12-29-2019, 08:51 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 76
मुहूरत निकला तो सब को फिर से मुँह मीठा करने का मौका मिल गया| ताऊ जी ने रसोइये को गर्म-गर्म जलेबियाँ लाने को कहा| फटाफट गर्म-गर्म जलेबियाँ आईं और ठंडी की शाम में, अलाव के सामने बैठ के सब ने जलेबियाँ खाईं! 7 बजते-बजते ठण्ड प्रचंड हो गई इसलिए सब नीचे आ गए और नीचे बरामदे में बैठ गए| रसोइयों ने खाना बनाना शुरू कर दिया था जिसके खुशबु सब को मंत्र-मुग्ध किये हुए थी| मैं यहाँ सब मर्दों के साथ बैठा था और अनु वहाँ सब औरतों के साथ| नेहा मेरी गोद में थी और अपनी पयाली-प्याली आँखों से मुझे देख रही थी| अब अनु जब से आई थी तब से उसने नेहा को गोद में नहीं लिया था और उसकी ममता अब रह-रह कर टीस मारने लगी थी| आखिर वो भाभी को ले कर कमरे से बाहर निकली और उस कमरे की तरफ देखने लगी जहाँ मैं सब के साथ बैठा था| भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आईं और बोलीं; "बेकरारी का आलम तो देखो?" ये सुन कर दोनों खी-खी करके हँसने लगी| इधर कल सुबह जाने की बात हो रही थी तो मैंने कहा की मैं सब को घर छोड़ दूँगा पर डैडी जी बोले; "बेटा तुम्हें तकलीफ करने की कोई जर्रूरत नहीं है!" पर चन्दर भैया जानते थे की मेरा असली मकसद क्या है और वो बोल पड़े; "चाचा जी! मानु इसलिए जाना चाहता है ताकि अनुराधा के साथ रह सके!" चन्दर भैया ने बात कुछ इस ढंग से कही की सब समझ गए और हँस पड़े| "अब तो तुमने बिलकुल नहीं जाना! अब तुम दोनों शादी के बाद ही मिलोगे!" डैडी जी बोले| "सही कहा समधी जी आप ने! भाई थोड़ा रस्मों-रिवाजों की भी कदर करो!" ताऊ जी बोले| इधर अनु और भाभी ने साड़ी बात सुन ली थी और ये ना मिलने वाली बात सुन अनु का दिल बैठा जा रहा था| उसने बड़ी आस लिए हुए भाभी की तरफ देखा और भाभी सब समझ गईं| "मानु...जरा इधर आना!" भाभी ने मुझे आवाज दी और मैं नेहा को ले कर बाहर आया| मेरी शक्ल पर बारह बजे देख वो समझ गईं की आग दोनों तरफ लगी है| भाभी कुछ कहती उसके पहले ही मेरी नजर ऊपर गई और देखा तो रितिका नीचे झाँक रही है| "भाभी कुछ करो ना? देखो कल मुझे 'इन्हें' छोड़ने भी नहीं जाने दे रहे!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा| भाभी एक मिनट कुछ सोचने लगी और फिर ऊँची आवाज में बोलीं; "अरे मानु तुमने अनुराधा को अपना कमरा तो दिखाया ही नहीं?" उनकी बात सुन कर हम दोनों समझ गए और दोनों सीढ़ियों की तरफ जाने लगे| "अरे नेहा को तो देते जाओ, इसका वहाँ क्या काम?" भाभी ने फिर से दोनों की चुटकी लेते हुए कहा| मैंने एक बार देख लिया की कोई देख तो नहीं रहा और ये भी की रितिका देख ले, फिर मैंने झट से अनु का हाथ पकड़ा और हम दोनों ऊपर आ गए| रितिका जल्दी से अपने कमरे में छिप गई और दरवाजा बंद कर लिया| हम दोनों मेरे कमरे में घुसे, अनु आगे थी और मैं पीछे| मैंने दरवाजा हल्का से चिपका दिया और जैसे ही पलटा अनु ने मुझे कस कर गले लगा लिया| "I love you baby!" मैंने कहा और कुछ इतनी आवाज से कहा की रितिका सुन ले| अनु एक दम से मेरा मकसद समझ गई और बोली; "सससस... अब तो इंतजार नहीं होता!" ये सुन कर मेरी हँसी छूट गई पर मैंने कोई आवाज नहीं निकाली और अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगा| तभी अनु को एक शरारत सूझी और वो बोली; "कितने दिन हुए मुझे आपको वो गुड मॉर्निंग वाली kissi दिए हुए!" अनु ने मेरी कमीज के ऊपर के दो बटन खोले, मेरी गर्दन को बाईं तरफ झुकाया और अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए| मेरे हाथ उसकी कमर पर सख्त हो गए और मैंने उसे कस कर अपने से चिपका लिया| इधर अनु ने अपनी जीभ से मेरी गर्दन की muscle पर चुभलाना शुरू कर दिया| फिर अनु ने जितना हिस्सा उसके मुँह से घिरा हुआ था उसे अपने मुँह में suck कर लिया और दांतों से धीरे से काटा| मेरा लंड एक दम से फूल कर कुप्पा हो गया, अनु को उसके उभार से अच्छे से एहसास भी हुआ और डर के मारे उसने वो kissi तोड़ दी! उसकी आँखें झुक गईं और अनु मुझसे दूर चली गई| मैं समझ गया की उसे अपने इस डर के कारन शर्म आ रही है| मैं धीरे से उसके पास बढ़ा और उसे अपनी तरफ घुमाया, उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसकी आँखों में देखते हुए धीमे से बोला ताकि रितिका न सुन ले; "Baby ....its okay! Don't blame yourself!" ये सुन कर अनु को तसल्ली हुई वरना वो रो पड़ती| मैंने उसके माथे को चूमा और अनु ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और फिर से अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए|
इधर भाभी एकदम से धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और हम दोनों को ऐसे गले लगे देख फिर से चुटकी लेने लगीं; "मुझे तो लगा यहाँ मुझे कुछ अलग देखने को मिलेगा पर तुम दोनों तो गले लगने से आगे ही नहीं बढे? तुम्हें और कितना टाइम चाहिए होता है?"
"क्या भाभी? अभी तो इंजन गर्म हुआ था और आपने उस पर ठंडा पानी डाल दिया!" मैंने चिढ़ने का नाटक करते हुए कहा|
"हाय! माफ़ कर दो देवर जी पर नीचे आपके ससुर जी बुला रहे हैं!" भाभी की बात सुन कर मैंने अपनी कमीज के सारे बटन बंद किये और ये देख कर भाभी की हँसी छूट गई; "तुम दोनों जिस धीमी रफ़्तार से काम कर रहे हो उससे तो तुम्हें एक रात भी कम पड़ेगी!" भाभी ने फिर से दोनों का मज़ाक उड़ाया| मैंने जा कर भाभी को गले लगाया और उन्हें थैंक यू कहा तो भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "देख रही है? जब से मेरी शादी हुई है आज पहलीबार है की मानु ने मुझे ऐसे गले लगाया है! क्यों नई बहु को जला रहे हो?" ये सुन कर अनु ने भी पीछे से आ कर भाभी को गले लगा लिया| अब हम दोनों ही भाभी के गले लगे हुए थे की तभी ताई जी हमें ढूढ़ती हुई आ गईं; "अरे वाह! देवर-देवरानी और भाभी तीनों एक साथ गले लगे हुए हो?" हम दोनों ताई जी को देख कर अलग हुए और भाभी ने अपनी बात फिर से दोहराई तो ताई जी ने उनके सर पर प्यार से एक चपत लगाई और बोलीं; "जब उस दिन घर आया था तब गले नहीं लगाया था?" तब भाभी को याद आया की जब मैं पहलीबार घर आया था तब मैंने सब को गले लगाया था|
खेर रात के खाने का समय हुआ और सब ने एक साथ टेबल-कुर्सी पर बैठ कर खाना खाया, फिर जैसे ही गाजर का हलवा आया तो सारे खुश हो गए| डैडी जी ने ताऊ जी के इंतजाम की बड़ी तारीफ की, फिर खान-पान के बाद सब सोने चल दिए| ताऊ जी वाले कमरे में डैडी जी, पिताजी और ताऊ जी लेटे, चन्दर भैया वाले कमरे में भाभी और अनु सोने वाले थे और मेरे कमरे में मैं और चन्दर भैया सोने वाले थे| बाकी बची माँ, मम्मी जी और ताई जी तो वो माँ वाले कमरे में लेट गए| रसोइये जा चुके थे और बरामदे में बस मैं, चन्दर भैया, अनु और भाभी आग के अलाव के पास बैठे थे| नेहा मेरी गोद में थी और मेरी ऊँगली पकड़ कर खेल रही थी| "आपको क्या जर्रूरत थी मानु के छोड़ने जाने पर कुछ कहने की?" भाभी ने चन्दर भैया की क्लास लेते हुए कहा| "अरे मैं तो...." भैया कुछ कह पाते इससे पहले मैं बोल पड़ा; "सही में भैया एक दिन हमें साथ मिल जाता!"
