non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:45 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अब आगे,,,,,,,,,,

उधर रितू अपने फार्महाउस पर पहुॅची। हरिया काका से उसने उन चारों का हाल चाल पूछा और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने दरवाजा बंद किया और कमरे में एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी को खोल कर उसने उस बैग को निकाला जिसे वह चौधरी के फार्महाउस से लेकर आई थी। बैग को बेड पर रख कर उसने उसमें से कई सारी चीज़ें निकाल कर बेड पर रखा।

कुछ फोटोग्राफ्स थे उसमें, कुछ लेटर्स और कई सारी पेनड्राइव्स। रितू ने उठ कर आलमारी से अपना लेपटाॅप निकाला। उसे ऑन किया। कुछ देर बाद जब वह ऑन हो गया दिया तो रितू ने उसमें एक पेनड्राइव लगाया। कुछ ही पल में लेपटाॅप की स्क्रीन पर पेनड्राइव को ओपेन करने का ऑप्शन आया। रितू ने उस पर क्लिक किया। पर भर में ही स्क्रीन पर उसे बहुत सारी फोटोज और वीडियोज दिखने लगी।

फोटोज देख कर रितू का दिमाग़ खराब होने लगा। वो सारी फोटो न्यूड रूप में कई सारी लड़कियों की थी। रितू उन लड़कियों को पहचानती तो नहीं थी लेकिन फोटो में उन लड़कियों के पोज से उसे पता चल रहा था कि इन लड़कियों की मर्ज़ी से ही ये फोटोज खींचे गए थे। रितू के चेहरे पर उन लड़कियों के प्रति नफ़रत और घ्रणा के भाव उभर आए।

उसके बाद उसने एक वीडियो पर क्लिक किया। क्लिक करते ही वो वीडियो चालू हो गई। इस वीडियो में जो लड़का था वह रोहित था। वो किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। लड़की अपनी दोनो टाॅगों को कैंची शक्ल देकर रोहित की कमर पर जकड़ा हुआ था। रितू ने फौरन ही वीडियो को बंद कर दिया और दूसरी वीडियो को ओपेन किया। इस वीडियो में अलोक लड़की की चूॅत चाट रहा था। रितू ने तुरंत ही वीडियो बंद कर दिया। उसके अंदर गुस्सा बढ़ने लगा था।

एक एक करके रितू ने सारे वीडियो देख लिए। वो सारे वीडियो इन चारो लड़कों के ही थे जो अलग अलग लड़कियों के साथ बनाए गए थे। रितू ने लेपटाॅप से पेनड्राइव निकाल कर अलग साइड पर रखा और दूसरा पेनड्राइव लेपटाॅप पर लगा दिया। कुछ ही देर में उसने देखा कि इस पेनड्राइव में भी यही चारो लड़के किसी न किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहे थे। रितू ने उस पेनड्राइव को भी अलग रख दिया। इसी तरह रितू एक एक पेनड्राइव को लेपटाॅप पर लगा कर देखती रही। कुछ पेनड्राइव्स में उसने देखा कि इन चारों लड़कों ने लड़कियों को उनकी बेहोशी में उनके सारे कपड़े उतारे और फिर उनके साथ अलग अलग पोजीशन में सेक्स किया था। रितू समझ सकती थी कि इन लड़कियों के साथ इन लोगों ने धोखे से ये सब किया था। ज्यादातर पेनड्राइव्स में इन लड़कों के ही वीडियोज थे।

रितू ने एक और पेनड्राइव लेपटाॅप पर लगाया। इस पेनड्राइव में कई फोल्डर बने हुए थे। जिन पर नाम डाला हुआ था। एक फोल्डर पर लिखा था "डैडी"। रितू ने तुरंत ही इस फोल्डर को ओपेन किया। स्क्रीन पर कई सारे वीडियोज आ गए। एक वीडियो पर क्लिक किया रितू ने। क्लिक करते ही वीडियो चालू हो गई। वीडियो में सूरज का बाप दिवाकर चौधरी किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। ये वीडियो सिर्फ एक ही एंगल से लिया गया था। मतलब साफ था कि कहीं पर वीडियो कैमरा छुपाया गया था और दिवाकर चौधरी को इस बात का पता ही नहीं था। वरना वो अपनी ऐसी वीडियो बनाने की सोचता भी नहीं।

रितू ने फौरन ही वो वीडियो काॅपी कर एक अलग से फोल्डर बना कर उसमें डाल दिया। उसके बाद रितू ने एक एक करके सभी वीडियो देखे। सभी वीडियों में दिवाकर चौधरी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। रितू ने दूसरा फोल्डर खोला। उसमें भी वीडियोज थे। रितू समझ गई कि ये उन लोगों के काले कारनामों के वीडियोज हैं जिनका संबंध दिवाकर चौधरी से है।

उन चारो लड़कों बापों के वीडियोज भी इसमें थे। रितू के लिए ये काफी मसाला था दिवाकर चौधरी को काबू में करने के लिए। उसने उन चारो लड़कों के बापों का एक एक वीडियो अपने लैपटाॅप में बनाए गए उस फोल्डर में डाल लिया।

सारे सामान को वापस बैग में भर कर उसने उस बैग को वापस आलमारी में रख कर आलमारी को लाॅक कर दिया। इसके बाद वह पलटी और एक तरफ रखे उस छोटे से थैले को उठाया जिसमें आज का खरीदा हुआ मोबाइल फोन और सिम था। उसने थैले से फोन कि डिब्बा निकाला और उसे खोलने लगी। मोबाइल निकाल कर उसने मोबाइल के चार्जर को भी निकाला। चार्जर में एक अलग से केबल थी। उसने उस केबल को मोबाइल में लगाया और दूसरा सिरा लैपटाॅप में। तुरंत ही लैपटाॅप की स्क्रीन पर एक ऑप्शन आया। मोबाइल की स्क्रीन पर भी शो हुआ। रितू ने सेटिंग सही की और फिर उन वीडियोज को काॅपी कर मोबाइल के स्टोरेज पर पेस्ट कर दिया। चारो वीडियोज कुछ ही देर में मोबाइल में अपलोड हो गई।

इसके बाद रितू ने केबल निकाल कर वापस मोबाइल के डिब्बे पर रख दिया। एक नज़र उसने मोबाइल की बैटरी पर डाली तो पता चला कि मोबाइल पर अभी 27% बैटरी है। रितू ने फौरन ही चार्जर निकाल कर मोबाइल फोन को चार्जिंग पर लगा दिया। इसके बाद वह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।

बाहर आकर उसने काकी से काका को बुलवाया। थोड़ी ही देर में हरिया काका रितू के पास आ गया।
"का बात है बिटिया?" काका ने कहा__"ऊ बिंदिया ने हमसे कहा कि तुम हमका बुलाई हो।"

"हाॅ काका।" रितू ने कहा___"मैने सोचा कि एक नज़र मैं भी देख लूॅ उन चारो पिल्लों को। वैसे उन सबकी खातिरदारी में कोई कमी तो नहीं की न आपने?"
"अइसन होई सकत है का बिटिया?" हरिया काका ने अपनी बड़ी बड़ी मूॅछों पर ताव देते हुए कहा___"तुम्हरे हर आदेश का हम बहुतै अच्छी तरह से पालन किया हूॅ। ऊ ससुरन केर अइसन खातिरदारी किया हूॅ कि ससुरन केर नानी का नानी केर नानी भी याद आ गई रहे।"

"अगर ऐसी बात है तो बहुत अच्छा किया है आपने।" रितू ने कहा___"उनकी खातिरदारी करने की जिम्मेदारी आपकी है। उनकी खातिरदारी के लिए आप शंकर काका को भी बुला लीजिएगा।"

"अरे ना बिटिया।" हरिया काका ने झट से कहा___"ऊ ससुरे शंकरवा केर कौनव जरूरत ना है। हम खुदै काफी हूॅ ऊ ससुरन केर खातिरदारी करैं केर खातिर। ऊ का है ना बिटिया ऊ शंकरवा से ई काम होई नहीं सकत है। ई ता हम हूॅ जो यतनी अच्छी तरह से खातिरदारी कर सकत हूॅ।"

"ओह ऐसी बात है क्या?" रितू मुस्कुराई।
"अउर नहीं ता का।" काका ने सीना तान कर कहा___"हम ता ई काम मा बहुतै एकसपरट हूॅ बिटिया।"
"काका वो एकसपरट नहीं बल्कि एक्सपर्ट होता है।" रितू ने हॅसते हुए कहा।

"हाॅ हाॅ ऊहै बिटिया।" हरिया काका ने झेंपते हुए कहा___"ऊहै एक्सपरट हूॅ।"
"अच्छा चलिए अब।" रितू ने कहा___"मैं भी तो देखूॅ कि आपने कैसी खातिरदारी की है उन लोगों की?"
"बिलकुल चला बिटिया।" काका ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा___"ऊ लोगन का देख के तुम्हरे समझ मा जरूर आ जई कि हम खातिरदारी करैं मा केतना एकसपरट हूॅ हाॅ।"

रितू, काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने में पहुॅची। तहखाने का नज़ारा पहले की अपेक्षा ज़रा अलग था इस वक्त। उन चारों की हालत बहुत ख़राब थी। उन लोगों से ठीक से खड़े नहीं हुआ जा रहा था। सबसे ज्यादा सूरज चौधरी की हालत खराब थी। वह बिलकुल बेजान सा जान पड़ता था। बाॅकी तीनों उससे कुछ बेहतर थे। उन सभी की गर्दनें नीचे झुकी हुई थी। जबकि उनके सामने वाली दीवार पर बॅधे दोनो गार्ड्स की हालत खराब तो थी पर उन चारो जैसी दयनीय नहीं थी। इसकी वजह ये थी कि हरिया या रितू ने उन पर किसी भी तरह से हाॅथ नहीं उठाया था। वो तो बस बॅधे हुए थे।

"काका एक बात समझ में नहीं आई।" रितू ने उन चारों को ध्यान से देखते हुए कहा__"इन चारों में से सबसे ज्यादा इस मंत्री के हरामी बेटे की हालत खराब क्यों हैं जबकि बाॅकी ये तीनों इससे तो ठीक ठाक ही नज़र आ रहे हैं।"

रितू की ये बात सुन कर हरिया काका बुरी तरह हड़बड़ा गया। उससे तुरंत कुछ कहते न बना। भला वह कैसे बताता रितू को कि उसने सूरज चौधरी की गाॅड मार कर ऐसी बुरी हालत की थी जबकि बाॅकी वो तीनो तो उसे देख देख कर ही अपनी हालत ख़राब कर बैठे थे। हरिया ने उन तीनों की अभी गाॅड नहीं मारी थी। उसने सोचा था कि एक दिन में एक की ही तबीयत से गाॅड मारेगा।

"ऊ का है न बिटिया।" हरिया काका ने झट से कहा___"हम ई सोचत रहे कि ई ससुरन केर एक एक करके खातिरदारी करूॅगा। कल ता हम ई ससुरे की खातिरदारी किया हूॅ अउर आज दुसरे केर नम्बर हाय।"
"ओह तो ये बात है।" रितू ने कहा__"चलो ठीक है जैसे आपको ठीक लगे वैसा खातिरदारी करिये। बस इतना ज़रूर ध्यान दीजिएगा कि इनमें से कोई मर न जाए।"

"चिन्ता ना करा बिटिया।" काका ने कहा__"ई ससुरे बिना हमरी इजाजत के मर नाहीं सकत। जब तक हम इन सब केर पेल न लूॅगा तब तक ई कउनव ससुरे मर नाहीं सकत हैं।"
"क्या मतलब?" रितू को समझ न आया।
"अरे हम ई कह रहा हूॅ बिटिया कि जब तक हम ई ससुरन केर अच्छे से खातिरदारी न कर लूगाॅ।" काका ने बात को सम्हालते हुए कहा___"तब तक ई ससुरे कउनव नाहीं मर सकत। काहे से के ई हमरी ख्वाईश केर बात है हाॅ।"

"ख्वाहिश के बात?" रितू चौंकी___"इसमें आपकी कौन सी ख्वाहिश की बात है काका?"
"अरे हमरा मतबल है बिटिया कि खातिरदारी करैं केर ख्वाईश वाली बात।" काका मन ही मन खुद पर गुस्साते हुए और खिसियाते हुए बोला___"ई ता तुमको भी पता है बिटिया कि हमका केहू केर खातिरदारी करैं का केतना शौक है। उहै बात हम करथैं।"

तहखाने में इन लोगों की आवाज़ गूॅजते ही उन चारों को होश आया। दरअसल वो उस हालत में ही ऊॅघ रहे थे। इन लोगों की आवाज़ काॅनों में टकराने से उन लोगों को होश सा आया था। उन चारों ने सिर उठा कर रितू और काका की तरफ देखा। काका को देख कर वो चारो बुरी तरह घबरा गए। लेकिन जैसे ही उनकी नज़र रितू पर पड़ी तो उनमें उम्मीद की कोई आसा नज़र आई।

"इ इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर।" अलोक ने मरी मरी सी आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा___"हमें यहाॅ से निकालो प्लीज़। हमें छोंड़ दो इंस्पेक्टर, हमे यहाॅ जाने दो वरना ये आदमी हमारी जान ले लेगा।"

"हाॅ हाॅ इंस्पेक्टर हमे जल्दी से यहाॅ से निकालो। ये आदमी बहुत खतरनाॅक है।" रोहित मेहरा गिड़गिड़ा उठा___"इसने सूरज की बहुत बुरी हालत कर दी है। प्लीज़ इंस्पेक्टर हमें इस आदमी से बचा लो। हम तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ते हैं। तुम्हारे पैर पड़ते हैं। हमें छोड़ दो प्लीज़।"

"अबे चुप।" हरिया काका इस तरह उन चारों की तरफ देख कर गरजा था जैसे कोई शेर दहाड़ा हो___"हम कहता हूॅ चुप कर ससुरे वरना हमका ता जान गए हो न। ससुरे टेंटुआ दबा दूगा हम तुम सबकेर।"

हरिया की दहाड़ का तुरंत असर हुआ। उन चारों की बोलती इस तरह बंद हो गई जैसे बिजली के स्विच से बटन बंद कर देने पर बजते हुए टेपरिकार्डर का बजना बंद हो जाता है। मगर वो चुप ज़रूर हो गए थे मगर उन सबकी ऑखों में करुण याचना और विनती करने जैसे भाव स्पष्टरूप से दिख रहे थे।

"तुम लोगों के लिए अब कोई रहम नहीं हो सकता समझे?" रितू ने कठोरता से कहा___"तुम लोगों ने जो पाप किया है और जो भी अपराध किया उसके लिए तुम सबको अब यहीं पल पल मरना है।"

"हमें मारना ही है तो एक ही बार में हमारी जान ले लो इंस्पेक्टर।" निखिल ने कहा__"पर इस आदमी के हवाले मत करो हमे। ये आदमी बहुत बेरहम है। इसने सूरज के साथ बहुत बुरा किया है।"

"चिन्ता मत करो।" रितू ने कहा___"अभी इससे भी बुरा होगा तुम सबके साथ। दूसरों की बहन बेटियों की इज्ज़त लूटने का बहुत शौक है न तुम लोगों को तो अब खुद भी भुगतो। तुम सबका वो हाल होगा जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी न की होगी।"

"ई लोगन का का करना है बिटिया?" काका ने उन दो गार्डों की तरफ देखते हुए कहा__"हमका लागत है ई ससुरे फालतू मा ईहाॅ कस्ट उठाय रहे हैं।"
"इन दोनो को छोंड़ नहीं सकते हैं।" रितू ने कहा___"क्योंकि ये दोनो हमारा काम खराब कर देंगे। इस लिए इन लोगों को यहीं पर रहने दो। बस इन पर हाॅथ नहीं उठाना। इन्होने कोई अपराध नहीं किया है।"

"हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे बेटी।" एक गार्ड ने कहा___"हम अपने बाल बच्चों की कसम खाकर कहते हैं कि हम किसी से भी आपके और इन लोगों के बारे में कुछ नहीं बताएॅगे। हम इस शहर से ही बहुत दूर चले जाएॅगे। ताकि इन लोगों के बाप हमें ढूॅढ़ ही न पाएॅ।"

"हम आप दोनो पर कैसे यकीन करें?" रितू ने कहा___"आप खुद सोचिए कि अगर आप हमारी जगह होते तो क्या करते?"
"हम सब समझते हैं बिटिया।" दूसरे गार्ड ने कहा___"मगर यकीन तो करना ही पड़ेगा न बिटिया। क्योंकि हम अगर चाहें भी तो यकीन नहीं दिला सकते। हमारे पास कोई सबूत भी नहीं है जिसकी वजह से हम आपको यकीन दिला सकें। पर आपको सोचना चाहिए बेटी कि कोई बाप अपने बाल बच्चों की झूॅठी क़सम नहीं खाया करता। अधर्मी से अधर्मी आदमी भी अपनी औलाद की झूठी कसम नहीं खाता। हम तो गरीब आदमी है बेटी। दो पैसे के लिए इनके यहाॅ काम करते थे। मंत्री ने हमारे हाॅथ में बंदूखें पकड़ा दी। हम तो उन बंदूखों को चलाना भी नहीं जानते थे।"

दोनो गार्डों की बातें सुन कर रितू और हरिया सोच में पड़ गए। वो दोनो ही इन्हें सच्चे लग रहे थे। उनकी बातों में सच्चाई की झलक थी। मगर हालात ऐसे थे कि उन्हें छोंड़ना भी नीति के खिलाफ़ था। मगर फिर भी रितू ने ये सोच कर उनको छोंड़ देने का फैसला लिया कि जिनसे ये लोग बताएॅगे वो लोग तो खुद ही बहुत जल्द इसी तहखाने में आने वाले हैं।

ठीक है।" रितू ने कहा___"हम तुम दोनो को छोंड़ रहे हैं। सिर्फ इस लिए कि तुम दोनों ने अपने बच्चों की कसम खा कर कहा हैं तुम लोग यहाॅ के बारे में या इन चारों के बारे में किसी से कुछ नहीं कहोगे।"

"ओह धन्यवाद बेटी।" गार्ड ने खुश होते हुए कहा___"हम सच कह रहे हैं हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे। हम आज ही अपने गाव अपने प्रदेश चले जाएॅगे। काम ही तो करना है कहीं भी कर लेंगे।"

"काका इन दोनो को छोंड दो।" रितू ने हरिया से कहा___"और यहाॅ से इन्हें ले जाकर शंकर काका के पास ले जाओ। काका से कहना कि इन्हें नहला धुला कर तथा अच्छे से खाना खिलाकर रेलवे स्टेशन ले जाएॅ और इनके राज्य की तरफ जाने वाली ट्रेन में बैठा आएॅ।"

"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम अभी इनका छोंड़ देता हूॅ।" कहने के साथ ही हरिया आगे बढ़ा और फिर कुछ ही देर में उन दोनो को रस्सियों के बंधन से मुक्त कर दिया। उन दोनो के हाॅथ अकड़ से गए थे। नीचे लाने में थोड़ी तक़लीफ़ हुई।

"बेटी एक चीज़ की इजाज़त चाहते हम।" एक गार्ड ने रितू से कहा था।
"कहो क्या चाहते हो?" रितू ने कहा।
"इन चारों को एक एक थप्पड़ लगाना चाहते हैं हम।" उस गार्ड के लहजे में एकाएक ही आक्रोश दिखा___"ये अधर्मी व दुराचारी लोग हैं। इन लोगों की वजह से सच में कितनी ही मासूम लड़कियों की जिदगी बरबाद हो गई।"

रितू ने उन्हें इजाज़त दे दी। इजाज़त मिलते ही दोनो उन चारों की तरफ बढ़े और फिर खींच कर एक थप्पड़ उन चारों के गालों पर रसीद कर दिया। चारों के हलक से चीखें निकल गई। ऑखों से पानी छलक पड़ा।

"धन्यवाद बेटी।" दूसरे गार्ड ने कहा__"इन लोगों के साथ बदतर से बदतर सुलूक करना। हरिया भाई, आप बिलकुल ठीक कर रहे हैं।"

इसके बाद हरिया उन दोनो को लेकर तहखाने से बाहर निकल गया। रितू खुद भी तहखाने से बाहर आ गई थी। तहखाने का गेट बंद कर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
______________________________

नीलम को उसका दुपट्टा पकड़ा कर मैं एक झटके से पलट कर कालेज की कंटीन की तरफ बढ़ता चला गया था। इस वक्त मेरे मन में तूफान चालू था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि आज कालेज में नीलम से मेरी इस तरह से मुलाक़ात होगी। नीलम को देख कर मेरी ऑखों के सामने फिर से पिछली ज़िंदगी की ढेर सारी बातें किसी चलचित्र की मानिन्द दिखती चली गई थी। जिनमें प्यार था, घ्रणा थी, धोखा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से किसी भवॅर में फसता हुआ महसूस हुआ मुझे।

कंटीन में पहुॅच कर मैं एक कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया और अपनी ऑखें बंद कर ली। मुझे अपने अंदर बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मेरा दिल रह रह कर दुखी होता जा रहा था। मेरी ऑखों में ऑसुओं का सैलाब सा उमड़ता हुआ लगा मुझे। मैने अपने अंदर के जज़्बात रूपी तूफान को बड़ी मुश्किल से रोंका हुआ था। मैं नहीं जानता कि मेरे वहाॅ से चले आने के बाद नीलम पर क्या प्रतिक्रिया हुई।

मुझे नहीं पता कि मैं उस हालत में कंटीन पर कितनी देर तक बैठा रहा। होश तब आया जब किसी ने पीछे से मेरी पीठ पर ज़बरदस्त तरीके से वार किया। उस वार से मैं कुर्सी समेत जमीन पर मुह के बल पछाड़ गया। अभी मैं उठ भी न पाया था कि मेरे पेट पर किसी के जूतों की ज़ोरदार ठोकर लगी। मैं उछलते हुए दूर जाकर गिरा।

मगर गिरते ही उछल कर खड़ा हो गया मैं। मेरी नज़र मेरे सामने से आते एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसकी ब्वाडी किसी भी मामले में किसी रेसलर से कम न थी। मुझे समझ न आया कि ये कौन है, कहाॅ से आया है और मुझ पर इस तरह अटैक क्यों किये जा रहा है।

"हीरो बनने का बहुत शौक है न तुझे?" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा___"साले मेरे छोटे भाई पर हाॅथ उठाया तूने। तुझे इसका अंजाम भुगतना ही पड़ेगा। ऐसी ऐसी जगह से तेरी हड्डियाॅ तोड़ूॅगा कि दुनियाॅ का कोई डाॅक्टर तेरी हड्डियों को जोड़ नहीं पाएगा।"

"ओह तो तुम उस हराम के पिल्ले के बड़े भाई हो।" मैने कहा___"और मुझसे अपने छोटे भाई का बदला लेने आए हो। अच्छी बात है, लेना भी चाहिए। मगर, मेरी एक फरमाइश है भाई।"
"क्या बक रहा है तू?" वो आदमी शख्ती से गुर्राया___"कैसी फरमाइश?"
Reply
11-24-2019, 12:46 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"मेरी फरमाइश ये है कि एक एक करके आने का कोई मतलब नहीं है।" मैने कहा__"ऐसे में सिर्फ वक्त की बर्बादी होगी। इस लिए एक काम करो। तुम्हारे पास जितने भी आदमी हों उन सबको यहीं पर बुला लो। उसके बाद मुकाबला करें तो थोड़ा मज़ा भी आए।"

"साले बहुत बोलता है तू।" वो आदमी मेरी तरफ बढ़ते हुए बोला___"तेरे लिए मैं ही काफी हूॅ। अभी तेरी हड्डियों का चूरमा बनाता हूॅ रुक।"

वो मेरे पास आते ही मुझ पर अपनी बलिस्ट भुजा का वार कर दिया। मैं तो पहले से ही चौकन्ना हो गया था और जानता भी था कि अगर इसका एक वार भी मुझे लग गया तो मेरी हालत खराब हो जानी थी। ख़ैर, जैसे ही उसने तेजी से अपना दाहिना हाथ घुमाया, मैं फौरन ही नीचे झुक गया। उसका हाथ मेरे ऊपर से निकल गया। उसके सम्हलने से पहले ही मैने उछल कर एक फ्लाइंग किक उसकी कनपटी पर जड़ दी। वो धड़ाम से जमीन पर गिरा। मुझे हैरानी हुई मगर मुझे उसके गिरने का कारण समझ आ गया। गुस्से में यही होता है। मुझे मारने के लिए जब उसने गुस्से से अपना हाथ घुमाया था तो मैं झुक गया था। उसका हाथ जैसे ही मेरे सिर से निकला वैसे ही उछल कर मैने ज़ोरदार फ्लाइंग किक उसकी कनपटी पर जड़ी थी। वो सम्हल नहीं पाया था। अपने ही प्रहार के वेग में वह मेरे प्रहार के लगते ही धड़ाम से गिरा था।

उसके गिरते ही मैंने उछल कर उसके ऊपर जंप मारी मगर वह पलट गया। जैसे ही मेरे दोनो पैर जमीन पर आए उसकी एक टाॅग घूम गई और मेरी एक टाॅग पर लगी। नतीजा ये हुआ कि मैं पिछवाड़े के बल गिर गया मगर पल भर में ही उछल कर खड़ा भी हो गया। और सच कहूॅ तो ये मेरा भाग्य ही अच्छा था कि मैं उछल कर खड़ा हो गया था। क्योंकि जैसे ही मैं गिरा था वैसे ही उसने तेज़ी अपनी दाहिनी कोहनी का वार मेरी छाती की तरफ किया था। मगर मेरे उछल कर खड़े हो जाने पर उसका वो वार जमीन पर तेजी से लगा। कोहनी का तीब्र वार जब पक्की ज़मीन से टकराया तो उसके हलक से चीख निकल गई। अपनी कोहनी को दूसरे हाथ से जल्दी जल्दी सहलाने लगा था वह। ऐसा अवसर छोंड़ना निहायत ही बेवकूफी थी। मैने अपनी दाहिनी टाॅग पूरी शक्ति से घुमा दी। जो कि उसकी कनपटी पर लगी। वो दूसरी कनपटी के बल ज़मीर पर गिर गया। उसका सिर ज़ोर से ज़मीन से टकराया था। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई। निश्चित ही उसकी ऑखों के सामने कुछ पल के लिए अॅधेरा छा गया होगा।

अब मैने रुकना मुनासिब न समझा। मैं एकदम से पिल पड़ा उस पर। लात घूॅसों से उसकी जमकर ठोकाई की मैने। वो बचने के लिए इधर उधर हाॅथ पैर मार रहा था। जबकि मैं बिजली की स्पीड से उस पर वार किये जा रहा था। अचानक ही उसके हाथ में मेरी टाॅग आ गई। उसने मेरी उस टाॅग को पकड़ कर पूरी शक्ति से उछाल दिया। मैं हवा में लहराते हुए एक टेबल पर गिरा। मेरी पीठ पर टेबल का किनारा बड़ी तेज़ी से लगा। मैं चाह कर भी उस दर्द से निकलने वाली चीख को रोंक न सका। तभी मेरी नज़र सामने पड़ी और मैं पलक झपकते ही दर्द को बरदास्त करके टेबल से हट गया। नतीजा ये हुआ कि मेरे हटते ही टेबल पर कुर्सी का तेज़ प्रहार पड़ा और टेबल व कुर्सी दोनो ही टूटती चली गई।

इधर प्रहार करने के बाद वो आदमी सम्हल भी न पाया था कि एक कुर्सी उठा कर मैने बड़ी तेज़ी से उसके सिर पर वार कर दिया। वार ज़बरदस्त था। हाॅथ में टूटी हुई कुर्सी लिए वह सामने टूटी हुई ही टेबल पर मुह के बल गिर गया। सिर से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा था उसके। मुझे समझते देर न लगी कि उसका सिर फट गया है। वह बुरी तरह चीखा था। कंटीन में उसकी चीख गूॅज गई थी। लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने वही कुर्सी एक बार फिर से अपने सिर से ऊपर तक उठा कर उस पर पटक दी। इस बार उसकी पीठ पर कुर्सी लगी थी। लकड़ी की कुर्सी थी वो। उसके दो पाए चटाक से टूट गए। वो आदमी धड़ाम से वहीं पर पसर गया।

अभी मैं उस पर फिर से वार करने ही वाला था कि मैंने देखा कि वो आदमी एकदम से सिथिल पड़ गया था। मैने अपने हाॅथ में ली हुई कुर्सी फेंक दी। झपट कर मैं उसके पर पहुॅचा। वो बुरी तरह खून में नहाये जा रहा था। उसके मुख से कराहटें निकल रही थी। मुझे लगा साला कहीं मर ही न जाए। वरना पंगा हो जाएगा।

मैने देखा उसकी ऑखें बंद होती जा रही थी। मैं ये देख कर बुरी तरह घबरा गया। इधर उधर देखा तो चौंक गया। पूरी कंटीन में लड़के लड़कियों की भीड़ जमा थी। सब लोग फटी फटी ऑखों से देखे जा रहे थे।

"भाईऽऽऽ।" तभी उस भीड़ से आशू राना चीखते हुए आया, बुरी तरह रोने लगा था वह___"ये क्या हो गया भाई तुम्हें? उठो भाई, मेरी तरफ देखो ना भाई।"
"देखो इस तरह रोने से कुछ नहीं होगा समझे।" मैने कहा___"इसे जल्दी से हास्पिटल ले जाना पड़ेगा वरना ये मर जाएगा।"

"तुमने मारा है मेरे भाई को तुमने।" आशू राना ने बिफरे हुए लहजे में कहा___"अगर मेरे भाई को कुछ भी हुआ तो आग लगा दूॅगा मैं इस पूरे काॅलेज में।"
"देखो ये सब बातें तुम बाद में भी कर लेना भाई।" मैने उसके भाई की हालत को देखते हुए कहा___"पहले एम्बूलेंस को बुलाओ।"

"एम्बूलेंस की ज़रूरत नहीं है।" आशू राना ने रोते हुए कहा___"मेरा भाई अपनी गाड़ी से आया था। बाहर खड़ी है।"
"ओह ठीक है फिर।" मैने कहा___"इसे गाड़ी तक ले चलने में मेरी मदद करो। ये बहुत भारी है मैं अकेले इसे कैसे ले जाऊॅगा?"

मेरे कहने पर आशू राना ने अपने भाई को एक तरफ से पकड़ा, दूसरी तरफ से मैंने उसे पकड़ा। काफी मेहनत के बाद आखिर मैं और आशू राना उसके भाई को गाड़ी तक ले आकर उसे कार की पिछली सीट पर लेटा दिया।

"कार की चाभी दो मुझे।" मैने आशू राना से कहा___"तुम अपने भाई को लेकर पीछे बैठ जाओ। मैं कार को जल्दी से हास्पिटल ले चलता हूॅ।"
"पहले तो मेरे भाई को मार कर इस हालत में पहुॅचा दिया और अब उसे हास्पिटल भी ले जा रहे हो।" आशू राना ने गुस्से मे कहा__"ये बहुत अच्छा कर रहे हो तुम, है न? मगर याद रखना कि इसका हिसाब तुम्हें देना होगा।"

"हाॅ ठीक है यार ले लेना हिसाब।" मैने उसके हाथ से चाभी खींचते हुए कहा___"पहले जो ज़रूरी है वो तो करने दो।"

मैं कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार के इग्नीशन में चाभी लगाया और घुमाकर उसे स्टार्ट किया। मैने देखा कि काॅलेज के काफी सारे लड़के लड़कियाॅ बाहर आ गए थे। उनमें एक चेहरा नीलम का भी था। वह मुझे देखकर हैरान थी। मैने उससे नज़र हटाई और कार को एक झटके से आगे बढ़ा दिया।

ऑधी तूफान बनी कार बहुत जल्द हास्पिटल के सामने आकर खड़ी हो गई। मैं झट से गेट खोल कर बाहर आया। पिछला गेट खोल कर मैने आशू राना को बाहर आने को कहा। मैने नज़र घुमा कर देखा तो दो लोग एक खाली स्ट्रेचर को लिए जा रहे थे। मैंने झट से उनको आवाज़ दी। वो मुड़ कर मेरी तरफ देखने लगे।

"अरे जल्दी स्ट्रेचर ले आओ।" मैने चिल्लाते हुए कहा___"इट्स अर्जेन्ट।"
मेरी बात सुनकर वो तुरंत ही हमारी तरफ दौड़ते हुए आए। हम चारों ने आशू राना के भाई को सीट से निकाल कर स्ट्रेचर पर लिटाया। हास्पिटल वाले आदमी उसे उठा कर ले जाने लगे। मैं और आशू राना भी उनके पीछे हो लिए।

कुछ ही देर में वो लोग आशू के भाई को ओटी में ले गए। इधर आशू राना ऑखों में ऑसू लिए हास्पिटल की गैलरी में इधर से उधर बेचैनी और परेशानी में टहलने लगा।

"उम्मीद है कि बहुत जल्द तुम्हारा भाई पहले के जैसा हो जाएगा।" मैने आशू राना की तरफ देख कर कहा था।
"बात मत करो तुम मुझसे।" आशू राना अजीब भाव से गुर्राया___"मेरे भाई की इस हालत के तुम ही जिम्मेदार हो।"

"देख भाई, ये जो कुछ भी हुआ है न उसका जिम्मेदार सिर्फ तू है समझा?" मैने भी शख्त भाव से कहा___"तूने कालेज में उस लड़की की इज्ज़त पर हाथ डाला। इस लिए मैने उस लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए तुझ पर हाथ उठाया। और तूने क्या किया? तू गया तो अपने बड़े भाई को बुला लाया अपनी हार और अपनी मार का बदला लेने के लिए। इस लिए ये तो होना ही था। हम दोनो में से किसी एक के साथ तो ये होना ही था। वक्त और हालात की बात है। मेरा दाॅव चल गया और मैने तेरे भाई की ये हालत बना दी। वरना कोई नहीं सोच सकता था कि तेरे उस मुस्टंडे भाई से मैं बचूॅगा।"

अभी आशू राना कुछ बोलने ही वाला था कि सहसा हमारे पास डाॅक्टर आ गया।
"देखिये सिर पर गहरी चोंट लगी है।" डाक्टर कह रहा था___"सिर फट गया है जिसकी वजह से खून काफी मात्रा में निकल गया है। हमने ब्लड टेस्ट किया तो उनके ग्रुप का ब्लड हमारे हास्पिटल में इस वक्त अवायलेवल नहीं है। जबकि उनको बल्ड चढ़ाना बहुत ज़रूरी है। वरना उनकी जान भी जा सकती है।"

"डाक्टर आप मेरा खून ले लीजिए।" आशू राना ने कहा___"मगर मेरे भाई को बचा लीजिए प्लीज़।"
"ठीक है आइये।" डाक्टर ने कहा___"मैं पहले आपके ब्लड का टेस्ट लूॅगा अगर उनके ब्लड से मैच हो गया तो आपका ही ब्लड उनको चढ़ा देंगे।"

डाक्टर आशू राना को लेकर चला गया। जबकि मैं परेशानी की हालत में आ गया था। मैं भगवान से दुआ करने लगा कि राना के भाई को कुछ न हो। थोड़ी देर में ही डाक्टर के साथ आशू राना बाहर आ गया।

"क्या हुआ डाक्टर साहब?" मैंने हैरानी से देखते हुए कहा___"आप इसे बाहर क्यों ले आए?"
"इनका ब्लड ग्रुप उनके ब्लड ग्रुप से मैच नहीं कर रहा है।" डाक्टर ने कहा___"हमने फोन द्वारा दूसरे हास्पिटलों में भी पता कर लिया है मगर इस वक्त यहाॅ आस पास के किसी भी हास्पिटल में उस ग्रुप का ब्लड उपलब्ध नहीं है।"
"डाक्टर साहब मेरा ब्लड भी चेक कर लीजिए न।" मैने कहा___"शायद मैच हो जाए।"
"ठीक है चलिए।" डाक्टर ने कहा___"आपका भी देख लेते हैं।"

मैं डाक्टर के साथ चला गया। अंदर डाक्टर ने मेरा ब्लड टेस्ट किया और आश्चर्यजनक रूप से मेरा ब्लड मैच कर गया। डाक्टर और मैं दोनो ही खुश हो गए।
"ओह वैरी गुड यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"ये तो कमाल हो गया। आपका ब्लड इनके ब्लड से मैच कर रहा है।"

"तो फिर देर किस बात की है डाक्टर?" मैने कहा___"जल्दी से इसको मेरा खून चढ़ा दीजिए।"
"ओह यस यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"आइये मेरे साथ।"

मैं उस कमरे से निकल कर डाक्टर के साथ उस कमरे में गया जहाॅ पर राना के भाई को बेड पर लिटाया गया था। वहाॅ दो नर्सें मौजूद थी।
"अंकिता।" डाक्टर ने एक नर्स से कहा___"इस यंगमैन का ब्लड ग्रुप इनके ग्रुप से मैच कर रहा है इस लिए फौरन प्रोसेस शुरू करो।"

उसके बाद मुझे भी राना के भाई के बगल वाले बेड पर लेटा दिया गया। मैंने भगवान का शुक्रिया अदा किया और अपनी ऑखें बंद कर ली। कुछ ही देर में मुझे अपने हाॅथ में सुई चुभती महसूस हुई।

लगभग दो घंटे बाद !
डाक्टर ने आकर बताया कि आशू का भाई अब ठीक है। मेरे शरीर से खून की उचित मात्रा लेने के बाद मुझे डाक्टर ने बाहर भेज दिया था। मुझे कमज़ोरी का एहसास हो रहा था। मगर दिल में ये खुशी थी कि मेरे खून से आशू के भाई की जान बच गई थी।

आशू राना जो अब तक मुझसे चिढ़ा चिढ़ा सा था अब वह मुझसे बड़े सलीके से बात कर रहा था। उसने ये स्वीकार किया कि इस सबके लिए सच में वही जिम्मेदार था। डाक्टर ने आशू राना के भाई के सिर पर टाॅके लगा कर उस पर पट्टी कर दी थी।

मैं आशू राना के साथ उस हास्पिटल में तब तक रहा जब तक कि उसके भाई को होश नहीं आ गया था। डाक्टर ने आकर बताया कि राना के भाई को होश आ चुका है तो हम दोनो खुशी खुशी उससे मिलने गए।

कमरे में पहुॅच कर आशू राना अपने भाई को ठीक ठाक देख कर बेहद खुश हुआ। मैं आगे बढ़ कर उसके भाई से बोला___"कैसे हो भाई?"
"अब तो ठीक हूॅ।" उसने कहा___"मुझे डाक्टर ने बताया कि तुमने मुझे बचाने के लिए अपना खून मुझे दिया। ऐसा क्यों किया तुमने भाई? भला क्या लगता था मैं तुम्हारा जो तुमने अपना खून देकर मुझे मरने से बचाया?"

