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RE: non veg kahani एक नया संसार
"इस बारे में न सोचने की भी वजह थी इंस्पेक्टर।" सहसा अजय सिंह ने कमान सम्हालते हुए कहा__"दरअसल जिस दिन फैक्टरी में आग लगी थी उस दिन सभी वर्कर्स के लिए अवकाश था। इस लिए उस रात फैक्टरी में कोई था ही नहीं। और जब कोई था ही नहीं तो भला इस बारें में कैसे कह सकते थे किसी अन्य के द्वारा फैक्टरी में आग लगी?"
"चलिए मान लिया कि उस रात अवकाश के चलते कोई भी वर्कर फैक्टरी में नहीं था।" रितू ने कहा__"किन्तु सवाल ये है कि अवकाश के चलते क्या कोई भी फैक्टरी में नहीं था? जहाॅ तक मुझे पता है तो इतनी बड़ी फैक्टरी में अवकाश के चलते हर कोई फैक्टरी से नदारद नहीं हो सकता। मतलब फैक्टरी की सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ गार्ड्स मौजूद होते हैं और बहुत मुमकिन है कि फैक्टरी के स्टाफ में से भी कोई न कोई फैक्टरी में मौजूद रहता है।"
"बिलकुल इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने कहा__"हप्ते में एक दिन फैक्टरी बंद रहती है इस लिए फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को अवकाश दे दिया जाता है। लेकिन उस अवकाश वाले दिन ऐसा नहीं होता कि पूरी फैक्टरी सुनसान हो जाती है, बल्कि फैक्टरी की देख रेख और उसकी सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ पर चौबीसों घंटे सिक्योरिटी गार्ड्स रहते हैं तथा फैक्टरी स्टाफ के भी कई मेंबर फैक्टरी में रहते हैं।" इतना कहने के बाद अजय सिंह एक पल रुका फिर कुछ सोच कर बोला__"अगर तुम्हारा ख़याल ये है इंस्पेक्टर कि इन्हीं सब लोगों में से ही किसी ने फैक्टरी में आग लगाई हो सकती है तो तुम्हारा ख़याल ग़लत है। क्योकि ये सब मेरे सबसे ज्यादा फरोसेमंद आदमी हैं जिनकी ईमानदारी पर मुझे लेस मात्र भी शक नहीं है।"
"अपने आदमियों पर भरोसा करना बहुत अच्छी बात है ठाकुर साहब।" रितू ने कहा__"लेकिन अंधा विश्वास करना कोई सबझदारी नहीं है। ख़ैर, तो आपके कहने का मतलब है कि फैक्टरी से रिलेटेड किसी भी ब्यक्ति ने फैक्टरी में आग नहीं लगाई हो सकती?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने जोर देकर कहा__"इन पर मेरा ये भरोसा ही है वर्ना अगर भरोसा नहीं होता तो मैं पहले ही इन सब पर इस सबके लिए शक ज़ाहिर करता और तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट से इस बारे में तहकीकात करने की बात कहता। और एक पल के लिए अगर मैं ये मान भी लूॅ कि मेरे आदमियों में से ही किसी ने ये काम किया हो सकता है तब भी ये साबित नहीं हो सकता। क्योकि अवकाश वाले दिन फैक्टरी में ताला लगा होता है और बाकी के फैक्टरी स्टाफ मेंबर फैक्टरी से अलग अपनी अपनी डेस्क या केबिन में होते हैं। यहाॅ पर अगर ये तर्क दिया जाए कि अवकाश से पहले ही या फैक्टरी में ताला लगने से पहले ही किसी ने ऐसा कुछ कर दिया हो जिससे फैक्टरी के अंदर आग लग जाए तब भी ये तर्कसंगत नहीं है। क्योकि ये तो हर स्टाफ मेंबर जानता है कि फैक्टरी में हुए किसी भी हादसे से सबसे पहले उन्हीं पर ही शक किया जाएगा, उस सूरत में उन पर कड़ी कार्यवाही भी की जाएगी और अंततः वो पकड़े ही जाएॅगे। इस लिए कोई भी स्टाफ मेंबर जानबूझ कर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेने वाला काम करेगा ही नहीं।"
