non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:29 PM,
#81
RE: non veg kahani एक नया संसार
कमरे के दरवाजे पर अपनी आॅखों से डबडबाते आॅसू के साथ खड़ी निधि अपने भाई विराज को देखे जा रही थी जो अपने दाहिने हाॅथ में मॅहगी शराब की बोतल को मुॅह से लगाए गटागट पिये जा रहा था। देखते ही देखते सारी बोतल खाली हो गई। विराज ने खाली बोतल को बार काउंटर पर पटका और फिर से एक बोतल उठा ली उसने।

निधि को जैसे होश आया, वह बिजली की सी तेज़ी से कमरे के अंदर विराज के पास पहुॅची और हाॅथ बढ़ा कर एक झटके से विराज के हाॅथ से बोतल खींच ली।

"ये क्या पागलपन है भइया?" निधि ने रोते हुए किन्तु चीख कर कहा__"आप शराब को हाॅथ कैसे लगा सकते हैं? क्या उसका ग़म इतना बड़ा है कि उसके ग़म को भुलाने और मिटाने के लिए आपको इस शराब का सहारा लेना पड़ रहा है? क्यों भइया क्यों...क्यों उसको याद करके घुट घुट के जी रहे हैं? एक ऐसी बेवफा के लिए जिसको आपके सच्चे प्यार की कोई कद्र ही न थी। जिसने आपकी गुरबत को देख कर आपका साथ देने की बजाय आपका साथ छोंड़ दिया। क्यों भइया....क्यों ऐसे इंसान को याद करना? क्यों ऐसे इंसान की यादों में तड़पना जिसको प्यार और मोहब्बत के मायने ही पता नहीं?"

विराज ख़ामोश खड़ा था। उसका चेहरा आॅसुओं से तर था। चेहरे पर ज़माने भर का दर्द जैसे तांडव कर रहा था। आॅखें शराब के नशे में लाल सुर्ख हो चली थीं। निधि क्या बोल रही थी उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जबकि निधि ने उसे पकड़ कर आराम से वहीं रखे एक सोफे पर बिठाया और खुद भी उसके पास ही बैठ गई।

"तु तुझे ये सब कैसे पता चला गुड़िया?" फिर विराज ने लरजते हुए स्वर में कहा।
"आप सारी दुनियाॅ को बहला सकते हैं भइया,लेकिन अपनी गुड़िया को नहीं।" निधि ने कहा__"मुझे इस बात का आभास तो पहले से ही था कि आप जो हम सबको दिखा रहे हैं वैसा असल में है नहीं। मैंने अक्सर रातों में आपको रोते हुए देखा था। एक दिन जब आप किसी काम से बाहर गए हुए थे तो मैंने आपके कमरे की तलाशी ली। उस समय मैं खुद नहीं जानती थी कि आपके कमरे में मैं क्या तलाश कर रही थी? किन्तु इतना ज़रूर जानती थी कि कुछ तो मिलेगा ही ऐसा जिससे ये पता चल सके कि आप अक्सर रातों में क्यों रोते हैं? काफी तलाश करने के बाद जो चीज़ मुझे मिली उसने अपनी आस्तीन में छुपाई हुई सारी दास्तां को मेरे सामने रख दिया। मेरे हाॅथ आपकी डायरी लग गई थी....उसी से मुझे सारी बातें पता चलीं। डायरी में आपके द्वारा लिखा गया एक एक हर्फ़ ऐसा था जिसने मुझे और मेरी अंतर्आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया था भइया। अच्छा हुआ कि वो डायरी मुझे मिल गई थी वर्ना भला मैं कैसे जान पाती कि आप अपने सीने में कितना बड़ा दर्द छुपा कर हम सबके सामने हॅसते बोलते रहते हैं?"

"ये सब माॅ से मत बताना गुड़िया।" विराज ने बुझे स्वर में कहा__"वर्ना माॅ को बहुत दुख होगा। उन्होंने बहुत दुख सहे हैं, मैं उन्हें अब किसी भी तरह दुखी नहीं देख सकता।"

"और मुझे???" निधि ने विराज की आॅखों में बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा__"क्या मुझे दुखी सकते है आप??"

"नहीं, हर्गिज़ नहीं गुड़िया।" विराज ने कहने के साथ ही निधि के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच लिया__"तू तो मेरी जान है रे। तेरी तरफ तो दुख की परछाई को भी न फटकने दूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो क्यों खुद को इतनी तकलीफ़ देते हैं आप?" निधि ने रुआॅसे स्वर में कहा__"आप भी तो मेरी जान हैं, और मैं भला अपनी जान को दुख में देख कर कैसे खुश रह सकती हूॅ, कभी सोचा है आपने? आप तो हमेशा उसी की याद में दुखी रहते हैं, उसी के बारे में सोचते रहते हैं। आपको इस बात का ख़याल ही नहीं रहता कि जो सचमुच आपसे प्यार करते हैं वो आपको इस तरह दुखी देख कर कैसे खुश रह सकते हैं?"

विराज कुछ न बोला। सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया उसने और अपनी आॅखें बंद कर ली। उस पर अब नशा हावी हो गया था। दुख दर्द जब असहनीय हो जाता है तो वह कुछ भी कर गुज़रने पर उतारू हो जाता है। आज तक उसने शराब को हाथ भी न लगाया था। अपने इस दर्द को किसी से बयां भी न किया था, किन्तु आज अपनी ये सच्चाई जब निधि के मुख से सुनी तो उसे जाने क्या हुआ कि उसके जज्बात हद से ज्यादा मचल गए और उसने शराब पी। हलाकि वह अंदर इस लिए आया था क्योंकि वह निधि के सामने खुद को इस हाल में नहीं दिखा सकता था। जब वह कमरे में आया तो नज़र कमरे में ही एक तरफ लगे बार काउंटर पर पड़ी। अपनी हालत को छुपाने के लिए उसने पहली बार शराब की तरफ अपना रुख किया था। जुनून के हवाले हो चुके उसने शराब की बोतल ही मुख से लगा ली और सारी बोतल डकार गया। किन्तु अब उस पर शराब का नशा तारी हो चुका था।

निधि कोई बच्ची नहीं थी बल्कि सब समझती थी। उसे एहसास था कि शराब ने उसके भाई पर अपना असर दिखा दिया है। क्या सोच कर आए थे दोनो यहाॅ लेकिन क्या हो गया था। निधि को अपने भाई की इस हालत पर बड़ा दुख हो रहा था। वह आॅखे बंद किये अपने भाई को ही देखे जा रही थी। उसने उसे झकझोर कर पुकारा, तो विराज हड़बड़ा कर उठा। इधर उधर देखा फिर नज़र निधि पर पड़ी तो एकाएक ही वह चौंका। उसे निधि के चेहरे पर किसी और का ही चेहरा नज़र आ रहा था। वह एकटक देखे जा रहा था उसे। फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव बदल गए।

"अब यहाॅ क्या देखने आई हो विधि?" विराज भावावेश में कह रहा था__"देख लो तुमने जो ग़म दिये थे वो थोड़ा कम पड़ गए वर्ना आज मैं ज़िंदा नहीं रहता बल्कि कब का मर गया होता या फिर पागल हो गया होता। लेकिन चिन्ता मत करो, क्योंकि ज़िन्दा भी कहाॅ हूॅ मैं? हर पल घुट घुट कर जीता हूॅ मैं। इससे अच्छा तो ये होता कि तुम मुझे ज़हर दे देती। कम से कम एक बार में ही मर जाता।"

इधर विराज जाने क्या बोले जा रहा था जबकि उधर निधि पहले तो बुरी तरह चौंकी थी फिर जब उसे सब कुछ समझ आया तो उसका दिल तड़प उठा। उसने कुछ कहा नहीं बल्कि अपने भाई को बोलने दिया ये सोच कर कि ये उसके अंदर का गुबार है। इस गुबार का निकलना भी बहुत ज़रूरी है। उसे जाने क्या सूझी कि उसने इस सबके लिए खुद विधि का रोल प्ले करने का सोच लिया।

"क्यों किया ऐसा विधि?" विराज भर्राए गले से कह रहा था__"क्या यही प्यार था? क्या तुम्हें मेरे धन दौलत से प्यार था? और जब तुमने देखा कि मेरे अपनों ने मुझे मेरी माॅ बहन सहित हर चीज़ से बेदखल कर दिया है तो तुमने भी मुझे दुत्कार दिया? क्यों किया ऐसा विधि....?"

"प्यार व्यार ये सब फालतू की बाते हैं मिस्टर विराज।" विधि का रोल कर रही निधि ने अजीब भाव से कहा__"समझदार आदमी इनके चक्करों में पड़ कर अपना समय बर्बाद नहीं करता। मैने तुमसे प्यार किया था क्योंकि तुम उस समय अमीर थे। तुम्हारे पास धन था दौलत थी। उस समय तुम मेरे लिए कुछ भी खरीद कर दे सकते थे। तुमसे शादी करती तो सारी ज़िन्दगी ऐश करती। मगर तुम तो अपनों के द्वारा दर दर का भिखारी बना दिये गए। भला कोई भिखारी मेरी ज़रूरतों को कैसे पूरा कर पाता? इस लिए मैंने समझदारी से काम लिया और तुमसे जो प्यार का चक्कर चलाया था उसे खत्म कर दिया। हर ब्यक्ति अपने सुख और हित के बारे में सोचता है। मैं ने भी तो यही सोचा था, इसमें भला मेरी क्या ग़लती?"

"कितनी आसानी से ये सब कह दिया तुमने?" विराज के अंदर जैसे कोई हूक सी उठी थी, बोला__"क्या एक पल के लिए भी तुम्हारे मन में ये ख़याल नहीं आया कि तुम्हारे इस तरह के कठोर बर्ताव से मुझ पर क्या गुज़री रही होगी? क्या तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं लगा कि तुम ये जो कुछ कर रही हो वह कितना ग़लत है? क्या तुझे एक पल के लिए भी नहीं लगा था कि तेरे इस तरह दुत्कार देने से सारी ऊम्र मैं सुकून से जी नहीं पाऊॅगा? बता बेवफा....बता बेहया लड़की?"

विराज एकाएक ही बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगा था। जुनून और पागलपन सा सवार हो गया था उस पर। उसने एक झटके में निधि की गर्दन को अपने दोनो हाॅथों से दबोच लिया। निधि को इस सबकी उम्मीद नहीं थी। इस लिए जैसे ही विराज ने अपने दोनो हाॅथों से उसकी गर्दन दबोची वैसे ही वह बुरी तरह घबरा गई। जबकि विराज जुनूनी हो चुका। इस वक्त उसके चेहरे पर नफरत घृड़ा और गुस्सा जैसे कत्थक करने लगा था। आॅखें तो नशे में वैसे ही लाल सुर्ख हो गई थी पहले से अब चेहरा भी सुर्ख पड़ गया था।

निधि ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। विराज ने उसकी गर्दन को शख्ती से दबोचा हुआ था। निधि बुरी तरह सहम गई थी। डर और भय के चलते उसका चेहरा निस्तेज़ का हो गया था। जबकि.....

"अब बोलती क्यों नहीं खुदगर्ज़ लड़की? बोल क्यों किया मेरे दिल के साथ इतना बड़ा खिलवाड़?" विराज भभकते स्वर में बोले जा रहा था__"बोल क्यों मेरी पाक भावनाओं को पैरों तले रौंदा था? बोल कितनी धन दौलत चाहिए तुझे? आज तो मैं फिर से अमीर हो गया हूॅ....मेरे पास आज इतनी दौलत है कि तेरे जैसी जाने कितनी लड़कियों को एक साथ उस दौलत से तौल दूॅ। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे पता चल गया हो कि मैं फिर से धन दौलत वाला हो गया हूॅ और इस लिए तू फिर से अपना फरेबी प्यार मेरे आगे परोसने आ गई? नहीं नहीं...अब मुझे तेरे इस घिनौने प्यार की ज़रूरत नहीं है। बल्कि अब तो मैं तेरे जैसी लड़कियों को अपनी उसी दौलत से दो कौड़ी के दामों में खरीद कर अपने नीचे सुलाऊॅगा और रात दिन रगड़ूॅगा उन्हें समझी तू???"

"भ भइया...ये क् क्या हो गया है आ आपको?" निधि बड़ी मुश्किल से बोल पा रही थी__"मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।"

विराज इस तरह रुक गया जैसे स्टैचू में तब्दील हो गया हो। कानों में सिर्फ एक यही वाक्य गूॅज रहा था 'मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।' बार बार यही वाक्य कानों में गूॅज रहा था। एक झटके से विराज ने निधि की गर्दन से अपने हाॅथ खींचे। एक पल में ही उसकी बड़ी अजीब सी हालत हो गई। आॅखें फाड़ कर निधि को देखा उसने। और फिर फूट फूट कर रो पड़ा वह। निधि को अपने सीने से छुपका लिया उसने।

"मुझे माफ कर दे...माफ कर दे मुझे।" विराज ने निधि को अपने सीने से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा__"ये मैं क्या कर रहा था गुड़िया? अपने इन्हीं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी गुड़िया का गला दबा रहा था मैं। मुझे माफ कर दे गुड़िया, मुझसे कितना नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके लिए कठोर से भी कठोर सज़ा दे गुड़िया।"


"भइयाऽऽ।" निधि का दिल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से विराज को खुद से चिपका लिया। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। वह जानती थी कि ये जो कुछ भी हुआ उसमें विराज की कहीं कोई ग़लती नहीं थी। वो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से निधि को ही विधी समझ कर उसके अंदर से फट पड़ा था।

जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा। निधि अपने भाई को शान्त कराती रही। शराब के नशे में विराज वहीं निधि की गोंद में सिर रख कर सो गया था। निधि बड़े प्यार से उसके सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरती जा रही थी। उसकी नज़रें अपने भाई के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी।

'आप चिन्ता मत कीजिए भइया, आपकी ये गुड़िया आपको इतना प्यार करेगी कि आप संसार के सारे दुख सारे ग़म भूल जाएॅगे। आप मेरी जान हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस लिए आज से आपकी खुशी के लिए मैं वो सब कुछ करूॅगी जिससे आपको खुशी मिले।
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11-24-2019, 12:29 PM,
#82
RE: non veg kahani एक नया संसार
"मुझे माफ कर दे...माफ कर दे मुझे।" विराज ने निधि को अपने सीने से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा__"ये मैं क्या कर रहा था गुड़िया? अपने इन्हीं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी गुड़िया का गला दबा रहा था मैं। मुझे माफ कर दे गुड़िया, मुझसे कितना नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके लिए कठोर से भी कठोर सज़ा दे गुड़िया।"

"भइयाऽऽ।" निधि का दिल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से विराज को खुद से चिपका लिया। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। वह जानती थी कि ये जो कुछ भी हुआ उसमें विराज की कहीं कोई ग़लती नहीं थी। वो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से निधि को ही विधी समझ कर उसके अंदर से फट पड़ा था।

जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा। निधि अपने भाई को शान्त कराती रही। शराब के नशे में विराज वहीं निधि की गोंद में सिर रख कर सो गया था। निधि बड़े प्यार से उसके सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरती जा रही थी। उसकी नज़रें अपने भाई के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी।

'आप चिन्ता मत कीजिए भइया, आपकी ये गुड़िया आपको इतना प्यार करेगी कि आप संसार के सारे दुख सारे ग़म भूल जाएॅगे। आप मेरी जान हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस लिए आज से आपकी खुशी के लिए मैं वो सब कुछ करूॅगी जिससे आपको खुशी मिले। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अब आगे,,,,,,,,

विराज को लगभग चार घंटे बाद होश आया। निधि की गोद में सिर रखे वह उसी तरह लेटा हुआ था। उसके सिर पर निधि का हाॅथ था और वह खुद भी वहीं पर यूॅ ही सो गई थी। दोनो ही नहीं जानते थे कि जिस शिप में वो दोनो इस वक्त थे वह कहाॅ से कहाॅ घूमते हुए पहुॅच गया था।

विराज को जब होश आया तो उसने अपने सिर को निधि की गोद में टिका हुआ पाया। उसने देखा कि उसकी जान उसके सिर पर अपना हाॅथ रखे यूॅ ही सो गई थी। उसके खूबसूरत चेहरे पर संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। विराज को उस पर बड़ा प्यार आया। वह आहिस्ता से निधि की गोद से उठा और फिर निधि को बड़ी ही आसानी से अपनी बाजुओं में उठा लिया। पास में ही एक तरफ रखे सोफे पर उसने निधि को आहिस्ता से लिटाया। उसके बाद वह खुद भी उसके चेहरे के समीप ही बैठ गया और अपनी गुड़िया को सोते देखने लगा। कुछ देर यूॅ ही देखने के बाद वह झुका और निधि के माथे पर आहिस्ता से चूॅमा फिर उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

विराज के जाते ही निधि ने मुस्कुराते हुए पट से अपनी आॅखें खोल दी। कुछ पल जाने क्या सोचती रही फिर उसने बहुत ही धीमे स्वर में कहा__"आपको तो ये भी नहीं पता जान जी कि किस किसी लड़की के माथे पर नहीं बल्कि उसके होंठो पर किया जाता है। लेकिन आप चिन्ता मत कीजिए....आप ये भी जानने लगेंगे...मैं सब बताऊॅगी न आपको, हाॅ नहीं तो।" ये कह कर वह हॅस पड़ी फिर सहसा शर्मा भी गई वह। अपने दोनो हाथों द्वारा तुरंत ही अपना चेहरा छुपा लिया उसने।

कुछ देर बाद विराज जब बाथरूम से वापस आया तो उसने अपनी गुड़िया को अपने ही हाथों अपने चेहरे को छुपाये हुए पाया। उसे लगा गुड़िया अभी भी उसके लिए दुखी है, इस लिए वह तुरंत ही उसके पास पहुॅचा और फर्स पर उसके घुटनों के पास बैठ गया।

"तू दुखी मत हो गुड़िया।" विराज ने अपने हाॅथों द्वारा निधि के चेहरे से उसके हाॅथों को हटाते हुए कहा__"मैं तुझसे वादा करता हूॅ कि अब से मैं खुद को दुखी नहीं करूॅगा। उसकी यादों पर तो मेरा कोई ज़ोर नहीं है लेकिन अब उसकी यादों से मैं खुद को विचलित नहीं करूॅगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है भइया।" निधि ने कहा__"उस लड़की को याद करके अपने दिल को क्यों तकलीफ़ देना जिसे प्यार की परिभाषा का ज्ञान ही न हो।"
"तू सही कह रही है गुड़िया।" विराज के चेहरे पर एकाएक ज़लज़ले के से भाव आए, बोला__"लेकिन इसका हिसाब तो मैं उससे लूॅगा गुड़िया। उसे मेरे साथ इस खिलवाड़ को करने की सज़ा ज़रूर मिलेगी मेरे हाथों। ऐसा हाल करूॅगा उसका कि फिर किसी के साथ ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं करेगी वो।"

"क्या आपका ऐसा करना मेरा मतलब है कि उसे सज़ा देना उचित है भइया?" निधि ने कहा__"उसने जो किया उसे उसका फल भगवान खुद ही दे देगा। आपने उससे सच्चा प्यार किया था, इस लिए आप उसके लिए अपने मन में ऐसा विचार कैसे रख सकते हैं??"