"कोई न कोई रिश्ता तो बन ही गया था हम दोनो के बीच में।" मैने कहा___"फिर चाहे वो दुश्मनी का रिश्ता ही क्यों न हो। सब जानते थे कि मैं तुम्हारे सामने एक पल के लिए भी टिक नहीं पाऊॅगा मगर ये मेरी किस्मत थी कि मुझे कुछ नहीं हुआ बल्कि मैने खुद को कुछ होने से बचा लिया। मगर तुम्हारी किस्मत में ये सब होना था सो हो गया और मजे की बात देखो कि मेरे ही खून से तुम्हें जीवित भी बच जाना था।"

"सच कहा तुमने।" राना के बड़े भाई ने कहा___"ये किस्मत ही तो थी। मैने भी तो यही उम्मीद की थी कि दो मिनट के अंदर तुम्हारी हड्डियाॅ तोड़ कर कालेज से चला जाऊॅगा। मगर क्या पता था कि उल्टा मुझे ही इस हाल में पहुॅच जाना होगा। मैं हैरान था कि एक मामूली सा लड़का मुझे इस तरह कैसे मात दे रहा था। मतलब साफ है कि तुम भी कम नहीं थे।"

"चलो छोड़ो उस बात को।" मैने कहा___"सबसे अच्छी बात ये है कि तुम सही सलामत हो भाई।"
"भाई इस सबका जिम्मेदार मैं हूॅ।" आशू राना ने दुखी भाव से कहा___"सारे फसाद की शुरुआत तो मैने ही की थी। मैं उस लड़की की रैगिंग कर रहा था। मेरी कुछ बातों से उस लड़की को गुस्सा आया और उसने मुझे सबके सामने थप्पड़ मार दिया था। उसके थप्पड़ मारने की वजह से ही मुझे गुस्सा आया हुआ था जिसकी वजह से मैं उसके साथ वो सब कर रहा था। तभी ये भाई आया और मुझे मारने लगा था। इससे मार और मात खा कर ही मैं तुम्हारे पास आया था कि तुम इसे सबक सिखा कर मेरा बदला लो। मगर कुछ और ही हो गया भाई।"

"तुमने ग़लत किया और उस ग़लती में मुझे भी शामिल करवा लिया।" राना के भाई ने कहा__"इसका नतीजा ये तो होना ही था छोटे। कितनी बार तुझे समझाया है कि ऐसे काम मत किया कर बल्कि पढ़ाई किया कर। मगर तू तो पापा पर गया है न। कहाॅ किसी की सुनोगे?"

"अब से सिर्फ तुम्हारी ही बात सुनूॅगा भाई कसम से।" आशू ने कहा___"मैं वो सब ग़लत काम छोड़ दूॅगा।"
"ये सब तो तुमने पहले भी जाने कितनी बार मुझसे कहा था छोटे।" आशू के भाई ने कहा___"मगर क्या तुम कभी अपने फैसले पर अटल रहे? नहीं न? रह भी नहीं सकते छोटे। तुम बिलकुल पापा की तरह हो जैसे उन्हें अपने गुरूर में किसी की परवाह नहीं थी। उसी का नतीजा था कि आज हम बिना माॅ के हैं। तुम भी उनकी तरह ही हो छोटे। आज अगर मैं मर भी जाता तो तुम पर और पापा पर कोई असर नहीं होता।"

"नहीं भाई ऐसा मत कहो प्लीज।" आशू रो पड़ा था, बोला___"मुझे याद है भाई कि आज तक तुमने कैसे मेरी माॅ बन कर मुझे पाला पोषा है। पापा ने तो कभी ध्यान भी नहीं दिया कि उनके बेटे किस हालें हैं। मैं आपकी कसम खा कर कहता हूॅ भाई कि मैं अब से आपका एक अच्छा भाई बन कर दिखाऊॅगा।"

"चल मान ली तेरी ये बात भी।" आशू के भाई ने कहा___"और अगर सचमुच ऐसा हो गया तो मैं तहे दिल से तुम्हारा शुक्रगुजार हूॅ दोस्त कि तुमने मेरी आज ये हालत कर दी। वरना भला कैसे मेरा भाई सही रास्ते पर चलने की बात करता।"

"बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जो कुछ भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"हो सकता है ये जो कुछ भी हुआ आज वो इसी अच्छे के लिए हुआ हो।"
"हाॅ दोस्त।" आशू के भाई ने कहा___"आज से तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और मेरे इस नालायक भाई के भी। इसे अपने साथ ही रखना। और अगर कहीं ग़लती करे तो वहीं पर इसकी धुनाई भी कर देना। मैं कुछ नहीं बोलूॅगा।"

"भाई ये आप क्या कह रहे हैं?" आशू राना की ऑखें फैल गईं___"मुझे इसके साथ रहने को कह रहे हैं? ये हर रोज़ मेरी कुटाई करेगा भाई। प्लीज ऐसा मत कीजिए।"

"यार तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि मैं तुम्हारी कुटाई करूॅगा?" मैने कहा___"तुम आज से मेरे दोस्त हो। हम सब साथ में ही पढ़ेंगे। लेकिन एक बात ज़रूर याद रखना कि भूल से भी किसी के साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं करोगे। वरना सुन ही लिया है न कि भूषण भाई ने क्या कहा है। ख़ैर, मैं तुमसे ये कहना चाहता हूॅ कि एक ऐसा इंसान बनो आशू जिससे हर ब्यक्ति के दिल में तुम्हारे लिए इज्ज़त हो, प्यार हो और सम्मान हो। किसी का बुरा करने से या सोचने से कभी भी तुम लोगों की नज़र में अच्छे नहीं बन सकते। तुम खुद सोचो कि तुमने अपने ग़लत दोस्तों की शोहबत में अपनी क्या इमेज बना ली है सबके बीच? सब लोग तुमसे दूर भागते हैं। कोई भी अच्छा ब्यक्ति तुमसे किसी तरह का ताल्लुक नहीं रखना चाहता। लोग तुमसे तुम्हारे ग़लत ब्यौहार की वजह से कतराते हैं। किसी को डरा धमका कर तुम ये समझते हो कि लोगों के बीच तुम्हारा दबदबा है। जबकि ऐसी सोच सिरे से ही ग़लत है। क्योंकि वो लोग तुमसे डरते नहीं हैं बल्कि तुम जैसे बुरे इंसान के मुह नहीं लगना चाहते। इस लिए वो सब तुमसे दूर भागते हैं। इस लिए दोस्त ऐसा इंसान बनो जिसमें हर कोई तुम्हारे पास खुद आने के लिए रात दिन सोचे। और ये सब तभी होगा जब तुम सबके लिए अच्छा सोचोगे। किसी को अपने से कमज़ोर नहीं समझोगे।"

"वाह दोस्त।" भूषण राना प्रसंसा के भाव से कह उठा___"कितनी गहरी बातें कही है तुमने। काश तुम्हारी ये बातें मेरे इस छोटे को समझ आ जाएॅ और ये उसी राह पर चल पड़े जिस राह पर चलने से ये एक अच्छा इंसान बन जाए।"

"मैं चलूॅगा भाई।" आशू राना कह उठा__"अब से आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूॅगा। इस भाई की बात मेरी समझ में आ गई है। मुझे एहसास हो रहा है भाई कि इसने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा वो एक कड़वा सच है। सच ही तो कहा है भाई ने कि सब लोग मेरे बुरे आचरण की वजह से मुझसे दूर भागते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा भाई। मैं इसके साथ रह कर एक अच्छा इंसान बनूॅगा और ज़रूर बनूॅगा।"

"ये हुई न बात।" मैने कहा___"चल आजा इसी बात पर गले लग जा मेरे। कितनी बड़ी बात है कि आज काॅलेज के पहले ही दिन में पहले दुश्मनी हुई और फिर दोस्ती भी हो गई।"

आशू मेरे गले लग गया। मैने देखा बेड पर पड़े भूषण राना की ऑखों में खुशी के ऑसूॅ थे। कुछ देर और वहाॅ पर रुकने के बाद मैने भूषण राना से जाने की इजाज़त माॅगी तो उसने पहले मुझसे मेरा फोन नंबर लिया और मैने भी उसका लिया। फिर भूषण के कहने पर आशू मुझे भूषण की कार से काॅलेज तक छोंड़ा। पूरे रास्ते आशू राना का चेहरा खिला खिला नज़र आया मुझे। मैं समझ गया कि ये अब ज़रूर सुधर जाएगा।

काॅलेज के गेट के पास उतार कर आशू वापस लौट गया जबकि मैं पार्किंग की तरफ बढ़ गया अपनी बाइक को लेने के लिए। पार्किंग से अपनी बाइक पर सवार होकर अभी मैने बाइक को स्टार्ट करने के लिए सेल्फ पर अॅगूठा रखा ही था कि मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने पैंट की जेब से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा तो मेरे चेहरे पर सोचने वाले भाव उजागर हो गए।
Reply
11-24-2019, 12:46 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अब आगे,,,,,,,,

"हम कुछ भी नहीं सुनना जानते कमिश्नर हमारे बच्चे जहाॅ भी हों उन्हें ढूॅढ़ कर हमारे सामने तुरंत हाज़िर करो।" दिवाकर चौधरी फोन पर गुस्से में कह रहा था___"वरना तुम सोच भी नहीं सकते कि हम क्या कर सकते हैं? हमें पता चला है कि बच्चों ने किसी लड़की के साथ रेप किया है। मगर ये सब तो चलता ही रहता है इस उमर में। अगर हमें पता चला कि इस रेप की वजह से ही हमारे बच्चे गायब हैं तो समझ लेना कमिश्नर इस शहर में कोई इंसान ज़िदा नहीं बचेगा।"

".................."उधर से कुछ कहा गया।
"तो अगर पुलिस ने उस लड़की के रेप पर कोई केस नहीं बनाया तो कहाॅ गए हमारे बच्चे?" दिवाकर चौधरी गर्जा___"आज दो दिन हो गए कमिश्नर। अभी तक बच्चों का कहीं कोई अता पता नहीं है।"

"............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"तुम्हारे पास चौबीस घंटे का टाइम है कमिश्नर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"अगर चौबीस घंटे के अंदर हमारे बच्चे हमारी ऑखों के सामने न दिखे तो समझ लेना कि हम क्या करते हैं फिर।"

कहने के साथ ही दिवाकर चौधरी ने फोन के रिसीवर को केड्रिल पर पटक दिया। गुस्से से तमतमाया हुआ आया और वहीं सोफे पर बैठ गया। इस वक्त वहाॅ रखे बाॅकी सोफों पर उसके सभी मित्र यार बैठे हुए थे। सबके चेहरों पर चिंता व परेशानी साफ दिखाई दे रही थी।

"क्या कहा कमिश्नर ने?" अशोक मेहरा ने उत्सुकता से पूछा था।
"क्या उस रेप की वजह से हमारे बच्चे गायब हैं?" सुनीता वर्मा ने कहा___"ज़रूर पुलिस वालों ने ही उन सबको गिरफ्तार किया होगा।"

"पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है सुनीता कि वो हमारे बच्चों को छू भी सके।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मुझे लगता है कि हमारे बच्चे खुद ही अंडरग्राउण्ड हो गए हैं। उन्होंने सोचा होगा कि इस हादसे से कहीं उनको पुलिस न पकड़ ले। इस लिए वो कहीं छुप गए होंगे। उन बेवकूफों का इतना भी दिमाग़ नहीं चला कि उनको किसी से डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। ख़ैर, तुम लोग चिन्ता मत करो। हमारे बच्चे जहाॅ भी होंगे सही सलामत ही होंगे।"

"पर चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उन लोगों को हमें एक बार फोन तो कर ही देना चाहिये था। मगर दो दिन से फोन ही बंद हैं उन सबका। समझ में नहीं आ रहा कि कहाॅ गए होंगे वो। आपके फार्महाउस पर भी नहीं हैं। हमारे आदमी देख आए हैं वहाॅ। लेकिन हैरानी की बात है कि आपके फार्महाउस के वो दोनो गार्ड्स भी वहाॅ नहीं हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"भाग गए होंगे साले कामचोर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उस समय जब उनके हाॅथ में बंदूखें थमाई थी तभी समझ आ गया था कि ये इस काम के लिए बेहद कमज़ोर हैं। ख़ैर छोड़ो। कमिश्नर को हमने डोज दे दी है। वो ज़रूर पता करेगा बच्चों का।"

"आप तो ऐसे बेफिक्र हैं चौधरी साहब जैसे आपको अपने बच्चों की कोई चिंता ही नहीं है।" सुनीता वर्मा ने कहा___"पर मुझे चिंता है। क्योंकि मुझ विधवा का एक वही तो सहारा है। अगर उसे कुछ हो गया तो किसके लिए जियूॅगी मैं?"

"ओफ्फो सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सहसा उसे अपनी तरफ खींच लिया। एक हाॅथ से उसकी ठुड्डी पकड़ कर बोला___"वैसे तो उसे कुछ नहीं होगा। और अगर थोड़े पल के लिए मान भी लिया जाए तो चिंता क्यों करती हो? हम हैं न तुम्हारे सहारे के लिए। अब तक भी तो सहारा ही बने हुए थे हम और आगे भी बने ही रहेंगे।"

"आपको तो बस हर वक्त मस्ती ही सूझती रहती है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा__"जबकि इस वक्त हालात किस क़दर गंभीर हैं इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं है।"
"तुम भूल रही हो सुनीता डार्लिंग कि हम कौन हैं?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"हम इस शहर की वो हस्ती हैं जिसकी इजाज़त के बिना एक पत्त भी नहीं हिल सकता। इस लिए तुम इस बात की चिंता करना छोंड़ दो कि बच्चों के साथ कोई बुरा करेगा।"

"चौधरी साहब बिलकुल ठीक कह रहे हैं सुनीता।" अशोक मेहरा ने कहा___"हमारे बच्चे ज़रूर किसी दूसरे शहर में मौज मस्ती कर रहे होंगे।"
"मौज मस्ती हमें भी तो करनी चाहिए न अशोक?" दिवाकर ने कहा___"बहुत दिन हो गए सुनीता के साथ भरपूर मस्ती नहीं की हमने।"

"आपने तो मेरे मन की बात कह दी चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने मुस्कुराते हुए कहा___"आज हो ही जाए मस्ती।"
"क्या कहती हो डार्लिंग?" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के एक भारी बोबे को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"हो जाए वन टू का फोर?"

"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ कि आप सब मुझे मसल कर रख दो।" सुनीता ने अपने होठों को दाॅतों तले दबाते हुए कहा___"मेरे जिस्म में तो हर वक्त आग लगी रहती है। अलोक का बाप तो कमीना मुझे भरी जवानी में छोंड़ कर मर गया। वो तो भगवान का शुकर था कि आप लोग मेरे जीवन में आ गए वरना जाने क्या होता मेरा?"

"भगवान सब अच्छे के लिए ही करता है मेरी राॅड सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा___"और आज तो हम सब तेरी आगे पीछे दोनो साइड से अच्छे से लेंगे।"

"हाॅ तो ठीक है न।" सुनीता ने अपना हाथ बढ़ा कर दिवाकर के पजामें के ऊपर से ही उसके लौड़े को पकड़ लिया___"मेरा कोई भी छेंद खाली न रखना।"
"आज तो साली तेरी चीखें निकालेंगे हम तीनों।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"चलो भाई लोग अंदर कमरे में चलो। आज इस राॅड को तबीयत से पेलते हैं।"

दिवाकर चौधरी की बात सुन कर बाॅकी तीनो भी मुस्कुराते हुए सोफों से उठ खड़े हुए।
"चौधरी साहब आपकी बेटी तो नहीं है न बॅगले में?" अशोक मेहरा ने पूछा__"वरना उसे पता चल जाएगा कि हम सब क्या कर रहे हैं।"
"नहीं है यार।" दिवाकर ने कहा___"शायद कहीं बाहर गई हुई है।"

अभी वे सब कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि सहसा पीछे से दिवाकर के पीए ने आवाज़ दी।
"चौधरी साहब, चौधरी साहब।" पीए ने बदहवास से लहजे में कहा था।

"क्या बात है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी__"क्यों गला फाड़ रहे तुम? देख नहीं रहे, हम ज़रूरी काम से कमरे में जा रहे हैं?"
"ज़रूर जाइये चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने अजीब भाव से कहा___"लेकिन उससे पहले इसे तो देख लीजिए।"

"क्या है ये?" दिवाकर चौधरी की भृकुटी तन गई, बोला___"तुम हमें मोबाइल देखने का कह रहे हो इस वक्त? दिमाग़ तो ठीक है न तुम्हारा?"
"आप एक बार देख लीजिए न चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने विनती भरे भाव से कहा___"उसके बाद आपको जो करना है करते रहिएगा।"

"दिखाओ क्या है ये?" दिवाकर चौधरी ने मनोहर लाल के हाथ से मोबाइल छींन लिया था। मोबाइल की स्क्रीन पर कोई वीडियो पुश मोड पर नज़र आ रहा था।
"तुमने हमें ये दिखाने के लिए रोंका है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी ने गुस्से से कहा।
"गुस्सा मत कीजिए चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने कहा___"एक बार उस वीडिओ को प्ले तो कीजिए।"

दिवाकर चौधरी ने पहले तो खा जाने वाली नज़रों से मनोहर लाल को देखा फिर मोबाइल की स्क्रीन पर देखते हुए उस वीडिओ को प्ले कर दिया। बड़े से स्क्रीन टच मोबाइल में वीडिओ के प्ले होते ही जो कुछ नज़र आया उसे देख कर दिवाकर चौधरी के होश उड़ गए। दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। ये सच है कि उसके हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। सिर पर एकाएक ही जैसे पूरा आसमान ही भरभरा कर गिर पड़ा था उसके।

चौधरी की हालत एक पल में ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। चेहरा फक्क पड़ गया था उसका। बाॅकी दोनो और सुनीता भी चौधरी की ये दशा देख कर बुरी तरह चौंके। उन्हें समझ न आया कि अचानक चौधरी साहब को क्या हो गया है।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने हैरानी से कहा__"आप इस तरह बुत से क्यों बन गए? क्या है उस मोबाइल में?"
"आं हा, लो तुम भी देख लो।" दिवाकर चौधरी ने मोबाइल पकड़ा दिया उसे।

अवधेश के साथ साथ अशोक व सुनीता ने भी मोबाइल में चालू वीडियो को देखा। और अगले ही पल उनकी भी हालत खराब हो गई।
"ये सब क्या है मनोहर लाल?" अशोक वर्मा ने गुस्से से कहा___"चौधरी साहब का ऐसा वीडियो इस मोबाइल में कहा से आया?"

"ये वीडियो किसी अंजान नंबर से भेजा गया है सर।" मनोहर ने कहा___"अभी पाॅच मिनट पहले ही आया है। इतना ही नहीं अलग अलग चार वीडियो और भी हैं। बाॅकियों को भी प्ले करके देख लीजिए।"

अशोक ने वैसा ही किया। कहने का मतलब ये कि चारो वीडियो अलग अलग ब्यक्तियों के थे। पहला दिवाकर चौधरी का, दूसरा अशोक मेहरा का, तीसरा सुनीता वर्मा का और चौथा अवधेश श्रीवास्तव का।

चारो वीडियो देखने के बाद उन चारों की हालत बेहद खराब हो गई। सबके पैरों तले से ज़मीन कोसों दूर निकल गई थी।

"चौधरी साहब ये सब वीडियो हम लोगों के कैसे बन गए?" अशोक मेहरा ने कहा__"और इन वीडियोज में जो जगह है वो तो आपके फार्महाउस की ही है। मतलब साफ है कि वहीं पर हमारे ऐसे वीडियो बनाए गए। मगर सवाल है कि किसने बनाए ऐसे वीडियो? क्या हमारे बच्चों ने? यकीनन चौधरी साहब, ये उन लोगों ने ही बनाया है।"

"अशोक सही कह रहे हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारे बच्चों ने ही ये वीडियो बनाया। क्योंकि बाहरी कोई वहाॅ जा ही नहीं सकता।"
"ये सब छोंड़ो और ये सोचो कि ये वीडियो किसने भेजा हमारे फोन पर?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"हमारे बच्चे तो ऐसा करेंगे नहीं। क्योंकि ऐसा करने की उनके पास कोई वजह ही नहीं है। उन्होंने ये सोच कर वीडियो बनाया कि हम अपने बाप वोगों की मौज मस्ती अपनी ऑखों से देखेंगे। उनके दिमाग़ में ऐसे वीडियोज हमारे पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति हम बखूबी करते हैं। ये किसी और का ही काम है अवधेश। हमारे फोन में वीडियो भेजने का मतलब है कि सामने वाला हमें बताना चाहता है कि उसके पास हमारी इस करतूत का सबूत है और वो हमें जब चाहे एक्सपोज कर सकता है। अब सवाल ये है कि वो कौन है जिसने ये वीडियो भेजा और किस मकसद के तहत भेजा?"

"मामला बेहद गंभीर हो गया है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा___"हमारे बच्चों ने तो हमें बड़ी भारी मुसीबत में डाल दिया है।"
"मुसीबत तो अब हो ही गई है मगर इससे निपटने का रास्ता तो अब ढूढ़ना ही पड़ेगा न?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"सबसे पहले ये पता करना होगा कि ये वीडियो उसके पास कैसे आए और उसने हमें किस मकसद से भेजा है?

"वीडियो आपके फार्महाउस के उसी कमरे में बनाया गया है चौधरी साहब जिस कमरे में हम लोग अक्सर शबाब का मज़ा लूटा करते हैं।" अशोक ने कहा___"मतलब साफ है वीडियो भेजने वाले को ये वीडियो वहीं से मिले होंगे। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आपके फार्महाउस पर ऐसा कौन ब्यक्ति गया और ये सब वीडियोज वहाॅ से उठा कर चंपत हो गया? आपके फार्महाउस के वो गार्ड्स कहाॅ थे उस वक्त जब कोई बाहरी वहाॅ आकर ये सब काण्ड कर गया?"

अशोक मेहरा की इन बातों से सन्नाटा छा गया हाल में। सबका दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन कय रह गया था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अचानक कौन सी आफत आ गई थी। जिसने उन सब महारथियों को अपंग सा बना दिया था।

"मनोहर लाल पता करो किसने ये हिमाकत की है?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जिस नंबर से ये वीडियोज आईं हैं उस नंबर पर फोन करो।"
"मैने बहुतों बार फोन लगाया चौधरी साहब लेकिन नंबर बंद बता रहा है।" मनोहर लाल ने कहा___"आप कहें तो पुलिस को ये नंबर दे दूॅ वो जल्द ही पता कर लेंगे कि ये नंबर किसका है और किस जगह से इस नंबर के द्वारा ये वीडियोज भेजी गई हैं?"

"तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया मनोहर लाल।" दिवाकर गुस्से से बोला__"ये घटिया ख़याल आया कैसे तुम्हारे ज़हन में? सोचो अगर हमने पुलिस को नंबर दिया तो उसका अंजाम क्या हो सकता है? जिसने भी ये दुस्साहस किया है वो कोई मामूली ब्यक्ति नहीं हो सकता। उसे भी ये पता होगा कि हम उसका पता लगाने के लिए उसका नंबर पुलिस को दे सकते हैं। उसने पुलिस को नंबर न देने की कोई चेतावनी भले ही हमें नहीं दी है मगर हमें तो सोचना समझना चाहिए न? अगर हमने ऐसा किया तो संभव है कि वो हमारे ये वीडियो पुलिस को दे दे या सार्वजनिक कर दे। उस सूरत में हमारा सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा। शहर की जनता और ये पुलिस प्रशासन सब हमारे खिलाफ़ हो जाएॅगे। इस लिए हमें ठंडे दिमाग़ से इसके बारे में सोचना होगा। बिना मतलब के या बिना मकसद के कोई किसी के साथ ऐसा नहीं करता। उसने ऐसा किया है तो देर सवेर ज़रूर उसका कोई मैसेज या फोन भी आएगा। तब हम उससे पूछेंगे कि वह क्या चाहता है हमसे?"

"इसका मतलब अब हम उस ब्यक्ति के किसी फोन या मैसेज का इंतज़ार करें जिसने ये वीडियोज हमें भेजा है?" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा।
"इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है।" दिवाकर ने कहा___"हमें एक बार उससे बात तो करनी पड़ेगी। आख़िर पता तो चले कि उसने ऐसा किस मकसद से किया है? उसके बाद ही हम कोई अगला क़दम उठा सकते हैं।"

"ठीक है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जैसा आप उचित समझें वैसा कीजिए। मगर ये मैटर ऐसा है कि हम सबके होश उड़ा देगा। सब कुछ बरबाद कर देगा।"
"बस एक बार उसका कोई फोन या मैसेज तो आने दो।" दिवाकर ने कहा___"उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी हरकत करने का अंजाम कितना भयावह होता है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से एक बार फिर हाल में सन्नाटा छा गया। किन्तु सबके मन में जो तूफान उठ चुका था उसे रोंकना उनके बस में न था।
___________________________

"चौधरी आज से तेरे बुरे दिन शुरू हो गए हैं। मासूम और मजलूमों पर तूने, तेरे साथियों ने और तेरे हराम के पिल्लों ने जो भी ज़ुल्म ढाए हैं उनका हिसाब देने का समय आ गया है।" रितू की कार ऑधी तूफान बनी फार्महाउस की तरफ दौड़ी जा रही थी। साथ ही मन ही मन वह ये सब कहती भी जा रही थी।

रितू ने ऐसी जगह से अपने नये मोबाइल फोन द्वारा वो वीडियोज चौधरी के मोबाइल पर भेजे थे जिस जगह पर एक नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था। किन्तु इस वक्त वहाॅ पर कोई न था। यहीं से उसने चौधरी को वोडियोज भेजे थे। वीडियो भेजने के बाद उसने फोन को स्विचऑफ कर दिया था। उसका खुद का जो आईफोन था वो पहले से ही स्विचऑफ था। उसके दिमाग़ में हर चीज़ से बचने की भी सोच थी।

ऑधी तूफान बनी उसकी जिप्सी उसके फार्महाउस पर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह तेज़ी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। बाहर मेन गेट पर शंकर काका नज़र आया था उसे किन्तु हरिया काका नज़र नहीं आया था। कमरे में जाकर उसने नया वाला फोन आलमारी में रखा और उसे लाॅक कर तुरंत पलटी।

जिप्सी में बैठी रितू का रुख अब अपने हवेली की तरफ था। उसके दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कई सारी चीज़ें चल रही थी। उसके ज़हन में ये बात हर पल बनी हुई थी कि उसने विधी से वादा किया था कि विराज को उसके पास ज़रूर लाएगी।

रितू के पास विराज का कोई काॅन्टैक्ट करने का ज़रिया न था। इस लिए उसने ये पता लगाने के लिए किसी आदमी को लगाया हुआ था कि उसके किसी दोस्तों के पास विराज का कोई अता पता हो। दूसरे दिन सुबह ही उसके आदमी ने उसे बताया था कि विराज के दो ही लड़के खास दोस्त हुआ करते थे। एक का नाम दिनेश सिंह था जो कि आजकल देश के किसी दूसरे राज्य में नौकरी कर रहा है। दूसरे दोस्त का नाम है पवन सिंह चंदेल। ये विराज का स्कूल के समय से ही दोस्त था। ग़रीब है, आज कल हल्दीपुर में ही बस स्टैण्ड के पास पान की दुकान खोल रखा है। घर में विधवा माॅ के अलावा एक बहन है जो ऊम्र में उससे बड़ी है। मगर आर्थिक परेशानी की वजह से वह अपनी बड़ी बहन की शादी नहीं करा पा रहा है।

रितू के खबरी ने उसे पवन सिंह का नंबर लाकर दिया था। रितू ने पवन को फोन लगा कर उसे अपना परिचय दिया और मिलने का कहा था। खैर, रातू जब पवन से मिली तो उससे विराज के बारे में पूछा तो पवन ने बड़ा अजीब सा जवाब दिया था उसे।

"आप मेरे दोस्त राज की बड़ी बहन हैं इस लिए आप मेरी भी बड़ी बहन के समान ही हैं।" पवन ने कहा था___"आप मेरे घर पर आई हैं, आपका तहे दिल से स्वागत है। लेकिन अगर आप मुझसे मेरे जिगरी यार का पता या फोन नंबर पूछने आई हैं तो माफ़ कीजिएगा दीदी। मैं आपको ना तो उसका पता बताऊॅगा और ना ही उसका फोन नंबर दूॅगा।"

"लेकिन क्यों पवन क्यों?" रितू ने चकित भाव से कहा था___"तुम एक बहन को उसके भाई का अता पता क्यों नहीं बताओगे?"
"बहन.....भाई???" पवन सिंह बड़े अजीब भाव से हॅसा था, उसकी उस हॅसी में रितू ने साफ साफ दर्द महसूस किया____"कौन बहन भाई दीदी? अरे मेरे यार ने तो सबको हमेशा अपना ही माना था मगर उसके खुद के माॅ बाप और बहन के अलावा किसी भी परिवार वाले ने उसे अपना नहीं माना। और और आप???? आप भी बताइये दीदी, आप ने राज को कब अपना भाई माना था? अरे उसे तो आपने बचपन से लेकर आज तक सिर्फ दुत्कारा है दीदी। ख़ैर, जाने दीजिए। आपसे ये सब कहने का मुझे कोई हक़ नहीं है। माफ़ करना दीदी, आपको देख कर जाने कैसे गुस्सा सा आ गया था और दिल का गुबार मुख से निकल गया। मगर, जिस काम के लिए आप यहाॅ आई हैं वो हर्गिज़ नहीं होगा। मुझे सब पता है दीदी, मेरे दोस्त राज और उसकी माॅ बहन को खोजने के लिए आपके डैड ने अपने आदमियों को जाने कब से लगाया हुआ है। मगर कोई भी उनका आदमी उसे ढूॅढ़ नहीं पाएगा।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो पवन।" रितू ने बेचैनी भरे भाव से कहा था___"मैं ये मानती हूॅ कि मैने अपने उस भाई को कभी अपना नहीं माना था लेकिन आज ऐसा नहीं है भाई। आज तुम्हारी ये दीदी बहुत प्यार करने लगी है अपने उस भाई से। इस वक्त अगर राज मेरे सामने आ जाए तो मैं उसके पैरों में पड़ कर उससे अपने किये की मुआफ़ी माॅग लूॅगी। ये सब समय समय की बातें हैं पवन। हम जब बच्चे होते हैं तो बिलकुल कुम्हार के पास रखी हुई उस गीली और कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। हमारे माता पिता कुम्हार की तरह ही होते हैं। वो जैसे चाहें अपने बच्चों को किसी मिट्टी के घड़े की तरह ढाल देते हैं। कहने का मतलब ये कि, मेरे माॅम डैड ने हम बहन भाइयों को बचपन से जो सिखाया पढ़ाया हम उसी को करते चले गए। लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता पवन। हर सच्चाई को एक दिन पर्दे से निकल कर बाहर आना ही पड़ता है। यही उसकी नियति होती है। और सच्चाई क्या है क्या नहीं ये मुझे समझ आ गया है। मुझे पता है पवन कि मेरा भाई राज वो कोहिनूर है जिसका कोई मोल हो ही नहीं सकता।"

"वाह दीदी वाह।" पवन कह उठा___"आज आपके मुख से ये अमृत वाणी कैसे निकल रही है? हैरत की बात है, खैर मुझे क्या है। मगर इतना जान लीजिए कि मैं आपकी इन मीठी बातों के जाल में फॅसने वाला नहीं हूॅ। मेरी वजह से मेरे दोस्त को कोई नुकसान नहीं पहुॅचा सकता। अब आप जाइये दीदी। मुझे आपसे और कोई बात नहीं करनी है।"

"कैसे यकीन दिलाऊॅ पवन?" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"आखिर कैसे तुम्हें यकीन दिलाऊॅ कि मैं अब वैसी नहीं रही? मैं हनुमान जी की तरह अपना सीना चीर कर नहीं दिखा सकती मगर भगवान जानता है कि मेरे सीने में मेरा भाई ज़रूर मौजूद हो गया है। तुम मुझे उसका गुनहगार समझते हो तो चलो ठीक है पवन। तुम मुझे राज का अता पता भी न दो मगर इतना तो उसे बता ही सकते हो न वो कुछ देर के लिए अपनी उस विधी के पास आ जाए जिससे वह आज भी उतना ही प्यार करता होगा जितना पहले करता था।"

"नाम मत लीजिए उस बेवफ़ा का।" पवन ने सहसा आवेशयुक्त लहजे में कहा___"उसी की बेवफ़ाई की वजह से मेरा दोस्त रात रात भर मेरे पास रोता रहता था। कितना चाहता था वो उसे। मगर उस दिन पता चला कि दुनियाॅ भर की कसमें और दलीलें देने वाली वो लड़की कितनी झूठी और मक्कार थी जिस दिन आप लोगों ने मेरे दोस्त को और उसके माॅ बहन को हवेली से बाहर धकेल दिया था। उधर आप लोगों ने हवेली से धकेला और इधर उस कम्बख्त ने मेरे दोस्त को अपने दिल से धकेल दिया। एक पल में गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था उस लड़की ने। रुपये पैसे से मोहब्बत थी उसे ना कि मेरे दोस्त से।"

"सच्चाई क्या है इसका तुम्हें पता नहीं है पवन।" रितू ने दुखी भाव से कहा__"तुम और विराज ही क्या बल्कि नहीं समझ सकता कि उसने ऐसा क्यों किया था?"
"अरे दौलत के लिए दीदी दौलत के लिए।" पवन ने झट से कहा___"उसने मेरे दोस्त की सच्ची मोहब्बत को अपने पैरों तले रौंदा था।"

"ये सच नहीं है पवन।" रितू ने कहा__"अगर सच्चाई जान लोगे न तो पैरों तले से ज़मीन गायब हो जाएगी तुम्हारे। उसने ये सब इस लिए किया था ताकि विराज उससे नफ़रत करने लगे और किसी दूसरी लड़की के साथ प्यार मोहब्बत करने का सोचे। माना कि ये आसान नहीं था मगर वक्त और हालात हर ज़ख्म भर देता और एक नया मोड़ भी जीवन में ले आता है।"

"आप कहना क्या चाहती हैं दीदी?" पवन ने कहा___"और इन सब बातों का आज कहने का क्या मतलब है?"
"विधी को ब्लड कैंसर था पवन।" रितू ने मानो धमाका किया___"और वो भी लास्ट स्टेज का। इसी लिए उसने ये सब किया था राज के साथ। ताकि वह उसे भूल जाए और दूर हो जाए उससे।"

"क क्या?????" पवन बुरी तरह चौंका था___"ये ये आप क्या कह रही हैं दीदी? विधी को कैंसर?? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ये सब झूठ है।"
"अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं है तो मेरे साथ चल कर खुद अपनी ऑखों से देख लो तुम।" रितू ने कहा___"इस वक्त भी वह हास्पिटल में ही है। तुमने शायद सुना नहीं होगा उस रेप के बारे में जो अभी कुछ दिनों पहले ही हुआ था। विधी के साथ ये हादसा हुआ था जिससे उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। हास्पिटल में जब उसे भर्ती किया गया तभी उसके चेकअप से डाक्टर को ये पता चला कि विधी को लास्ट स्टेज का ब्लड कैंसर है। जबकि कैंसर वाली बात विधी को पहले से ही पता थी।"

पवन सिंह रितू को अजीब भाव से इस तरह देखने लगा था जैसे रितू का सिर धड़ से अलग होकर ऊपर हवा में अचानक ही कत्थक करने लग गया हो। अविश्वास से फटी हुई उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू आ गए।

"हे भगवान! ये क्या हो गया?" पवन ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा__"एक और सच्चे प्रेम की ये दशा कर दी तूने। बहुत बेरहम और बेदर्द है तू। दीदी, मुझे उस महान लड़की को देखना है। उससे मुआफ़ी माॅगना है। हे भगवान कितना बुरा भला कहा मैने उसे और आज तक बुरा भला सोचता भी रहा हूॅ।"

रितू पवन को लेकर हास्पिटल पहुॅची तो पवन ने देखा विधी को। विधी की कुरुण हालत देख कर पवन का कलेजा मुह को आ गया। वह विधी के पैरों में अपना सिर रख दिया और माफ़ी माॅगने लगा। पवन बहुत ही भावुक किस्म का लड़का था, इस लिए ज्यादा देर तक वह विधी के पास न रह सका था। उसे रह रह कर रोना आने लगता था।

हास्पिटल से बाहर आकर उसने खुद को और अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त किया। तभी पीछे से रितू ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलट कर देखा उसे।

"क्या अब भी तुम्हें लगता है पवन कि मैं तुमसे झूॅठ बोल रही हूॅ?" रितू ने कहा था।
"नहीं दीदी, प्लीज माफ़ कर दीजिए।" पवन ने अपने हाथ जोड़ कर कहा था।
"इसी विधी ने मुझे एहसास कराया कि मैं कितना ग़लत सोचती थी अब तक अपने भाई विराज के लिए।" रितू ने कहा___"विधी की कहानी ने मुझे ये एहसास कराया भाई कि मेरा अपने भाई के लिए आज तक अनुचित ब्यौहार करना कितना ग़लत था। इसको मैने वचन दिया है पवन कि इसके महबूब को इसके पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं इसी लिए तुम्हारे पास आई थी पवन। मैंने अपने भाई के साथ क्या किया है अबतक उसका फल मुझे ज़रूर मिलेगा और मिलना भी चाहिए।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" पवन ने कहा__"ये सब समय समय की बातें हैं। जो बीत गया उसे भूल जाइये और एक नया संसार बनाने की सोचिये। मैं अभी विराज को फोन करता हूॅ और उसे विधी के बारे में सब बताता हूॅ।"

"नहीं नहीं पवन।" रितू ने झट से कहा__"उसे ये मत बताना कि विधी को क्या हुआ है। बल्कि कुछ और बोलो। कुछ ऐसा कि वो दूसरे दिन मुंबई से यहाॅ आने के लिए चल दे।"
"ठीक है दीदी।" पवन ने कहा था__"मैं ऐसा ही करता हूॅ।"

कहने के साथ ही पवन ने विराज को फोन को फोन लगा दिया था। उसका दिल बुरी तरह धड़के जा रहा था। रिंग जाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। और तभी,

"हाॅ भाई बोल कैसे याद किया?" उधर से विराज ने कहा था।
"भाई अगर तेरे पास टाइम हो तो तू जल्दी से गाॅव आ जा।" पवन ने कहा था।
"अरे क्या हुआ भाई?" विराज के चौंकने जैसी आवाज़ आई___"सब ठीक तो है ना?"

