कर मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कहा__"तू मेरा भाई है, इस लिए मैं तुझे वो बात कैसे बता सकूॅगी जिसे बताने में मुझे शर्म आए। दूसरी बात तू भी यही सोचेगा कि तेरी दीदी कैसे गंदे विचारों की है?"

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी।" मैने उनके चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों के बीच लेकर कहा___"मुझे पता है कि आपका मन और दिल गंगा मइया की तरह साफ और निर्मल है। आपने अपने जीवन कभी कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसके लिए आपको किसी के सामने शर्मिंदा होना पड़े। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे आप पर नाज़ है। इस लिए आप मुझे बेझिझक होकर बताइये कि इन लोगों के साथ और कौन कौन हैं जिनको आप ऐसी सज़ा देने का मन बनाया हुआ है?"

"सूरज चौधरी को तो तू जानता ही है कि वो कौन है और किसका कपूत है?" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"इस प्रदेश का मंत्री है वो। सूरज के साथ बाॅकी तीन जो लड़के और हैं वो सब भी किसी न किसी बड़े बाप की औलाद हैं। जब विधी वाला हादसा इन लोगों ने अंजाम दिया और मुझे उन सबके बारे में पता चला तो मुझे ये समझते देर न लगी कि इन लड़कों को कानूनन सज़ा दिलवाने से भी कुछ नहीं होने वाला। क्योंकि इनके सबके बाप बड़े बड़े लोग हैं। सारी कानून ब्यवस्था को इन लोगों ने अपने हाॅथों पर रखा हुआ है। अगर मैं इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल भी देती तो पलक झपकते ही मुझे उन लोगों को छोंड़ना भी पड़ जाता। ऊपर से यही आर्डर आता कि मंत्री साहब का बेटा और उसके तीनो साथियों मैने बेवजह ही गिरफ़्तार कर जेल में बंद किया है। कहने का मतलब ये कि कानूनी तौर पर मैं इन्हें कोई सज़ा दिला ही नहीं पाती। इस लिए मैंने कानून की मुहाफिज़ होते हुए भी कानून को अपने हाॅथ में लेने का मन बना लिया। किन्तु मैं ये भी जानती थी कि ये सब इतना आसान नहीं था। तब मैने अपने आला अफसर से इस संबंध में बात की। उन्हें मैंने इस बात का भी हवाला दिया कि प्रदेश का मंत्री कहने को तो मंत्री है मगर ऐसा कोई गुनाह या अपराध नहीं है जिसे इसने अपने बाॅकी साथियों के साथ मिल कर अंजाम न दिया हो। मेरी बात सुन कर कमिश्नर साहब राज़ी तो हुए मगर मंत्री के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत न होने की वजह से उस पर हाॅथ डालने से मुझे मना भी करने लगे। तब मैने उन्हें बताया कि मेरे पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे ऐसे ठोस सबूत हैं जिनकी बिना पर मैं जब चाहूॅ तब उसे और उसके सभी साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा देने पर मजबूर कर दूॅ। मेरी बातें सुन कर कमिश्नर साहब ने मुझे खुली छूट दे दी और कह दिया कि मेरा जो दिल करे वो मैं कर सकती हूॅ।"

"ओह तो इसका मतलब बात सिर्फ इतनी ही नहीं है जितनी कि मुझे नज़र आ रही है।" मैने चकित भाव से दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"इस सब में प्रदेश का मंत्री और उसके कुछ साथी भी इनवाल्ब हैं?"
"इन्वाल्ब नहीं है राज।" रितू दीदी ने कहा___"बल्कि इस खेल में उन सबको भी लपेटना पड़ा मुझे। मैं चाहती थी कि एक ही काम में दोनो काम हो जाएॅ। सारा प्रदेश उस मंत्री के अत्याचार से भी दुखी है। इस लिए बाप बेटों को एक साथ लपेटने का मन बनाया मैने।"

"तो इसमें ऐसी क्या बात थी दीदी जिसे आप बताना नहीं चाहती थी?" मैने सोचने वाले भाव से कहा।
"ये तो मैने किरदारों के बारे में बताया है तुझे।" रितू दीदी ने कहा___"ये नहीं बताया कि इन सब किरदारों के साथ क्या करूॅगी मैं?"

"ओह आई सी।" मैने कहा___"आप बताना नहीं चाहती तो कोई बात नहीं दीदी। मैं सिर्फ ये चाहता हूॅ कि इस सब में आपको कुछ न हो। आपकी बातों से मैं ये बात समझ गया हूॅ कि जिन लोगों की आपने बात की है वो निहायत ही खतरनाक लोग हैं। इस लिए उन पर हाॅथ डालने से यकीनन बेहद ख़तरा है और मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि ऐसे ख़तरों के बीच मेरी दीदी अकेले फॅस जाएॅ। अच्छा हुआ कि आपने मुझे इस बारे में बता दिया। अब मैं खुद आपको इस ख़तरे के बीच अकेला नहीं रहने दूॅगा। ये लड़ाई अब हम दोनो बहन भाई मिल कर लड़ेंगे और जीत कर दिखाएॅगे दुनियाॅ को।"

"ये तू क्या कह रहा है मेरे भाई?" रितू दीदी एकाएक ही चौंक पड़ी थी, बोली___"नहीं नहीं, तू इस सबसे दूर ही रह। मैं तुझे ऐसे ख़तरे के बीच में आने की इजाज़त हर्गिज़ नहीं दूॅगी। बड़ी मुश्किल से तो मेरा भाई मुझे मिला है। सारी उमर मैने तुझे दुख तक़लीफ़ें दी थी अब और नहीं मेरे भाई। मैं तुझे किसी भी ख़तरे में नहीं डालूॅगी। तू इस सबसे दूर रहेगा और इन सबको साथ लेकर वापस मुम्बई चला जाएगा। तू मेरी फिक्र मत कर राज, तेरी दीदी इतनी कमज़ोर नहीं है कि कोई भी ऐरा गैरा उसे हाथ भी लगा सके।"

"मैं जानता हूॅ कि मेरी दीदी दुनियाॅ की सबसे बहादुर लड़की है।" मैने दीदी को उनके दोनो कंधों से पकड़ कर कहा___"मगर, एक भाई होने के नाते मेरा भी कुछ फर्ज़ बनता है। मैं सक्षम होते हुए भी आपको अकेले ऐसे ख़तरे में कैसे जाने दूॅ? मेरे दिल मेरा ज़मीर हमेशा इस बात के लिए मुझे धिक्कारेगा कि मैंने अकेले आपको इतने बड़े खतरे में जाने दिया और खुद अपनी जान बचा कर मुम्बई चला गया। नहीं दीदी, ऐसा कायर और बुजदिल नहीं है आपका भाई। आप भी तो मुझे मुद्दतों बाद मिली हैं। आप जानती हैं कि बचपन से अब तक मैं आपसे बात करने के लिए तरस रहा था और आज जब मुझे मेरी सबसे प्यारी दीदी मिल गई है तो मैं कैसे आपको यूॅ अकेला मौत के मुह में छोंड़ कर चला जाऊॅगा? कभी नहीं दीदी....कभी नहीं। मैं मर जाऊॅगा मखर आपको यूॅ अकेला छोंड़ कर यहाॅ से कहीं नहीं जाऊॅगा।"

"नहींऽऽऽ।" मेरे मुख से मरने की बात सुन कर तुरंत ही दीदी के मुख से चीख निकल गई। झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया उन्होंने, फिर बोलीं___"ख़बरदार अगर ऐसी अशुभ बात दुबारा कही तो। मरेंगे तेरे दुश्मन। तुझे कुछ नहीं होने दूॅगी मैं।"

"तो फिर मुझे अपने पास रहने दीजिए दीदी।" मैने उनके गले लगे हुए ही कहा___"मुझे अपना फर्ज़ निभाने दीजिए। अपने इस भाई को कायर और बुजदिल मत बनाइये। वरना यकीन मानिये मैं कभी भी सुकून से जी नहीं पाऊॅगा। हम दोनो साथ मिल कर हर ख़तरे का मुकाबला करेंगे। सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब साथ में ही रहेंगे। मुझे आपसे बहुत सारी बातें भी करनी हैं। प्लीज़ दीदी, मुझे अपने साथ रहने दीजिए न।"

"उफ्फ राज।" दीदी ने मुझे कस के पकड़ते हुए कहा___"तू इतना अच्छा क्यों है रे? इतना प्यार क्यों करता है तू अपनी इस दीदी से? क्या तू भूल गया कि ये वही दीदी है जिसने तुझे कभी अपना भाई नहीं माना और हमेशा तुझे जलील करके तेरा दिल दुखाया है। ऐसी दीदी से क्यों इतना प्यार करता है पगले?"

"मुझे आपसे कभी कोई दुख नहीं मिला दीदी।" मैं उनसे अलग होकर तथा उनके खूबसूरत चेहरे को अपनी हॅथेलियों पर लेकर कहा___"और ना ही आपने कभी मुझे कोई दुख दिया है। हर इंसान के जीवन में अच्छा बुरा समय आता है। इस लिए जो बीत गया मुझे उसका लेश मात्र भी रंज़ नहीं है, बल्कि आज इस बात की बेहद खुशी है कि मुझे वो दीदी मिल गई है जिसे मैं सबसे ज्यादा पसंद करता था।"

मेरी बात सुन कर रितू दीदी फफक कर रो पड़ी। उनकी ऑखों से झर झर करके ऑसूॅ बहने लगे। ये देख कर मैं तड़प उठा। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनकी ऑखों से बहते हुए ऑसुओं को पोंछा।

"ऐसी बातें मत कर मेरे भाई।" दीदी ने सिसकते हुए कहा___"मैं अपने अंदर के जज़्बातों को सम्हाल नहीं पाऊॅगी। मेरा दिल धड़कना बंद कर देगा। आज मुझे एहसास हुआ कि सच्चा प्यार व स्नेह कैसा होता है? क्यों इस प्यार में लोग अपने किसी प्रिय के लिए खुद को कुर्बान कर देते हैं? तू प्यार मोहब्बत और प्रेम का जीता जागता प्रमाण है राज। मैं अपने भाई के इस सच्चे प्रेम में बह जाना चाहती हूॅ। म??
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11-24-2019, 12:52 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
विराज के कमरे से जाते ही रितू ने अपने जिस्म से पुलिस की वर्दी निकाली और एक टाॅवेल लेकर बाॅथरूम में घुस गई। उसके सिर पर जो चोंट लगी थी वो बहुत ज्यादा दर्द कर रही थी। किन्तु उसने अपने उस दर्द को बड़ी मुश्किल से जज़्ब किया हुआ था। खून तो रिसा था किन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल निकाल कर उसे पहले ही साफ कर लिया था। चोंट इतनी भी गहरी नहीं थी जिससे बात गंभीर होती। जीप के किनारे पर लगा लोहे का पाइप उसके सिर के किनारे वाले भाग के थोड़ा सा ऊपर लगा था। उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने सिर से रिस रहे खून को रुमाल से साफ किया था। उसके बाद उसने सिर पर वापस पीकैप पहन ली थी जिससे चोंट से रिसा हुआ खून और चोंट दिखनी बंद हो गई थी। वो नहीं चाहती थी कि उसको लगी किसी भी प्रकार की चोंट फार्महाउस में किसी को भी नज़र आए या पता चले।

बाथरूम में रितू ने खुद को फ्रेश किया और फिर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक नई वर्दी पहनी और फिर पीकैप लगा कर खुद को पूरी तरह तैयार किया। आलमारी से उसने एक दर्द की टैबलेट ली और वहीं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने उस टैबलेट को खाया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायनिंग हाल में इस वक्त खाना खाने के लिए सिर्फ तीन ही लोग थे। विराज, आशा, और रितू। रितू के आने के बाद पवन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा। तीनों ने बड़े आराम से खाना खाया। बाॅकि सब अपने अपने कमरे में थे। कुछ ही देर में तीनों ने खाना खा लिया।

"तू क्या फिर से ड्यूटी पर जा रही है रितू?" आशा दीदी ने पूछा___"मैने तो सोचा था कि हम सब यहाॅ गप्पें लड़ाएंगे। मगर अब जबकि तू जा रही है तो फिर मैं क्या करूॅगी इसके सिवा कि कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊॅगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ज़रूरत नहीं है आशा।" रितू दीदी ने कहा___"शाम को तुम सबको राज के साथ मुम्बई के लिए निकलना है। इस लिए सामान की पैकिंग करके रेडी रहना।"
"क्याऽऽ???" आशा दीदी बुरी तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से जाएॅगे???"

रितू दीदी की बात सुनकर मैं भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। मैं तो कुछ और ही सोचे हुए था। रितू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के लिए कहने वाला था ताकि अपनी सभी टिकटें कैंसिल करवा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे हिला कर रख दिया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थीं___"तुम लोगों का यहाॅ से सुरक्षित मुम्बई निकलना ज़रूरी है। क्योंकि आने वाला हर पल एक नये ख़तरे को अपने साथ लेकर आ रहा है। तुम सबके यहाॅ रहते हुए किसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम सब यहाॅ से मुम्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है रितू।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता देती हूॅ इस बारे में।"
"ठीक है ।" रितू दीदी ने कहा___"पवन और राज के उस दोस्त को भी बता देना। चल राज।"

अंतिम वाक्य मुझे देख कर कहने के साथ ही रितू दीदी कुर्सी से उठ कर बाहर की तरफ चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बुझे मन से चल दिया। बाहर आकर दीदी अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गईं। जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर दीदी ने मुझे भी साथ में बैठने को कहा तो मैं भी चुपचाप बैठ गया। मेरे बैठते ही दीदी ने जिप्सी मेन गेट की तरफ दौड़ा दिया।

"काका, यहाॅ सबका ख़याल रखना।" लोहे वाले गेट के पास रुक कर दीदी ने हरिया काका से कहा___"हम आते है कुछ देर में।"
"फिकर ना करो बिटिया।" हरिया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू न होई।"

हरिया काका की बात सुन कर दीदी मुस्कुराई और फिर जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। मैं उतरा हुआ चेहरा लिये दूसरी तरफ देख रहा था। सच कहूॅ तो मुझे दीदी का आशा दीदी से ये कहना कि वो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी बिलकुल अच्छा नहीं लगा था।

"क्या हुआ मेरा भाई नाराज़ है मुझसे?" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ देख कर कहा था। उनकी ये बात सुन कर मैने उनकी तरफ एक नज़र देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से दूसरी तरफ देखने लगा।

"अपने से दूर तो मैं भी तुझे नहीं जाने देना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि मुझे ये सब करना पड़ रहा है। मगर मैं ये नहीं कह रही राज कि इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नहीं नहीं बल्कि हम दोनो साथ साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरफ एक झटके से देखा। वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को देख कर मेरी सारी नाराज़गी दूर हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने फिर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खेल में काम करेंगे। मगर....
"मगर क्या दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कि तू अभी इन सबको लेकर मुम्बई सुरक्षित पहुॅच जा।" दीदी ने कहा___"जब ये सब वहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सुरक्षा की चिंता से हम दोनो ही मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तुम वहाॅ से वापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली से फिर इस खेल को अंजाम तक पहुॅचाएॅगे।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतंत्रतापूर्वक ये जंग तभी लड़ सकेंगे जब हमारी ये सारी कमज़ोरियाॅ हमारे दुश्मन की नज़र से या पहुॅच से बहुत दूर हो जाएॅगी। क्योंकि हमारे दुश्मन ने अगर हमारी एक भी कमज़ोरी को नुकसान पहुॅचा दिया तो वो नुकसान हम हर्गिज़ भी सह नहीं सकेंगे।"

"बिलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि तू हमारी इन सारी कमज़ोरियों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर उन्हें सुरक्षित कर दे। उसके बाद तू वापस यहाॅ आ जाना, उस सूरत में हम दोनो बहन भाई खुल कर और तसल्ली से अपनी जंग लड़ सकेंगे।"

"मैं समझता था कि ये जंग सिर्फ मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"और इस जंग को अकेले ही मुझे इसके अंजाम तक पहुॅचाना है। मगर आपसे मिल कर ये पता चला कि इस जंग में मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे हर क़दम में मेरा साथ देने के लिए मेरी सबसे अज़ीज़ दीदी भी तैयार बैठी हैं। ये मेरे लिए ऐसी खुशी है दीदी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता।"

"चल अब तू फिर से न मुझे इमोश्नल कर देना।" रितू दीदी ने हौले से हॅसते हुए कहा___"वरना मैं फिर रोने लग जाऊॅगी।"
"नहीं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नहीं। आपकी ऑखों में ऑसू देखते ही मेरे अंदर कुछ टूटने सा लगता है। जिससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड़ भाई।" रितू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं फिर सहसा बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तुझसे कुछ पूछूॅ?"
"ये क्या बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरफ देखा__"कोई बात पूछने के लिए भला आपको मुझसे इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है?"

"अच्छा नहीं माॅगती इजाज़त।" दीदी फिर मुस्कुराई, बोली___"मैं तुझसे जो कुछ भी पूछना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जवाब देगा न?"
"हाॅ बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सवाल का सच सच जवाब दूॅगा। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" रितू दीदी ने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"और उन्हीं कई सारी बातों में कई सारे सवाल भी हैं जिनके बारे में मुझे जानना है। तू तो जानता है कि मैं एक पुलिस ऑफिसर भी हूॅ इस लिए हर सवालों का सही सही जवाब पाना मेरी इस पुलिसिया फितरत में भी शामिल है।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है मुझसे आप बेझिझक पूॅछ सकती हैं। अगर आपके सवालों के जवाब मेरे पास होंगे तो ज़रूर मैं आपके हर सवाल का जवाब दूॅगा।"
"सबसे पहला सवाल तो यही है कि तू मुम्बई में कहाॅ और किस हाल में गौरी चाची और गुड़िया को साथ लिए रहता है?" रितू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको भी अपने साथ ही लिए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जायज़ ही है कि इतने सारे लोगों को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सुरक्षित रखेगा?"