"मैं जानता हूॅ गुड़िया कि प्यार में बदले की ऐसी भावना या विचार रखना उचित नहीं है।" विराज ने कहा__"लेकिन किसी को आईना दिखाना तो सर्वथा उचित है न। वही करना चाहता हूॅ मैं।"

"ठीक है आपको जो अच्छा लगे वो कीजिये भइया।" निधि ने कहा__"शायद इससे आपके दिल को सुकून मिल जाए।"
"माफ़ करना गुड़िया।" विराज ने खेद भरे स्वर में कहा__"मैं तुझे यहाॅ किस लिये लाया था और क्या हो गया। लेकिन तू फिक्र मत कर, अभी तो बहुत समय है। चल हम दोनो अब इस टूर का आनन्द लेते हैं।"

"कोई बात नहीं भइया।" निधि ने प्यार भरे लहजे में कहा__"आपसे बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। आप मेरी जान हैं, और जब मेरी जान ही खुश नहीं रहेगी तो भला मैं कैसे किसी चीज़ से खुश रह सकती हूॅ?"

"तू और तेरी ये बातें।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"मेरी समझ से बाहर हैं गुड़िया।"
"ऐसा क्यों?" निधि ने विराज की तरफ गौर से देखते हुए कहा था।

"कभी कभी मुझे ऐसा लगा करता है जैसे तेरे अलावा भी तुझ में कोई और कैरेक्टर है जो कुछ और कहने लगता है।" विराज ने कहा__"कुछ ऐसा कहने लगता है जो मेरी समझ में ही नहीं आता।"

"अच्छा, ऐसा आपको क्यों लगता है भइया?" निधि ने धड़कते दिल से कहा__"कि मेरे अंदर कोई और भी कैरेक्टर है जो कुछ और ही कह डालता है?"

"पता नहीं गुड़िया।" विराज ने कहा__"कभी कभी लगता है जैसे तू अब मेरी वो गुड़िया नहीं रही जो हर चीज़ को अपनी मधुर व चुलबुली बातों से हस कर उड़ा देती थी बल्कि अब तू बड़ी हो गई लगती है। इतनी बड़ी कि तेरी बातों में अब किसी रहस्य तथा किसी दूसरे ही अर्थ का आभास होता है जो समझ से परे होता है।"

निधि अपलक देखती रह गई विराज को। उसके दिल की धड़कने अनायास ही बढ़ गई थी। उसे समझ में न आया कि वो क्या जवाब दे???

"मैं सच कह रहा हूॅ न गुड़िया?" उसे चुप देख विराज ने कहा__"ऐसी ही बात है न तुझ में?"
"पता नहीं भइया।" निधि ने सिर झुका कर कहा__"जाने क्यों ऐसा लगता है आपको, जबकि ऐसी तो कोई बात ही नहीं है।"

"चल कोई बात नहीं गुड़िया।" विराज ने निधि के चेहरे को अपने दोनो हाॅथों में लेते हुए कहा__"पर तू इतना समझ ले कि तेरा ये भाई तुझसे बहुत प्यार करता है और तुझे हमेशा खुशियों से चहकती व फुदकती हुई ही देखना चाहता है।"

विराज की बातें सुन कर निधि की आॅखें भर आई। उसके दिल में भावना का एक तीब्र भूचाल सा आ गया। उसी भावना के वशीभूत होकर वह विराज से लिपट गई। विराज के सीने में चेहरा छुपाए हुए ही बोली__"पर ये तभी संभव है जब आप भी खुश रहेंगे। अगर आप किसी बात से दुखी होंगे तो मैं भी दुखी हो जाऊॅगी।"

"ऐसा क्यों भला?" विराज ने कुछ सोचते हुए पूछा था।
"क्योंकि मैं आपसे प्या....।" निधि कहते हुए अचानक ही रुक गई। उसे एकाएक ही ध्यान आया था कि वह ये क्या बोलने वाली थी। उसकी हालत पल भर में ख़राब हो गई। दिल की धड़कने इतनी तीब्र हो गई उसकी धमक कनपटियों में स्पष्ट सुनाई देने लगी थी। उसने तुरंत ही बात को सम्हालते हुए बड़ी मुश्किल से कहा__"क्यों कि आप हमारे लिए सब कुछ हैं भ भइया...अगर आप ही इस तरह दुखी रहेंगे तो हम माॅ बेटी कैसे खुश रह सकेंगे भला?"

निधि ने भले ही अपनी समझ में बात को सम्हाल लिया था किन्तु उसके पहले अधूरे वाक्य ने ही सारी सच्चाई स्पष्ट कर दी थी। विराज ने पूछा ही इस तरह था कि जल्दबाजी और बेध्यानी में उसके मुख से वो निकल गया था जो वर्षों से उसके दिल में पनप रहा था। विराज ये सुन कर तथा ये जान कर बुरी तरह हिल गया था कि उसकी जान उसकी गुड़िया उससे प्यार करती है। यही वो बातें थी जो द्विअर्थी होती थी और विराज को समझ में नहीं आती थी। किन्तु आज संयोगवश सब कुछ सामने आ गया था। निधि खुद ही बेख़याली में बोल गई थी।

अपने भाई को खामोश जान कर निधि को झटका सा लगा। उसे समझते देर न लगी कि सब गड़बड़ हो चुका है। मतलब उसका भाई उसके पहले ही अधूरे वाक्य को सुन कर समझ चुका है कि उसकी सच्चाई क्या है। बात को सम्हालने की उसकी कोशिश बेकार हो चुकी थी। हालत ये हो गई उसकी कि अपने भाई से नज़र मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी अब। भाई के सीने में चेहरा छुपाए वह वैसी ही खड़ी रही। उसे लग रहा था कि ये ज़मीन फटे और वह पाताल तक उसमे समाती चली जाए। मगर चाह कर भी तो वह ऐसा न कर सकी। उसके होंठ घबराहटवश बुरी तरह थरथरा रहे थे।

वातावरण में अजीब सी शान्ति छा गई थी। काफी देर तक यही आलम रहा। दोनो में से कोई भी कुछ न बोल रहा था। विराज तो जैसे वहाॅ था ही नहीं बल्कि किसी गहरे ख़यालों के समंदर में डूबा हुआ नज़र आ रहा था। बार बार उसके ज़ेहन में यही बात गूॅज रही थी कि उसकी गुड़िया उसकी अपनी बहन उससे प्यार करती है।

"भ भइया।" सहसा निधि ने हिम्मत जुटा कर तथा विराज के सीने से अपना चेहरा उठा कर विराज की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा__"क्या बात है...आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मुझसे कोई ग़लती हो गई? अगर ऐसा है तो मुझे माफ़ कर दीजिए प्लीज़।"

विराज के कानों में निधि की जब ये बातें पड़ीं तो वह ख़यालों के गहरे समुद्र से बाहर आया। वस्तुस्थित का आभास होते ही उसने निधि की तरफ अजीब भाव से देखा। निधि खुद भी उसी की तरफ देख रही थी किन्तु सीघ्र ही उसकी नज़रें झुक गईं। जाने क्यों अपने भाई की आॅखों से आॅखें न मिला सकी वह। कदाचित् इस लिए कि उसके दिल का भेद उसके भाई के सामने खुल चुका था।

"आज का पिकनिक टूर यहीं पर खत्म हो चुका गुड़िया।" सहसा विराज ने सपाट भाव से कहा__"अब हम वापस घर चल रहे हैं।"

इतना कह कर विराज ने निधि को खुद से अलग किया और बाहर की तरफ चल दिया। निधि को जाने क्यों ऐसा लगा जैसे उसका सब कुछ लुट गया है, उसके सीने में बड़ा तेज़ दर्द उठा। आॅखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। ऐसा लगा जैसे वह अभी गश खा कर वहीं फर्स पर गिर पड़ेगी। लेकिन अंतिम समय में उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाल लिया। दिल में उमड़ते हुए जज़्बातों में प्रबलता आ गई जिसकी वजह से उसकी रुलाई फूट गई। वह जी जान से विराज की तरफ दौड़ी और पीछे से विराज की पीठ से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगी।
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"ये तुम क्या कह रहे हो हरिया?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था__"तुमने अच्छी तरह पता किया तो है न ?"
"जी हाॅ मालिक।" हरिया नाम का एक आदमी जो कि अजय सिंह का ही आदमी था बोला__"मैने अच्छी तरह पता किया है। आपके छोटे भाई कल ही यहाॅ से बम्बई के लिए निकल गए थे। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को कल ही उदयपुर भेज दिया था। मेरे एक खास आदमी ने अपनी आॅखों से उनको जाते हुए देखा था। उसी ने बताया कि छोटी मालकिन(करुणा) के भाई उनके साथ ही थे।"

अजय सिंह ये सब जान कर बुरी तरह भिन्ना गया। उसने तो सोचा था कि अभय के जाते ही वह करुणा को उठवा लेगा और उसे अपने नये फार्महाउस पर रखेगा। उसके बाद वह जिस तरह चाहेगा करुणा के गदराए हुए व मादक से जिस्म का मज़ा लूटेगा। किन्तु हरिया की इस ख़बर ने उसके सभी अरमानों पर पानी नहीं फेरा था बल्कि बाल्टी भर पेशाब कर दिया था। उसे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि उसका छोटा भाई अभय इतना शातिर दिमाग़ निकलेगा जो इतना आगे का सोच कर अपना खेल खेल जाएगा।

अजय सिंह चाहता तो करुणा को उसके मायके से भी उठवा सकता था किन्तु उस सूरत में बहुत बड़ा बवाल हो जाता। इस लिए अब वह अपने हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। करुणा नाम की खूबसूरत चिड़िया अब उसके हाॅथ से निकल गई थी।

अजय सिंह ने सोचा था कि अभय के पीछे अपने आदमियों को लगा देगा किन्तु वो भी न कर सका वह। क्योंकि उसे पता ही न चल पाया था कि अभय सिंह ने कब क्या किया था?

"तुम पता करो हरिया।" फिर उसने कुछ सोचते हुए कहा__"अभय मुम्बई जा चुका है या नहीं?"
"वो तो कल ही यहाॅ से चले गए थे मालिक।" हरिया ने कहा__"और आज तो वो बम्बई पहुॅच भी गए होंगे।"

"अरे बेवकूफ कल वो मुम्बई कैसे जा सकता है?" अजय सिंह ने हुड़की दी__"शाम से पहले तक तो वो यहीं था, और शाम को भला कौन सी ट्रेन इस शहर से मुम्बई जाती है। वह तो दोपहर को जाती है। मतलब साफ है कि अभय कल नहीं आज गया होगा मुम्बई।"

"ये तो मैने सोचा ही नहीं मालिक।" हरिया ने सिर झुका कर कहा__"छोटे मालिक अगर आज गए होंगे तो कल ही पहुॅचेंगे बम्बई। अब हम क्या करें मालिक?"

"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है हरिया।" अजय सिंह ने कहा__"ये तो तुम्हें भी मालूम है कि हमारे कुछ आदमी मुम्बई में ही हैं जो विराज और उसकी माॅ बहनों की खोज में लगे हुए हैं। हम अपने उन आदमियों को फोन करके कह देंगे कि वो अभय पर नज़र रखें। अभय कल मुम्बई पहुॅचेगा। मुम्बई में जैसे ही वह ट्रेन से उतरेगा वैसे ही हमारे आदमी उसके पीछे लग जाएंगे।"

"ये तो बहुत बढ़िया आइडियवा है मालिक।" हरिया ने इंग्लिश की माॅ बहन एक करते हुए कहा__"छोटे मालिक जहाॅ जहाॅ जाएॅगे हमारे आदमीं भी उनके पीछे जाएॅगे।"

"अब तुम जाओ हरिया।" अजय सिंह ने कहा__"हम भी किसी ज़रूरी काम से बाहर जा रहे हैं।"
"ठीक है मालिक।" कहते हुए हरिया चला गया वहाॅ से।

अजय सिंह ने मोबाइल निकाल कर मुम्बई में स्थित अपने आदमियों को फोन लगाया। अपने आदमियों को सारी बातें समझाने के बाद उसने फोन काट दिया।

अभी वह इस सबसे फारिग़ ही हुआ था कि सामने से उसकी इंस्पेक्टर बेटी रितू आती हुई दिखी। अजय सिंह उसे देख कर बस आह सी भर कर रह गया। पुलिस की चुस्त दुरुस्त वर्दी में उसकी बेटी ग़ज़ब ढा रही थी। जिस्म का एक एक उभार साफ नज़र आ रहा था। अजय सिंह की आॅखें एकटक रितू के सीने पर टिकी हुई थी। जहाॅ पर रितू के सीने के दो ठोस किन्तु बड़े बड़े वक्ष उसके चलने के कारण एक रिदम पर ऊपर नीचे कूद से रहे थे।

अजय सिंह अपनी बेटी के वक्षों को ललचाई नज़रों से देख ही रहा था कि तभी अंदर से आती हुई प्रतिमा की नज़र अजय सिंह पर पड़ी। अपने पति को अपनी ही बेटी के बड़े बड़े पर्वत शिखरों को ललचाई नज़रों से देखते देख वह मन ही मन कह उठी 'उफ्फ अजय तुम कभी नहीं सुधर सकते।'

"अरे...तुम अभी तक यहीं बैठे हो?" प्रतिमा ने तुरंत ही अजय सिंह का ध्यान भंग करने की गरज से कहा__"तुम तो कह रहे थे कि शहर जाना था?"

अजय सिंह चौंका, उसने तुरंत ही अपनी बेटी पर से नज़रे हटा ली। कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे इस सबसे वह बेहद शर्मसार हुआ हो किन्तु फिर अगले ही पल खुद को सम्हाल कर बोला__"ह हाॅ हाॅ बस निकल ही रहा हूॅ मैं।"

तब तक रितू भी आकर वहाॅ पर रखे एक सोफे पर लगभग पसर सी गई। अपने सिर से पुलिस की कैप उतार कर तथा हाथ में लिए पुलिस रुल को उसने एक तरफ रख दिया और फिर अपनी माॅ की तरफ देखते हुए कहा__"माॅम एक कप काॅफी मिलेगी क्या??"

"अभी लाई बेटी।" कहते हुए प्रतिमा वापस पलट गई और किचेन की तरफ चली गई।
"लगता है मेरी बेटी के सीने में काम और जिम्मेदारी का बोझ बहुत ही ज्यादा है।" अजय सिंह ने पुनः रितू के सीने की तरफ एक नज़र डाल कर कहा था।

"सीने पर?????" रितू ने चकरा कर कहा__"काम और जिम्मेदारी का बोझ तो कंधों पर होता है ना डैड??"

"ओह हाॅ हाॅ बेटी।" अजय सिंह बुरी तरह हड़बड़ा गया। उसके चेहरे पर घबराहट के भाव भी उभरे किन्तु फिर तुरंत ही सम्हल कर बोला__"यू आर राइट....अब्सोल्यूटली राइट।"

"डैड कल से शिवा कहीं नज़र नहीं आ रहा?" रितु ने पहलू बदलते हुए कहा__"और ना ही चाचा चाची जी वगैरा कहीं नज़र आ रहे हैं?"

"शिवा तो शहर में है बेटी।" अजय ने राहत की साॅस लेते हुए कहा__"बाॅकियों का मुझे पता नहीं। सब अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं। कहीं आने जाने के लिए वो किसी से पूछना ज़रूरी नहीं समझते। ख़ैर तुम बताओ, तुम्हारे केस का क्या हुआ? मेरा मतलब है कि क्या ये पता चल सका कि हमारी फैक्टरी में किसने बम्ब फिट किया था?"
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11-24-2019, 12:31 PM,
#83
RE: non veg kahani एक नया संसार
"नहीं डैड।" रितू ने कहा__"बड़ा ही पेंचीदा मामला है। इस मामले में कुछ भी पता नहीं चल सका कि वो कौन था? हाॅ इतना जरूर पता किया कि फैक्टरी के गेट के बाहर मौजूद गार्ड झूठ बोल रहा था। दरअसल जिस रात ये हादसा हुआ था उस रात गेट पर एक ही गार्ड था और वो भी चौबीस घंटे की ड्यूटी पर। इस लिए रात में वह गेट के बाहर रखी कुर्सी पर बैठा बैठा ही ऊॅघ रहा था। इसके बाद उसने ये बताया कि उसे ये आभास हुआ कि कोई चीज़ उसकी नाॅक के पास लाई गई थी। जिसके असर से उसे पता ही नहीं चला कि वह कब बेहोश हो गया था? उसके बाद तब उसे होश आया जब फैक्टरी में लगी आग से अफरा तफरी मची हुई थी। यकीनन जो चीज़ उसके नाॅक के पास लाई गई थी वह क्लोरोफाॅम डाला हुआ कोई रुमाल रहा होगा या फिर खुद क्लोरोफाॅम की बाॅटल। इस हादसे से वह गार्ड बहुत ज्यादा डर गया था इसी लिए शुरू में उसने यही कहा था कि वह रात भर जागता रहा था और उसके सामने कोई भी ऐसा ब्यक्ति नहीं आया था जो फैक्टरी के अंदर गया हो।"

"तो फिर क्या फायदा हुआ तुम्हारे द्वारा केस को रिओपन करने से?" अजय सिंह ने रितू की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा__"आख़िर क्या नतीजा निकला बेटी? वरना जिस तरह से तुमने इस केस को रिओपन किया था उससे तो यही ज़ाहिर हो रहा था कि इस बार कोई न कोई सुराग़ ज़रूर पुलिस के हाथ लगेगा। दूसरी बात ये भी मुझे पता चली थी कि इस केस के रिओपन होने के तुरंत बाद ही रातों रात शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट का तबादला कर दिया गया था। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ था?"