"आपके तर्क अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं ठाकुर साहब।" रितु ने एक हाॅथ में पकड़े हुए पुलिसिया रुल को अपने दूसरे हाॅथ की हॅथेली पर हल्के से मारते हुए कहा__"अब इसी बात को अपने फैक्टरी स्टाफ के नज़रिये से देख कर ज़रा ग़ौर कीजिए। कहने का मतलब ये कि मान लीजिए कि मैं ही वो फैक्टरी की स्टाफ मेंबर हूॅ जिसने फैक्टरी में आग लगाई है और मैं ये बात अच्छी तरह जानती हूॅ कि मेरे द्वारा किए गए काण्ड से आपका शक सबसे पहले मुझ पर ही जाएगा जो कि स्वाभाविक ही है, इस लिए आपके मुताबिक मैं ये काम नहीं कर सकती, क्योंकि सबसे पहले मुझ पर ही शक जाने से मैं फॅस जाऊॅगी, ये आप सोचते हैं। जबकि मैंने आपकी सोच के उलट ये काम कर ही दिया है और आप सोचते रहें कि मैंने ये काम नहीं किया हो सकता।"
"दिमाग़ तो तुमने काबिले-तारीफ़ लगाया है इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने मुस्कुराकर कहा__"यकीनन तुमने दोनो पहलुओं के बारे में बारीकी से सोच कर तर्कसंगत विचार प्रकट किया है लेकिन ये एक संभावना मात्र ही है, कोई ज़रूरी नहीं कि इसमें कोई सच्चाई ही हो।"
"सच्चाई का ही तो पता लगाना है ठाकुर साहब।" रितु ने कहा__"और उसके लिए हर किसी के बारे में दोनों पहलुओं पर सोचना ही पड़ेगा। ख़ैर, मुझे ऐसा लगता है कि आप ही इस प्रकार से सोच विचार नहीं करना चाहते, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। ये सोचने वाली बात है।"
अजय सिंह ये सुन कर एक पल के लिए गड़बड़ा सा गया। फिर तुरंत ही सहल कर बोला__"ऐसा कुछ नहीं है इंस्पेक्टर। मैं तो बस इस लिए नहीं सोच विचार कर रहा क्योंकि मेरे हिसाब से इस सबका रिजल्ट पहले निकाला जा चुका है।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
ये एक बहुत बड़ा फार्म हाउस हुआ करता था पहले। अजय सिंह ने जब इस बिजनेस की शुरुआत की थी तो किसी दूसरे सेठ की वर्षों से बंद कपड़ा फैक्टरी को सस्ते दामों में खरीदा था। (ये सब बातें कहानी के पहले या दूसरे अपडेट में बताई जा चुकी हैं) उस समय ये कपड़ा फैक्टरी शहर के बीच ही बनी हुई थी। कुछ सालों बाद जब अजय सिंह की इस बिजनेस से अच्छे खासे मुनाफे के रूप में तरक्की हुई तो उसने इस फैक्टरी को नये सिरे से तथा नई मशीनों के साथ शुरू करने का विचार किया। अजय सिंह क्योंकि बहुत ही लालची व महत्वाकांक्षी आदमी था, और बढ़ती आय के साथ उसकी बुरी आदतों में भी इज़ाफा हुआ इस लिए पैसे के लिए वह उन रास्तों को भी अपना लिया जिसे गैर कानूनी कहा जाता है। इस रास्ते में उसके कई अपने गैर कानूनी लोग भी थे। किन्तु गैर कानूनी काम में रिश्क बहुत था तथा शहर के बीच उस छोटी सी फैक्टरी में इस काम को अंजाम देने में आसानी नहीं होती थी। कभी भी लोगों के बीच खुद की असलियत सामने आ जाने का खतरा बना रहता था। इस लिए उसने बहुत सोच समझ कर शहर से बाहर एक बहुत बड़ी ज़मीन ख़रीदी तथा वहाॅ पर इसने नये तरीके से फैक्टरी का निर्माण किया। फैक्टरी काफी बड़ी थी तथा उसके नीचे एक बड़ा बेसमेंट भी बनवाया गया था जो सिर्फ गैर कानूनी चीज़ों के उपयोग में ही