"बड़े पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि मैं मुम्बई में कहीं किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला काम करता होऊॅगा। जबकि मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।"

"क्या मतलब???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी थी।
"मतलब साफ है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता दुनियाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कि मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खड़े खड़े ही पूरा हल्दीपुर गाॅव ख़रीद लूॅ। जिस मामूली सी प्रापर्टी को पाने के लिए बड़े पापा ने ये सब किया था न उस प्रापर्टी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू दीदी बुरी तरह उछल पड़ी थी। ब्रेक पैडल पर लगभग वो खड़ी ही हो गई थी। जिसके चलते जिप्सी के टायर ज़ोर से चीखते हुए सड़क पर स्थिर हो गए थे। मेरी तरफ आश्चर्यचकित नज़रों से देखते हुए बोलीं___"तेरे पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू....तूने कहीं कोई ग़लत काम करके तो नहीं ये दौलत अर्जित की है??"

"हाहाहाहा अरे नहीं दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा___"क्या आपको लगता है कि आपका ये भाई दौलत पाने के लिए कोई ग़लत काम करेगा?"
"लगता तो नहीं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी फैली हुई थी, बोली___"मगर सवाल तो खड़ा होता ही है कि इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ मिल जाना कैसे संभव हो सकता है?"

"इस दुनियाॅ में सब कुछ संभव है दीदी।" मैने कहा___"और इसका जीता जागता प्रमाण मैं खुद हूॅ।"
"लेकिन कैसे मेरे भाई??" रितू दीदी चकित भाव से बोल पड़ीं____"ये असंभव संभव कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत ख़ुशी की बात है।"

मैने दीदी को संक्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कि कैसे एक अरबपति इंसान ने मुझे अपना बेटा बना लिया और अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। मैने उन्हें बताया कि मैं उसी अरबपति आदमी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। मेरे काम और मेरे नेचर से प्रभावित होकर वो आदमी एक दिन मेरा मसीहा बन गया।
मैने उन्हें बताया कि आज मैं अपने पूरे परिवार के साथ उसी आदमी के अलीशान बॅगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सुन कर दीदी आश्चर्यचकित रह गईं थी। काफी देर तक उनके मुख से कोई बोल न फूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" फिर दीदी ने खुशी से फूली न समाते हुए कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तुझे तेरे अच्छे कर्मों का फल दिया है। उससे तेरी दुख तक़लीफ़ें नहीं देखी गई और इसी लिए उसने उस आदमी को तेरा मसीहा बना कर भेज दिया तेरे पास। हाॅ भाई, यही सच है। मैं बहुत खुश हूॅ तेरे लिए राज।"

"अब तो आप इस बात से बेफिक्र हैं न कि इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखूॅगा?" मैने मुस्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने जिप्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा__"अब मुझे इन लोगों की कोई चिन्ता नहीं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्या जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढ़ाया।

"मैं नहीं जानती राज कि जो मैं तुझसे कहने वाली हूॅ या जानने वाली हूॅ उसका तुझे पता है भी या उसका तुझसे कोई ताल्लुक है भी कि नहीं।" दीदी ने कहा___"मगर फिर भी इस लिए कह रही हूॅ कि तू मेरा भाई है और तुझे भी जानने का हक़ है कि घर परिवार के बीच या तेरी बहन के साथ क्या क्या हुआ?"

"जी कहिए न दीदी।" मैने कहा___"आप बेझिझक अपनी बात मुझसे शेयर कर सकती हैं।"
"मैने पुलिस की नौकरी अपने शौक के लिए तो की ही थी राज।" रितू दीदी ने जैसे कहना शुरू किया___"मगर दिल में ये भी हसरत थी कि मैं ये नौकरी पूरी ईमानदारी के साथ करूॅगी। ख़ैर, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कि मैं चार्ज़ सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता लगाऊॅगी कि उनका एक्सीडेन्ट वास्तव में एक हादसा ही था या फिर किसी की सोची समझी चाल थी? चार्ज़ सम्हालते ही मैने ऐसा किया भी, मगर पुलिस रिकार्ड में मुझे कहीं कोई ऐसा सुराग़ या क्लू तक नहीं मिला जिससे मुझे संदेह भी हो सके कि उनका एक्सीडेन्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये कि मैने दादा दादी वाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा लिया। ये अलग बात थी कि दिल में ये मलाल अब भी है कि मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद रितू दीदी कुछ पल के लिए रुकी और एक नज़र मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद फिर से सामने की तरफ देखने लगीं।

"उसके बाद फिर डैड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगीं।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद फिर से कहना शुरू किया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब घटना हुई वो ये थी कि कोई विदेशी ब्यक्ति उन्हें करोंड़ो का चूना लगा कर कहीं गायब हो गया। अख़बार में इस बात की ख़बर भी छपी थी। जिसके चलते डैड की इज्ज़त पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कि डैड ने उस विदेशी की खोज में धरती आसमान एक कर दिया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। ख़ैर, इस अजीब घटना के बाद डैड के साथ फिर से एक घटना घटी। उनकी फैक्ट्री में आग लग गई। फैक्ट्री में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करवाई थी और रिपोर्ट भी अपने तरीके से ही बनवाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस लिए किया था ताकि उनकी रेपुटेशन पर फिर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकि धब्बा लगने से वो तब भी नहीं रोंक पाए थे। मैने जब देखा कि कोई नतीजा ही नहीं निकला है तो मैने फैक्ट्री की जाॅच करने का खुद ही बीड़ा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की सिर्फ दो ही वजहें थी। पहला ये जानना कि ऐसा कौन है जिसने डैड की फैक्ट्री में आग लगाई? दूसरा ये कि डैड के हुए उस भारी नुकसान की भरपाई करना। ज़ाहिर सी बात है कि अगर मुजरिम का पता चल जाता तो उससे इस नुकसान की भरपाई कर ली जाती। मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी वाली बात ये हुई थी कि जब मैने खुद जाॅच करने के लिए केस रिओपन करवाया तब गुनगुन शहर का सारा पुलिस महकमा ही बदल दिया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ में किसी को कुछ न आया था। दूसरी हैरानी की बात ये कि लाख कोशिशों के बाद भी उस केस में ये नहीं पता चल सका कि फैक्ट्री में आग आख़िर किसने लगाई थी? हलाॅकि इसमें एक कमज़ोरी ये थी कि डैड ने पूरी ईमानदारी से कोऑपरेट नहीं किया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद रितू दीदी चुप हो गईं। मैने सोचा शायद वो कुछ और बोलेंगी मगर ऐसा न हुआ। उनकी नज़रें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें।" तभी उन्होंने फिर से कहना शुरू किया___"और ये सब मैने तुझसे इस लिए शेयर किया राज ताकि तू भी जान सके कि ये केस मेरी नाकामी का भी हिस्सा हैं। जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शुरू हुए तब से मैने हवेली के अंदर भी कान लगाना शुरू कर दिया था। उससे ज्यादा तो नहीं मगर इतना ज़रूर सुना मैने कि तेरा ज़िक्र बार बार हवेली के अंदर मेरे माॅम डैड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सुना कि ये सब तुमने किया है। मैं ये सुन कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कभी। क्योंकि तब मेरे दिमाग़ में भी यही बातें थी कि तू ये सब कर ही नहीं सकता। मगर ज्यादा दिनों तक मैं तुझे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। क्योंकि कहीं न कहीं मेरे भी दिमाग़ में ये बात आ ही गई थी कि मेरे डैड का अगर कोई सबसे ज्यादा बुरा करना चाहेगा तो वो सिर्फ तू ही था। इस लिए मैंने उन सभी घटनाओं में तुझे जोड़ना शुरू किया और फिर मुझे भी ये लगने लगा कि तेरा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"विराज के कमरे से जाते ही रितू ने अपने जिस्म से पुलिस की वर्दी निकाली और एक टाॅवेल लेकर बाॅथरूम में घुस गई। उसके सिर पर जो चोंट लगी थी वो बहुत ज्यादा दर्द कर रही थी। किन्तु उसने अपने उस दर्द को बड़ी मुश्किल से जज़्ब किया हुआ था। खून तो रिसा था किन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल निकाल कर उसे पहले ही साफ कर लिया था। चोंट इतनी भी गहरी नहीं थी जिससे बात गंभीर होती। जीप के किनारे पर लगा लोहे का पाइप उसके सिर के किनारे वाले भाग के थोड़ा सा ऊपर लगा था। उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने सिर से रिस रहे खून को रुमाल से साफ किया था। उसके बाद उसने सिर पर वापस पीकैप पहन ली थी जिससे चोंट से रिसा हुआ खून और चोंट दिखनी बंद हो गई थी। वो नहीं चाहती थी कि उसको लगी किसी भी प्रकार की चोंट फार्महाउस में किसी को भी नज़र आए या पता चले।

बाथरूम में रितू ने खुद को फ्रेश किया और फिर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक नई वर्दी पहनी और फिर पीकैप लगा कर खुद को पूरी तरह तैयार किया। आलमारी से उसने एक दर्द की टैबलेट ली और वहीं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने उस टैबलेट को खाया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायनिंग हाल में इस वक्त खाना खाने के लिए सिर्फ तीन ही लोग थे। विराज, आशा, और रितू। रितू के आने के बाद पवन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा। तीनों ने बड़े आराम से खाना खाया। बाॅकि सब अपने अपने कमरे में थे। कुछ ही देर में तीनों ने खाना खा लिया।

"तू क्या फिर से ड्यूटी पर जा रही है रितू?" आशा दीदी ने पूछा___"मैने तो सोचा था कि हम सब यहाॅ गप्पें लड़ाएंगे। मगर अब जबकि तू जा रही है तो फिर मैं क्या करूॅगी इसके सिवा कि कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊॅगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ज़रूरत नहीं है आशा।" रितू दीदी ने कहा___"शाम को तुम सबको राज के साथ मुम्बई के लिए निकलना है। इस लिए सामान की पैकिंग करके रेडी रहना।"
"क्याऽऽ???" आशा दीदी बुरी तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से जाएॅगे???"

रितू दीदी की बात सुनकर मैं भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। मैं तो कुछ और ही सोचे हुए था। रितू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के लिए कहने वाला था ताकि अपनी सभी टिकटें कैंसिल करवा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे हिला कर रख दिया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थीं___"तुम लोगों का यहाॅ से सुरक्षित मुम्बई निकलना ज़रूरी है। क्योंकि आने वाला हर पल एक नये ख़तरे को अपने साथ लेकर आ रहा है। तुम सबके यहाॅ रहते हुए किसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम सब यहाॅ से मुम्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है रितू।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता देती हूॅ इस बारे में।"
"ठीक है ।" रितू दीदी ने कहा___"पवन और राज के उस दोस्त को भी बता देना। चल राज।"

अंतिम वाक्य मुझे देख कर कहने के साथ ही रितू दीदी कुर्सी से उठ कर बाहर की तरफ चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बुझे मन से चल दिया। बाहर आकर दीदी अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गईं। जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर दीदी ने मुझे भी साथ में बैठने को कहा तो मैं भी चुपचाप बैठ गया। मेरे बैठते ही दीदी ने जिप्सी मेन गेट की तरफ दौड़ा दिया।

"काका, यहाॅ सबका ख़याल रखना।" लोहे वाले गेट के पास रुक कर दीदी ने हरिया काका से कहा___"हम आते है कुछ देर में।"
"फिकर ना करो बिटिया।" हरिया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू न होई।"

हरिया काका की बात सुन कर दीदी मुस्कुराई और फिर जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। मैं उतरा हुआ चेहरा लिये दूसरी तरफ देख रहा था। सच कहूॅ तो मुझे दीदी का आशा दीदी से ये कहना कि वो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी बिलकुल अच्छा नहीं लगा था।

"क्या हुआ मेरा भाई नाराज़ है मुझसे?" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ देख कर कहा था। उनकी ये बात सुन कर मैने उनकी तरफ एक नज़र देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से दूसरी तरफ देखने लगा।

"अपने से दूर तो मैं भी तुझे नहीं जाने देना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि मुझे ये सब करना पड़ रहा है। मगर मैं ये नहीं कह रही राज कि इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नहीं नहीं बल्कि हम दोनो साथ साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरफ एक झटके से देखा। वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को देख कर मेरी सारी नाराज़गी दूर हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने फिर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खेल में काम करेंगे। मगर....
"मगर क्या दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कि तू अभी इन सबको लेकर मुम्बई सुरक्षित पहुॅच जा।" दीदी ने कहा___"जब ये सब वहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सुरक्षा की चिंता से हम दोनो ही मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तुम वहाॅ से वापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली से फिर इस खेल को अंजाम तक पहुॅचाएॅगे।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतंत्रतापूर्वक ये जंग तभी लड़ सकेंगे जब हमारी ये सारी कमज़ोरियाॅ हमारे दुश्मन की नज़र से या पहुॅच से बहुत दूर हो जाएॅगी। क्योंकि हमारे दुश्मन ने अगर हमारी एक भी कमज़ोरी को नुकसान पहुॅचा दिया तो वो नुकसान हम हर्गिज़ भी सह नहीं सकेंगे।"

"बिलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि तू हमारी इन सारी कमज़ोरियों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर उन्हें सुरक्षित कर दे। उसके बाद तू वापस यहाॅ आ जाना, उस सूरत में हम दोनो बहन भाई खुल कर और तसल्ली से अपनी जंग लड़ सकेंगे।"

"मैं समझता था कि ये जंग सिर्फ मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"और इस जंग को अकेले ही मुझे इसके अंजाम तक पहुॅचाना है। मगर आपसे मिल कर ये पता चला कि इस जंग में मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे हर क़दम में मेरा साथ देने के लिए मेरी सबसे अज़ीज़ दीदी भी तैयार बैठी हैं। ये मेरे लिए ऐसी खुशी है दीदी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता।"

"चल अब तू फिर से न मुझे इमोश्नल कर देना।" रितू दीदी ने हौले से हॅसते हुए कहा___"वरना मैं फिर रोने लग जाऊॅगी।"
"नहीं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नहीं। आपकी ऑखों में ऑसू देखते ही मेरे अंदर कुछ टूटने सा लगता है। जिससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड़ भाई।" रितू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं फिर सहसा बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तुझसे कुछ पूछूॅ?"
"ये क्या बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरफ देखा__"कोई बात पूछने के लिए भला आपको मुझसे इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है?"

"अच्छा नहीं माॅगती इजाज़त।" दीदी फिर मुस्कुराई, बोली___"मैं तुझसे जो कुछ भी पूछना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जवाब देगा न?"
"हाॅ बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सवाल का सच सच जवाब दूॅगा। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" रितू दीदी ने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"और उन्हीं कई सारी बातों में कई सारे सवाल भी हैं जिनके बारे में मुझे जानना है। तू तो जानता है कि मैं एक पुलिस ऑफिसर भी हूॅ इस लिए हर सवालों का सही सही जवाब पाना मेरी इस पुलिसिया फितरत में भी शामिल है।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है मुझसे आप बेझिझक पूॅछ सकती हैं। अगर आपके सवालों के जवाब मेरे पास होंगे तो ज़रूर मैं आपके हर सवाल का जवाब दूॅगा।"
"सबसे पहला सवाल तो यही है कि तू मुम्बई में कहाॅ और किस हाल में गौरी चाची और गुड़िया को साथ लिए रहता है?" रितू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको भी अपने साथ ही लिए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जायज़ ही है कि इतने सारे लोगों को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सुरक्षित रखेगा?"

"बड़े पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि मैं मुम्बई में कहीं किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला काम करता होऊॅगा। जबकि मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।"

"क्या मतलब???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी थी।
"मतलब साफ है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता दुनियाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कि मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खड़े खड़े ही पूरा हल्दीपुर गाॅव ख़रीद लूॅ। जिस मामूली सी प्रापर्टी को पाने के लिए बड़े पापा ने ये सब किया था न उस प्रापर्टी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू दीदी बुरी तरह उछल पड़ी थी। ब्रेक पैडल पर लगभग वो खड़ी ही हो गई थी। जिसके चलते जिप्सी के टायर ज़ोर से चीखते हुए सड़क पर स्थिर हो गए थे। मेरी तरफ आश्चर्यचकित नज़रों से देखते हुए बोलीं___"तेरे पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू....तूने कहीं कोई ग़लत काम करके तो नहीं ये दौलत अर्जित की है??"

"हाहाहाहा अरे नहीं दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा___"क्या आपको लगता है कि आपका ये भाई दौलत पाने के लिए कोई ग़लत काम करेगा?"
"लगता तो नहीं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी फैली हुई थी, बोली___"मगर सवाल तो खड़ा होता ही है कि इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ मिल जाना कैसे संभव हो सकता है?"

"इस दुनियाॅ में सब कुछ संभव है दीदी।" मैने कहा___"और इसका जीता जागता प्रमाण मैं खुद हूॅ।"
"लेकिन कैसे मेरे भाई??" रितू दीदी चकित भाव से बोल पड़ीं____"ये असंभव संभव कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत ख़ुशी की बात है।"

मैने दीदी को संक्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कि कैसे एक अरबपति इंसान ने मुझे अपना बेटा बना लिया और अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। मैने उन्हें बताया कि मैं उसी अरबपति आदमी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। मेरे काम और मेरे नेचर से प्रभावित होकर वो आदमी एक दिन मेरा मसीहा बन गया।
मैने उन्हें बताया कि आज मैं अपने पूरे परिवार के साथ उसी आदमी के अलीशान बॅगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सुन कर दीदी आश्चर्यचकित रह गईं थी। काफी देर तक उनके मुख से कोई बोल न फूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" फिर दीदी ने खुशी से फूली न समाते हुए कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तुझे तेरे अच्छे कर्मों का फल दिया है। उससे तेरी दुख तक़लीफ़ें नहीं देखी गई और इसी लिए उसने उस आदमी को तेरा मसीहा बना कर भेज दिया तेरे पास। हाॅ भाई, यही सच है। मैं बहुत खुश हूॅ तेरे लिए राज।"

"अब तो आप इस बात से बेफिक्र हैं न कि इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखूॅगा?" मैने मुस्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने जिप्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा__"अब मुझे इन लोगों की कोई चिन्ता नहीं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्या जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढ़ाया।

"मैं नहीं जानती राज कि जो मैं तुझसे कहने वाली हूॅ या जानने वाली हूॅ उसका तुझे पता है भी या उसका तुझसे कोई ताल्लुक है भी कि नहीं।" दीदी ने कहा___"मगर फिर भी इस लिए कह रही हूॅ कि तू मेरा भाई है और तुझे भी जानने का हक़ है कि घर परिवार के बीच या तेरी बहन के साथ क्या क्या हुआ?"