"हाँ भैया ....अब देखो ना 10 दिन तक...." जोश-जोश में अनु ज्यादा बोल गई और फिर एकदम से चुप हो गई| ये देख कर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे! "चिंता मत कर बहु! मैंने बात बिगाड़ी है तो मैं ही सुधारूँगा भी! दो एक दिन रुक जा फिर हम तीनों (यानी मैं, भैया और भाभी) शहर आएंगे| हम दोनों काम में लग जाएंगे और तुम दोनों अपना घूम लेना!" भैया की बात सुन मैंने उन्हें झप्पी दे दी! कुछ देर हँस-खेल कर हम सब अपने-अपने कमरों में सोने चल दिए| अगली सुबह हुई और सब नहा-धो कर तैयार हुए और नाश्ता-पानी हुआ| फिर आया विदा लेने का समय तो ताऊ जी और पिताजी सबसे पहले अपने होने वाले समधी जी से गले मिले और ठीक ऐसा ही माँ और ताई जी ने अपनी होने वाली समधन जी के साथ किया| ताऊ जी ने चन्दर भैया को कुछ इशारा किया और वो अपने कमरे से मिठाइयाँ और कपडे का एक गिफ्ट पैक ले कर निकले; "समधी जी ये हमारी तरफ से प्यारभरी भेंट! अब हम अपनी समझ से जो खरीद पाए वो हमने आप सब के लिए बड़े प्यार से लिया|" ताऊ जी बोले और उधर डैडी जी बोले; "अरे समधी जी इसकी तकलीफ क्यों की आपने? हम तो यहाँ रिश्ता पक्का करने आये तो और आपने तो...." डैडी जी का मतलब था की वो तो जल्दी-जल्दी में खाली हाथ आ गए थे और ऐसे में उन्हें शर्म आ रही थी| पर डैडी जी की बात पूरी होने से पहले ही ताऊ जी ने उन्हें एक बार और गले लगा लिया और बोले; "समधी जी कोई बात नहीं!" ताऊ जी ने डैडी जी को इतने कस कर गले लगाया की वो कुछ आगे नहीं कह पाए और मैंने खुद ये समान गाडी में रखवाया| मैंने मम्मी-डैडी जी के पाँव छुए और उधर अनु सब से मिलने और पाँव छूने लगी| "अगली बार तुझे मैं बहु कह कर गले लगाऊँगी!" माँ बोली और फिर सब ने ख़ुशी-ख़ुशी अनु और मम्मी डैडी को विदा किया| उनके जाने के बाद सब घर में आये और ताऊ जी ने चन्दर भैया से मंगनी की रस्म की साड़ी तैयारियाँ शुरू करने को कहा| जिन लोगों ने कल मम्मी-डैडी को आते हुए देखा था वो अब सब आ कर पूछ रहे थे और ताऊ जी और पिताजी बड़े गर्व से मेरी शादी की बात बता रहे थे| दोपहर के खाने के बाद मैंने बात छेड़ते हुए कहा;
मैं: मैं सोच रहा था की शादी में और मँगनी के लिए सारे आदमी सूट पहने!
माँ: और हम लोग?
मैं: आप सब साड़ियाँ.... पर साड़ियाँ मेरी पसंद की होंगी!
ताई जी: ठीक है बेटा जैसा तू ठीक समझे|
ताऊ जी: पर बेटा हम ने कभी सूट नहीं पहना? सारी उम्र हमने धोती और कुर्ते में काटी है तो अब कहाँ हमें पतलून पहना रहा है?
मैं: ताऊ जी थोड़ा तो मॉडर्न बन ही सकते हैं? आप तीनों सूट में बहुत अच्छे लगोगे! फिर ये भी तो सोचिये की हमारे गाँव में आप अकेले होंगे जिसने सूट पहना है!
मेरी बात सुन कर ताऊ जी मान गए, और अगले दिन सुबह-सुबह जाने का प्लान सेट हो गया| कुछ देर बाद अनु का फ़ोन आया की वो घर पहुँच गए हैं और मम्मी-डैडी मेरे घर वालों से बहुत खुश हैं| मैं उस वक़्त नेहा को गोद में ले कर बैठा था और उसकी किलकारी सुन अनु का मन उससे बात करने को हुआ पर वो नन्ही सी बच्ची क्या बोलती? मैंने वीडियो कॉल ऑन की और अनु ने नेहा को अपनी ऊँगली चूसते हुए देखा और वो एकदम से पिघल गई| फिर मैंने अनु को बताया की पिताजी कजी, ताऊ जी और चन्दर भय सूट पहनने के लिए मान गए हैं तो उसने कहा की मैं उसे कलर बता दूँ ताकि वो उस हिसाब से अपने डैडी का सूट सेलेक्ट करे| इसी तरह बात करते हुए और नेहा की किलकारियां देखते हुए हमारी बात होती रही| अगले दिन सुबह हम सब दर्जी के निकल लिए और मैंने वहाँ जा कर हम चारों क सूट का कपडा और डिज़ाइन सेलेक्ट करवाया, दर्जी ने साथ ही साथ सबका मांप भी लिया| शादी के लिए कपडे सेलेक्ट करना फिलहाल के लिए टाल दिया गया था| फिर हम सारे मर्द एक साडी की दूकान में घुसे और वहाँ मैंने एक-एक कर साड़ियों का ढेर लगा दिया| घंटा भर लगा कर मैंने माँ, भाभी और ताई जी के लिए साड़ियाँ ली" उसके बाद ताऊ जी हम सब को सुनार की दूकान में ले गए और वहाँ मुझसे ही अनु के लिए अंगूठी पसंद करने को कहा गया, दुकानदार को हैरानी तो तब हुई जब मैंने उसे अनु की ऊँगली का एक्सएक्ट साइज बताया! खेर खरीदारी कर के हम घर लौट रहे थे और ताऊ जी ने मुझे कोई पैसा खर्च करने नहीं दिया था|
बजार में मोटरसाइकिल का एक नया शोरूम खुला था और मैं बातों-बातों में चन्दर भय से जान चूका था की उन्हें बाइक चलानी आती है| वो तो उनके नशे के चलते ताऊ जी बाइक लेने नहीं देते थे| मैंने सोचा की घर में एक बाइक तो होनी ही चाहिए, इसलिए मैंने चन्दर भैया का हाथ पकड़ा और एक बाइक के शोरूम में घुस गया| "बताओ भैया कौनसी पसद आई आपको?" मैंने खुश होते हुए पुछा|
"बेटा इसकी क्या जर्रूरत है?" ताऊ जी बोले|
"ताऊ जी आज तक मैं सब के लिए कुछ न कुछ लाया हूँ, भैया के लिए बस शर्ट-पैंट ही ला पाया, आज तो एक तौहफा देने दो! मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और मेरे पिताजी की पीठ पर हाथ रखते हुए उन्हें अपने गर्व का एहसास दिलाया| इधर चन्दर भैया भी भावुक हो गए और मेरे गले लग गए| फिर मैं उनका हाथ पकड़ कर अंदर ले आया और उनसे पुछा तो उन्होंने HF Deluxe सेलेक्ट की पर मेरा मन Hero Passion Pro पर था, माने उन्हें जब उसकी तरफ इशारा किया तो वो एकदम से खुश हो गए और लाल रंग में वही सेलेक्ट की गई| जब मैं पैसे देने लगा तो ताऊ जी ने बड़ी कोशिश की पर मैं जिद्द पर अड़ गया और मैंने उन्हें पैसे नहीं देने दिए| किस्मत से डिलीवरी भी उसी वक़्त मिल गई, मैं और चन्दर भैया फरफराते हुए पहले निकले| ताऊ जी और पिताजी बाद में आये, जैसे ही बाइक घर के बाहर रुकी भैया ने पी-पी हॉर्न की रेल लगा दी| सबसे पहले भाभी निकली और बाइक देख कर एकदम से अंदर भागीं और आरती की थाली ले आईं, ताई जी और माँ भी आ कर बाहर खड़े हो गए और भैया ने बड़े गर्व से कहा की ये मैंने उन्हें तौह्फे में दी है| रितिका ऊपर छत से नीचे झांकते हुए देख रही थी पर उसे ये देख कर जरा भी ख़ुशी नहीं हुई थी| पूजा हुई और मैंने भाभी और भैया को जबरदस्ती ड्राइव पर भेज दिया और मैं, माँ ताई जी सब अंदर आ गए| ताई जी ने हलवा बनाना शुरू किया और मैंने नेहा को गोद में ले कर खेलना शुरू किया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी लौट आये और उनके आने के एक घंटे बाद भैया और भाभी भी लौट आये|
शाम को मैं और अनु वीडियो कॉल पर बात कर रहे थे की तभी भाभी आ गईं और उन्होंने भी अनु से बात करना शुरू कर दिया और आज के तौह्फे के बारे में बताया| तभी भाभी ने इशारे से भैया को ऊपर बुला लिया और उनसे बोली; "देखो मैं कुछ नहीं जानती कल के कल ही दोनों को मिलवाओ!" अनु उस वक़्त वीडियो कॉल पर ही थी और शर्मा रही थी की तभी भैया मुझसे बोले; "तू कपडे पहन मैं अभी ले चलता हूँ तुझे!" ये सुन मैं तो एकदम से खड़ा हुआ पर भाभी बोली; "अभी टाइम ही कहाँ बचा है? कल सुबह चलते हैं, मैं भी इसी बहाने लखनऊ घूम लूँगी|" तो बात तय हुई की कल का दिन हम चारों लखनऊ घूमेंगे, रही ताऊ जी से बात करनी तो वो भी भैया ने खुद कर ली| अगले दिन हम लखनऊ के लिए निकले और पूरे रास्ते भाभी मेरी टाँग खींचती रहीं, "आज तो अपनी होने वाली दुल्हनिया से मिलने जा रहे हो!" अनु हमें लेने बस स्टैंड पहुँच गई थी और वहाँ से हम अलग हो गए| भैया-भाभी घूमने चले गए और मैं और अनु कहीं और निकल लिए| घुमते-घुमते बात चली लोगों को invite करने की तो मैं और अनु नाम गिनने लगे की किस किस को बुलाना है|
मैं: यार मेरे कॉलेज से तो कोई नहीं आ सकता, reason obvious है सब रितिका को जानते हैं!