"बस भाई तू कल ही आजा यहाॅ।" पवन ने गंभीरता से कहा___"तुझे मेरी क़सम है भाई। तू कल यहाॅ आएगा।"
"पर बात क्या है पवन?" विराज का चिंतित स्वर उभरा___"देख तू मुझसे कुछ भी मत छुपा ओके। चाची(पवन की माॅ) की तबीयत तो ठीक है ना? पूजा दीदी ठीक तो हैं ना मेरे भाई? सच सच बता न क्या बात है?"

"भाई परेशान न हो।" पवन ने कहा__"बस तू कल आजा भाई। बाॅकी सब कुछ तुझे यहाॅ आने पर ही पता चलेगा। तू आएगा न कल?"
"मैं आज ही रात की ट्रेन से निकल लूॅगा यहाॅ से।" विराज ने कहा___"कल दोपहर तक पहुॅच जाऊॅगा।"

"ठीक है भाई मैं तुझे बस स्टैण्ड पर ही मिलूॅगा।" पवन ने कहा___"मुझे पहुॅचते ही फोन कर देना।"
"आखिर बात क्या है यार?" विराज की आवाज़ आई___"तू बता क्यों नहीं रहा है?"
"तू आजा बस।" पवन ने कहा___"चल रखता हूॅ फोन।"

पवन ने फोन काट दिया। एक गहरी साॅस ली उसने और फिर रितू की तरफ देखते हुए कहा___"लीजिए दीदी। मेरा यार कल दोपहर को आ जाएगा यहाॅ।"

"तुमने मेरे वचन को झूठा होने से बचा लिया मेरे भाई।" रितू ने की ऑखें भर आई। उसने झपट कर पवन को अपने गले से लगा लिया।
"आपने भी तो मुझे पाप करने से बचाया दीदी।" पवन ने कहा___"आज तक मैं अपने मन में उस विधी को जाने कितना बुरा भला कहता था जिस विधी को मुझे प्रणाम करना चाहिए था।"

"ऐसी बातें मेरे भाई विराज का एक अच्छा दोस्त ही कह सकता है।" रितू ने पवन से अलग होकर कहा___"इतने ऊॅचे संस्कार उसके ही दोस्तों में हो सकते हैं। मुझे अपने भाई और उसके ऐसे दोस्तों पर नाज़ है। चलो अब मैं चलती हूॅ भाई। लेकिन एक विनती है तुमसे, विराज से ये मत कहना कि ये सब मैने कहा था तुमसे।"

"अरे मगर क्यों दीदी?" पवन चौंका था__"आप ऐसा क्यों चाहती हैं? अब तो आप उसे अपने गले से लगा लीजिए दीदी। क्यों अपनी बेरुखी और बेदर्दी से उसका दिल दुखाना चाहती हैं? या फिर मैं ये समझूॅ कि आपने वो सब जो कहा था वो सब एक झूठ था?"

"नहीं मेरे भाई।" रितू ने कहा___"मैं तो चाहती हूॅ कि अपने भाई को मैं अपने कलेजे से लगा लूॅ मगर मुझे ये भी पता है कि उसकी जान को खतरा भी है। अगर मेरे डैड को पता चल जाए कि विराज गाॅव आया हुआ है तो सोचो क्या होगा? इस लिए मैं सबसे पहले उसकी सेफ्टी का ख़याल रखूॅगी।"

"ओह दीदी सचमुच।" पवन ने कहा__"ये तो मैं भूल ही गया था। तो आप उसकी सेफ्टी के लिए क्या करेंगी दीदी?"
"वो तुम मुझ पर छोंड़ दो भाई।" रितू ने कहा___"मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी नहीं सकेगा।"

रितू के चेहरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शेरनी की भाॅति ज़लज़ला नज़र आने लगा था उसके चेहरे पर। पवन सिंह एक बार को तो काॅप ही गया था उसे इस रूप में देख कर।

रितू के मन में यही सब फिल्म की तरह चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी हवेली की तरफ दौड़ी जा रही थी। उसे पता था कि उसका बाप विराज को खोजने के लिए अपने आदमियों को लगाया हुआ है। संभव है कि अजय सिंह ने अपने आदमियों को गाॅव हल्दीपुर और शहर गुनगुन में भी फैला रखा हो। रितू के मन में सिर्फ एक ही विचार था कि विराज को किसी भी हालत में अपने बाप और उसके आदमियों की नज़र में नहीं आने देना है। ये उसकी जिम्मेदारी थी कि विराज पर किसी तरह का कोई संकट न आ पाए। क्योंकि वास्तविकता तो यही थी न कि विराज को उसने ही पवन सिंह के द्वारा बुलवाया है।

रितू की जिप्सी हवेली के गेट से अंदर दाखिल होते हुए पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह अंदर की तरफ बढ़ गई।
Reply
11-24-2019, 12:46 PM, (This post was last modified: 11-24-2019, 12:47 PM by sexstories.)
RE: non veg kahani एक नया संसार
वन से फोन पर बात करने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए गहरी सोच में डूब गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पवन ने आख़िर किस वजह से मुझे गाॅव आने के लिए कहा था? पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया था। काफी देर तक इस बारे में सोचने के बाद भी जब मुझे कुछ समझ न आया तो मैने अपने दिमाग़ से इस बात को झटक कर बाइक स्टार्ट की और घर की तरफ चल दिया।

रास्ते में मैं ये सोच रहा था कि गाॅव जाने के लिए माॅ से कैसे अनुमति मिलेगी मुझे? क्योंकि मेरे गाॅव जाने का सुन कर ही उनके होश उड़ जाना है और ये भी निश्चित था कि वो मुझे गाॅव जाने की इजाज़त किसी भी हाल में नहीं देंगी। लेकिन मेरा गाॅव जाना तो अब ज़रूरी हो गया था।

घर पहुॅच कर मैने बाइक को गैराज में लगाया और मुख्य दरवाजे के पास आ गया। डोर बेल पर उॅगली से पुश किया। अंदर बेल की आवाज़ गई। कुछ ही पलों में दरवाजा खुला। मेरी माॅ मेरे सामने दरवाजा खोल कर खड़ी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही उनके गुलाबी होंठो पर मुस्कान फैल गई।

"आ गया मेरा बेटा।" माॅ ने मेरे सिर से लेकर चेहरे तक अपना हाॅथ फेरते हुए कहा__"चल आजा हम सब तेरे आने का ही इन्तज़ार कर रहे थे।"

मैं के साथ चलते हुए ड्राइंग रूम में पहुॅचा। वहाॅ पर रखे सोफों पर जगदीश अंकल और अभय चाचा बैठे हुए थे। निधि शायद अपने कमरे में थी।
"तो कैसा रहा हमारे राज का काॅलेज में पहला दिन?" जगदीश अंकल ने मुस्कुरा कर कहा___"आई होप, बहुत ही बेहतर रहा होगा।"

"आपने सही कहा अंकल।" मैने एक सोफे पर बैठते हुए कहा___"और आपको पता है आज पहले ही दिन मेरी दोस्ती कुछ खास लोगों से हो गई है।"
"ओह ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे।" अंईल ने कहा___"वैसे मैने सुना है कि काॅलेजों में रैगिंग वगैरा होती है। जिसमें सीनियर स्टूडेन्ट्स अपने जूनियर्स को कई तरह से परेशान करते हैं। सो तुम्हें तो किसी सीनियर ने परेशान नहीं किया न?"

"नहीं अंकल ऐसा कुछ नहीं था और थोड़ा बहुत तो चलता है।" मैने कहा।
"वैसे राज क्या नीलम से भी तुम्हारी मुलाक़ात हुई क्या?" अभय चाचा ने पूछा।
"हाॅ चाचा जी।" मैने कहा___"लेकिन बस हमने एक दूसरे को देखा ही है। कोई बात चीत न मैने की उससे और ना ही उसने।"

"तुम्हें वहाॅ पर देख कर हैरान तो बहुत हुई होगी वो।" चाचा ने कहा___"और अब वो ज़रूर फोन करके बड़े भइया को बताएगी कि तुम भी उसी काॅलेज में पढ़ रहे हो। उसके बाद भगवान ही जाने कि क्या होगा?"

"कुछ नहीं होगा भाई साहब।" सहसा जगदीश अंकल ने कहा___"ये मुम्बई है मुम्बई। यहाॅ पर आपके बड़े भाई साहब का राज नहीं चलेगा। यहाॅ अगर उन्होंने राज को छूने की भी कोशिश की तो पल भर में उनको नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

जगदीश अंकल की बात सुन कर अभय चाचा कुछ न बोले। कदाचित वो समझ गए थे कि जगदीश अंकल सच कह रहे थे। आज के वक्त में मैं कोई मामूली इंसान नहीं था। बल्कि मुम्बई शहर के टाॅप धन कुबेरों में मेरा नाम दर्ज़ हो चुका था।

ख़ैर, इन सब बातों के बीच मैं ये सोच रहा था कि गाॅव जाने की बात माॅ से कैसे कहूॅ? मेरे पास वैसे भी ज्यादा समय नहीं रह गया था। मैं अपनी जगह से उठ कर माॅ के पास उनके सोफे पर बैठ गया। मुझे अपने पास बैठते देख माॅ ने प्यार से एक बार फिर मेरे सिर पर हाॅथ फेरा। मेरे चेहरे की तरफ कुछ पल देखने के बाद कहा___"क्या बात है राज? कुछ कहना है क्या तुझे?"

"वो माॅ वो...मुझे न..वो मुझे।" मेरी आवाज़ अटक सी रही थी___"मुझे न आज और इसी समय गाॅव जाना होगा। बहुत ज़रूरी है।"
"क्या?????" माॅ मेरी बात सुन कर उछल ही पड़ी थी, बोली__"ये तू क्या कह रहा है? नहीं हर्गिज़ नहीं। तू गाॅव नहीं जाएगा। तेरे मन में गाॅव जाने का ख़याल आया कैसे?"

मेरी बात से माॅ तो उछली ही थी किन्तु उनके साथ ही साथ जगदीश अंकल और अभय चाचा भी बुरी तरह चौंके थे।
"ये तुम क्या कह रहे हो राज?" जगदीश अंकल ने हैरानी से कहा___"तुम्हें गाॅव किस लिए जाना है? आख़िर ऐसा क्या ज़रूरी काम आ गया?"

"वो पवन का फोन आया था मुझे काॅलेज से आते समय।" मैने कहा___"पवन मेरा बचपन का बहुत ही गहरा दोस्त है। उसी का फोन आया था। उसने मुझे अर्जेटली गाॅव बुलाया है। मैने उससे वजह पूछी मगर उसने बस इयना ही कहा कि तू बस आजा।"

मैने उन सबको पवन से हुई सारी बात बता दी। मेरी बातें सुनने के बाद ड्राइंगरूम में सन्नाटा सा छा गया।
"किसी का भी फोन हो और चाहे जितना भी ज़रूरी हो।" माॅ ने सन्नाटे को चीरते हुए कहा___"तू गाॅव नहीं जाएगा बस। मैं तुझे मौत के मुह में जाने की हर्गिज़ भी इजाज़त नहीं दूॅगी।"

"लेकिन तुम्हारे दोस्त को कोई वजह तो बताना ही चाहिये था राज।" जगदीश अंकल ने कहा___"भला ये क्या बात हुई कि फोन घुमा दिया और कह दिया कि तुम्हें यहाॅ आना है बस?"

"कहीं ऐसा तो नहीं भाई साहब कि राज का दोस्त अजय भइया के हाथ लग गया हो और ये सब बातें उसने उनके ही कहने पर की हों?" अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए कहा___"यकीनन ऐसा हो सकता है। उन्होंने कहीं से पता कर लिया होगा कि गाॅव में राज का कोई दोस्त है जो अक्सर राज से फोन पर बातें करता रहता है। इस लिए उन्होंने उसे पकड़ लिया होगा और डरा धमका कर फोन करवाया होगा।"

"आपकी बातों में यकीनन वजन है भाई साहब।" जगदीश अंकल ने कहा___"यकीनन ऐसा हुआ होगा। उन्होंने राज के दोस्त को मजबूर किया होगा इस सबके लिए।"
"उसने जब मुझसे फोन पर बात की थी तब ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वो किसी के द्वारा मजबूर किया गया है।" मैने कहा___"वो बिलकुल नार्मली ही बातें कर रहा था। हाॅ थोड़ा थोड़ा दुखी और उदास सा ज़रूर समझ में आ रहा था।"

"ये सब बातें छोंड़िये आप लोग।" सहसा माॅ ने कहा___"राज कहीं नहीं जाएगा बस। ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है।"
"लेकिन बहन।" जगदीश अंकल ने कहा___"पता तो चलना ही चाहिए कि बात क्या है? मान लो कि सचमुच कोई ऐसी बात हो जिससे राज का वहाॅ पर जाना बहुत ज़रूरी ही हो तब क्या? ये सब संभावनाएॅ हैं। हमें सच्चाई जानना ज़रूरी है। एक काम करो राज तुम अभी अपने दोस्त को फोन लगाओ और उससे बात करो। हम सब सुनेंगे कि बात क्या है।"

मुझे जगदीश अंकल की बात सही लगी इस लिए मैने फोन निकाल कर तुरंत पवन को फोन लगा कर स्पीकल ऑन कर दिया। कुछ देर फोन की रिंग जाने की आवाज़ आती रही।

"हाॅ भाई चल दिया क्या वहाॅ से?" उधर से पवन का स्वर उभरा।
"यार मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आख़िर ऐसा क्या ज़रूरी काम है जिसकी वजह से तूने मुझे वहाॅ अर्जेंट बुलाया है?" मैने कहा।

"मेरे भाई मैं तुझे फोन पर नहीं बता सकता। तू बस आजा और खुद अपनी ऑखों से देख सुन ले।" उधर से पवन अधीर भाव से कह रहा था___"मुझे पता है भाई कि तेरा यहाॅ पर आना खतरे से खाली नहीं है। मैं खुद भी तुझे किसी ऐसे खतरे में डालने का सोच भी नहीं सकता। लेकिन भाई बात ही ऐसी है कि तुझे बुलाना पड़ रहा है यहाॅ। भाई तुझे हमारी दोस्ती की कसम है, तू आजा भाई। चाहे दो पल के लिए ही आजा लेकन आजा भाई। मैं तेरे हाॅथ जोड़ता हूॅ, तू आजा मेरे यार।"

"अच्छा ये बता कि तू किसी के दबाव में या किसी के द्वारा मजबूर हो कर तो नहीं बुला रहा न मुझे?" मैने बाॅकी सबकी तरफ नज़रें घुमा कर देखते हुए कहा था।
"ये तू क्या कह रहा है राज?" पवन के स्वर में हैरानी थी, बोला___"भाई तू सोच भी कैसे सकता है कि मैं किसी के द्वारा मजबूर होकर तुझे खतरे में डाल दूॅगा? मैं मर जाऊॅगा भाई लेकिन ऐसा कभी नहीं कर सकता।"

"चल ठीक है भाई मैं आने की कोशिश करूॅगा।" मैने कहा।
"कोशिश नहीं भाई।" पवन ने कहा__"तुझे ज़रूर आना है। कल मैं तुझे बस स्टैण्ड पर ही मिलूॅगा। तेरे बड़े पापा के आदमी काफी समय से यहाॅ आस पास नहीं दिखे हैं। शायद उन्हें यकीन हो गया है कि अब तू गाॅव नहीं आएगा। किसी को कानो कान खबर नहीं होगी तेरे आने की। तू फिक्र मत ईर भाई। तू बस आजा।"

"चल ठीक है।" मैने कहा और फोन काट दिया।
"तुम्हारे दोस्त की बातचीत से तो साफ पता चलता है कि वो ये सब किसी के द्वारा मजबूर होकर नहीं बल्कि अपनी स्वेच्छा से कह रहा है।" जगदीश अंकल ने कहा___"लेकिन अब सवाल यही है कि आख़िर किस अर्जेन्ट काम के लिए उसने तुम्हें गाॅव आने के लिए कहा हो सकता है? उसने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। बस यही कहा कि तुम खुद अपनी ऑखों से देख सुन लो। भला ऐसी क्या बात हो सकती है जिसे अपनी ऑखों और कानों से देखने सुनने की बात की उसने?"

"ये तो वहाॅ जाकर ही पता चलेगा अंकल।" मैने कहा___"मेरा ये दोस्त ऐसा है कि मेरे बारे में कभी भी अहित नहीं सोच सकता। यही वो दोस्त है जिसने अब तक मुझे हवेली में रहने वाले लोगों की पल पल की ख़बर दी। चाचा जी जब आप यहाॅ आ रहे थे तब भी इसी ने फोन करके मुझे बताया था कि आप यहाॅ आ रहे हैं। हवेली में कुछ बात हो गई थी जिसकी वजह से हवेली में उस समय तनाव हो गया था।"

"कोई भी वजह हो तू गाॅव नहीं जाएगा मेरे बच्चे।" माॅ की ऑखों में ऑसू आ गए__"मैं तुझे नहीं जाने दूॅगी। तू यहीं मेरी नज़रों के सामने ही रहेगा।"
"आपकी इजाज़त के बिना तो मैं वैसे भी कहीं नहीं जाऊॅगा माॅ।" मैने माॅ की ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___"लेकिन ये तो आपको भी पता है न कि जो खेल शुरू हो चुका है उसको अंजाम तक ले जाना मेरा संकल्प है और फर्ज़ भी। आपका बेटा न पहले कायर और बुजदिल था और ना ही अब है। उन्होंने धोखे से हम पर वार किया था जबकि मैं सामने से उनके सीने पर वार करूॅगा।"

"ऐसा ही होगा राज बेटे।" अभय चाचा ने कहा___"मुझे सारी सच्चाई का भाभी से पता चल चुका है। इस लिए अब इस लड़ाई में मैं भी तुम्हारे साथ हूॅ। बस चिंता एक ही बात की है कि तेरी चाची और तेरे भाई बहन भले ही तेरे मामा जी के यहाॅ हैं लेकिन वो सुरक्षित नहीं हैं वहाॅ। काश! मुझे पता होता तो उन्हें भी अपने साथ ही ले आता यहाॅ।"

"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है भाई साहब।" जगदीश अंकल ने कहा___"करूणा बहन और उसके बच्चों को सुरक्षित यहाॅ बुलाया जा सकता है।"
"वो कैसे भाई साहब?" चाचा जी के माथे पर बल पड़ता चला गया।

"गौरी बहन।" जगदीश अंकल ने माॅ की तरफ देखते हुए कहा___"तुम राज की ज़रा भी फिक्र मत करो। राज यहाॅ से गाॅव ज़रूर जाएगा लेकिन अकेला नहीं। मैं राज के साथ एक ऐसे शख्स को भेजूॅगा जो हर पल राज के साथ उसका सुरक्षा कवच बन कर रहेगा। अभय भाई साहब अपने ससुराल में फोन कर देंगे, और समझा देंगे कि कैसे उन लोगों को वहाॅ से यहाॅ आना है।"

"भइया आप भी??" माॅ ने फिक्रमंदी से कहा___"आप भी इसे भेजने की ही बात कर रहे हैं?"
"मेरी बहन मैने कहा न तुम राज की बिलकुल भी चिंता न करो।" जगदीश अंकल ने कहा___"राज अगर तुम्हारा बेटा है और तुम्हारे प्राण उस पर बसते हैं तो ये समझ लो कि मेरे प्राण भी राज पर ही बसते हैं। मैं राज के ऊपर लेश मात्र का भी खतरा नहीं चाह सकता। मगर मैं ये भी जानता हूॅ कि राज के सामने प्यार और ममता की दीवार खड़ी करके उसे उसके कर्तब्य पथ पर जाने से रोंकना भी उचित नहीं है। खतरा तो इंसान के जीवन का एक हिस्सा है बहन। इंसान का हर दिन एक नया जन्म होता है और हर दिन एक मृत्यु होती है। सुबह की पहली किरण के साथ ही इंसान के नये जीवन की शुरूआत हो जाती है और फिर जब इंसान रात में सो जाता है तो वह एक तरह से मृत समान ही हो जाता है। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि तुम अपने इस भाई पर यकीन रखो। मैं राज पर किसी भी तरह का संकट नहीं आने दूॅगा।"

जगदीश अंकल की बात सुन कर माॅ कुछ न बोली। बस ऑखों में नीर भरे देखती रही उन्हें।
"राज तुम जाने की तैयारी करो।" जगदीश अंकल ने कहा___"तब तक मैं भी उस शख्स को फोन कर के बुला लेता हूॅ और तुम दोनो के लिए ट्रेन की टिकट का भी इंतजाम कर देता हूॅ।"

जगदीश अंकल की बात सुन कर मैने माॅ की तरफ देखा। माॅ ने अपने सिर को हल्का सा हिला कर मुझे जाने की इजाज़त दे दी। मैं तुरंत ही उठ कर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। लगभग पन्द्रह मिनट बाद मैं तैयार होकर तथा एक छोटे से पिट्ठू बैग में कुछ कपड़े व कुछ ज़रूरी चीज़ें डाल कर कमरे से बाहर आ गया।

कमरे से बाहर आकर मुझे निधि का ख़याल आया। मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ गया। दरवाजे को बाहर से नाॅक कर उसे आवाज़ दी मगर अंदर से कोई प्रतिक्रिया न हुई। मैंने दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला तो वो खुलता चला गया। कमरे के अंदर दाखिल होकर मैने देखा कि निधि बेड पर करवॅट लिए सो रही थी। सोते हुए वो बिलकुल मासूम सी बच्ची लग रही थी। मुझे उस पर बड़ा प्यार आया। मैने झुक कर उसके माथे पर हल्के से चूॅमा और फिर झुके हुए ही कहा___"अपना ख़याल रखना गुड़िया। मैं गाॅव जा रहा हूॅ अभी। जल्द ही वापस आऊॅगा।"

इतना कह कर मैंने एक बार फिर से उसके माथे को चूमा फिर पलट कर कमरे से बाहर आ गया। इस बात से अंजान कि मेरे बाहर आते ही निधि ने अपनी ऑखें खोल दी थी। उन समंदर सी गहरी ऑखों में ऑसू तैर रहे थे।

ड्राइंगरूम में जब मैं पहुॅचा तो देखा एक अंजान ब्यक्ति एक तरफ सोफे पर बैठा था। दिखने में हट्टा कट्टा था। ऊम्र यही कोई तीस या पैंतीस के बीच रही होगी उसकी। चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता विद्यमान थी। जबड़े कसे हुए लग रहे थे।

"राज बेटा इनसे मिलो।" मुझे देखते ही जगदीश अंकल ने उस ब्यक्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा___"ये हैं आदित्य चोपड़ा। ये काफी अच्छे मार्शल आर्टिस्ट हैं। ये सबको सिक्योरिटी प्रोवाइड करते हैं। मैने इन्हें सबकुछ समझा दिया है। अब से ये हर पल तुम्हारे साथ तुम्हारा साया बन कर रहेंगे।"

"ओह हैलो।" मैने कहने के साथ ही उसकी तरफ हैण्ड शेक करने के लिए हाथ बढ़ाया। उसने भी हैलो करते हुए मुझसे हाथ मिलाया। उसके हाॅथ मिलाने से ही मुझे महसूस हो गया कि ये बंदा काफी ठोस व मजबूत है।

ख़ैर सबसे आशीर्वाद लेकर मैं बाहर की तरफ चल दिया। मेरे साथ ही बाॅकी सब भी बाहर आ गए। कार की तरफ जाने से पहले माॅ ने मुझे अपने सीने से लगा कर प्यार दिया। आदित्य ने कार की ड्राइविंग शीट सम्हाली। जबकि मैं और जगदीश अंकल कार की पिछली शीट पर बैठ गए। उसके बाद कार रेलवे स्टेशन की तरफ तेज़ी से बढ़ चली। जगदीश अंकल मेरे साथ इस लिए थे ताकि वापसी में वो स्टेशन से कार वापस ला सकें।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैने जगदीश अंकल को वापस घर जाने का कह दिया। उन्होंने मुझे कुछ हिदायतें दी और शुभकामनाएॅ भी। उनके जाने के बाद मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। प्लेटफार्म में जब हम पहुॅचे तो ट्रेन जाने ही वाली थी। इस लिए हम दोनो एसी फर्स्ट क्लास की तरफ दौड़ चले। कुछ ही देर में हम दोनो अपनी अपनी शीटों पर आ गए थे।
_____________________________

काॅलेज में हुई घटना से नीलम मानसिक रूप से काफी दुखी हो गई थी और जिस तरह से विराज ने वहाॅ पर आकर उसकी इज्ज़त को तार तार होने से बचाया था वो उसके लिए निहायत ही अविश्वसनीय था। उसने तो कल्पना भी न की थी कि उसके चाचा का लड़का यानी कि उसका भाई जो उमर में उससे मात्र दस दिन बड़ा था वो यहाॅ पर आएगा और इस तरह से उसकी इज्ज़त को मिट्टी में मिल जाने से बचाएगा।

उसने तो माॅम डैड के मुख से अक्सर यही सुना था कि विराज मुम्बई में किसी होटेल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर मुम्बई के इतने बड़े काॅलेज में जहाॅ पर एडमीशन लेने के लिए हाई पर्शेन्टेज मार्क्स का होना और अच्छे खासे पैसे का होना अनिवार्य था उस काॅलेज में विराज को एक स्टूडेंट के रूप में देख कर नीलम के आश्चर्य की कोई सीमा न रही थी।

विराज को अपने इस काॅलेज में देख कर नीलम को ये तो समझ में आ गया था कि उसके माॅम डैड विराज के बारे में जो सोच और विचार रखे हुए हैं वो सिरे से ही ग़लत है। आज काॅलेज में हुई घटना के बाद नीलम जैसे पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी। उसने देखा था कि कैसे विराज ने उन लड़कों को दो मिनट में धूल चटाया था उसके बाद उसने उसका दुपट्टा उसे लौटाया था। किन्तु जब उसने देखा कि जिसे वह दुपट्टा दे रहा था वो उसी की चचेरी बहन थी तो उसने तुरंत उससे मुह फेर लिया था और उसके पास से चला गया था।

नीलम को तो काफी देर तक कुछ समझ न आया था कि वह क्या करे? वो तो बुत बन गई थी। अपने भाई के सामने उसकी स्थित दो कौड़ी की न रह गई थी। उस भाई के सामने जिसे उसके माॅम डैड दो कौड़ी का भी नहीं समझते थे और वो खुद भी कभी उसे अपने भाई का दर्जा नहीं देती थी।

काफी देर बाद जब नीलम की तंद्रा टूटी तो वह बदहवास सी होकर कंटीन की तरफ खिंची चली गई थी। मगर कंटीन में जो नज़ारा उसे देखने को मिला उसने उसे और भी ज्यादा हैरान कर दिया। जिस विराज को वो आज तक एक सीधा सादा और दो कौड़ी का भी नहीं समझती थी वो आज इतना खतरनाक दिख रहा था कि आशू राना के हट्टे कट्टे भाई को अधमरा कर दिया था। उसकी ऑखों के सामने उसने भूषण को पहले तो अधमरा किया और फिर उसे खुद ही आशू के साथ हास्पिटल भी ले गया।

काॅलेज में पहले दिन ही इस तरह की घटना से सनसनी सी फैल गई थी। वो खुद भी मानसिक रूप से ब्यथित थी इस लिए वह काॅलेज से सीधा अपनी बड़ी मौसी पूनम के घर चली गई थी। इस वक्त वह अपने कमरे में बेड पर पड़ी हुई थी। उसकी ऑखें ऊपर छत पर घूम रहे पंखे को अपलक देखे जा रही थी।

नीलम की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र आ रहा था। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि वो विराज ही था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने खुली ऑखों से कोई ख्वाब देखा था। मगर हकीक़त उसे अच्छी तरह पता थी। काॅलेज से जल्दी आ जाने पर उसकी मौसी ने पूछा था कि इतना जल्दी काॅलेज से कैसे आ गई वह? मगर उसने गोल मोल जवाब दे दिया था और सीधा अपने कमरे में बेड पर लेट गई थी।

वह विराज से नफ़रत तो नहीं करती थी किन्तु हाॅ उसे वह अपना भाई भी नहीं मानती थी और ना ही उसकी नज़र में उसकी कोई अहमियत थी। उसके माॅम डैड बचपन से ही ये हिदायत देते थे कि विराज, निधि और उसके माॅ बाप अच्छे लोग नहीं हैं। इनसे न कभी बात करना और ना ही कभी इनके पास जाना। ये हमारे कुछ नहीं लगते हैं। बचपन से एक ही पाठ पढ़ाया गया था इन्हें। समय के साथ साथ उसी तरह की सोच भी बन गई थी इनकी। हालात ऐसे बनाए गए थे कि इन लोगों ने कभी ये सोचा ही नहीं कि हम जिनके बारे में ऐसी धारणा बनाए बैठे हैं वो वास्तव में वैसे हैं भी या नहीं? समय गुज़रा और फिर वो सब हादसे हुए जिनसे इनकी सोच में और भी ज्यादा वो सब बातें बैठ गईं।

मगर आज के हादसे ने नीलम के अस्तित्व को हिला कर रख दिया था। उसे उस सोच और धारणा के महासागर से बाहर निकाल दिया जिस महासागर में आज तक वो डूबी हुई गोते लगा रही थी। कहते हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय बदलता रहता है और बदलते हुए समय के साथ ही साथ इंसान की सोच भी बदलती रहती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक ही बात को गाॅठ बाॅध कर जीवन भर ढोते रहते हैं। उन्हें किसी की बात सही नहीं लगती। वो हमेशा अपनी ही सोच को यथार्थ और हकीक़त मान कर जीते हैं। उन्हें अपनी सोच और धारणा के ग़लत होने का तब पता चलता है जब वक्त खुद उन्हें आईना दिखाता है या एहसास कराता है।

नीलम के पास आज वही वक्त आईना दिखाने आया था और आईना दिखा कर उसने उसे एहसास करा दिया था कि अब तक वो कितना ग़लत थी जो अपने माता पिता के द्वारा मिली सीख और निर्देशों पर चल रही थी। वक्त ने आकर उसे आईना दिखाया, एहसास कराया और उससे एक सवाल भी कर गया कि 'अगर ये इतना ही बुरा होता तो आज किसी काॅलेज में किसी लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए इतनी भीड़ में से अकेला नहीं आता। ये तो उसे बाद में पता चला कि वो लड़की कोई और नहीं बल्कि उसकी बहन ही थी। अपनी जान को खतरे में डाल कर आज के युग में कौन किसी के लिए ऐसा करता है? ये तो वही कर सकता है जो सच्चा होता है और जो किसी बेकसूर व मजलूम पर अत्याचार होते नहीं देख सकता। बल्कि अत्याचार करने वाले से भिड़ जाता है फिर चाहे भले ही खुद उसकी जान ही क्यों न चली जाए।

नीलम की ऑखों के सामने बचपन से लेकर अब तक की सारी यादें किसी फिल्म की तरह चलने लगी। उसे याद आया कि एक बार हवेली में उससे एक कीमती मूर्ति गिर कर टूट गई थी, उस वक्त नीलम और शिवा ही थे। आवाज़ सुन कर विराज भी आ गया था। वो मूर्ति के टुकड़ों को पास से जाकर देखने लगा था। उसी वक्त विजय चाचा और नैना बुआ भी आ गई थी। विजय चाचा ने मूर्ति को टूट कर बिखरी हुई देख कर पूछा था कि ये किसने तोड़ा तो शिवा जो कि छोटा ही था उस वक्त उसने भोलेपन में डर की वजह से तुरंत नीलम की तरफ उॅगली कर दिया था। मगर तभी विराज ने कहा था कि उससे ही गिर कर टूट गई थी वो मूर्ति। उसकी बात सुनकर विजय चाचा ने विराज की काफी ज्यादा पिटाई कर दी थी। विराज पिटता रहा मगर मुख से ये न बताया था कि मूर्ति असल में नीलम से टूटी थी।

ज़ोरदार पिटाई के चलते विराज की हालत ख़राब हो गई थी, जबकि वो और उसके भाई बहन उसके पिट जाने पर बहुत खुश थे। एक बार अजय सिंह की जेब से शिवा ने पैसे चुरा लिए थे और चुराकर शिवा ने कमरे में सो रहे विराज की शर्ट की जेब में वो पैसा डाल दिया था। ये सब सिर्फ इस लिए मिली भगत द्वारा किया गया था ताकि विराज की फिर से पिटाई हो और वही हुआ भी। शिवा नीलम को लेकर अपने बाप के पास गया और उससे बोला कि डैड विराज ने आपकी जेब से पैसा चुराया है जिसे उसने अपनी ऑखों से देखा है। बस फिर क्या था अजय सिंह को तो बहाना चाहिए होता था विजय सिंह और उसके बच्चों को उल्टा सीधा बोलने के लिए। तलाशी में वो पैसा विराज की शर्ट की जेब में मिल ही गया। उसके बाद विजय सिंह ने सोते हुए विराज की पिटाई शुरू कर दी। बेचारे को समझ ही न आया था कि वो किस बात पर मार खा रहा था। जबकि उसकी पिटाई से नीलम शिवा और रितू ये तीनों बड़ा खुश हो रहे थे।

ऐसी बहुत सी बातें थी जो इस वक्त नीलम की ऑखों के सामने घूम रही थी। विराज में एक खासियत ये थी कि वो अपनी सफाई में कभी कुछ नहीं बोलता था। मार खाने के बाद और इतना ज्यादा जलील होने के बाद भी वह इन लोगों के साथ खेलने के लिए आ जाता था। ये अलग बात थी कि ये लोग उसे दुत्कार कर भगा देते थे।

नीलम को पता ही नहीं चला कि कब उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। पता तो तब चला जब वो ऑसू दोनो ऑखों की कोरों से बहते हुए कानों गिरे। एक हूक सी उठी दिलो दिमाग़ में उसके। मनो मस्तिष्क झनझना कर रह गया। भावनाओ और जज़्बातों का एकाएक ही तीब्र तूफान उठ खड़ा हुआ। हृदय का जब परिवर्तन होता है तो एक नये युग का प्रारंभ हो जाता है। परिवर्तन अगर नफ़रत के लिए होता है तो बहुत जल्द एक बड़े अनिष्ट की नियति बन जाती है और अगर प्रेम के लिए होता है तो एक नया संसार बनने लगता है।

"मुझे माफ़ कर दे भाई।" भावना या जज़्बात जब प्रबल हो जाते हैं तो कोई धैर्य कोई संयम नहीं हो सकता। बल्कि हर दरो दीवार को तोड़ते हुए हृदय में ताण्डव करते हुए जज़्बात ऑखों के रास्ते से ऑसू बन कर बहने लग जाते हैं_____"माफ़ कर दे मुझे। कितना ग़लत सोचती थी आज तक मैं तेरे बारे में। मगर तू तो पहले भी हीरा था भाई और आज भी हीरा है। बचपन से लेकर आज तक हमेशा तुझे जलील किया अपमानित किया और न जाने कैसे कैसे इल्ज़ाम लगा कर तुझे तेरे ही पिता जी से पिटवाया। कोई इतना बुरा कैसे हो सकता है भाई? और तू इतना अच्छा कैसे हो सकता है? आज जिस तरह से तूने मुझे अनदेखा कर के अजनबीपन दिखाया उसने मुझे समझा दिया है भाई कि मेरी औकात तेरे सामने कुछ भी नहीं है।"

नीलम खुद से ही बड़बड़ाये जा रही थी और ऑसू बहाए जा रही थी। अभी वह रो ही रही थी कि सहसा किसी ने उसके कंधे पर हाॅथ रखा। वह बुरी तरह उछल पड़ी। पलट कर देखा तो बगल से ही उसकी मौसी की दूसरी बेटी सोनम उसकी तरफ झुकी हुई खड़ी थी।

दोस्तो यहाॅ पर मैं नीलम की मौसी और उसके परिवार का संक्षिप्त परिचय देना चाहूॅगा,,,,,,,,,

●पूनम सिंह, ये नीलम की माॅ यानी प्रतिमा की बड़ी बहन है। इस नाते ये नीलम की मौसी लगती है। ऊम्र पचास के आसपास। प्रतिमा की तरह ही दिखने में बेहद सुंदर है।

●महेश सिंह, ये नीलम के मौसा और पूनम के पति हैं। ऊम्र पचपन के आसपास। पेशे से डाॅक्टर हैं।

● अंजली सिंह, ये नीलम की मौसी की बड़ी बेटी है। ऊम्र पच्चीस के आसपास। दिखने में बहुत ही खूबसूरत है। पेशे से ये भी डाॅक्टर है। अभी शादी नहीं हुई है इसकी।

●सोनम सिंह, ये नीलम के मौसी की दूसरी बेटी है। ऊम्र बाईस साल है। अपनी बहन की ही तरह खूबसूरत है। ये काॅलेज में साइंस से एम एस सी कर रही है।

● विकास सिंह, ये नीलम की मौसी का इकलौता व सबसे छोटा बेटा है। ऊम्र उन्नीस के आसपास। अपने बाप महेश की तरह ही ये भी डाॅक्टर बनना चाहता है।

दोस्तो ये था नीलम की मौसी का संक्षिप्त परिचय। अब कहानी की तरफ चलते हैं,,,,,,,

"दीदी आप।" सोनम पर नज़र पड़ते ही नीलम लगभग हड़बड़ा गई थी।
"हूॅ तो मैं ही।" सोनम ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तू चाहे तो कुछ और भी समझ सकती है। ख़ैर, ये बता कि कौन है वो?"

"क क्या मतलब??" नीलम बुरी तरह चौंकी थी।
"मतलब कि वो कौन है जिसकी याद में तू ऑसू बहा रही है?" सोनम कहने के साथ ही बेड पर बैठ गई____"तू मुझे बता सकती है नीलम। मैं तेरी बड़ी बहन से कहीं ज्यादा तेरी दोस्त की तरह हूॅ। अब चल बता कि कौन है वो जिसने मेरी प्यारी सी दोस्त की ऑखों को रुलाया है?"