"ये सवाल तो मेरे लिए भी सोचने का विषय बना हुआ है डैड।" रितू ने सोचने वाले भाव से कहा__"मुझे खुद ये बात समझ में नहीं आ रही कि गृह मंत्री ने शहर के सारे पुलिस विभाग का रातों रात तबादले का आदेश किस वजह से दिया था? अगर हम ये सोचें कि इसकी वजह ये है कि पिछली बार फैक्टरी के केस में पुलिस ने अपनी पूरी ईमानदारी से तहकीकात नहीं की थी बल्कि ग़लत रिपोर्ट तैयार की थी तो भी ये इतनी बड़ी वजह नहीं हो सकती कि इसकी वजह से शहर के सारे पुलिस विभाग का इस तरह तबादला कर दिया जाए। पिछली रिपोर्ट पर ऊपर से इंक्वायरी भी हुई थी। जिसमें पुलिस के उस अफसर ने ये बयान दिया था कि ऐसी रिपोर्ट बनाने के लिए आपने कहा था क्यों कि आप नहीं चाहते थे कि इसकी वजह से आपकी इज्जत नीलाम हो जाए। ख़ैर, आपके कहने पर उस अफसर ने भले ही ग़लत रिपोर्ट बनाई थी लेकिन इसके लिए उसे ज्यादा से ज्यादा सस्पेंड किया जा सकता था मगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि शहर का सारा पुलिस विभाग ही बदल दिया गया। यही वो बात है डैड जिसने दिमाग़ का दही किया हुआ है।"

"हम्म...यकीनन।" अजय सिंह ने गहन सोच के साथ कहा__"बात तो वाकई बड़ी ही चक्करदार है बेटी। और सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि इस बारे में गृहमंत्री से पूछा भी नहीं जा सकता।"

तभी प्रतिमा हाथ में ट्रे लिए हुई आई। उसने काफी का कप रितू को दिया और चाय का एक कप अजय सिंह को और चाय का ही एक कप खुद लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

"क्या बातें हो रही हैं बाप बेटी के बीच?" प्रतिमा ने मुस्कुरा कर कहा था।

अजय सिंह ने संक्षेप में उसे बता दिया। सुन कर प्रतिमा ने कहा__"ये तो सचमुच बड़ी सोचने वाली बात है। इस केस में आख़िर ऐसा क्या था जिसके लिए खुद गृहमंत्री को भी हस्ताक्षेप करना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने रातो रात शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला भी कर दिया था।"

प्रतिमा की इस बात के बाद वहाॅ पर सन्नाटा छा गया। कोई कुछ न बोला, कदाचित् इस लिए कि किसी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। ये अलग बात थी सबके मन में ये बात गहन रूप से विचाराधीन थी।
_________________________

"नहीं...प्लीज़ रुक जाइये...आप इस तरह कैसे जा सकते हैं?" निधि ने रोते हुए कहा था__"हम तो पिकनिक टूर पर आए थे न, फिर इतनी जल्दी ये टूर कैसे समाप्त हो जाएगा? और....और ये अचानक क्या हो गया है आपको जो ये कह रहे हैं कि हम अब घर चलेंगे???"

"मुझे कुछ नहीं हुआ है।" विराज ने अजीब भाव से कहा__"हम घर जा रहे हैं बस और कोई बात नहीं।"

ये कह विराज ने निधि को अपनी पीठ पर से अलग कर आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाया। किन्तु ज्यादा दूर जा नहीं सका वह। क्योंकि उसके कानों में तुरंत ही निधि का करुणायुक्त वाक्य टकराया__"आपको मेरी कसम है अगर आपने एक क़दम भी आगे बढ़ाया तो मैं अपनी जान दे दूॅगी। मुझे बताइये कि आख़िर क्या हो गया है ऐसा जिसकी वजह से आप अचानक ही इस तरह का बर्ताव करने लगे। अगर मुझसे कोई ग़लती हो गई है तो आप उसके लिए मुझे जो चाहे सज़ा दे दीजिए....मुझे आपकी हर सज़ा मंजूर है। लेकिन अपने प्रति आपकी ऐसी बेरुखी मैं सह नहीं सकती।"

"मेरी इस बेरुखी की वजह तुम अच्छी तरह जानती हो।" विराज ने एक झटके में पलट कर कहा था__"तुम जानती हो कि किस वजह से मेरा बर्ताव अचानक ही बदल गया है। अगर नहीं जानती तो इस तरह रोती नहीं और ना ही मुझे अपनी कसम देती।"

निधि देखती रह गई विराज को। उसे तुरंत कोई जवाब न सूझा था। आॅखों में आॅसू लिए वह बड़ी मुश्किल से अपने दिल के जज़्बातों को काबू में करने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो विराज से क्या कहे?

"तुम ऐसा कैसे कर सकती हो गुड़िया?" उसे चुप देख विराज ने कहा__"क्या एक बार भी तुम्हें ये ख़याल नहीं आया कि तुम ये क्या कर रही हो? क्या एक बार भी ये नहीं सोचा कि मैं तुम्हारा सगा भाई हूॅ? क्या एक बार भी नहीं सोचा कि जो रिश्ता तुम बना रही हो वो भाई बहन के बीच नहीं हो सकता? क्यों गुड़िया, क्यों किया ऐसा?"

"मुझे माफ कर दीजिये।" निधि की रुलाई फूट गई, बोली__"मैंने जान बूझ कर ये सब नहीं किया। ये तो बस हो गया। कब कैसे मुझे खुद पता नहीं चला। आप यकीन कीजिए भइया, मैने ये नहीं किया। आप तो जानते हैं न कि कोई किसी से जान बूझ कर या सोच समझ कर प्यार नहीं करता बल्कि लोगों को किसी खास ब्यक्ति से प्यार खुद ही हो जाता है। और उसे स्वयं इस बात का पता नहीं चल पाता। वैसा ही मेरे साथ हुआ है भइया।"

"लेकिन ये ग़लत है मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"क्या तू नहीं जानती ये बात?"

"मैं जानती हूॅ कि ये ग़लत है।" रितु ने नज़रें झुका कर किन्तु भारी स्वर में कहा__"ये भी जानती हूॅ कि देश समाज भाई बहन के बीच इस रिश्ते को कभी मान्यता नहीं दे सकता बल्कि ऐसे रिश्ते को पाप समझ कर ऐसा रिश्ता रखने वाले को गाॅव समाज से बहिस्कृत कर देता है। इसी लिए मैने कभी आपके सामने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया कि मेरे दिल में आपके लिए क्या है? मैने अकेले में खुद को लाखों बार समझाया कि मुझे अपने दिलो दिमाग़ से आपके प्रति ऐसे ख़याल निकाल देना चाहिए क्यों कि ये ग़लत था। मगर मेरा दिल खुद के द्वारा लाखों बार समझाने के बाद भी मेरी नहीं सुनता। मैं क्या करूॅ भइया....हाय कितनी बुरी हूॅ मैं और कितनी बद्किस्मत भी हूॅ कि जिससे मुझे जीवन में पहली बार दिलो जान से प्यार हुआ वो मेरे भाई हैं तथा एक ही माॅ की कोख से जन्में हैं। मेरे दिल ने जिनकी अटूट चाहत व हसरत पाल बैठा वो उसे कभी मिल ही नहीं सकते।"

कहते कहते निधि वहीं फर्स पर असहाय अवस्था में बैठ कर ज़ार ज़ार रोने लगी। जाने कब से उसके दिल में ये गुबार बाहर निकलने के लिए मचल रहा था। आज उस गुबार ने दिल की कैद से बाहर निकल आने का जैसे रास्ता ढूॅढ़ लिया था। हमेशा हॅसती खेलती व शरारतें करने वाली निधि आज जैसे इस सबके बाद दुख का दर्पण बन गई थी। जिस दिन उसे इस बात का एहसास हुआ था कि उसे अपने ही भाई से प्यार हो गया है उस दिन वह खूब रोई थी। क्योंकि वह इस बात को भली भाॅति जानती और समझती थी कि ये ग़लत है। अपने ही भाई को अपना महबूब बना लेना कतई उचित नहीं है। इस संबंध को समाज निम्न दृष्टि से देखता है। उसने इस बारे में अपने आपको बहुत समझाया था। सबके सामने उसी तरह हॅसती मुस्कुराती रहती किन्तु अपने कमरे में रात की तन्हाई में जब उसका मन भटकते हुए अपने भाई तक पहुॅच जाता तो सहसा उसको झटका सा लग जाता था। धड़कने रुक सी जाती उसकी और ये ख़याल उसे पल में रुला देता कि ये उसके दिल ने क्या कर दिया? वह रात रात भर इस बारे में सोचती रहती और भावना व जज़्बातों के भॅवर में खुद को रुलाती रहती। दिल के हाॅथों मजबूर हो चुकी थी वह। छोटी सी इस ऊम्र में उसके दिल ने ये कैसा रोग़ लगा लिया था, और लगाया भी था तो किसका.....खुद अपने ही भाई का? जो उसका कभी हो ही नहीं सकता था।

उस दिन तो वह बहुत रोई थी जिस दिन उसे ये पता चला था कि उसका भाई किसी ऐसी लड़की से प्यार करता है जिसने उसके भाई को सिर्फ इस लिए दुत्कार कर छोंड़ दिया है कि अब वह धन दौलत वाला नहीं रहा। इस बात ने निधि के दिल में जाने क्यों जलन पैदा कर दी थी उस वक्त। लेकिन वहीं इस बात से उसके मन को थोड़ा राहत भी हुई थी कि वह लड़की अब उसके भाई को छोंड़ कर उसके जीवन से जा चुकी है। निधि खुद से ये सवाल करती कि उसको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि उसके भाई के जीवन से कोई लड़की जा चुकी है या नहीं। पर दिल के किसी कोने से उसे ये आवाज़ भी आती कि 'बहुत फर्क पड़ता है....राज सिर्फ मेरे हैं'

अपने दिल की इस आवाज़ को सुन कर उसके रोंगटे खड़े हो जाते। उसका मन मयूर नाचने लग जाता था। मगर जब उसे इस बात का बोध होता कि वो जिसे प्यार करती है तथा जिसको अपना बनाने की हसरत रखती है वो तो उसका सगा भाई है जिसे वो किसी भी कीमत पर अपना नहीं बना सकती तो उसका दिल बैठ जाता। ये एहसास उसे एक ही पल में ज़िन्दा लाश में तब्दील कर देता। उसके अंदर एक हूक सी उठती और फिर आॅखों से मानो गंगा जमुना बहने लग जातीं। उसे लगता कि इस दुनिया में उससे ज्यादा कोई दुखी नहीं है।

निधि को इस तरह ज़ार ज़ार रोते देख विराज तड़प कर रह गया। आख़िर थी तो उसकी बहन ही। ऐसी बहन जिसकी आॅखों में आॅसू का एक कतरा भी वह नहीं देख सकता था। हालातों ने भले ही अपना चेहरा बदल लिया था और ये बता दिया था कि उसकी बहन के मन में वो जाने कब से एक महबूब बन कर बैठा हुआ था लेकिन वह तो अभी भी यही समझता था न कि निधि उसकी बहन ही है। जिसको वह किसी भी तरह दुख में नहीं देख सकता। इस लिए इसके पहले जो उसने बेरुखी का आवरण धारण कर लिया था उस आवरण को उसने सीघ्र ही दरकिनार कर दिया और तुरंत ही झुक कर फर्स पर बैठी रो रही अपनी बहन को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर हौले से उठाया और अपने सीने से लगा लिया।

"बस कर अब।" विराज ने भर्राए हुए गले से कहा__"तू जानती है ना कि मैं तेरी आॅखों में आॅसू का एक कतरा भी नहीं देख सकता। इस तरह रो कर क्यों मेरे हृदय को चोंट पहुॅचा रही है गुड़िया? चल अब शान्त हो जा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भइया।" निधि ने विराज के सीने से लगे हुए कहा__"लेकिन ये सच है कि मैं आपसे बेइंतहा प्यार करती हूॅ और आपके बिना एक पल भी जीने का सोच भी नहीं सकती। मैं जानती हूॅ भइया कि ये ग़लत है पर आप मेरी बेबसी को भी समझिये। आप मेरे मन मंदिर में इस हद तक बस चुके हैं कि अब मैं ही क्या बल्कि खुद भगवान भी मेरे मन मंदिर से आपको नहीं निकाल सकता। आप मेरे नहीं हो सकते और ना ही मैं आपको इस बात के लिए मजबूर करूॅगी कि आप मेरे हो जाइये। बस एक ही विनती है आपसे कि आप मुझे ये नहीं कहेंगे कि मैं आपसे प्यार का रिश्ता न रखूॅ, क्योंकि ये मेरे बस में नहीं है भइया।"

"ये हमारे भाग्य की कैसी विडम्बना है गुड़िया?" विराज ने अत्यंत गंभीर होकर किन्तु दुखी भाव से कहा__"मैं समझ सकता हूॅ तेरे दिल की हालत को क्योंकि मैं उस हालत से आज भी गुज़र रहा हूॅ। मगर ज़रा हम दोनो भाई बहन के नसीब का खेल तो देखो...जिसको मैने टूट कर चाहा उसने मुझे सिर्फ इस लिए ठुकरा दिया कि मैं रुपये पैसे वाला नहीं रहा था और जिसे तुम टूट कर चाहती हो वो तुम्हारा हो ही नहीं सकता। ये प्यार मोहब्बत क्यों ऐसी होती है? इसके नसीब को क्यों इस तरह का बना दिया है भगवान ने कि ये जिस किसी से होगी वो उसका हो ही नहीं सकेगा? क्यों ऐसी मोहब्बत बनाई बनाने वाले ने? क्या सिर्फ इस लिए कि मोहब्बत करने वाले अपने महबूब के विरह में जीवन भर तड़पें??"

"शायद इसी लिए राज।" निधि ने कहीं खोए हुए कहा था। उसे इस बात का आभास ही नहीं था कि वह अपने बड़े भाई को उसके नाम से संबोधित कर ये कहा था। जबकि...

"र राज..???" विराज बुरी तरह चौंका था। उसने निधि को खुद से अलग कर उसके चेहरे की तरफ हैरानी से देखा।
"क क्या हुआ भइया??" निधि चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कि उसके भाई ने अचानक उसे खुद से अलग क्यों किया।

"क्या बताऊॅ??" विराज ने अजीब भाव से उसे देखते हुए कहा__"सुना है इश्क़ जब किसी के सर चढ़ जाता है तो उस ब्यक्ति को कुछ ख़याल ही नहीं रह जाता कि वह किससे क्या बोल बैठता है?"

"आप ये क्या कह रहे हैं?" निधि ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?"
"अरे पागल तूने अभी अभी मुझे मेरा नाम लेकर पुकारा है।" विराज ने कहा__"हाय मेरी बहन प्रेम में कैसी बावली और बेशर्म हो गई है कि अब वो अपने बड़े भाई का नाम भी लेने लगी।"

"क क्याऽऽ????" निधि बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत और अविश्वास से उसका मुॅह खुला का खुला रह गया। फिर सहसा उसे एहसास हुआ कि उसके भाई ने अभी क्या कहा है। उसका चेहरा लाज और शर्म से लाल सुर्ख पड़ता चला गया। नज़रें फर्स पर गड़ गईं उसकी। छुईमुई सी नज़र आने लगी वह। उसे इस तरह खड़े न रहा गया। कहीं और मुह छुपाने को न मिला तो पुनः वह विराज से छुपक कर उसके सीने में चेहरा छुपा लिया अपना। विराज को ये अजीब तो लगा किन्तु अपनी बहन की इस अदा पर उसे बड़ा प्यार आया। जीवन में पहली बार वह अपनी बहन को इस तरह और इतना शर्माते देखा था।
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11-24-2019, 12:31 PM,
#84
RE: non veg kahani एक नया संसार
अब आगे,,,,,,,

विराज अपनी बहन को अभी इस तरह शर्माते देख ही रहा था कि उसकी पैन्ट की पाॅकेट में पड़ा मोबाइल बज उठा। दोनो ही मोबाइल की रिंगटोन सुन कर चौंके।

"आपका मोबाइल भी न।" निधि ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"ग़लत समय पर ही बजता है।"
"अरे! ऐसा क्यों कह रही है तू?" विराज ने पाॅकेट से मोबाइल निकालते हुए कहा था।

"अब जाने दीजिए।" निधि विराज से अलग होकर बोली__"आप देखिये, जाने कौन कबाब में हड्डी बन गया है, हाँ नहीं तो।"

विराज उसकी बात पर मुस्कुराया और मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देख तनिक चौंका फिर मुस्कुरा कर काॅल को रिसीव कर कानों से लगा लिया।

".................।" उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर विराज बुरी तरह चौंका।
"ये क्या कह रहे हो तुम?" विराज ने हैरानी से कहा था।
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"भाई तूने बहुत अच्छी ख़बर दी है।" विराज खुश होकर बोला__"चल ठीक है मैं देख लूॅगा।"
"..............।"
"ओह तो ये बात है।" विराज ने सहसा सपाट भाव से कहा__"चल कोई बात नहीं भाई। देख लेंगे सबको। और हाँ...सुन, मैने तेरा काम कर दिया है ठीक है न? चल रख फोन।"

"किससे बात कर रहे थे आप?" निधि ने उत्सुकतावश पूछा।
"अपना ही एक आदमी था गुड़िया।" विराज ने कहा__"उसने फोन करके बहुत अच्छी ख़बर सुनाई है। हमें अब इस टूर को यहीं खत्म करना होगा। क्योंकि बहुत ज़रूरी काम से मुझे कहीं जाना है।"

"क्या मुझे नहीं बताएॅगे?" निधि ने तिरछी नज़र से देखते हुए किन्तु इक अदा से कहा__"कि ऐसी क्या ख़बर सुनाई आपके उस आदमी ने जिसकी वजह से आपको अब जल्दी यहाँ से निकलना होगा??"