अनु: मेरा तो कॉलेज ही कॉरेस्पोंडेंस था! कुछ स्कूल के दोस्त हैं पर उनसे मेरी कोई ख़ास-बात चीत नहीं है| एक दोस्त है शालू जिस के घर मैं रुकी थी वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है तो वो जर्रूर आएगी|
मैं: अरुण-सिद्धार्थ ...... उन्हें .....
मैं आगे कुछ नहीं बोल पाया|
अनु: उन्हें बुला तो लें पर वो भी रितिका के बारे में जानते हैं|
मैं: उन्हें सच बता दूँ?
अनु: आप को विश्वास है उन पर?
मैं: बहुत विश्वास है! आपके आने से पहले वही थे जो मुझे थोड़ा-बहुत संभाल पा रहे थे| ज्यादा से ज्यादा क्या होगा की वो loud react करेंगे और दोस्ती टूट जायेगी!
अनु: जितना मैं उन्हें जानती हूँ वो शायद ऐसा कुछ न कहें!
मैंने फ़ोन निकाला और अरुण-सिद्धार्थ को कॉन्फ्रेंस कॉल पर लिया; "यार कुछ बहुत जर्रूरी बात करनी है, अभी मिलना है! प्लीज!!!" आगे मुझे कुछ बोलना नहीं पड़ा और उन्होंने फ़ौरन जगह और टाइम फिक्स किया|
मैं: मेरी कॉलेज की एकलौती दोस्त है जिसे मैं बुलाना चाहता हूँ|
अनु: मोहिनी? पर उसे भी तो पता है?
मैं: वो अकेली ऐसी दोस्त है जो सब जानते हुए भी मेरे खिलाफ नहीं थी|
मैंने मोहिनी को कॉल मिलाया और उसे सब बताया, रितिका के बारे में सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया और वो उसे गाली देने लगी; "हरामजादी कुतिया! इसकी वजह से .....हम दोनों........" वो आगे कुछ नहीं कह पाई| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, अगर ऋतू नहीं होती तो आज मैं और मोहिनी साथ होते! "सॉरी....तो कब आना है मुझे?" मोहिनी बोली| "आप मेरी तरफ से आजाओ! मेरे नाते-रिश्तेदार कम हैं!" अनु बोली और उसकी बात सुन मोहिनी को एहसास हुआ की कॉल स्पीकर पर था और अनु ने उसकी सारी बात सुन ली थी इसलिए वो एकदम से खामोश हो गई!
"हेल्लो? मोहिनी?" अनु बोली और तब जा कर मोहिनी ने हेल्लो कहा| "यार its okay .... I know everything ...." ये सुन कर भी मोहिनी कुछ नहीं बोली तो मजबूरन मुझे ही बोलना पड़ा; "अच्छा बाबा आप 20 फरवरी को मेरे घर पहुँच जाना और अपना एड्रेस text कर दो मैं कार्ड भेज देता हूँ!" तब जा कर उसके मुँह से 'सॉरी' निकला और मैंने बाय बोल कर कॉल काट दिया|
मुझे भी थोड़ा awkward फील हुआ पर अनु एकदम नार्मल थी| कुछ देर बाद अरुण और सिद्धार्थ भी मिलने आ गए और मैं उन्हें एकदम से सारी बात नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात घुमाते हुए कहा;
मैं: यार अगर तुम लोगों को मेरे बारे में कोई ऐसी बात पता चले जिससे मेरा करैक्टर खराब हो तो क्या तुम मुझसे दोस्ती रखोगे? या फिर तुम्हारी नजरों में दोस्ती की अहमियत कम हो जाएगी? और फिर तुम सब की तरह मुझे judge करोगे?
अरुण: तू पागल हो गया है क्या?
सिद्धार्थ: हम दोनों हमेशा तेरे साथ हैं, तुझे इतने सालों से जानते हैं तू कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता!
अरुण: अगर किया भी तो उससे हमारी दोस्ती में फर्क नहीं आएगा? तूने जब ये दारु पीना शुरू किया था तब हम तेरे साथ ही थे ना? तुझे समझाते थे, रोकते थे पर तूने बात नहीं मानी!
सिद्धार्थ: अच्छा अब बता भी क्या बात है?
उनकी बात सुन कर ये साफ़ हो गया था की वो मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे| मैंने उन्हें सारी बात बता दी, मुझे पता था की वो मुझे कुछ ज्ञान की बात कहेंगे!
अरुण: यार अब तो तू अनु से प्यार करता है ना?
मैं: हाँ
सिद्धार्थ: तो प्रॉब्लम क्या है? तुम दोनों की शादी कब है?
मैं: 23 फरवरी
अरुण: ठीक है ...तो अब ये सड़ी हुई सी शक्ल क्यों बना रखी है तूने?
सिद्धार्थ: अबे साले! जो हुआ वो तेरा पास्ट था, तेरा इस्तेमाल किया उसने| अब वो सब भूल कर नई जिंदगी शुरू कर!
मैं: पर यार तुम लोगों को .....
अरुण: (मेरी बात काटते हुए) सुन मेरी बात! अगर ये सारा रायता उस लड़की ने ना फैलाया होता और तू तब हमें ये सारी बात बताता तब भी हम तेरा साथ देते, तुझे ताना नहीं मारते! तूने प्यार किया उससे... वो भी सच्चा वाला!
अब ये बात सुन कर सब साफ़ हो चूका था की मेरे दोस्त मेरे साथ हैं और उन्हें जरा भी मतलब नहीं की मेरा और रितिका का रिश्ता क्या था! मेरे दिल पर से आज बहुत बड़ा पत्थर उतर गया था! उनसे ख़ुशी-ख़ुशी विदा ले कर हम दोनों वापस बस स्टैंड आये, जहाँ भैया-भाभी पहले से खड़े थे! भाभी ने हम दोनों के मजे लिए और फिर हम सब अपने-अपने घर लौट आये|
अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"
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12-30-2019, 08:12 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 77
अब तक आपने पढ़ा:
अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"
‘अनु से जब प्यार हुआ तब तो मुझे तेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता तक नहीं था, ये तो मेरी किस्मत थी जो मुझे वापस इस घर तक खींच लाई! तो ये जानबूझ कर कैसे हुआ?' मन ये सफाई देना चाहता था पर फिर एहसास हुआ की ना तो रितिका मेरी ये सफाई सुनने के लायक है और ना ही मेरे कुछ कहने से वो बात समझेगी इसलिए मैंने उसे वही जवाब दिया जो वो सुन्ना चाहती थी; "अभी तो शुरुआत है!" इतना कह मैं अपना लैपटॉप ले कर नीचे आने लगा तो वो पीछे से बोली; "मैं तुम्हारी अनु से कितना नफरत करती हूँ ...... ये जानते हुए .....तुमने ये चाल चली?" ये कहते हुए वो पीछे खड़ी ताली मारती रही और मैं चुप-चाप नीचे आ गया| नीचे आ कर मैंने खुद को नेहा के साथ व्यस्त कर लिया| उसी शाम को रितिका ने अपनी चाल चली, रात को सब खाना खा रहे थे की वो ताऊ जी के सामने कान पकड़ कर खड़ी हो गई; "दादाजी.... मैं माफ़ी के लायक तो नहीं पर क्या आप सब मुझे एक आखरी बार माफ़ कर देंगे? मैं ईर्ष्या में जलकर जो कुछ भी किया मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करती हूँ की आज के बाद ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! इस परिवार की इज्जत मेरी इज्जत होगी और मैं इस पर कोई आँच नहीं आने दूँगी!" इतना कहते हुए रितिका ने घड़ियाली आँसू बहाने शुरू कर दिए| ख़ुशी का मौका था और डैडी-मम्मी जी भी कई बार रितिका के बारे में पूछ चुके थे, हरबार झूठ बोलना ताऊ जी को भी अच्छा नहीं लग रहा था| इसलिए उन्होंने रितिका को माफ़ कर दिया और उनके साथ-साथ घर के हर एक सदस्य ने उसे माफ़ कर दिया| पर रितिका न मेरे पास माफ़ी मांगने आई और ना ही मैं उसे माफ़ करने के मूड में था| खेर रंग-रोगन का काम शुरू हो चका था और इस बार रंग मेरे पसंद का करवाया गया था, मेरे कमरे में तो कुछ ख़ास ही म्हणत करवाई जा रही थी और उसका रंग ताऊ जी ने ख़ास कर अनु से पूछ कर करवाया था| घर भर तैयारियों में लगा था पर मुझे कोई काम नहीं दिया गया था, कारन ये की पिछले कई दिनों से मैं ऑफिस नहीं जा पा रहा था और काम बहुत ज्यादा पेंडिंग था तो मेरा सारा समय Con-Call पर जाता| अब तो नेहा भी मुझसे नराज रहने लगी थी क्योंकि मैं ज्यादातर लैपटॉप पर बैठा रहता था| वो ज्यादा कर के माँ के पास रहती और जब मैं उसे लेने जाता तो मेरे पास आने से मना कर देती; "Sorry मेरा बच्चा!" में कान पकड़ कर उससे माफ़ी मांगता तो वो मुस्कुराते हुए माँ की गोद से मेरे पास आ जाती|
सगाई से दो दिन पहले की बात है, मैं छत पर बैठा काम कर रहा था और नेहा नीचे सो रही थी की रितिका कपडे बाल्टी में भर कर आ गई| "एक बात पूछूँ? तुमने ऐसा क्या देख लिया उसमें जो तुम्हें उससे प्यार हो गया? कहाँ वो 33 की और कहाँ मैं 23 की! उसकी जवानी तो ढल रही है और मेरी तो अभी शुरू हुई है! याद है न वो दिन जो हमने एक दूसरे के पहलु में गुजारे थे? तुम तो मुझे छोड़ते ही नहीं थे! हमेशा मेरे जिस्म से खेलते रहते थे! वो पूरी-पूरी रात जागना और पलंगतोड़ सेक्स करना! सससस.... कितनी बार किया तुमने उसके साथ सेक्स? उतना तो नहीं किया होगा जितना मेरे साथ किया था? अरे वो देती ही नहीं होगी! राखी कहती थी की mam को सेक्स वाली बातें करना पसंद नहीं! जिसे बातें ही पसंद ना हो वो सेक्स कहाँ करने देगी? अभी भी मौका है.... मैं अब भी तैयार हूँ!!!!" रितिका ने ये बातें कुछ इस तरह से कहीं के मेरे बदन में आग लग गई| मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "तेरी सुई घूम-फिर कर सेक्स पर ही अटकती है ना? नहीं किया मैंने उसके साथ सेक्स और अगर सारी उम्र ना करने पड़े तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! पता है क्यों? क्योंकि वो मुझसे प्यार करती है और मैं भी उससे प्यार करता हूँ! तेरे लिए प्यार की परिभाषा होती होगी सेक्स हमारे लिए नहीं! हमारे लिए बस साथ रहना ही प्यार है!" इतना कह कर मैं पाँव पटककर वहाँ से चला गया| उस दिन रात को जब अनु का फ़ोन आया तो मैंने उससे ये बात छुपाई! आमतौर पर मैं अनु से कोई बात नहीं छुपाता था पर मैंने ये बात उसे नहीं बताई!