"जी कहिए न दीदी।" मैने कहा___"आप बेझिझक अपनी बात मुझसे शेयर कर सकती हैं।"
"मैने पुलिस की नौकरी अपने शौक के लिए तो की ही थी राज।" रितू दीदी ने जैसे कहना शुरू किया___"मगर दिल में ये भी हसरत थी कि मैं ये नौकरी पूरी ईमानदारी के साथ करूॅगी। ख़ैर, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कि मैं चार्ज़ सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता लगाऊॅगी कि उनका एक्सीडेन्ट वास्तव में एक हादसा ही था या फिर किसी की सोची समझी चाल थी? चार्ज़ सम्हालते ही मैने ऐसा किया भी, मगर पुलिस रिकार्ड में मुझे कहीं कोई ऐसा सुराग़ या क्लू तक नहीं मिला जिससे मुझे संदेह भी हो सके कि उनका एक्सीडेन्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये कि मैने दादा दादी वाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा लिया। ये अलग बात थी कि दिल में ये मलाल अब भी है कि मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद रितू दीदी कुछ पल के लिए रुकी और एक नज़र मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद फिर से सामने की तरफ देखने लगीं।

"उसके बाद फिर डैड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगीं।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद फिर से कहना शुरू किया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब घटना हुई वो ये थी कि कोई विदेशी ब्यक्ति उन्हें करोंड़ो का चूना लगा कर कहीं गायब हो गया। अख़बार में इस बात की ख़बर भी छपी थी। जिसके चलते डैड की इज्ज़त पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कि डैड ने उस विदेशी की खोज में धरती आसमान एक कर दिया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। ख़ैर, इस अजीब घटना के बाद डैड के साथ फिर से एक घटना घटी। उनकी फैक्ट्री में आग लग गई। फैक्ट्री में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करवाई थी और रिपोर्ट भी अपने तरीके से ही बनवाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस लिए किया था ताकि उनकी रेपुटेशन पर फिर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकि धब्बा लगने से वो तब भी नहीं रोंक पाए थे। मैने जब देखा कि कोई नतीजा ही नहीं निकला है तो मैने फैक्ट्री की जाॅच करने का खुद ही बीड़ा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की सिर्फ दो ही वजहें थी। पहला ये जानना कि ऐसा कौन है जिसने डैड की फैक्ट्री में आग लगाई? दूसरा ये कि डैड के हुए उस भारी नुकसान की भरपाई करना। ज़ाहिर सी बात है कि अगर मुजरिम का पता चल जाता तो उससे इस नुकसान की भरपाई कर ली जाती। मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी वाली बात ये हुई थी कि जब मैने खुद जाॅच करने के लिए केस रिओपन करवाया तब गुनगुन शहर का सारा पुलिस महकमा ही बदल दिया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ में किसी को कुछ न आया था। दूसरी हैरानी की बात ये कि लाख कोशिशों के बाद भी उस केस में ये नहीं पता चल सका कि फैक्ट्री में आग आख़िर किसने लगाई थी? हलाॅकि इसमें एक कमज़ोरी ये थी कि डैड ने पूरी ईमानदारी से कोऑपरेट नहीं किया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद रितू दीदी चुप हो गईं। मैने सोचा शायद वो कुछ और बोलेंगी मगर ऐसा न हुआ। उनकी नज़रें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें।" तभी उन्होंने फिर से कहना शुरू किया___"और ये सब मैने तुझसे इस लिए शेयर किया राज ताकि तू भी जान सके कि ये केस मेरी नाकामी का भी हिस्सा हैं। जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शुरू हुए तब से मैने हवेली के अंदर भी कान लगाना शुरू कर दिया था। उससे ज्यादा तो नहीं मगर इतना ज़रूर सुना मैने कि तेरा ज़िक्र बार बार हवेली के अंदर मेरे माॅम डैड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सुना कि ये सब तुमने किया है। मैं ये सुन कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कभी। क्योंकि तब मेरे दिमाग़ में भी यही बातें थी कि तू ये सब कर ही नहीं सकता। मगर ज्यादा दिनों तक मैं तुझे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। क्योंकि कहीं न कहीं मेरे भी दिमाग़ में ये बात आ ही गई थी कि मेरे डैड का अगर कोई सबसे ज्यादा बुरा करना चाहेगा तो वो सिर्फ तू ही था। इस लिए मैंने उन सभी घटनाओं में तुझे जोड़ना शुरू किया और फिर मुझे भी ये लगने लगा कि तेरा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"
Reply
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
ये सब कहने के बाद रितू दीदी एकदम से चुप हो गईं। जिप्सी पुल के पास पहुॅच चुकी थी। इस लिए जिप्सी रोंक कर रितू दीदी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी थीं। जैसे मेरे चेहरे से ही समझ जाना चाहती हों कि सच्चाई क्या है।

"मेरा ही तो इन सभी घटनाओं में ताल्लुक था दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए जैसे उनके ऊपर बम फोड़ा__"हाॅ दीदी। आपने जिन घटनाओं का ज़िक्र किया उन सबका कर्ता धर्ता मैं ही तो था। वो विदेशी डीलर भी मैं ही था जिसने बड़े पापा से वो डील की और फिर बिना कुछ बताए गायब हो गया था। उसके बाद उनकी फैक्ट्री में आग भी मैने ही लगाई थी। कहने का मतलब ये कि बड़े पापा के साथ जो कुछ भी अभी तक बुरा हुआ है उसका जिम्मेदार सिर्फ मैं ही रहा हूॅ और आगे भी जो कुछ उनके साथ बुरा होगा उसका भी जिम्मेदार मैं ही होऊॅगा।"

"क्याऽऽऽ????" रितू दीदी मेरी बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ी थीं, बोली___"नहीं नहीं मैं नहीं मान सकती राज। भला तू ये सब कैसे कर सकता था? तू तो यहाॅ था ही नहीं।"

"आपके मानने या न मानने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी दीदी।" मैने कहा___"और हाॅ, आपको तो अभी ये भी नहीं पता कि फैक्ट्री के तहखाने में कुछ था भी या नहीं?"
"क्या मतलब??" रितू दीदी की ऑखें फैली___"फैक्ट्री के तहखाने में भला क्या था जिसकी बात कर रहा है तू?"

"आपको क्या लगता है दीदी?" मैने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आपके डैड इतने कम कमीने इंसान हैं? अरे नहीं दीदी, वो तो ऊॅचे दर्ज़े के पापी हैं। कपड़ा मील का ब्यापार व फैक्ट्री तो महज दिखावा मात्र थी जबकि उनका असल कारोबार तो ड्रग्स अफीम चरस आदि का था। किन्तु ये कारोबार चूॅकि कानून की नज़र में ग़ैर कानूनी होता है इस लिए बड़े पापा इस कारोबार को सबकी नज़रों से छुपा कर करते थे। फैक्ट्री के अंदर मौजूद उस तहखाने में उनकी वही काली दुनियाॅ का काला चिट्ठा मौजूद था जिसे मैने फैक्ट्री में टाइम बम लगाने से पहले ही गायब कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कि उनका ये कारनामा कानून की नज़र में आए। मैं तो अपने हाॅथों से उन्हें हर सज़ा देना चाहता हूॅ। कानून की चपेट में आने से भला मैं कैसे उन्हें अपने तरीके से सज़ा दे सकता था? इस लिए मैने तहखाने से उनका वो सारा ज़खीरा गायब कर दिया जो ग़ैर कानूनी था।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी की ऑखें हैरत से फटी की फटी रह गई थी। उनके चेहरे पर हैरत और अविश्वास का सागर मानो हिलोरें ले रहा था।

"क्या सच में इस सबमें तेरा ही हाॅथ था राज?" रितू दीदी ने अविश्वास भरे लहजे से कहा___"मगर ये सब कैसे मुमकिन हो सकता है मेरे भाई? ये सब कैसे कर लिया तूने? बंद फैक्ट्री के अंदर और वो भी तहखाने के अंदर पहुॅचना इतनी आसान बात तो न थी। उस सूरत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि तू कभी फैक्ट्री गया ही नही था। फिर कैसे ये सब कर लिया तूने?"

"मन में सच्ची लगन हो तो सब कुछ मुमकिन हो जाता है दीदी।" मैने कहा___"ऊपर वाला भी फिर आपके लिए राहें आसान कर देता है। ये तो मुझे पता ही था कि बड़े पापा की शहर में कहीं पर कपड़ा मील की फैक्ट्री है। पर चूॅकि मैं कभी फैक्ट्री गया नहीं था इस लिए मैने फैक्ट्री के संबंध में जानकारी हाॅसिल करने के लिए अपने दोस्त पवन को लगाया। उसने मुझे फैक्ट्री के संबंध में सारी बातें बताई। उसके बाद मैने प्लान बनाया और इस प्लान में गुड़िया(निधी) ने भी मेरा साथ देने के लिए ज़बरदस्ती मेरी वाइफ का रोल किया। उसके बाद मुझे पवन ने बताया कि बड़े पापा का एक बिजनेस पार्टनर है जिसका नाम अरविंद सक्सेना है, इतना ही नहीं इन दोनो पार्टनर्स के बीच बहुत ही गहरे संबंध हैं। पवन ने जब गहरे संबंधों की बात की तो मैं समझ न पाया था कि ये कैसे संबंधों की बात कर रहा है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि बड़े पापा और सक्सेना आपस में एक दूसरे की बीवियों के साथ सब कुछ कर लेते हैं। ये बात जान कर मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई। मैने सोचा कि बड़े पापा भला ऐसा कैसे कर सकते हैं?? मगर मैं जानता था कि ऐसे ब्यक्ति से भला अच्छे कर्म की उम्मीद कैसे की जा सकती है? ख़ैर, पवन से अरविंद सक्सेना के बारे में सुनकर मैने पवन से कहा कि सक्सेना के खिलाफ़ कोई ऐसा सबूत हाॅसिल करे जिसके आधार पर वो कुछ भी करने को तैयार हो जाए। मेरे कहने पर पवन ने वैसा ही किया और फिर एक दिन पवन ने मुझे बताया कि उसने सक्सेना के घर से कुछ फोटोग्राफ्स और वीडियोज़ हाॅसिल किये हैं। जिनमें सक्सेना बेहद आपत्तिजनक स्थित में है। मैने पवन से उन फोटुओं को कुरियर द्वारा मॅगवा लिया। इसके बाद मैने सक्सेना को तेल की धार पर लेने में ज़रा भी देरी न की। कहने का मतलब ये कि मैने उन फोटोग्राफ्स के आधार पर सक्सेना को इतना मजबूर कर दिया कि वो कुछ भी कर सकता था। सबसे पहले मैने उससे बड़े पापा के कारोबार की सारी जानकारी ली उसके बाद मैने उससे बड़े पापा की और भी बहुत सारी जानकारी हाॅसिल की। सक्सेना दरअसल थोड़ा फट्टू किस्म का आदमी था। उसे इस बात का पता चल गया था कि उसका पार्टनर उसकी ग़ैर जानकारी में ग़ैर कानूनी धंधा भी करता है और उसके कई ऐसे खतरनाॅक लोगों से भी संबंध हैं जिनका रिकार्ड कानून की फाइलों में वर्षों से दबा पड़ा है।"

मैं इतना कुछ कहने के बाद कुछ पल के लिए रुका और फिर कहना शुरू किया___"सक्सेना को डर था कि कहीं वो किसी दिन कानून की चपेट में न आ जाए। इस लिए वो बड़े पापा से पार्टनरशिप तोड़ना चाहता था मगर वो ऐसा कर नहीं पा रहा था। उसे ये भी डर था कि कहीं उसके पार्टनर को उस पर शक न हो जाए और उसे भी इस धंधे में न लपेट लें। ये बात मुझे तब पता चली थी जब मैं खुद सक्सेना से मिला था। सक्सेना से मैने एक सौदा किया। वो सौदा यही था कि मैं उसे और उसकी फैमिली को सुरक्षित विदेश भेजने का बंदोबस्त कर दूॅगा, इसके बदले उसे वो करना पड़ेगा जो मैं कहूॅगा। मैने उसे अपना सारा प्लान समझाया। सारी बात सुन कर पहले तो वो मेरी बात मानने से इंकार करने लगा। उसे डर था कि कहीं इस सबमें उसकी जान पर न बन आए। पर मैने उसे अच्छी तरह समझाया और उसे इसके लिए राज़ी किया।"

"इसका मतलब फैक्ट्री में लगी आग तूने सक्सेना के द्वारा लगवाई थी?" सहसा रितू दीदी मेरी बात के बीच में ही बोल पड़ी___"मगर जैसा कि तूने बताया कि तहखाने में डैड का ग़ैर कानूनी ज़खीरा मौजूद था तो उसे कैसे गायब करवाया तूने? क्या उसे भी सक्सेना के द्वारा ही गायब किया?"

"सक्सेना के साथ पवन था।" मैने बताया___"सक्सेना को तहखाने के लाॅक का पासवर्ड पता था। उसका काम था तहखाने का लाॅक खोल कर तहखाने में टाइम बम लगाना। पवन का काम सिर्फ यही था कि तहखाने में मौजूद उस ग़ैर कानूनी ज़खीरे को तहखाने से निकाल कर अपने कब्जे में ले ले। प्लान के अनुसार पवन उस सारे सामान को पुलिस हेडक्वार्टर में कमिश्नर के हवाले कर देगा। पुलिस कमिश्नर को ऊपर से आदेश था कि उस सामान को ब्यक्तिगत तौर पर रखे और जब उस सामान की ज़रूरत पड़े तो उसे उसी तरह मेरे हवाले कर दें जैसे वो सामान पवन के द्वारा उन्हें सौंपा गया था।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"भला पुलिस का कमिश्नर ऐसा कैसे कर सकता है? दूसरी बात ऊपर से उसे ऐसा करने का आदेश कैसे मिल सकता है? ये तो बड़ी ही अविश्वसनीय बात है?"

"यही तो मज़ेदार बात है दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"जिस शख्स ने मुझे अपना बेटा मान कर अपनी अरबों की संपत्ति मेरे नाम की उसका नाम जगदीश ओबराय है। जगदीश ओबराय एक बहुत बड़ा बिजनेस टाइकून है और उसका संबंध ऐसे ऐसे लोगों से है जिसके बारे में आदमी सोच भी नहीं सकता। उसी के कहने पर ऊपर से यहाॅ कमिश्नर के पास वो आदेश आया था और इसके पहले भी सारा पुलिस महकमा भी बदला गया था। सारा पुलिस महकमा बदलने का सिर्फ यही मकसद था कि बड़े पापा इतनी आसानी से पुलिस महकमें में कोई सेंध न लगा सकें। पहले वाले उनके सारे पुलिस के कनेक्शन खत्म करना भी ज़रूरी था। इसी लिए ऐसा किया गया था। ये अलग बात है कि आज भी बड़े पापा और आपके लिए ये सारी बातें रहस्य बनी हुई थी।"

"ओह माई गाड।" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फटी पड़ी थी, बोली___"कोई सोच भी नहीं सकता कि तूने इतना बड़ा कारनामा अंजाम दिया होगा। मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ये सब तूने किया है। ख़ैर, जैसा कि तूने बताया कि डैड का सारा ग़ैर कानूनी सामान आज भी पुलिस कमिश्नर के पास सुरक्षित मौजूद है, और वो उस सामान को तेरे हवाले तभी करेंगे जब तुझे उस सामान की ज़रूरत होगी। मेरा सवाल ये है कि उस सामान के द्वारा आने वाले समय में क्या करने वाला है तू?"