"अरे पागल तुझसे भला क्यों कोई बात छुपाऊॅगा मैं?" विराज हॅसा__"चल रास्ते में बताता हूँ सब कुछ।"

इसके बाद दोनो भाई बहन शिप के पायलट को सूचित कर शिप को वापस लौटने के लिए कह दिया। लगभग आधे घंटे बाद वो समुंदर के किनारे पर पहुॅचे। इस बीच विराज ने निधि को फोन पर हुई बातों के बारे में बता दिया था जिसे सुन कर वह भी खुश हो गई थी।

शिप से बाहर आकर विराज उस जगह निधि को लेकर गया जहाँ पर उसकी कार पार्क की हुई थी। दोनो कार में बैठ कर घर की तरफ तेज़ी से बढ़ गए थे। इस बीच विराज ने फोन लगा कर किसी से बातें भी की थी।

शाम होने से पहले ही जब दोनो घर के अंदर पहुॅचे तो माॅ गौरी को ड्राइंगरूम में एक तरफ की दीवार पर लगी बड़ी सी एल ई डी टीवी पर सीरियल देखते पाया। गौरी ने जब अपने बच्चों को देखा तो पहले तो वो चौंकी फिर मुस्करा कर बोली__"आ गए तुम दोनो? चलो अच्छा किया जो जल्दी ही आ गए। जाओ दोनो खुद को साफ सुथरा कर लो तब तक मैं चाय बना कर लाती हूँ।"

निधि और विराज दोनो अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में दोनो फ्रेस होकर आए और सोफों पर बैठ गए। तभी गौरी हाथ में ट्रे लिए आई और दोनो को चाय दी और खुद भी एक कप चाय लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

"माॅ चाचा जी आ रहे हैं आज।" विराज ने चाय की एक चुश्की लेकर कहा__"और मुझे जल्द ही रेलवे स्टेशन जाना होगा उन्हें रिसीव करने के लिए।"

"क्या कह रहा है तू......अभय आ रहा है???" गौरी बुरी तरह चौंकी थी, बोली__"पर तुझे कैसे पता इसका?"
"गाॅव के एक दोस्त ने मुझे फोन पर इस बात की सूचना दी है माॅ।" विराज ने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसने बताया कि अभय चाचा चुपचाप ही हमसे मिलने के लिए गाॅव से निकले हैं। उसने ये भी बताया कि पिछले दिन हवेली में कोई बातचीत हो गई थी और अभय चाचा बहुत गुस्से में भी थे।"

"ऐसी क्या बातचीत हुई होगी?" गौरी ने मानो खुद से ही सवाल किया था, फिर तुरंत ही बोली__"और क्या बताया तेरे उस दोस्त ने?"
"मुझे तो ऐसा लगता है माॅ कि कोई गंभीर बात है।" विराज ने कहा__"मेरा दोस्त कह रहा था कि बड़े पापा ने अभय चाचा के पीछे अपने आदमियों को लगाया हुआ है। इससे तो यही लगता है कि वो अभय चाचा के द्वारा हम तक पहुॅचना चाहते हैं।"

"ठीक कहता है तू।" गौरी ने कहा__"ऐसा ही होगा। और अगर कोई बात हो गई है तो उससे अभय और उसके बीवी बच्चों पर ख़तरा भी होगा। उन्हें पता नहीं है कि उनका बड़ा भाई कितना बड़ा कमीना है।"

"इसी लिए तो मैं उन्हें लेने जा रहा हूँ माॅ।" विराज ने कहा__"चाचा जी को तो शायद इस बात का अंदेशा भी न होगा कि उनके पीछे उनके बड़े भाई साहब ने अपने आदमी लगा रखे हैं।"

"अगर ये सच है कि अभय के पीछे तेरे बड़े पापा ने अपने आदमी लगा रखे हैं तो तू कैसे अभय को उन आदमियों की नज़रों से बचा कर लाएगा?" गौरी ने कहा__"तुझे तो पता भी नहीं है कि वहाँ पर किन जगहों पर वो आदमी मौजूद होकर अभय पर नज़र रखे हुए हैं?"

"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने कहा__"मैं चाचा जी को सुरक्षित वहाँ से ले आऊॅगा और उन आदमियों को इसकी भनक भी नहीं लगेगी।"
"ठीक है बेटे।" गौरी ने सहसा फिक्रमंद हो कर कहा__"सम्हल कर जाना और अपने चाचा को सुरक्षित लेकर आना।"

"ऐसा ही होगा माॅ।" विराज ने कहा__"आप बिलकुल भी फिक्र मत कीजिए। मैं उन्हें सुरक्षित ही लेकर आऊॅगा।"

ये कह विराज सोफे से उठ कर बाहर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में उसकी कार हवा से बातें कर रही थी। लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसकी कार मेन रोड से उतर कर एक तरफ को मुड़ गई। कुछ दूर जाने के बाद विराज ने कार को सड़क के किनारे लगा कर उसे बंद कर दिया और बाॅई कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर ज़रा बेचैनी से नज़र डाली। उसके बाद राइट साइड की तरफ बनी हुई सड़क की तरफ देखने लगा। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे किसी के आने का इन्तज़ार कर रहा हो।

कुछ ही देर में उस सड़क से उसे चार आदमी आते हुए दिखे। उन चारो आदमियों में एक की वेशभूसा सामान्य थी किन्तु बाॅकी के तीनों आदमियों के जिस्म पर कुली की पोशाक थी। थोड़ी ही देर बाद वो चारो विराज की कार के ड्राइविंग डोर के पास आकर खड़े हो गए।

"आने में इतना समय क्यों लगा दिया तुम लोगों ने?" विराज ने कहा__"मैने तुम लोगों को फोन पर बोला था न कि मुझे एकदम तैयार होकर यहीं पर मिलना।"

"साहब वो रामू की बेटी की तबियत बहुत ख़राब थी।" एक आदमी ने कहा__"इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया था। उसके पास पैसे नहीं थे तो हम सबने पैसों की ब्यवस्था की फिर उसे अस्पताल ले गए। उसी में समय लग गया साहब।"

"क्या हुआ उसकी बेटी को?" विराज ने चौंकते हुए पूछा था।
"पता नहीं साहब।" उस ब्यक्ति ने कहा__"एक हप्ते से बुखार थी उसे। थोड़ी बहुत गोली दवाई करवाई थी रामू ने। लेकिन आज दोपहर उसकी तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया।"

"चलो कोई बात नहीं।" विराज ने कहा__"रामू को बोलो कि पैसों की चिन्ता न करे। उसकी बेटी के इलाज में जो भी पैसा लगेगा उसे हमारी कंपनी देगी। उसको बोलो कि वो अपनी बेटी का इलाज बेहतर तरीके से करवाए।"

"जी साहब।" उस आदमी ने खुश होकर कहा__"मैं अभी उसे बोलता हूँ।"

कहने के साथ ही उस आदमी ने अपनी सर्ट की पाॅकेट से एक छोटा सा कीपैड वाला फोन निकाला और उस पर रामू का नम्बर देख उसे लगा दिया। उसने रामू को सारी बात बताई। उसके बाद उसने फोन बंद कर दिया।

विराज ने कार की डैसबोर्ड पर रखा एक लिफाफा उठाया। उसमे से उसने जो चीज़ें निकाली वो कोई फोटोग्राफ्स थे।

"इनमें से एक एक फोटोग्राफ्स तुम चारो अपने पास रखो।" विराज ने कहा__"इस फोटो में जो आदमी है उसे अच्छी तरह देख लो। क्योंकि इस आदमी को बड़ी सावधानी से रेलवे स्टेशन के बाहर लाना है तुम लोगों को।"

"पर साहब इतनी भीड़ में हम उन्हें खोजेंगे कैसे?" एक आदमी ने कहा__"दूसरी बात क्या पता कौन से डिब्बे में होंगे वो?"
"वो जनरल डिब्बे में ही हैं।" विराज ने कहा__"इस लिए तुम लोग सिर्फ जनरल डिब्बे में ही उन्हें खोजोगे। कहीं और खोजने की ज़रूरत नहीं है। बाॅकी तो सब कुछ तुम्हें फोन पर समझा ही दिया था मैने।"

"ठीक है साहब।" दूसरे आदमी ने कहा__"हम सब इस बात का ख़याल रखेंगे कि उनके पीछे लगे हुए उन आदमियों को पता न चल सके कि वो जिनका पीछा कर रहे हैं वो उनकी आँखों के सामने से कैसे गायब हो गया??"

"वैरी गुड शंकर।" विराज ने कहा__"अभी ट्रेन के आने में समय है। तब तक मैं तुम्हें एक किराए की टैक्सी का इन्तजाम भी कर देता हूँ। तुम उन्हें रेलवे स्टेशन से बाहर लाओगे, एक आदमी बाहर टैक्सी में बैठा तुम लोगों का इन्तज़ार करेगा। जैसा कि अभी तुम में से एक आदमी को छोंड़ कर बाकी तीनो कुली के वेश में हो इस लिए तुम तीनो में से जिसे भी वो मिलें तो उनके पास जाकर बड़ी सावधानी से सिर्फ वही कहना जो फोन पर समझाया था।"

"ऐसा ही होगा साहब।" एक अन्य आदमी ने कहा__"आप बेफिक्र रहिए।"
"अच्छी बात है।" विराज ने कहा__"चलो बैठो सब, हमें निकलना भी है अब।"

विराज के कहने पर चारो आदमी खुशी से बैठ गए जबकि विराज ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।
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11-24-2019, 12:31 PM,
#85
RE: non veg kahani एक नया संसार
मुम्बई जाने वाली ट्रेन के उस जनरल कोच में भीड़ तो इतनी नहीं थी किन्तु नाम तो जनरल ही था। कोई किसी को भी बैठने के लिए सीट देने को तैयार नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ज़बरदस्ती लड़ झगड़ कर अपने बैठने के लिए सीट का जुगाड़ कर ही लेते हैं। यहाँ प्यार इज्जत या अनुनय विनय करने वाले को कोई सीट नहीं देता और ना ही सीट के ज़रा से भी हिस्से में कोई बैठने देता है। जनरल कोच में तो ऐसा है कि अगर आप गाली गलौच या लड़ना जानते हैं या फिर तुरंत ही किसी भी ब्यक्ति पर हावी हो जाना जानते हैं तो बेहतर है। क्योंकि उससे आपको जल्द ही कहीं न कहीं सीट मिल जाती है बैठने के लिए। लेकिन उसमें भी शर्त ये होती है कि आपके पास अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ कुछ लोगों का बैकप होना ज़रूरी है वरना अगर आप अकेले हैं और अकेले ही तोपसिंह बनने की कोशिश कर रहे हैं तो समझिये आपका बुरी तरह पिट जाना तय है।

अभय सिंह गरम मिज़ाज का आदमी था। उसे कब किस बात पर क्रोध आ जाए ये बात वो खुद ही आज तक जान नहीं पाया था। मगर आज उस पर कोई क्रोध हावी न हुआ था। उसने सीट के लिए किसी से कुछ नहीं कहा था, बल्कि हाँथ में एक छोटा सा थैला लिए वह दरवाजे के पास ही एक तरफ कभी खड़ा हो जाता तो कभी वहीं पर बैठ जाता। सारी रात ऐसे ही निकल गई थी उसकी।

ट्रेन अपने नियमित समय से चार घंटे लेट थी। ये तो भारतीय रेलवे की कोई नई बात नहीं थी किन्तु इस सबसे यात्रियों को जो परेशानी होती है उसका कोई कुछ नहीं कर सकता, ये एक सबसे बड़ी समस्या है। यद्यपि अभय को समय का आभास ही इतना नहीं हुआ था क्योंकि वो तो अपने परिवार और अपने बीवी बच्चों के बारे में ही सोचता रहा था। रह रह कर उसके मन में ये विचार उठता कि उसने अपनी देवी समान भाभी के साथ अच्छा नहीं किया। उसे अपने भतीजे का भी ख़याल आता कि कैसे वह उसे हमेशा इज्जत व सम्मान देता था। परिवार में वही एक लड़का था जिस पर संस्कार और शिष्टाचार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने इस भतीजे पर बड़ा स्नेह और फक्र भी होता था। उसकी भतीजी निधि उसकी लाडली थी। वह परिवार में सबसे ज्यादा निधि को ही प्यार और स्नेह देता था। सब जानते थे कि अभय गुस्सैल स्वभाव का था किन्तु उसका गुस्सा कपूर की तरह उस वक्त काफूर हो जाता जब उसकी लाडली भतीजी अपनी चंचल व नटखट बातों से उसे पहले तो मनाती फिर खुद ही रूठ जाती उससे। उसका अपनी किसी भी बात के अंत में 'हाँ नहीं तो' जोड़ देना इतना मधुर और हृदय को छू लेने वाला होता कि अभय का सारा गुस्सा पल में दूर हो जाता और वह अपनी लाडली भतीजी को खूब प्यार करता। परिवार की बाॅकी दो भतीजियाॅ उसके पास नहीं आती थी, क्यों कि वो सब उससे डरती थी।

अभय का दिलो दिमाग़ गुज़री हुई बातों को सोच सोच कर बुरी तरह दुखी होता और उसकी आँखें भर आतीं। वह अपने मन में कई तरह के संकल्प लेता हुआ खुद के मन को हल्का करने की कोशिश करता रहा था।

आख़िर वह समय भी आ ही गया जब ट्रेन मुम्बई के कुर्ला स्टेशन पर पहुॅची। अभय अपनी सोचों के अथाह समुद्र से बाहर आया और उठ कर गेट की तरफ चल दिया। काफी भीड़ थी अंदर, लोग जल्द से जल्द नीचे उतरने के लिए जैसे मरे जा रहे थे। अभय खुद भी लोगों के बीच धक्के खाते हुए गेट की तरफ आ रहा था। हलाॅकि खड़ा वह गेट के थोड़ा पास ही था किन्तु वह इसका क्या करता कि पीछे से आँधी तूफान बन कर आते हुए लोग बार बार उसे पीछे धकेल कर खुद आगे निकल जाते थे। वह बेचारा बेज़ुबान सा हो गया था। कदाचित् उसकी मानसिक स्थित उस वक्त ऐसी नहीं थी कि वह लोगों के द्वारा खुद को बार बार पीछे धकेल दिये जाने पर कोई प्रतिक्रिया कर सके।

कुछ देर बाद आख़िर वह गेट के पास पहुॅचा और ट्रेन से नीचे उतर गया। प्लेटफार्म पर आदमी ही आदमी नज़र आए उसे। उसे समझ न आया कि किस तरफ जाए? इतने बड़े मुम्बई शहर में वह अपनी भाभी व उनके दोनो बच्चों को कहाँ और कैसे ढूॅढ़ेगा? उसका तो खुद का कहीं ठिकाना नहीं था। उसे अब महसूस हुआ कि वो कितना असहाय और थका हुआ लग रहा है। भूख और प्यास ने जैसे उस पर अब अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। वह अपने साथ खाने पीने की कोई चीज़ लेकर नहीं चला था। कल अपने दोस्त के घर से खाकर ही चला था। हलाॅकि इतने बड़े सफर के लिए उसके दोस्त की बीवी ने खाने का एक टिफिन तैयार कर दिया था किन्तु अभय ने जाने क्या सोच कर मना कर दिया था।

ट्रेन से उतर कर अभय ने उसी तरफ चलने के लिए अपने कदम बढ़ाए जिस तरफ सारे लोग जा रहे थे। अभी वह कुछ कदम ही चला था कि एक कुली उसके पास आया और उसके अत्यंत निकट आकर बड़े ही रहस्यमय किन्तु संतुलित स्वर में बोला__"साहब जी! आपके भतीजे विराज जी आपको लाने के लिए हमें भेजे हैं। कृपया आप मेरे साथ जल्दी चलें।"

अभय सिंह को पहले तो कुछ समझ न आया फिर जब उसके विवेक ने काम किया तो कुली की इस बात को समझ कर वह बुरी तरह चौंका। उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच उठे। उसके मुख से हैरत में डूबा हुआ स्वर निकला__"क् कौन हो तुम? और कहाँ है मेरा भतीजा?"

"साहब जी अभी आप ज्यादा कुछ न बोलिए।" उस कुली ने कहा__"बस मेरे साथ चलिए और अपना ये बैग मुझे दीजिए। और हाँ, आप चेहरे से ऐसा ही दर्शाइये जैसे आप अपना सामान कुली को देकर उसके साथ बाहर जा रहे हैं। इधर उधर कहीं मत देखिएगा।"

"अरे...ऐसे कैसे भाई?" अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ__"कौन हो तुम और ये सब क्या है?"
"ओह साहब जी समझने की कोशिश कीजिए।" कुली ने चिन्तित स्वर में कहा__"यहाँ पर ख़तरा है आपके लिए। इस लिए जल्दी से चलिए मेरे साथ। स्टेशन से बाहर आपके भतीजे विराज जी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"

अभय के दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसके मन में विचार उठा कि ये आदमी मुझे जानता है और मेरे लिए ही आया है, वरना दूसरे किसी आदमी को ये सब भला कैसे पता होता? दूसरी बात ये विराज का नाम ले रहा है और कह रहा है कि मेरा भतीजा स्टेशन से बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन ख़तरा किस बात का है यहाँ??