उस दिन के बाद से रितिका मुझसे कोई बात नहीं करती, हाँ उसकी घरवालों के साथ अच्छी बनने लगी थी| घर के सभी कामों में वो हिस्सा ले रही थी और उसने सब को ये विश्वास दिला दिया था की वो वाक़ई में बहुत खुश है| एक बदलाव जो मैं अब उसमें देख पा रहा था वो ये था की रितिका ने अब मुझे प्यासी नजरों से देखना शुरू कर दिया था| वो भले ही मुझसे दूर रहती पर किसी न किसी तरीके से मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करा देती, कभी जानबूझ कर मेरे पास अपना क्लीवेज दिखाते हुए झाड़ू लगाती तो कभी साडी को अपनी कमर पर ऐसे बांधती जिससे मुझे उसका नैवेल साफ़ दिख जाता| उसकी इन हरकतों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था पर बड़ा अजीब सा लग रहा था, ऐसा लगता मानो मुझे उससे घिन्ना आने लगी थी|
आखिर मेरी सगाई का दिन आ ही गया और मम्मी-डैडी और अनु सब गाडी से आ गए| मैं उस वक़्त तैयार हो रहा था इसलिए मैं नीचे नहीं आ पाया, घर के सभी लोगों ने उन्हें रिसीव किया और उन्हें अंदर लाये| इधर अनु की नजरें पूरे घर में घूम रही थीं की मैं दिख जाऊँ, पर भाभी ने उनकी नजरें पकड़ ली थीं और वो उसके कान में खुसफुसाते हुए बोलीं; "आपके मंगेतर अभी तैयार हो रहे हैं!"ये सुन कर अनु शर्मा गई, तभी उसकी नजर रितिका पर पड़ी जो चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाए सब को देख रही थी| डैडी जी ने भी जब उसे देखा तो अपने पास बिठाया और उन्हें उस पर बड़ा तरस आया| "बेटी पिछली बार तुमसे ज्यादा बात नहीं हो पाई, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी! अब कैसी है तुम्हारी तबियत?" डैडी जी ने पुछा और रितिका ने नकली हँसी हँसते हुए कहा; "जी अंकल अब ठीक है!" अभी आगे वो कुछ बोलते की मैं सूट पहने हुए नीचे उतरा| अनु ने मुझे पहले देखा और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं! उसकी ठंडी आह भाभी ने सुन ली और वो बोलीं; "माँ आप कहो तो मानु को काला टीका लगा दूँ!" भाभी की आवाज सुन कर सब मेरी तरफ देखने लगे|
इधर मेरी नजर अनु पर पड़ी और मैं आखरी सीढ़ी पर रुक गया और आँखें फाड़े उसे देखने लगा| घर में सब का ध्यान अब हम दोनों पर ही था और सब चुप हो गए थे| आज अनु को साडी में देखा मेरा मन बावरा हो गया था| आखिर भाभी चल के मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी तन्द्रा भंग की! मैं बैठक में आ कर ताऊ जी और पिताजी के बीच बैठ गया| "क्या हुआ था बेटा?" डैडी जी ने पुछा और मेरे मुँह से अचानक निकल गया; "वो बहुत दिनों बाद देखा ना....." ये बोलने के बाद मुझे एहसास हुआ और मैंने शर्म से मुस्कुराते हुए सर झुका लिया| यही हाल अनु का भी था और उसके भी मेरी तरह शर्म से हजाल लाल थे और ये सब देख कर रितिका की आँखें गुस्से से लाल थी|
खेर मँगनी की रस्म शुरू हुई और पहले अनु ने मुझे अंगूठी पहनाई जो थोड़ी loose थी और फिर जब मैंने उसे अंगूठी पहनाई तो वो उसे एकदम फिट आई| सबका मुँह मीठा हुआ और खाना-पीना शुरू हुआ, मैंने भाभी को इशारा किया और वो समझ गईं| भाभी ने अनु को कहा की वो उनके साथ चल कर कमरा देख ले जिसमें पेंट हुआ है| उनके जाते ही दो मिनट बाद मैंने फ़ोन निकाला और ऐसे जताया की मैं फ़ोन पर बात कर रहा हूँ और फिर आंगन में आ गया और धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ कर ऊपर पहुँच गया| भाभी और अनु मेरे कमरे में खड़े मेरा ही इंतजार कर रहे थे| मुझे देखते ही अनु बोली; 'तो आपने भाभी को सब पहले से ही समझा दिया था की उन्हें क्या बहाना कर के मुझे वहाँ से निकालना है?" अनु बोली|
"और क्या?" मैंने कहा और भाभी ये देख कर हँस पड़ी| "यार आपका (भाभी का) काम हो गया, आप जाओ!" मैंने कहा|
"अच्छा जी? ठीक है चल अनुराधा!" भाभी ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और नीचे जाने को निकलीं| "Sorry...Sorry...Sorry.... माफ़ कर दो... !!!" मैंने अपने कान पकड़ते हुए कहा| ये देख कर भाभी और अनु दोनों हँस पड़े| "वैसे भाभी आपको नहीं लगता की अनु आज बहुत ज्यादा सुन्दर लग रही है?" मैंने पुछा| मैं तो बस भाभी के जरिये अनु को ये बताना चाहता था की आज वो बहुत सूंदर लग रही है| भाभी के सामने हम दोनों थोड़ा शर्म किया करते थे!