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी।" नीलम ने कहा__"ये ऑसू तो पश्चाताप के हैं। आज तक जिसे अजनबी समझकर उसे जलील और दुत्कारती रही थी उसी ने आज मेरी इज्ज़त बचाई दीदी।"

"क्या???" सोनम उछल पड़ी___"ये तू क्या कह रही है नीलम? क्या हुआ था आज काॅलेज में तेरे साथ? सच सच बता मुझे।"

नीलम ने उसे सब कुछ बता दिया कि कैसे आशू राना नाम का लड़का अपने कुछ दोस्तों के साथ उसकी रैगिंग कर रहा था। उसने उसे कहा था कि वो उसके साथ साथ उसके दोस्तों के होठों को भी चूमे। उसकी इस बात पर उसने आशू राना को थप्पड़ मार दिया था। जिससे आशू राना ने सबके सामने उसकी इज्ज़त लूटने की कोशिश की। तभी उस भीड़ से निकल कर कोई आया और उसने आशू राना के साथ साथ उसके सभी दोस्तों की खूब पिटाई कर उसकी इज्ज़त को लटने से बचाया था। नीलम ने सारी बात सोनम को बता दी। नीलम की सारी बातें सुनकर सोनम हैरान रह गई थी।

"तो वो लड़का तेरा चचेरा भाई है?" सोनम ने कहा___"जिसे आज तक तू भाई नहीं मानती थी। बात कुछ समझ में नहीं आई नीलम। भला ऐसा तू कैसे कर सकती है?"
"वही तो दीदी।" नीलम की ऑखें छलक पड़ीं___"अपने फरिश्ता जैसे भाई के साथ मैने आज तक वो सब कैसे किया? आज की उस घटना ने मुझे एहसास करा दिया दीदी कि कितनी बुरी हूॅ मैं। जिसकी ऑखों में अपने लिए हमेशा प्यार और सम्मान देखा था आज उसी ऑखों में अपने लिए हिकारत के भाव देखा है मैने। वो ऐसे मुह फेर कर चला गया था जैसे उससे मेरा कोई दूर दूर नाता नहीं है। उस वक्त मुझे पहली बार लगा दीदी कि मैं उसकी नज़र में क्या रह गई हूॅ। सच ही तो है, आख़िर उसकी नज़र में मेरी कोई औकात हो भी कैसे सकती है? मैने और मेरे माॅ बाप ने हमेशा उसे और उसके माॅ बाप को तुच्छ समझा था।"

"ये तू क्या कह रही है नीलम?" सोनम बुरी तरह हैरान थी, बोली___"ये तू कैसी बातें कर रही है? आख़िर बात क्या है?"
"सारी बातें तो मुझे भी नहीं पता दीदी लेकिन इतना समझ गई हूॅ कि बचपन से मेरे माॅम डैड ने जिनके बारे में ऐसा करने की सीख दी थी वो ग़लत था।" नीलम ने कहा___"किसी के बारे में खुद भी तो जाॅचा परखा जाता है न? ऐसा तो नहीं होना चाहिए न कि हमें किसी ने जो कुछ बता दिया उसे ही सच मान लें और फिर सारी ऊम्र उसी को लिए बैठे रहें। कीचड़ अगर इतना ही गंदा होता तो उसमें कमल जैसा फूल कभी नहीं खिलता। गंदगी तो वहाॅ भी होती है दीदी जिस जगह को लोग पाक़ समझते हैं।"

"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा नीलम कि तू ये सब क्या कहे जा रही है?" सोनम ने उलझनपूर्ण भाव से कहा था।
"बताऊॅगी दीदी।" नीलम ने कहा___"सब कुछ बताऊॅगी आपको। लेकिन इस वक्त नहीं। इस वक्त मुझे अकेला छोंड़ दीजिए। मुझे अकेला छोंड़ दीजिए दीदी।"

कहने के साथ ही नीलम फूट फूट कर रोने लगी थी। सोनम ने उसे खींच कर अपने से छुपका लिया था।
___________________________

उथर हवेली में।
रितू जब हवेली पहुॅची तो शाम हो चुकी थी। अजय सिंह हवेली में नहीं था बल्कि फैक्टरी में था। फैक्टरी का काम लगभग पूरा ही हो गया था। बस कुछ ही दिनों में फैक्टरी चालू हो जानी थी। रितू अंदर आते ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। किचेन में प्रतिमा और नैना डिनर तैयार कर रही थी।

कमरे में पहुॅच कर रितू ने अपने कपड़े बदले और फिर बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बीस मिनट बाद जब वह बाथरूम से बाहर आई तो उसकी नज़र बेड पर पड़े आई फोन पर पड़ी। आई फोन पर किसी का काॅल आ रहा था। फोन साइलेन्ट मोड पर था।

रितू टाॅवेल को अपने संगमरमरी बदन पर लपेट कर तेज़ी से बेड के पास पहुॅची और फोन को उठा कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहा नंबर को देखा। नंबर को देख कर उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभ आई।

"हैलो।" फिर उसने काॅल रिसीव करते ही कहा।
".............. ।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्या सच कह रहे हो तुम?" रितू के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए थे।
".............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"ठीक है भाई।" रितू ने धीमे स्वर में कहा___"तुम उसे रिसीव कर लेना और अपने साथ ही पहले घर ले जाना। उसके बाद मैं तुम्हें फोन करूॅगी और बताऊॅगी कि अब तुम उसे अपने साथ वहाॅ पर ले आओ।"

"..............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"डोन्ट वरी भाई।" रितू ने कहा___"मैं सब देख लूॅगी। चलो अब रखती हूॅ फोन।"
रितू ने कहा और फोन कट कर दिया। फिर मन ही मन कहा___"आजा मेरे भाई। तेरी विधी तुझे बस एक बार देखने के लिए ही ज़िदा है। अपने आपको सम्हालना मेरे भाई। मैं जानती हूॅ कि वो लम्हाॅ तेरे लिए बेहद दर्दनाक होगा। मगर खुद को सम्हालना भाई। काश! ये सब न हुआ होता। हे भगवान ये तूने मेरे भाई के साथ क्या कर दिया है। कितना दुख दर्द देगा तू उसे? नहीं नहीं, मैं अपने भाई को कोई दुख दर्द सहने नहीं दूॅगी। उसको अपने सीने से लगा कर खूब प्यार दूॅगी मैं। अब तक तो मैने उसे नफ़रत ही दी थी लेकिन अब बेइंतेहां प्यार दूॅगी उसे। हाॅ हाॅ खूब प्यार दूॅगी उसे।"

ऑखों से छलक आए ऑसुओं को पोंछा रितू ने और फिर आलमारी की तरफ बढ़ गई। आलमारी से रात में पहनने वाले कपड़े निकाल कर उसने उन्हें पहना और फिर कमरे से बाहर आ गई।

रात में सबने एक साथ डिनर किया। रितू ने देखा कि उसका भाई शिवा भी आ गया था। वह उससे बड़े प्यार व चापलूसी के से अंदाज़ में मिला था। रितू को उसे और उसके इस अंदाज़ पर आज पहली बार नफ़रत सी हुई थी। हलाॅकि वो जैसा भी था उसका सगा भाई ही था। अजय सिंह भी फैक्ट्री से आ गया था। सबने डिनर किया और इसी बीच थोड़ी बहुत बातें भी हुईं। उसके बाद सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए।

[size=large]उस वक्त रात के बारह बजे के आस पास का वक्त था। हवेली में हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। हवेली के अंदर अॅधेरा तो था मगर पूरी तरह नहीं क्योंकि खिड़कियों से चाॅद की रोशनी और अंदर लगे नाइट बल्ब की धीमी रोशनी थी। विराज
Reply
11-24-2019, 12:46 PM, (This post was last modified: 11-24-2019, 12:47 PM by sexstories.)
RE: non veg kahani एक नया संसार
पार्टीशन की दीवार पर लगे दरवाजे को इस तरह खुला देख कर रितू के पुलिसिया मन में सवाल उभरा कि आज ये दरवाजा इस वक्त खुला क्यों है? आम तौर पर वह बंद ही रहता था। उस तरफ का हिस्सा विजय चाचा का था। पुलिसिया दिमाग़ में जब कोई सवाल उभरता है तो वह उस सवाल का जवाब तुरंत ही खोजने लग जाता है।

रिते सीढ़ियों की तरफ से पलट कर पार्टीशन के उस खुले हुए दरवाजे की तरफ बढ़ चली। कुछ ही पल में वह दरवाजे के पास पहुॅच गई। कुछ पल दरवाजे के पास खड़े होकर उसने उस जगह का मुआयना किया फिर अपना हाॅथ बढ़ा कर उसने दरवाजे का दाहिने साइड वाला पल्ला पकड़ कर आगे की तरफ पुश किया। दरवाजे का वो पल्ला बेआवाज़ खुलता चला गया। अब एक पल्ले में ही इतना स्पेस बन गया था कि एक आदमी आराम से इधर से उस तरफ जा सकता था। रितू ने वही किया। वो उस स्पेस से उस तरफ दाखिल हो गई।

उस तरफ जाकर उसने बारीकी से हर तरफ का मुआयना किया और फिर आगे की तरफ बढ़ गई। मेरे पाठकों को पता है कि ये हवेली किस तरह बनाई गई थी। दो मंजिला इमारत के अलग अलग तीन हिस्सों को आपस में जोड़ दिया गया था। तीनों हिस्सों में एक जैसा ही डिजाइन था।

आगे बढ़ते हुए रितू ड्राइंगरूम की तरफ आ गई। यहाॅ पर भी नाइट बल्ब का प्रकाश था। यहाॅ पर भी सन्नाटा फैला हुआ था। ड्राइंगरूम में आकर रितू खड़ी हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था यहाॅ पर कौन आया होगा इस वक्त और किस लिए? जबकि इस तरफ आने का कोई सवाल ही नहीं था। ड्राइंगरूम के उस तरफ ऊपर जाने के लिए वैसी ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जैसी इस तरफ बनी हुई थी। ड्राइंगरूम के के पीछे साइड एक तरफ किचेन था और एक साइड की तरफ वो कमरा था जिसमें दादा दादी रहते थे। रितू की निगाह जब किचेन से होते हुए जब दूसरी साइड दादा दादी के कमरे की तरफ गई तो वह चौंक गई।

दादा दादी के कमरे में इस वक्त बल्ब की पर्याप्त रोशनी हो रखी थी जोकि ऊपर छत के पास ही बने रोशनदान से समझ में आ रही थी। कमरे के दरवाजा बंद था। रितू ये देख कर हैरान थी कि इतनी रात को वहाॅ उस कमरे के अंदर कौन हो सकता है? जबकि उसे जहाॅ तक पता था इस तरफ के हिस्से पर कोई नहीं आता था। विजय सिंह के बीवी बच्चों को हवेली से निकालने के बाद ये हिस्सा पूरी तरह बंद ही रहता था। फिर आज इस वक्त यहाॅ पर कौन हो सकता है? ये सवाल ऐसा था जो रितू के मस्तिष्क में कत्थक सा करने लगा था।

अपने मन उठे इस सवाल और खुद की उत्सुकता को मिटाने के लिए रितू उस कमरे की तरफ बहुत ही संतुलित कदमों से बढ़ गई। कुछ ही पलों में वह उस कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच गई। उसका दिल अनायास ही ज़ोरों से धड़कने लगा था। तभी उसके कानों में कमरे के अंदर मौजूद ब्यक्ति की आवाज़ पड़ी। उस आवाज़ को सुन कर रितू बुरी तरह चौंकी। ये आवाज़ उसकी अपनी माॅ प्रतिमा की थी। रितू ने दरवाजे से अपने कान लगा दिये।

"आहहहहह ऐसे ही मेरे बेटे।" अंदर से प्रतिमा की मादकता से भरी हुई आवाज़ उभरी____"ऐसे ही आहहहह हचक हचक के चोद मुझे। आज बहुत दिनों बाद दो दो लंड का मज़ा मिला है मुझे। ओहे भड़वे हरामी साले नीचे से पेल न मेरी गाॅड में अपना लौड़ा। आहहहहह हाय बड़ा मज़ा आ रहा है रे।"

"ये लो माॅम आज डैड के साथ साथ अपने इस बेटे का भी लंड लो अपनी चूत में।" शिवा की आवाज़ आई___"आज मेरी वर्षों की वो ख्वाहिश पूरी हो रही है। थैंक्स डैड जो आपने मुझे शहर से बुला लिया और आज मुझे अपनी माॅम को चोदने का सौभाग्य दिया।"

"थैंक्स की कोई बात नहीं है बेटे।" अजय सिंह की आवाज़ उभरी___"ये तो तेरे माॅम की ही इच्छा थी कि तू भी इसे रगड़ कर चोदे।"
"अब बातें मत करो तुम दोनो।" प्रतिमा की आवाज़ आई___"मुझे रगड़ रगड़ कर चोदना शुरू करो वरना तुम दोनो के लंड को काट कर फैंक दूॅगी।"

"ओके माॅम।" शिवा ने कहा___"तो फिर ये लो।"
"आहहहहहह शशशशशश हाय ऐसे ही चोदो मुझे।" प्रतिमा की आहें और सिसकारियाॅ गूजने लगी अंदर___"पूरी रात मुझे आगे पीछे से चोदो। फाड़ कर रख दो मेरी चूत और गाॅड को। हाय रे कितना मज़ा आ रहा है। काश! एक और लंड होता तो उसे अपने मुह में भर लेती मैं।"

दरवाजे पर कान लगाए खड़ी रितू के पैरों तले दूर दूर तक ज़मीन का नामो निशान न था। दिलो दिमाग़ में जैसे सारा आसमान भर भरा कर गिर पड़ा था। मनो मस्तिष्क सुन्न सा पड़ता चला गया। उसे लगा कि उसके पैरों में कोई जान ही न बची हो। उसे चक्कर सा आने लगा था। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला। ऑखों ने ऑसुओं की बाढ़ सी कर दी। कमरे के अंदर इतना बड़ा पाप हो रहा था। एक माॅ अपने ही बेटे से नाजायज संबंध बना रही थी वो भी अपने पति की सहमति से। रितू को यकीन नहीं हो रहा था कि ये उसके माॅ बाप और भाई थे।

अंदर से आती मादक सिसकारियों की आवाज़ें उसके कानों को छलनी करती जा रही थीं। हवस और वासना का इतना भयावह चेहरा उसने आज अपने ही पैदा करने वालों के द्वारा देखा था। सहसा उसके मन में ये विचार उठा कि नहीं नहीं ये मेरे माॅम डैड और भाई नहीं हो सकते बल्कि ये कोई और ही हैं। कोई छलावा है या फिर कोई ख्वाब है।

पल भर में पगलाई सी रितू ने अपने हाथ से बहुत ही धीमे और संतुलित अंदाज़ से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला। दरवाजा बेआवाज़ कुलता चला गया। दरवाजे पर बस थोड़ी सी ही झिरी बनाकर रितू ने अंदर की तरफ देखा। मगर उस झिरी में उसे कुछ नज़र न आया बल्कि ये ज़रूर हुआ कि अंदर से आती हुई आवाजें ज़रा तेज़ हो गई थी।

रितू ने दरवाजे को थोड़ा और अंदर की तरफ धकेला। अपने सिर को दरवाजे के अंदर की तरफ ले जाकर उसने अंदर आवाज़ की दिशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। आश्चर्य और अविश्वास से उसकी ऑखें फटी की फटी रह गई थी। अंदर बेड पर उसके माॅम डैड व भाई पूरी तरह नंगी हालत में थे। सबसे नीचे उसके डैड थे फिर उसकी माॅम उनके ऊपर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसकी दोनो टाॅगें शिवा के दोनो हाॅथों के सहारे ऊपर उठी हुई थी। शिवा उसके ऊपर था जो कि माॅम की दोनो टाॅगों को पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। नीचे से उसके डैड अपने दोनो हाथों से प्रतिमा की कमर को थामे धक्का लगे रहे थे। ये हैरतअंगेज नज़ारा देख कर रितू पत्थर बन गई थी। होश तब आया जब उसकी माॅम की ज़ोरदार आह की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। रितू ने तुरंत ही अपना सिर अंदर से बाहर कर लिया। दरवाजे को उसी तरह बंद कर वह पलटी और ऑसुओं से तर चेहरा लिए वह दरवाजे से हट गई।

कुछ ही देर में वह अपने कमरे मे पहुॅच गई। वह यहाॅ तक कैसे आई थी ये वही जानती थी। उसके पैर इतने भारी हो गए थे कि उससे उठाए नहीं जा रहे थे। बेड पर औंधे मुह गिर कर वह ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। उसे लग रहा था कि वो क्या कर डाले। उसके दिलो दिमाग़ में अपने माता पिता और भाई के लिए नफ़रत व घृणा भर गई थी। वह एक बहादुर लड़की थी। उसने अपने आपको सम्हाला और तुरंत बेड से उठ बैठी। चेहरा पत्थर की तरह कठोर हो गया उसका। बेड से उतर कर वह आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी खोल कर उसने अपना सर्विस रिवाल्वर निकाला। लाॅक खोल कर उसने चैम्बर को देखा तो खाली था। उसने तुरंत ही अंदर लाॅकर से गोलियाॅ निकाली और उसमें पूरी छहो गोलियाॅ भर दी। उसके बाद वह चेहरे पर ज़लज़ला लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी ही थी कि किसी की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी।

आवाज़ की दिशा में रितू ने पलट कर देखा तो बगल से दीवार से सट कर रखे ड्रेसिंग टेबल के आदमकद आईने में खुद को एक अलग ही रूप में खड़े पाया। ये देख कर रितू के चेहरे पर हैरत व अविश्वास के मिले जुले भाव उभरे। आदमकद आईने में रितू का अक्श एक अलग ही रूप और अंदाज़ में खड़ा था।

"ये तुम क्या करने जा रही हो रितू?" आदम कद आईने में दिख रहे रितू के अक्श ने रितू से कहा___"क्या तुम इस रिवाल्वर से अपने माॅ बाप और भाई का खून करने जा रही हो?"
"हाॅ हाॅ मैं उन हवस के पुजारियों का खून करने ही जा रही हूॅ।" रितू के मुख से मानो दहकते अंगारे निकले___"ऐसे नीच और घृणित कर्म करने वालों को जीने का कोई अधिकार नहीं है। आज मैं उन सबको अपने हाॅथों से मौत के घाट उतारूॅगी। मगर तुम कौन हो? और मुझे रोंका क्यों?"

"मैं तुम्हारा अक्श हूॅ। मुझे तुम अपना ज़मीर भी समझ सकती हो। और हाॅ, मौत के घाट उतरना तो अब उन सबकी नियति बन चुकी है रितू।" अक्श ने कहा___"मगर ये नेक काम तुम्हारे हाॅथों नहीं होगा।"
"क्यों नहीं होगा?" रितू गुर्राई___"मैं अभी जाकर उन तीनों को गोलियों से भून कर रख दूॅगी। आज मेरे हाॅथों उन्हें मरने से कोई नहीं बचा सकता। खुद भगवान भी नहीं।"

"क्या तुम भी अपने बाप की तरह दूसरों का हक़ छीनोगी रितू?" अक्श ने कहा___"अगर ऐसा है तो तुममें और तुम्हारे बाप में क्या अंतर रह गया?"
"ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" रितू के गले से गुस्से मे डूबा स्वर निकला___"मैं कहाॅ किसी का हक़ छीन रही हूॅ?"

"तुम जिन्हें जान से मारने जा रही हो न उन सबको जान से मारने का अधिकार तुम्हारा नहीं है रितू।" अक्श ने कहा___"बल्कि उसका है जिसके साथ तुम्हारे बाप ने हद से कहीं ज्यादा अत्याचार किया है। हाॅ रितू, ये सब विराज और उसकी माॅ बहन के दोषी हैं। इस लिए इन लोगों सज़ा या मौत देने का अधिकार उनको ही है तुम्हें नहीं। अब ये तुम पर है कि तुम उनका ये हक़ छीनती हो या फिर उनका अधिकार उन्हें देती हो।"

आदमकद आईने में दिख रहे अपने अक्श की बातें सुन कर रितू के मनो मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। उसे अपने अक्श की कही हर बात समझ में आ गई और समझ में आते ही उसका क्रोध और गुस्सा साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया।

"तुम यकीनन सच कह रही हो।" रितू ने गहरी साॅसे लेते हुए कहा___"ऐसे पापियों को सज़ा या मौत देने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरे भाई विराज को है। मैं दुवा करती हूॅ कि बहुत जल्द इन पापियों को इनके पापों की सज़ा दे मेरा भाई। जिन माॅ बाप को मैं इतना अच्छा समझती थी आज उन लोगों का इतना गंदा चेहरा देख कर मुझे नफ़रत हो गई है उनसे। मुझे शर्म आती है कि मैं ऐसे पाप कर्म करने वाले माॅ बाप की औलाद हूॅ। लेकिन अब मैं क्या करूॅ?"

"समय का इन्तज़ार करो रितू।" अक्श ने कहा___"और इस वक्त तुम फिर से उन लोगों के पास जाओ। दरवाजे के पास कान लगा कर सुनो। हो सकता है कि कुछ ऐसा जानने को मिल जाए तुम्हें जिन चीज़ों से आज भी बेख़बर होगी तुम।"

"हर्गिज़ नहीं।" रितू के जबड़े शख्ती से कस गए___"मैं उन लोगों के पास उनकी गंदी रासलीला देखने सुनने नहीं जाऊॅगी।"
"मैं तुम्हें उनकी रासलीला देखने सुनने को नहीं कह रही रितू।" अक्श ने कहा__"मैं तो बस ये कह रही हूॅ कि ऐसे माहौल में इंसान के मुख से कभी कभी ऐसा कुछ निकल जाता है जिससे उसका कोई रहस्य या राज़ पता चल जाता है। ऐसा राज़ जिसे आम हालत में कोई भी इंसान अपने मुख से नहीं निकालता।"

"यकीनन, तुम्हारी बात में सच्चाई है।" रितू ने कहा___"ऐसा हो भी सकता है। इस लिए मैं जा रही हूॅ फिर से उन लोगों के पास।"
"ये हुई न बात।" अक्श ने मुस्कुराते हुए कहा___"चलो अब मैं भी वापस तुम्हारे अंदर चली जाती हूॅ। तुम्हें सही रास्ता दिखा रही थी सो दिखा दिया और अब तुम भी ज़रा सतर्क रहना।"

रितू के देखते ही देखते आदमकद आईने में दिख रहा उसका अक्श आईने पर से गायब हो गया। अक्श के गायब होते ही रितू ने पहले एक गहरी साॅस ली फिर पलट करवापस आलमारी की तरफ बढ़ी। रिवाल्बर से गोलियाॅ निकाल कर उसने रिवाल्वर और रिवाल्वर की गोलियाॅ अंदर लाॅकर में रख कर आलमारी बंद कर दी।

इसके बाद पलट कर वह कमरे से बाहर निकल कर थोड़ी देर में फिर वहीं पहुॅच गई जहाॅ पर उसके माॅ बाप और भाई तीनो एक साथ संभोग क्रिया कर रहे थे। रितू दबे पाॅव कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच गई थी। अंदर से अभी भी सिसकारियों की आवाज़ें आ रही थी। रितू ने दरवाजे को हल्का सा खोल दिया था ताकि उसके कानों में उन लोगों के बोलने की आवाज़ स्पष्ट सुनाई दे सके।

"एक बात तो है डैड कि न आप और ना ही मैं परिवार की किसी भी औरत या लड़की को अपने नीचे लिटा नहीं सके अब तक।" शिवा की आवाज़ आई____"इसे हमारा दुर्भाग्य कहें या उन लोगों की अच्छी किस्मत?"

"ये उन रंडियों की किस्मत ही है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"जो अब तक हम बाप बेटों के लंड की सवारी न कर सकी हैं। दूसरी बात तुम्हारी इस रंडी माॅ ने भी अपना काम सही से नहीं किया। वरना हम दोनो बाप बेटे गौरी और करुणा की जवानी का मज़ा ज़रूर लूटते।"

"ओये भड़वे की औलाद साले कुत्ते।" प्रतिमा बीच में सैण्डविच बनी बोल उठी___"मैने क्या नहीं किया इन सबको जाल में फाॅसने के लिए। आआआहहहह मादरचोद धीरे से मसल न मेरी चूची को दर्द भी होता है मुझे। हाॅ तो मैं ये कह रही थी कि क्या नहीं किया मैने। तुम्हारे ही कहने पर उस रंडी के जने विजय को अपने हुस्न के जाल में फाॅसने की कोशिश की, यहाॅ तक कि एक दिन सोते समय उसके घोड़े जैसे लंड को अपने मुह में भी भर लिया था। मगर वो कुत्ता तो हरिश्चन्द्र था। कलियुग का हरिश्चन्द्र। उसने मुझे उस सबके लिए कितना बुरा भला कहा और जलील किया था ये मैं ही जानती हूॅ। उसने मुझ जैसी हूर की परी औरत को उस कुलमुही गौरी के लिए ठुकरा दिया था। तभी तो अपने उस अपमान का बदला लेने के लिए मैने तुमसे कहा था कि अब इसको जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"ओह माई गाड ये तुम क्या कह रही हो माॅम?" धक्के लगाता हुआ शिवा हैरान होकर बोल पड़ा था____"इसका मतलब विजय चाचा की वो मौत नेचुरल नहीं थी?"
"हाॅ बेटे ये सच है।" नीचे से ज़ोर का शाॅट मारते हुए अजय ने कहा___"उस हादसे के बाद हम डर गए थे कि विजय वो सब कही माॅ बाबूजी से न बता दे। इस लिए दूसरे दिन ही हम सब शहर चले गए थे। शहर आ तो गए थे मगर एक पल के लिए सुकून की साॅस नहीं ले पा रहे थे। हर पल यही डर सता रहा था कि विजय वो सब माॅ बाबूजी से बता देगा। उस सूरत में हमारी इज्ज़त का कचरा हो जाता। माॅ बाबूजी के सामने खड़ा होने की भी हम में हिम्मत न रहती। इस लिए हमने तय किया कि इस मुसीबत से जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए। ये सोच कर मैं दूसरे दिन ही गुप्त तरीके से शहर से वापस गाॅव आ गया। प्रतिमा को तुम बच्चे लोगों के पास ही रहने दिया। लेकिन अपने साथ में यहाॅ से एक ज़हरीला सर्प भी ले गया मैं। मुझे पता था कि आजकल खेतों में फलों का सीजन था इस लिए मंडी ले जाने के लिए फलों की तुड़ाई चालू थी। विजय सिंह रात में वहीं रुकता था। मैं जब गाॅव पहुॅचा तो हवेली न जाकर सीधा खेतों पर ही पहुॅच गया। खेतों पर विजय के साथ एक दो मजदूर रह रहे थे उस समय। उस रात जब मैं वहाॅ पहुॅचा तो रात काफी हो चुकी थी। विजय और दोनो मजदूर सो रहे थे। मैं सीधा विजय के कमरे में गया और उसे पहले बेहोशी की दवा सुॅघाई। वो सोते हुए ही बेहोश हो गया। उसके बाद मैने अपने थैले से वो बंद पुॅगड़ी निकाली जिसमें मैं शहर से ज़हरीले सर्प को भर कर लाया था। विजय के पैरों के पास जाकर मैने पुॅगड़ी का ढक्कन खोल दिया। ढक्कन खुलते ही उसमे से जीभ लपलपाता हुआ उस ज़हरीले सर्प ने अपना सिर निकाला फिर वो विजय के पैरों और टाॅगों की तरफ देखने लगा। मैने पुॅगड़ी को विजय के पैरों के और पास कर दी। मगर हैरानी की बात थी कि वो ज़हरीला विजय के पैरों को देखने के सिवा कुछ कर ही नहीं रहा था। ये देख कर मैने पुॅगड़ी को हल्का झटका दिया तो वो सर्प डर गया और डर की वजह से ही उसने विजय के घुटने के नीचे दाहिनी टाॅग पर काट लिया। सर्प के काटते ही मैने जल्दी से पुॅगड़ी का ढक्कन बंद कर दिया। उधर विजय की टाॅग में जिस जगह सर्प ने काटा था उस जगह दो बिंदू बन गए थे जो कि विजय के लाल सुर्ख खून में डूबे नज़र आने लगे थे। देखते ही देखते विजय का बेहोश जिस्म हिलने लगा। उसका पूरा जिस्म नीला पड़ने लगा। मुझ से सफेद झाग निकलना शुरू हो गया और कुछ ही देर में विजय का जिस्म शान्त पड़ गया। मैं समझ गया कि मेरे छोटे भाई की जीवन लीला समाप्त हो चुकी है। उसके बाद मैने मृत विजय के जिस्म को किसी तरह उठाया और कमरे से बाहर ले आया। बाहर आकर मैं विछय को उठाये उस तरफ बढ़ता चला गया जिस जगह पर खेतों पर उस समय पानी लगाया जा रहा था। मैं विजय को लिए उस पानी लगे खेत के अंदर दाखिल हो गया और एक जगह विजय के मृत जिस्म को उतार कर उसी पानी लगे खेत में ऐसी पोजीशन में चित्त लेटाया कि उसके मुख पर दिख रहा झाग साफ नज़र आए। खेत के कीचड़ में लेटाने के बाद मैने विजय के दोनो हाॅथों और पैरों में खेत का वही कीचड़ लगा दिया। ताकि लोगों को यही लगे कि विजय खेत में पानी लगा रहा था और उसी दौरान किसी ज़हरीले सर्प ने उसे काट लिया था जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई है। ये सब करने के बाद मैं जिस तरह गुप्त तरीके से शहर से आया था उसी तरह वापस शहर लौट भी गया। किसी को इस सबकी भनक तक नहीं लगी थी।"

दरवाजे से कान लगाए खड़ी रितू का चेहरा ऑसुओं से तर था। उसके चेहरे पर दुख और पीड़ा के बहुत ही गहरे भाव थे। आज उसे पता चला कि उसके माॅ बाप कितने बड़े पापी हैं। अपनी खुशी और अपने पाप को छुपाने के लिए उसके बाप ने अपने सीधे सादे और देवता समान भाई को सर्प से कटवा कर उसकी जान ले ली थी। इतना बड़ा कुकर्म और इतना बड़ा घृणित काम किया था उसके माॅ बाप ने। रितू को लग रहा था कि वो क्या कर डाले अपने माॅ बाप के साथ। उसे लग रहा था कि ये ज़मीन फटे और वह उसमे समा जाए। आज अपने माॅ बाप की वजह से वो अपने भाई विराज और उसकी माॅ बहन की नज़रों में बहुत ही छोटा और तुच्छ समझ रही थी। अभी वो ये सोच ही रही थी कि उसके कानों में फिर से आवाज़ पड़ी।

"ओह तो ये बात है डैड।" शिवा के चकित भाव से कहा___"उसके बाद क्या हुआ?"
"होना क्या था?" अजय सिंह ने कहा__"वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी। अपने इतने प्यारे और इतने अच्छे बेटे की मौत पर माॅ बाबू जी की हालत बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी। अभय ने शहर में हमे भी विजय की मौत की सूचना भेजवाई। उसकी सूचना पाकर हम सब तुरंत ही गाव आ गए और फिर वैसा ही आचरण और ब्यौहार करने लगे जैसा उस सिचुएशन पर होना चाहिए था। ख़ैर, जाने वाला चला गया था। किसी के जाने के दुख में जीवन भर भला कौन शोग़ मनाता है? कहने का मतलब ये कि धीरे धीरे ये हादसा भी पुराना हो गया और सबका जीवन फिर से सामान्य हो गया। मगर माॅ बाबूॅ जी सामान्य नहीं थे। बेटे की मौत ने उन दोनो को गहरे सदमें डाल दिया था।"

"तुम लोगों की ये महाभारत अगर खत्म हो गई हो तो आगे का काम भी करें अब?" तभी प्रतिमा ने खीझते हुए कहा___"सारे मज़े का सत्यानाश कर दिया तुम दोनो बाप बेटों ने।"
"अरे मेरी जान सारी रात अपनी है।" अजय सिंह ने नीचे से अपने दोनो हाथ बढ़ा कर प्रतिमा की भारी चूचियों को धर दबोचा था, फिर बोला___"बेटे को सच्चाई जानना है तो जान लेने दो न। आख़िर हर चीज़ जानने का हक़ है उसे। मेरे बाद इस हवेली का अकेला वही तो वारिश है। इस घर की सभी औरतों और लड़कियों को हमारा बेटा भोगेगा प्यार से या फिर ज़बरदस्ती।"

"डैड मुझे सबसे पहले उस रंडी करुणा को पेलना है।" शिवा ने कहा___"उसकी वजह से ही उस मादरचोद अभय ने मुझे कुत्ते की तरह मारा था। इस लिए जब तक मैं उसकी उस राॅड बीवी और बेटी को आगे पीछे से ठोंक नहीं लेता तब तक मुझे चैन नहीं आएगा।"

"तेरी ये ख्वाहिश ज़रूर पूरी होगी मेरे जिगर के टुकड़े।" अजय सिंह ने कहा___"और तेरे साथ साथ मेरी भी ख्वाहिश पूरी होगी। तेरी माॅ ने तो कोई जुगाड़ नहीं किया लेकिन अब मैं खुद अपने तरीके से वो सब करूॅगा। हाय मेरी बड़ी बेटी रितू की वो फूली हुई मदमस्त गाॅड और उसकी बड़ी बड़ी चूचियाॅ। कसम से बेटे जब भी उसे देखता हूॅ तो ऐसा लगता है कि साली को वहीं पर पटक कर उसे उसके आगे पीछे से पेलाई शुरू कर दूॅ।"

"यस डैड यू आर राइट।" शिवा ने मुस्कुराते हुए कहा___"रितू दीदी को पेलने में बहुत मज़ा आएगा। आप जल्दी से कुछ कीजिए न डैड।"
"करूॅगा बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"मगर सोच रहा हूॅ कि उससे पहले अपनी बहन नैना को पेल दूॅ। बेचारी लंड के लिए तड़प रही होगी। उसके पति और उसके ससुराल वालों ने उसे बाॅझ समझकर घर से निकाल दिया है। इस लिए मैं सोच रहा हूॅ कि उसे अपने बच्चे की माॅ बना दूॅ और फिर से उसे उसके ससुराल भिजवा दूॅ।"

"ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा है डैड। लेकिन आप अपने इस बेटे को भूल मत जाइयेगा।" शिवा ने कहा___"बुआ को पेलने का सुख मुझे भी मिलना चाहिए।"
"अरे तेरे लिए तो इस घर की हर लड़की और औरत हैं बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"सबकी चूतों पर सिर्फ तेरे ही लंड की मुहर लगेगी।"

"ओह डैड थैक्यू सो मच।" शिवा खुशी से झूम उठा___"यू आर रियली दि ग्रेट पर्सन।"
"उफ्फ अब बस भी करो तुम लोग।" प्रतिमा ने कुढ़ते हुए कहा___"इस तरह बीच में लटके लटके मेरा बदन दुखने लगा है अब।"
"चल बेटा अब ज़रा इस राॅड का भी ख़याल कर लिया जाए।" अजय सिंह ने कहा__"तू ऊपर से हट तो ज़रा मुझे भी पोजीशन चेंज करना है।"

अजय सिंह से कहने पर शिवा प्रतिमा के ऊपर से हट गया। अजय सिंह ने प्रतिमा को पलट कर अपनी तरफ मुह करके अपने ऊपर ही लेटने को कहा। प्रतिमा ने वैसा ही किया। नीचे से अजय ने अपने लंड को पकड़ कर प्रतिमा की चूत में डाल दिया।

"बेटे अब तू भी आजा और अपनी राॅड माॅ की गाॅड में लंड डाल दे।" अजय सिंह ने कहा तो शिवा फौरन अपना लंड पकड़ कर अपनी माॅ की गोरी चिट्टी गाॅड के गुलाबी छेंद पर डाल दिया। शिवा ने हाॅथ बढ़ा कर अपनी माॅ के बालों को मुट्ठी में पकड़ लिया था। अब दोनो बाप बेटे ऊपर नीचे से प्रतिमा की पेलाई शुरू कर दिये थे। कमरे में प्रतिमा की आहें और मदमस्त करने वाली सिसकारियाॅ फिर से गूॅजने लगी थी।

दरवाजे से अंदर सिर करके रितू ने एक नज़र उन तीनों को देखा फिर अपना चेहरा वापस बाहर खींच लिया। उसकी ऑखों में आग थी और आग के शोले थे जो धधकने लगे थे। चेहरे पर गुस्सा और नफ़रत के भाव ताण्डव सा करने लगे थे।

"तुम लोग अपने मंसूबों पर कभी कामयाब नहीं होगे कुत्तो।" रितू ने मन ही मन उन लोगों को गालियाॅ देते हुए कहा___"बल्कि अब मैं दिखाऊॅगी कि प्यार और नफ़रत का अंजाम किस तरह से होता है?"