आता था। यहाॅ पर उसे किसी चीज़ का खतरा नहीं था। फैक्टरी में मजदूरों को हप्ते में एक दिन अवकाश देने के पीछे भी उसका एक मकसद था। वो मकसद ये था कि अवकाश वाले दिन ही वह स्वतंत्र रूप से अपने गैर कानूनी धंधे को चलाता था। जिसके बारे में कभी किसी को भनक तक न लगी थी। फैक्टरी को बहुत सोच समझ कर ही बनवाया गया था। फैक्टरी के अंदर सिर्फ मशीनें थी जहाॅ पर मजदूर काम करते थे, जबकि फैक्टरी के आला अफसर या बाॅकी स्टाफ फैक्टरी से दूर कुछ फाॅसले पर बने एक बड़े से आफिस में होते थे।
अजय सिंह ने कदाचित ख़्वाब में भी न सोचा था कि कभी ऐसा भी समय उसके जीवन में आ जाएगा जब उसकी इस विसाल फैक्टरी में आग लग जाएगी और इस सबकी छानबीन खुद उसकी ही बेटी पुलिस इंस्पेक्टर बन कर करेगी। कानून का डर उसे कभी नहीं था क्योंकि उसने कानून के नुमाइंदों को अपने वश में कर लिया था। हर महीने वह अच्छी खासी रकम पुलिस के आला अफसरों तक पहुॅचवा देता था। उसके मंत्री तक से अच्छे संबंध थे इस लिए उसे इस धंधे में किसी का कोई डर नहीं था। मगर होनी को कौन टाल सकता था भला? होनी तो अटल होती है, बिना बताए तथा बिना किसी सूचना के वो अपना काम कर डालती है। यही अजय सिंह के साथ हुआ था।
ख़ैर ये सब तो बीती बातें हैं दोस्तो, आइए हम सब वर्तमान की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि आगे क्या हो रहा है?
फैक्टरी के अंदर का नज़ारा ही कुछ अलग था। जैसा कि आप सब जानते हैं कि फैक्टरी में भीषण आग लगी हुई थी जिसमें सब कुछ जल कर खाक़ में मिल चुका था। अंदर हर चीज़ कोयला बन चुकी थी। हर जगह पानी में सनी हुई राख तथा टूटे हुए बहुत से टुकड़े पड़े थे। कुछ पल के लिए तो रितू को भी समझ न आया कि इस राख में वह क्या तलाश करे? किन्तु कुछ तो करना ही था, केस रिओपेन हुआ था। इस लिए बिना किसी नतीजे के वह बंद नहीं हो सकता था। ऊपर से आदेश था कि छानबीन अच्छे से होनी चाहिए।
पुलिस के खोजी कुत्ते तथा फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग अपने अपने काम में लग गए। खुद रितू भी वहाॅ की हर चीज़ को बारीकी से देख देख कर जाॅच करने लगी। जबकि इधर अजय, प्रतिमा व अभय चुपचाप उन सबकी कार्यप्रणाली को देखते रहे।
बड़ी बड़ी मशीनों पर जले हुए कपड़ों की राख तथा टुकड़े लिपटे हुए थे। कहीं कहीं पर पिघले हुए शीशे एवं प्लास्टिक नज़र आ रहे थे। अजय सिंह ये सब होने के बाद पहली बार ये सब ध्यान से देख रहा था तथा साथ ही अंदर ही अंदर दुखी भी हो रहा था। कुछ भी हो आखिर उसकी मेहनत का पैसा था वह, फिर चाहे गैर कानूनी वाला हो या फिर सच्चाई वाला।
"मैडम, यहाॅ पर कुछ है।" सहसा एक हवलदार रितू को दूर से ही चिल्लाते हुए कहा।
रितु के साथ साथ सबके कान खड़े हो गए। अजय सिंह की बढ़ी हुई धड़कन मानों उसे रुकती हुई प्रतीत हुई। चेहरे पर तुरंत ही ढेर सारा पसीना उभर आया, तथा चेहरा भय व घबराहट की वजह से पीला पड़ता चला गया। उसने जल्दी से खुद को सम्हाला। अपने दाहिने हाॅथ में लिए रुमाल से उसने तुरंत ही अपने चेहरे का पसीना पोंछा और सरसरी तौर पर इधर उधर देखा। प्रतिमा उसे देख कर तुरंत ही उसके करीब गई तथा हौले से पूछा__"क्या बात है अजय, तुम इतना परेशान और घबराए हुए क्यों लग रहे हो?"