"वो तो तुम्हारा बिना पलके झपकाए देखने से ही पता चल गया था!" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|
"वैसे भाभी क़यामत तो आज आपके देवर जी ढा रहे हैं!" अनु ने मेरी तारीफ करते हुए कहा|
"मेरे देवर जी? मैं चली नीचे, वर्ण तुम दोनों मेरी शर्म कर के बार-बार मेरा ही नाम ले-ले कर बातें करोगे|" भाभी बोलीं और हँसते हुए नीचे चली गईं| उनके जाते ही मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "यार सच्ची आज आप इतने सेक्सी लेग रहे हो की मन करता है आज ही शादी कर लूँ!" मैंने कहा और अनु शर्माते हुए मेरे सीने से आ लगी और बोली; "हैंडसम तो आज आप लग रहे हो!" हम दोनों ऐसे ही गले लग कर खड़े थे की तभी वहाँ हमें बुलाने के लिए रितिका आ गई| हमें इस तरह गले लगे देख उसके जिस्म में बुरी तरह आग लग गई, उसने बड़े जोर से मेरे कमरे के दरवाजे पर हाथ मारा और चिल्लाई; "अभी शादी नहीं हुई है तुम दोनों की!" उसे देखते ही हम दोनों हड़बड़ा गए और अलग हुए पर उसके इस कदर चिल्लाने से मुझे गुस्सा आ गया; "तेरी....... !!!" मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही अनु ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया| "बोलने दो बेचारी को! तकलीफ हुई है!!!" अनु ने मुस्कुराते हुए कहा| अनु ने आज उसी अंदाज में कहा जिस अंदाज में उस दिन रितिका ने मेरा मजाक उड़ाया था जब मैं उससे नेहा को माँग रहा था| अनु की बात सुन कर रितिका जलती हुई नीचे चली गई, "मत लगा करो इसके मुँह! ये जानबूझ कर आपको उकसाने आती है!" अनु बोली, मैंने सर हिला कर उसकी बात मान ली और फिर उसे दुबारा अपने पास खींच लिया; "आपको Kiss करने की गुस्ताखी करने का मन कर रहा है!" मैने अनु की आँखों में देखते हुए कहा तो जवाब में अनु ने अपनी आँखें बंद कर लीं| मैंने अभी अनु के होठों पर अपने होंठ रखे ही थे की भाभी आ गई और अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "शर्म करो!" उनकी आवाज सुनते ही हम दोनों अलग हो गए| "भाभी हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" मैंने शिकायत करते हुए कहा, इधर अनु के गाल शर्म से सुर्ख लाल हो चुके थे! भाभी ने मेरे कान पकड़ लिए; "बेटा ज्यादा ना उड़ो मत! शादी हो जाने दो उसके बाद मैं आस-पास भी नहीं भटकूँगी!" अनु भाभी के पीछे छुप गई और बोली; "तो मुझे बचाएगा कौन?" ये सुन कर तो हम तीनों हँस पड़े और भाभी ने हम दोनों को अपने गले लगा लिया| तभी पीछे से मम्मी जी आ गईं मेरा कमरा देखने और हमें ऐसे गले लगे देख मुस्कुराते हुए बोलीं; "लो भाई! यहाँ तो देवर-देवरानी और भाभी का प्रेम मिलाप चल रहा है!" ये सुन कर हम अलग हुए; "बेटा (भाभी) इसका ख्याल रखना, कभी-कभी ये मनमानी करती है!" मम्मी जी बोलीं| "आप चिंता ना करो मैं अनुराधा का ध्यान अपनी दोस्त जैसा ख्याल रखूँगी|" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा| आखिर हम नीचे आ गए, फिर खाना-पीना हुआ और इस दौरान रितिका कहीं भी नजर नहीं आई! समय से मम्मी-डैडी और अनु चले गए, पर जाते-जाते अनु ने नेहा को अपनी गोद में लिया और उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा; "अब जब आपसे मिलूँगी तो आपको अपने साथ ही रखूँगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और अनु ने उसके माथे को चूमा और मुझे दे दिया|
दिन गुजरने लगे और शादी में अभी एक महीना रह गया था, शादी के कार्ड छप कर आये| मेरे दोस्तों को कार्ड मैंने भेज दिए और ऑफिस स्टाफ को भी कार्ड भेज दिए| रंजीथा को कार्ड अनु ने भेजा और साथ ही उसे टिकट भी भेज दी| इधर घरवालों ने जब नाते-रिश्तेदारों को कार्ड भेजा तो सभी ने पूछना शुरू कर दिया| ताऊ जी ने सब से यही कहा की लड़की सब की पसंद की है और उन्हें बाकी डिटेल नहीं दी, मैं तो वैसे भी इन सब बातों से अनविज्ञ था! शादी से ठीक 15 दिन पहले तक मेरा घर रिश्तेदारों से खचाखच भर चूका था| मैं उन दिनों काम के चलते बहुत ज्यादा बिजी था तो घर में जो कोई भी बात होती वो मेरे सामने नहीं होती थी| दिन में मैं छत पर अपना लैपटॉप ले कर बैठा होता था, रात में मुझे देर तक जागने की मनाही थी| मेरे कुछ cousins कभी-कबार आ कर मेरे पास बैठ जाते और उनके साथ हँसी-मजाक होता| इतने लोग तो रितिका की शादी में भी नहीं आये थे!
एक दिन की बात है की घर में घमासान खड़ा हो गया, बात शुरू की मौसा जी ने! "भाईसाहब! आपकी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं जो एक तलाकशुदा लड़की की शादी, उम्र में मानु से 5 साल बड़ी की शादी अपने लड़के से करवा रहे हो?" उनकी बात सुनते ही पिताजी और ताऊ जी भड़क उठे, पिताजी के कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल उठे; "यहाँ तुम से कुछ पुछा गया? शादी में बुलाया है, चुप-चाप आशीर्वाद दो और निकल जाओ!" मौसा जी ताऊ जी से उम्र में छोटे थे और उनका बड़ा मान करते थे, वैसे तो सभी मान करते थे या ये कहूँ की डरते थे! इसलिए जब ताऊ जी चिल्लाये तो मौसा भीगी बिल्ली बन कर चुप हो गए| बड़ी हिम्मत कर के छोटी मौसी बोलीं; "भाईसाहब लड़की तो हमारी ज़ात की भी नहीं!" उनकी बात का जवाब ताई जी ने दिया; "काहे की ज़ात? जब हम मुसीबत में थे तो कौन से ज़ात वाले सामने आये थे? सब के सब पुलिस के डर के मारे अपने घर में छुपे हुए थे!" ताई जी की बात सुन कर सब के सब चुप-चाप खड़े हो गए| "मेरी बात गौर से सुन लो सारे! तुम में से अगर किसी ने भी इस शादी में विघ्न डाला या कोई ऐसी हरकत की जिससे हमारी मट्टी-पलीत हुई तो उसे गोली से उड़ा दूँगा! तुम में से किसी ने अगर समधी-समधन को या बहु को कुछ भी ताना मारा या कहा ना तो अंजाम तुम्हें मैं बता चूका हूँ! एक आरसे बाद इस घर में खुशियाँ आ रही हैं!" ताऊ जी की दहाड़ सुन सब के सब चुप हो गए| अब मुझे कहने की तो कोई जर्रूरत नहीं की ये लगाई-बुझाई रितिका की थी, एक वही तो थी जो सब कुछ जानती थी! इसलिए मैं इंतजार करने लगा की मुझे कब मौका मिले जब वो अकेली हो| रात को जब मैं नेहा को उससे लेने के बहाने उसके कमरे में पहुँचा तो मुझे वो अकेली अपना बिस्तर ठीक करते हुए दिखी; "मिल गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा ली ना आग?" ये सुनते ही रितिका बोली; "मैंने क्या किया?" उसने अनजान बनने का नाटक किया पर मेरे सामने उसका ये रंग नहीं चल सकता था| "ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर! तेरे आलावा यहाँ और कोई है जिसे मेरी खुशियां देख कर आग लग रही हो! दुबारा तूने ऐसा कुछ किया ना तो दुर्गत कर दूँगा तेरी!" मैंने रितिका को हड़काया और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया| अगले दिन सुबह-सुबह एक बड़ा सा ट्रक घर के आगे खड़ा हो गया, ताऊ जी ने सारे मर्दों को आवाज दी| सभी हैरान थे सिवाए उनके और पिताजी के, जब ट्रक पर से तिरपाल हटा तो उसमें पड़ा सामान देख सब समझ गए| उसमें सारा फर्नीचर था जो ताऊ जी ने स्पेशल आर्डर दे कर बनवाया था| जब सामान उतारने के लिए मैंने हाथ लगाना चाहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया| मैं ख़ुशी-ख़ुशी ऊपर आया की एक और टेम्पो की आवाज सुनाई दी, मैंने छत से नीचे झाँका तो पता चला की डैडी जी ने भी कुछ सामान भेजा था| घर में जितने भी रिश्तेदार आये थे सब के सब सामान उतारने में लग गए और पिताजी और ताऊ जी ये ध्यान रख रहे थे की कहीं कुछ टूट ना जाये| मेरा कमरा इतना बड़ा था पर उसमें सामान के नाम पर मेरा सिंगल बेड और एक टेबल था बाकी उसमें ट्रंक रखे हुए थे जिनमें गर्म कपडे होते थे| आज जा कर मेरे कमरे को एक डबल बेड, ड्रेसिंग टेबल, छोटा सोफा, अलमारी और स्टडी टेबल का सुख मिल रहा था| मैं ने अनु को वीडियो कॉल कर के सामान ऊपर चढ़ते हुए दिखाया और वो बहुत खुश हुई|
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12-31-2019, 04:26 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 78 (1)