रितू मन ही मन कहते हुए उस जगह से पलट कर वापस चल दी। कुछ ही देर में वह अपने कमरे में पहुॅच चुकी थी। दरवाजे की कुण्डी लगा कर वह बेड पर लेट गई। दिलो दिमाग़ में एक ऐसा तूफान उठ चुका था जो हर चीज़ उड़ा कर ले जाने वाला था।

काफी देर तक रितू बेड पर पड़ी इस सबके बारे में सोच सोच कर कभी रो पड़ती तो कभी उसका चेहरा गुस्से से भभकने लगता। फिर सहसा उसके अंदर से आवाज़ आई कि इस सबसे बाहर निकलो और शान्ती से किसी चीज़ के बारे में सोच कर फैंसला लो।

रितू ने ऑखें बंद करके दो तीन बार गहरी गहरी साॅसें ली तब कहीं जाकर उसे कुछ सुकून मिला और उसका मन शान्त हुआ। उसे ख़याल आया कि कल उसका सबसे अच्छा भाई विराज आ रहा है। विराज का ख़याल ज़हन में आते ही रितू का मन एक बार फिर दुखी हो गया।

"मेरे भाई, जितने भी दुख मैने तुझे दिये हैं न उससे कहीं ज्यादा अब प्यार दूॅगी तुझे।" रितू ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा__"मैं जानती हूॅ कि तू इतने बड़े दिल का है कि तू एक पल में अपनी इस दीदी को माफ़ कर देगा और मेरी सारी ख़ताएॅ भुला देगा। तेरे हिस्से के दुख दर्द बहुत जल्द तुझसे दूर चले जाएॅगे भाई। बस विधि को देख कर तू अपना आपा मत खो बैठना। अपने आपको सम्हाल लेना मेरे भाई। वैसे मैं तुझे फिर से बिखरने नहीं दूॅगी। तेरा हर तरह से ख़याल रखूॅगी मैं।"

बेड पर पड़ी रितू अपने मन में ये सब कहे जा रही थी। उसकी ऑखों के सामने बार बार विराज का वो मासूम और सुंदर चेहरा घूम जाता था। जिसकी वजह से पता नहीं क्यों मगर रितू के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आती थी।

"तू जल्दी से आजा मेरे भाई।" रितू ने मन में ही कहा___"तुझे देखने के लिए मेरी ये ऑखें तरस रही हैं। वैसे कैसा होगा तू? मेरा मतलब कि आज भी वैसा ही मासूम व सुंदर है या फिर बेरहम वक्त ने तुझे इसके विपरीत कठोर व बेरहम बना दिया है? नहीं नहीं मेरे भाई, तू ऐसा मत होना। तू पहले की तरह ही मासूम व सुंदर रहना। तू वैसा ही अच्छा लगता है मेरे भाई। मैं तुझे उसी रूप में देखना चाहती हूॅ। तुझे अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोना चाहती हूॅ। अब मुझे इन पापियों के साथ नहीं रहना है भाई। ये तो अपनी ही बहन बेटी को लूटना चाहते हैं। मुझे इनके पास नहीं रहना अब। मुझे भी अपने साथ ले चल मुम्बई। मैं ये नौकरी छोंड़ दूॅगी और तेरे साथ ही हर वक्त रहूॅगी। अपने प्यारे से भाई के साथ। बस तू जल्दी से आजा यहाॅ।"

जाने क्या क्या मन में कहती हुई रितू आख़िर कुछ देर में अपने आप ही सो गई। वक्त और हालात बड़ी तेज़ी से बदल रहे थे। आने वाला समय किसकी झोली में कौन सी सौगात डालने वाला था ये भला किसे पता हो सकता था।

ख़ैर, रात गुज़र गई और सुबह का आगाज़ हुआ। बेड पर गहरी नींद में सोई हुई रितू को ऐसा लगा जैसे कुछ बज रहा है। नींद के साथ ही स्थिर और सोया हुआ मन मस्तिष्क फौरन ही सक्रिय अवस्था में आ गया। जिसकी वजह से रितू की ऑख खुल गई। ऑख खुलते ही उसके कानों में उसके आई फोन की रिंग टोन उसे स्पष्ट सुनाई दी। रितू ने बाई तरफ करवॅट लेकर मोबाईल को उठाया और जब तक उस पर आ रही किसी की काल को पिक करने के लिए अपने अॅगूठे को हरकत दी तब तक काल अपने निश्चित समय सीमा के चलते कट गई।

रितू ने रिसीव काल की लिस्ट को ओपेन किया तो उसमें उसे पवन सिंह लिखा नज़र आया। ये देख कर रितू के दिमाग़ की बत्ती जली। उसे ध्यान आया कि आज उसका भाई विराज मुम्बई से यहाॅ आ रहा है। ये बात दिमाग़ मे आते ही रितू ने फौरन पवन सिंह को फोन लगा दिया। पहली ही घंटी पर पवन ने काल पिक कर ली।

"ओफ्फो दी, आप फोन क्यों नहीं उठा रही थी?" उधर से पवन ने कहा___"चार बार आपको काल कर चुका हूॅ मैं।"
"ओह आई एम सो स्वारी भाई।" रितू ने खेद भरे भाव से कहा___"वो मैं गहरी नींद में सो रही थी न। कल रात नीद ही नहीं आ रही थी। इस लिए देर से सोई थी मैं। ख़ैर छोड़ो, तुम बताओ किस लिए फोन कर रहे थे मुझे?"

"वो मेरी विराज से फोन पर बात हुई है वो बता रहा था कि वो सही समय पर गुनगुन रेलवेस्टेशन पहुॅच जाएगा।" उधर से पवन कह रहा था___"मैने सोचा आपको इस बारे में बता दूॅ। मगर,....।"
"मगर क्या भाई?" रितू के माथे पर बल पड़ा।

"मगर यही कि मैने आपके कहने पर अपने जां से भी ज्यादा अज़ीज़ दोस्त को यहाॅ बुला तो लिया है।" पवन की आवाज़ में गंभीरता और अधीरता दोनो थी, बोला____"मगर, यदि उसकी जान को या उस पर लेश मात्र का भी संकट आया तो सोच लीजिएगा। उस सूरत में मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। आप मेरी बात समझ रही हैं न?"

"मुझे बेहद खुशी है कि मेरे भाई को तुम जैसा चाहने वाला दोस्त मिला है।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"मैं तुम्हारी बातों का मतलब समझ गई हूॅ भाई। तुमको कदाचित अभी भी अपनी इस बहन पर यकीन नहीं है, और सच कहूॅ तो होना भी नहीं चाहिए। आख़िर यकीन करने लायक मैने अब तक कीई काम किया ही कहाॅ है? मगर इतना ज़रूर कहूॅगी मेरे भाई कि तेरी ये बहन पहले से बहुत ज्यादा बदल गई है। तेरी इस बहन को समझ आ गया है कि कौन सही है और कौन ग़लत? आज मेरे दिल में अगर किसी के लिए बेपनाह प्यार है तो सिर्फ और सिर्फ अपने उस भाई के लिए जिसको मैने कभी अपना भाई नहीं माना था।"

"अगर ऐसी बात है तो मुझे खुशी है दीदी कि अब मेरे यार को आप के रहते कोई ख़तरा नहीं हो सकता।" पवन ने उधर से खुश हो कर कहा___"अच्छा अब फोन रखता हूॅ दीदी। विराज जब हल्दीपुर पहुॅचेगा तो मैं उसे लेने बस स्टैण्ड पर पहुॅच जाऊॅगा। आप तो जानती ही हैं कि मेरी दुकान बस स्टैण्ड पर ही है। विराज को लेकर मैं अपने घर चला जाऊॅगा। फिर जब आपका फोन आएगा तब मैं उसे लेकर विधी के पास हास्पिटल आ जाऊॅगा।"

"ठीक है भाई।" रितू ने कहा___"तब तक मैं भी उसकी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम करती हूॅ।" ये कहने के बाद रितू ने काल कट कर दी। इस वक्त उसके चेहरे पर बहुत ही ज्यादा खुशी झलक रही थी। उसके गोरे और खूबसूरत से चेहरे पर ग़जब का नूर उतर आया था। कुछ देर बेड पर वह जाने क्या क्या सोच कर मुस्कुराती रही फिर बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
_____________________________

उधर मुम्बई से ट्रेन में बैठने के बाद मैं और मेरे साथ जगदीश अंकल के द्वारा भेजे हुए बाॅडीगार्ड आदित्य चोपड़ा दोनो चल दिये थे। कुछ दूर तक का सफ़र तो हम दोनो के बीच की ख़ामोशी के साथ ही कटता रहा। उसके बाद हम दोनो के बीच बातें शुरू हो गई थी। ये अलग बात है कि बात करने की पहल मैने ही की थी। आदित्य चोपड़ा कुछ ख़ामोश तबीयत का इंसान था। वो ज्यादा किसी से बोलता नहीं था। अब ये ख़ामोशी उसकी फितरत का हिस्सा थी या फिर उसके ख़ामोश रहने की कोई ऐसी वजह जिसके बारे में फिलहाल मुझे कुछ पता नहीं था।

लेकिन जब हमारे बीच कान्टीन्यू बातें होती रही तो आदित्य का स्वभाव थोड़ा बदल गया था। हलाॅकि शुरू शुरू में वह मेरी किसी भी बात का जवाब हाॅ या ना में संक्षिप्त रूप से ही देता था। किसी किसी पल वह मेरी बातों से परेशान भी नज़र आया मगर मैने उसे बड़े प्यार व इज्ज़त से समझाया कि ख़ामोश रहने से किसी भी समस्या से छुटकारा नहीं मिलता। फिर मैने उसे संक्षेप में अपनी और अपने परिवार की कहानी सुनाई। मेरी कहानी सुन कर आदित्य चोपड़ा बेहद संजीदा सा हो गया था। उसने मुझसे कहा कि अभी तक तो वो मेरे बाॅडीगार्ड की हैंसियत से साथ था लेकिन अब वो मेरे साथ मेरा सच्चा दोस्त बन कर रहेगा और मुझे हर संकट से बचाएगा।

उसके बाद हम दोनो हॅसी खुशी ट्रेन में बातें करते रहे। मेरे पूछने पर ही उसने अपने बारे में बताया। आदित्य चौपड़ा के पास किसी चीज़ की कोई कमीं नहीं थी। जब वो पच्चीस साल का था तब उसे किसी लड़की से प्यार हो गया था। लेकिन बाद में पता चला कि वो लड़की हर पल सिर्फ उसका स्तेमाल कर रही थी। दरअसल उस लड़की का पहले से ही किसी विदेशी लड़के से चक्कर था। लड़की का बाप अपनी बेटी को बग़ैर किसी सिक्योरिटी के कहीं जाने नहीं देता था। आदित्य चोपड़ा उस लड़की का ब्वाडीगार्ड था। उस चक्कर में वो लड़की अपने उस विदेशी ब्वायफ्रैण्ड से मिल नहीं पाती थी। लड़की ने किसी योजना के तहत आदित्य को अपने प्यार के जाल में फॅसाया। और फिर उस लड़की ने आदित्य को अपने प्यार में इस हद तक पागल कर दिया कि उसके कहने पर आदित्य उसे लेकर विदेश तक जाने को तैयार हो गया। विदेश जाने के लिए सारी तैयारियाॅ करने के बाद एक दिन आदित्य और वो लड़की जिसका नाम कोमल सिंहानिया था दोनो ही सिंहानिया विला से फुर्र हो गए। एयरपोर्ट के रास्ते पर ही एक जगह कोमल ने टैक्सी रुकवाई। आदित्य को समझ न या कि कोमल ने टैक्सी क्यों रुकवाई थी। टैक्सी के उतरते ही कोमल टैक्सी से उतर गई और टैक्सी ड्राइवर से अपना सामान भी टेक्सी से निकालने को कह दिया। हैरान परेशान आदित्य ने उससे पूछा कि ये सब क्या है? हम बीच रास्ते में टैक्सी से इस तरह क्यों उतर रहे हैं?

[size=large]आदित्य के सवाल का जवाब देने से पहले ही उस जगह पर एक और टैक्सी आकर रुकी। उस टैक्सी का दरवाजा खोल कर कोमल का विदेशी ब्वायफ्रैण्ड बाहर आ गया। कोमल के पास आकर उस विदेशी ने कोमल को अपने गले से ल?
Reply
11-24-2019, 12:47 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मैने अपना फोन निकाल कर पवन को सब बता दिया। उसके बाद मैं और आदित्य समय गुज़ारने के लिए फिर से किसी न किसी चीज़ के बारे में बातें करने लगे। उधर ट्रेन अपनी रफ्तार से दोड़ी जा रही थी। मुझे नहीं पता था कि आने वाला समय मुझे क्या दिखाने वाला था या फिर किस तरह का झटका देने वाला था?

"आप एक बार फिर से इस बारे में अच्छी तरह सोच लीजिए चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने समझाने वाले अंदाज़ में कह रहा था___"आपका इस मामले में पुलिस को सूचित करना कतई ठीक नहीं रहेगा। संभव है कि आपके द्वारा इस मामले को पुलिस को सूचित कर देने से वो ब्लैकमेलर हमारे लिए कोई गंभीर मुसीबत खड़ी कर दे। ये बात तो वो भी अच्छी तरह जानता और समझता ही होगा कि आप पुलिस को उसके बारे में बताने की सोचेंगे जो कि निहायत ही ग़लत होगा। उस सूरत में वो हमारे खिलाफ़ कुछ भी कर सकता है और हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएॅगे। क्योंकि अभी तक हम यही नहीं जानते हैं कि हमें ऐसी वीडियोज़ भेजने वाला वो शख्स आख़िर है कौन? उसने अब तक कोई फोन या मैसेज नहीं किया लेकिन उसके न करने से भी वो हमें यही समझा रहा है कि इस मामले में पुलिस को सूचित करने की मूर्खता हम लोग हर्गिज़ भी न करें।"

"तो आख़िर हम क्या करें अवधेश?" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"आज दो दिन हो गए मगर उसकी तरफ से हमारे पास कोई मैसेज तक नहीं आया। हम तो चाहते हैं कि वो हमसे संबंध बनाए और बताए कि आख़िर वो ये सब करके हमसे चाहता क्या है? साला दो दिन से हमारे सुख चैन की माॅ बहन करके रखा हुआ है।"

"आप ज़रा धीरज से काम लीजिए चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"आपकी तरह हम सब भी इस बात से बहुत परेशान और बेचैन हैं। हमारी जान भी हलक में अटक पड़ी है। मगर जैसा कि अवधेश भाई ने कहा कि इस बारे में पुलिस को सूचित करना ठीक नहीं है तो बात हमारे हित में ही है। आप तो जानते हैं कि साले पुलिस वाले बाल की खाल निकालने वाले होते हैं। संभव है कि वो हमसे ऐसे सवाल करने लगें जिन सवालों के जवाब देना हमारे लिए ख़तरे से खाली नहीं होगा। ऐसे में हम खुद ही उल्टा फॅस जाएॅगे। रही बात उस ब्लैकमेलर की कि उसने अब तक हमसे कांटैक्ट नहीं किया तो ये कोई समस्या नहीं है। कहने का मतलब ये कि वो देर सवेर ही सही मगर हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा, क्योंकि इन वीडियोज़ को हमारे पास भेजने का कोई न कोई मकसद उसका ज़रूर होगा। अपने उस मकसद को पूरा करने के लिए वो हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा। बस आप धैर्य रखें चौधरी साहब।"

"बस एक बार।" दिवाकर चौधरी गुस्से से दाॅत किटकिटाते हुए बोला___"सिर्फ एक वो हरामज़ादा हमारे हाॅथ लग जाए उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी वाहियात हरकत करने का क्या अंजाम होता है। उस हराम के पिल्ले को ऐसी मौत मारेंगे कि उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।"

"इसका उल्टा भी तो हो सकता है चौधरी साहब।" सहसा इस बीच सहमी सी बैठी सुनीता ने अजीब भाव से कहा___"आप ये क्यों नहीं सोचते हैं कि जिसने भी आपके या हमारे साथ ऐसे दुस्साहस से भरे काम को अंजाम दिया है वो कोई ऐरा गैरा ब्यक्ति नहीं हो सकता? ये बात तो वो भी जानता होगा कि आप क्या चीज़ हैं, इसके बावजूद उसने ऐसा किया। इसका मतलब साफ है कि वो हमसे ज़रा भी ख़ौफ नहीं खाता है बल्कि अपने किसी मकसद को पूरा करने के लिए वो मौत के मुह में ही आ पहुॅचा है। दूसरी बात उसे हमसे डरने की ज़रूरत भी कहाॅ है जबकि उसके पास हमारे ख़िलाफ ऐसा सामान मौजूद है जिसके बल पर वो जब चाहे हमें बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। इस लिए ये बात तो आप भूल ही जाइये कि आप उसे ऐसी कोई मौत देंगे जिससे उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।"

"साली रंडी की दुम हमें डरा रही है?" चौधरी खिसियानी बिल्ली की तरह सुनीता पर चढ़ दौड़ा था, बोला___"तुझे पता नहीं है कि हम क्या चीज़ हैं। हम चाहें तो यहाॅ बैठे बैठे दिल्ली तक को हिला कर रख दें। वो हराम का जना साला तभी तक सलामत है जब तक वो हमसे दूर कहीं छुपा बैठा है। जिस दिन हमारे हाथ लग गया न उस दिन हम बताएॅगे कि दिवाकर चौधरी के साथ ऐसी हिमाकत करने का हस्र क्या होता है?"

दिवाकर चौधरी का तमतमाया हुआ चेहरा देख कर और उसकी खतरनाक बातें सुनकर सुनीता की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। ड्राइंगरूम पिन ड्राप सन्नाटा छा गया था। किसी की बोलने की हिम्मत न पड़ी। मगर तभी इस सन्नाटे को तोड़ने की हिमाकत खुद दिवाकर चौधरी के मोबाइल फोन की घंटी ने कर दी। दो पल के लिए तो दिवाकर चौधरी हड़बड़ाहट में ही रहा। फिर जल्दी से खादी के कुर्ते की जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उसने स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा। स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था जिस नंबर से चौधरी के इसी फोन पर वो वीडियोज़ भेजा था उस ब्लैकमेलर ने।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने शशंक भाव से कहा___"क्या देख रहे हैं? काल को रिसीव कीजिए।"
"ये तो वही नंबर है अवधेश।" चौधरी ने बड़े उत्साहित भाव से कहा___"जिस नंबर से हमारे फोन पर वो वीडियो भेजे गए थे।"

"तो फिर जल्दी से काल को रिसीव कीजिए चौधरी साहब।" अशोह मेहरा कह उठा__"और फोन का स्पीकर भी ऑन कर दीजिए। हम सब भी सुनेंगे कि वो क्या कहता है?"

चौधरी ने काल रिसीव करके मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया।
"कहो चौधरी कैसे हो?" उधर से मर्दाना स्वर में आवाज़ उभरी___"काल रिसीव करने में इतना टाइम कैसे लगा दिया तुमने? ओह शायद मेरा काल देख कर तुम्हें समझ में ही न आया होगा कि क्या करें और क्या न करें? होता है चौधरी, ऐसा तो यकीनन होता है। और हाॅ ये बहुत अच्छा किया जो अपने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया तुमने। आख़िर तुम्हारे उन साथियों को भी तो मेरी मधुर आवाज़ सुनने का हक़ है।"

"हमसे ऐसे लहजे में बात करने का अंजाम नहीं जानते हो तुम।" चौधरी ने दाॅत पीसते हुए कठोर भाव से कहा___"अगर जानते तो ऐसी हिमाकत नहीं करते। और अब हमारी बात कान खोल कर सुनो तुम। ये जो कुछ तुमने किया है न उसकी सज़ा तो तुम्हें ज़रूर मिलेगी। ये मत समझना कि वोडियो भेज कर तुमने हमे चूहा बना दिया होगा।"

"ये गीदड़ भभकियाॅ किसी और को देना चौधरी।" उधर से ठंडे लहजे में कहा गया___"मैं तुम्हारी किसी बात से बाल बराबर भी डरने वाला नहीं हूॅ। मैं चाहूॅ तो पल भर में तुम्हारी ताकत और तुम्हारी शान को मिट्टी में मिला दूॅ। इस लिए बेहतर होगा कि मुझसे ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना और ना ही मुझ पर अपना रौब झाड़ना।"

"क्या चाहते हो तुम?" चौधरी को समझ आ गया था कि सामने वाला उससे डरने वाला नहीं है इस लिए मुद्दे की बात करना ही चित समझा उसने, बोला___"अगर तुमने ये सब हमसे रुपया पैसा ऐंठने के लिए किया है तो मुह फाड़ो अपना और बताओ कि कितना रुपया चाहिए तुम्हें? मगर ख़बरदार, डील सिर्फ एक ही बार होगी। तुम्हें जितना भी रुपया चाहिए वो बोल दो, हम तुम्हें मुहमागा रुपया दे देंगे मगर बदले में तुम हमें वो सारे वीडियोज़ लौटा दोगे।"

"ये तुमने कैसे सोच लिया चौधरी कि ये सब मैने तुमसे पैसे ऐंठने के लिए किया है?" उधर से हॅस कर कहा गया___"अरे बुड़बक, पैसा तो मेरे पास इतना है कि मैं खड़े खड़े तुम्हें और तुम्हारे पूरे खानदान को ख़रीद लूॅ। ख़ैर, तुम जैसे दो कौड़ी के भड़वों को खरीदेगा भी कौन? मैने तो ये सब सिर्फ इस लिए किया कि तुम्हें बता सकूॅ अब तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का खेल खत्म हो चुका है। अब यहाॅ से तुम लोगों के बुरे कर्मों का हिसाब शुरू होगा।"

"हरामज़ादे तू है कौन साले?" चौधरी बुरी तरह गुस्से में चीख पड़ा था___"एक बार हमारे सामने आ फिर हम बताएॅगे कि हमसे ऐसी ज़ुर्रत करने का क्या अंजाम होता है?"
"हरामज़ादा किसे बोलता है रे मादरचोद साले रंडी की औलाद।" उधर से मानो शेर की गुर्राहट उभरी___"चिंता मत कर साले बहुत जल्द तेरी हेकड़ी निकालूॅगा मैं। साले बकरे की तरह मिमियाएगा मेरे सामने।"

"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर हमसे।" चौधरी चीखा तो ज़रूर मगर उसने खुद महसूस किया कि उसके स्वर में कोई दम नहीं था, फिर भी बोला___"हम तुम्हारे इस अपराध को माफ़ कर देंगे। बस तुम हमें वो सब वीडियोज़ लौटा दो।"

"भीख माॅगता है क्या रे चौधरी?" उधर से ठहाके की आवाज़ आई___"अच्छा है माॅगना शुरू ही कर दे अब। ख़ैर जाने दे, मैं ये कह रहा हूॅ कि बहुत जल्द तुझे ऐसा मंज़र देखने को मिलेगा कि तू उसे देख नहीं पाएगा और तेरे ही साथ बस क्यों तेरे सभी साथियों के साथ भी वही सब होगा। अपनी बरबादी को रोंक सकता है तो रोंक ले तू।"

अभी चौधरी कुछ कहना ही चाहता था कि उधर से फोन कट गया। चौधरी ने जल्दी से उसी नंबर पर काल किया मगर नंबर स्विच ऑफ बताने लगा था। पल भर में चौधरी की हालत किसी लुटे हुए जुआॅरी जैसी नज़र आने लगी थी। चौधरी जैसा हाल बाॅकी उन सबका भी था जो वहाॅ पर बैठे फोन की हर बात सुन रहे थे। सुनीता की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे उसे लकवा मार गया हो। बड़े से ड्राइंगरूम में गहन सन्नाटे के सिवा कुछ न रह गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हवेली में।
गहरी सोच में डूबी हुई नैना रितू के कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर उसने देखा कि रितू पुलिस की वर्दी पहने आईने के सामने खड़ी होकर सिर पर पीकैप को ठीक से लगाते हुए खुद को देख रही थी।

"क्या बात है रितू तूने मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से किस लिए बुलाया है?" नैना ने रितू की तरफ देखते हुए कहा था। उसकी बात सुन कर रितू आईने की तरफ से पलट कर अपनी नैना बुआ की तरफ देखा।

"क्या आपने अपना सब सामान ले लिया है बुआ जी?" रितू ने पूछा।
"आख़िर बात क्या है मेरी बच्ची?" नैना हैरान परेशान सी बोली___"मुझे अपना सारा सामान लेने के लिए क्यों कह रही है तू? क्या तू मुझे कहीं लेकर जा रही है?"

"हाॅ बुआ।" रितू ने तनिक गंभीरता से कहा___"लेकिन इस वक्त आप मुझसे ये न पूछिए कि ऐसा मैं क्यों कह रही हूॅ। बस आप वो कीजिए जो मैं कह रही हूॅ। यकीन मानिये बुआ मैं आपको आपके सभी सवालों का जवाब दूॅगी मगर अभी नहीं। अभी आप वही कीजिए जो मैने कहा है प्लीज़।"

"ठीक है रितू।" नैना ने बेचैनी से कहा__"पर मैं भइया भाभी से क्या कहूॅगी कि अपना सामान लेकर मैं कहा जा रही हूॅ?"
"उनको बता दीजिएगा कि आप वापस अपने ससुराल जा रही हैं क्योंकि आपके पास आपके ससुराल से फोन आया था जो आपको आने के लिए कह रहे थे।।" रितू ने जैसे तरीका बताया।

"वो तो ठीक है।" नैना ने कहा___"लेकिन अगर भइया ने मेरी ससुराल में फोन करके इस बारे में पूछा तो क्या होगा? उन्हें तो पता चल ही जाएगा कि मैं उनसे झूॅठ बोल रही हूॅ।"
"वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे बुआ।" रितू ने कहा___"आप बस जल्दी से सामान लेकर हवेली से बाहर आइये। मैं आपको बाहर ही मिलूॅगी।"

"अरे नास्ता तो कर ले।" नैना ने कहा___"भाभी डायनिंग टेबल में तेरा इन्तज़ार कर रही हैं।"
"नहीं बुआ मुझे ज़रा भी भूॅख नहीं है।" रितू ने कहा___"और आप भी मत खाइयेगा। क्योंकि उससे हमें जाने में देर हो जाएगी।"

"बड़ी हैरानी की बात है रितू।" नैना ने चकित भाव से कहा___"ख़ैर, तू चल मैं आती हूॅ।"
"ठीक है बुआ।" रितू दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली___"जल्दी आइयेगा।"

कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे डग भरते हुए दरवाजे के बाहर निकल गई। उसके पीछे पीछे ही नैना भी चल दी। ये अलग बात है कि इस वक्त उसके मन में गहन विचारों का आवागमन शुरू था।

"रितू बेटा, बड़ी देर कर दी आने में।" प्रतिमा ने रितू को देखते ही कहा__"चल आजा, नास्ता ठंडा हो रहा है।"
"नहीं माॅम, मुझे अर्जेंट थाने पहुॅचना है।" रितू ने एक एक नज़र वहीं कुर्सियों पर बैठे अपने भाई शिवा और अपने पिता अजय सिंह पर डालते हुए कहा___"मैं बाहर ही नास्ता कर लूॅगी।"

"उफ्फ तेरी ये नौकरी भी न।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"चैन से तुझे नास्ता भी नहीं करने देती है। छोंड़ दे न ये नौकरी बेटा। आख़िर क्या कमी है हमारे पास और क्या कमी की है हमने तेरी इच्छाओं को पूरा करने में?"

"बात किसी भी चीज़ की कमी की नहीं है माॅम।" रितू ने कहा___"बात है शौक की और ये पुलिस की नौकरी मेरा शौक ही है। पाप और ज़ुर्म को खत्म करना मेरा शुरू से सिद्धांत रहा है। ख़ैर, आप नहीं समझेंगी मेरी भावनाओं को।"

"माॅम ठीक ही तो कह रही हैं दीदी।" सहसा शिवा ने कहा___"आपको पुलिस की नौकरी करने की क्या ज़रूरत है? इस तरह का शौक रखना निहायत ही बेकार की बात है।"
"तू अपना मुह बंद ही रख समझे।" रितू ने कठोर भाव से कहा___"मेरा शौक तेरे शौक से कहीं ज्यादा ऊॅचा और पाक़ है। पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो गई हूॅ और खुद कमा कर खा सकती हूॅ। तेरी तरह डैड के पैसों पर ऐश करना मुझे हर्गिज़ पसंद नहीं है।"

"आप ज़रूरत से ज्यादा ही भाषण दे रही हैं दीदी।" शिवा ने कहा___"बेहतर होगा कि आप अपना ये भाषण किसी और को सुनाएॅ।"
"सच कहा तूने।" रितू ने कड़वा ज़हर मानो खुद ही निगलते हुए कहा___"ये भाषण तुझे रास नहीं आ सकता। ये भाषण तो उसे ही रास आएगा जो इसके लायक होगा।"

"ये क्या बेहूदा बातें कर रही हो बेटी?" सहसा अजय सिंह कह उठा___"अपने इकलौते भाई से इस तरह रुखाई से कौन बहन बात करती है? तुमने अपनी मर्ज़ी से पुलिस की नौकरी कर ली हमें कोई प्राब्लेम नहीं हुई। मगर इस बात का भी ख़याल रखना बच्चों का फर्ज़ है कि वो अपने माता पिता के अरमानों के बारे में सोचें।"

"वाह डैड।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"इस वक्त कौन सही है कौन ग़लत ये तो आपने बिलकुल ही नज़रअंदाज़ कर दिया। मुझे याद नहीं कि मैने कब अपने माॅम डैड की इज्ज़त या सम्मान को चोंट पहुॅचाई है। बल्कि बचपन से लेकर अब तक वहीं किया जो आपने कहा। आज की दुनियाॅ में अगर बेटियाॅ अपने पैरों पर खड़े होकर कामयाबी का कोई आसमान छूती हैं तो माॅ बाप को अपनी उस बेटी पर गर्व होता है मगर मेरे माॅम डैड को मेरी पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं आया। ख़ैर, जाने दीजिए डैड। अगर आप नहीं चाहते हैं कि मैं ये पुलिस की नौकरी करूॅ तो ठीक है छोंड़ दूॅगी इसे।"

"तुम बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हो रितू बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"अपने डैड से इस लहजे में बात करना तुम्हें ज़रा भी शोभा नहीं देता।"
"साॅरी माॅम।" रितू ने अपने अंदर के जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए कहा___"साॅरी डैड, एण्ड साॅरी भाई।"

रितू ने कहा और झटके से बाहर की तरफ निकल गई। दिल एकदम से छलनी सा हो गया था उसका। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी वो मगर ये समय सही नहीं था। अपने अंदर के सुलगते हुए जज़्बातों को शख्ती से दबा लिया था उसने। दिल में अपने माॅ बाप और भाई के लिए उसकी नफ़रत में जैसे और भी इज़ाफा हो गया था।

हवेली के बाहर आकर वह एक तरफ खड़ी अपनी पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ती चली गई। जिप्सी में बैठ कर उसने उसे स्टार्ट किया और आगे बढ़ा कर मुख्य दरवाजे तक आ कर रुक गई। कदाचित नैना बुआ के आने का इन्तज़ार करने लगी थी वह। लगभग पन्द्रह मिनट के इन्तज़ार के बाद नैना बाहर आती दिखी उसे। नैना के बाएॅ हाथ में उसका बैग देख कर रितू ने मन ही मन राहत की मीलों लम्बी साॅस ली। जिप्सी के पास आकर नैना ने पिछली सीट पर बैग रखा और फिर घूम कर रितू के बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। नैना के बैठते ही रितू ने जिप्सी को झटके से आगे बढ़ा दिया।

"हवेली से बाहर आने में काफी देर लगा दी आपने।" मेन सड़क पर पहुॅचते ही रितू ने कहा नैना से।
"हाॅ वो भइया भाभी पूछने लगे थे न कि मैं अपना ये सामान लेकर कहाॅ जा रही हूॅ?" नैना ने बताया___"बड़ी मुश्किल से उन्हें कन्विंस किया तब जाकर बाहर आ पाई मैं। लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम मुझे इस तरह कहाॅ लेकर जा रही हो?"

"बस ये समझ लीजिए बुआ कि मैं आपको ऐसी जगह लेकर जा रही हूॅ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"जहाॅ पर आप पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी।"
"क्या मतलब??" नैना बुरी तरह चौंकी थी।
"मतलब किसी स्वीमिंग पुल में भरे पानी की तरह साफ है बुआ।" रितू ने कहा___"बस समझने की बात है।"

"देख तू मुझसे ऐसे पुलिसिये लहजे में बात मत किया कर।" नैना ने कहा___"मुझे बिलकुल समझ में नहीं आता कि तू क्या बोल रही है?"
"अच्छा ये बताइये।" रितू ने कहा__"कि डैड ने आपके ससुराल वालों को फोन तो नहीं किया न वो सब पूछने के लिए?"

"नहीं फोन तो नहीं किया।" नैना ने कहा__"बस यही कहा कि ये अच्छी बात है अगर मेरी ससुराल वाले मुझे फिर से बुला रहे हैं तो। मगर, ऐसा भी तो हो सकता है रितू कि वो मेरे यहाॅ आने के बाद मेरी ससुराल में फोन लगाएॅ। ये जानने के लिए कि मैं वहाॅ पर समय पर और ठीक से पहुॅच गई हूॅ कि नहीं और जब उन्हें ये पता चलेगा कि मैं वहाॅ गई ही नहीं तो क्या सोचेंगे वो मेरे बारे में?"

"अब उनके कुछ भी सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"क्यों कि अब आप हवेली से बाहर आ चुकी हैं। मैं तो बस आपको उस हवेली से बाहर निकालना चाहती थी।"
"क्या मतलब है तेरा?" नैना बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत से उसकी ऑखें फैल गईं थी।

"अभी नहीं बुआ।" रितू ने कहा___"बाद में आपको सब कुछ बताऊॅगी और तसल्ली से बताऊॅगी।"
"पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रही है तू?" नैना का दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन गया था, बोली___"मुझे तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रही तेरी बातें।"
Reply
11-24-2019, 12:48 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
नैना की इस बात पर रितू कुछ न बोली। बल्कि जिप्सी को टाॅप गियर में डाल कर उसे तूफान की तरह भगाती हुई वह नियत समय से बहुत कम समय में अपने फार्महाउस पहुॅच गई। फार्महाउस के अंदर दाखिल होकर रितू ने पोर्च के नीचे जाकर जिप्सी को रोंक दिया।

"ये कौन सी जगह है रितू?" नैना ने हैरानी से इधर उधर देखते हुए कहा___"ये तू कहाॅ ले आई है मुझे?"
"अपने एक अलग घर में बुआ।" रितू ने कहा___"जहाॅ पर अपना अलग एक नया संसार बसता है।"

"एक नया संसार?" नैना चकरा सी गई, बोली___"इसका क्या मतलब हुआ भला?"
"आईये अंदर चलते हैं।" जिप्सी से उतरते हुए रितू ने कहा___"अब से आप यहीं रहेंगी।"
"ये तुम क्या कह रही हो बेटा?" नैना चकित स्वर में बोली___"मैं यहीं रहूॅगी? मगर क्यों रितू? ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम मुझे यहाॅ लेकर आई हो। आख़िर बात क्या है? क्या छुपा रही है तू मुझसे? देख रितू मुझे सारी बात सच सच बता, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।"

"अब आपको किसी भी बात के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं है बुआ।" रितू ने पिछली सीट से नैना का बैग निकालते हुए कहा__"ये अपना ही घर है। यहाॅ पर आपको किसी बात का कोई ख़तरा नहीं है।"

"खतरा???" नैना का दिमाग़ मानो कुंद सा पड़ता चला गया, बोली___"आख़िर तू किस खतरे की बात कर रही है रितू? मुझे भला किससे खतरा है और किस बात का खतरा है? मुझे बता बेटा, वरना तेरी इन बातों से मैं पागल हो जाऊॅगी।"

"सब बताऊॅगी बुआ।" रितू ने कहा__"अंदर तो चलिए।"
रितू की इस बात से हैरान परेशान नैना किसी यंत्र चालित सी होकर रितू के पीछे पीछे अंदर की तरफ चल पड़ी।

अंदर पहुॅचते ही उन्हें हरिया काका की बीवी बिंदिया मिल गई।
"अरे बिटिया आ गई तुम?" बिंदिया ने बड़े प्यार और सम्मान से कहा___"और ये तुम्हारे साथ में बीवी जी कौन हैं?"

"काकी ये मेरी छोटी बुआ हैं।" रितू ने कहा___"और आज से ये यहीं रहेंगी। इनका हर तरह से ख़याल रखना।"
"इसमें कहने वाली कौन सी बात है बिटिया?" बिंदिया ने कहा___"मेरे लिए तो ये भी तुम्हारी तरह ही हैं।"

"इनके लिए मेरे बगल वाले कमरे को अच्छी तरह साफ कर दीजिए।" रितू ने कहा__"तब तक मैं इन्हें अपने कमरे में लिये जा रही हूॅ। और हाॅ जल्दी से गरमा गरम नास्ता भी तैयार कर दीजिए।"
"सब हो जाएगा बिटिया।" बिंदिया ने कहा___"तुम बस कुछ देर का समय दो मुझे।"
"ठीक है काकी।" रितू ने कहने के साथ ही नैना की तरफ देख कर कहा___"आइये बुआ ऊपर कमरे में चलते हैं।"

रितू ने कहा तो नैना उसके पीछे चुपचाप चल दी। उसके मन में हज़ारों सवाल और हज़ारों ख़याल पैदा हो चुके थे। कमरे में पहुॅच कर रितू ने नैना को बेड पर बैठाया और खुद भी उसके बगल में बैठ गई।

"अब तो बता बेटा कि बात क्या है?" नैना ने ब्याकुलता से पूछा___"इस तरह तू मुझे यहाॅ लेकर क्यों आई है?"
"मुझे समझ नहीं आ रहा बुआ।" रितू ने सहसा गंभीर होकर कहा___"कि आपको वो सब बातें कैसे बताऊॅ और कहाॅ से बताऊॅ?"

"देख रितू तू अब कोई बच्ची नहीं रही।" नैना ने कहा___"बल्कि तू अब बड़ी हो गई है। जो भी बात है तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मुझे तू अपनी दोस्त या राज़दार समझ सकती है। मैं जातनी हूॅ कि तू कभी कोई ग़लत काम नहीं कर सकती है। मुझे तुझ पर हमेशा से गर्व रहा है। ख़ैर, तू बेझिझक बता कि ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तू मुझे इस तरह यहाॅ लेकर आई है?"