"म मैं क कहाॅ परेशान हूॅ?" अजय सिंह हकलाते हुए बोला__"मैं ठीक हूॅ? ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं परेशान व घबराया हुआ हूॅ?"
प्रतिमा ने उसे बड़े ग़ौर से देखा, फिर कहा__"मुझे ऐसा क्यों लगता है अजय कि जैसे तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो? या फिर ऐसा कि तुम किसी बात से इस लिए घबरा रहे हो कि किसी को वो बात पता न चल जाए।"
अजय सिंह हड़बड़ा गया, आॅखें फाड़े प्रतिमा को देखने लगा। मन में विचार उभरा 'बेटी क्या कम थी जो अब उसकी माॅ भी मेरी जान लेने पर उतारू हो गई है'।
"ऐसे क्यों देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा ने कहा__"क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है?"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"देखो प्रतिमा।" अजय सिंह ने खुद को सम्हाल कर कहा__"मैं इस वक्त किसी से कुछ नहीं कहना चाहता, इस लिए बेहतर होगा कि तुम भी मुझसे कोई सवाल जवाब न करो।"
"मैं तुम्हारी पत्नी हूॅ अजय।" प्रतिमा ने एकाएक अधीरता से कहा__"तुम्हें इस तरह परेशानी की हालत में नहीं देख सकती। तुम जानते हो कि हर काम में मैं तुम्हारे साथ हूॅ, फिर चाहे वो काम कैसा भी क्यों न हो। तुम्हारी खुशी के लिए हर वो काम कर जाती हूॅ जिसे करने का तुम मुझसे कहते हो। मैं ये भी जानती हूॅ कि तुम मुझसे कोई भी बात नहीं छुपाते फिर ऐसी क्या बात हो गई है जिसे तुम मुझसे छुपा कर खुद अंदर ही अंदर घुटे जा रहे हो?"
"ऐसी कोई बात नहीं है।" अजय सिंह ये सोच कर घबराया जा रहा था कि कहीं कोई ये सब बातें सुन न ले, इस लिए वह बोला__"अब चुप हो जाओ प्लीज।"
"अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो यही बात तुम मेरे सिर पर हाॅथ रख कर कहो।" प्रतिमा ने कहने साथ ही अजय सिंह का एक हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया।
"ये क्या पागलपन है यार?" अजय सिंह ने तुरंत ही प्रतिमा के सिर से अपना हाॅथ एक झटके में खींच कर थोड़ी ऊॅची आवाज़ में कहा था। उसकी आवाज़ सुन कर अभय का ध्यान उनकी तरफ गया तो वह सीघ्र ही उनके पास आकर ब्याकुलता से बोला__"क्या हुआ भइया? कुछ परेशानी है क्या?"