शादी में एक हफ्ता रह गया था और पिताजी ने मंदिर में पूजा रखवाई थी| सारा परिवार वहीँ जमा था, में भी वहीँ था और काम में मदद कर रहा था| ताऊ जी ने मुझे कुछ सामान लाने के लिए घर भेजा| जब मैं घर पहुँचा तो वहाँ पर सिर्फ रितिका थी, उसके अल्वा वहाँ कोई नहीं था| मैं सामान लेने अपने कमरे में पहुँचा तो रितिका चुपके से मेरे कमरे के बाहर खड़ी हो गई| जैसे ही मैं सामान ले कर पलटा की रितिका ने अचानक से मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे खींच कर सीधा छत पर ले आई| मैं उसके साथ नहीं जाना चाहता था पर आज उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और उसमें बहुत ज्यादा ताक़त आ गई थी| छत पर आ कर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; "प्लीज ....प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" रितिका की आँखें छल-छला गईं थी, पर मेरा मन तो जैसे पत्थर का हो चूका था, जिस पर उसके रोने का कोई असर नहीं हो रहा था उल्टा गुस्सा आ रहा था; "किस लिए माफ़ कर दूँ? मेरा दिल तोडा उसके लिए? या फिर मुझे मेरे ही बेटी से दूर किया उसके लिए?" मैंने गुस्से से कहा|
"सबके लिए....मैंने बहुत पाप किये हैं! तुम्हारे दिल के साथ खेल खेला.... जानते-बूझते तुम्हें बहुत दुःख दिया........" इतना कहते हुए रितिका ने मेरे पैर पकड़ लिए और बिलख-बिलख कर रोने लगी| मैंने उसके हाथों की पकड़ खोलनी चाही पर उसने मेरा दाहिना पैर अपनी छाती से जकड़ रखा था| "मैं तुम से बहुत प्यार करती हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकती!.....मैं तुम्हें अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज....एक मौका दो मुझे" रितिका ने बिलखते हुए कहा| उसकी बात सुन कर एक पल को मेरा दिल पसीज गया, इसलिए मैंने उसे समझाते हुए कहा; "देख हमारे बीच जो कुछ भी था वो सब उसी दिन खत्म हो गया था जब तूने राहुल से शादी की थी| अब मैं अनु से प्यार करता हूँ और वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है, हमारी शादी होने वाली है| अब ये पागलपन छोड़ दे और अपने मन से ये बात निकाल दे की मैं अब दुबारा तुझसे प्यार कर सकता हूँ|" मैंने फिर से अपने पाँव को छुड़ाने की कोशिश की|
"नहीं...पहले भी तुम ने मना किया था की तुम मुझसे प्यार नहीं करते पर मेरे प्यार ने तुम्हारे मन में मेरे प्यार की लौ जला दी थी! इस बार भी मैं ऐसा कर सकती हूँ...बस एक मौका दे दो! एक आखरी मौका.....अबकी बार मैंने कुछ भी गलत किया तो मेरी जान ले लेना...मैं उफ़ तक ना करुँगी!...... हम दोनों और नेहा कहीं दूर एक सुकून भरी जिंदगी जियेंगे! मेरा नहीं तो कम से कम नेहा का सोचो? यहाँ से दूर आप उसे कितना प्यार दे सकोगे? .... उसे भी तो अपने पापा का प्यार चाहिए! कल को वो बोलने लगेगी तो आपको क्या कहेगी?" रितिका की नेहा वाली बात सुन कर मैं चुप हो गया था| पर मैं अनु के साथ ये धोका नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने ना में सर हिलाया और रितिका की पकड़ से अपना पाँव छुड़ा लिया| मैं नीचे आने को दो ही कदम चला हूँगा की रितिका जमीन से उठ खड़ी हुई और बोली; "अपनी हालत याद है न उस दिन क्या हुई थी? क्या कहा था तुमने उस दिन मुझसे?...... 'तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सब दूँगा तुझे बस मुझे नेहा से अलग मत कर!'... यही कहा था ना उस दिन ..... ठीक है... आज माँगती हूँ..... इस शादी का ख्याल अपने मन से निकाल दो, मिटा दो अनु की सारी यादें और मैं तुम्हें नेहा दे दूँगी! ये सिर्फ मुँह से नहीं कह रही, बल्कि कानूनी रूप से तुम्हें नेहा की कस्टडी दे दूँगी! फिर बुलवा लेना उसके मुँह से पापा, मैं कुछ नहीं कहूँगी!" रितिका ने फिर से वही जहरीली हँसी हँसते हुए कहा और मुस्कुराते हुए मेरे सामने से गुजरी| मैंने उसका हाथ बड़ी जोर से पकड़ा और उसे झटके से रोका और पीछे की तरफ खींचा, मेरी आँखें आँसुओं से लाल हो गई थी; "दिखा दी ना तूने अपनी ज़ात! नेहा के नाम पर अनु की जिंदगी का सौदा करना चाहती है? तू चाहती है मैं भी उसके साथ वही करूँ जो तूने मेरे साथ किया था? पर मैं तेरी तरह मौका परस्त नहीं हूँ, मैं नेहा से बहुत प्यार करता हूँ पर उसके लिए मैं अनु को नहीं छोड़ सकता! वो मेरे बिना मर जायेगी.....तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" मैंने रोते हुए कहा, अगले ही पल मेरे आँसू सूख गए और एक बाप का प्यार बाहर आया| मैंने रितिका गाला पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला; "तू अपनी गांड का जोर लगा दे, देखता हूँ कैसे तू नेहा को मुझसे अलग रख पाती है!" मेरे आँखों में गुस्सा देख रितिका आगे कुछ नहीं बोल पाई क्योंकि वो भी जानती थी की वो चाहे कुछ भी कर ले वो ताऊ जी के रहते नेहा को मुझसे दूर नहीं कर सकती थी| "तेरे पास कोई रास्ता नहीं है! तुझे इसी घर में रहना होगा.... तेरी शादी तो उस हत्यकांड के बाद होने से रही! यहाँ रहते हुए तू नेहा को मुझसे कभी अलग नहीं कर पाएगी!" मैंने रितिका की सारी हिम्मत तोड़ दी थी, उसने जो घरवालों का प्यार जीतने के लिए जो कुछ दिन पहले ड्रामा किया था उसके चलते अब वो बुरी नहीं बन सकती थी वरना ताऊ जी समेत सारे घर वाले उसकी जान ले लेते! इतना कहते हुए मैं मंदिर लौट आया और पूजा में शामिल हो गया| पर मैं ये नहीं जानता था की वो कमिनी औरत किसी भी हद्द तक गिर सकती है!
इधर मैं पूजा में बैठा था और उधर उसने अनु को फ़ोन कर दिया| अनु का नंबर वो पहले ही भाभी के फ़ोन से निकाल चुकी थी और आज उसने अपनी गन्दी चाल चली| "हेल्लो! अनु? मैं रितिका बोल रही हूँ!" अनु रितिका की आवाज सुन कर एकदम से चौंक गई और इसके पहले वो कुछ कहती रितिका बोल पड़ी; "कैसी औरत हो तुम? तुम्हारी वजह से मानु अपनी बेटी को छोड़ कर तुमसे शादी कर रहा है! मैंने उससे आज पुछा की क्या वो नेहा के साथ रहना चाहता है या तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है तो उसने तुम्हें चुना! शर्म आनी चाहिए तुम्हें, तुम एक बाप को उसी की बेटी से छीन रही हो! वो तुमसे को प्यार नहीं करता बल्कि वो तुम्हारी जानबचाने के लिए तुमसे शादी कर रहा है!" इतना बोल कर रितिका ने कॉल काटा और अनु को एक व्हाट्सअप्प भेजा जिसमें उसने कुछ देर पहले मेरी कही बात का ऑडियो भेजा| उसने बड़ी ही चालाकी से मेरी "तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" वाली बात को काट दिया और बाकी की बात ऐसे के ऐसे ही उसे भेज दी थी| ये ऑडियो सुन कर अनु एक दम से सन्न रह गई और उसे लगा की मैं उससे कम प्यार करता हूँ और नेहा से ज्यादा प्यार करता हूँ| मेरे इस त्याग के बारे में सोच कर अनु टूट गई, वो कतई नहीं चाहती थी की मैं नेहा को छोड़ूँ बल्कि वो अपने प्यार की कुर्बानी देने को तैयार हो गई थी! अनु ने फ़ौरन एक मैसेज टाइप किया; "I'm calling this wedding off!" और मुझे भेज दिया| मैं उस वक़्त पूजा में था तो उसका मैसेज नहीं देख पाया, पूजा रात नौ बजे तक चली और पूजा के बाद जब मैंने अनु का मैसेज पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए, मैंने उसे कॉल करना शुरू किया पर वो फ़ोन नहीं उठा रही थी| मैंने डैडी-मम्मी को कॉल किया तो पता चला की वो बाहर किसी रिश्तेदार के आये हैं! अब मेरी हालत ख़राब हो गई क्योंकि वहाँ अनु अकेली थी और वो कुछ गलत ना कर ले इसलिए मैंने चन्दर भय से बाइक की चाभी माँगी| मेरी शक्ल देखते ही वो समझ गए की कुछ तो बात है, "भैया दोस्त का accident हो गया इसलिए मैं लखनऊ जा रहा हूँ|" इतना कह कर मैं बाइक पर बैठा और अनु के घर की तरफ निकल पड़ा| 4 घंटे का रास्ता मैंने 3 घंटों में पूरा किया, बाइक हवा से बातें कर रही थी और चूँकि मैंने कपडे कम पहने थे सो ठंड से मेरा हाल बुरा था| ये तो मेरे जिस्म में अनु को खो देने का डर था जो मुझे संभाले हुए था वरना इतनी ठंड में बाइक फुल स्पीड से चलाना?!