"आपके इस सवाल का जवाब बहुत ही सीधा और साफ है दीदी।" मैने सपाट भाव से कहा___"मैं चाहूॅ तो आज यहीं पर खड़े खड़े बड़े पापा को कानून की ऐसी चपेट में ला सकता हूॅ जहाॅ से वो सात जन्मों में भी उबर नहीं पाएॅगे। मगर मैं ये काम इतना जल्दी करूॅगा नहीं। क्योंकि एक ही बार में मैं उन्हें ऐसा झटका नहीं देना चाहता कि वो उस झटके से एक ही बार में खाक़ में मिल जाएॅ। बल्कि मैं तो उन्हें थोड़ा थोड़ा करके झटका देना चाहता हूॅ और उन्हें ये मौका भी देना चाहता हूॅ कि वो अपनी तरफ से जितनी भी कोशिश करनी हो कर लें अपने बचाव के लिए।"

"ओह तो ये बात है।" रितू दीदी को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, बोली___"डैड का वो सारा ग़ैर कानूनी सामान तेरे लिए किसी तुरुप के इक्के से कम नहीं है। ख़ैर, तो अब आगे का क्या प्लान है तेरा?"
"अभी का तो यही प्लान है दीदी कि पहले इन सब लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर इन सबको सुरक्षित कर दूॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"उसके बाद मैं यहाॅ वापस आऊॅगा और आपके साथ मिल कर कुछ अलग और अनोखा करने की कोशिश करूॅगा।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कि तभी वहाॅ पर एक टैक्सी आकर रुकी। हम दोनो का ध्यान उस तरफ गया। कुछ ही पलों में टैक्सी से करुणा चाची, दिव्या, शगुन और हेमराज मामा उतरे। मैं और दीदी भी जिप्सी से उतर कर उनके पास गए। टैक्सी वाले को उसका पैसा देने के बाद वो सब हमारी तरफ मुड़े। करुणा चाची की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो उनकी ऑखों में ऑसू तैरते दिखाई देने लगे। वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ीं और फिर मुझे अपने सीने से लगा लिया। मैं भी अपनी चाची से मिल कर थोड़ा भावुक सा हो गया किन्तु फिर मैने अपने जज़्बातों को काबू किया और फिर उनसे अलग हो गया। मेरी नज़र दिव्या पर पड़ी तो वो मुझे ही देख रही थी। मैने अपनी बाहें फैला दी तो वो एकदम से मेरी तरफ दौड़ पड़ी और मुझसे लिपट गई। उससे मिलने के बाद मैने शगुन को प्यार दिया।

थोड़ी देर सबसे मिलने के बाद मैने उन्हें जिप्सी में बैठने को कहा तो वो सब जिप्सी में बैठ गए। सबके बैठते ही दीदी ने जिप्सी को वापस मोड़ कर आगे बढ़ा दिया। मैं दीदी के साथ आगे ही बैठा था बाॅकी सब पिछली शीट्स पर बैठे थे। कुछ ही समय में हम सब फार्महाउस पहुॅच गए। फार्महाउस के अंदर जाकर करुणा चाची नैना बुआ से मिली और पवन की माॅ बहन आदि से। उसके बाद नैना बुआ ने चाची और मामा जी से खाने का पूॅछा तो वो बोलीं कि वो घर से खा पी कर ही चले थे। ख़ैर, लेडीज पार्टी एक जगह बैठ कर बातों में लग गईं जबकि मैं अपने दोस्त पवन और आदित्य के पास आ गया। शाम को हमे मुम्बई के लिए निकलना भी था।
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प्रतिमा अपने कमरे के अटैच बाथरूम से बाहर निकली। सामने बेड पर पूरी तरह से निर्वस्त्र पड़े शिवा की नज़र जैसे ही अपनी माॅ पर पड़ी तो उसके मुझ से आह निकल गई। प्रतिमा के गोरे सफ्फाक बदन पर इस वक्त मात्र एक पिंक कलर का टावेल था। जिसे वह अपनी भारी भरकम छातियों को आधे से ढॅके थी तथा नीचे उसकी मोटी चिकनी और गोरी जाघों तक को ढॅका हुआ था। जब से रितू हवेली से गई थी तब से दोनो माॅ बेटा कमरे में वासना और हवस के खेल में डूबे हुए थे। प्रतिमा खुश थी कि उसे बेटे के रूप में एक जवान मर्द मिल गया था जो उसके जिस्म की गर्मी को शान्त करने में कोई कसर नहीं छोंड़ेगा। अजय सिंह अब जवानी के दौर से बाहर निकल चुका था। उसके साथ सेक्स करने में प्रतिमा को मज़ा तो आता था किन्तु पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती थी।

शिवा, जो कि अजय सिंह की ही कार्बन काॅपी था। गुण और शक्ल से वो अपने बाप पर ही गया था। जब से उसने जवानी की देहलीज़ पर क़दम रखा था तब से उसकी नज़रें घर की लड़कियों और औरतों पर ही जमी रहती थी। वो उन सभी के जिस्मों को भोगने की लालसा में रात दिन लगा रहता था। मगर डर व भय की वजह से वो कभी ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाया था। अपनी माॅ पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था। अक्सर वो अपने बाप को प्रतिमा को पेलते हुए देखा करता था। प्रतिमा के भारी भरकम बूब्स और गदराया हुआ जिस्म उसके अंदर बुरी तरह वासना की आग भड़का देता था।

किन्तु उसकी चाहत आज वर्षों बाद पूरी हो चुकी थी। जिस औरत पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था उस औरत के जिस्म को वह भोग रहा था। वो अपने बाप का शुक्र गुज़ार था कि उसने उसे ये अनमोल तोहफा दिया था। रितू जैसे ही हवेली से निकली थी वैसे ही शिवा और प्रतिमा एक दूसरे की बाहों में समा गए थे। हवेली में उन दोनो के अलावा दूसरा कोई न था। नौकर चाकर दोपहर में अपने अपने कमरों में चले जाते थे। इस लिए इस तन्हाई का भरपूर फायदा उठाया था इन दोनो ने।

शिवा को याद नहीं कि पहले दिन से अब तक वो कितनी बार अपनी माॅ को भोग चुका था। उसे तो बस इतना समझ आ रहा था कि उसका अभी दिल नहीं भरा है। ये सोच कर वो फिर से अपनी माॅ पर चढ़ जाता और अलग अलग पोजीशन में अपनी माॅ को रौंदता रहता। प्रतिमा को भी जवान मर्द का ये जोश बहुत मज़ा दे रहा था। इस लिए वो खुद भी उसी जोश से अपने बेटे का पूरी तरह से साथ देती थी।

"ऐसे क्या देख रहे हो शिव?" अपने सामने प्रतिमा अपने बेटे को ऐसे ही संबोधित करने लगी थी, बोली___"क्या दिल नहीं भरा अभी?"
"हाॅ मेरी रंडी माॅ।" शिवा ने अपने लंड को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"तुमको जितना भी पेलूॅ उतना ही लगता है कि अभी और पेलूॅ। कसम से आज तक जितनी लड़कियों को अपने नीचे सुलाया है उन सभी में से तुम सबसे ऊपर हो। तुम्हारे जैसा जिस्म और तुम्हारे जैसी अदा किसी और में नहीं देखी मैने।"

"कैसे देखते मेरे शिव।" प्रतिमा ने बड़ी अदा से शिवा के पास आते हुए कहा___"वो सब लड़कियाॅ तुम्हारी माॅ तो नहीं थी न? वो सब तुम्हें एक माॅ जितना प्यार और समर्पण भाव कैसे कर सकती थीं?"
"हाॅ ये बात तो सच कही तुमने।" शिवा ने प्रतिमा के टावेल के छोर को पकड़ कर अपनी तरफ ज़ोर से खींचा तो टावेल प्रतिमा के बदन से अलग होता चला गया और प्रतिमा भी उसी झोंक में शिवा के ऊपर आ गई। जबकि अपने ऊपर प्रतिमा के आते ही शिवा ने कहा___"तुम एक औरत के साथ साथ मेरी माॅ भी तो हो। इसी लिए इतना प्यार और समर्पण है तुममें। तभी तो मेरा दिल बार बार यही कहता है कि एक बार और हो जाए।"

"तो करो न शिव।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही झुक कर शिवा के होठों को चूम लिया___"रोंका किसने है तुम्हें? मैं तो खुद भी यही चाहती हूॅ कि तुम मुझे इस हवेली के हर ज़र्रे पर ले जाकर बुरी तरह से प्यार करो। मुझे ऐसे ऐसे तरीके से पेलो कि पूरी हवेली में मेरी चीखें गूॅजने लगें।"

"उफ्फ कितना विल्ड पसंद है तुम्हें?" शिवा ने प्रतिमा की एक छाती को बुरी तरह मसल दिया, बोला___"तुम तो वो चीज़ हो डियर मदर कि तुम्हें एक अकेला मर्द संतुष्ट नहीं कर सकता। तभी तो डैड तुम्हारे लिए अपने साथ साथ एक और मर्द को लेकर आते थे। क्या नाम था उसका? अरे हाॅ सक्सेना.... हाय रे वो साला कैसे कैसे मेरी इस राॅड माॅम को पेलता रहा होगा।"

"क्यों जलन हो रही है तुम्हें??" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"जलन किस बात की डियर मदर?" शिवा ने कहा__"ये तो तुम्हारी ख्वाहिशों की बात है। सबको अपनी ख्वाहिशें पूरा करना चाहिए। तुमने भी वही किया, सो मुझे इसमें जलने की क्या ज़रूरत है?"

"मतलब मुझे अगर बाहर का कोई भी आदमी पेले तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं है??" प्रतिमा ने कहा।
"जब डैड को ही कोई परेशानी नहीं हुई तो मुझे क्यों होगी भला?" शिवा ने कहा___"ख़ैर छोंड़ो इन बातों को और आओ एक बार और घमासान पेलाई हो जाए।"
"क्यों नहीं शिव।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"मुझे भी एक बार और करने की इच्छा है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने एक हाॅथ को सरका कर नीचे शिवा के मुरझाए हुए लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। इधर शिवा ने भी प्रतिमा की छातियों को हाथों से पकड़ कर मसलने लगा। अभी ये सब ये दोनो कर ही रहे थे कि बगल से एक स्टूल पर रखे फोन की घंटी बज उठी। फोन के बज उठने से दोनो के ही चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे।

"हैलो।" फोन उठाते ही शिवा ने कहा।
".........।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्याऽऽऽ???" शिवा अपने डैड की बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
".........।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए, बोला___"कहीं ऐसा तो नहीं कि दीदी को उसका पता चल गया हो और फिर उन्होंने उसे अपने रास्ते से हटा दिया हो? अगर ऐसा कर भी दिया होगा तो हम उन पर शक तो कर सकते हैं मगर उनके सामने उन पर इस बात का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।"

"..........।" उधर से कुछ देर तक कहा गया।
"ऐसा कब तक चलेगा डैड?" शिवा के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव आए___"हर बार हमारे हाथ नाकामी ही लगती है। हमें अब खुद मैदान में उतरना पड़ेगा। इस तरह तो हमारा एक एक आदमी लापता होता रहेगा और हम कुछ कर ही नहीं पाएॅगे। इस लिए हमें सीरियसली ये सब खुद ही करना पड़ेगा। रितू दीदी की गतिविधियाॅ स्पष्ट समझ में आ रही हैं कि वो हमारे खिलाफ़ हैं। अगर विराज से वो मिल चुकी हैं तो साफ है कि उन्हें हमारे बारे में सब कुछ पता चल गया होगा और अब वो उस कमीने विराज का साथ दे रही हैं। हाॅ डैड, दीदी भले ही आपकी बेटी हैं मगर बात जब अन्याय और जुर्म की आएगी तो वो हमारा साथ नहीं देंगी। ये उनके कैरेक्टर से साफ पता चलता है।"

"......।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"यस डैड।" शिवा कह उठा___"अब तो साफ साफ और खुल कर खेल होना चाहिए।"
".........।" उधर से अजय सिंह ने कुछ कहा।
"ओके डैड।" शिवा ने कहा___"आप आ जाइये। मैं और माॅम हवेली में ही हैं।"

इसके साथ ही संबंध विच्छेद हो गया। शिवा ने रिसीवर को केड्रिल पर रखा और धम्म से बेड पर चित्त लेट गया। प्रतिमा उसी को एकटक देखे जा रही थी।

"क्या बात हुई डैड से?" प्रतिमा ने पूछा।
"डैड बता रहे थे कि उन्होंने जिस आदमी को दीदी के पीछे लगाया था।" शिवा ने कहा___"उस आदमी का फोन काफी देर से बंद बता रहा है।"
"क्याऽऽ???" प्रतिमा हैरान____"इसका मतलब हमारा ये आदमी भी बली का बकरा साबित हो गया।"

"ये सब आपकी बेटी की वजह से हो रहा है माॅम।" शिवा ने कठोर भाव से कहा___"उसी ने हमारे उस आदमी का गेम बजाया होगा। उसे पता है कि अगर वो ऐसा करेगी तो हम उस पर बेवजह और बिना सबूत के कोई इल्ज़ाम नहीं लगा सकेंगे। मगर अब हम भी बताएॅगे उसे कि हमसे गद्दारी करने का क्या अंजाम होता है? डैड ने भी यही कहा है कि ये काम रितू दीदी का ही है और अब डैड ने भी फैंसला कर लिया है कि वो खुद इस सब का पता करेंगे और दीदी को उनके किये की सज़ा देंगे।"

"उफ्फ क्या करूॅ इस लड़की का?" प्रतिमा ने कसमसाते हुए अपने माॅथे पर हथेली मारी___"अपने ही माॅ बाप को गर्त में डुबाने पर तुली हुई है ये।"
"अब आपकी उस बेटी के साथ कोई रियायत नहीं होगी माॅम।" शिवा ने गुस्से से कहा___"अभी तक यही सोच कर हमने उस पर कोई कठोर क़दम नहीं उठाया था कि चलो कोई बात नहीं हमारी अपनी है वो, मगर अब नहीं। उसने हमसे बगावत की है माॅम। अपने ही माॅ बाप का सर्वनाश करने पर तुली हुई है वो। इस लिए अब उसे उसके इस जघन्य अपराध की शख्त सज़ा मिलेगी।"

प्रतिमा कुछ कह न सकी। अंदर ही अंदर काॅप कर रह गई वो। उसे अपनी बेटी के लिए दुख तो हुआ था किन्तु उसे भी इस बात का एहसास था कि उसकी बेटी ने अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ जा कर ग़लत किया है। वो अपने पति और बेटे को अच्छी तरह जानती थी। वो अब किसी भी सूरत में रितू को मुआफ़ करने वाले नहीं थे। उसे खुद भी रितू के इस कृत्य पर गुस्सा आया हुआ था। मगर वो कर भी क्या सकती थी? अब तो बस वो मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर सकती थी कि सब कुछ ठीक हो जाए।
Reply
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
इधर रितू के फार्महाउस पर!
मैं, आदित्य और पवन आपस में बातें ही कर रहे थे कि सहसा कमरे के दरवाजे पर बाहर से नाॅक हुई। पवन ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी खड़ी थी। दीदी को देखते ही पवन एक तरफ हट गया तो दीदी अंदर आ गई। मैने दीदी के चेहरे पर हल्का परेशानी के भाव देखे तो चौंका।

"क्या बात है दीदी?" मैंने उनके पास आकर पूछा__"सब ठीक तो है ना?"
"हाॅ सब ठीक है राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं ये कहने आई हूॅ कि तुम सबको अभी यहाॅ से निकलना होगा गुनगुन के लिए। क्योंकि बाद में संभव है कि डैड अपने किसी अन्य आदमियों को यहाॅ रास्तों पर घेरा बंदी के लिए लगा दें। हलाॅकि उन्हें ये पता नहीं है कि तू अभी यहीं है या यहाॅ से जा चुका है। मगर हालात बदल चुके हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा__"हालात तो बदले हुए ही थे उसमें अब क्या हो गया है?"
"बहुत कुछ हुआ है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"डैड को मुझ पर पहले से शक था इस लिए आज उन्होंने मेरे पीछे अपना एक आदमी लगाया हुआ था जिसे मैने बीच रास्ते पर ही धर लिया था और फिर उसे बेहोश करके यहाॅ ले आई थी। अब ज़ाहिर सी बात है कि डैड ने अपने आदमी से फोन पर जानकारी प्राप्त करनी चाही होगी मगर जब वो ये जानेंगे कि उनके आदमी का फोन ही बंद है तो उन्हें समझते देर नहीं लगेगी कि मैने उनके आदमी को गिरफ्तार कर लिया है या फिर उसे ठिकाने लगा दिया है। उस सूरत में वो मुझ पर बेहद गुस्सा होंगे और संभव है कि मेरी तलाश में घर से खुद ही निकल लें। अगर उन्होंने ऐसा किया तो समझ लो उनके साथ और भी आदमी होंगे जो यहाॅ के हर रास्तों पर फैल जाएॅगे। ऐसे में तुम लोगों का यहाॅ से गुनगुन के लिए निकलना मुश्किल हो जाएगा। इसी लिए कह रही हूॅ कि तुम सब जितना जल्दी हो सके यहाॅ से फौरन निकलने की तैयारी करो। बाहर मेरी जिप्सी को मिला कर दो गाड़ियाॅ हैं। उन दोनो गाड़ियों में तुम सब आराम से आ जाओगे। लेकिन सामान कुछ भी नहीं जा पाएगा। इस लिए सामान को यहीं छोंड़ देना। सारा सामान यहाॅ सुरक्षित ही रहेगा।"

"आपने तो कह दिया दीदी।" मैने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैं इन सबको लेकर यहाॅ से चला जाऊॅ। मगर मैं जानता हूॅ कि आज के वक्त में आप कितने बड़े ख़तरे में हैं। मैं आपको ऐसे अकेले छोंड़ कर कैसे यहाॅ से चला जाऊॅ दीदी? मेरे जाने के बाद अगर आपको कुछ हो गया तो सारी ज़िंदगी मैं अपने आपको माफ़ नहीं कर पाऊॅगा।"

"चुप कर तू।" दीदी ने मुझे ज़बरदस्ती झिड़क दिया, हलाॅकि मैं जानता था कि वो अपने अंदर के जज़्बातों को शख्ती से दबा रही थी, बोली___"जब देखो इमोशनल होता रहता है। अब ज्यादा बोलना नहीं और चुपचाप यहाॅ से सबको लेकर निकल।"

"मैं कहीं नहीं जाऊॅगा आपको अकेला छोंड़ कर।" मेरी ऑखों में ऑसू आ गए।
"तुझे मेरी क़सम है मेरे भाई।" रितू दीदी ने झटके से मेरा हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया था___"तू यहाॅ से सबको लेकर अभी इसी वक्त जाएगा। मेरी चिन्ता मत कर। तेरी दीदी कोई इतनी भी गैर मामूली नहीं है जिसे कोई भी ऐरा ग़ैरा हजम कर जाएगा। अरे मैं तेरी बहन हूॅ राज। जिसका भाई इतना प्यार करता हो उसका भगवान भी कुछ न कर सकेंगे। और फिर बस दो दिन की ही तो बात है न मेरे भाई। फिर तो तू आ ही जाएगा न मेरे पास। तू चिन्ता मत कर, मैं खुद को ऐसी जगह छुपा लूॅगी कि तेरे आने से पहले मेरा बाप तो क्या कोई भी माई का लाल मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। चल अब तू बेफिक्र होकर जा।"

ये कह कर दीदी एक पल के लिए भी नहीं रुकीं। बल्कि कहने के साथ ही कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद भी कुछ देर तक मैं भौचक्का सा खड़ा रह गया था। होश तब आया जब आदित्य ने मेरे कंधे पर अपना हाॅथ रख कर हल्के से दबाया।