अभय को पूरा मामला तो समझ न आया किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि अपना बैग उस कुली को दे दिया। कुली उसका बैग लेकर तुरंत ही पलटा और स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे पीछे अभय भी चल दिया। दिमाग़ में कई तरह के विचारों का अंधड़ सा मचा हुआ था उसके।

स्टेशन से बाहर आकर वो कुली अभय को लिए एक टेक्सी के पास पहुॅचा। टैक्सी के अंदर बैग रख कर कुली ने अभय को टैक्सी के अंदर बैठने को कहा। लेकिन अभय न बैठा, उसने सशंक भाव से देखा कुली की तरफ। तब कुली ने एक तरफ हाँथ का इशारा किया। अभय ने उस तरफ देखा तो चौंक गया, क्योंकि जिस तरफ कुली ने इशारा किया था उस तरफ उसका भतीजा विराज खड़ा था। विराज ने दूर से ही टैक्सी में बैठ जाने के लिए इशारा किया।

अभय अपने भतीजे को देख खुश हो गया और उसने राहत की सास भी ली। वह जल्द ही टैक्सी में बैठ गया। टैक्सी के अंदर चार आदमी थे। अभय के बैठते ही टैक्सी तुरंत आगे बढ़ गई। अभय को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये सब पहले से ही प्लान बनाया हुआ था। किन्तु उसे ये समझ न आया कि इस सबकी क्या ज़रूरत थी? आख़िर ये क्या चक्कर है?

"तुम सब लोग कौन हो भाई?" टैक्सी के कुछ दूर जाते ही अभय ने पूछा__"और ये सब क्या चक्कर है? मेरा मतलब है कि मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से क्यों ले जाया जा रहा है?"

"साहब जी ये तो हम भी नहीं जानते कि क्या चक्कर है?" कुली बने शंकर ने कहा__"हम तो वही कर रहे हैं जो करने के लिए विराज साहब ने हमे आदेश दिया था।"

अभय ये सुन कर मन ही मन चौंका कि ये विराज को साहब क्यों कह रहा है? किन्तु फिर प्रत्यक्ष में बोला__"ओह, तो अभी हम कहाँ चल रहे हैं? और मेरा भतीजा विराज कहाँ गया? वो इस टैक्सी में क्यों नहीं आया?"

"वो अपनी कार में हैं साहब जी।" शंकर ने कहा__"वो हमें आगे एक जगह मिलेंगे।"
"अ अपनी..क..कार में?" अभय लगभग उछल ही पड़ा था। उसे इस बात ने उछाल दिया कि उसके भतीजे के पास कार कहाँ से आ गई? वह तो खुद भी यही समझ रहा था कि विराज कोई मामूली सा काम करता होगा यहाँ।

"जी साहब जी।" उधर अभय के मनोभावों से अंजान शंकर ने कहा__"आगे एक जगह पर हमें विराज साहब मिल जाएॅगे। फिर आपको उनके साथ उनकी कार में बैठा कर हम इस टैक्सी को वापस कर देंगे जहाँ से लाए थे।"

"क्या मतलब?" अभय चौंका, झटके पर झटके खाते हुए पूछा__"कहाँ से लाए थे इसे? क्या ये टैक्सी तुम्हारी नहीं है?"
"नहीं साहब जी, ये टैक्सी तो हमने किराए पर ली थी।" शंकर ने कहा__"विराज साहब ने ऐसा ही कहा था। बाॅकी सारी बातें वही बताएॅगे आपको।"

अभय उसकी बात सुनकर चुप रह गया। उसे समझ में आ चुका था कि सारी बातें विराज से ही पता चलेंगी। क्योंकि इन्हें ज्यादा कुछ पता नहीं है। शायद विराज ने इन्हें नहीं बताया था। पर ये लोग विराज को साहब क्यों कह रहे हैं? क्या वो इन लोगों का साहब है? अभय का दिमाग़ जैसे जाम सा हो गया था।

अभय को ये बात हजम नहीं हो रही थी। लेकिन उसने फिर कुछ न कहा। टैक्सी तेज़ रफ्तार से कई सारे रास्तों में इधर उधर चलती रही। कुछ ही देर में टैक्सी एक जगह पहुॅच कर रुक गई। टैक्सी के रुकते ही शंकर नीचे उतरा और पीछे का गेट खोल कर अभय को उतरने का संकेत दिया। अभय उसके संकेत पर टैक्सी से उतर आया। अभी वह टैक्सी से उतर कर ज़मीन पर खड़ा ही हुआ था कि तभी।

"प्रणाम चाचा जी।" अभय के उतरते ही एक तरफ से आकर विराज ने अभय के पैर छूकर कहा__"माफ़ कीजिएगा आपको इस तरह यहाँ लाना पड़ा।"

"अरे राज तुम?? सदा ही खुश रहो।" अभय ने कहा और एकाएक ही भावना में बह कर उसने विराज को अपने गले से लगा लिया, फिर बोला__"आ मेरे गले लग जा मेरा शेर पुत्तर। कदाचित् मेरे दिल को ठंडक मिल जाए।"

अभय की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसने बड़े ज़ोर से विराज को भींच लिया था। विराज को भी आज अपने चाचा जी के इस तरह गले लगने से बड़ा सुकून मिल रहा था। आज मुद्दतों बाद कोई अपना इस तरह मिला था। शिकवे गिले तो बहुत थे लेकिन सब कुछ भूल गया था विराज। कुछ देर ऐसे ही दोनो गले मिले रहे। फिर अलग हुए। अभय अपने दोनो हाँथों से विराज का सुंदर सा चेहरा सहला कर उसके शरीर के बाॅकी हिस्सों को देखने लगा।

"कितना दुबला हो गया है मेरा बेटा।" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"पगले अपना ठीक से ख़याल क्यों नहीं रखता है तू? और भ भाभी कैसी हैं...और...और वो मेरी लाडली गुड़िया कैसी है..बता मुझे??"

"सब लोग एकदम ठीक हैं चाचा जी।" विराज ने कहा__"चलिए हम वहीं चलते हैं।"
"हाँ हाँ चल राज।" अभय ने तुरंत ही कहा__"मुझे जल्दी से ले चल उनके पास। मुझे भाभी के पास ले चल...मुझे उनसे....।"

वाक्य अधूरा रह गया अभय सिंह का..क्यों कि दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तीब्रता से जज्बातों का उबाल सा आ गया था। जिसकी वजह से उसका गला भारी हो गया और उसके मुख से अल्फाज़ न निकल सके।
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11-24-2019, 12:31 PM,
#86
RE: non veg kahani एक नया संसार
विराज अपने साथ अभय को लिए कुछ ही दूरी पर खड़ी अपनी कार के पास पहुॅचा। फिर उसने कार का दूसरी तरफ वाला गेट खोल कर अंदर अभय को बैठाया। इस बीच शंकर ने अभय का बैग विराज की कार के अंदर रख दिया था। विराज खुद ड्राइविंग डोर खोल कर ड्राइविंग शीट पर बैठ गया। खिड़की के पास आ गए शंकर से उसने कहा__"उस टैक्सी को वापस कर देना। और ये पैसे रामू को दे देना, और ये तुम सब के लिए।"

विराज ने कार में ही रखे एक छोटे से ब्रीफकेस को खोल कर उसमे से दो हज़ार के नोटों की एक गड्डी शंकर को पकड़ाया था जो रामू की बेटी के इलाज़ के लिए था बाॅकी अलग से दो सौ के नोटों की एक गड्डी उन चारों के लिए। पैसे लेकर चारो ही खुशी खुशी वहाँ से चले गए।

विराज ने कार स्टार्ट की और आगे चल दिया। अभय ये सब देख कर हैरान भी था और खुश भी।

"ये सब क्या चक्कर था राज?" अभय ने पूछा__"उन लोगों ने बताया कि ये सब करने के लिए उन्हें तुमने कहा था, लेकिन इस सबकी क्या ज़रूरत थी भला?"

"ऐसा करना ज़रूरी था चाचा जी।" विराज ने ड्राइविंग करते हुए कहा__"क्योंकि आपके पीछे कुछ ऐसे आदमी लगे थे जो आपकी निगरानी के लिए लगाए गए थे, बड़े पापा जी के द्वारा।"

"क क्या मतलब??" अभय बुरी तरह चौंका था, बोला__"बड़े भइया ने अपने आदमी मेरे पीछे लगा रखे थे? लेकिन क्यों और कैसे? और...और तुझे कैसे पता ये सब?"

"मुझे सबका पता रहता है चाचा जी।" विराज ने कहा__"वक्त और हालात ने सब कुछ सिखा दिया है आपके इस बेटे को। कल जब आप गाॅव से चले थे तब आपके वहाँ से चलने की सूचना मुझे मेरे एक दोस्त ने फोन पर दी थी। उसने बताया था कि हवेली में कुछ बातचीत हो गई थी और आप हम लोगों से मिलने के लिए मुम्बई निकल चुके हैं। उसने ये भी बताया कि आपके पीछे बड़े पापा ने अपने आदमी भी लगा दिये हैं जो यहीं मुम्बई में हमारी खोज में न जाने कब से मौजूद थे।"

"ओह तो भइया ने ऐसा भी कर दिया मेरे पीछे?" अभय का चेहरा एकाएक सुलगता सा प्रतीत हुआ__"खैर कोई बात नहीं, उनसे उम्मींद भी क्या की जा सकती है? ख़ैर, तो तुम्हें इस सबकी जानकारी तुम्हारे दोस्त ने दी थी फोन के माध्यम से?"

"जी चाचा जी।" विराज ने कहा__"मुझे लगा कहीं आप पर किसी प्रकार का कोई ख़तरा न हो इस लिए मैने ऐसा किया। मैं खुद स्टेशन के अंदर नहीं गया क्योंकि संभव है बड़े पापा के आदमियों की नज़र मुझ पर पड़ जाती, उसके बाद उनके लिए हर काम आसान हो जाता। इस लिए मैंने उन सबसे बचने का ये उपाय किया। कुली के वेश में मेरे आदमी आपको सुरक्षित स्टेशन से बाहर ले आएॅगे। उसके बाद आपको टैक्सी में बैठा कर मेरे आदमी शहर में तब तक इधर उधर सड़कों में घूमते जब तक कि उन्हें ये एहसास न हो जाए कि किसी के द्वारा उनका पीछा अब नहीं किया जा रहा है। कहने का मतलब ये कि अगर बड़े पापा के आदमी किसी तरह आपको देख लिये हों और आपका पीछा करने लगे हों तो मेरे आदमी टैक्सी को तेज़ रफ्तार में इधर उधर घुमा कर उन आदमियों को गोली दे देंगे। उसके बाद मेरे आदमी सीधा वहाँ आ जाते जहाँ पर मैंने उन्हें अपने पास आने को बोला था। यहाँ से मैं आपको अपनी कार में बैठा कर ले जाता। बड़े पापा के आदमी ढूॅढ़ते ही रह जाते उस टैक्सी को।"

"ओह तो ये प्लान था तुम्हारा?" अभय ये सोच सोच कर हैरान था कि उसका इतना संस्कारी और भोला भाला भतीजा आज इतना कुछ सोचने लगा है, बोला__"बहुत अच्छा किया तुमने राज। मैं तुम्हारी इस समझदारी से बहुत खुश हूँ।" अभय कुछ पल रुका और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दुख के भाव आ गए, बोला__" कितना ग़लत था मैं....अपने क्रोध और अविवेक के कारण कभी नहीं सोच सका कि वास्तव में क्या सही था क्या ग़लत? अपने देवता जैसे विजय भइया और देवी जैसी अपनी गौरी भाभी पर शक किया और उनसे ये भी न जानने की कोशिश की कभी कि उन पर लगाए गए आरोप सच भी हैं या ये सब आरोप किसी साजिश के तहत उन पर थोपे गए थे? राज बेटे, अपने देवी देवता जैसे भईया भाभी के साथ मैने ये अच्छा नहीं किया। भगवान मुझे इस सबके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा।"

ये कहने के साथ ही अभय की आवाज़ भर्रा गई। उसका चेहरा दुख और ग्लानिवश बिगड़ गया। उसकी आँखों से आँसू बह चले। विराज अपने चाचा जी के इस रूप को देख कर खुद भी दुखी हो गया था। वह जानता था कि उसके चाचा चाची का कहीं कोई दोष नहीं था। उनका अपराध तो सिर्फ इतना था कि उन्हें जो कुछ बताया और दिखाया गया था उसी को उन्होंने सच मान लिया था। अपने क्रोध की वजह से चाचा ने कभी ये जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि सच्चाई वास्तव में क्या थी?

खैर कुछ ही समय में विराज अपने घर पहुॅच गया। एक बड़े से मेन गेट पर दो गार्ड खड़े थे। विराज की कार देखते ही दोनो गार्ड्स ने मेन गेट खोला। उसके बाद विराज ने कार को अंदर की तरफ बढ़ा दिया। लम्बे चौड़े लान से चलते हुए उसकी कार पोर्च में आकर खड़ी हो गई। दोनो चाचा भतीजा अपनी अपनी तरफ का गुट खोल कर नीचे उतरे। अभय की नज़र जब सामने बड़े से बॅगला टाइप घर पर पड़ी तो वह आश्चर्यचकित सा होकर देखने लगा उसे। इधर उधर दृष्टि घुमा कर देखने लगा हर चीज़ों को।

"राज बेटा ये कहाँ आ गए हम?" अभय ने अजीब भाव से पूॅछा__"ये तो किसी बहुत ही बड़े आदमी का बॅगला लगता है।"
"आपने बिलकुल सही कहा चाचा जी ये किसी बहुत बड़े आदमी का ही बॅगला है लेकिन।" विराज ने कहा__"लेकिन अब ये बॅगला और ये सब प्रापर्टी आपके इस राज बेटे की ही है।"

"क् क्याऽऽ?????" अभय बुरी तरह चौंका था। आश्चर्य और अविश्वास से उसका मुह खुला का खुला रह गया, बोला__"ये ये सब तेरा है?? लेकिन ये सब तेरा कैसे हो गया राज? क्या तू सच कह रहा है?"

"चलिए अंदर चलते हैं।" विराज ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा__" माॅ और गुड़िया आपका इन्तज़ार कर रही हैं।"

अभय विराज की इस बात पर उसके साथ बॅगले के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि कोई तेज़ी से आया और एक झटके से उससे लिपट गया। अभय इस सबसे पहले तो हड़बड़ाया फिर जब उसकी नज़र लिपटने वाले पर पड़ी तो अनायास ही मुस्कुरा उठा वह।

"अरे ये तो मेरी लाडली गुड़िया है।" अभय ने निधि के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा__"राज, ये मेरी गुड़िया है, ये...।"

अभय का गला भर आया, उसके जज्बात उसके काबू में न रहे। उसने निधि को अपने से से छुपका लिया और रो पड़ा वह। उसे इस ख़याल ने बुरी तरह रुला दिया कि आज मुद्दतों के बाद उसने अपनी गुड़िया पर अपना प्यार लुटाने को मिला है। इसके पहले तो वह जैसे पत्थर का बन गया था। उसके दिलो दिमाग़ में इन सबके लिए क्रोध और घृणा भर दी गई थी। पहले जब उसकी भाभी और गुड़िया खेतों पर बने मकान के एक कमरे में रहती थीं तो वह किसी किसी दिन जाता था लेकिन फिर जैसे ही उसे उस सबका ख़याल आता वैसे ही उसका मन क्रोध और गुस्से से भर जाता और वह पत्थर का बन कर वापस चला आता। अपनी लाडली को प्यार व स्नेह देने के लिए वह तड़प जाता लेकिन आगे बढ़ने से हमेशा ही खुद को रोंक लेता था वह।

"आप आ गए न चाचू" निधि ने रोते हुए कहा__"मैं जानती थी कि आप मेरे बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकेंगे वहाँ पर। लेकिन आने में इतनी देर क्यों कर दी आपने? जाइये आपसे बात नहीं करना मुझे, हाँ नहीं तो।"

ये कह कर निधि अपने चाचू से अलग हो गई और रूठ कर एक तरफ को मुह कर लिया। अभय को लगा कि उसका हृदय फट जाएगा। अपनी गुड़िया के मुख से बस यही सुनने के लिए तो तरस गया था वह। 'हाँ नहीं तो' जाने इन शब्दों में ऐसा क्या था कि सुन कर अभय को लगा कि इन शब्दों को सुनने के बाद इस वक्त अगर उसे मृत्यु भी आ जाए तो उसे कोई ग़म न होगा।

"तू रूठ जाएगी तो मैं समझूॅगा कि मुझसे ये सारा संसार रूठ गया मेरी बच्ची।" अभय ने तड़प कर कहा__"यहाँ तक कि वो ईश्वर भी। और फिर उसके बाद मेरे लिए एक पल भी जीने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।"

"न नहीं चाचू नहीं।" निधि तुरंत ही अभय से लिपट गई। उसकी आँखों से आँसू बह चले। रोते हुए बोली__"प्लीज ऐसा मत कहिए। आप तो मेरे सबसे अच्छे चाचू हैं। मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ। और हाँ आज के बाद ऐसा कभी मत बोलियेगा नहीं तो सच में मैं आपसे बात नहीं करूॅगी, हाँ नहीं तो।"

जाने कितनी ही देर तक अभय अपनी लाडली को स्नेह और प्यार के वशीभूत हुए खुद से छुपकाए रहा। उसके सिर पर प्यार से हाँथ फेरता रहा। विराज ये सब नम आँखों से देखता रहा।