रात सवा बारह बजे मैं अनु के घर पहुँचा और ताबड़तोड़ घंटियां बजाईं, अनु ने मुझे magic eye से देख लिया था और वो दरवाजे से अपनी पीठ टिकाये रो रही थी पर दरवाजा नहीं खोल रहे थी| इधर मैंने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया था, मुझे अभी तक नहीं पता था की अनु दरवाजे से पीठ लगा कर बैठी रो रही है| "अनु....प्लीज दरवाजा खोलो....I know .... तुम घर पर हो....प्लीज....." आखिर अनु बोली; "नहीं...मुझे कोई बात नहीं करनी! Its over!" अनु ने बड़ी मुश्किल से ये कहा था और उसकी आवाज में दर्द महसूस कर मैं टूटने लगा था| "प्लीज....तुम्हें मेरे प्यार का वास्ता! बस एक बार दरवाजा खोल दो! प्लीज...." मैंने काँपते हुए कहा क्योंकि ठंड अब जिस्म पर हावी हो चुकी थी| अनु उठ कर खड़ी हुई, अपने आँसूँ पोछे और दरवाजा खोला और इससे पहले वो कुछ कहती मैं ही उस पर बरस पड़ा: "तुम्हें लगता है की तुम इतनी आसानी से कहोगी की this wedding is off और सब कुछ खत्म हो जाएगा? आखिर मैंने किया क्या है जिसकी सजा मुझे दे रही हो? तुम रितिका की तरह निकलोगी की ये मैं कतई नहीं मान सकता|" मैंने जब ये कहा तो अनु ने अपना फ़ोन निकाला और मुझे वो trimmed रिकॉर्डिंग सूना दी! वो सुनने के बाद मैं समझ गया की ये किसकी कारस्तान है पर अभ के लिए मुझे अनु को संभालना था, उसे सच से रूबरू कराना था| "ये पूरी बात नहीं है!" इतना कह कर मैंने अनु को सब सच बता दिया और अनु आँखें फाड़े सब सुनती रही; "आपने सोच भी कैसे लिया की मैं ऐसा कर सकता हूँ? ये सब उस हरामजादी का किया धरा है और आज मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|" इतना कह कर मैं वापस निकलने को पलटा तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और तब उस एहसास हुआ की मेरा पूरा जिस्म बर्फ सा ठंडा हो चूका है| "आप ऐसा कुछ नहीं करोगे! वो यही तो चाहती है.....गलती मेरी है, मुझे आपसे पहले पूछ लेना चाहिए था! पर मैं नहीं चाहती थी की आप नेहा के प्यार से वंचित रहो!" अनु रोते हुए बोली और मुझे अपने गले लगा लिया| उसके गर्म जिस्म का एहसास मुझे मेरे ठन्डे जिस्म पर होने लगा था| "Listen to me! नेहा मेरी बेटी है और इस बात को कोई झुटला नहीं सकता| मैं उससे प्यार करता रहूँगा फिर चाहे हम यहाँ रहे या बैंगलोर में! पहले तो मैं सोच रहा था की मैं नेहा को गोद ले लूँ पर घरवाले इसके लिए कभी नहीं मानेंगे! फिर आज नहीं तो कल हमारा अपना बच्चा भी तो होगा ना?! ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जवाब अभी ढूंढा नहीं जा सकता, फिलहाल मेरे लिए ये शादी जर्रूरी है, उसके बाद मैं नेहा के बारे में सोचूँगा!" मैंने कहा और अनु मेरी बात समझ गई, साथ ही उसके मन में रितिका को सबक सिखाने की आग भी जल उठी!
हम दोनों ऐसे ही गले लगे हुए खड़े रहे और फिर थोड़ी देर बाद घर से फ़ोन आ गया; "हाँ जी....सब ठीक है जी...कोई घबराने की बात नहीं! जी... मैं सुबह तक निकलता हूँ!" मैंने कहा और ये सुन अनु भी हैरान हो गई| "घर की पूजा खत्म हुई तब मैंने आपका मैसेज देखा और जिस हालत में था उसी हालत में भाग आया| चन्दर भय से ये कहा की दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है! उसी के लिए डाँट पड़ रही थी की बता कर नहीं जा सकता था!” मैंने अनु को सच बताया तो उसने कान पकड़ कर मुझे Sorry कहा! फिर उसने कॉफ़ी बनाई जिसे पीने के बाद मेरे जिस्म में गर्मी आई| सुबह 6 बजे तक मैं वहीँ रहा और फिर बाइक से निकला, जाते-जाते- अनु ने मुझे अपनी शाल दी ताकि मैं ठंड से खुद को बचा पाऊँ| अब उसके कपडे तो मुझे आते नहीं और डैडी जी वाले कपडे भी नहीं आते इसलिए! मैं घर पहुँचा और कहानी बना कर सुना दी पर भाभी ने जब शॉल देखि तो वो सब समझ गई की बात कुछ और है| कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे शाल के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें ये कहा की हॉस्पिटल के बाद मैं अनु से मिलने गया था और उसी ने ये शॉल दी है| भाभी बस मुस्कुरा दी और चली गईं, अब रितिका मुझसे छुपती फिर रही थी| मेरी भी मजबूरी थी की घर में सब मौजूद थे और उनके सामने मेरा उसे कुछ कहना लाखों सवाल खड़े कर देता| हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
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01-01-2020, 04:54 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 78 (2)
अब तक आपने पढ़ा....
हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
अब आगे....
"क्यों भाई मानु क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की रितिका और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले|
"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बोले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? यहाँ तक की मैं तो शहर में रहता था, मुझे तक इस बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था, यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना अच्छा मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का, एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!" मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सब सही हो गया ना? अब तो माफ़ कर दे इसे?!"
"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! फिर मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सब तो हो ना इससे बात करने को?!"
"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा समय ये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;
"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! $1 मतलब 70 -75 रुपये! इस काम के इसे 1 लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!" ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सब के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरू हो गई थीं! इधर मुझे रितिका की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के साथ चिपकी हुई थी, पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती! रात को मैं सोने जल्दी चला गया, नेहा मेरे साथ ही चिपकी सो रही थी| मेरा कमरा सब समान से भरा था और वहाँ जाने की किसी को भी इज़ाजत नहीं दी गई थी| ताऊ जी का कहना था की जब तक नई बहु नहीं आ जाती तब तक उस सामान को कोई नहीं छुएगा! रात को ग्यारह बजे नेहा ने सुसु किया और उसके डायपर के साथ उसके कपडे भी खराब हो गए| मेरी बेटी ने मुझे उसकी माँ की क्लास लेने का मौका दे दिया था| मैंने पहले तो नेहा का माथा चूमा और किलकारियां मारते हुए अपने हाथ पाँव चलाने लगी| मानो उसे भी मजा आ रहा हो की आज उसकी माँ की क्लास लगने वाली है! फिर मैंने उसके सारे कपडे निकाले और उसे कंबल ओढ़ा दिया, कमरे में हीटर चालु किया ताकि कमरा गर्म बना रहे| मैं अपने कमरे से बाहर निकला और जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खटखटाया| वो घोड़े बेच कर सोइ थी, इसलिए दस मिनट तक खटखटाने के बाद उसने दरवाजा खोला| जैसे ही उसने मुझे देखा उसकी फ़ट गई और आँखें अपने आप झुक गईं| एक तो बाहर ठंड में 10 मिनट से खड़ा होना पड़ा और ऊपर से अनु की हालत देख कर जो गुस्सा आया था उससे मेरा जिस्म जलने लगा| मैंने रितिका का गला पकड़ लिया और उसे ढकेलते हुए अंदर आया और उसे उसी के बिस्तर पर गिरा दिया| रितिका छटपटा रही थी ताकि मैं उसका गाला छोड़ दूँ; "कल अगर अनु को कुछ हो जाता ना तो आज मैं तुझे जिन्दा जला देता! आज आखरी बार तुझे बताने आया हूँ, अगर तूने कोई भी लगाईं-बुझाई की ना तो अपनी खेर मना लियो फिर! मुझे मिनट नहीं लगेगा तेरी जान लेने में!" मेरी पकड़ रितिका के गले पर तेज थी और अगर दो मिनट और उसका गला नहीं छोड़ता तो वो पक्का मर जाती| मैंने जैसे ही उसका गाला छोड़ा वो साँस लेने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी! मैंने नेहा के कपडे लिए और वापस अपने कमरे में आ गया| नेहा अब भी जाग रही थी और कंबल के अंदर अपने हाथ-पैर मार रही थी| कुछ देर पहले जो मुझे गुस्सा आ रहा था वो रितिका को देख कर गायब हो गया था| नेहा को अच्छे से कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से चिपका कर सो गया|