"चलो दोस्त।" आदित्य ने भारी स्वर में कहा___"यहाॅ से चलने की तैयारी करो। अपनी इस महान दीदी की बात मानो। मैं इतने दिनों से देख रहा हूॅ कि रितू सिर्फ अपने भाई के लिए ही जी रही है। हर वक्त उसे सिर्फ तुम्हारी ही फिक्र रहती है। आज भी वो सिर्फ तुम्हारी और इन सबकी फिक्र की वजह से ही तुम्हें यहाॅ से सीघ्र चलने को कह कर गई है। उसे अपने ऊपर मॅडरा रहे भीषण खतरे की कोई फिक्र नहीं है। मैं तुमसे सिर्फ एक ही बात कहूॅगा दोस्त____और वो ये कि इन सबको मुम्बई में सुरक्षित पहुॅचाने के बाद तुम एक पल के लिए भी वहाॅ नहीं रुकना। बल्कि उल्टे पैर वापस सीधा यहीं आओगे। मैं खुद भी तुम्हारे साथ ही आऊॅगा।"

"आदि मेरे दोस्त।" मैने भावना में बह कर आदित्य को गले से लगा लिया। उसने खुद भी मुझे ज़ोर से कस लिया था।
"कितना ग़लत सोचा करता था मैं रितू दीदी के बारे में।" तभी पवन कह उठा___"हर पल शक की नज़र से देखता था उनको। मगर यहाॅ आकर पता चला कि वो कितनी अच्छी हैं और उनके अंदर तेरे लिए कितना प्यार है। उन्होंने सच का साथ देने के लिए अपने ही माॅ बाप और भाई से हर रिश्ता तोड़ लिया। सच में राज, हमारी रितू दीदी बहुत महान हैं।"

मैने पवन को भी खुद से छुपका लिया। कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे के गले लगे रहने के बाद हम तीनो अलग हुए और फ्रेश होने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए। अपने कमरे में पहुॅच कर मैने जगदीश अंकल को फोन लगाया और उनसे कुछ ज़रूरी बातें की। उनको यहाॅ के हालात के बारे में बताया और ये भी बताया कि मैं इन लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर वापस आ जाऊॅगा। इस लिए मेरे और आदित्य दोनो के लौटने की टिकट का इंतजाम वो कर देंगें। जगदीश अंकल से मैने ये भी कहा कि इस सबके बारे में वो माॅ को ज़रूर मना लेंगे वरना वो मुझे वापस आने नहीं देंगी।

जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। कुछ ही देर में हम सब बाहर लान में खड़ी जिप्सी में थे। जिप्सी में रितू दीदी के साथ मैं, करुणा चाची, दिव्या और शगुन थे। जबकि दूसरी जीप में शंकर काका जो कि ड्राइविंग शीट पर थे उनके साथ आदित्य, पवन, आशा दीदी और माॅ आदि बैठे थे। सबसे मिल कर और हरिया काका को फार्महाउस की सुरक्षा का कह कर हम सब फार्म हाउस से बाहर निकल पड़े।

फार्महाउस में इस वक्त हरिया काका, बिंदिया, नैना बुआ और हेमराज मामा थे। हेमराज मामा को आज यहीं पर रुकने का कह दिया था करुणा चाची ने। रास्ते में रितू दीदी ने मोबाइल पर फोन लगा कर अपने महकमे में किसी से बात की और कुछ पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उनके आस पास ही रहने के लिए कहा।

दोनो गाड़िया ऑधी तूफान बनी गुनगुन के लिए उड़ी जा रही थी। आस पास हर तरफ हमारी नज़रें भी दौड़ रही थीं। ताकि अगर कहीं बड़े पापा या उनके आदमी हमें दिखें तो हम पहले से ही उनसे निपटने के लिए तैयार हो जाएॅ। लगभग दस मिनट बाद ही दो पुलिस की गाड़ियाॅ हमें नज़र आईं। एक हमारी गाड़ी को ओवरटेक करके हमारे आगे आगे चलने लगी और दूसरी गाड़ी हमारे पीछे पीछे चलने लगी।

आधे घंटे बाद हम सब गुनगुन के रेलवे स्टेशन पहुॅच गए। यहाॅ से मुम्बई जाने के लिए शाम को पाॅच बजे ट्रेन थी। इस वक्त साढ़े तीन बजे थे। रेलवे स्टेशन पहुॅच कर रितू दीदी ने हम सबको वेटिंग रूम में बैठाया और वहीं पर पुलिस के कुछ आदमियों को भी बैठाया। मैं दीदी के पास चुपचाप बैठा था। दीदी एकटक मुझे ही देख रही थी।

"नाराज़ है मुझसे???" दीदी ने मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए कहा___"चल कोई बात नहीं मेरे भाई। तू कहीं भी रहे बस सलामत रहे तो तेरी हर नाराज़गी भी सह लूॅगी मैं। तू जब लौट के आएगा न तब तुझे मना लूॅगी मैं। फिर देखूॅगी कि तू मुझसे कितनी देर तक नाराज़ रह पाता है? बच्चूलाल मुझे ऐसे वैसे मत समझना तू। मुझे भी नाराज़ भाई को मनाना बहुत अच्छे से आता है। समझे न मेरे प्यारे भाई?"

रितू दीदी की बात पर मुझे अंदर ही अंदर हॅसी तो आई मगर मैने अपने चेहरे पर उन भावों को ज़ाहिर न होने दिया। ऐसे ही बैठे बैठे और इधर उधर की बातों से समय ब्यतीत हो गया और पाॅच बज गए। मुम्बई जाने वाली ट्रेन का एनाउंसमेन्ट होने लगा तो हम सब वेटिंगरूम से बाहर आ गए। कुछ ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई। हम सब एसी वाले डिब्बों की तरफ बढ़ चले और कुछ ही देर में हम सब एसी के फर्स्ट क्लास डिब्बे में आ गए। हम सब की शीटें पास पास ही थीं। सबके बैठ जाने के बाद मैं रितू दीदी के साथ बाहर आ गया।

"मैं परसों किसी भी हाल में यहाॅ आ जाऊॅगा दीदी।" बाहर आते ही मैने दीदी से कहा___"आप खुद का बहुत अच्छे से ख़याल रखेंगी। कुछ दिनों के लिए ड्यूटी पर जाना भी बंद कर दीजिएगा। हलाॅकि मैंने भी ऐसा कुछ इंतजाम कर दिया है कि बड़े पापा कुछ कर ही नहीं पाएॅगे।"

"क्या मतलब??" रितू दीदी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा___"क्या कर दिया है तूने??"
"बहुत जल्द आपको भी पता चल जाएगा दीदी।" मैने अजीब भाव से कहा___"काफी दिन हो गए हैं बड़े पापा को झटका दिये हुए। इस लिए मैने सोचा कि इस मौके पर उन्हें एक झटका देना बिलकुल उचित और फायदेमंद है। आख़िर मुझे भी तो आपकी फिक्र है दीदी। ऐसे ख़तरे में अकेला छोंड़ कर जा रहा हूॅ, तो कुछ तो आपकी सुरक्षा का इंतजाम कर दूॅ।"

"अरे पर तूने किया क्या है राज?" रितू दीदी ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या तू मुझे नहीं बता सकता?"
"बता तो सकता हूॅ दीदी।" मैने शरारत से उनकी सुर्ख हो चुकी नाॅक पर हल्के से उॅगली मारते हुए कहा___"मगर ये एक सरप्राइज़ है। इस लिए बता नहीं सकता। मगर डोन्ट वरी कल आपको भी पता चल जाएगा।"

"तू न बहुत बदमाश हो गया है।" रितू दीदी ने तो मेरी नाॅक ही पकड़ ली, बोली___"ख़ैर, देखती हूॅ कल कि तूने क्या शरारत की है मेरे डैड के साथ?"
"यस ऑफकोर्स।" मैं मुस्कुराया और फिर एकाएक ही मैने गंभीरता से कहा___"दीदी एक बार विधी के घर भी हो आइयेगा आप। उस दिन के बाद आज तक नहीं जा पाया हूॅ मैं। जबकि ये मेरा फर्ज़ था कि मैं अपनी पत्नी की हर क्रिया को खुद अपने हाॅथों से करता।"

"तू चिंता मत कर मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"मैने सब कुछ कर दिया है। बस ये सब एक बार ठीक हो जाए उसके बाद तू खुद अपने हाॅथों से विधी की अस्थियों को पावन गंगा में विसर्जित कर देना।"
"क्या कहा आपने?" मैं खुशी से चौंकते हुए बोला___"आप ने विधी की अस्थियाॅ एकत्रित कर रखी हैं?"

"हाॅ राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं भला कैसे भूल सकती थी उसे? तेरा बाहर निकलना ख़तरे से खाली नहीं था इस लिए तेरे नाम से मैं खुद ही विधी के घर गई थी और फिर विधी के डैड के साथ उसकी अस्थियाॅ लेने गई थी। विधी की अस्थियों को मैने फार्महाउस में सुरक्षित रखा हुआ है।मैने सोचा था कि जब ये सब फसाद खत्म हो जाएगा तब मैं तुझसे कहूॅगी कि जा राज अपनी विधी की अस्थियों को पवित्र गंगा में बहा दे।"

"ओह दीदी, आप सच में बहुत महान हैं।" कहते हुए मेरी ऑखों में ऑसू आ गए___"आपको मेरी हर चीज़ का कितना ख़याल है।"
"विधी अगर तेरी प्रेमिका या पत्नी थी तो वो मेरी भी तो कुछ लगती थी राज।" दीदी ने गंभीर भाव से कहा__"मेरे जीवन में उसकी अहमियत बहुत ज्यादा है मेरे भाई। उसी की वजह से मेरा हृदय परिवर्तन हुआ। उसी की वजह से मुझे पता चला कि सच्चा प्यार क्या होता है। उसी ने मुझे बताया कि जिस भाई को मैने कभी देखना तक गवाॅरा नहीं किया था वो वास्तव में कितना अच्छा है। हाॅ राज, विधी ने सब बताया मुझे। उसके बाद जब उसने मुझसे कहा कि उसे एक बार अपने महबूब से मिलना है और उसी की बाहों में अपने जीवन की अंतिम साॅस लेनी है तो उस वक्त मेरा कलेजा दहल गया। मेरे अंदर से किसी ने चीख चीख कर कहा कि देख ले रितू, एक ये है कि अपने प्यार के लिए इसने कितने दुख सहे और खुद को खाक़ में भी मिला दिया और एक तू है कि एक ऐसे भाई को कभी देखना तक पसंद नहीं किया जिसका कहीं कोई दोष ही नहीं था। जिसने तेरे साथ कभी बुरा ही नहीं किया। बल्कि हमेशा इज्ज़त और सम्मान के साथ तुझे दीदी कहते हुए थकता नहीं था। कसम से भाई, उस वक्त मुझे अपनी ग़लतियों का बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ और मैने इस सबके बारे में अलग तरह से सोचना शुरू किया। मैने विधी से वादा किया कि उसके महबूब को उसके पास ज़रूर लाऊॅगी। उसके बाद मैने तेरे दोस्तों के बारे में पता किया तो मुझे तेरे गहरे दोस्त के रूप में पवन का पता चला। मैं पवन से मिली और उससे तेरे बारे में पूछा। मगर वो मुझे तेरे बारे में कुछ भी बताने को तैयार ही नहीं हो रहा था। उसे लगता था कि मैं तेरे बारे में इस लिए पूछ रही हूॅ ताकि तेरा पता करके मैं अपने डैड को बता दूॅ कि तू फला स्थान पर है। जब पवन मुझे कुछ भी बताने से इंकार कर दिया तो मैने उसे सारी बातें बताई और खुद उसे विधी के पास ले आई। ये साबित करने के लिए कि मैं जो कुछ भी उससे कह रही थी वो सब सच है और इसके पीछे मेरे अंदर कोई भी बुरी भावना नहीं है। विधी को देखने बाद ही पवन को एहसास हुआ कि मैं सच कह रही हूॅ और तभी उसने तुझसे बात की थी।"

दीदी की बातें सुन कर मैं फिर से पिछली यादों में खो गया था। तभी दीदी की आवाज़ फिर से मेरे कानों में पड़ी___"इस सबकी वजह से ही मुझे लगा कि तू और गौरी चाची इतने भी ग़लत या बुरे नहीं हैं जितना कि बचपन से माॅम डैड ने हम तीनो भाई बहनों को बताया था या सिखाया था। उसके बाद मैने अपने माॅम डैड और भाई पर नज़र रखना शुरू किया तो जल्द ही मुझे सच्चाई का पता चल गया कि वास्तव में बुरा कौन है। बस उसके बाद तो तेरी ये दीदी सिर्फ तेरी ही बहन बन कर रह गई मेरे भाई। मैने अपने माॅम डैड व भाई सबसे रिश्ता तोड़ दिया। ऐसे रिश्तों से नाता जोड़े रखने का मतलब भी क्या था जिन रिश्तों में वासना और हवस के सिवा कुछ था ही नहीं।"

मैने रितू दीदी को अपने सीने से लगा लिया। वो बुरी तरह भावनाओं और जज़्बातों में बहने लगी थी जिसकी वजह से उनकी ऑखों से ऑसू बहने लगे थे। एसी के उस डिब्बे के पास ही हम दोनो भाई बहन एक दूसरे से गले लगे हुए थे। आस पास से आते जाते लोग हमें अजीब भाव से देखने लगे थे। ये देख कर मैने दीदी को खुद से अलग अलग किया और उन्हें लेकर डिब्बे के अंदर आ गया।

रितू दीदी एक बार फिर सबसे मिली और फिर ट्रेन के चलते ही वो ट्रेन से उतरने के लिए बाहर की तरफ जाने लगीं। मैं भी उनके पीछे पीछे गेट तक आ गया। गेट के पास पहुॅच कर जब दीदी ट्रेन से उतरने लगी तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे छूटने वाली है। मैने हौले से दीदी को दीदी कह कर आवाज़ दी तो वो तुरंत मेरी तरफ पलटीं, जैसे उन्हें मेरे पुकारने का ही इन्तज़ार था। जब पलट कर उन्होंने मेरी तरफ देखा तो ये देख कर मेरा दिल बैठ गया कि उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। मैने उन्हें खींच कर खुद से छुपका लिया, वो खुद भी मुझसे कस कर लिपट गई। लेकिन तुरंत ही वो मुझसे अलग भी हो गईं।

"अब तू जा राज।" फिर उन्होने खुद को सम्हालते हुए कहा___"सबका ख़याल रखना। मैं तेरे आने का इंतज़ार करूॅगी और हाॅ गुड़िया को मेरा प्यार देना।"
"आप भी अपना ख़याल रखियेगा।" मैने कहा___"और अब आप सीधा फार्महाउस जाएॅगी। दो दिन के लिए ड्यूटी से छुट्टी ले लीजिएगा। मैं जब आऊॅ तो आपको फार्महाउस पर ही हॅसते मुस्कुराते हुए पाऊॅ।"

"मेरी मुस्कुराहट तो तू ही है मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को सहलाया___"जब तू आ जाएगा न तो मेरा ये चेहरा अपने आप ही खिल उठेगा।"

मैं उनकी इस बात पर हौले से मुस्कुराया और फिर झुक कर उनके माथे पर हल्के से चूम लिया। मेरी इस क्रिया से वो भी मुस्कुरा दी और फिर मेरे गाल पर हलके से चूम कर वो सावधानी से धीरे धीरे चल रही ट्रेन से उतर गईं। मैं गेट पर खड़ा उन्हें तब तक देखता रहा जब तक कि आगे मोड़ आ जाने की वजह से दीदी मेरी नज़रों से ओझल न हो गईं। उनके ओझल होते ही मैं दरवाजे से पीछे की तरफ हटकर वहीं पर ट्रेन के उस डिब्बे की पिछली पुश्त से टेक लगाये हुए ऑखें बंद कर खड़ा हो गया। कुछ देर यूॅ ही खड़े रहने के बाद मैंने एक गहरी साॅस ली और फिर मैं अंदर अपनी शीट की तरफ आ गया।
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विराज के ओझल होते ही रितू प्लेटफार्म से बाहर की तरफ तेज़ तेज़ क़दमों के साथ बढ़ती चली गई। दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त तूफान तारी हो गया था उसके। दिल में भड़कते हुए जज़्बात उसके काबू से बाहर होने लगे थे जिसकी वजह से उसकी रुलाई फूटने को आतुर थी। मगर बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला हुआ था। स्टेशन से बाहर आते ही वो अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गई। जिप्सी के पास ही एक और जीप थी जिसमें शंकर काका बैठे हुए थे। रितू ने शंकर काका को वापस लौटने का कह दिया। पुलिस के जो आदमी आगे पीछे आए थे उनमें से एक जीप वाले पुलिस वालों को रितू ने शंकर के साथ जाने का कह दिया जबकि दूसरे जीप वालों को अपने आस पास ही रहने को कहा।

शंकर काका के जाने के बाद रितू ने भी जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। किन्तु उसकी जिप्सी का रुख हल्दीपुर की तरफ न होकर किसी और ही तरफ था। उसके पीछे कुछ ही फाॅसले पर एक अलग गाड़ी में दूसरे पुलिस वाले भी थे जो सादे कपड़ों में थे। लगभग दस मिनट बाद रितू ने जिस जगह पर जिप्सी को रोंका उसके पास ही एक "जिम" था।

जिम के बाहर कुछ ही दूरी के फाॅसले पर उसने अपनी जिप्सी को खड़ी कर वो नीचे उतरी और पास ही एक दुकान के पास जाकर उसने दुकान से मिनरल वाटर का एक बाटल खरीदा और वापस आकर जिप्सी में बैठ गई। अपनी बाईं कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर उसने एक नज़र डाली। शाम के पाॅच बज कर बीस मिनट हो रहे थे।