"अगर अपनी लाडली भतीजी से मिलना जुलना हो गया हो तो अपनी भाभी से भी मिल लो अभय।" सहसा गौरी की ये आवाज़ गूॅजी थी वहाँ। वह काफी देर से बॅगले के मुख्य दरवाजे पर खड़ी ये सब देख रही थी। उसकी आँखों में भी आँसू थे।

गौरी की इस आवाज़ को सुन कर अभय और निधि एक दूसरे से अलग हुए। अभय ने पलट कर गौरी की तरफ देखा। जो उसी की तरफ करुण भाव से देख रही थी। उसकी आँखों में अपने लिए वही आदर वही स्नेह देख कर अभय का दिलो दिमाग़ अपराध बोझ से भर गया। उसे खुद पर इतनी शर्म और ग्लानी महसूस हुई कि उसे लगा ये धरती फटे और वह उसमें रसातल तक समाता चला जाए। दिलो दिमाग़ में भावनाओं का तेज़ तूफान चलने लगा। हृदय की गति तीब्र हो गई। उसे अपनी जगह पर खड़े रहना मुश्किल सा प्रतीत होने लगा।
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11-24-2019, 12:32 PM,
#87
RE: non veg kahani एक नया संसार
बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला और नयनों में नीर भरे वह तेज़ी से गौरी की तरफ बढ़ा। गौरी के पास पहुॅचते ही वह अपनी देवी समान भाभी के पैरों में लगभग लोट सा गया। उसके जज्बात उसके काबू से बाहर हो गए। फूट फूट कर रो पड़ा वह। मुह से कोई वाक्य नहीं निकल रहे थे उसके।

अपने पुत्र समान देवर को इस तरह बच्चों की तरह रोते देख गौरी का हृदय हाहाकार कर उठा। वह जल्दी से नीचे झुकी और अभय को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर बड़ी मुश्किल से उठाया उसने। अभय उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था। उसका समूचा चेहरा आसुओं से तर था।

"अरे ऐसे क्यों रहे हो पागल?" गौरी खुद भी रोते हुए बोली__"चुप हो जाओ। तुम जानते हो कि मैने हमेशा तुम्हें अपने बेटे की तरह समझा है। इस लिए तुम्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकती। चुप हो जाओ अभय। अब बिलकुल भी नहीं रोना।"

ये कह कर गौरी ने अभय को अपने सीने से लगा लिया। अपनी भाभी की ममता भरी इन बातों से अभय और भी सिसक सिसक कर रो पड़ा। उसकी आत्मा चीख चीख कर जैसे उससे कह रही थी 'देख ले अभय जिस देवी समान भाभी पर तूने शक किया था और उनके ऊपर लगाए गए आरोपों को सच समझ कर उनसे मुह मोड़ लिया था, आज वही देवी समान भाभी तुझे अपने बेटे की तरह प्यार व स्नेह देकर अपने सीने से लगा रखी है। उसके मन में लेश मात्र भी ये ख़याल नहीं है कि तुमने उनके और उनके बच्चों से किस तरह मुह मोड़ लिया था?'

अभय अपनी आत्मा की इन बातों से बहुत ज्यादा दुखी हो गया। उसे खुद से बेहद घृणा सी होने लगी थी।

"मुझे इस प्रकार अपने ममता के आचल में मत छुपाइये भाभी।" अभय गौरी से अलग होकर बोला__"मैं इस लायक नहीं हूँ। मैं तो वो पापी हूँ जिसके अपराधों के लिए कोई क्षमा नहीं है। अगर कुछ है तो सिर्फ सज़ा। हाँ भाभी....मुझे सज़ा दीजिए। मैं आप सबका गुनहगार हूँ।"

"ये कैसी पागलपन भरी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दोनो हाँथों के बीच अभय का चेहरा लेकर कहा__"किसने कहा तुमसे कि तुमने कोई अपराध किया है? अरे पगले, मैंने तो कभी ये समझा ही नहीं कि तुमने कोई अपराध किया है। और जब मैने ऐसा कुछ समझा ही नहीं तो क्षमा किस बात के लिए? हाँ ये दुख अवश्य होता था कि जिस अभय को मैं अपने बेटे की तरह मानती थी वह जाने क्यों अपनी भाभी माॅ से अब मिलने नहीं आता? क्या उसकी भाभी माॅ इतनी बुरी बन गई थी कि वो अब मुझसे बात करने की तो बात ही दूर बल्कि नज़र भी ना मिलाए?"

"इसी लिए तो कह रहा हूँ भाभी।" अभय रो पड़ा__"इसी लिए तो....कि मैं अपराधी हूँ। मेरा ये अपराध क्षमा के लायक नहीं है। मुझे इसके लिए सज़ा दीजिए।"

"मैंने तुम्हें हमेशा अपना बेटा ही समझा है अभय।" गौरी ने अभय की आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा__"इस लिए माॅ अपने बेटे की किसी ग़लती को ग़लती नहीं मानती। बल्कि वह तो उसे नादान समझ कर प्यार व स्नेह ही करने लगती है। चलो, अब अंदर चलो।"

गौरी ने ये कह अभय को उसके कंधों से पकड़ कर अंदर की तरफ चल दी। उसके पीछे विराज और निधि भी अपनी अपनी आँखों से आँसू पोंछ कर चल दिये।
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"तुम लोग सब के सब एक नम्बर के निकम्मे हो।" उधर हवेली में अजय सिंह फोन पर दहाड़ते हुए कह रहा था__"किसी काम के नहीं हो तुम लोग। पिछले एक महीने से तुम लोग वहाँ पर केवल मेरे रुपयों पर ऐश फरमा रहे हो। एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को और वह भी तुम लोगों से नहीं हुआ। हर बार अपनी नाकामी की दास्तान सुना देते हो तुम लोग।"
"......................।" उधर से कुछ कहा गया।
"कोई ज़रूरत नहीं है।" अजय सिंह गस्से में गरजते हुए बोला__"तुम लोगों के बस का कुछ नहीं है। इस लिए फौरन चले आओ वहाँ से।"

ये कह कर अजय सिंह ने मारे गुस्से के लैंड लाइन फोन के रिसीवर को केड्रिल पर लगभग पटक सा दिया था। उसके बाद ड्राइंगरूम के फर्स पर बिछे कीमती कालीन को रौंदते हुए आकर वह वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गया।

सामने के सोफे पर बैठी प्रतिमा क्रोध और गुस्से में उबलते अपने पति को एकटक देखती रही। इस वक्त कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी उसमे। जबकि अजय सिंह का चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ लाल सुर्ख पड़ गया था। कुछ पल शून्य में घूरते हुए वह लम्बी लम्बी साॅसें लेता रहा। उसके बाद उसने कोट की जेब से सिगारकेस निकाला और उससे एक सिगार निकाल कर होठों के बीच दबा कर उसे लाइटर से सुलगाया। दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने उसके गाढ़े से धुएॅ को अपने नाक और मुह से निकाला।

"तुझे तो कुत्ते से भी बदतर मौत दूॅगा हरामज़ादे।" सहसा वह दाॅत पीसते हुए कह उठा__"बस एक बार मेरे हाँथ लग जा तू। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूँ तेरा?"

"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने सहसा मौके की नज़ाक़त को देखकर पूछा__"फोन पर क्या बातें बताई तुम्हारे आदमियों ने?"

"सबके सब हरामज़ादे निकम्मे हैं।" अजय सिंह कुढ़ते हुए बोला__"आने दो सालों को एक लाइन से खड़ा करके गोली मारूॅगा मैं"

"अरे पर बात क्या हुई अजय?" प्रतिमा चौंकी थी__"तुम इतना गुस्से में क्यों पगलाए जा रहे हो?"
"तो क्या करूॅ मैं?" अजय सिंह जैसे बिफर ही पड़ा, बोला__"अपने आदमियों की एक और नाकामी की बात सुन कर क्या मैं कत्थक करने लग जाऊॅ?"

"एक और नाकामी???" प्रतिमा उछल सी पड़ी थी, बोली__"ये क्या कह रहे हो तुम?"
"हाँ प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"फोन पर मेरे आदमियों ने बताया कि अभय उन्हें गच्चा दे गया।"

"गच्चा दे गया??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"इसका क्या मतलब हुआ?"
"मेरे आदमियों के अनुसार।" अजय सिंह ने कहा__"अभय उन्हें ट्रेन से उतरते हुए दिखा। उसके बाद वह किसी कुली को अपना बैग देकर उसके साथ स्टेशन के बाहर चला गया। बाहर आकर वह एक टैक्सी में बैठा और वहाँ से आगे बढ़ गया। मेरे आदमी भी उस टैक्सी के पीछे लग गए। लेकिन उसके बाद वो टैक्सी अचानक ही कहीं गायब हो गई। मेरे उन आदमियों ने उस टैक्सी को बहुत ढूॅढ़ा मगर कहीं उसका पता नहीं चल सका।"

"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा__"कहीं ऐसा तो नहीं कि अभय को इस बात का शक़ हो गया हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है और उसने टैक्सी वाले से कहा हो कि वह पीछा करने वालों को गच्चा दे दे।"

"हो सकता है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा__"मेरे आदमी ने बताया कि अभय के पास जब कुली आया तो उनके बीच पता नहीं क्या बातें हुईं थी जिसकी वजह से अभय के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे थे। ऐसा लगा जैसे वह किसी बात पर चौका हो और वह उस कुली के साथ जाने के लिए तैयार न हुआ था। लेकिन फिर बाद में वह आसानी से अपना बैग कुली को दे दिया और चुपचाप उसके पीछे पीछे चल भी दिया था। चलते समय भी उसके चेहरे पर गहन सोच व उलझन के भाव थे।"

"हाँ तो इसमें इतना विचार करने की क्या बात है भला?" प्रतिमा ने कहा__"ऐसा तो होता ही है कि आम तौर पर कुलियों की बात पर यात्री लोग इतनी आसानी से आते नहीं हैं। दूसरी बात अभय की उस समय की मानसिक स्थित भी ऐसी नहीं रही होगी कि वह इस तरह किसी कुली के साथ कहीं चल दे।"

"हो सकता है कि तुम्हारी बात ठीक हो लेकिन।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसमें भी सोचने वाली बात तो है ही कि कुली ने ऐसा क्या कहा कि सुनकर अभय बुरी तरह चौंका था और फिर बाद में रहस्यमय तरीके से उस कुली के साथ चल दिया था? कहने का मतलब ये कि उसकी हर एक्टीविटी रहस्यमय लगी थी।"

"अगर ऐसा है भी तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?" प्रतिमा ने कहा__"क्योंकि अभय नाम का पंछी तो आपके आदमियों की आँखों के सामने से गायब ही हो चुका है अब।"

"ये सब मेरे उन हरामज़ादे आदमियों की वजह से ही हुआ है प्रतिमा। खैर छोड़ो ये सब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"ये बताओ कि तुमने अपना काम कहाँ तक पहुॅचाया?"

"अ अपना काम??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"कौन से काम की बात कर रहे हो तुम?"
"तुम अच्छी तरह जानती हो प्रतिमा कि मैं किस काम के बारे में पूछ रहा हूँ तुमसे?" अजय सिंह का लहजा सहसा पत्थर की तरह कठोर हो गया__"और अगर तुम इस काम में सीरियस नहीं हो तो बता दो मुझे। अपने तरीके से शिकार करना भली भाॅति आता है मुझे।"

"ओह तो तुम उस काम के बारे में पूछ रहे हो?" प्रतिमा को जैसे ख़याल आया__"यार तुम तो जानते हो कि ये करना इतना आसान नहीं है। भला मैं कैसे अपनी बेटी से ये कह सकूँगी कि बेटी अपने बाप के पास जा और उनके नीचे लेट जा। ताकि तेरे मदमस्त यौवन का तेरा बाप भोग कर सके।"

"अच्छी बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने ठंडे स्वर में कहा__"अब तुम कुछ नहीं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नहीं नहीं अजय।" प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई, बोली__"तुम खुद से कुछ नहीं करोगे। मैं अतिसीघ्र ही अपनी बेटी को तुम्हारे नीचे सुलाने के लिए तैयार कर लूॅगी।"

"अब तुम्हारी इन बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं है मुझे।" अजय ने कहा__"बहुत देख ली तुम्हारी कोशिशें। तुमने करुणा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बेटी के लिए भी यही कह रही हो। तुम्हारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है ये मैं देख चुका हूँ। इस लिए अब मैं खुद ये काम करूॅगा और तुम मुझे रोंकने की कोशिश नहीं करोगी।"

"पर अजय ये तुम ठीक...।" प्रतिमा का वाक्य बीच में ही रह गया।
"बस प्रतिमा, अब कुछ नहीं सुनना चाहता हूँ मैं।" अजय सिंह कह उठा__"अब तुम सिर्फ देखो और उसका मज़ा लो।"

प्रतिमा देखती रह गई अजय को। उसका दिल बुरी तरह घबराहट के कारण धड़कने लगा था। चेहरा अनायास ही किसी भय के कारण पीला पड़ गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बेटी की सलामती की दुवा की।
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अभय को अपने साथ लिए गौरी ड्राइंग रूम में दाखिल हुई, उसके पीछे पीछे विराज और निधि भी थे। गौरी ने अभय को सोफे पर बैठाया और खुद भी उसी सोफे पर उसके पास बैठ गई। विराज और निधि सामने वाले सोफे पर एक साथ ही बैठ गये।

अभय सिंह का मन बहुत भारी था। उसका सिर अभी भी अपराध बोझ से झुका हुआ था। गौरी इस बात को बखूबी समझती थी, कदाचित इसी लिए उसने बड़े प्यार से अपने एक हाथ से अभय का चेहरा ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ किया।

"ये क्या है अभय?" फिर गौरी ने अधीरता से कहा__"इस तरह सिर झुका कर बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम अपने दिलो दिमाग़ से ऐसे विचार निकाल दो जिसकी वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुमने कोई अपराध किया है। तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता तो वह भी वही करता जो उन हालातों में तुमने किया। इस लिए मैं ये समझती ही नहीं कि तुमने कोई ग़लती की है या कोई अपराध किया है। इस लिए अपने मन से ये ख़याल निकाल दो अभय और अपने दिल का ये बोझ हल्का करो, जो बोझ अपराध बोझ बन कर तुम्हें शान्ति और सुकून नहीं दे पा रहा है।"

"भाभी आप तो महान हैं इस लिए इस सबसे आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"किन्तु मैं आप जैसा महान नहीं हूँ और ना ही मेरा हृदय इतना विशाल है कि उसमें किसी तरह के दुख सहजता से जज़्ब हो सकें। मैं तो बहुत ही छोटी बुद्धि और विचारों वाला हूँ जिसे कोई भी ब्यक्ति जब चाहे और जैसे भी चाहे अपनी उॅगलियों पर नचा देता है। शायद इसी लिए तो....इसी लिए तो मैं समझ ही नहीं पाया कि कभी कभी जो दिखता है या जो सुनाई देता है वह सिरे से ग़लत भी हो सकता है।"

"ये तुम कैसी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दुखी भाव से कहा__"भगवान के लिए ऐसा कुछ मत कहो। अपने अंदर ऐसी ग्लानी मत पैदा करो और ना ही इन सबसे खुद को इस तरह दुखी करो।"

"मुझे कहने दीजिए भाभी।" अभय ने करुण भाव से कहा__"शायद ये सब कहने से मेरे अंदर की पीड़ा में कुछ इज़ाफा हो। आप तो मुझे सज़ा नहीं दे रही हैं तो कम से कम मैं खुद तो अपने आपको सज़ा और तकलीफ़ दे लूॅ। मुझे भी तो इसका एहसास होना चाहिए न भाभी कि जब हृदय को पीड़ा मिलती है तो कैसा लगता है? हमारे अपने जब अपनों को ही ऐसी तक़लीफ़ देते हैं तो उससे हमारी अंतर्आत्मा किस हद तक तड़पती है?"

"नहीं अभय नहीं।" गौरी ने रोते हुए अभय को एक बार फिर से खींच कर खुद से छुपका लिया, बोली__"ऐसी बातें मत करो। मैं नहीं सुन सकती तुम्हारी ये करुण बातें। मैंने तुम्हें अपने बेटे की तरह हमेशा स्नेह दिया है। भला, मैं अपने बेटे को कैसे इस तरह तड़पते हुए देख सकती हूँ? हर्गिज़ नहीं....।"

देवर भाभी का ये प्यार ये स्नेह ये अपनापन आज ढूॅढ़ने से भी शायद कहीं न मिले। विराज और निधि आँखों में नीर भरे उन्हें देखे जा रहे थे। कितनी ही देर तक गौरी अभय को खुद से छुपकाए रही। सचमुच इस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे अभय दो दो बच्चों का बाप नहीं बल्कि कोई छोटा सा अबोध बालक हो।

"राज।" सहसा गौरी ने विराज की तरफ देख कर कहा__"तुम अपने चाचा जी को उनके रूम में ले जाओ। लम्बे सफर की थकान बहुत होगी। नहा धो कर फ्रेस हो जाएॅगे तो मन हल्का हो जाएगा।"

"जी माॅ।" विराज तुरंत ही सोफे से उठ कर अभय के पास पहुॅच गया। गौरी के ज़ोर देने पर अभय को विराज के साथ कमरे में जाना ही पड़ा। जबकि अभय और विराज के जाने के बाद गौरी उठी और अपनी आँखों से बहते हुए आँसुओं को पोंछते हुए किचेन की तरफ बढ़ गई।
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11-24-2019, 12:32 PM,
#88
RE: non veg kahani एक नया संसार
हवेली में डोर बेल की आवाज़ सुनकर प्रतिमा ने जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे के बाहर खड़े जिस चेहरे पर उसकी नज़र पड़ी उसे देख कर वह बुरी तरह चौंकी।

"अरे नैना तुम??" प्रतिमा का हैरत में डूबा हुआ स्वर__"आओ आओ अंदर आओ। आज इतने महीनों बाद तुम्हें देख कर मुझे बेहद खुशी हुई।"

दोस्तो ये नैना है....आप सबको तो बताया ही जा चुका है परिवार के सभी सदस्यों के बारे में। फिर भी अगर आप भूल गए हैं तो आप एक बार इस कहानी का पहला अपडेट चेक कर सकते हैं। पहले अपडेट में आपको पता चल जाएगा कि नैना कौन है?