"मुझे किसी बात की भूमिका बनाना नहीं आता बुआ।" रितू ने गंभीरता से कहा__"मैं तो साफ साफ कहना जानती हूॅ। आप जानना चाहती हैं न कि मैं आपको इस तरह यहाॅ क्यों लेकर आई हूॅ यो सुनिए___हवेली में रहने वाले आपके भइया भाभी और आपका भतीजा ये तीनो ही वासना और हवस के चलते इस क़दर अंधे हो चुके हैं कि इन्हें अब ये भी नहीं दिखता कि ये लोग जिनके साथ कुकर्म करने का मंसूबा बनाए हुए हैं वो रिश्ते में इनके क्या लगते हैं।"

"ये तू क्या कह रही है रितू?" नैना की ऑखें हैरत से फैल गईं, बोली___"तुझे कुछ होश भी है कि तू किनके बारे में क्या बोल रही है?"
"होश तो अब आया है बुआ।" रितू ने भारी लहजे में कहा___"बचपन से लेकर अब तक तो मैं बेहोश ही थी। अपने उन माता पिता को देवता समझती रही जिनके हाॅथ अपने ही घर के लोगों के खून से सने हुए हैं। आपको नहीं पता बुआ, आपका भाई और मेरा बाप अपने ही भाई विजय सिंह का क़ातिल है। आज तक हम सब यही जानते रहे हैं कि विजय चाचा की मौत सर्प के काटने से हुई थी जब वो खेत में पानी लगा रहे थे। जबकि ये बात सरासर झूॅठ है बुआ। सच्चाई ये है कि मेरे बाप ने उनकी जानबूझ कर जान ली थी।"

"ये ये क्या कह रही है तू?" नैना के पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई___"नहीं नहीं अजय भइया ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये सब झूठ है रितू, कह दे कि ये सब झूठ है।"
"कैसे कह दूॅ बुआ?" रितू की ऑखें छलक पड़ी____"मैंने अपनी ऑखों से देखा है और कानों से सुना है।"

"कब देखा सुना तुमने?" नैना कह उठी।
"कल रात को।" रितू ने कहा___"और ये अच्छा ही हुआ बुआ कि मुझे अपने माता पिता की ये सच्चाई खुद उनके ही मुख से सुनने को मिल गई। कल रात मुझे नींद नहीं आ रही थी। अपने बेड पर पड़ी मैं करवॅटें बदल रही थी। फिर मुझे प्यास लगी तो मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे किचेन में पानी पीने के लिए आई। पानी पीकर जब मैं वापस अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो देखा कि गौरी चाची की तरफ जाने वाला पार्टीशन का दरवाजा खुला हुआ था। मैने सोचा ये खुला हुआ क्यों है आज। बस यही पता करने के लिए मैं उस तरफ चली गई। मगर मुझे क्या पता था कि उस तरफ मुझे कुछ ऐसा देखने सुनने को मिलेगा जिसे देख सुन कर मेरे पैरों तले से धरती गायब हो जाएगी।"

"ऐसा क्या देखा सुना तुमने?" नैना बेयकीनी भरे भाव से पूछा था। उसकी बात सुन कर रितू उसे वो सब कुछ बताती चली गई जो कुछ उसने उस तरफ कमरे के अंदर देखा और सुना था। उसने एक एक बात नैना को बताई। सारी बातें सुनने के बाद नैना की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी। फिर जैसे उसे खुद ही होश आया। उसका चेहरा पलक झपकते ही दुख और पीड़ा में डूबता चला गया। ऑखों से झर झर करके ऑसू बहने लगे।

"इतना बड़ा पाप।" फिर वह बिलखते हुए बोली___"और इतना बड़ा गुनाह किया इन लोगों ने मेरे देवता जैसे भाई के साथ। अरे उसके साथ ही क्यों रे, इन लोगों ने तो किसी को भी नहीं बक्शा। अपने पाप और गुनाह को छुपाने के लिए मेरे भाई की सर्प से कटवा कर जान ले ली। मेरी देवी समान भाभी गौरी पर इतने संगीन इल्ज़ाम लगाए और उन्हें हवेली से निकाल दिया। इन लोगों ने तो हवेली को नर्क बना कर रख दिया है रितू। अच्छा हुआ तू मुझे यहाॅ ले आई। वरना इन लोगों का कोई भरोसा नहीं था कि ये लोग कब मेरी या तुम्हारी इज्ज़त के साथ अपनी हवस की भूख को शान्त करते।"

"मुझे नफ़रत हो गई है बुआ अपने माॅ बाप और भाई से।" रितू ने कहा___"मैं तो कल ही अपने रिवाल्वर से इन तीनो को जान से मार देना चाहती थी मगर मेरे ज़मीर ने रोंक दिया मुझे। ये कह कर कि इनको जान से मारने का अधिकार मुझको नहीं बल्कि उसे है जिनके साथ इन लोगों ने ग़लत किया है। कसम से बुआ, मुझे ऐसे माॅ बाप और भाई के मर जाने का लेश मात्र भी दुख नहीं होगा।"

"मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा रितू कि ये सब इन लोगों ने किया है।" नैना ने दुखी भाव से कहा___"पता नहीं मेरी देवी समान गौरी भाभी और उनके दोनो बच्चे किस हाल में होंगे? जिस तरह से इन लोगों उन पर अत्याचार किया है न उसकी इन्हें सज़ा ज़रूर मिलेगी। ईश्वर के पास सबका हिसाब है। उसका क़हर जब इन पर बरपेगा न तो इनके जिस्मों पर कीड़े पड़ जाएॅगे।"

"वो लोग मुम्बई में जहाॅ भी होंगे यहाॅ से बहुत अच्छे होंगे बुआ।" रितू ने कहा___"और आपको पता है आज मेरा वो भाई आ रहा है जिसे मैने कभी अपना भाई नहीं समझा था। लेकिन वो पगला हमेशा मुझे इज्ज़त से दीदी ही कहा करता था। मेरा सच्चा भाई आ रहा है बुआ। मेरा राज आ रहा है मुम्बई से।"

"क्या?????" नैना उछल पड़ी___"मगर तुझे कैसे पता?"
"पता तो होगा ही बुआ।" रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आख़िर बुलवाया तो मैने ही है उसे।"
"ये क्या कह रही है तू?" नैना ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"तूने उसे बुलवाया है? ये जानते हुए भी कि तुम्हारे बाप से उसकी जान को खतरा है?"

"उसे कुछ नहीं होगा बुआ।" रितू ने दृढ़ता से कहा___"उसकी तरफ आने वाली हर बाधा हर मौत को सबसे पहले मुझसे मिलना होगा। कसम से बुआ अगर खुद मेरा बाप उसकी मौत बन उसके पास आया तो मौत रूपी उस बाप को भी मैं जीवित नहीं छोंड़ूॅगी।"

"लेकिन तूने उसे बुलवाया किस लिए है रितू?" नैना ने कहा___"आख़िर बात क्या है?"
"उसकी भी अजब कहानी है बुआ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"पगले का नसीब तो देखो। कहीं पर भी उसे प्यार और खुशियाॅ नसीब नहीं हुईं। दुख दर्द ने तो जैसे उसका दामन ही थाम रखा है।"

"क्या कह रही तू?" नैना ने ना समझने वाले भाव से कहा___"साफ साफ बता कि बात क्या है?"
"बुआ, मेरा भाई विराज एक खूबसूरत लड़की से प्यार करता था।" रितू दुखी लहजे में बोली___"मगर बाद में उस लड़की ने उसे छोंड़ दिया। और अब वहीं लड़की उसे अंतिम बार देखना चाहती है।"

"अंतिम बार???" नैना का दिमाग़ चकरा गया___"इसका क्या मतलब हुआ?"
रितू ने नैना को सारी बातें बताई। ये भी बताया कि उस लड़की का कुछ दिनों पहले गैंग रेप हो चुका है। रितू ने बताया कि कैसे उस लड़की ने विराज को छोंड़ा था और अब लास्ट स्टेज के कैंसर से अंतिम साॅसें ले रही है। वो चाहती है कि अंत समय में वो अपने महबूब को देख ले और उसी की बाहों में उसका दम निकले। सारी बातें सुनने के बाद नैना एकदम अवाक् रह गई। उसकी ऑखों में फिर से ऑसुओं का सैलाब सा आ गया।

"हे भगवान ये सब क्या कर रहा है तू?" नैना ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा___"मेरे बच्चे को कितना दुख संताप देगा तू। रितू, वो विधी को उस हाल में देख नहीं पाएगा। भगवान ही जाने क्या गुज़रेगी उस वक्त उसके दिल पर। ये प्यार मोहब्बत होती ही ऐसी चीज़ है बेटा कि इंसान को कमज़ोर दिल का बना देती है। खुद पर चाहे हज़ार चोंट खा ले इंसान मगर अपने प्रियतम के लिए वो छोटी से छोटी चोंट भी बरदास्त नहीं कर पाता। तू उसके पास ही रहना बेटा। नहीं तो तू मुझे ले चल उसके पास। मैं अपने भतीजे को उस वक्त सम्हालूॅगी। मैं उसे किसी भी कीमत पर बिखरने नहीं दूॅगी रे।"

"बस ईश्वर से दुवा कीजिए बुआ कि सब ठीक ही रहे।" रितू ने भारी स्वर में कहा__"मैं अपने भाई के पास ही रहूॅगी। मैं उसे अपने सीने से लगा लूॅगी बुआ लेकिन उसे बिखरने नहीं दूॅगी।"
"मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है रितू।" नैना ने रितू के चेहरे को अपनी दोनो हथेलियों के बीच लेकर कहा____"आज तुझे अपने उस भाई के लिए इतना प्यार और इतनी तड़प देख कर मुझे खुशी हुई, जिस भाई को तूने कभी अपना नहीं समझा था।"

"वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी और नादानी थी बुआ।" रितू की ऑखों में ऑसू भर आए, बोली___"जो मैने अपने पारस जैसे भाई को कभी अपना नहीं समझा था। लेकिन इसमें भी मेरा कोई कसूर नहीं है बुआ। ये सब तो मेरे उन्हीं माॅ बाप की वजह से हुआ है जिन्होंने बचपन से हम बहन भाई को यही सिखाते रहे कि ये हमारे अपने नहीं हैं बल्कि ये बुरे लोग हैं। मगर कहते हैं न बुआ कि सच्चाई हमेशा के लिए पर्दे के पीछे छुपी नहीं रह सकती। वो एक दिन उस पर्दे से निकल कर हमारे सामने आ ही जाती है। आज मुझे पता चल चुका है कि अच्छा कौन है और बुरा कौन है? जीवन भर दूसरों को बुरा बताने वाला आज खुद मेरे सामने कितना बुरा और पापी निकला जिसकी कोई सीमा नहीं है। जो बाप अपनी ही बेटी बहू और बहन को अपने नीचे सुलाने की बात करे वो अच्छा कैसे हो सकता है बुआ। वो तो सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पापी है, कुकर्मी है। ऐसे लोगों को इस धरती पर जीने का कोई अधिकार नहीं है।"

"बड़े बड़े पापी और कुकर्मियों का इस धरती से सर्वनाश हुआ है बेटी।" नैना ने कहा__"फिर ये कैसे जीवित बच जाएॅगे। इनका भी वही हस्र होगा जो कंस और रावण का हुआ था। ख़ैर, तू ये बता कि विराज कब पहुॅच रहा है यहाॅ? और तूने उसकी सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किया है?"

"मैने उसकी सुरक्षा के लिए इंतजाम कर दिया है बुआ।" रितू ने कहा___"रेलवे स्टेशन पर सिविल वेश में पुलिस के आदमी मौजूद हैं। मुझे पवन ने फोन पर बताया था कि वो ट्रेन से उतरने के बाद किसी टैक्सी में हल्दीपुर आएगा।उसने ऐसा शायद इस लिए किया है कि डैड के आदमी अगर वहाॅ कहीं हों भी तो वो सब उसे बस में ढूॅढ़ेंगे, जबकि उसके टैक्सी से आने की वो लोग उम्मीद भी न करेंगे।"

"मेरा भतीजा होशियार है।" नैना ने खुश होकर कहा___"बहुत अच्छा सोचा है उसने। ख़ैर, अब तू क्या करने वाली है?"
"मैं पवन के फोन का इन्तज़ार करूॅगी।" रितू ने कहा___"क्योंकि विराज सीधा पवन के घर ही जाएगा। इधर मैं हास्पिटल विधी के पास जाऊॅगी। उधर से सब कुछ ठीक करने बाद मैं पवन को फोन कर दूॅगी कि अब वो विराज को लेकर हास्पिटल आ जाए। मैने हास्पिटल के चारो तरफ भी सिविल ड्रेस में पुलिस वालों को मौजूद रहने के लिए कह दिया है।"

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" नैना ने कहा___"और मुझे यकीन है कि तेरे रहते विराज को कुछ नहीं होगा।"
"मैं अपनी जान दे दूॅगी बुआ।" रितू ने दृढ़ता से कहा___"मगर अपने भाई को खरोंच तक आने नहीं दूॅगी।"

"क्या इतना प्यार करती है तू अपने उस भाई से?" नैना की ऑखें भर आईं थी।
"ऐसे भाई को तो सिर्फ प्यार ही किया जाता है न बुआ?" रितू के जज़्बात बेकाबू से हो गए, खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाल कर कहा उसने___"अगर कहीं भगवान मिले मुझे तो उससे यही कहूॅगी कि मुझे हर जन्म में विराज जैसा ही भाई दे और शिवा के जैसा भाई किसी बैरी को भी न दे।"

नैना ने तड़प कर रितू को अपने सीने से लगा लिया। दोनो की ऑखों से ऑसुओं के वो बाॅध फूट पड़े जो भावनाओं और जज़्बातों के मचल उठने से बेकाबू से हो गए थे। अभी ये दोनो एक दूसरे के गले ही लगे थे कि तभी कमरे में बिंदिया ने प्रवेश किया।

"बिटिया, नास्ता तैयार कर दिया है मैने चलो नास्ता कर लो।" बिंदिया ने कहा___"और हाॅ इनका कमरा भी साफ कर दिया है मैने।"

बिंदिया की बात सुन कर दोनो अलग हुईं और बड़ी सफाई से अपनी अपनी ऑखों से दोनो ने ऑसुओं को साफ कर लिया।
"आप चलिए काकी।" रितू ने कहा___"हम बस दो मिनट में आते हैं।"
"ठीक है बिटिया।" बिंदिया ने कहा और दरवाजे से वापस पलट गई।

बिंदिया के जाने के बाद नैना और रितू दोनो ही बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। बाथरूम में पानी से अपने अपने चेहरों को धोने के बाद वो दोनो वापस कमरे में आईं और हुलिया सही करने के बाद नास्ते के लिए कमरे से बाहर चली गईं।

"काकी, आज काका कहीं दिखाई नहीं दिये अब तक।" नास्ते की टेबल पर बैठी रितू ने बिंदिया से कहा___"बाहर गेट पर सिर्फ शंकर काका ही दिखे थे।"
"अरे बिटिया अब क्या बताऊॅ तुमसे।" बिंदिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"वो तो जब देखो उन चारों की खातिरदारी में ही लगा रहता है। तुमने काम जो सौंपा हुआ है उसे।"

"कौन चारो?" नैना को समझ न आया था इस लिए पूछ बैठी थी, बोली___"और किनकी खातिरदारी?"
"उन्हीं चारों की बुआ जिन्होंने विधी के साथ कुकर्म किया था।" रितू ने कहा___"वो सब बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलादें हैं। जैसे कुकर्मी बाप वैसे ही कुकर्मी बेटे हैं। विधी के साथ इन लोगों जो कुकर्म किया उसके लिए उन चारों को कानूनी तौर पर मैं कोई सज़ा नहीं दिला सकती थी, क्योंकि वो सब अपने बाप की ऊॅची पहुॅच और ताकत के बल पर बड़ी आसानी से कानून की गिरफ्त से निकल जाते। ऐसे में विधी के साथ इंसाफ नहीं हो पाता बुआ इस लिए कानून की रखवाली करने वाली आपकी इस बेटी ने कानून को अपने हाॅथ में लेकर खुद उन चारों को सज़ा देने का फैंसला किया। ये इसी फैंसले का नतीजा है कि वो चारो आज यहाॅ पिछले कई दिनों से रोज़ाना सज़ा के रूप में यातनाएॅ झेल रहे हैं। और मज़े की बात ये है बुआ कि किसी को इस बात की भनक तक नहीं है कि यहाॅ पर किसी को ऐसी सज़ा दी जा रही है। इनके बाप लोगों को यही लगता है कि उनके बेटे कहीं बाहर गए हुए हैं और मज़े में होंगे।"

"ये तो तुमने बहुत अच्छा काम किया है रितू।" नैना ने कहा___"लेकिन अगर इन लोगों के बापों को पता चल गया कि उनके बेटों के साथ तुम यहाॅ क्या कर रही हो तब क्या होगा?"
"उसका भी पुख्ता इंतजाम कर रखा है मैने।" रितू ने कहा___"बहुत जल्द इन लोगों के बापों को भी ऐसी ही सज़ा देने वाली हूॅ मैं। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि इन नामों के लोगों के साथ किसने क्या किया है।"

नैना, रितू के चेहरे को देखती रह गई अचरज भरी नज़रों से। से यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी फूल जैसी नाज़ुक सी भतीजी ऐसे खतरनाक काम भी करती है। ख़ैर, नास्ता करने के बाद रितू ने नैना से जाने की इजाज़त ली और बाहर की तरफ निकल गई जबकि नैना मन ही मन ईश्वर को याद कर रितू और विराज की सलामती की दुवाएं करने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर ट्रेन अपने निर्धारित समय पर ही गुनगुन स्टेशन पर पहुॅची थी। ट्रेन से उतरने से पहले मैने अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लिया था। मेरे साथ मेरा नया दोस्त आदित्य था। उसको अपना चेहरा ढॅकने की कोई ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि उसे यहाॅ पर कोई पहचानता ही नहीं था। हम दोनो ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले।

प्लेटफार्म पर इधर उधर मैने सरसरी तौर पर अपनी नज़रें दौड़ाई तो सहसा एक ऐसे चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी जो यकीनन बड़े पापा का आदमी था। वो एग्जिट गेट के दाएॅ तरफ खड़ा हर आने वालों को बड़े ध्यान से देख रहा था। मैने उसकी तरफ से अपनी निगाह हटा ली और बेफिक्र होकर एग्जिट गेट की तरफ बढ़ चला। एग्जिट गेट के पास जब मैं और आदित्य पहुॅचे तो सहसा टीटी ने हमें रोंक लिया और हमसे टिकट दिखाने को कहने लगा। मैने जल्दी से अपने पाॅकेट से अपना पर्स निकाला और उससे टिकट निकाल कर टीटी को पकड़ा दिया। मैने पल भर के लिए दाएॅ तरफ कुछ ही दूरी पर खड़े बड़े पापा के उस आदमी की तरफ देखा। वो आने वाले आदमियों की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था। मैं ये नहीं जानता कि उसने मेरी तरफ देखा था या नहीं मगर इस वक्त उसकी नज़र सामने से आने वाले अन्य यात्रियों की तरफ ही थी। इधर टीटी ने मेरी टिकट चेक करने बाद मुझे वापस लौटा दी तो मेरे पीछे आदित्य ने भी टीटी को अपनी टिकट थमा दी। टीटी आदित्य की टिकट देखने बाद आदित्य को वापस कर दिया। मैने इशारे से आदित्य को चलने का इशारा किया। तभी उस ब्यक्ति की नज़र मुझ पर पड़ी। वो मुझे ध्यान से देखने लगा। मैं उसके देखने पर एकदम से घबरा सा गया मगर फिर जल्द ही मैने खुद को सम्हाला और आदित्य को लेकर बाहर की तरफ बढ़ गया। मैं पीछे नहीं देखना चाहता क्योंकि मुझे अंदेशा था कि वो शायद मुझे ही देख रहा होगा और गर मैने पलट कर उसकी तरफ देखा तो उसे ज़रूर मुझ पर शक हो सकता है।

बाहर आकर मैं और आदित्य टैक्सी की तरफ तेज़ी से बढ़ चले। हलाॅकि वहाॅ पर बहुत से लोगों की भीड़ थी इस लिए मुझे यकीन था कि वो आदमी इतना जल्दी मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। टैक्सी के पास पहुॅचा ही था एक आदमी हमारे पास आया और हमसे टैक्सी का पूॅछा तो हमने तुरंत उस आदमी को हाॅ कह दिया। आदमी हमारी हाॅ सुनते ही हमे लेकर अपनी टैक्सी के पास पहुॅचा और टैक्सी का गेट खोल कर हमें अंदर बैठने का इशारा किया। हम दोनो उसमे बैठ गए तो वो टैक्सी ड्राइवर भी स्टेयरिंग सीट पर बैठ गया।

"कहाॅ चलना है साहब?" ड्राइवर ने टैक्सी को स्टार्ट करते हुए पूछा।
"हल्दीपुर।" मैने कहा तो ड्राइवर ने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया। मैने पलट कर स्टेशन की तरफ देखा तो मुझे बड़े पापा का वो आदमी कहीं नज़र न आया। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने हड़बड़ा कर मोबाइल को निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा। पवन का फोन था। मैने काल रिसीव की तो वो मुझसे पूछने लगा कि मैं इस वक्त कहाॅ हूॅ तो मैने उसे बता दिया कि टैक्सी में बैठ कर हल्दीपुर के लिए निकल लिया हूॅ। मेरी बात सुन कर उसने कहा कि ठीक है वो मुझे हल्दीपुर के बस स्टैण्ड पर मिलेगा जहाॅ पर उसकी दुकान है। उसके बाद मैने काल कट कर दी।

"यहाॅ से कितना समय लगेगा तुम्हारे गाॅव पहुॅचने में?" आदित्य ने मुझसे पूछा।
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे का समय लगेगा।" मैने कहा___"हल्दीपुर के बस स्टैण्ड से पवन को साथ में लेकर ही उसके घर चलेंगे।"

मेरी बात सुन कर आदित्य कुछ न बोला। मैने एक बार पीछे मुड़ कर टैक्सी के पिछले शीशे के उस पार देखा। एक जीप हमारी इस टैक्सी के पीछे आ रही थी। मैने सोचा होगा कोई। मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि इस तरह कोई जीप वाला एक रिदम पर टैक्सी के पीछे चल रहा था। मैने कई बार नोट की वो जीप हमादे पीछे उतनी ही रफ्तार से चलती हुई आ रही थी। मुझे समझ न आया कि ऐसा कौन हो सकता है उस जीप में जो हमारे पीछे पीछे उतनी ही गति से आ रहा था जितनी गति से हमारी टेक्सी सड़क पर दौड़ी जा रही थी। मेरा माथा ठनका कि कौन हो सकता है उस जीप में?????
Reply
11-24-2019, 12:48 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर अजय सिंह हवेली से फैक्ट्री जाने के लिए निकल ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। अजय सिंह ने कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे भीमा नाम को देख कर तनिक चौंका। उसने तुरंत ही काल को रिसीव कर मोबाइल को कानों से लगा लिया।

"हाँ भीमा बोलो क्या ख़बर है?" कान से लगाते ही अजय सिंह ने ज़रा उत्सुक भाव से बोला था।
"............. ।" उधर से कुछ कहा भीमा ने।
"ये तुम क्या कह रहे हो भीमा?" अजय सिंह ने तनिक चौंकते हुए कहा था___"वो भला यहाँ क्यों आएगा अब? तुमने अच्छी तरह से उसे देखा है न?"

".............।" उधर से भीमा ने कुछ कहा।
"तो ख़ाक़ देखा तुमने।" अजय सिंह का लहजा एकाएक कठोर हो गया___"तुमको खुद ठीक तरह से यकीन नहीं है उसका। पहले तुम उसे अच्छी तरह से देखो और जब तुम उसे पहचान जाओ तब हमे बताओ।"

".............।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"ऐसे नहीं भीमा।" अजय सिंह परेशान से लहजे में बोला___"हमें पक्के तौर पर ख़बर चाहिए। हवा में लाठियाॅ मत घुमाओ समझे। तुम्हें उसके आने का सिर्फ अंदेशा है। जबकि हम ये अच्छी तरह जानते हैं कि उस कायर और डरपोंक में अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो इस गाँव में क़दम भी रख सके। उसे भी पता है कि यहाँ क़दम रखते ही उसकी जान उसके जिस्म से जुदा हो जाएगी। दूसरी बात ये है कि यहाँ वो आएगा ही क्यों? अपनी माँ और बहन की वजह से आता था वो, मगर अब तो वो दोनो उसके पास ही हैं। इस लिए अब उसके यहाँ आने का कोई सवाल ही नहीं उठता।"

"..........।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"सिर्फ शक के आधार पर तुम हमें ये बता रहे हो भीमा।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा___"पर अगर तुम्हें लगता है कि वो वही था तो ठीक है तुम उसका पीछा करो। पता करो वो कहाँ जाता है और किससे मिलता है?"

"...........।" भीमा ने कुछ कहा।
"तुम सब के सब निकम्मे हो।" अजय सिंह एकाएक बेहद गुस्से में बोला___"जब तुम्हें उस पर शक हो ही गया था तो उसका पीछा करते तुम।"
"...........।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"अरे तो कैसे गायब हो गया वो?" अजय सिंह चीखा___"वो ज़रूर किसी बस में या ऑटो में बैठ कर वहाँ से निकल गया होगा। इतना जल्दी कोई गायब नहीं होता भीमा। वो यकीनन वही था। उसने तुम्हें पहचान लिया होगा और इसी लिए वो तुम्हारी नज़रों से इतना जल्दी ओझल हुआ है। मगर उसके साथ दूसरा वो आदमी कौन हो सकता है?"

"..............।" भीमा ने कुछ कहा।
"हाँ शायद यही बात है।" अजय सिंह ने थोड़ा नरमी से कहा___"तुमने उसके साथ किसी अजनबी को देखा इसी लिए तुम्हारे मन में दो तरह के विचार पैदा हुए। तुमने सोचा होगा कि किसी अजनबी के साथ उसका क्या काम? इसी में तुम चूक गए भीमा। ख़ैर, कोई बात नहीं। अगर वो मुम्बई से यहाँ आया है तो यकीनन वो गाँव की ही तरफ आएगा। इस लिए अपने आदमियों से कहो कि फटाफट सारे रास्तों पर फैल जाएॅ और गाँव के रास्तों पर भी घेराबंदी कर लें। वो ज़रूर किसी बस या ऑटो में ही होगा। हर वाहन की अच्छी तरह से तलाशी लो। साला जाएगा कहाँ हमसे बच कर?"

"..........।" भीमा ने कुछ कहा।
"चलो अच्छी बात है।" अजय सिंह ने कहा___"जैसे ही वो मिले हमें ख़बर कर देना और हाँ उसे पकड़ कर सीधा हमारे पास हवेली लेकर आना। हम भी फैक्ट्री ही जा रहे थे मगर अब नहीं जाएॅगे। यहीं तुम लोगों का इन्तज़ार करेंगे हम।"

ये कह कर अजय सिंह ने मोबाइल से काल कट कर दी और फिर अपने नथुने फुलाते हुए खुद ही बड़बड़ाया___"आ बेटा आ। तेरा स्वागत हम ऐसा करेंगे कि सारी दुनियाॅ हमारे स्वागत कार्यक्रम की कायल हो जाएगी। हाहाहाहाहा आ सपोले जल्दी आ।"

अभी अजय सिंह अपनी ही बातों से हॅस ही रहा था कि तभी वहाँ पर प्रतिमा आ गई। उसके साथ में शिवा भी था।
"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"अकेले अकेले ही मज़े ले रहे हो। मगर किस बात पर? हमे भी तो बताओ आख़िर माज़रा क्या है?"

"अभी हमारे एक आदमी का फोन आया था डार्लिंग।" अजय सिंह ने शिवा की मौजूदगी में भी उसे डार्लिंग कहा___"उसने हमें बताया कि विराज यहाँ आ रहा है।"
"क्याऽऽऽ???" प्रतिमा सोफे पर बैठी इस तरह उछल पड़ी थी जैसे अचानक ही उसके पिछवाड़े पर किसी ने गर्म तवा रख दिया हो, बोली___"ये क्या कह रहे हो तुम? वो रंडी का जना यहाँ किस लिए आ रहा है?"

"उसे उसकी मौत यहाँ ला रही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"किसी ने सच ही कहा है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की तरफ भागता है। वही हाल उस हरामज़ादे का है। उसकी भी मौत आई हुई है इसी लिए वो भागता हुआ यहाँ आ रहा है।"

"अच्छा ही तो है डैड।" सहसा शिवा भी गर्मजोशी से कह उठा___"आने दीजिए उस हराम के पिल्ले को। उससे गिन गिन के हिसाब लूॅगा मैं। उस दिन उसने मुझे बहुत मारा था न, आज उस सबका हिसाब मैं लूॅगा। वो मेरा शिकार है डैड, आप उसे मेरे हवाले करेंगे। मुझसे प्राॅमिस कीजिए डैड।"

"तुम्हारे हवाले उसे ज़रूर करूॅगा बेटे लेकिन उसे अधमरा करने के बाद।" अजय सिंह ने कहा___"क्योंकि अधमरी हालत में वो तुमसे जीत नहीं पाएगा। वरना बेहतर हालत में तो तुम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे।"
"डैड आप मुझे उससे कमज़ोर समझते हैं क्या?" शिवा की भृकुटी तन गई___"वो तो उस दिन मेरा दिन ही ख़राब था डैड इस लिए वो मुझे मार सका था। वरना तो वो मेरे सामने कुछ भी नहीं है।"

"दिन ख़राब नहीं होते बेटे।" अजय सिंह ने खिसियाते हुए कहा___"वो तो सब एक जैसे ही होते हैं। रही बात उसकी कि तुम्हारे सामने वो कुछ भी नहीं है तो ये बात तुम खुद को उससे ऊॅचा दर्शाने के लिए कह रहे हो। जबकि सच्चाई तुम भी जानते हो कि अकेले तुम उसका बाल भी बाॅका नहीं कर पाओगे। ख़ैर जाने दो।"

अजय सिंह की इन बातों पर शिवा बगले झाॅकने लगा था। कदाचित उसे समझ आ गया था कि उसकी डींगें महज बकवास के सिवा कुछ भी नहीं है। सच्चाई यही है कि विराज का अकेले वो बाल भी बाॅका नहीं कर सकता था। ये बात उसका बाप भी बखूबी समझ चुका था।

"लेकिन अजय वो यहाँ आ किस लिए रहा है?" प्रतिमा ने कहा___"उसके यहाँ आने की कोई ठोस वजह मुझे तो दूर दूर तक समझ में नहीं आ रही।"
"कोई तो वजह होगी ही प्रतिमा।" अजय सिंह ने सोचते हुए कहा___"मत भूलो कि अभय भी मुम्बई गया हुआ है। हम ये नहीं जानते कि इतने दिनों से वो वहाँ क्या कर रहा है? उसे विराज मिला भी है कि नहीं। पर आज की सिचुएशन को देखा जाए तो यही लगता है कि अभय को विराज और विराज की माँ बहन मिल चुकी हैं। उन लोगों ने अभय को और अभय ने उन लोगों को आपस में सारी बातें बताई होंगी।"

"पर उनकी उन बातों से विराज के यहाँ आने का क्या कनेक्शन हो सकता है?" प्रतिमा ने तर्क दिया।
"ये तो अभय को भी पता चल चुका होगा कि हमारी असलियत क्या है?" अजय सिंह ने समझाने वाले अंदाज़ में कहा___"गौरी से सारी बातें जानने के बाद अभय को लगा होगा कि वो तो यहाँ से मुम्बई चला आया है लेकिन उसके बीवी बच्चे तो अभी भी गाँव में ही हैं। अभय समझता होगा कि उसके बीवी बच्चों को मुझसे बड़ा भारी खतरा है, इस लिए उसका पहला काम यही होगा कि वो अपने बीवी बच्चों को या तो भरपूर तरीके से सुरक्षित करे या फिर किसी तरह वो उन्हें भी अपने पास मुम्बई बुला ले। लेकिन सवाल ये पैदा हुआ होगा कि उसके बीवी बच्चों को यहाँ से लेकर कौन जाएगा वहाँ? इस लिए उसने विचार विमर्ष करके विराज को उन्हें लाने के लिए भेजा होगा।"

"तुम्हारी बातें और तुम्हारी सोच अपनी जगह यकीनन सही हैं अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर, अगर तुम्हारी बातों के अनुसार सोचा जाए तो इन बातों में भी एक पेंच है। वो ये कि उस सूरत में अभय ये कभी नहीं चाहेगा कि विराज की जान को कोई खतरा हो जाए। ये तो वो भी समझ ही गया होगा कि विराज की जान को हमसे खतरा है। इस लिए अपने बीवी बच्चों को यहाँ से ले जाने के लिए वो विराज को वहाँ से हर्गिज़ नहीं भेजेगा, और अगर भेजना चाहेगा भी तो गौरी विराज को यहाँ आने ही नहीं देगी। इस सिचुएशन में जान को खतरे में डालने का काम खुद अभय ही करेगा। वो खुद यहाँ आकर अपने बीवी बच्चों को यहाँ से ले जाना उचित समझेगा ना कि विराज को भेजना।"

"ये बात भी सही है।" अजय सिंह को मानना पड़ा कि प्रतिमा का तर्क भी अपनी जगह बेहद पुख्ता है, बोला___"लेकिन ये भी सच है कि विराज के यहाँ आने की कोई न कोई ठोस वजह तो ज़रूर है। बेवजह अपनी जान को जोखिम में डालने की मूर्खता ना तो वो खुद करेगा और ना ही उसकी माँ या उसका चाचा उसे करने की इजाज़त देंगे।"

"बिलकुल सही कहा।" प्रतिमा ने कहा__"तो सवाल ये है कि वो आख़िर यहाँ आ किस वजह से रहा है?"
"वजह कोई भी हो उसके आने की।" अजय सिंह ने कहा___"हमारे लिए अच्छी बात यही है कि जिसे हम महीनों से खोज रहे थे वो खुद ही चल कर हमारे पास आ रहा है। वो हमारे हाँथ लग जाएगा तो बाॅकी के उसके चाहने वाले भी हमारे पास सिर के बल दौड़ते हुए आ जाएॅगे। अब तो मज़ा आएगा प्रतिमा। हर कोई हमारे हाथ में खुद ही चला आएगा। फिर हम अपने तरीके से उनके साथ कुछ भी कर सकेंगे। बस एक ही बात की चिंता है कि रितू इन सबके बीच टपक न पड़े। वो पुलिस वाली है और ईमानदार पुलिस अफसर भी है वो। इस लिए उसके रहते हमारे लिए समस्या भी हो सकती है।"

"अब कोई भी समस्या आए डैड।" शिवा कह उठा___"ऐसा सुनहरा मौका अपने हाँथ से जाने नहीं देंगे हम। अगर हमारे इस अच्छे काम के बीच समस्या बन कर रितू दीदी आएॅगी तो उनका भी हिसाब किताब कर दिया जाएगा।"

"पहली बार अकल वाली बात की है तुमने बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"ये यकीनन हमारे लिए सुनहरा मौका ही है। अगर विराज हमारे हाँथ लग जाएगा तो उसके सभी चाहने वाले अपने आप ही चल कर हमारे पास आ जाएॅगे। इस लिए इस सुनहरे मौके पर हम किसी भी समस्या को तुरंत खत्म कर देने से पीछे नहीं हटेंगे।"

"तो क्या तुम अपनी बेटी को जान से मार दोगे अजय?" प्रतिमा अंदर ही अंदर काॅप गई थी।
"ऐसा तो सिर्फ तब होगा डियर।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"जब हमारे पास ऐसा करने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही न बचेगा।"

प्रतिमा देखती रह गई अजय सिंह को। उसकी बातों से उसके जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ खड़ा हो गया था। उसकी ऑखों के सामने उसकी सुंदर सी बेटी रितू का खूबसूरत चेहरा कई बार फ्लैश कर उठा। इस एहसास ने ही उसे अंदर तक हिला कर रख दिया कि उसकी बेटी को उसका ही बाप जान से मार भी सकता है। एक पल के लिए उसकी ऑखों के सामने रितू का मृत शरीर खून से लथपथ ज़मीन में पड़ा हुआ दिख गया उसे। ये दृष्य ऑखों के सामने चकराते ही प्रतिमा का जिस्म एकदम से ठंडा पड़ता चला गया।

"अब आगे का क्या प्रोग्राम है डैड?" तभी शिवा की आवाज़ प्रतिमा के कानों से टकराई तो जैसे उसे होश आया।
"हमने अपने आदमियों को निर्देश दे दिया है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो हर रास्तों पर घेराबंदी कर देंगे। विराज उनसे बच कर किसी भी हालत में कहीं जा नहीं सकेगा और उनके पकड़ में आ ही जाएगा। उसके बाद हमारे आदमी उसे लेकर सीधा हवेली हमारे पास आएॅगे।"

"दैट्स ग्रेट डैड।" शिवा ने खुश होकर कहा___"अब आएगा मज़ा। लेकिन डैड विराज के आने की ख़बर रितू दीदी को नहीं लगनी चाहिए। हम उसे कहीं छुपा कर रखेंगे। इस हवेली में उसे रखना मेरे ख़याल से ठीक नहीं है।"
"ये भी सही कहा तुमने बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"आज तुम्हारा दिमाग़ भी सही तरह से काम कर रहा है। मुझे इस बात से बेहद खुशी महसूस हो रही है। ख़ैर, तुम फिकर मत करो बेटे, रितू के आने से पहले ही हम विराज को ऐसी जगह छुपा देंगे जहाँ से किसी को कभी कुछ पता ही नहीं चल पाएगा। एक काम करते हैं, हम अपने आदमियों को बोल देते हैं कि वो विराज को लेकर हवेली न आएॅ बल्कि हमारे नये फार्महाउस पर लेकर पहुँचें। ऐसा इस लिए बेटे कि रितू का कोई भरोसा नहीं है कि वो कब हवेली में टपक पड़े। उस सूरत में उसे अंदेशा भी हो सकता है इन सब बातों का। पुलिस वाली है न इस लिए अगर एक बार उसके मन में शक का कीड़ा आ गया तो वो उस शक के कीड़े की कुलबुलाहट हो ज़रूर शान्त करने की कोशिश करेगी। इस लिए बेहतर यही रहेगा कि हम विराज को अपने नये फार्महाउस पर ही रखें।"

"हाँ ये ठीक रहेगा डैड।" शिवा ने कहा__"तो फिर हमें भी अब सीधा फार्महाउस ही चलना चाहिए।"
"यस ऑफकोर्स माई डियर सन।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर उसने प्रतिमा की तरफ देखते हुए कहा___"चलो डियर तैयार हो जाओ। हमें जल्द ही अपने नये फार्महाउस के लिए निकलना है।"

अजय सिंह की बात पर प्रतिमा ने हाँ में सिर हिलाया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह और शिवा वहीं ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठ कर प्रतिमा के आने का इन्तज़ार करने लगे। दोनो के चेहरे इस वक्त हज़ार वाॅट के बल्ब की तरह चमक रहे थे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर टैक्सी में बैठे हुए मैं और आदित्य आराम से बस स्टैण्ड की तरफ आए, जहाँ पर मैने पवन को भी अपने साथ टैक्सी में बैठा लिया। पवन मेरे साथ आदित्य को देख कर थोड़ा परेशान सा दिखा तो मैने उसे आदित्य के बारे में बता दिया। मेरी बात सुन कर पवन के ज़हन से परेशानी व चिंता चली गई।

मैने पवन से बहुत पूछा कि उसने मुझे इतना अर्जेन्टली क्यों बुलाया था मगर पवन ने यही कहा कि मैं खुद अपनी ऑखों से ही देख लूॅगा। बस स्टैण्ड से पवन को लेने के बाद हम अपने गाँव हल्दीपुर के लिए निकल चुके थे। इधर का रास्ता ऐसा था कि दूर दूर तक खाली ही रहता था। यहाँ रास्ते के दोनो तरफ पहाड़ थे। ऐसे पहाड़ जिनमें पेड़ पौधे या झाड़ झंखाड़ नाम मात्र के ही थे। बस स्टैण्ड से जब गाँव की तरफ आओ तो लगभग दस किलोमीटर के बाद बीच रास्ते में एक बड़ी सी नहर पड़ती थी। जिसके बीच में एक पक्का पुल बना हुआ था जो कि काफी पुराना था।

आस पास का सारा इलाका पथरीला था। बड़ी बड़ी चट्टाने थी। सड़क के दोनो तरफ की सारी ज़मीनें पथरीली और बंजर थी। एक तरफ के पहाड़ पर बाक्साइड था जिसमें पहले के समय में यहाँ से काफी सारा बाक्साइड ट्रकों में जाता था। एक बार कुछ मजदूर पहाड़ के धसने से उसी में दब कर मर गए थे जिससे बड़ा बवाल हो गया था। ठेकेदार तो अपनी जान बचा कर वहाँ से चंपत हो गया था। इसके बाद से वहाँ पर से बाक्साइड ले जाने का काम बंद करवा दिया गया था।

पहाड़ की दूसरी साइड पर एक अन्य सड़क थी जो दूसरे गाँव के लिए जाती थी। उस पुल को पार करने के बाद एक चौराहा मिलता था जिसमे से अलग अलग दिशा में अलग अलग गाँव की तरफ जाने के लिए कच्ची सड़क बनी हुई थी। हल्दीपुर जाने के लिए सीधा ही जाना होता था। किसी भी मोड़ से मुड़ने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन अगर आप मुड़ भी गए हैं तो दूसरे गाँव से भी आप एक अन्य कच्चे रास्ते से हल्दीपुर जा सकते हैं। हल्दीपुर गाँव आस पास के सभी गावों की मुख्य पंचायत था। अन्य गाॅवों की अपेक्षा हल्दीपुर गाँव में सुख सुविधा ज्यादा थी और इस सब में सबसे बड़ी बात ये थी कि आस पास के सभी गाॅवों का पुलिस थाना हल्दीपुर में ही था। हल्दीपुर कहने के लिए गाँव था वरना तो वो किसी कस्बे जैसा ही था। बस कस्बे की तरह थोड़ा शहरी ढाॅचे में ढला हुआ नहीं था।

बस स्टैण्ड से लगभग बीस किलोमीटर चलने के बाद टैक्सी से हम जैसे ही पुल के पास पहुँचने वाले थे कि दूर से ही हमें सामने की तरफ धूल उड़ाती हुई कुछ जीपें हमारी तरफ ही आती हुई दिखीं। वो सब सीधे वाले रास्ते से ही आ रही थीं। मुझे समझते देर न लगी कि ये सब जीपें असल में किसकी हो सकती हैं। मेरी नज़र पवन पर पड़ी तो वो भी सामने ही देख रहा था। उसकी हालत डर और भय से ख़राब होने लगी थी।

"राज ये ये तो।" पवन ने सहमे हुए लहजे में कहा___"ये तो तेरे बड़े पापा की ही जीपें लगती हैं। लगता है उन्हें तेरे आने का पता चल गया है। मगर मगर कैसे? कैसे पता चल गया उन्हें?"
"अब जो हो गया उसे छोड़ भाई।" मैने सामने की तरफ देख कर कहा___"मुझे पता है कि मेरे आने का कैसे पता चल गया होगा उस अजय सिंह को? पर कोई बात नहीं पवन। घबराने की कोई बात नहीं है। आने दे उन सबको। मैं भी तो देखूॅ कि अजय सिंह और उसके आदमियों में कितना दम है?"