"न नहीं छोटे।" अजय सिंह मन ही मन झुंझला उठा था किन्तु प्रत्यक्ष मे उसने यही कहा__"ऐसी कोई बात नहीं है।"
अभय ने उसके चेहरे की तरफ कुछ पल देखा फिर वह वापस अपनी जगह पर आकर खड़ा हो गया। जबकि अभय के जाते ही अजय सिंह ने प्रतिमा की तरफ देख कर कहा__"फार गाड शेक..अब कुछ मत बोलना।"
"ये तुम बिलकुल भी अच्छा नहीं कर रहे हो अजय।" प्रतिमा ने कहा__"अगर कोई बात है तो तुम्हें मुझसे बेझिझक बता देना चाहिए, हो सकता है कि मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूॅ।"
"अगर कोई बात है भी तो।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली__"तो इस वक्त नहीं बता सकता, बट बिलीव मी तुम्हें सब कुछ ज़रूर बताऊॅगा। अब जाओ यहाॅ से और मुझे अकेला मेरे हाल पर छोंड़ दो।"
प्रतिमा ने कुछ देर अजय की आंखों में देखा और फिर पलट कर अभय के पास आ गई। उसके मन में हज़ारों विचार किसी बिच्छू की तरह डंक मार मार कर उछल कूद कर रहे थे।
उधर हवलदार के चिल्लाने पर रितू तेज़ी से उसके करीब पहुॅची। रितू के आते ही हवलदार ने सामने की तरफ इशारा किया। रितू ने हवलदार की बताई हुई जगह को देखा तो चौंक गई। दरअसल पिघले हुए प्लास्टिक के नीचे कोई चीज़ थी लाल रंग की। रितू फर्स पर बैठ कर उसे ध्यान से देखने लगी। अपने हाॅथों में ग्लव्स पहन कर उसने उस लाल रंग की चीज़ को उठा लिया। अभी वह उसे ध्यान से देख ही रही थी कि फाॅरेंसिक टीम का एक ब्यक्ति उसके नज़दीक आकर बोला__"मैडम, यहाॅ पर एक बेसमेंट भी है।"
"क्या??" रितू चौंकी।
"यस मैडम।" उस ब्यक्ति ने कहा__"खोजी कुत्ते के द्वारा पता चला है।"
" चलो दिखाओ।" रितू तुरंत ही उठकर चल दी। कुछ देर में ही वो ब्यक्ति रितू को लेकर उस जगह पहुॅचा। रितू ने देखा सचमुच वो तहखाना ही था। किन्तु वह ये देख कर चौंकी कि वह अस्त ब्यस्त हुआ लग रहा था जैसे किसी चीज़ से उसे उड़ाया गया हो। उसे तुरंत ही अपने हाॅथ में ली हुई चीज़ का खयाल आया। उसने अपने हाॅथ में ली हुई चीज़ को उस ब्यक्ति को दिखाकर पूछा__"इस चीज़ को देखो और बताओ ये क्या है?"
"अजयययययय।" अचानक ही एक ज़ोरदार चीख फिज़ा को चीरती हुई सबके कानों से टकराई।
चीख बाहर से आई थी, रितू के साथ साथ सबने सुना किन्तु रितू बाहर की तरफ ये कह कर दौड़ पड़ी कि__"माॅम।"
यकीनन ये चीख प्रतिमा की ही थी। रितू ने बाहर आकर देखा उसकी माॅ और अभय चाचा उसके डैड के पास अजीब हालत में बैठे थे। अजय सिंह जमीन में पड़ा था। अभय ने तुरंत ही उसे अपनी गोंद मे लिटा लिया था।
"माॅम।" रितू करीब पहुॅचते ही बोली__"ये क्या हुआ? डैड इस तरह जमीन में कैसे?"
"पता नहीं बेटा अचानक ही खड़े खड़े धड़ाम से गिर गए।" प्रतिमा ने रोते हुए कहा__"शायद फैक्टरी की ये हालत देख इन्हें गहरा सदमा लगा है जिसके चलते ये चक्कर खाकर गिर गए हैं।"
अजय सिंह पानी से सनी राख पर गिरा था। जमीन में हर तरफ छोटे बड़े पत्थर भी पड़े थे जो अजय सिंह के सिर पर लगे थे और उसके सिर से खून बहने लगा था।
"इन्हें हास्पिटल लेकर जाना पड़ेगा रितू बेटा।" अभय ने कहने के साथ ही अजय सिंह को दोनो हाथों से पकड़ कर उठा लिया और तेज़ कदमों के साथ लोहें वाले गेट से बाहर निकल गया।
"मैं भी उनके साथ हास्पिटल जा रही हूं बेटी।" प्रतिमा ने कहा__"तुझे अपनी ड्यूटी करना है तो कर या तू भी अपने डैड के साथ चल।"
"साॅरी माॅम।" रितू की आॅख में आॅसू आ गए__"इस वक्त मैं आनड्यूटी पर हूॅ और केस के सिलसिले में यहाॅ अपनी टीम्स के साथ हूॅ इस लिए मैं डैड के साथ नहीं जा सकती। लेकिन डैड से कहना कि मुझे उनकी इस हालत से बहुत तकलीफ हो रही है।"
"अच्छी बात है।" प्रतिमा ने कहा और बाहर की तरफ दौड पड़ी। जबकि अपने आॅसू पोंछते हुए रितू पलटी और फैक्टरी के अंदर की तरफ बढ़ गई।
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