जिप्सी में बैठी रितू थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में बाटल से पानी पीती रही। उसकी नज़र जिम के मुख्य दरवाजे पर थी। मतलब साफ था कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति का इन्तज़ार कर रही थी जो उस जिम से बाहर आने वाला था। कुछ देर और गुज़रने के बाद एक बार फिर से रितू ने अपनी कलाई पर बॅधी रिस्टवाॅच में नज़र डाली। पाॅच बज कर तीस मिनट हो चुके थे। उसके पीछे कुछ ही दूरी पर दूसरी गाड़ी में बैठे दूसरे पुलिस वाले रितू की तरफ ना समझने वाले भाव से देखे जा रहे थे।

उस वक्त रितू के होठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी जिस वक्त जिम के मुख्य द्वार से कुछ लड़के और लड़कियाॅ बाहर निकले। रितू की नज़र एक ऐसी लड़की पर स्थिर हो गई जिसके खूबसूरत बदन पर इस वक्त जिम वाले कपड़े थे। एकदम चुस्त दुरुस्त। उसको देख कर ही लग रहा था कि इसकी ऊम्र अट्ठारह या बीस से ज्यादा नहीं होगी।

रितू ने देखा कि वो लड़की जिम से निकलने के बाद पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गई है। कुछ ही देर में वो लड़की एक नई नवेली स्कूटी में पार्किंग से बाहर आती हुई दिखी और फिर रितू की ऑखों के सामने से ही वो दाहिने तरफ के रास्ते की तरफ सरपट जाती हुई नज़र आई। उसके जाते ही रितू ने जिप्सी को स्टार्ट किया और उस लड़की के पीछे चल पड़ी। उसके पीछे दूसरी गाड़ी में बैठे बाॅकी के पुलिस वाले भी बढ़ चले।

मेन मार्केट से निकलने के बाद रितू ने देखा कि सामने जा रही वो लड़की एक मोड़ पर मुड़ गई है। रितू ने भी जिप्सी को उस मोड़ पर मोड़ दिया। रितू की नज़र बराबर उस लड़की पर थी। सामने एक अधेड़ सा आदमी इस तरफ अचानक ही आता दिखा। शायद किसी दुकान या किसी घर से निकला था वो। उसके दोनो हाॅथों में एक एक ब्लैक कलर की प्वालिथिन थी। वो अधेड़ आदमी अपनी साइड की तरफ आने के लिए पहले पीछे की तरफ देखा और फिर रोड क्राॅस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा वैसे ही वो उस लड़की की स्कूटी से टकरा गया।

रितू ने साफ तौर पर देखा था कि अधेड़ ब्यक्ति के पास पहुॅचते पहुॅचते उस लड़की ने स्कूटी की रफ्तार को काफी कम कर लिया था मगर कदाचित उसका ध्यान कहीं और था इस लिए हड़बड़ाहट में उसे समझ ही न आया कि वो अब क्या करे? जितना उससे हो सकता था उतना उसने किया था। किन्तु अब वो इसका क्या करती कि लाख कोशिशों के बाद भी उसकी स्कूटी उस अधेड़ ब्यक्ति के जिस्म से छू ही गई थी। जिसका परिणाम ये हुआ कि वो अधेड़ ब्यक्ति बीच सड़क पर भरभरा कर गिर गया था। उसके दोनो हाॅथों पर मौजूद प्वालीथिन छूट गई थी और पक्की सड़क पर गिरते ही प्वालीथिन के अंदर मौजूद सामान फूट गया था। प्वालीथिन में दवाई की बोतलें थी जो फूट गईं थी और अब सारी दवा सड़क पर फैलती जा रही थी।

अधेड़ के गिरते ही उस लड़की ने पहले स्कूटी को खड़ी किया उसके बाद वो एकदम से पैर पटकते हुए उस अधेड़ के सिर पर आ धमकी।

"देख कर नहीं चल सकते थे तुम?" फिर उसकी करकस आवाज़ वातावरण में गूॅजी___"अभी मर जाते तो क्या करते फिर? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकते हो?"

लड़की अनाप शनाप बोलने में लगी ही थी कि आस पास से कई सारे लोग आकर वहाॅ पर इकट्ठा हो गए। सब एक दूसरे से पूछने लगे कि क्या हुआ??? सड़क पर गिरा हुआ वो अधेड़ आदमी किसी तरह उठा और कुछ ही दूरी पर अपनी दवाईयों का हाल देख कर उसके चेहरे पर बेहद पीड़ा के भाव उभर आए। उसने सिर उठा कर अपने चारों तरफ करुण भाव से देखा और फिर उसकी नज़र उस लड़की पर पड़ी जो उसके सिर पर आ धमकी थी।

"लगता है इस लड़की ने इस अधेड़ ब्यक्ति को अपनी स्कूटी से टक्कर मारी है।" आस पास खड़े लोगों के बीच से एक आदमी ने कहा___"देखो तो बेचारे की सारी दवाइयाॅ सड़क पर फूट कर फैल गई हैं।"

"आज कल तो सड़क पर चलना भी दूभर हो गया है भाई।" एक अन्य ब्यक्ति ने तंज कसा___"मोटर साइकिल और गाड़ी वाले आम आदमी को जब देखो तब टक्कर मार देते हैं और उल्टा उसी पर चढ़ दौड़ते हैं। देख रहे हो न इस लड़की को। इसने इस बेचारे बूढ़े आदमी को टक्कर मार दी और अब उल्टा इसे ही डाॅट रही है।"

"ऐ मिस्टर।" लड़की ये सुनते ही उस आदमी की तरफ पलटी___"इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है समझे। ये बुड्ढा खुद ही मरने के लिए मेरी स्कूटी के सामने आया था। वो तो अच्छा हुआ कि मैने टाइम पर ब्रेक मार दिया वरना इसका तो यहीं पर राम नाम सत्य हो जाना था आज।"

"अरे देखो तो कैसे बात कर रही है ये लड़की?" एक अन्य ने कहा___"एक तो खुद ही टक्कर मारी इसने और ऊपर से इस बूढ़े आदमी का दोष लगा रही है ये।"
"बड़े बाप की लगती है भाई।" एक दूसरे ने कहा__"बड़े बाप की बेटी है तभी इतना तीखा बोलती है। तमीज़ नाम की तो कोई बात ही नहीं है इसमें।"

"हाऊ डेयर यू टाक टु मी लाइक दिस?" लड़की ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा___"तुम्हें पता है कि तुम किससे बात कर रहे हो? अगर जान जाओगे न तो यहीं पर खड़े खड़े पेशाब कर दोगे समझे। मैं इस शहर के मंत्री की बेटी हूॅ। इस शहर के मंत्री को तो तुम सब अच्छी तरह जानते ही होगे न?"

लड़की के इतना कहते ही आस पास खड़े लोगों को साॅप सा सूॅघ गया। पलक झपकते ही वो सब वहाॅ से इस तरह गायब हो गए जैसे गधे के सिर से सींग गायब हो जाते हैं। उन सबके जाते ही लड़की के होठों पर विजयी मुस्कान उभरी और फिर उसने हिकारत के से भाव से उस अधेड़ की तरफ देखा। सड़क पर बैठा वो अधेड़ अपनी उस दवा की तरफ देख रहा था जो सड़क पर फैल गई थी। उसकी तरफ देख कर लड़की ने "हुॅह" कहा और फिर पलट कर अपनी स्कूटी की तरफ आ गई। स्कूटी को स्टार्ट कर वो आगे बढ़ चली।

ये सब तमाशा देख रितू ने मोबाइल पर किसी से कुछ कहा और लड़की की तरफ तेज़ी से जिप्सी को दौड़ा दिया। उसके चेहरे पर बेहद गुस्से के भाव थे। सीघ्र ही उसकी जिप्सी उस लड़की की स्कूटी के पास आ गई और फिर रितू ने पीछे से टक्कर मार दी उसे। परिणामस्वरूप लड़की और उसकी स्कूटी उछलते हुए सड़क पर गिरे और कुछ दूर तक घिसटते हुए चले गए। फिज़ा में लड़की की चीख़ गूॅज गई थी। यहाॅ पर आस पास कोई दुकान या घर नहीं था। मार्केट एरिया पीछे ही था। हलाॅकि कुछ ही दूरी पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स दिख रही थी। ज़ाहिर था उन्हीं बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स में से किसी एक बिल्डिंग पर इस लड़की का अलीशान घर होगा।

रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा कर लड़की के पास रोंका और उतर कर लड़की के पास गई। लड़की सड़क के बाएॅ साइड उल्टी पड़ी दर्द से कराह रही थी। बड़ी मुश्किल से वो उठ कर बैठी और फिर अपने बदन पर लगी चोटों को देखने लगी।

"देख कर नहीं चल सकती थी क्या?" रितू ने उसी का वाक्य उसी के लहजे में दोहराया____"अभी मर जाती तो क्या करती तुम? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकती हो?"

रितू की बात सुनकर उस लड़की ने दर्द से कराहते हुए रितू की तरफ देखा और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर गुस्सा उतर आया। इस हालत में भी वो सड़क पर से किसी स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह उछल कर खड़ी हो गई और फिर बिना कुछ बोले ही घूम कर एक फ्लाइंग किक का वार रितू पर कर दिया। मगर उसका ये वार उसे खुद ही भारी पड़ गया। क्योंकि जैसे ही उसने फ्लाइंग किक चलाई वैसे ही झुक कर रितू ने उसकी उस टाॅग पर अपनी टाॅग चला दी थी जो नीचे सड़क पर जमी थी। नतीजा ये हुआ कि जमीन से लड़की का पैर हटते ही उस लड़की का बैलेंस बिगड़ा और वो गुड़ीमुड़ी होकर सड़क पर औंधे मुह गिरी। उसके मुख से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई।

"तेरे जैसी दो कौड़ी की फाइटर लड़कियाॅ मेरे पास ट्यूशन लेने आती हैं मूर्ख लड़की।" रितू ने उसके सिर के बाल अपनी मुट्ठियों में कस कर ऊपर उठाते हुए कहा___"तेरे अंदर अपने हरामी बाप का गंदा खून भरा है न। चल तुझे भी वहीं ले चलती हूॅ जहाॅ तेरा वो हरामी भाई और उसके हरामी दोस्त हैं।"

"मुझे छोंड़ दो वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिए।" लड़की ने छटपटाते हुए कहा___"तुम्हें पता नहीं है कि तुमने किसकी बेटी पर हाॅथ उठाने की ज़ुर्रत की है?"
"यही, बस यही अकड़ तो निकालनी है तेरी और तेरे बाप की भी।" रितू ने घुटने का वार ज़ोर से लड़की के पेट पर किया तो हिचक कर रह गई वो, जबकि रितू ने उसके बालों को और ज़ोर से खींचते हुए कहा___"बहुत जल्द तुम सबकी ऐसी हालत होने वाली है जिसकी तुम लोगों ने कभी कल्पना भी न की होगी।"

"बहुत पछताओगी तुम?" लड़की ने चीखते हुए कहा___"मेरा बाप तुम्हारा वो हाल करेगा कि तुम अपना चेहरा दुनियाॅ को दिखाने के काबिल नहीं रहोगी।"
"ये तो वक्त ही बताएगा मेरी जान।" रितू ने लड़की की कनपटी के एक खास हिस्से पर अचानक ही कराट मारी थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि लड़की बेहोश होती चली गई। जबकि रितू ने कहा___"कि मुह दिखाने के काबिल कौन नहीं रहता।"

रितू ने लड़की के बेहोश जिस्म को उठा कर अपनी जिप्सी में डाला और पिछली शीट के नीचे से एक ब्लैक कलर की बड़ी सी प्लास्टिक की पन्नी निकाल कर उसके ऊपर ऐसे तरीके से डाल दिया कि कोई ये न सोच सके कि उसके नीचे कोई इंसानी जिस्म भी हो सकता है। ये सब करने के बाद रितू पलटी और आस पास का बारीकी से मुआयना किया तो कुछ ही दूरी पर उसे लड़की का मोबाइल पड़ा दिखा। सड़क पर गिरने से मोबाइल की स्क्रीन चटक गई थी। रितू ने किनारे साइड की एक बटन को दबाया तो तुरंत ही स्क्रीन फ्लैश कर उठी। इसका मतलब वो चालू हालत में था अभी। ये देख कर रितू ने मोबाईल का कवर निकाल कर मोबाइल के ढक्कन को खोला और बैटरी निकाल ली। उसके बाद सारी चीज़ें पाॅकेट में डालने के बाद उसने अपने दूसरे पाॅकेट से अपना आई फोन निकाला। उसे याद आया कि उसने आई फोन फार्महाउस पर ही स्विच ऑफ कर दिया था। ये ध्यान आते ही उसके होठों पर एक जानदार मुस्कान उभरी। उसने अपने आईफोन को वापस पाॅकेट में रखा और आकर जिप्सी में बैठ गई। जिप्सी को स्टार्ट कर उसने यूटर्न लिया और वापस चल दी।

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
Reply
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट.........《 49 》

अब तक,,,,,,,

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
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अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"


"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"

पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।

"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स आल।"

उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"

"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"

"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"

"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"

कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।

"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"

"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"

"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"
"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"

"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"

अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।

कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।

शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।

"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"

"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"

"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।

"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।

"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"

"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी।

सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"

"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"

"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"

"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"

"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"

"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"

"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"

कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
Reply
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
रितू की जिप्सी फार्महाउस पहुॅची।
लोहे वाले गेट के पास ही शंकर और हरिया काका बंदूख लिए खड़े थे। रितू की जिप्सी को देखते ही दोनो ने गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी की गेट के अंदर बढ़ा दिया। कुछ ही पल में रितू की जिप्सी पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर रितू ने हरिया काका को आवाज़ देकर बुलाया। हरिया के आते ही रितू ने उससे जिप्सी के पीछे बड़ी सी प्वालीथिन के नीचे ढॅकी मंत्री की बेटी को उठा कर तहखाने में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कि तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही रखे।

रितू के कहने पर हरिया ने वैसा ही किया। आज एक लड़की को इस तरह तहखाने में ले आते देख हरिया काका अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। लड़की को देख कर उसके मन में ढेर सारे लड्डू फूट रहे थे। काफी दिन से लड़की गाॅड मार मार कर वो अब उकता सा गया था। अब उसे एक फ्रेश माल की ज़रूरत महसूस हो रही थी। बिंदिया को ज्यादा सेक्स करना पसंद नहीं था इस लिए हरिया को वह रोज रोज अपने पास नहीं आने देती थी। जिसकी वजह से हरिया उससे खूब नाराज़ हो जाया करता था। मगर कर भी क्या सकता था??

मन में ढेर सारे खुशी के लड्डू फोड़े वह लड़की को तहखाने में ले जाकर उसे वहीं तहखाने के फर्स पर लेटा दिया। लड़की अभी भी बेहोश ही थी। तहखाने में रस्सियों से बॅधे वो चारो असहाय अवस्था में लगभग झूल से रहे थे। उन चारों की हालत ऐसी हो गई थी कि पहचान में नहीं आ रहे थे। जिस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के और कुछ नहीं। इस वक्त चारो के सिर नीचे की तरफ झुके हुए थे। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर सामने की तरफ देख भी सकें कि कौन किसे लेकर आया है? हरिया काका ने एक नज़र उन चारों पर डाली उसके बाद वो लड़की की तरफ एक बार देखने के बाद तहखाने से बाहर की तरफ चला गया। कुछ देर में जब वो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकड़ी की कुर्सी थी।

लकड़ी की कुर्सी को तहखाने में एक तरफ रख कर वो पलटा और फिर लड़की उठा कर उस कुर्सी पर बैठा दिया। उसने लड़की के दोनो हाथों को कुर्सी के दोनो साइड एक एक करके रस्सी से बाॅध दिया। उसके बाद उसके पैरों को भी नीचे कुर्सी के दोनो पावों पर एक एक कर बाॅध दिया। लड़की के झुके हुए सिर को ऊपर उठा कर उसने कुर्सी की पिछली पुश्त से टिका दिया। कुछ देर तक हरिया काका उस लड़की को ललचाई नज़रों से देखता रहा उसके बाद वो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने का गेट बंद कर वो बाहर गेट के पास खड़े शंकर के करीब आ गया।

उधर, मंत्री की बेटी को हरिया के हवाले करने के बाद रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर उसने अपनी वर्दी को उतारा और बाथरूम में घुस गई। जब वह फ्रेश होकर बाहर आई तो कमरे में नैना बुआ को देख कर वह चौंकी। दरअसल इस वक्त वह सिर्फ एक हल्के पिंक कलर के टाॅवेल में थी।

बाॅथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ से बेड पर बैठी नैना का ध्यान उस तरफ गया तो रितू को मात्र टाॅवेल में देख कर वह हौले से मुस्कुराई। उसके यूॅ मुस्कुराने से रितू के चेहरे पर अनायास ही लाज और हया की सुर्खी फैल गई। होठों पर हल्की मुस्कान के साथ ही उसकी नज़रें झुकती चली गईं। रितू का इस तरह शरमाना नैना को काफी अच्छा लगा। उसे पता था कि उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से कितनी ही कठोर हो किन्तु अंदर से वह एक शुद्ध भारतीय लड़की है जो ऐसी परिस्थिति में शरमाना भी जानती है।

"चल मुझसे शरमाने की ज़रूरत नहीं है रितू।" नैना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू आराम से अपने कपड़े पहन ले। फिर हम बातें करेंगे।"
"शर्म तो आएगी ही बुआ।" रितू ने इजी फील करने के बाद ही हौले से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी किसी के सामने नहीं आई। भले ही वो मेरे घर का ही कोई सदस्य हो।"

"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नैना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी बच्ची। सो फील इजी एण्ड कम्फर्टेबल।"
नैना की इस बात से रितू बस मुस्कुराई और फिर पास ही एक साइड रखी आलमारी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर वापस बाथरूम में घुस गई। ये देख कर नैना एक बार पुनः मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर बाद रितू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खूबसूरत से बदन पर भारतीय लड़कियों का शुद्ध सलवार सूट था और सीने पर दुपट्टा। वो इन कपड़ों में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। नैना ने उसे गहरी नज़र से एक बार ऊपर से नीचे तक देखा फिर बेड से उठ कर रितू के पास आई और रितू का सिर पकड़ कर अपनी तरफ किया और उसके माथे पर हल्के चूम लिया।

"बहुत खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची।" फिर नैना ने मुस्कुरा कर कहा___"किसी की नज़र न लगे। ईश्वर हर बला से दूर रखे तुझे।"
"आप भी न बुआ।" रितू ने हॅसते हुए कहा___"ख़ैर छोड़िये ये बताइये आपको यहाॅ अच्छा तो लगता है न? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप यहाॅ पर इजी फील नहीं करती हैं और खुद को यहाॅ मजबूरीवश रहने का सोचती हैं?"