"क्या हुआ भाई?" आदित्य जो कि टैक्सी की खिड़की से उस तरफ के पहाड़ों को देख रहा था, वो मेरी तरफ पलट कर बोल पड़ा था___"किसमे कितना दम है?"
"सामने देखो दोस्त।" मैने आदित्य से कहा___"जिसका मुझे अंदेशा था वही हुआ।"

"क्या मतलब?" आदित्य ने चौंकते हुए पूछा।
"ये जो सामने से कई सारी जीपें हमारी तरफ आती हुई नज़र आ रही हैं न।" मैने कठोर भाव से कहा___"ये सब मेरे बड़े पापा की ही हैं। इन सब में उनके आदमी हैं और वो खुद भी हो सकते हैं। ये सब मुझे पकड़ने के लिए आ रहे हैं।"

"ओह इसका मतलब कि ऐक्शन का समय आ गया है।" आदित्य एकदम से सतर्क भाव से कह उठा__"चिन्ता मत करना दोस्त। मेरे रहते इनमें से कोई तुम्हें छू भी नहीं सकेगा।"
"मैं जानता हूॅ दोस्त।" मैने कहा__"मगर मैं ये भी नहीं चाहता कि तुम्हें ज़रा सी खरोंच भी आए। आख़िर तुम मेरे दोस्त हो अब।"

"मैं तुम जैसा दोस्त पा कर खुश हूॅ मेरे दोस्त।" आदित्य ने सहसा भावपूर्ण लहजे में कहा___"इस लिए मुझे अब किसी भी चीज़ के लिए रोंकना मत। बहुत दिनों बाद किसी अपने के लिए दिल से कुछ करने का मौका मिला है।"
"फिर भी दोस्त।" मैने आदित्य के कंधे पर हाँथ रखते हुए कहा___"मैं तुम्हें अकेले कुछ नहीं करने दूॅगा। बल्कि मैं भी तुम्हारे साथ ही इन सबका मुकाबला करूॅगा।"

"नहीं विराज।" आदित्य बोला___"ये सब तुम्हारे बस का काम नहीं है। अगर तुम्हें मेरे रहते कुछ हो गया तो मैं कभी भी अपने आपको मुआफ़ नहीं कर पाऊॅगा।"
"अपने इस दोस्त को इतना कमज़ोर भी मत समझो भाई।" मैने मुस्कुरा कर कहा__"अगर तुमसे ज्यादा नहीं हूॅ तो कम भी नहीं हूॅ।"

"क्या मतलब??" आदित्य ने नासमझने वाले भाव से पूछा था।
"यही कि थोड़ा बहुत मार्शल आर्ट्स मैं भी जानता हूॅ।" मैने कहा__"और मुझे खुद पर यकीन है कि मैं तुम्हारे साथ इन लोगों का डॅट कर मुकाबला कर सकता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दोस्त।" मेरी बात सुन कर आदित्य ने कहा।
हम दोनो बात कर रहे थे जबकि मेरे बगल में बैठा पवन सामने की तरफ एकटक देखे जा रहा था। आदित्य टैक्सी ड्राइवर के बगल वाली शीट पर बैठा हुआ था। तभी वो मेरे पीछे की तरफ देख कर चौंका।

"अरे हमारे पीछे भी दो गाड़ियाॅ लगी हुई हैं विराज।" आदित्य ने कहा___"क्या ये भी तुम्हारे ही बड़े पापा के आदमी हैं?"
"क्याऽऽ???" मैने बुरी तरह चौंकते हुए पीछे पलट कर देखा, और पीछे आ रही दोनो गाड़ियों को ध्यान से देखते हुए कहा__"ये तो कोई और ही हैं यार। पर हो सकता है कि इसमे भी बड़े पापा के ही आदमी हों।"

मेरे साथ साथ पवन ने भी पीछे मुड़ कर देखा था। पीछे देखने के बाद उसके चेहरे पर तनिक राहत के भाव उभरे। ये बात मैने भी नोट की। मेरा माथा ठनका। इसका मतलब पवन जानता है कि हमारे पीछे आ रही दोनो गाड़ियाॅ किसकी हैं। मेरे मन में पवन से ये बात पूछने का ख़याल तो आया मगर फिर मैने तुरंत ही उससे पूछने का अपना ख़याल ज़हन से निकाल दिया। मुझे पवन पर भरोसा था। वो मेरा बचपन का सच्चा दोस्त था। मगर इस वक्त वो हमारे पीछे आ रही गाड़ियों के बारे में जानते हुए भी मुझे कुछ न बताया था। बल्कि राहत की साॅस लेकर वह आराम से बैठ गया था। मुझे समझ न आया कि एकदम से उसमें ऐसा बदलाव कैसे आ गया?

उधर पुल को पार कर वो जीपें हमारे काफी नज़दीक पहुँच चुकी थी। मेरी नज़र अचानक ही सामने बैठे आदित्य पर पड़ी। उसने अपने बैग से एक रिवाल्वर निकाला था। मतलब साफ था कि आदित्य हर तरह से चौकन्ना और चाकचौबंद ही था। देखते ही देखते सामने से आ रही वो जीपें टैक्सी के बीस मीटर के फाॅसले पर आकर रुक गईं। बीच सड़क पर और सड़क की पूरी चौड़ाई पर दो जीपे इस तरह आकर खड़ी हो गई थी कि अब सामने से टैक्सी निकल नहीं सकती थी। उसके लिए ड्राइवर को सड़क के नीचे हल्के से ढलान पर टैक्सी को उतारना पड़ता।

हमारे पीछे आ रही दोनो गाड़ियाॅ भी टैक्सी के पीछे दस मीटर के फाॅसले पर खड़ी हो गई थी। इधर सामने खड़ी जीपों के दरवाजे एक साथ एक झटके से खुले और उसमें से मेरे बड़े पापा के चिरपरिचित आदमी बाहर निकले। सबके हाँथों में लट्ठ थे। जीपों से उतर कर वो सब टैक्सी की तरफ आने लगे। मैने देखा कि बड़े पापा वहाँ कहीं नज़र नहीं आए मुझे। इसका मतलब उन्होंने इन लोगों को मुझे लाने के लिए भेजा था।

"पवन, तुम इस टैक्सी में आराम से बैठे रहना।" मैने पवन से कहा__"और हाँ चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैं और आदित्य अभी इन लोगों से निपट कर आते हैं। चलो दोस्त।"
"चलो मैं तो एकदम से तैयार ही हूॅ।" आदित्य ने कहा___"लेकिन एक समस्या है यार।"

"समस्या?" मैने पूछा__"कैसी समस्या?"
"हमारे पीछे खड़ी गाड़ियों में कौन हो सकता है?" आदित्य ने कहा__"क्या उसमें भी दुश्मन ही हैं? ये जानना ज़रूरी है भाई। क्योंकि वो पीछे से हम पर हमला करके हमें नुकसान भी पहुँचा सकते हैं।"

"वो हम पर हमला नहीं करेंगे दोस्त।" मैने एक नज़र पवन पर डालने के बाद कहा__"बल्कि मुझे लगता है कि वो लोग हमारी सुरक्षा के लिए हैं।"
"हमारी सुरक्षा के लिए?" आदित्य के साथ साथ पवन भी चौंका था मेरी बात से।
"हाँ भाई।" मैने कहा___"पवन ने तो यही बोला है मुझसे।"

"क्या????" पवन बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला___"मैने ऐसा कब कहा तुझसे?"
"यही तो ग़लत बात है न भाई।" मैने अजीब भाव से कहा___"कि तुमने कुछ कहा ही नहीं। मगर मैं तेरे चेहरे से सब समझ गया हूॅ। तू बताना नहीं चाहता तो कोई बात नहीं। चलो आदित्य, वो टैक्सी के करीब ही आ गए हैं।"

मेरे कहते ही आदित्य अपनी तरफ का दरवाजा खोल कर टैक्सी से बाहर आ गया और इधर मैं भी। पवन मूर्खों की तरह मुझे देखता रह गया था। जब मैं उतरने लगा तो उसने मुझे पकड़ने के लिए हाँथ बढ़ाया ज़रूर मगर मैं उसे बेफिक्र रहने का कह कर टैक्सी से बाहर आ गया। टैक्सी से उतर कर मैं और आदित्य सामने की तरफ बढ़ चले।
Reply
11-24-2019, 12:48 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर हास्पिटल में!
रितू समय से पहले ही हास्पिटल पहुँच गई थी। हास्पिटल के बाहर हर तरफ सादे कपड़ों में पुलिस के आदमी तैनात कर दिये थे उसने। सबको शख्त आदेश था कि कोई भी संदिग्ध आदमी विराज को किसी भी तरह का नुकसान न पहुँचा सके। सब कुछ ब्यवस्थित करने के बाद ही वह हास्पिटल के अंदर विधी के पास आ गई थी। उसने विधी के माता पिता को भी फोन करके बुला लिया था।

रितू के कहने पर हास्पिटल की नर्सों ने विधी को एकदम से साफ सुथरा करके नये कपड़े पहना दिये थे। विधी के बार बार पूछने पर ही रितू ने उसे बताया कि उसका महबूब उसका प्यार आज उसके पास आ रहा है। रितू के मुख से ये बात सुन कर विधी का मुरझाया हुआ चेहरा ताजे गुलाम की मानिंद खिल उठा था मगर फिर जाने क्या सोच कर उसकी ऑखें छलक पड़ीं। रितू उसकी भावनाओं और जज़्बातों को बखूबी समझ सकती थी, कदाचित यही वजह थी कि जैसे ही विधी की ऑखें छलकीं वैसे ही रितू ने उसे अपने सीने से लगा लिया था।

"हाय दीदी ये मेरे साथ क्यों हो गया?" विधी ने रोते हुए कहा___"मैने उस भगवान का क्या बिगाड़ा था जो उसने मेरी ज़िदगी और मेरी साॅसे कम कर दी? उसको ज़रा भी मेरी खुशियाॅ रास नहीं आईं। उसने मुझसे अपराध करवाया। मुझसे अपराध करवाया कि मैने अपने प्यार को दुख दिया और उसे खुद से दूर कर दिया। आज इस हालत में मैं कैसे उसके सामने खुद को पेश करूॅगी? मैं जानती हूॅ कि वो मुझे इस हाल में देखेगा तो उसे मेरी इस हालत पर बहुत दुख होगा। मैं उसे दुखी होते हुए नहीं देख सकती दीदी। मुझसे ग़लती हो गई जो मैने आपसे उसे बुलाने के लिए कहा। मैं मर जाती तो उसे इसका पता ही नहीं चलता और ना ही उसे इस सबसे दुख होता। क्या ऐसा नहीं हो सकता दीदी कि वो यहाँ आए ही न? वापस वहीं लौट जाए जहाँ से वह आ रहा है।"

"ऐसी बातें मत कर पागल।" रितू का हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि इस हाल में भी वो लड़की अपने महबूब को खुश देखना चाहती है, बोली___"कुछ मत बोल तू। सब कुछ अच्छा ही होगा विधी और ये तो अच्छा ही हुआ जो तूने मुझसे विराज को बुलाने का कह दिया। तू नहीं जानती विधी कि तेरे मिलने से मुझे क्या मिल गया है। तेरा प्यार और तेरे प्यार की इस तड़प ने मेरा समूचा अस्तित्व ही बदल दिया है। इसके लिए मैं ताऊम्र तक तेरी आभारी रहूॅगी। मुझे दुख है कि तेरे जैसी पाक़ दिल वाली लड़की को मैं किसी भी तरह से बचा नहीं सकती। काश मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती जिससे मैं तुझे पल भर में ठीक कर देती और तेरे हाँथों में तेरे महबूब का प्यार सौंप देती।"

"दीदी मेरे बाद आप मेरे राज का ख़याल रखिएगा।" विधी ने बिलखते हुए कहा__"उसे खूब प्यार दीजिएगा। उसने अपने जीवन में कभी सुख नहीं देखा। उसके अपनों ने उसे हर पल सिर्फ दर्द दिया है। यहाँ तक कि मैने भी उसे सबसे ज्यादा दर्द दिया है।"

"ऐसा मत कह विधी।" रितू के अंदर हूक सी उठी थी, बोली__"तेरा हर शब्द मुझे बेहद पीड़ा देता है। मैं चाहती हूॅ कि जितना भी तेरे पास जीवन शेष है उसे तू हॅसी खुशी अपने महबूब के साथ जिये। इस संसार में जो भी आया है उसे एक दिन इस दुनियाॅ से सबको छोंड़ कर चले ही जाना है। यही संसार का सबसे बड़ा सत्य है। इस लिए विधी ये दुख ये संताप अपने अंदर से निकालने की कोशिश करो। तुमने किसी को कोई दर्द नहीं दिया। ये सब तो इंसान के अपने भाग्य से मिलते हैं। कोई किसी को कुछ दे नहीं सकता। देने वाला सिर्फ ईश्वर है और लेने वाला भी। ख़ैर छोंड़ ये सब बातें और चल मेरे साथ। उस कमरे में तेरे माँम डैड भी बैठे हुए हैं।"

"आपने उन्हें क्यों बुला लिया दीदी?" विधी ने रितू के साथ चलते हुए कहा__"वो इस सबके बारे में क्या सोचेंगे?"
"कुछ नहीं सोचेंगे वो।" रितू ने विधी को अपने एक हाथ से पकड़े हुए कहा__"तुमने कोई पाप नहीं किया है। प्यार ही किया है न, ये तो कुदरत की सबसे खास नियामत है। जब उन्हें तेरे प्यार की दास्तां पता चलेगी तो यकीन मान वो भी तेरे इस पाक़ प्रेम के सामने नतमस्तक हो जाएॅगे।"

"मुझे उनके सामने अपने महबूब से मिलने में बहुत शर्म आएगी दीदी।" विधी का मुर्झाया हुआ चेहरा एकाएक ही शर्म की लाली से सुर्ख हो उठा था, बोली___"आप प्लीज़ उन्हें उस वक्त किसी दूसरे कमरे में या फिर बाहर भेज दीजिएगा।"

"तू भी न बिलकुल पागल है।" रितू ने उसे रोंक कर उसके माँथे पर प्यार से मगर हल्के से चूमते हुए कहा___"ख़ैर, जैसा तुझे अच्छा लगे मैं वैसा ही करूॅगी। अब खुश?"

रितू की इस बात से विधी के मुर्झाए चेहरे पर हल्की सी रंगत नज़र आई और होठों पर फीकी सी मुस्कान तैरती हुई दिखी। कुछ ही देर में रितू उसे हास्पिटल के एक स्पेशल कमरे में ले आई और उसे बेड पर आहिस्ता से लेटा दिया। कमरे में एक तरफ रखे सोफों पर विधी के माँम डैड बैठे हुए थे। उनका चेहरा देख कर ही समझ आ रहा था कि वो अकेले में खूब रोए थे अपनी बेटी की इस हालत के लिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

"कैसे हैं भीमा काका?" मैंने बड़े पापा के एक आदमी को देखते हुए कहा___"मुझे ढूढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई न आपको?"
"ज्यादा शेखी मत झाड़ छोकरे।" भीमा काका ने गुस्से से कहा___"वरना यहीं पर ज़िंदा गाड़ दूॅगा समझे। शुकर कर कि मेरे मालिक का मुझे आदेश नहीं है वरना पलक झपकते ही तू इस वक्त लाश में तब्दील हुआ यहीं पड़ा होता।"

"लगता है आपको अपने बाहुबल पर ज़रूरत से ज्यादा ही घमंड है।" मैने कहा___"तभी तो आप अपने सामने किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं।"
"सही कहा छोकरे।" भीमा ने कहा__"मुझे अपने बाहुबल पर घमंड तो होगा ही। आख़िर मालिक का मैं सबसे खास आदमी हूॅ।"

"तो क्या आदेश दिया है आपके मालिक ने आपको?" मैने पूछा।
"यही कि तुझे घसीटते हुए यहाँ से लेकर जाऊॅ।" भीमा कह रहा था___"और ले जाकर उनके पैरों पर पटक दूॅ।"
"बहुत खूब।" मैं हॅसा___"तो फिर खड़े क्यों हो काका? मुझे घसीटते हुए यहाँ से ले चलो अपने मालिक के पास।"

"लगता है इस लड़के को मरने की बड़ी जल्दी है भीमा।" भीमा के बगल से लट्ठ लिए खड़े एक अन्य आदमी ने हॅसते हुए कहा___"और शायद इसका भेजा भी फिर गया है। तभी तो ये अनाप शनाप बके जा रहा है। मैं तो कहता हूॅ ले चल इसे घसीटते हुए।"

"सही कह रहा है तू मंगल।" भीमा काका ने उससे कहा___"जब किसी की मौत निकट होती है न तो वो आदमी ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें करता है। ख़ैर, पकड़ इसे। मैं इसके साथ आए इसके इस साथी को पकड़ता हूॅ।"

भीमा के कहने के साथ ही मंगल मेरी तरफ बढ़ा और भीमा आदित्य की तरफ। मंगल ने जैसे ही मुझे पकड़ने के लिए अपना हाँथ आगे बढ़ाया वैसे ही मैने बिजली की सी स्पीड से उसका वो हाँथ पकड़ा और उसकी तरफ पीठ कर उसके हाथ को अपने कंधे पर रख कर ज़ोर का झटका दिया। कड़कड़ की आवाज़ के साथ ही मंगल का हाँथ बीच से टूट गया। हाँथ टूटते ही मंगल हलाल होते बकरे की तरह चीखा। जबकि उसका हाँथ तोड़ने के बाद मैं पलटा और उसी स्पीड से उसके गंजे सिर को दोनो हाँथों से पकड़ कर शख्ती से एक तरफ को झटक दिया। परिणामस्वरूप मंगल की गर्दन टूट गई और उसकी जान उसके जिस्म से जुदा हो गई। उसका बेजान हो चुका जिस्म लहराते हुए वहीं ज़मीन पर गिर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ समझ में ही नहीं आया कि पल भर में ये क्या हो गया।

मेरी इस हरकत से आदित्य जो भीमा की गर्दन को अपने बाजुओं में कसे झटके दे रहा था वो चकित रह गया। उसने भी भीमा की गर्दन को झटके देकर तोड़ दिया था। पलक झपकते ही दो हट्टे कट्टे आदमियों को इस तरह मौत के मुह में जाते देख बाॅकी सब लोग पहले तो भौचक्के से रह गए फिर जैसे उन्हें वस्तुस्थित का एहसास हुआ। सब के सब एक साथ हमारी तरफ लट्ठ लिए दौड़ पड़े।

आदित्य ने मेरी तरफ देखा, मैने भी उसकी तरफ देखा। ऑखों ऑखों में ही हमारी बात हो गई। जैसे ही सामने से लट्ठ लिए वो लोग हमारे पास पहुँचे वैसे ही आगे के दो आदमी लट्ठ को पूरी शक्ति से घुमा कर हम दोनो पर वार किया। हम दोनो ही झुक गए जिससे उनके लट्ठ का वार हमारे सिर से निकल गया।

इससे पहले कि वो दोनो सम्हल पाते उनकी पीठ पर हम दोनो की फ्लाइंग किक पड़ी। वो दोनो आदमी लट्ठ समेत ज़मीन की धूल चाटने लगे। मैने एक आदमी के गिरते ही उसके लट्ठ वाले हाथ में ज़ोर से लात मारी। उसके हलक से चीख़ निकल गई। उसने लट्ठ छोंड़ दिया तो मैने जल्दी से उसका लट्ठ उठा लिया। यही क्रिया आदित्य ने भी की थी।

हम दोनो के हाँथ में अब लट्ठ थी। उन दोनो के गिरते ही उनके पीछे आए बाॅकी के आदमी भी हमारी तरफ एक साथ दौड़ पड़े। देखते ही देखते उन सब ने हम दोनो को चारों तरफ से घेर लिया। मैं और आदित्य आपस में पीठ के बल जुड़ गए थे और घूम रहे थे अपने स्थान पर। उधर चारों तरफ घूमते हुए उन सभी आदमियों ने एक साथ हम पर लट्ठ का वार किया। मैने और आदित्य ने तुरंत ही उनके वार को अपने अपने लट्ठ से रोंका और पूरी शक्ति से ऊपर की तरफ झटका दिया। नतीजा ये हुआ कि सब के सब इधर उधर लड़खड़ा कर गिर पड़े। उन लोगों के गिरते ही मैने और आदित्य ने उन्हें उठने का मौका नहीं दिया। हम दोनो ही उन सब पर पिल पड़े। लट्ठ के ज़ोरदार वार उन सबके जिस्मों पर पड़ने लगे थे। वातावरण में उन सबकी दर्द में डूबी हुई चीखें निकलने लगी थी।

थोड़ी ही देर में वो सब वहीं सड़क पर पड़े बुरी तरह कराहे जा रहे थे। किसी का सिर फूटा, किसी के हाँथ टूटे तो किसी के पैर। कहने का मतलब ये कि वो सब कुछ ही देर में अधमरी सी हालत में पहुँच गए थे। तभी वातावरण में हमे सामने की तरफ किसी जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। हम दोनो ने सामने की तरफ देखा तो सबसे पीछे की कतार में खड़ी जीप अपनी जगह से पीछे की तरफ जाने लगी थी।

"लगता है उसमें कोई आदमी बचा हुआ है दोस्त।" आदित्य ने सामने उस जीप की तरफ देखते हुए कहा____"और वो इन सबका हाल देख कर यहाँ से भागने की सोच रहा है, बल्कि भाग ही रहा है वो।"
"वो यहाँ से भागने न पाए दोस्त।" मैने कठोर भाव से कहा___"वर्ना वो अजय सिंह को यहाँ का सारा हाल बताएगा और अजय सिंह फिर से अपने कुछ आदमियों को भेजेगा या फिर वो खुद हमें पकड़ने के लिए आ सकता है। मैं इस सबसे डर तो नहीं रहा मगर इस वक्त मैं यहाँ किसी से लड़ने के उद्देश्य से नहीं आया हूॅ बल्कि पवन के बुलाने पर आया हूॅ। तुम समझ रहे हो न मेरी बात?"

"मैं समझ गया विराज।" आदित्य ने अपनी कमर में जीन्स पर खोंसी हुई रिवाल्वर को निकालते हुए कहा___"तुम फिकर मत करो। वो साला यहाँ से ज़िंदा वापस नहीं जा सकेगा।"

इतना कहने के साथ ही आदित्य ने रिवाल्वर वाला हाँथ ऊपर उठाया और निशाना साध कर सामने यू टर्न ले चुकी जीप के अगले वाले दाहिने टायर पर फायर कर दिया। अचूक निशाना था आदित्य का। नतीजा ये हुआ कि टायर के फटते ही जीप अनबैलेंस हो गई और वो सड़क के किनारे ढलान की तरफ तेज़ी से बढ़ी। ढलान में उतरते ही कदाचित ड्राइवर ने उसे जल्दी से मोड़ कर वापस सड़क पर लाने की कोशिश की थी, मगर ढलान पर बाएॅ साइड से अगले पहिये के उतर जाने से जीप ढलान पर उलटती चली गई।

जीप को उलटती देख आदित्य उस तरफ को बढ़ा ही था कि फिर जाने क्या सोच कर वो रुक गया। मेरी तरफ देख कर बोला__"तुम उसे देखो, मैं इन लोगों का किस्सा खत्म करता हूॅ।"

मैं समझ गया कि आदित्य मुझे इन लोगों के पास अकेला नहीं छोंड़ना चाहता था। हलाॅकि अजय सिंह के सभी आदमी इस वक्त सड़क पर लहूलुहान हुए पड़े कराह रहे थे। उनमें से किसी में अब उठने की शक्ति नहीं थी। मगर फिर भी आदित्य मुझे उन सबके पास अकेला नहीं रहने देना चाहता था। इसी लिए उसने मुझे उस उलट चुकी जीप की तरफ जाने का कहा था। वहाँ पर तो वो सिर्फ एक ड्राइवर ही था। मुझे आदित्य की इस बात पर अंदर ही अंदर उसकी दोस्ती पर नाज़ हुआ। मैं उसकी बात सुन कर उस तरफ बढ़ गया जिस तरफ वो जीप ढलान पर उलटती चली गई थी।

उलटी हुई जीप के पास जब मैं पहुँचा तो देखा ड्राइवर वाले डोर पर नीचे की तरफ ढेर सारा खून बहते हुए वहीं ज़मीन पर फैलता जा रहा था। मैने झुक कर देखा ड्राइवर मर चुका था। जीप के ऊपर लगे लोहे का एक सरिया टूट कर उसके सिर के आर पार हो चुका था। उसी से खून बहता हुआ नीचे ज़मीन पर फैलता जा रहा था। जीप पूरी की पूरी उलट गई थी। उसके पहिये ऊपर की तरफ थे और ऊपर का भाग नीचे की तरफ हो गया था।

ड्राइवर का ये हाल देख कर मैं वापस आदित्य के पास आ गया। मैने आदित्य को ड्राइवर का हाल बता दिया। इधर आदित्य ने ज़मीन पर कराह रहे सभी आदमियों की गर्दनें तोड़ कर उन सबको यमलोक पहुँचा चुका था।

"यार मज़ा तो नहीं आया मगर ख़ैर कोई बात नहीं।" मैने आदित्य की तरफ देखते हुए किन्तु मुस्कुराते हुए कहा___"अब इन लाशों का क्या करें?"
"इन्हें यहाँ खुली जगह पर और सड़क पर इस तरह छोंड़ कर जाना भी ठीक नहीं है मेरे दोस्त।" आदित्य ने कहा___"इससे मामला बहुत गंभीर हो सकता है। पुलिस इन सबके क़ातिलों को ढूॅढ़ने के लिए एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देगी।"

"तो अब क्या करें यार?" मैं एकाएक ही चिंता में पड़ गया था, बोला___"इन लोगों को कहाँ ले जाएॅगे हम? दूसरी बात वो टैक्सी ड्राइवर भी इस सबका चश्मदीद गवाह बन चुका है। ऐसे में यकीनन हम बहुत जल्द कानून की गिरफ्त में आ सकते हैं।"

"वो सब हम लोग सम्हाल लेंगे।" तभी ये वाक्य पीछे से किसी ने कहा था। मैं और आदित्य ये सुन कर चौंकते हुए पीछे की तरफ पलटे। हमारे पीछे कुछ लोग खड़े हुए थे। मुझे समझते देर न लगी कि ये सब वही लोग हैं जो हमारे पीछे आ रही गाड़ियों पर थे।

"आप लोग कौन हैं?" मैने तनिक घबराते हुए एक से पूछा___"और ये आपने कैसे कहा कि हम सब इन लोगों को सम्हाल लेंगे? बात कुछ समझ में नहीं आई।"

मेरी बात सुन कर उस आदमी ने अपने शर्ट की ऊपरी जेब से एक आई कार्ड जैसा कुछ निकाला और हमारी तरफ उसे दिखाते हुए बोला___"हम सब पुलिस वाले हैं और आपके पीछे पीछे आपकी सुरक्षा के लिए ही लगे हुए थे।"

मैं और आदित्य उसकी ये बात सुन बुरी तरह चौंक पड़े थे। ये सच है कि उसकी ये बात ऐसी थी कि काफी देर तक हमारे पल्ले ही न पड़ सकी थी। मैं तो ये सोच कर हैरान था कि ये सब पुलिस वाले हैं और इन लोगों ने हम दोनो को अजय सिंह के सभी आदमियों का बेदर्दी से कत्ल करते हुए अपनी ऑखों से देखा था। इसके बावजूद ये लोग ये कह रहे हैं कि ये हमारी सुरक्षा के लिए ही हमारे पीछे लगे हुए थे। मेरे दिमाग़ की नशें तक दर्द करने लगीं ये सोचते हुए कि ये लोग हमारी सुरक्षा क्यों कर रहे थे? इनकी नज़र में तो अब हम दोनो मुजरिम ही बन चुके थे। इनकी ऑखों के सामने ही तो हमने अजय सिंह के सभी आदमियों को जान से मारा था। उस सूरत में तो इन लोगों हमें गिरफ्तार कर लेना चाहिए। मगर नहीं, ये लोग तो ये कह रहे हैं कि इन लाशों को ये सम्हाल लेंगे। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि पुलिस वाले भला ऐसा कैसे कह और कर सकते हैं? मैने आदित्य की तरफ देखा तो उसका हाल भी मुझसे जुदा न था। वो भी मेरी तरह हैरान परेशान सा उन सभी पुलिस वालों की तरफ इस तरह देख रहा था जैसे उन सबके सिर उनके धड़ों से निकल कर ऊपर हवा में कत्थक कर रहे हों।

"बात कुछ समझ में नहीं आई।" मैने खुद को सम्हालते हुए अपने सामने खड़े एक पुलिस वाले से कहा___"आप पुलिस वाले हमारी सुरक्षा किस वजह से कर रहे हैं और किसके कहने पर? इतना ही नहीं ये भी कह रहे हैं कि आप इन लाशों को सम्हाल लेंगे? जबकि आप लोगों को करना तो यही चाहिए कि ऐसे जघन्य हत्याकाण्ड के लिए हमें तुरंत गिरफ्तार कर हवालात में बंद कर दें।"

"वो सब छोंड़िये।" मेरे सामने खड़े एक पुलिस वाले ने कहा___"आप लोग यहाँ से आगे बढ़िये, ये सोच कर कि यहाँ कुछ हुआ ही नहीं है। हमने आपके टैक्सी ड्राइवर को भी समझा दिया है। वो इस मामले में अपना मुख किसी के सामने जीवन भर नहीं खोलेगा। आपके पीछे कुछ दूरी के फाॅसले पर हमारे कुछ आदमी आपकी सुरक्षा में उसी तरह लगे रहेंगे जैसे अब तक लगे हुए थे।"

"ये तो बड़ी ही हैरतअंगेज बात है।" मैं उसकी इस बात से चकित होकर बोला___"कैसे पुलिस वाले हैं आप लोग कि इतना कुछ होने के बाद भी आप हमें गिरफ्तार करने की बजाय यहाँ से बड़े आराम से चले जाने का कह रहे हैं? ऊपर से हमारी सुरक्षा के लिए आप अपने पुलिस के कुछ आदमियों को भी हमारे पीछे लगा रहे हैं।"

"इस बारे में आप ज्यादा सोच विचार मत कीजिए।" पुलिस वाले ने कहा___"अब आप ज्यादा देर मत कीजिए और बेफिक्र होकर यहाँ से गाँव जाइये।"

इतना कह कर वो पुलिस वाला पलट गया। उसके साथ बाॅकी के पुलिस वाले भी पलट गए थे। जबकि हैरान परेशान हम दोनो उन्हें मूर्खों की तरह देखते रह गए। साला दिमाग़ का दही हो गया मगर पुलिस वालों का ये रवैया हमारी समझ में ज़रा भी न आ सका था।

"विराज भाई।" उन लोगों के जाते ही आदित्य कह उठा___"मैने अपनी इतनी बड़ी लाइफ में ऐसे विचित्र किस्म के पुलिस वाले आज तक नहीं देखे। मतलब कि____यार क्या कहूॅ अब? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"
"सही कह रहे हो दोस्त।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"ये तो हद से भी ज्यादा वाला अंधेर हो गया। ख़ैर जाने दो, हमारे तो हक़ में ही है न? अच्छा ही हुआ, वरना अगर ये लोग हमें इस सबके लिए गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे डाल देते तो बड़ी गंभीर समस्या हो जाती हमारे लिए।"

"हाँ यार।" आदित्य ने कहा___"लेकिन ये बात ऐसी है कि कुछ दिन तक ही क्या साला जीवन भर हमारे ज़हन में किसी सर्प की भाॅति कुण्डली मार कर बैठी रहेगी। हम जीवन भर इस सबके बारे में सोचते रहेंगे मगर इस सबका कारण हमें समझ में ही नहीं आएगा।"

"आएगा दोस्त।" मैने पूर्वत सोचते हुए ही कहा___"इस सबका कारण ज़रूर समझ में आएगा और बहुत जल्द आएगा। फिलहाल तो हमें यहाँ से निकलना ही चाहिए।"
"बिलकुल।" आदित्य ने कहा___"चलो चलते हैं। लेकिन यार सामने जाने का रास्ता तो बंद है। हमें सबसे पहले ये सारी जीपें सामने के रास्ते से हटानी पड़ेंगी।"

"हाँ तो चलो हटा देते हैं।" मैने कहा__"उसमे क्या है।"
मेरे इतना कहते ही आदित्य मेरे साथ चल पड़ा। कुछ ही देर में हमने उन जीपों को रास्ते से हटा दिया। इस काम में एक दो पुलिस वाले भी हमारी मदद करने के लिए आ गए थे। सभी जीपों को रास्ते से हटाने के बाद मैने और आदित्य ने एक काम और किया। वो ये कि उन सभी जीपों के टायरों से हवा निकाल दी। उसके बाद हम दोनो आकर टैक्सी में बैठ गए।

टैक्सी में आकर मैने देखा कि पवन किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ एकदम शान्त बैठा था। उसके चेहरे पर आश्चर्य का सागर विद्यमान था। मैने उसे उसके कंधों से पकड़ कर हिलाया, तब जाकर उसकी चेतना लौटी। चेतना लौटते ही वो मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगा। अभी भी उसके चेहरे पर गहन हैरत के भाव थे।

"ऐसे दीदें फाड़ कर क्या देख रहा है?" मैने मुस्कुराते हुए कहा उससे।
"ये ये सब क्या था?" उसके मुख से अजीब सी आवाज़ निकली___"ये तुम दोनो ने क्या और कैसे कर दिया? सबको मार दिया तुम दोनो ने। तुझे पता है ये बात जब तेरे बड़े पापा को पता चलेगी तो क्या होगा?"

"कुछ नहीं होगा भाई।" मैने कहा___"और अगर कुछ होगा भी तो वो ये होगा कि उस अजय सिंह की गाॅड फट के उसके हाँथ में आ जाएगी समझा। खुद को बहुत बड़ा सूरमा समझने वाले अजय सिंह को जब अपने आदमियों के बारे में ऐसी ख़बर मिलेगी तो उस समय उसकी हालत क्या होगी इस बात का अंदाज़ा लगा कर देख भाई।"

"तू मेरा वही यार है या तेरी जगह तेरा चोला पहन कर कोई और आ गया है?" पवन ने चकित भाव से कहा था, बोला___"मेरा दोस्त इतना खतरनाक तो नहीं था। जिस तरह तूने एक ही झटके में अजय सिंह के मुस्टंडे आदमियों का क्रिया कर्म कर दिया है न उससे तो यही लगता है कि तू मेरा वो यार नहीं हो सकता।"

"मैं तेरा वही यार हूॅ भाई।" मैने कहा__"बस समय बदल गया है। इस लिए समय के साथ साथ मैने खुद की भी बदल लिया है। मगर यकीन रख, मेरा ये बदलाव सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने मुझ पर और मेरे माँ बहन पर अत्याचार किया है। अपने अज़ीज़ों के लिए तो मैं आज भी वही हूॅ जैसा पहले हुआ करता था। ख़ैर छोंड़ ये सब, ये बता कि हमारे पीछे आ रहे ये पुलिस वालों का क्या चक्कर है? ये लोग मेरी सुरक्षा की बात क्यों कर रहे थे मुझसे? और तो और इन लोगों ने तो हमे गिरफ्तार भी नहीं किया जबकि मैंने और आदित्य ने अजय सिंह के सभी आदमियों को उनकी ऑखों के सामने उन सबको जान से मार दिया है? ये सब क्या चक्कर है भाई? देख मुझसे कोई बात मत छिपा तू। जो भी बात है उसे साफ साफ बता दे मुझे। आख़िर ऐसी क्या वजह थी जिसके लिए तूने मुझे इस तरह यहाँ आने को कहा था?"