नैना जैसे ही दरवाजे के अंदर आई प्रतिमा ने उसे अपने गले से लगा लिया। प्रतिमा ने महसूस किया कि नैना के हाव भाव बदले हुए हैं। प्रतिमा की बात का उसने मुख से कोई जवाब नहीं दिया था बल्कि वह सिर्फ हल्का सा मुस्कुराई थी। उसकी मुस्कान भी शायद बनावटी ही थी। क्योंकि चेहरे के भाव उसकी मुस्कान से बिलकुल अलग थे।

"दामाद जी कहाँ हैं?" नैना से अलग होकर प्रतिमा ने दरवाजे के बाहर झाॅकने के बाद पूछा था।
"मैं अकेली ही आई हूँ भाभी।" नैना ने अजीब भाव से कहा__"सब कुछ छोंड़ कर।"

"क्याऽऽ???" नैना की बात सुनकर प्रतिमा ने चौंकते हुए कहा__"सब कुछ छोंड़ कर से क्या मतलब है तुम्हारा??
"मैंने आदित्य को तलाक दे दिया है।" नैना ने कठोरता से कहा__"अब उससे और उसके घर वालों से मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा।"

"त तलाऽऽक????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी__"ये क्या कह रही हो तुम?"
"हाँ भाभी।" नैना ने कहा__"मैने उस बेवफा को तलाक दे दिया है, और उससे सारे रिश्ते नाते तोड़ कर वापस अपने माॅ बाप व भइया भाभी के पास आ गई हूँ।"

प्रतिमा की अजीब हालत हो गई उसकी बातें सुनकर। हैरत व अविश्वास से मुह फाड़े वह अपनी छोटी ननद नैना को अपलक देखे जा रही थी। फिर सहसा उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब उसके कानों में अंदर से आई उसके पति अजय की आवाज़ गूॅजी। अंदर से अजय सिंह ने आवाज़ लगा कर पूछा था कि कौन आया है बाहर?

अजय सिंह की आवाज़ से प्रतिमा को होश आया जबकि नैना अपने हाँथ में पकड़ा हुआ बड़ा सा बैग वहीं छोंड़ कर अंदर की तरफ भागी। नैना को इस तरह भागते देख प्रतिमा चौंकी फिर पलट कर पहले दरवाजे को बंद किया उसके बाद नैना के बैग को उठा अंदर की तरफ बढ़ गई।

उधर भागते हुए नैना ड्राइंग रूम में पहुॅची। उसी समय अजय सिंह भी अपने कमरे से इधर ही आता दिखा। नैना अपने बड़े भाई को देख एक पल को ठिठकी फिर तेज़ी से दौड़ती हुई जा कर अजय सिंह से लिपट गई।

"भइयाऽऽ।" नैना अजय से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी थी। अजय सिंह उसे इस तरह देख पहले तो चौंका फिर उसे अपनी बाॅहों में ले प्यार व स्नेह से उसके सिर व पीठ पर हाँथ फेरने लगा।

"अरे क्या हुआ तुझे?" अजय सिंह उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला__"इस तरह क्यों रोये जा रही है तू?"

अजय सिंह के इस सवाल का नैना ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वह ज़ार ज़ार वैसी ही रोती रही। नैना अपने भाई के सीने से कस के लगी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे उसे इस बात का अंदेशा था कि अगर वह अपने भाई से अलग हो जाएगी तो कयामत आ जाएगी।

प्रतिमा भी तब तक पहुॅच गई थी। अपने भाई से लिपटी अपनी ननद को इस तरह रोते देख उसकी आँखों में भी पानी आ गया। काफी देर तक यही आलम रहा। अजय सिंह ने उसे बड़ी मुश्किल से चुप कराया। फिर उसे उसके कंधे से पकड़ कर चलते हुए आया और उसे सोफे पर आराम से बैठा कर खुद भी उसके पास ही बैठ गया।

"प्रतिमा दामाद जी कहाँ हैं?" फिर अजय ने प्रतिमा की तरफ देखते हुए पूछा__"उन्हें अपने साथ अंदर क्यों नहीं लाई तुम?"
"दामाद जी नहीं आए अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"नैना अकेली ही आई है।"

"क्या???" अजय चौंका__"लेकिन क्यों? दामाद जी साथ क्यों नहीं आए? मेरी फूल जैसी बहन को अकेली कैसे आने दिया उन्होंने? रुको मैं अभी बात करता हू उनसे।"

"अब फोन करने की कोई ज़रूरत नहीं है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"नैना अब हमारे पास ही रहेगी....।"
"हमारे पास ही रहेगी??" अजय चकराया, बोला__"इसका क्या मतलब हुआ भला?"

"वो...वो नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है।" प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ कहा__"इस लिए अब ये यहीं रहेंगी।"
"व्हाऽऽट???" अजय सिंह सोफे पर बैठा हुआ इस तरह उछल पड़ा था जैसे उसके पिछवाड़े के नीचे सोफे का वह हिस्सा अचानक ही किसी बड़ी सी नोंकदार सुई में बदल गया हो, बोला__"ये सब क्या...ये तुम क्या कह रही हो प्रतिमा? नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है? अरे लेकिन क्यों??"

प्रतिमा के कुछ बोलने से पहले ही नैना एक झटके से उठी और रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अजय सिंह मूर्खों की तरह उसे जाते देखता रहा।

"प्रतिमा सच सच बताओ।" फिर अजय ने उद्दिग्नता से कहा__"आख़िर ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है?"

"सारी बातें मुझे भी नहीं पता अजय।" प्रतिमा ने कहा__"नैना ने अभी कुछ भी नहीं बताया है इस बारे में।"
"उससे पूछो प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"उससे पूछो कि क्या मैटर है? उसने अपने पति को किस बात पर तलाक दे दिया है?"

"ठीक है मैं बात करती हूँ उससे।" प्रतिमा कहने के साथ ही उठ कर उस दिशा की तरफ बढ़ गई जिधर नैना गई थी। जबकि अजय सिंह किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था।
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"मिस्टर चौहान।" हास्पिटल की गैलरी पर दीवार से सटी बेंच पर बैठे एक ऐसे शख्स के कानों से ये वाक्य टकराया जिसके चेहरे पर इस वक्त गहन परेशानी व दुख के भाव थे। उसने सिर उठा कर देखा। उसके सामने एक डाक्टर खड़ा उसी की तरफ संजीदगी से देख रहा था।

"मिस्टर चौहान।" डाक्टर ने कहा__"प्लीज आप मेरे साथ आइए। मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बातें करनी है।"
"डाक्टर मेरी बेटी कैसी है अब?" बेन्च से एक ही झटके में उठते हुए उस शख्स ने हड़बड़ाहट से पूछा था__"वो अब ठीक तो है ना?"

"अब वो बिलकुल ठीक है मिस्टर चौहान लेकिन।" डाक्टर का वाक्य अधूरा रह गया।
"ल लेकिन क्या डाक्टर?" शख्स ने असमंजस से पूछा।

"आप प्लीज़ मेरे साथ आइए।" डाक्टर ने ज़ोर देकर कहा__"मुझे आपसे अकेले में बात करनी है। प्लीज़ कम हेयर...।"

कहने के साथ ही डाक्टर एक तरफ बढ़ गया। उसे जाते देख वो शख्स भी तेज़ी से उसके पीछे लपका। चेहरे पर हज़ारों तरह के भाव एक पल में ही गर्दिश करते नज़र आने लगे थे उसके। कुछ ही देर में डाक्टर के पीछे पीछे वह उसके केबिन में पहुॅचा।

"मिस्टर चौहान।" डाक्टर अपनी चेयर के पास पहुॅच कर तथा अपने सामने बड़ी सी टेबल के पार रखीं चेयर की तरफ हाथ के इशारे के साथ कहा__"हैव ए सीट प्लीज़।"

डाक्टर के कहने पर वो शख्स जिसे डाक्टर उसके सर नेम से संबोधित कर रहा था किसी यंत्रचालित सा आगे बढ़ा और एक हाथ से चेयर को पीछे कर उसमें बैठ गया। उसके बैठ जाने के बाद केबिन में दोनो के बीच कुछ देर के लिए ख़ामोशी छाई रही।

"कहो डाक्टर।" फिर खामोशी को चीरते हुए उस शख्स ने भारी स्वर में कहा__"क्या ज़रूरी बातें करनी थी आपको?"
"मिस्टर चौहान।" डाक्टर ने भूमिका बनाते हुए किन्तु संतुलित लहजे में कहा__"मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बातों को शान्ती और बड़े धैर्य के साथ सुनें।"

"आख़िर बात क्या है डाक्टर?" शख्स ने सहसा अंजाने भय से घबरा कर कहा था, बोला__"मुझे पता है कि मेरी बेटी के साथ किसी ने रेप किया है जिसकी वजह से उसकी आज ये हालत है। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगा उस हरामज़ादे को ढूढ़ने में जिसने मेरी बेटी को आज इस हालत में पहुॅचाया है। उसे ऐसी मौत दूॅगा कि फरिश्ते भी देख कर थर थर काॅपेंगे।"

"प्लीज़ कंट्रोल योरसेल्फ मिस्टर चौहान प्लीज।" डाक्टर ने कहा__"आपको इसके आगे जो भी करना हो आप करते रहियेगा, लेकिन उसके पहले शान्ती और धैर्य के साथ आप मेरी बातें सुन लीजिए।"

"ठीक है कहिए।" उस शख्स ने गहरी साॅस ली।
"ये तो आप जानते ही हैं कि आपकी बेटी के साथ क्या हुआ है।" डाक्टर ने कहा__"पर ये आधा सच है।"
"क्या मतलब?" चौहान चौंका।

"आपकी बेटी के साथ एक से ज्यादा लोगों ने रेप की वारदात को अंजाम दिया है?" डाक्टर ने संजीदगी से कहा__"उसने खुद शराब पी थी या फिर उसे पिलाई गई थी। ऐसी शराब जिसमें ड्रग्स मिला हुआ था। इससे यही साबित होता है कि ये सब जिन लोगों ने भी किया है पहले से ही सोच समझकर किया है।"

"ये आप क्या कह रहे हैं डाक्टर?" चौहान की हालत खराब थी, बोला__"मेरी बेटी के साथ इतना कुछ किया उन हरामज़ादों ने।"
"ये सब तो कुछ भी नहीं है।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"बल्कि अब जो बात मैं आपको बताना चाहता हूँ वो बहुत ही गंभीर बात है। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी उस बात को सुनकर अपना धैर्य नहीं खोएंगे।"

"आख़िर ऐसी क्या बात है डाक्टर?" चौहान हतोत्साहित सा बोला__"क्या कहना चाहते हैं आप? साफ साफ बताओ क्या बात है?"

"आपकी बेटी प्रेग्नेन्ट है।" डाक्टर ने मानो धमाका सा किया था__"वह भी दो महीने की।"
"क्याऽऽ????" चेयर पर बैठा चौहान ये सुन कर उछल पड़ा था, बोला__"ये आप क्या कह रहे हैं डाक्टर? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"इस बारे में भला मैं कैसे बता सकता हूँ मिस्टर चौहान?" डाक्टर ने कहा__"ये तो आपकी बेटी को ही पता होगा। मैंने तो आपको वही बताया है जो आपकी बेटी की जाॅच से हमें पता चला है।"
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11-24-2019, 12:32 PM,
#89
RE: non veg kahani एक नया संसार
चौहान भौचक्का सा डाक्टर को देखता रह गया था। उसके दिलो दिमाग़ में अभी तक धमाके हो रहे थे। असहाय अवस्था में बैठा रह गया था वह।

तभी केबिन का गेट खुला और एक नर्स अंदर दाखिल हुई।
"सर वो पुलिस बाहर आपका इन्तज़ार कर रही है।" नर्स ने डाक्टर की तरफ देख कर कहा था।

"ठीक है हम आते हैं।" डाक्टर ने उससे कहा फिर चौहान की तरफ देख कर कहा__"मिस्टर चौहान आइए चलते हैं।"

उसके बाद दोनो केबिन के बाहर आ गए। चौहान के चेहरे से ही लग रहा था कि वह दुखी है, किन्तु अपने इस दुख को वह जज़्ब करने की कोशिश कर रहा था।

बाहर गैलरी में आते ही डाक्टर को पुलिस के कुछ शिपाही दिखाई दिये। वह चौहान के साथ चलता हुआ रिसेशन पर पहुॅचा। जहाँ पर इंस्पेक्टर की वर्दी में रितू खड़ी थी। सिर पर पी-कैप व दाहिने हाँथ में पुलिसिया रुल था जिसे वह कुछ पलों के अन्तराल में अपनी बाॅई हथेली पर हल्के से मार रही थी।

"हैलो इंस्पेक्टर।" डाक्टर रितू के पास पहुॅचते ही बोला था।
"क्या उस लड़की को होश आ गया डाक्टर?" रितू ने पुलिसिया अंदाज़ में पूछा__"मुझे उसका स्टेटमेन्ट लेना है।"

"मिस रितू।" डाक्टर ने कहा__"बस कुछ ही समय में उसे होश आ जाएगा फिर आप उसका बयान ले सकती हैं।" डाक्टर ने कहने के साथ ही चौहान की तरफ इशारा करते हुए कहा__"ये उस लड़की के पिता हैं। मिस्टर शैलेन्द्र चौहान।"

"ओह आई सी।" रितू ने चौहान की तरफ देखते हुए कहा__"मुझे दुख है अंकल कि आपकी बेटी के साथ ऐसा हादसा हुआ?"
"सब भाग्य की बातें हैं बेटा।" चौहान ने हारे हुए खिलाड़ी की तरह बोला__"हम चाहे सारी ऊम्र सबके साथ अच्छा करते रहें और सबका अच्छा भला सोचते रहें लेकिन हमें हमारे भाग्य से जो मिलना होता है वो मिल ही जाता है।"

"हाँ ये तो है अंकल।" रितू ने कहा__"ख़ैर, आपकी बेटी का ये केस फाइल हो चुका है, बस आपके साइन की ज़रूरत है। लड़की के बयान के बाद पुलिस इस केस को अच्छी तरह देख लेगी। जिसने भी इस घिनौने काम को अंजाम दिया है उसको बहुत जल्द जेल की सलाखों के पीछे अधमरी अवस्था में पाएंगे आप।"

"उससे क्या होगा बेटी?" चौहान ने गंभीरता से कहा__"क्या वो सब वापस हो जाएगा जो लुट गया या बरबाद हो गया है?"
"आप ये कैसी बातें कर रहे हैं अंकल?" रितू ने हैरत से कहा__"क्या आप नहीं चाहते कि जिसने भी आपकी बेटी के साथ ये किया है उसे कानून के द्वारा शख्त से शख्त सज़ा मिले?"

"उसे कानून नहीं।" चौहान के चेहरे पर अचानक ही हाहाकारी भाव उभरे__"उसे मैं खुद अपने हाथों से सज़ा दूॅगा। तभी मेरी और मेरी बेटी की आत्मा को शान्ती मिलेगी।"

"तो क्या आप कानून को हाथ में लेंगे?" रितू ने कहा__"नहीं अंकल, ये पुलिस केस है और उसे कानूनन ही सज़ा प्राप्त होगी।"
"तुम अपना काम करो बेटी।" चौहान ने कहा__"और मुझे मेरा काम अपने तरीके से करना है।"

तभी वहाँ पर एक नर्स आई। उसने बताया कि उस लड़की को होश आ गया है और उसे दूसरे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है। नर्स की बात सुनकर डाक्टर ने रितू को उससे बयान लेने की परमीशन दी किन्तु ये भी कहा कि पेशेन्ट को ज्यादा किसी बात के लिए मजबूर न करें। चौहान साथ में जाना चाहता था किन्तु रितू ने ये कह कर उसे रोंक लिया कि ये पुलिस केस है इस लिए पहले पुलिस उससे मिलेगी और उसका बयान लेगी।

इंस्पेक्टर रितू अपने साथ एक महिला शिपाही को लिए उस कमरे में पहुॅची जिस कमरे में उस लड़की को शिफ्ट किया गया था। डाक्टर खुद भी साथ आया था। किन्तु फिर एक नर्स को कमरे में छोंड़ कर वह बाहर चला गया था।

हास्पिटल वाले बेड पर लेटी वह लड़की आँखें बंद किये लेटी थी। ये अलग बात है कि उसकी बंद आँखों की कोरों से आँसूॅ की धार सी बहती दिख रही थी। उसके शरीर का गले से नीचे का सारा हिस्सा एक चादर से ढ्का हुआ था। कमरे में कुछ लोगों के आने की आहट से भी उसने अपनी आँखें नहीं खोली थी। बल्कि उसी तरह पुर्वत् लेटी रही थी वह।

"अब कैसी तबियत है तुम्हारी?" रितू उसके करीब ही एक स्टूल पर बैठती हुई बोली थी। उसके इस प्रकार पूॅछने पर लड़की ने अपनी आँखें खोली और रितू की तरफ चेहरा मोड़ कर देखा उसे। रितू पर नज़र पड़ते ही उसकी आँखों में हैरत के भाव उभरे। ये बात रितू ने भी महसूस की थी।

"अब कैसा फील कर रही हो?" रितु ने पुनः उसकी तरफ देख कर किन्तु इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा__"अगर अच्छा फील कर रही हो तो अच्छी बात है। मुझे तुमसे इस वारदात के बारे में कुछ पूछताॅछ करनी है। लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें ये बता दूॅ कि तुम्हें मुझसे भयभीत होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं भी तुम्हारी तरह एक लड़की ही हूँ और हाँ तुम मुझे अपनी दोस्त समझ सकती हो, ठीक है ना?"