"अरे नहीं रितू।" नैना ने रितू का हाॅथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाने के बाद खुद भी बैठते हुए कहा___"यहाॅ मुझे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परेशानी से दूर हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त व साफ वातावरण मन को बेहद सुकून देता है। यहाॅ बिंदिया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए? पिछले कुछ दिनों में अपने कुछ अज़ीज़ों से भी मिल लिया, ऐसा लगा जैसे फिर से इस घर में वही पुराना वाला दौर लौट आया है।"

"चिन्ता मत कीजिए बुआ।" रितू ने कहा___"पुराना वाला समय फिर से आएगा। फिर से पहले जैसी ही खुशियाॅ हमारे बीच रक्श करेंगी। बस इन खुशियों को बरबाद करने वालों का एक बार किस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद फिर से वही हमारा वही संसार होगा मगर एक नये संसार के रूप में। जिसमें सबके बीच सिर्फ बेपनाह प्यार होगा। जहाॅ किसी घृणा अथवा किसी प्रकार की नफ़रत के लिए कोई स्थान हीं नहीं होगा।"

"क्या सच में तूने अपने माता पिता के लिए उनका अंजाम बुरा ही सोचा हुआ है?" नैना ने पूछा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उनके कर्मों की सज़ा भी मिल जाए और वो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इंसानों की तरह?"

"ये असंभव है बुआ।" रितू ने कठोरता से कहा__"जो इंसान इतना ज्यादा अपने सोच और विचार से गिर जाए कि वो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का सोच डाले उससे भविष्य में अच्छाई की उम्मीद हर्गिज़ नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के लिए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं किसी सूरत पर उन्हें माफ़ नहीं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के लिए कहीं पर भी कोई रास्ता नहीं छोंड़ा है। उन्होंने हर रिश्ते के लिए सिर्फ गंदा सोचा है और गंदा किया है। उन्होने अपने स्वार्थ के लिए अपने देवता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डाली। सबसे बड़ी बात तो उन्होंने ये की कि अपने ही बेटे के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शामिल किया जिस काम को किसी भी जाति धर्म में उचित नहीं माना जाता बल्कि सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पाप माना जाता है। ऐसे इंसानों को माफ़ी कैसे मिल सकती है बुआ? नहीं हर्गिज़ नहीं। ना तो मैं माफ़ करने वाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घटिया लोगों को माफ़ करेगा। एक पल के लिए अगर ऐसा हो जाए कि राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नहीं माफ़ कर सकती। हाॅ बुआ....मेरे अंदर उनके प्रति इतना ज़हर और इतनी नफ़रत भर चुकी है कि अब ये उनकी मौ से ही दूर होगी। मुझे दुख इस बात का नहीं होगा कि मेरे माॅ बाप दुनियाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कि ऐसे गंदे इंसानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मुझे इस धरती पर भेज दिया था।"

रितू की इन बातों से नैना चकित भाव से देखती रह गई उसे। उसे एहसास था कि रितू के अंदर इस वक्त किस तरह की भावनाओं का चक्रवात चालू था जिसके तहत वो इस तरह अपने ही माॅ बाप के लिए ऐसा बोल रही थी। नैना खुद भी यही समझती थी कि रितू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इंसान के मर जाने का कोई दुख या संताप नहीं हो सकता।

"माॅ बाप तो वो होते हैं बुआ जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं।" रितू दुखी भाव से कहे जा रही थी__"बाल्य अवस्था से ही अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालते हैं। सबके प्रति आदर व सम्मान करने की भावना के बीज बोते हैं। सबके लिए अच्छा सोचने की सीख देते हैं। कभी किसी के बारे में बुरा न सोचने का ज्ञान देते हैं। मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से सिर्फ यही पाठ पढ़ाया था कि हवेली के अंदर रहने वाला हर ब्यक्ति बुरा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और ना ही इन्हें अपने पास आने देना। कहते हैं इंसान वही देता है जो उसके पास होता है। सच ही तो है बुआ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को देने के लिए। वो खुद ऊॅचे दर्ज़े के बुरे इंसान थे, उनके अंदर पाप और बुराईयों का भण्डार था। वही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया। ये तो समय की बात है बुआ कि वो हमेशा एक जैसा नहीं रहता। हर चीज़ की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के लिए समय ज़रूर आपको ऐसे मोड़ पर ले आता है जहाॅ आपको हर चीज़ की असलियत का पता चल जाता है। इस लिए ये अच्छा ही हुआ कि समय मुझे ऐसे मोड़ पर ले आया। वरना मैं जीवन भर इस बात से बेख़बर रहती कि जिन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ पढ़ाया गया था कि ये सब बुरे लोग हैं वो वास्तव में कितने अच्छे थे और गंगा की तरह पवित्र थे।"

"हर इंसान की सोच अलग होती है रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और हर इंसान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा और खुशी के लिए अनैतिकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दूसरों की खुशी और भलाई के लिए अपनी हर खुशी और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। अनैतिकता की राह पर चलने वाले ये सोचना गवाॅरा नहीं करते कि जो कर्म वो कर रहे हैं उससे जाति समाज और खुद के घर परिवार पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? उन्हें तो बस अपनी खुशियों से मतलब होता है। जबकि इसके विपरीत अच्छे इंसान अपने अच्छे कर्मों से आदर्श के नये नये कीर्तिमान स्थापित करते हैं। ख़ैर छोंड़ इन बातों को और ये बता कि आगे का क्या सोचा है?"

"सोचना क्या है बुआ?" रितू ने कहा___"मेरा भाई मुझसे कह गया है कि मैं उसके वापस आने का इन्तज़ार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस किस्से का खात्मा करेंगे।"
"पर ये सब होगा कैसे?" नैना ने कहा___"तुम दोनो इस काम को अकेले कैसे अंजाम तक पहुॅचाओगे?"

"मुझे खुद पर और अपने भाई राज पर पूरा भरोसा है बुआ।" रितू ने गर्व से कहा___"आप देखना हम दोनो कैसे इस सबको फिनिश करते हैं? अब तो रितू राज स्पेशल गेम होगा बुआ। मैं बस राज के आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूॅ।"

"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है।" नैना ने हैरानी से कहा___"जबकि मेरा तो सोच सोच कर ही दिल बुरी तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने वाली क्या बात है बुआ?" रितू ने स्पष्ट भाव से कहा___"सीधी और साफ बात है कि जो लोग सिर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं वो फिर किसी चीज़ से घबराते नहीं हैं। बल्कि मौत से भी डॅट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सुरक्षा में चली जाए तो कोई ग़म नहीं है। बल्कि मुझे बेहद खुशी होगी कि मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के लिए फना हो गई जिसने वास्तव में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मुझे इज्ज़त व सम्मान दिया।"

"ऐसा मत कह रितू।" नैना की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोली____"तुझे कुछ नहीं होगा और ख़बरदार अगर दुबारा से ऐसी फालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी बच्ची। तुझे कुछ नहीं होगा क्योंकि तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धर्म की राह पर मुकीम है तू। अगर किसी को कुछ होगा तो वो उन्हें होगा जो इस देश समाज और परिवार के लिए कलंक हैं।"

"ख़ैर जाने दीजिए बुआ।" रितू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्या रखा है? होना तो वही है जो हर किसी की नियति में लिखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते हैं। बिंदिया काकी ने खाना तैयार कर दिया होगा।"

रितू की ये बात सुन कर नैना उसे कुछ देर अजीब भाव से देखती रही, फिर रितू के उठते ही वो भी बेड से उठ बैठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायनिंग हाल की तरफ बढ़ चलीं। जहाॅ पर करुणा का भाई और अभय सिंह का साला बैठा इन्हीं का इन्तज़ार कर रहा था। ये दोनो भी वहीं रखी एक एक कुर्सियों पर बैठ गई। कुछ ही देर में बिंदिया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ सोने के लिए चले गए।
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11-24-2019, 12:54 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
सुबह हुई!
उस वक्त सुबह के लगभग साढ़े आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उड़ाती हुई कई सारी गाड़ियाॅ आकर हवेली के बाहर एक एक करके रुकीं। वो तीन गाड़ियाॅ थी। एक सफारी, एक इनोवा, और एक आई20 थी। तीनों गाड़ियों के रुकते ही सभी गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले और खुल चुके दरवाजे से एक एक दो दो करके कई सारे आदमी गाड़ियों से बाहर निकले।

बाहर आते ही वो सब एक साथ हवेली के उस हिस्से के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े जो हिस्सा अजय सिंह का था। इस वक्त दरवाजा बंद था। आस पास कुछ ऐसे आदमी भी बाहर मौजूद थे जिनके हाॅथों में बंदूख, रिवाल्वर आदि हथियार थे। गाड़ियों से आने वाले सभी लोग मुख्य दरवाजे की तरफ मुड़ चले। आस पास खड़े अजय सिंह के बंदूखधारी आदमियों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे। अजीब से इस लिए क्यों कि गाड़ियों से आने वाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ चले थे।

आस पास खड़े बंदूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को देख उन्हें रोंकने के लिए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पूछने लगे कि वो कौन लोग हैं और इस तरह कैसे बिना कुछ पूछे अंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे हैं? किन्तु बंदूखधारियों के पूछने पर उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपने अपने कोट की सामने वाली पाॅकेट से अपना अपना आई कार्ड निकाल कर बंदूखधारियों को दिखा दिया। बंदूखधारी ये देख कर बुरी तरह चौंके कि वो सब सी बी आई की स्पेशल ऑफीसर थे। बंदूखधारियों को बिलीउल भी समझ न आया कि वो लोग यहाॅ क्यों आए हैं और वो खुद अब क्या करें? उधर आई कार्ड दिखाने के बाद वो लोग मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गए और दरवाजे पर लगी कुण्डी को ज़ोर से बजा दिया।

कुछ ही देर में दरवाजा खुला। दरवाजे पर नाइट गाउन पहने प्रतिमा नज़र आई। अपने सामने इतने सारे अजनबी आदमियों को देख कर वो चौंकी। उसके चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे।

"जी कहिए।" फिर उसने अजीब भाव से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ किस काम से आए हैं?"
"हमें अंदर तो आने दीजिए मैडम।" एक आदमी ने ज़रा शालीन भाव से कहा___"मिस्टर अजय सिंह से मिलना है।"

"पर आप लोग हैं कौन?" प्रतिमा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछा___"ये तो बताया नहीं आपने।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब मिस्टर अजय सिंह के गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें कहिए कि हम उनसे मिलने आए हैं।"

प्रतिमा उस आदमी की बात सुन कर देखती रह गई उसे। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कि ये लोग अछय सिंह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ देर उस आदमी को देखते रहने के बाद जाने क्या सोच कर प्रतिमा दरवाजे से हट कर पलटी और अंदर की तरफ बढ़ती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल दिये।

कुछ ही देर में प्रतिमा के पीछे पीछे ये सब ड्राइंग रूम में पहुॅच गए। प्रतिमा ने सोफों की तरफ हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बैठने के लिए कहा। प्रतिमा के इस प्रकार कहने पर वो सब लोग सोफों पर बैठ गए जबकि प्रतिमा अंदर कमरे की तरफ बढ़ गई।

थोड़ी ही देर में अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में सोफों पर बैठे इतने सारे लोगों पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अजनबीयत के भाव उभरे। जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि ये सब लोग कौन हैं?

"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नहीं।" फिर उसने एक अलग सोफे पर बैठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे मिले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान लेते।" एक कोटधारी ने अजीब भाव से कहा___"ख़ैर, आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अफीम, और ड्रग्स का धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके खिलाफ़ स्पेशल वारंट भी है। इस लिए आप बिना कुछ सवाल जवाब किये हमारे साथ चलने का कस्ट करें।"

सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सुन कर अजय सिंह के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। बुत सा बन गय था वह। मुख से कोई बोल न फूटा। जिस्म के सभी मसामों ने पल भर में ढेर सारा पसीना उगल दिया। चेहरा इस तरह नज़र आने लगा था जैसे धमनियों में दौड़ते हुए लहू की एक बूॅद भी शेष न बची हो। एकदम फक्क पड़ गया था।

"ये...ये...क्...क्या बकवास कर रहे हैं आप?" फिर सहसा बदहवाश से अजय सिंह ने जैसे खुद को सम्हाला था और फिर वापस ठाकुरों वाले रौब में आते हुए बोला था। ये अलग बात है कि उसके उस रौब में रत्ती भर भी रौब दिखाई न दिया, बोला___"आप होश में तो हैं न? आप जानते हैं कि आप किसके सामने क्या बकवास कर रहे हैं?"

"हम तो पूरी तरह होशो हवाश में ही हैं मिस्टर अजय सिंह।" सीबीआई ऑफिसर ने कहा___"किन्तु आपके होशो हवाश ज़रूर कहीं खो गए से नज़र आने लगे हैं। रही बात आपकी कि आप कौन हैं और हम आपसे क्या कह रहे हैं तो इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि हम कानून के नुमाइंदे हैं। हमारे लिए छोटे बड़े सब एक जैसे ही होते हैं। ख़ैर, हमने आपके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानूनी ज़खीरा बरामद किया है। सारी जाॅच पड़ताल के बाद जब हमें ये पता चला कि वो सब आपकी संमत्ति है तो हम कोर्ट से स्पेशल वारंट लेकर आपको यहाॅ गिरफ्तार करने चले आए। इस लिए अब आपके पास हमारे साथ चलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।"

ऑफीसर की ये बात सुन कर एक बार फिर से अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। वो सोच भी नहीं सकता था कि उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तुरंत ही फैक्ट्री में लगी आग का वाक्या याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानूनी सामान गायब होने का पता चला था उसे। वो ये भी समझ गया था कि ये सब विराज ने ही किया था। प्रतिमा ने इस बात का अंदेशा भी ब्यक्त किया था कि किसी ऐसे मौके पर वो ये सब कानून के हवाले कर सकता है जबकि हम कुछ भी करने की स्थिति में ही न रह जाएॅगे। मतलब साफ था कि प्रतिमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी विराज ने उस सारे सामान को उसके शहर वाले मकान में रखा और फिर इसकी सूचना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई वाले अजय सिंह के पास स्पेशल वारंट लेकर आ गए थे। अजय सिंह खुद भी सरकारी वकील रह चुका था इस लिए जानता था कि ऐसे मौके पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। कोई दूसरा जुर्म होता तो कदाचित वो कोई जुगाड़ लगा कर अपनी ज़मानत करवा भी लेता मगर यहाॅ तो जुर्म ही संगीन था।

"किस सोच में डूब गए मिस्टर अजय सिंह?" तभी उसे सोचो में गुम देख ऑफीसर ने कहा___"आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलेंगे तो बेहतर होगा, वरना आप जानते है कि हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के लिए।"

"ऑफीसर।" सहसा अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सब झूॅठ हैं। हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिसे कानून की नज़र में जुर्म कहा जाए। ये यकीनन किसी की साजिश है हमें फसाने की। हाॅ ऑफीसर, ये साजिश ही है। काफी समय से हमारा शहर वाला मकान खाली पड़ा है इसलिए संभव है कि किसी ने ये सब गैर कानूनी चीज़ें वहाॅ पर छुपा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई लेना देना नहीं है।"

"सच और झूठ का फैसला तो अब अदालत ही करेगी मिस्टर अजय सिंह।" ऑफिसर ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर आपको गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष खड़ा कर दें। इस लिए अब आपकी कोई दलील हमारे सामने चलने वाली है।"

अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से प्रतिमा और शिवा आकर वहीं पर खड़े हो गए। दोनो के चेहरों पर हल्दी पुती हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ की सारी वार्तालाप उन दोनो ने सुन ली थी।

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ने अंजान बनते हुए पूछा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ किस लिए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बेटे।" अजय सिंह ने बुझे मन से कहा___"और ये हमे गिरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कि हमारे शहर वाले मकान से इन्होंने भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि चीज़ें बरामद की हैं।"

"व्हाऽऽट??" शिवा ने चौंकते हुए कहा___"ये आप क्या कह रहे हैं डैड? भला ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे शहर वाले मकान में वो सब चीज़ें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम शहर वाले उस मकान को बेंच दो।" प्रतिमा ने जाने क्या सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सुनते कहाॅ हो तुम? अब देख लो इसका अंजाम। जाने कब से खाली पड़ा था वह। आज कल किसी का क्या भरोसा कि वो मकान के अंदर आकर क्या क्या खुराफात करने लग जाएॅ।"

"अरे तो भला हमें क्या पता था प्रतिमा कि ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय सिंह ने प्रतिमा की चाल को बखूबी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस मकान की देख रेख के लिए कोई आदमी रख देते न।"
"किसने किया होगा ये सब?" प्रतिमा ने कहा___"भला हमसे किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जिसके तहत उसने हमारे साथ इतना बड़ा काण्ड कर दिया?"