"अब जब तू यहाँ आ ही गया है तो थोड़ा और इन्तज़ार कर ले मेरे यार।" पवन ने कहने के साथ ही अपना चेहरा अपनी तरफ के दरवाजे की खिड़की की तरफ फेर लिया, फिर बोला___"मैं अपने मुख से तुझे कुछ नहीं बता सकता और ना ही वो सब बताने की मुझमें हिम्मत है। कुछ समय तक और धीरज रख ले, उसके बाद सब कुछ पता चल जाएगा तुझे।"

पवन ये बातें सुन कर मैं उसे अजीब भाव से देखता रह गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी क्या बात है जिसे मेरा दोस्त इस हद तक मुझसे छिपा रहा है? मेरे दिलो दिमाग़ में अनगिनत आशंकाएॅ उत्पन्न हो गई थी। पवन अभी भी खिड़की के उस पार देख रहा था। उस वक्त तो मैं चौंक ही पड़ा जब पवन ने बड़ी सफाई से अपनी ऑखों से ऑसू पोछने की क्रिया की थी। ये देख कर मेरे अंदर बड़ी तेज़ी से चिंता और बेचैनी बढ़ती चली गई। सहसा मेरी ऑखों के सामने अभय चाचा के बीवी बच्चों का चेहरा नाच गया। मेरे मस्तिष्क में जैसे विष्फोट सा हुआ। मन में एक ही ख़याल उभरा कि छोटी चाची और उनके बच्चों के साथ कोई ऐसी बात तो नहीं हो गई जो कि नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन फिर मेरे मन में सवाल भरा कि इस बात को बताने में भला पवन को क्या परेशानी हो सकती है? इसका मतलब मामला कुछ और ही है। मगर ऐसा क्या मामला हो सकता है?

मैंने इस बारे बहुत सोचा मगर मुझे कुछ समझ न आया। अंत में थक हार कर मैने अपने ज़हन से ये सब बातें झटक दी, ये सोच कर कि कुछ समय बाद सब कुछ पता तो चल ही जाएगा। पवन ने तो बार बार यही कहा था मुझसे। मैने एक बार पलट कर पीछे की तरफ देखा। हमारे पीछे पुलिस वालों की एक गाड़ी कुछ फाॅसले पर लगी हुई आ रही थी। उन लोगों को देख कर एक बार फिर से मेरे मन में उनके बारे में ढेरों सवाल चकरा उठे। आख़िर ये पुलिस वाले मेरी सुरक्षा में क्यों लगे हुए हैं और किसने कहा होगा इन्हें ऐसा करने के लिए? सोचते सोचते मेरा सिर दर्द करने लगा तो मैने उनके बारे में सोचने का काम भी बंद कर दिया।

अभी मैं रिलैक्स होकर बैठा ही था कि एकाएक मेरे मस्तिष्क में धमाका हुआ। धमाके का गुबार जब छॅटा तो एक चेहरा नज़र आया मुझे। वो चेहरा था रितू दीदी का। वो भी तो पुलिस वाली थी। तो क्या उन्होंने इन लोगों को मेरी सुरक्षा के लिए भेजा है? नहीं नहीं हर्गिज़ नहीं, वो भला ऐसा कैसे कर सकती हैं? मैं भला उनका लगता ही क्या हूॅ? आज तक कभी जिसने मुझे अपना भाई नहीं माना और ना ही मुझसे कभी बात करना पसंद किया। वो भला मेरी सुरक्षा की चिंता क्यों करेंगी? ये तो सूर्य देवता के पश्चिम दिशा से उदय होने वाली बात है, जो कि निहायत ही असंभव बात है। तो फिर और क्या वजह हो सकती है? सहमा मुझे ध्यान आया कि मैं एक बार फिर से इन सब बातों पर अपना माथा पच्ची करने में लग गया हूॅ। इस ख़याल के आते ही मैने फिर से अपने ज़हन से इन सब बातों को झटक दिया और फिर आराम से रिलैक्स होकर बैठ गया। मगर मैने महसूस किया कि रिलैक्स होना इस वक्त मेरे बस में ही नहीं था। क्योंकि मेरे मन में फिर से तरह तरह के सोच विचार चलने लगे।

लगभग दस मिनट बाद ही हल्दीपुर गाँव नज़र आने लगा था हमें और फिर कुछ ही देर में हम गाँव में दाखिल हो गए। पवन के निर्देश पर टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी को पवन के घर की तरफ जाने वाली गली में मोड़ दिया था। जबकि हमारी हवेली उत्तर की तरफ थी।

कुछ ही देर में हम पवन के घर के पास पहुँच गए। गर्मियों का समय तो नहीं था मगर इस वक्त आस पास किसी भी घर के पास कोई इंसानी जीव दिख नहीं रहा था। हलाॅकि गाँव में जब हम दाखिल हुए थे तो दाएॅ तरफ एक चौपाल पर कुछ लोगों को बैठे देखा था हमने। मैने सबसे ज़रूरी काम ये किया था कि गाँव में दाखिल होने से पहले ही अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लिया था। ताकि गाव का कोई ब्यक्ति मुझे किसी तरह से पहचान न सके।

पवन के घर के सामने टैक्सी रुकी तो ड्राइवर को छोंड़ कर हम तीनों जल्दी से टैक्सी से बाहर निकले और अपना अपना बैग लेकर पवन के घर के अंदर आ गए। टैक्सी ड्राइवर को मैने उसकी टैक्सी का भाड़ा पहले ही दे दिया था और उसे समझा भी दिया था कि हम लोगों के उतरते ही वो वापस बिजली की स्पीड से चला जाएगा। अगर यहाँ कहीं कोई टैक्सी रुकवाए तो वो रोंके नहीं। वरना वो खुद बहुत बड़ी मुसीबत में फॅस जाएगा।

टैक्सी ड्राइवर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कि वो हमसे पैसा भी नहीं ले रहा था। एक ही बात बोल रहा था कि हम उसे जाने दें। वो हमारी कोई भी बात कभी भी किसी से नहीं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ैर, हम लोगों को उतार कर उसने टैक्सी को वहीं पर किसी तरह बैक करके वापसी के लिए मोड़ा और वहाँ से चंपत हो गया। मुझे यकीन था कि वो रास्ते में कहीं भी रुकने वाला नहीं था।

पवन के घर के अंदर जैसे ही हम तीनो आए तो पवन ने जल्दी से घर का मुख्य दरवाजा बंद कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पवन सिंह मेरे बचपन का दोस्त था। ग़रीब था और बिना बाप का था। उससे बड़ी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी मुहबोली बहन थी। वो मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इसकी वजह ये थी कि पवन के पास रुपये पैसे की तंगी थी। आजकल लोग दहेज की माँग बहुत ज्यादा करते हैं। पवन की माँ बयालिस साल की विधवा औरत थी। किन्तु स्वभाव से बहुत अच्छी थी। वो मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बैठक में पहुँचे और वहाँ एक तरफ किनारे पर रखी एक चारपाई पर बैठ गए। जबकि पवन अंदर की तरफ चला गया था। आदित्य इधर उधर बड़े ग़ौर से देख रहा था। कदाचित ये देख रहा था कि यहाँ गाँव में कच्चे खपरैलों वाले मकान बने हुए थे। जबकि उसने आज तक ऐसे मकान सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे कभी।
Reply
11-24-2019, 12:49 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट........《 44 》

अब तक,,,,,,,

टैक्सी ड्राइवर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कि वो हमसे पैसा भी नहीं ले रहा था। एक ही बात बोल रहा था कि हम उसे जाने दें। वो हमारी कोई भी बात कभी भी किसी से नहीं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ैर, हम लोगों को उतार कर उसने टैक्सी को वहीं पर किसी तरह बैक करके वापसी के लिए मोड़ा और वहाॅ से चंपत हो गया। मुझे यकीन था कि वो रास्ते में कहीं भी रुकने वाला नहीं था।

पवन के घर के अंदर जैसे ही हम तीनो आए तो पवन ने जल्दी से घर का मुख्य दरवाजा बंद कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पवन सिंह मेरे बचपन का दोस्त था। ग़रीब था और बिना बाप का था। उससे बड़ी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी मुहबोली बहन थी। वो मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इसकी वजह ये थी कि पवन के पास रुपये पैसे की तंगी थी। आजकल लोग दहेज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पवन की माॅ बयालिस साल की विधवा औरत थी। किन्तु स्वभाव से बहुत अच्छी थी। वो मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बैठक में पहुॅचे और वहाॅ एक तरफ किनारे पर रखी एक चारपाई पर बैठ गए। जबकि पवन अंदर की तरफ चला गया था। आदित्य इधर उधर बड़े ग़ौर से देख रहा था। कदाचित ये देख रहा था कि यहाॅ गाॅव में कच्चे खपरैलों वाले मकान बने हुए थे। जबकि उसने आज तक ऐसे मकान सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे कभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उधर अजय सिंह, प्रतिमा और शिवा अपने नये फार्महाउस में पहुॅच चुके थे। तीनों के चेहरे खिले हुए थे। ये सोच कर कि बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा सुनने को मिला था उन्हें। जिनकी तलाश में खुद अजय सिंह और उसके आदमी जाने कहाॅ कहाॅ भटक रहे थे वो खुद ही चल कर यहाॅ आया और उसके आदमियों के द्वारा बहुत जल्द उसे पकड़ कर उसके सामने उसे हाज़िर कर दिया जाएगा। उसके बाद वो जैसे चाहेगा वैसे विराज के साथ सुलूक कर सकेगा।

"डैड मैने तो सोच लिया है कि मैं क्या क्या करूॅगा?" फार्महाउस के अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर बैठे शिवा ने कहा___"उस विराज के हाथ लगते ही बाॅकी के जब सब भी हमारे पास आ जाएॅगे तब मैं अपनी मनपसंद चीज़ों का जी भर के मज़ा लूटूॅगा। सबसे पहले तो उस हरामज़ादी करुणा को पेलूॅगा वो भी उसके पति के सामने। उसी की वजह से चाचा ने मुझे कुत्ते की तरह धोया था। इस फार्महाउस पर सब औरतों और उनकी लड़कियों को नंगा करूॅगा मैं।"

"चिंता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने शिगार को सुलगाते हुए कहा___"जो कुछ तू सोचे बैठा है न वही सब मैने भी सोचा हुआ है। बहुत तरसाया है इन लोगों ने मुझे। सबसे ज्यादा उस कमीनी गौरी ने। पता नहीं क्यों पर उससे दिल लग गया था बेटा। मैं चाहता था कि वो अपने मन से अपना सब कुछ मुझे सौंप दे, इसी लिए तो कभी उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं की थी मैने। मगर अब नहीं। अब तो बलात्कार होगा बेटे। ऐसा बलात्कार कि दुनियाॅ में उसके बारे में किसी ने ना तो सोचा होगा और ना ही सुना होगा कहीं। इस फार्महाउस में उन दोनो औरतों को और उन दोनो लड़कियों को जन्मजात नंगी करके दौड़ाऊॅगा।"

"अभी दो लड़कियों को आप भूल रहे हैं डैड।" शिवा ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"आपकी दोनो लड़कियाॅ और मेरी प्यारी प्यारी मगर मदमस्त बहनें।"
"उनका नंबर भी आएगा बेटे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"मगर इन लोगों के बाद। पहले इन लोगों के साथ तो मज़े कर लें। इन सबको इतना बजाएॅगे कि सब की सब साली पनाह माॅग जाएॅगी। उसके बाद इन सबको रंडियों के बाज़ार में ले जाकर मुफ़्त में बेंच देंगे।"

"ये सही सोचा है डैड।" शिवा ने ठहाका लगाते हुए कहा___"रंडियों के बाज़ार में बेंचने से ये सब जीवन भर लोगों को मज़ा देती रहेंगी। लेकिन डैड मेरी बहनों को मत बेंच देना। वो सिर्फ हमारी रंडियाॅ बन कर रहेंगी जीवन भर। हम दोनो ही उनके सब कुछ रहेंगे।"

"सही कहा बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"हम अपनी बेटियों को नहीं बेचेंगे। वो तो हमारी ही रंडियाॅ बन कर रहेंगी अपनी माॅ के साथ। क्या कहती हो डार्लिंग?"

अंतिम वाक्य अजय सिंह ने चुपचाप बैठी प्रतिमा को देख कर कहा था। प्रतिमा जो इतनी देर से बाप बेटे की बातें सुन कर मन ही मन हैरान और चकित हो रही थी वो अचानक ही अजय सिंह के इस प्रकार कहने पर चौंक पड़ी थी। तुरंत उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। बल्कि अजीब भाव से वो दोनो बाप बेटों को देखती रह गई थी। ये देख कर अजय सिंह और शिवा दोनो ही ठहाका लगा कर हॅस पड़े थे।

"क्या हुआ प्रतिमा?" अजय सिंह हॅसने के बाद बोला___"किन ख़यालों में गुम हो भई? हमारी बातों पर ध्यान नहीं है क्या तुम्हारा?"
"मैं तुम दोनो की तरह ख़याली पुलाव नहीं बनाती अजय।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"मुझे इस सबमें खुशी तब होगी जब ऐसा सचमुच में होता हुआ अपनी ऑखों से देखूॅगी।"

"अरे ज़रूर देखोगी मेरी जान।" अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा___"और बहुत जल्द देखोगी। बस कुछ ही देर की बात है। मेरे आदमी उस हराम के पिल्ले को घसीटते हुए लाते ही होंगे। उसके आने के बाद उसके बाॅकी चाहने वालों को भी बहुत जल्द आना पड़ेगा मेरे पास।"

"इसी लिए तो चुपचाप उसके आने के इन्तज़ार में बैठी हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा फोन करके पता तो करो कि तुम्हारे आदमी उसे लिये कहाॅ तक पहुॅचे हैं अभी? अपने आदमियों से कहो कि ज़रा जल्दी आएॅ यहाॅ।"

"जो हुकुम डार्लिंग।" अजय सिंह ने शिगार को ऐश ट्रे में मसलते हुए कहा___"मैं अभी भीमा को फोन करता हूॅ और उसे बोलता हूॅ कि भाई जल्दी लेकर आ उस हरामज़ादे को।"

कहने के साथ ही अजय सिंह ने अपने कोट की जेब से मोबाइल निकाला और उस पर भीमा का नंबर डायल कर मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर उसे अपने कान में ये वाक्य सुनाई दिया कि___"आपने जिस एयरटेल नंबर पर फोन लगाया है वो इस वक्त उपलब्ध नहीं है या अभी बंद है।"

ये वाक्य सुनते ही अजय सिंह का दिमाग़ घूम गया। उसने काल को कट करके फिर रिडायल कर दिया मगर फिर से उसे कानो में वही वाक्य सुनाई दिया। अजय सिंह कई बार भीमा के नंबर पर फोन लगाया मगर हर बार वही वाक्य सुनने को मिला उसे।

"क्या हुआ डैड?" शिवा जो अजय सिंह की ही तरफ देख रहा था बोल उठा___"क्या भीमा का नंबर नहीं लग रहा?"
"हाॅ बेटे।" अजय सिंह ने सहसा कठोर भाव से कहा___"इन सालों को कभी अकल नहीं आएगी। ऐसे समय में भी साले ने फोन बंद करके रखा हुआ है।"

"तो किसी दूसरे आदमी को फोन लगा कर पता कीजिए डैड।" शिवा ने मानो ज्ञान दिया।
"हाॅ वही कर रहा हूॅ।" अजय सिंह ने नंबरों की लिस्ट में मंगल का नंबर खोज कर उसे डायल करते हुए कहा।

मंगल का नंबर डायल करने के बाद उसने मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर इस नंबर पर भी वही वाक्य सुनने को मिला उसे। अब अजय सिंह का भेजा गरम हो गया। फिर जैसे उसने खुद के गुस्से को सम्हाला और अपने किसी अन्य आदमी का नंबर डायल किया। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला। कहने का मतलब ये कि अजय सिंह ने एक एक करके अपने सभी आदमियों का नंबर डायल किया मगर सबक सब नंबर या तो उपलब्ध नहीं थे या फिर बंद थे।

अजय सिंह को इस बात ने हैरान कर दिया और वह सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो उसे भी पता था कि उसके आदमी इतने लापरवाह हो ही नहीं सकते क्योंकि सब उससे बेहद डरते भी थे। किन्तु इस वक्त सभी के नंबर बंद होने की वजह से उसका माथा ठनका। मन में एक ही विचार आया कि कुछ तो गड़बड़ है। किसी गड़बड़ी के अंदेशे ने अजय सिंह को एकाएक ही चिंता और परेशानी में डाल दिया।

"क्या बात है अजय?" सहसा प्रतिमा उसके चेहरे के बदलते भावों को देखते हुए बोल पड़ी___"ये अचानक तुम्हारे चेहरे पर चिन्ता व परेशानी के भाव कैसे उभर आए?"
"बड़ी हैरत की बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"मैने एक एक करके अपने सभी आदमियों को फोन लगा कर देख लिया, मगर उनमें से किसी का भी फोन नहीं लग रहा। सबके सब बंद बता रहे हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा ने भी हैरानी से कहा___"एक साथ सबके फोन कैसे बंद हो सकते हैं? कुछ तो बात ज़रूर है। हमें जल्द से जल्द इस सबका पता लगाना चाहिए डैड।"

"शिवा सही कह रहा है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी इतने लापरवाह नहीं हो सकते कि ऐसे माहौल में वो सब अपना फोन ही बंद कर लें। ज़रूर कोई बात हुई है।वरना अब तक तो उनमें से किसी ने तुम्हें फोन करके ये ज़रूर बताया होता कि उन लोगों ने विराज को अपने कब्जे में ले लिया है और अब वो सीधा यहीं आ रहे हैं। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ अब तक। इसका मतलब साफ है कि कोई गंभीर बात हो गई है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" अजय सिंह ने चिंतित भाव से कहा___"कोई तो बात हुई है। मगर सवाल ये है कि ऐसी क्या बात हो सकती है भला? उन पर किसी प्रकार के संकट के आने का सवाल ही नहीं है क्योंकि वो खुद भी कई सारे एक साथ थे और खुद दूसरों के लिए संकट ही थे।"

"असलियत का पता तो तभी चलेगा अजय जब तुम इस सबका पता करने यहाॅ से जाओगे।" प्रतिमा ने कहा___"यहाॅ पर बातों में समय गवाॅने का कोई मतलब नहीं है।"
"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" शिवा ने कहा__"हमें तुरंत ही इस सबका पता लगाने के लिए यहाॅ से निकलना चाहिए। वरना कहीं ऐसा न हो कि हम जिस सुनहरे मौके की बात कर रहे थे वो हमारे हाॅथ से निकल जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट।" अजय सिंह ने कहा__"चलो चल कर देखते हैं कि क्या बात हो गई है?"
"तुम दोनो जाओ।" प्रतिमा ने कहा__"मैं यहीं पर तुम दोनो का इंतज़ार करूॅगी।"

प्रतिमा की बात खत्म होते ही दोनो बाप बेटे सोफों से उठ कर बाहर की तरफ चल दिये। बाहर आकर अजय सिंह अपनी कार का ड्राइविंग डोर खोल कर उसमें बैठ गया, जबकि शिवा उसके बगल वाली शीट पर बैठ गया। कार को स्टार्ट कर अजय सिंह ने कार को झटके से आगे बढ़ा दिया। उसकी कार ऑधी तूफान बनी सड़कों पर घूमने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर पवन के घर में मैं और आदित्य नहा धो कर फ्रेश हो गए थे और अब हम सब खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। पवन ने अपनी माॅ और बहन दोनो की मेरे आने का पहले ही बता दिया था। बस ये नहीं बताया था कि उसने मुझे यहाॅ किस लिए बुलाया था? उनसे यही कहा था कि मैं बस घूमने आया हूॅ।

पवन की माॅ को मैं भी माॅ ही बोलता था शुरू से ही। मेरी नज़र में माॅ से बड़ा और पवित्र रिश्ता कोई नहीं हो सकता था। वो मुझे शुरू से ही बहुत चाहती थी और प्यार व स्नेह देती थीं। पवन की बहन आशा दीदी मुझसे और पवन से उमर में बड़ी थी। उनका स्वभाव पिछले कुछ सालों तक हॅस मुख और चंचल था किन्तु अब वो ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी। उनके चेहरे पर हर वक्त गंभीरता विद्यमान रहती थी। इसकी वजह समझना कोई बड़ी बात नहीं थी। हर कोई समझ सकता था कि उनके स्वभाव में ये तब्दीली किस वजह से आई हुई थी।

खाना पीना से फुर्सत होकर हम सब बाहर बैठक में आ गए। मेरे मन में इस वक्त कुछ और ही चल रहा था। इस लिए मैं बैठक से उठ कर अंदर माॅ के पास चला गया। मैने देखा माॅ और आशा दीदी हम लोगों की खाई हुई थालियाॅ ऑगन में एक जगह रख रही थी।

मुझे ऑगन में आया देख माॅ के होठों पर मुस्कान आ गई। आशा दीदी भी मुझे देख कर हल्का सा मुस्कुराई। फिर वो वहीं पर बैठ कर थालियाॅ धोने लगी। जबकि माॅ मेरे पास आ गईं।

"चल आजा मेरे साथ।" माॅ एक तरफ को बढ़ती हुई बोली___"मुझे पता है तुझे मेरी गोंद में सिर रख कर सोना है। कितना समय हो गया मैने भी तुझे वैसा प्यार और स्नेह नहीं दिया। वक्त और हालात ऐसे बदल जाएॅगे ऐसा कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था। बुरे लोगों का एक दिन ज़रूर नाश होता है बेटा। बस थोड़ा समय लग जाता है। अजय सिंह को उसके बुरे कर्मों की सज़ा ईश्वर ज़रूर देगा।"

माॅ ये सब बड़बड़ाती हुई अंदर कमरे मे आ गईं। मैं भी उनके पीछे पीछे आ गया था। कमरे में रखी चारपाई पर माॅ पालथी मार कर बैठ गईं और फिर मेरी तरफ देख कर मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं खुशी से उनके पास गया और चारपाई के नीचे ही उकड़ू बैठ कर अपना सिर उनकी गोंद में रख दिया।

"अरे नीचे क्यों बैठ गया बेटे?" माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा___"ऊपर आजा और फिर ठीक से वैसे ही लेट जा जैसे पहले लेट जाया करता था मेरी गोंद में।"
"नहीं माॅ, मैं ऐसे ही ठीक हूॅ।" मैने सिर उठाकर उनकी तरफ देखते हुए बोला__"मुझे आपसे कुछ बात करनी है माॅ।"

"हाॅ तो कह ना।" माॅ ने मेरे चेहरे को एक हाथ से सहलाया___"तुझे कोई भी बात करने के लिए मुझसे पूछने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर, बता क्या बात करना है तुझे?"
"सबसे पहले ये बताइये कि मैं आपका बेटा हूॅ कि नहीं?" मैने माॅ के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा।

"ये कैसा सवाल है बेटा?" माॅ के चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे___"तू तो मेरा ही बेटा है। जैसे पवन मेरा बेटा है वैसे ही तू भी मेरा बेटा है।"
"अगर मैं आपका बेटा हूॅ तो मुझे भी आपका बेटा होने का हर फर्ज़ निभाना चाहिए न?" मैने भोलेपन से कहा था।

"ये तो बेटों की सोच और समझदारी पर निर्भर करता है बेटा।" माॅ ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा___"कि वो अपने माता पिता व परिवार के लिए कैसा विचार रखते हैं? पर हाॅ नियम और संस्कार तो यही कहते हैं कि हर ब्यक्ति को अपना कर्तब्य व फर्ज़ सच्चे दिल से निभाना चाहिए। जैसे माता पिता अपने बच्चों के लिए हर फर्ज़ सच्चे दिल से निभाते हैं।"

"मैं और तो कुछ नहीं जानता माॅ।" मैने कहा___"लेकिन इतना ज़रूर समझता हूॅ कि एक बेटे को हमेशा ऐसा काम करना चाहिए जिससे कि उसके माता पिता को अपने उस बेटे पर गर्व हो। वो अपने बेटे के हर काम से खुश हो जाएॅ। इस लिए माॅ, मैं भी अब वो फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा।" माॅ ने खुश होते हुए कहा___"तुम्हें ऐसा करना भी चाहिए। मुझे खुशी है कि तूने इतनी मुश्किलों और परेशानियों में भी अपने अच्छे संस्कारों का हनन नहीं होने दिया। तू अब बड़ा हो गया है, इस लिए तुझे अब अपने कर्तब्यों और फर्ज़ों की तरफ ध्यान देना चाहिए। तेरी माॅ और बहन ने बहुत दुख दर्द झेला है बेटा। मैं चाहती हूॅ कि तू उन्हें हमेशा खुश रखे।"

"वो दोनो अब खुश ही हैं माॅ।" मैने कहा__"लेकिन मैं अब अपनी दूसरी माॅ का बेटा होने का भी फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"
"क्या मतलब?" माॅ ने मेरी इस बात से हैरान होकर मेरी तरफ देखा___"ये तू क्या कह रहा है बेटा?"

"हाॅ माॅ।" मैने कहा___"आप मेरी दूसरी माॅ ही तो हैं और मैं आपका बेटा हूॅ। इस लिए मैं आपका बेटा होने का फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ। आशा दीदी की शादी बड़े धूमधाम से किसी बड़े घर में किसी अच्छे लड़के के साथ करना चाहता हूॅ। आज आशा दीदी के मुरझाए हुए चेहरे को देख कर मुझे कितनी तक़लीफ़ हुई ये मैं ही जानता हूॅ माॅ। कितनी बदल गई हैं वो, हर समय बिंदास और चंचल रहने वाली मेरी आशा दीदी ने आज खुद को गहन उदासी और गंभीरता की चादर में ढॅक कर रख लिया है। मैं उन्हें इस तरह नहीं देख सकता माॅ। वो मेरी सबसे प्यारी बहन हैं। मैं चाहता हूॅ कि उनके चेहरे पर फिर से पहले जैसी चंचलता और खुशियाॅ हों। इस लिए माॅ, मैने फैंसला कर लिया है कि अब मैं वही करूॅगा जो मुझे करना चाहिए।"
"पर बेटा ये सब....।" माॅ ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनकी बात काट कर कहा__"मैं आपकी कोई भी बात नहीं सुनूॅगा माॅ। अगर आप मुझे सच में अपना बेटा मानती हैं तो मुझे मेरा फर्ज़ निभाने से नहीं रोकेंगी।"

मेरी इस बात से माॅ मुझे देखती रह गईं। उनकी ऑखों में ऑसूॅ भर आए थे। मैने उठ कर माॅ को अपने से छुपका लिया और फिर बोला___"आप खुद को दुखी मत कीजिए माॅ। देख लेना, आपका ये बेटा सब कुछ ठीक कर देगा।"

"मुझे खुशी है कि तू मेरा बेटा है।" माॅ ने मुझसे अलग होकर मेरे माथे पर हल्के से चूमते हुए कहा___"लेकिन बेटा तुझे अंदाज़ा नहीं है कि शादी ब्याह में कितना रूपया पैसा खर्च करना पड़ता है। तेरे पास भला इतना रुपया पैसा कहाॅ से आएगा कि तू अपनी दीदी की शादी कर सके?"

"आपके इस बेटे के पास इतना पैसा है माॅ कि वो चाहे तो पूरे हल्दीपुर को खड़े खड़े खरीद ले।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"जिस मिल्कियत को पाने के लिए मेरे बड़े पापा ने हमारे साथ ये सब किया है न उससे कहीं ज्यादा मेरे पास आज के समय में मिल्कियत है।"

"क्या????" माॅ की ऑखें आश्चर्य से फट पड़ी थी, फिर सहसा अविश्वास भरे भाव से बोली___"पर बेटा तेरे पास इतना पैसा कहाॅ से आ गया?"
"सब कुदरत के करिश्मे हैं माॅ।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"भगवान अगर किसी को दुख तक़लीफ़ें देता है तो एक दिन उसे उस दुख तक़लीफ़ से मुक्त भी कर देता है। मेरे अपनों ने मेरे साथ क्या किया ये तो आप जानती हैं माॅ मगर किसी ग़ैर ने अपना बन कर मेरे लिए क्या किया ये आप नहीं जानती हैं। वो ग़ैर मेरे लिए फरिश्ता क्या बल्कि भगवान बन कर आया और आज मुझे हर दुख दर्द से मुक्त कर दिया।"

"ये तू क्या कह रहा है बेटा?" माॅ ने गहन आश्चर्य के साथ कहा___"मेरी समझ में तेरी ये बातें नहीं आ रही।"

मैने माॅ को संक्षेप में सारी कहानी बताई। उन्हें बताया कि मुम्बई में मैं जिस मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था उस कंपनी के मालिक जगदीश ओबराय मुझसे प्रभावित होकर मुझे क्या क्या काम दिया और फिर कैसे उनके दिल में मेरे लिए प्यार और स्नेह जागा। कैसे उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया और फिर कैसे उन्होंने अपनी सारी प्रापर्टी जो करोड़ों अरबों में थी उसे मेरे नाम कर दिया और आज मैं अपनी माॅ और बहन के साथ उनके ही अलीशान बॅगले में रहता हूॅ। मैने माॅ को ये भी बताया कि कुछ दिन पहले अभय चाचा भी मुझे ढूॅढ़ते हुए वहाॅ पहुॅचे थे। पवन के बताने पर मैं उनको रेलवे स्टेशन से अपने बॅगले में ले गया और अब वो भी मेरे साथ ही वहाॅ पर हैं। सारी बातें सुनने के बाद माॅ मुझे इस तरह देखने लगी थी जैसे मेरे सिर पर अचानक ही उन्हें दिल्ली का कुतुब मीनार खड़ा हुआ नज़र आने लगा हो।

"अब आपका ये बेटा करोड़ क्या बल्कि अरबपति है माॅ।" मैने माॅ को उनके कंधों से पकड़ते हुए कहा___"इस लिए आप इस बात की बिलकुल भी चिंता मत कीजिए कि आशा दीदी की शादी मैं कैसे क पाऊॅगा?"
"भगवान का लाख लाख शुकर है बेटा कि उसने तुझ पर इतनी अनमोल कृपा की।" माॅ ने खुशी से छलक आई अपनी ऑखों को पोंछते हुए कहा___"दिन रात मैं यही सोचती रहती थी कि किस हाल में होगा तू वहाॅ पर और किस तरह तू अपनी माॅ बहन को अपने साथ रखा हुआ होगा? मगर तेरी ये बातें सुन कर मेरे मन का बोझ हल्का हो गया है। मेरा बेटा इतना बड़ा आदमी बन गया है इससे ज्यादा खुशी की बात एक माॅ के लिए क्या हो सकती है?"

"सब आपकी दुवाओं और आशीर्वाद का फल है माॅ।" मैने कहा___"माॅ की दुवाओं में बहुत असर होता है। भगवान माॅ की दुवाओं को कभी विफल नहीं होने दे सकता।"

मेरी ये बात सुनकर माॅ ने मुझे अपने गले से लगा लिया। मेरे सिर पर प्यार से हाॅथ फेरती रहीं वो। फिर मैं उनसे अलग हुआ और बोला___"माॅ मैं दीदी से भी मिल लूॅ। उनके चेहरे पर फिर से मुझे पहले वाली खुशियाॅ देखना देखना है।"

"ठीक है जा मिल ले उससे।" माॅ ने कहा__"तेरे समझाने से शायद वो खुश रहने लगे।"
"वो ज़रूर खुश रहेंगी माॅ।" मैने कहा__"मैं उनके चेहरे पर वही खुशी लाऊॅगा। उनका ये भाई उनकी दामन में हर तरह की खुशियाॅ लाकर डाल देगा।"

मेरी बात सुन कर माॅ की ऑखें भर आईं जिन्हें उन्होंने अपनी सफेद सारी के ऑचल से पोंछ लिया। मैं उनके पास से चल कर कमरे से बाहर आया और आशा दीदी के कमरे की तरफ बढ़ गया। दीदी के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैने दरवाजे पर लगी साॅकल को पकड़ कर बजाया। किन्तु अंदर से कोई प्रतिक्रिया न हुई। मैने बाहर से ही आवाज़ लगाई उन्हें तब जाकर अंदर से दीदी की आवाज़ आई। वो कह रही थी कि आजा राज दरवाजा तो खुला ही है।

मैं अंदर गया तो देखा दीदी चारपाई के किनारे पर बैठी हुई थी। उनका सिर नीचे झुका हुआ था। मैं उनके पास जाकर उनके बगल से बैठ गया और उनके कंधे पर हाॅथ रखा। दीदी ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं चौंक गया। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। उनकी इस हालत को देख कर मेरा दिल तड़प उठा।

"ये क्या दीदी?" मैने कहा___"मेरी इतनी प्यारी दीदी की ऑखों में इतने सारे ऑसू?"
मेरी बात पूरी भी न हुई थी कि आशा दीदी झपट कर मुझसे लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी।

मुझे उनके इस तरह फूट फूट कर रोने से बड़ा दुख हुआ। लेकिन मैने उन्हें रोने दिया। शायद ये उनके अंदर का गुबार था। जिसका बाहर निकल जाना बेहद ज़रूरी था। मैं उनके सिर पर बड़े प्यार व स्नेह भाव से हाॅथ फेरता रहा।

सहसा मुझे उनके साथ बिताए हुए कुछ खुशियों भरे पल याद आ गए। मैं,पवन और आशा दीदी हमेशा ऊधम मचाते थे इस घर में। माॅ हमारी शैतानियाॅ देख कर खुस्सा करती, हलाॅकि हम तीनों जानते थे कि हम तीनों का ये प्यार देख कर माॅ खुद भी अंदर ही अंदर खुश हुआ करती थी। मगर प्रत्यक्ष में माॅ हमेशा दीदी को डाॅटने लगती। कहती कि वो तो हम दोनो से बड़ी है फिर क्यों हमारे साथ बच्ची बन जाती है। माॅ के डाॅटने से दीदी मुह फुला कर बैठ जाती। उसके बाद मैं और पवन उन्हें मनाने लगते। हम दोनो के पास उन्हें मनाने का बड़ा ही साधारण और खूबसूरत सा तरीका होता था। इस वक्त वही तरीका मेरे ज़हन में आया तो बरबस ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई।

"दुनियाॅ में सबसे सुंदर कौन?" मैने दीदी को अपने से छुपकाए हुए ही प्यार से कहा।
"सिर्फ मैं।" मेरी बात सुनते ही दीदी को पहले तो झटका सा लगा फिर उसी हालत में बोल पड़ी थी।
"दुनियाॅ में सबसे प्यारी कौन?" मैने फिर से कहा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने लरजते स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे चंचल कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने भारी स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे नटखट कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं?" दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई।
"और दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन?" मैने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने कहा तो मैं चौंक पड़ा। उन्हें खुद से अलग कर उनके चेहरे की तरफ बड़े ध्यान से देखा मैने।

आशा दीदी का दूध सा गोरा चेहरा ऑसुओं से तर था। नज़रें झुकी हुई थी उनकी। मैं हैरान इस बात पर हुआ था कि मेरे पूछने पर कि "दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन" का जवाब भी उन्होंने यही दिया कि "सिर्फ मैं"। जबकि अक्सर यही होता था कि इस सवाल पर वो यही कहती कि शैतना तुम दोनो ही हो। मैं तो मासूम हूॅ। लेकिन आज उन्होंने खुद को ही शैतान कह दिया था।

"ये तो कमाल हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज आपने खुद को ही कह दिया कि आप ही सबसे शैतान हो। आज आपने ये नहीं कहा कि मैं और पवन ही सबसे ज्यादा शैतान हैं। आप तो मासूम ही हैं।"
"हाॅ तो क्या हुआ?" दीदी ने सहसा तुनक कर कहा___"आज मैं शैतान बन जाती हूॅ। तुम दोनो मासूम बन जाओ।"

मैं उनकी इस बात को सुन कर मुस्कुराया। दीदी ने ये बात बिलकुल वैसे ही अंदाज़ में कही थी जैसा अंदाज़ उनका आज से पहले हुआ करता था। दीदी को भी इस बात का एहसास हुआ और फिर एकाएक ही उनकी रुलाई फूट गई।

"अरे अब क्या हुआ दीदी?" मैने उनको अपने से छुपका कर कहा___"देखो अब रोना नहीं। मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि आप मेरी इतनी प्यारी सी दीदी को बात बात पर इस तरह रुला दो। चलो अब जल्दी से रोना बंद करो और अपनी वही मनमोहक मुस्कान और नटखटपना दिखाओ मुझे ताकि मेरे मन को सुकून मिल जाए।"

"अब तू आ गया है न तो अब मैं नहीं रोऊॅगी राज।" आशा दीदी ने कहा___"तुझे पता है मैं तुझे कितना मिस करती थी। हम तीनो का वो बचपन जाने कहाॅ गुम हो गया था? तुम दोनो मेरे खिलौने थे जिनके साथ मैं हॅसती खेलती रहती थी।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा___"मगर आप तो जानती हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है। ख़ैर, छोंड़िये ये सब और मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप हमेशा खुश रहेंगी। अपने चेहरे पर वो उदासी और किसी भी तरह के दुख के भाव नहीं आने देंगी।"

"हम्म।" दीदी ने हाॅ में सिर हिलाया।
"अब बताइये आपको अपने इस भाई से क्या तोहफ़ा चाहिए?" मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
"तू आ गया है मेरे पास।" दीदी ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से सहला कर कहा___"इससे बड़ा तोहफ़ा मेरे लिए और क्या होगा?"

"पर मैं तो आपके लिए आपकी मनपसंद चीज़ लेकर ही आया हूॅ।" मैने कहा__"अब अगर आपको नहीं चाहिए तो ठीक है मैं उसे किसी और को दे दूॅगा।"
"ख़बरदार अगर किसी और को दिया तो।" दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"ला दे मेरी चीज़ मुझे। वैसे क्या लेकर आया है राज?"
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,538,940 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 548,603 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,248,327 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 943,911 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,676,065 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,099,333 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,982,853 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,161,125 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,071,628 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 288,587 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 6 Guest(s)