लड़की के चेहरे पर कई सारे भाव आए और चले भी गए। उसने रितू की बातों का अपनी पलकों को झपका कर जवाब दिया।

"ओके, तो अब तुम मुझे सबसे पहले अपना नाम बताओ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा।
"वि वि...विधी।" उस लड़की के थरथराते होठों से आवाज़ आई।

उसका नाम सुन कर रितू को झटका सा लगा। मस्तिष्क में जैसे बम्ब सा फटा था। चेहरे पर एक ही पल में कई तरह के भाव आए और फिर लुप्त हो गए। रितू ने सीघ्र ही खुद को नार्मल कर लिया।

"ओह....कितना खूबसूरत सा नाम है तुम्हारा।" रितू ने कहा। उसके दिमाग़ में कुछ और ही ख़याल था, बोली__"विधी...विधी चौहान, राइट?"

लड़की की आँखों में एक बार पुनः चौंकने के भाव आए थे। एकाएक ही उसका चेहरा सफेद फक्क सा पड़ गया था। चेहरे पर घबराहट के चिन्ह नज़र आए। उसने अपनी गर्दन को दूसरी तरफ मोड़ लिया।

"तो विधी।" रितू ने कहा__"अब तुम मुझे बेझिझक बताओ कि क्या हुआ था तुम्हारे साथ?"

रितू की बात पर विधी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह दूसरी तरफ मुह किये लेटी रही। जबकि उसकी ख़ामोशी को देख कर रितू ने कहा__"देखो ये ग़लत बात है विधी। अगर तुम कुछ बताओगी नहीं तो मैं कैसे उस अपराधी को सज़ा दिला पाऊॅगी जिसने तुम्हारी यानी मेरी दोस्त की ऐसी हालत की है? इस लिए बताओ मुझे....सारी बातें विस्तार से बताओ कि क्या और कैसे हुआ था?"

"मु मुझे कुछ नहीं पता।" विधी ने दूसरी तरफ मुह किये हुए ही कहा__"मैं नहीं जानती कि किसने कब कैसे मेरे साथ ये सब किया?"
"तुम झूॅठ बोल रही विधी।" रितू की आवाज़ सहसा तेज़ हो गई__"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे साथ इतना कुछ हुआ और तुम्हें इस सबके बारे में थोड़ा सा भी पता न हुआ हो?"

"भला मैं झूॅठ क्यों बोलूॅगी आपसे?" विधी ने इस बार रितू की तरफ पलट कर कहा था।
"हाँ लेकिन सच भी तो नहीं बोल रही हो तुम?" रितू ने कहा__"आख़िर वो सब बताने में परेशानी क्या है? देखो अगर तुम नहीं बताओगी तो सच जानने के लिए पुलिस के पास और भी तरीके हैं। कहने का मतलब ये कि, हम ये पता लगा ही लेंगे कि तुम्हारे साथ ये सब किसने किया है?"

बेड पर लेटी विधी के चेहरे पर असमंजस व बेचैनी के भाव उभरे। कदाचित् समझ नहीं पा रही थी कि वह रितू की बातों का क्या और कैसे जवाब दे?

"तुम्हारे चेहरे के भाव बता रहे हैं विधी कि तुम मेरे सवालों से बेचैन हो गई हो।" रितू ने कहा__"तुम जानती हो कि तुम्हारे साथ ये सब किसने किया है। लेकिन बताने में शायद डर रही हो या फिर हिचकिचा रही हो।"

विधी ने कमरे में मौजूद लेडी शिपाही व नर्स की तरफ एक एक दृष्टि डाली फिर वापस रितू की तरफ दयनीय भाव से देखने लगी। रितू को उसका आशय समझते देर न लगी। उसने तुरंत ही लेडी शिपाही व नर्स को बाहर जाने का इशारा किया। नर्स ने बाहर जाते हुए इतना ही कहा कि पेशेन्ट को किसी बात के लिए ज्यादा मजबूर मत कीजिएगा क्योंकि इससे उसके दिलो दिमाग़ पर बुरा असर पड़ सकता है। नर्स तथा लेडी शिपाही के बाहर जाने के बाद रितू ने पलट कर विधी की तरफ देखा।

"देखो विधी, अब इस कमरे में हम दोनो के सिवा दूसरा कोई नहीं है।" रितू ने प्यार भरे लहजे से कहा__"अब तुम मुझे यानी अपनी दोस्त को बता सकती हो कि ये सब तुम्हारे साथ कब और किसने किया है?"

"क..क कल मैं अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में गई थी।" विधी ने मानो कहना शुरू किया, उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट थी__"वहाँ पर हमारे काॅलेज की कुछ और लड़कियाॅ थी जो हमारे ही ग्रुप की फ्रैण्ड्स थी और साथ में कुछ लड़के भी। पार्टी में सब एंज्वाय कर रहे थे। मेरी दोस्त परिधि ने मनोरंजन का सारा एरेन्जमेन्ट किया हुआ था। जिसमें बियर और शराब भी थी। दोस्त के ज़ोर देने पर मैंने थोड़ा बहुत बियर पिया था। लेकिन मुझे याद है कि उस बियर से मैने अपना होश नहीं खोया था। हम सब डान्स कर रहे थे, तभी मेरी एक फ्रैण्ड ने मेरे हाँथ में काॅच का प्याला पकड़ाया और मस्ती के ही मूड में मुझे पीने का इशारा किया। मैंने भी मुस्कुरा कर उसके दिये हुए प्याले को अपने मुह से लगा लिया और उसे धीरे धीरे करके पीने लगी। किन्तु इस बार इसका टेस्ट पहले वाले से अलग था। फिर भी मैंने उसे पी लिया। कुछ ही देर बाद मेरा सर भारी होने लगा। वहाँ की हर चीज़ मुझे धुंधली सी दिखने लगी थी। उसके बाद मुझे नहीं पता कि किसने मेरे साथ क्या किया? हाँ बेहोशी में मुझे असह पीड़ा का एहसास ज़रूर हो रहा था, इसके सिवा कुछ नहीं। जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको यहाँ हास्पिटल में पाया। मुझे नहीं पता कि यहाँ पर मैं कैसे आई? लेकिन इतना जान चुकी हूँ कि मेरा सबकुछ लुट चुका है, मैं किसी को मुह दिखाने के काबिल नहीं रही।"

इतना सब कहने के साथ ही विधी बेड पर पड़े ही ज़ार ज़ार रोने लगी थी। उसकी आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इंस्पेक्टर रितू उसकी बात सुनकर पहले तो हैरान रही फिर उसने उसे बड़ी मुश्किल से शान्त कराया।

"तुम्हें यहाँ पर मैं लेकर आई थी विधी।" रितू ने गंभीरता से कहा__"पुलिस थाने में किसी अंजान ब्यक्ति ने फोन करके हमें सूचित कर बताया कि शहर से बाहर मेन सड़क के नीचे कुछ दूरी पर एक लड़की बहुत ही गंभीर हालत में पड़ी है। वो जगह हल्दीपुर की अंतिम सीमा के पास थी, जहाँ से हम तुम्हें उठा कर यहाँ हास्पिटल लाए थे।"

"ये आपने अच्छा नहीं किया।" विधी ने सिसकते हुए कहा__"उस हालत में मुझे वहीं पर मर जाने दिया होता। कम से कम उस सूरत में मुझे किसी के सामने अपना मुह तो न दिखाना पड़ता। मेरे घर वाले, मेरे माता पिता को मुझे देख कर शर्म से अपना चेहरा तो न झुका लेना पड़ता।"

"देखो विधी।" रितू ने समझाने वाले भाव से कहा__"इस सबमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है और ये बात तुम्हारे पैरेन्ट्स भी जानते और समझते हैं। ग़लती जिनकी है उन्हें इस सबकी शख्त से शख्त सज़ा मिलेगी। तुम्हारे साथ ये अत्याचार करने वालों को मैं कानून की सलाखों के पीछे जल्द ही पहुचाऊॅगी।"

विधी कुछ न बोली। वह बस अपनी आँखों में नीर भरे देखती रही रितू को। जबकि,,

"अच्छा ये बताओ कि तुम्हारी दोस्त की पार्टी में उस वक्त कौन कौन मौजूद था जिनके बारे में तुम जानती हो?" रितू ने पूछा__"साथ ही ये भी बताओ कि तुम्हें उनमें से किन पर ये शक़ है कि उन्होने तुम्हारे साथ ऐसा किया हो सकता है? तुम बेझिझक होकर मुझे उन सबका नाम पता बताओ।"

विधी कुछ देर सोचती रही फिर उसने पार्टी में मौजूद कुछ लड़के लड़कियों के बारे में रितू को बता दिया। रितू ने एक काग़ज पर उन सबका नाम पता लिख लिया। उसके बाद कुछ और पूछताछ करने के बाद रितू कमरे से बाहर आ गई।

रितू को डाक्टर ने बताया कि वो लड़की दो महीने की प्रैग्नेन्ट है। ये सुन कर रितू बुरी तरह चौंकी थी। हलाॅकि मिस्टर चौहान ने डाक्टर को मना किया था कि ये बात वह किसी को न बताए। किन्तु डाक्टर ने अपना फर्ज़ समझ कर पुलिस के रूप में रितू को बता दिया था।

रितू ने मिस्टर चौहान को एक बार थाने में आने का कह कर हास्पिटल से निकल गई थी। उसके मस्तिष्क में एक ही ख़याल उछल कूद मचा रहा था कि 'क्या ये वही विधी है जिसे विराज प्यार करता था'???? रितू ने कभी विधी को देखा नहीं था, और नाही उसके बारे में उसके भाई विराज ने कभी बताया था। उसे तो बस कहीं से ये पता चला था कि उसका भाई विराज किसी विधी नाम की लड़की से प्यार करता है। इस लिए आज जब उसने उस लड़की के मुख से उसका नाम विधी सुना तो उसके दिमाग़ में तुरंत ही उस विधी का ख़याल आ गया जिस विधी नाम की लड़की से उसका भाई प्यार करता है। रितु के मन में पहले ये विचार ज़रूर आया कि वह एक बार उससे ये जानने की कोशिश करे कि क्या वह विराज को जानती है? लेकिन फिर उसने तुरंत ही अपने मन में आए इस विचार के तहत उससे इस बारे में पूछने का ख़याल निकाल दिया। उसे लगा ये वक्त अभी इसके लिए सही नहीं है।
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11-24-2019, 12:32 PM,
#90
RE: non veg kahani एक नया संसार
रात में डिनर करने के बाद एक बार फिर से सब ड्राइंग रूम में एकत्रित हुए। अभय किसी सोच में डूबा हुआ था। गौरी ने उसे सोच में डूबा देख कर कहा__"करुणा और बच्चे कैसे हैं अभय?"

"आं..हाँ सब ठीक हैं भाभी।" अभय ने चौंकते हुए कहा था।
"शगुन कैसा है?" गौरी ने पूछा__"क्या अभी भी वैसी ही शरारतें करता है वह? करुणा तो उसकी शरारतों से परेशान हो जाती होगी न? और...और मेरी बेटी दिव्या कैसी है...उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है?"

"सब अच्छे हैं भाभी।" अभय ने नज़रें चुराते हुए कहा__"दिव्या की पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।"
"क्या बात है?" गौरी उसे नज़रें चुराते देख चौंकी__"तुम मुझसे क्या छुपा रहे हो अभय? घर में सब ठीक तो हैं ना? मुझे बताओ अभय....मेरा दिल घबराने लगा है।"

"कोई ठीक नहीं है भाभी कोई भी।" अभय के अंदर से मानो गुबार फट पड़ा__"हवेली में कोई भी ठीक नहीं हैं। करुणा और बच्चों को मैं करुणा के मायके भेज कर ही यहाँ आया हूँ। इस समय घर के हालात बहुत ख़राब हैं भाभी। किसी पर भरोसा करने लायक नहीं रहा अब।"

"आख़िर हुआ क्या है अभय?" गौरी के चेहरे पर चिन्ता के भाव उभर आए__"साफ साफ बताते क्यों नहीं?"

सामने सोफे पर बैठे विराज और निधि भी परेशान हो उठे थे। दिल किसी अंजानी आशंकाओं से धड़कने लगा था उनका।

"क्या बताऊॅ भाभी?" अभय ने असहज भाव से कहा__"मुझे तो बताने में भी आपसे शरम आती है।"
"क्या मतलब?" गौरी ही नहीं बल्कि अभय की इस बात से विराज और निधि भी बुरी तरह चौंके थे।

"एक दिन की बात है।" फिर अभय कहता चला गया। उसने वो सारी बातें बताई जो शिवा ने किया था। उसने बताया कि कैसे शिवा उसके न रहने पर उसके घर आया था और अपनी चाची को बाथरूम में नहाते देखने की कोशिश कर रहा था। इस सबके बाद कैसे करुणा ने आत्म हत्या करने की कोशिश की थी। अभय ये सब बताए जा रहा था और बाॅकी सब आश्चर्य से मुह फाड़े सुनते जा रहे थे।

"हे भगवान।" गौरी ने रोते हुए कहा__"ये सब क्या हो गया? मेरी फूल सी बहन को भी नहीं बक्शा उस नासपीटे ने।"
"ये तो कुछ भी नहीं है भाभी।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"उस हरामज़ादे ने तो आपकी बेटी दिव्या पर भी अपनी गंदी नज़रें डालने में कोई संकोच नहीं किया।"

"क्या?????" गौरी उछल पड़ी।
"हाँ भाभी।" अभय ने कहा__"ये बात खुद दिव्या ने मुझे बताई थी।"
"जैसे माॅ बाप हैं वैसा ही तो बेटा होगा।" गौरी ने कहा__"माॅ बाप खुद ही अपने बेटे को इस राह पर चलने की शह दे रहे हैं अभय।"

"क्या मतलब?" इस बार बुरी तरह उछलने की बारी अभय की थी, बोला__"ये आप क्या कह रही हैं?"
"यही सच है अभय।" गौरी ने गंभीरता से कहा__"आपके बड़े भाई साहब और भाभी बहुत ही शातिर और घटिया किस्म के हैं। तुम उनके बारे में कुछ नहीं जानते। लेकिन मैं और माॅ बाबू जी उनके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। तुम्हें तो वही बताया और दिखाया गया जो उन्होंने गढ़ कर तुम्हें दिखाना था। ताकि तुम उनके खिलाफ न जा सको।"

"उस हादसे के बाद से मुझे भी ऐसा ही कुछ लगने लगा है भाभी।" अभय ने बुझे स्वर में कहा__"उस हादसे ने मेरी आँखें खोल दी। तथा मुझे इस सबके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। इसी लिए तो मैं सारी बातों को जानने के लिए आप सबके पास आया हूँ। मुझे दुख है कि मैंने सारी बातें पहले ही आप सबसे जानने की कोशिश क्यों नहीं की? अगर ये सब मैने पहले ही पता कर लिया होता तो आप सबको इतनी तक़लीफ़ें नहीं सहनी पड़ती। मैं आप सबके लिए बड़े भइया भाभी से लड़ता और उन्हें उनके इस कृत्य की सज़ा भी देता।"

"तुम उनका कुछ भी न कर पाते अभय।" गौरी ने कहा__"बल्कि अगर तुम उनके रास्ते का काॅटा बनने की कोशिश करते तो वो तुम्हें भी उसी तरह अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटा देते जैसे उन्होंने राज के पिता को हटा दिया था।"

"क्या???????" अभय बुरी तरह उछला था, बोला__"मॅझले भइया को.....???"
"हाँ अभय।" गौरी की आँखें छलक पड़ी__"तुम सब यही समझते हो कि तुम्हारे मॅझले भइया की मौत खेतों में सर्प के काटने से हुई थी। ये सच है लेकिन ये सब सोच समझ कर किया गया था। वरना ये बताओ कि खेत पर बने मकान के कमरे में कोई सर्प कहाँ से आ जाता और उन्हें डस कर मौत दे देता? सच तो ये है कि कमरे में लेटे तुम्हारे भइया को सर्प से कटाया गया और जब वो मृत्यु को प्राप्त हो गए तो उन्हें कमरे से उठा कर खेतों के बीच उस जगह डाल दिया गया जिस जगह खेत में पानी लगाया जा रहा था। ये सब इस लिए किया गया ताकि सबको यही लगे कि खेतों में पानी लगाते समय ही तुम्हारे भइया को किसी ज़हरीले सर्प ने काटा और वहीं पर उनकी मृत्यु हो गई।"

"हे भगवान।" अभय अपने दोनो हाथों को सिर पर रख कर रो पड़ा__"मेरे देवता जैसे भाई को इन अधर्मियों ने इस तरह मार दिया था। नहीं छोंड़ूॅगा....ज़िंदा नहीं छोड़ूॅगा उन लोगों को मैं।"

"नहीं अभय।" गौरी ने कहा__"उन्हें उनके कुकर्मों की सज़ा ज़रूर मिलेगी।"
"पर ये सब आपको कैसे पता भाभी कि मॅझले भइया को इन लोगों ने ही सर्प से कटवा कर मारा था?" अभय ने पूछा__"और वो सब भी बताइए भाभी जो इन लोगों ने आपके साथ किया है? मैं जानना चाहता हूँ कि इन लोगों ने मेरे देवी देवता जैसे भइया भाभी पर क्या क्या अनाचार किये हैं? मैं जानना चाहता हूँ कि शेर की खाल ओढ़े इन भेड़ियों का सच क्या है?"

"मैं जानती हूँ कि तुम जाने बग़ैर रहोगे नहीं अभय।" गौरी ने गहरी साॅस ली__"और तुम्हें जानना भी चाहिए। आख़िर हक़ है तुम्हारा।"
"तो फिर बताइए भाभी।" अभय ने उत्सुकता से कहा__"मुझे इन लोगों का घिनौना सच सुनना है।"

अभय की बात सुन कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली। उसके चेहरे पर अनायास ही ऐसे भाव उभर आए थे जैसे अपने आपको इस परिस्थिति के लिए तैयार कर रही हो।
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