"मिस्टर अजय सिंह।" सहसा ऑफिसर ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा___"ये सब बातें आप बाद में सोचिएगा। इस वक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्लीज़।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डैड को?" सहसा शिवा आवेशयुक्त भाव से बोल पड़ा___"मेरे डैड बिलकुल बेगुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कहीं नहीं ले जा सकते। ये तो हद ही हो गई कि करे कोई और भरे कोई और।"

"तुम शान्त हो जाओ बेटे।" अजय सिंह ने अपने कूढ़मगज बेटे की बातों पर मन ही मन कुढ़ते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो लेकिन हमें इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ये सब कानून के रखवाले हैं। दूसरी बात इन्हें हमारे मकान से वो सब चीज़ें मिली हैं इस लिए पहली नज़र में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कि वो सब चीज़ें हमारी हैं। यानी हम ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं। दूसरा ब्यक्ति ये नहीं सोचेगा कि कोई अन्य ब्यक्ति ये सब चीज़ें हमारे मकान में रख कर हमें फॅसा भी सकता है। अतः मौजूदा हालात में हमें कानून का हर कहा मानना पड़ेगा और उसका साथ देना पड़ेगा। तुम फिक्र मत करो बेटे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पूॅछताछ करेंगे। इस सबके लिए हमें तभी सज़ा मिलेगी जब ये साबित हो जाएगा कि वो सब चीज़ें वास्तव में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं।"

अजय सिंह की बात सुन कर शिवा कुछ बोल न सका। प्रतिमा ने भी कुछ न कहा। कदाचित वो खुद भी अजय सिंह की इस बात से सहमत थी। दूसरी बात, वो तो जानती ही थी कि वो सब चीज़ें सच में अजय सिंह की ही हैं। इस लिए ये सब सोच कर और इसके अंजाम का सोच कर वो अंदर ही अंदर बुरी तरह घबराए भी जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे मामले में कानून की गिरफ्त से बचना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर था।

इधर अजय सिंह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कि इससे बचना बहुत मुश्किल काम है। इस लिए वो कोई न कोई जुगाड़ लगाने भी सोच रहा था। मगर चूॅकि उसके पुराने कानूनी कनेक्शन पहले ही खत्म हो चुके थे इस लिए वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं था। दूसरी सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगर किसी तरह वो पुलिस कमिश्नर अथवा प्रदेश के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नहीं होनी थी। क्योंकि उसने देखा था कि उसके साथ घटी पिछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था कि ऊपर से ही शख्त आदेश मिला था।

अजय सिंह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके दिमाग़ में कोई बेहतर जुगाड़ आ नहीं रहा था। वक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रंग बदल लिया था कि उसको कुछ करने लायक छोंड़ा ही नहीं था। उसने कल्पना तक न की थी कि वो इतना बेबस व लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानून की चपेट में आ जाएगा।

"तो चलें मिस्टर अजय सिंह?" सहसा ड्राइंग रूम में छाए सन्नाटे को भेदते हुए उस ऑफिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कि ये सब किसी ने आपको फॅसाने के उद्देश्य से किया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नहीं है तो फिक्र मत कीजिए। हम सच्चाई का पता लगा लेंगे। किन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पड़ेगा।"

उस ऑफिसर के इतना कहते ही अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और फिर सोफे से उठ खड़ा हुआ। इस वक्त उसके बदन पर नाइट ड्रेस ही था इस लिए उसने ऑफिसर से ड्रेस बदल लेने की परमीशन माॅगी। ऑफिसर ने परमीशन दे दी। परमीशन मिलते ही अजय सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही ऑफिसर ने एक अन्य ऑफिसर की तरफ देख कर ऑखों से कुछ इशारा किया। ऑफिसर का इशारा समझ कर दूसरा ऑफिसर तुरंत ही अजय सिंह के पीछे कमरे की तरफ बढ़ गया। मतलब साफ था कि ऑफिसर को इस बात का अंदेशा था कि अंदर कमरे अजय सिंह कहीं फोन पर किसी से कोई बात वगैरा न करने लगे। जबकि मौजूदा हालात में ऐसा करना हर्गिज़ भी जायज़ बात न थी।

कुछ ही देर में ऑफिसर के साथ ही अजय सिंह कमरे से आता दिखाई दिया। उसके आते ही सभी लोग सोफों पर से उठे और अजय सिंह के साथ ही बाहर आ गए। जबकि पीछे बुत बने अजय सिंह की बीवी और बेटा खड़े रह गए थे। फिर जैसे प्रतिमा को होश आया। वो एकदम से तेज़ क़दमों के साथ बाहर की तरफ भागते हुए गई। जब वो बाहर आई तो उसने देखा कि सीबीआई के सभी ऑफिसर अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ रहे थे। एक अन्य गाड़ी की पिछली शीट पर अजय सिंह को बिठाया जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑफिसर बैठ गया था।

प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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11-24-2019, 12:54 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर रितू के फार्महाउस पर भी सुबह हो गई थी। अपने कमरे के अटैच बाथरूम में नहाने के बाद रितू कपड़े पहन रही थी जब उसके कमरे का दरवाजा बाहर से कुण्डी के दवारा बजाया गया था। रितू ने पूछा कौन है तो बाहर से नैना की आवाज़ आई थी कि मैं हूॅ बेटा जल्दी से दरवाज़ा खोलो। बस, उसके बाद रितू ने आनन फानन में अपने कपड़े पहने और फिर जाकर कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नैना बुवा पर नज़र पड़ी तो वह हल्के से चौंकी।

"क्या बात है बुआ?" रितू ने शशंक भाव से पूछा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है न?"
"ये ले।" नैना ने जल्दी से अपना दाहिना हाथ रितू की तरफ बढ़ाया___"ये अख़बार पढ़। इसमें ऐसी ख़बर छपी है छिसे पढ़ कर तेरे होश न उड़ जाएॅ तो कहना।"

"अच्छा।" रितू ने अख़बार अपने हाॅथ में लेते हुए कहा___"भला ऐसी क्या ख़बर छपी है इस अख़बार में जिसे पढ़ने पर मेरे होश ही उड़ जाएॅगे?"
"तू पढ़ तो सही।" नैना कहने के साथ ही दरवाजे के अंदर रितू को खींचते हुए ले आई, बोली___"बताने में वो बात नहीं होगी जितना कि खुद ख़बर पढ़ने से होगी।"

नैना, रितू को खींचते हुए बेड के क़रीब आई और उसमें रितू को बैठा कर खुद भी बैठ गई और रितू के चेहरे के भावों को बारीकी से देखने लगी। रितू ने अख़बार की फ्रंट पेज़ पर छपी ख़बर पर अपनी दृष्टि डाली और ख़बर की हेड लाईन पढ़ते ही वो बुरी तरह उछल पड़ी। अख़बार में छपी ख़बर कुछ इस प्रकार थी।

*शहर के मशहूर कपड़ा ब्यापारी अजय सिंह के मकान से करोड़ों का ग़ैर कानूनी सामान बरामद*

(गुनगुन): हल्दीपुर के रहने वाले ठाकुर अजय सिंह बघेल वल्द गजेन्द्र सिंह बघेल जो कि एक मशहूर कपड़ा ब्यापारी हैं उनके गुनगुन स्थित मकान पर कल शाम को सीबीआई वालों ने छापा मारा। मकान के अंदर से भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि जानलेवा चीज़ें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कि गुनगुन स्थित ठाकुर अजय सिंह का वो मकान कुछ समय से खाली पड़ा था, इस लिए ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि ग़ैर कानूनी चीज़ों का इतना बड़ा ज़खीरा उनके मकान में कहाॅ से आ गया? ऐसा इस लिए क्योंकि ठाकुर अजय सिंह जैसे मशहूर कारोबारी से ऐसे संगीन धंधे की बात सोची नहीं जा सकती जो कि जुर्म कहलाता है। इस लिए संभव है कि ये सब उनके किसी दुश्मन की सोची समझी साजिश का ही नतीजा हो। ख़ैर, अब देखना ये होगा कि सीबीआई वालों की जाॅच पड़ताड़ से क्या सच्चाई सामने आती है? अब ये तो निश्चित बात है कि ठाकुर अजय सिंह के मकान से मिले इतने सारे ग़र कानूनी सामान के तहत सीबीआई वाले बहुत जल्द ठाकुर अजय सिंह को अपनी हिरासत में लेकर इस बारे में पूछताॅछ करेंगे। किन्तु अगर सीबीआई की जाॅच में ये बात सामने आई कि वो सब ग़ैर कानूनी सामान ठाकुर अजय सिंह का ही है तो यकीनन ठाकुर अजय सिंह को इस संगीन जुर्म में कानून के द्वारा शख्तसे शख्त सज़ा मिलेगी।

अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़ कर यकीनन रितू के होश उड़ ही गए थे। उसके दिमाग़ की बत्ती बड़ी तेज़ी से जली थी और साथ ही उसे विराज की वो बात याद आई जब उसने गुनगुन रेलवे स्टेशन पर रितू से कहा था कि बहुत जल्द अजय सिंह को एक झटका लगने वाला है। ये भी कि उसकी सेफ्टी के लिए वह भी ऐसा करेगा कि अजय सिंह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नहीं पाएगा।

"इसका मतलब तो यही हुआ बुआ कि अब तक डैड को सीबीआई वाले गिरफ्तार कर लिए होंगे।" रितू ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन डैड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में वो कानून की ऐसी चपेट में आ जाएॅगे जहाॅ से निकल पाना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर है।"

"ये तो अच्छा ही हुआ न रितू।" नैना ने कहा___"बुरे काम करने का ये अंजाम तो होना ही था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे?
"ये सब राज की वजह से हुआ है बुआ।" रितू ने बताया___"उसने कल रेलवे स्टेशन में मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसा करेगा जिससे डैड मुझ तक पहुॅच ही नहीं पाएॅगे। ये तो सच है बुआ कि डैड ग़ैर कानूनी धंधा करते थे और फैक्ट्री में मौजूद तहखाने में उनका ये सब ग़ैर कानूनी सामान भी था जिसे राज ने ही गायब किया था। ऐसा उसने इस लिए किया था ताकि वह उस सामान के आधार पर जब चाहे डैड को कानून की गिरफ्त में डलवा सके। इस लिए उसने ऐसा ही किया है बुआ लेकिन मुझे लगता है कि ये सब महज डैड को डराने और मौजूदा हालात से निपटने के लिए राज ने किया है। क्योंकि राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की सज़ा देगा, नाकि कानून द्वारा उन्हें किसी तरह की सज़ा दिलवाएगा।"

"लेकिन बेटा।" नैना ने तर्क सा दिया___"कानून की चपेट में आने के बाद बड़े भइया भला कानून की गिरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और फिर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों से सज़ा देगा?"
"उसका भी इंतजाम राज ने किया ही होगा बुआ।" रितू ने कहा___"आज के इस अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार ग़ैर कानूनी सामान डैड के मकान से बरामद ज़रूर हुआ है लेकिन ये भी बताया गया है कि चूॅकि गुनगुन स्थित मकान काफी समय से खाली था इस लिए संभव है कि डैड को फॅसाने के लिए उनके किसी दुश्मन ने ऐसा किया होगा। इस लिए सीबीआई वाले इस बारे में सिर्फ पूॅछताछ करेंगे। अब आप खुद समझ सकती हैं बुआ कि राज ने केस को इतना कमज़ोर क्यों बनाया हुआ है कि डैड कानून की गिरफ्त से मामूली पूछताछ के बाद छूट जाएॅ?।"

"लेकिन ये सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही रहेगा न रितू कि बड़े भइया के मकान में वो ग़ैर कानूनी सामान कैसे पाया गया?" नैना ने कहा___"इस लिए इस सवाल के साल्व हुए बिना बड़े भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"

"बहुत आसान है बुआ।" रितू ने कहा___"पैसों के लिए आजकल लोग बहुत कुछ कर जाते हैं। कहने का मतलब ये कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति को ढूॅढ़ लेंगे जो पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। वो ब्यक्ति इस बात को खुद स्वीकार करेगा कि वो सारा ग़ैर कानूनी सामान उसका खुद का है और उसने डैड के मकान में उसे इस लिये छुपाया हुआ था क्योंकि वो मकान काफी समय से खाली था तथा उसके लिए एक सुरक्षित जगह की तरह था।"

"चलो ये तो मान लिया कि ऐसा हो सकता है।" नैना ने मानो तर्क किया___"किन्तु सबसे बड़ा सवाल ये ये है कि तुम्हारे डैड ऐसे किसी ब्यक्ति को लाएॅगे कहाॅ से? जबकि वो खुद ही सीबीआई वालों की निगरानी में रहेंगे और उनके पास किसी से संपर्क स्थापित करने के लिए कीई ज़रिया ही नहीं होगा।"

"सवाल बहुत अच्छा है बुआ।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"किन्तु अगर हम ये सोच कर देखें कि ये सब राज का ही किया धरा है तो ये भी निश्चित बात है कि वो खुद ही ऐसा कुछ करेगा जिससे डैड सीबीआई या कानून के चंगुल से बाहर आ जाएॅ।"

"ऐसे मामलों में कानून के चंगुल से किसी का बाहर आ जाना नामुमकिन तो नहीं होता रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु अगर तू ये कह रही है कि राज तेरे डैड को किसी हैरतअंगेज कारनामे की वजह से बाहर निकाल ही लेगा तो सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या करेगा राज? दूसरी बात, जब उसे कानून की गिरफ्त से निकाल ही लेना है तो फिर तेरे डैड की कानून की चपेट में लाने का मतलब ही क्या था?"

"खजूर पर चढ़े इंसान को ज़मीन पर पटकने का मकसद था उसका।" रितू ने कहा___"वो कहते हैं न कि जब तक ऊॅट पहाड़ के सामने नहीं आता तब तक उसे यही लगता है कि उससे ऊॅचा कोई है ही नहीं। यही हाल मेरे डैड का था बुआ। राज का मकसद कदाचित यही है कि वो डैड को एहसास दिलाना चाहता है कि इस दुनियाॅ में उनसे भी बड़े बड़े ख़लीफा मौजूद हैं। वो चाहे तो उन्हें एक पल में चुटकियों में मसल सकता है। आज के इस वाक्ये के बाद संभव है कि डैड की विचारधारा में कुछ तो परिवर्तन ज़रूर आया होगा।"

"ये तो सच कहा तूने।" नैना ने कहा___"अगर सीबीआई वाले बड़े भइया को अपने साथ ले गए होंगे तो ये सच है कि बड़े भइया को आज आटे दाल के भाव का पता चल जाएगा।"

"हाॅ बुआ।" रितू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखूबी एहसास था। कदाचित उसे ये अंदेशा था कि इतनी नाकामियों के बाद डैड अब खुद मैदान में उतरेंगे और हमें खोज कर हमारा क्रिया कर्म करेंगे। इसी लिए राज ने ये क़दम उठाया कि जब डैड ही कानून की गिरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर किसी तरह का उनकी तरफ से कोई संकट आएगा ही कैसे?"

"तो इसका मतलब ये हुआ कि बड़े भइया को राज ने कानून की गिरफ्त में फॅसाया।" नैना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"सिर्फ इस लिए कि वो तेरे डैड को एहसास दिला सके कि वो जिसे पिद्दी का शोरबा समझते हैं वो दरअसल ऐसा है कि उनको छठी का दूध याद दिला सकता है। ख़ैर, इन बातों से ये भी एक बात समझ में आती है कि राज ने तुझको सेफ करने के लिए भी तेरे डैड को कुछ दिनों के लिए कानून की गिरफ्त में फॅसाया है। दो दिन बाद तो वो खुद ही यहाॅ आ जाएगा और संभव है ऐसा कुछ कर दे जिससे उसका शिकार कानून की चपेट से बाहर आ जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बुआ।" रितू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो सकता है। ख़ैर, अब तो इस बात की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि डैड या उनके किसी आदमी से हमें कोई ख़तरा है।"
"लेकिन एक बात सोचने वाली है रितू।" नैना ने सोचने वाले भाव से चहा___"तेरे डैड की इस गिरफ्तारी से तेरी माॅ और तेरे भाई पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा। प्रतिमा भाभी ने खुद भी वकालत की पढ़ाई की है इस लिए संभव है कि वो तेरे डैड को कानून की गिरफ्त से निकालने का कोई जुगाड़ लगाएॅ।"

"कोई फायदा नहीं होने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"जिसे जितना ज़ोर लगाना है लगा ले मगर हाॅथ कुछ नहीं आएगा। क्योंकि एक तो मामला ही इतना संगीन है दूसरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच काफी लम्बी है, इस लिए उसकी पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैंतरा काम नहीं करने वाला। ये तो पक्की बात है कि होगा वहीं जो राज चाहेगा।"

"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"ख़ैर देखते हैं क्या होता है? वैसे इस बारे में क्या अभी तक तुमने राज से बात नहीं की??"
"अभी तो नहीं की बुआ।" रितू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी। वास्तव में उसने बड़ा हैरतअंगेज काम किया है। मुझे तो उससे ये उम्मीद ही नहीं थी।"

"वक्त और हालात एक इंसान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा देते हैं और उससे क्या क्या करवा देते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नैना ने जाने क्या सोच कर कहा___"सोचने वाली बात है कि राज जो एक बेहद ही सीधा सादा लड़का हुआ करता था आज वो इतना जहीन तथा इतना शातिर दिमाग़ का भी हो गया है।"

"इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है बुआ।" रितू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह का बनाने वाले भी मेरे ही पैरेंट्स हैं। इंसान अपनों का हर कहा मानता है और उसका जुल्म भी सह लेता है लेकिन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ जिसके साथ हुआ हो वो ऐसा भी न बन सके तो फिर कैसा इंसान है वो?"

नैना, रितू की बात सुन कर उसे देखती रह गई। कुछ देर और ऐसी ही बातों के बाद वो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टेबल पर आकर बैठ गईं। जहाॅ पर करुणा का भाई हेमराज पहले से ही मौजूद था। रितू अपनी नैना बुआ के साथ अलग अलग कुर्सियों पर बैठी ही थी कि उसका आई फोन बज उठा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसके होठों पर अनायास ही नफ़रत व घृणा से भरी मुस्कान फैल गई। कुछ सेकण्ड तक वो मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने आ रही काल को कट कर दिया। काल कट करते वक्त उसके चेहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे।
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