अगली सुबह मोहिनी आ गई और चूँकि सब उसे सब जानते थे तो सब ने उसका बड़ा अच्छा स्वागत किया और बाकी रिश्तेदारों से मिलवाया| रितिका तो जैसे उसे देख कर वहीँ जम गई, उसकी साँस ही अटक गई! वो जानबूझ कर आगे नहीं आई और काम करने की आड़ में छिपी रही| आखिर मोहिनी को ही उसका नाम ले कर उसे बाहर बुलाना पड़ा, रितिका उसके सामने सर झुकाये खड़ी हो गई| मोहिनी ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया ताकि किसी को कुछ शक ना हो और उसके कान में खुसफुसाई; "तेरी जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि! अगर तुझे यही खेल खेलना था तो बता देती, कम से कम मैं शादी तो ना करती और आज मैं और मानु जी एक होते! सच में तुझे मेरी भी हाय लगेगी!" इतना कहते हुए, अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लिए मोहिनी ऋतू से अलग हुई| "तो ताऊ जी, दूल्हे मियाँ कहाँ है?" मोहिनी ने चहकते हुए पुछा| मैं उस वक़्त छत पर नेहा को गोद में लिए कॉल पर बात कर रहा था| ताऊ जी ने जब उसे छत पर मेरे होने का इशारा किया तो मोहिनी कूदती हुई ऊपर आ गई| दरअसल मोहिनी घर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ थी क्योंकि वो मेरी गैरहाजरी में रितिका की शादी में आई थी| मैंने कॉल disconnect किया और जैसे ही पलटा की मोहिनी मुस्कुराती हुई मुझे दिखी| फिर उसकी नजर नेहा पर गई और वो सोचने लगी शायद किसी रिश्तेदार की बेटी है इसलिए वो सीधा मेरे पास आई; "दूल्हे मियाँ! कितना काम करोगे?" मोहिनी ने हँसते हुए पुछा|
"यार वो थोड़ा काम ज्यादा है, अनु भी बहुत बिजी है!" मैंने कहा|
"चलो मैं आ गई हूँ तो मैं यहाँ काम संभाल लूँगी!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोले|
"मेरी बेटी से तो मिलो?" मैंने मोहिनी का परिचय नेहा से कराते हुए कहा पर ये सुन कर वो सन्न रह गई और आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
"ये.....तुम्हारी बेटी......सच में?" मोहिनी हैरानी से बोल भी नहीं पा रही थी|
"हाँ जी!.... मेरी बेटी!" मैंने आत्मविश्वास से कहा| मेरा आत्मविश्वास देख उसकी हैरानी गायब हुई और मैंने उसे सब सच बता दिया| मोहिनी ने नेहा को मेरे हाथ से लेना चाहा पर नेहा ने मेरी कमीज पकड़ रखी थी| "बेटा ये मोहिनी आंटी हैं, पापा की बेस्ट फ्रेंड!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी और मोहिनी की गोद में चली गई| "पापा की सारी बातें मानती है? Good girl!! वैसे इसकी नाक बिलकुल तुम्हारी जैसी है!" मोहिनी ने नेहा की नाक पकड़ते हुए कहा| मोहिनी के मन के विचार मैं पड़ग पा रहा था, उसके दिल में अब मेरे लिए प्यार था| वो बस इस प्यार को दबाये हुए थी और किसी के भी सामने उसे नहीं आने देती थी| पर आज नेहा को गोद में लेने के बाद उसके मन में एक टीस उठी! टीस मुझे ना पाने की, टीस मेरे साथ एक छोटा संसार न बसा पाने की और टीस एक बच्चे के ना होने की! मोहिनी की आँखें छलछला गईं और वो नेहा को पाने गले से चिपकाते हुए रो पड़ी| मैंने मोहिनी को गले लगा लिया और उसे के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया| मैं समझ सकता था की उसे रितिका की करनी का कितना दुख है और अभी तो वो उसके काण्ड से अपरिचित थी वर्ण वो उसकी खाट खड़ी कर देती! "Hey...Hey....Hey calm down! शायद हमारा मिलना नहीं लिखा था!" मैंने कहा और मोहिनी के आँसूँ पोछे| "लिखा तो था पर ..... रितिका नाम के ग्रहण ने मिलने नहीं दिया!" मोहिनी ने खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा| अब मैंने बात बदलने के लिए उससे उसके और उसके पति के बारे में पुछा और ये भी की वो कब खुशखबरी दे रही है| उसने बताया की उसके पति को गल्फ में जॉब मिल गई इसलिए वो शादी के बाद वहाँ चला गया| महीने-दो महीने में उसका भी पासपोर्ट आ जायेगा और फिर वो भी चली जायेगी! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई और हम छत पर खड़े बातें कर रहे थे की तभी वहाँ भाभी आ गई; "लगता है अनु को बोलना पड़ेगा की उसका दूल्हा यहाँ कुछ ज्यादा ही 'फ्री' हो गया है!" भाभी ने मजाक करते हुए कहा| "भाभी मैं अपनी होने वाली बीवी से कुछ नहीं छुपाता| वो तो मोहिनी से मिली भी है|" फिर मैंने भाभी को उस दिन का सारा किस्सा सुना दिया| "देखा भाभी मुझे तो शुरू से ही शक था!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली| "तो मुझे क्यों नहीं बताया?" भाभी ने कहा और फिर हम सारे हँसने लगे|
अब चूँकि मोहिनी आ गई थी तो घर में मुझे एक दोस्त मिल गया था| जब कभी मैं काम में बिजी होता तो नेहा उसी के पास होती| मोहिनी अपनी बातों से सभी का मन लगाए हुए थी और बाकी दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला| जो भी रस्में शादी वाले दिन से पहले निभाई जानी थीं वो सभी प्रेमपूर्वक निभाईं गईं और मोहिनी ने बहुत सारी फोटो क्लिक करीं| हमारे गाँव में शादी के एक दिन पहले पूजा होती है और उसमें दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है| जब ये समरोह शुरू हुआ तो मुझे एक सफ़ेद पजामा-कुरता पहना कर पहले पूजा में बिठाया गया और उसके बाद हल्दी लगना शुरू हुई| मैंने कुरता उतार दिया और आलथी-पालथी मार कर आंगन में बैठ गया| सबसे पहले माँ, ताई जी और भाभी ने मुझे हल्दी लगाई| भाभी को तो मेरी मस्ती लेने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरा गाला और छाती हल्दी से लबेड दिया! उसके बाद सभी औरतों ने मेरे हल्दी लगाईं| इस समारोह की एक-एक फोटो और वीडियो मोहिनी ने ही शूट की! फोटोग्राफर वाला भाई भी कहने लगा दीदी मुझसे अच्छी फोटो तो आप खींच रही हो और उसकी इस बात पर सब ने मोहिनी की बड़ी तारीफ की|
शादी वाले दिन सुबह-सुबह ताऊ जी किसी को फ़ोन पर बहुत डाँट रहे थे, जब मैंने पुछा तो उन्होंने बात टाल दी| कुछ ही घंटों बाद घर के आगे एक चम-चमकती हुई रॉयल ब्लू फोर्ड इकोस्पोर्ट खड़ी हो गई| ताऊ जी ने मुझे आवाज मार के नीचे बुलाया और गाडी देख मेरी आँखें चौंधियाँ गई! "ताऊ जी????..... ये आपने???? ....... पर क्यों???" मैंने पुछा|
"तो हमारी बहु क्या फटफटी के पीछे बैठ कर आती?" ताऊ जी ने सीना ठोक कर कहा और चाभी मुझे दी; "ये ले बेटा! तेरा शादी का तौहफा .... बड़ी मुश्किल हुई इसे ढूंढने में! बजार में इतनी गाड़ियाँ हैं की समझ ही नहीं आया की कौन सी खरीदूँ? फिर हमने मोहिनी बिटिया से पुछा तो उसने बताया की ये वाली मानु को पसंद है!" मैंने पलट के मोहिनी की तरफ देखा तो वो नेहा को गोद में लिए बहुत हँस रही थी! मैंने ताऊ जी और पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया| घर में आया हर एक इंसान खुश था सिवाय एक के!
खेर शाम चार बजे तक सब तैयार हो गए थे और घर के बाहर एक के पीछे एक 3 बसें भी खड़ी थीं ताकि बाराती venue तक पहुँच सकें| मेरे दोस्त यानी अरुण-सिद्धार्थ डायरेक्ट हमें वहीँ मिलने वाले थे| ताऊ जी ने सब को जल्दी बैठने को कहा, अभी मैं पूरा तैयार नहीं हुआ था इसलिए जैसे ही मैंने ताऊ जी की आवाज सुनी तो मैं बनियान पहने ही नीचे आया| "ताऊ जी आप सब को भेज दीजिये बस, आप, मैं, पिताजी, माँ और ताई जी गाडी से जायेंगे| आज पहली ride मैं आप सब के साथ चाहता हूँ!" ताऊ जी को मेरी बात जच गई इसलिए उन्होंने सब को भेज दिया बस हम लोग ही रह गए| जब मैं तैयार हो कर नीचे आया तो जो लोग बच गए थे वो सब मुझे देखने लगे और उनकी आँखें नम हो गईं| माँ ने फ़ौरन मुझे काजल का टीका लगाया| फिर एक-एक कर सब ने मुझे गले लगाया और आखिकार हम निकले! बसें पहले पहुँचीं और फिर हुई हमारी Grand Entry! गाडी ठीक Wedding Hall के सामने रुकी और हमें गाडी से उतरता देख मम्मी-डैडी समेत उनके सारे रिश्तेदार हैरान हो गए| सब की नजर बस मेरे ऊपर ही टिकी थी क्योंकि मैं शेरवानी में लग ही इतना हैंडसम रहा था की क्या कहें! मेरे दोनों दोस्त अरुण-सिद्धार्थ मेरे साथ खड़े हो गए थे और उन्हीं के साथ मोहिनी भी अपनी लेहंगा चोली में बड़े रुबाब के साथ खड़ी हो गई| "हमारा दूल्हा आ गया अपनी दुल्हन को लेने!" सिद्धार्थ जोर से बोला और सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया| पीछे-पीछे बैंड-बाजा शुरू हो चूका था, इधर मम्मी-डैडी जी हाथ में आरती की थाली लिए खड़े हुए थे| मेरी आरती उतारी गई और फिर सबकी मिलनी हुई| यहाँ मैं बेसब्र हो रहा था क्योंकि मुझे अनु को देखना था पर सारे मिलनी में ही लगे हुए थे| बड़ी देर बाद एंट्री हुई! (वैसे बस 15 मिनट ही लगे थे पर मुझे तो ये समय घंटों का लग रहा था!)
मुझे तो podium पर बिठा दिया गया और एक-एक कर अनु के सभी रिश्तेदारों से मिलवाया गया पर मेरी नजर तो अनु को ढूँढ रही थी| वैसे ज्यादा लोगों की gathering नहीं हुई थी करीब 100 एक आदमी आये होंगे, जिसमें ज्यादातर मेरे परिवार से ही थे! गाना बज रहा था: 'तेरे इश्क़ में जोगी होना!' और इधर मैं जोगी बने-बने ऊब गया था! कुछ देर बाद आखिर मुझे विवाह वेदी पर बैठने को कहा गया जहाँ पंडित जी मंत्र जाप कर रहे थे! मैं बार-बार गर्दन इधर-उधर घुमा कर अनु के आने का रास्ता देख रहा था| अब दोस्तों को मजे लेने थे सो वो आ गए और मेरे पीछे बैठ गए; "भाई थोड़ा सब्र रख, भाभी बस आने वाली है!" अरुण बोला| "यार ये औरतों का तैयार होना कसम से बहुत बड़ा ड्रामा है! यहाँ इंतजार कर-कर के हालत बुइ है और इन्हें कोई होश ही नहीं!" मैंने कहा| सही मायने में उस दिन मुझे एहसास हो रहा था की औरतें कितना टाइम लगाती हैं तैयार होने में! पर जब अनु की एंट्री हुई तो मैं पलकें झपकना भूल गया, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, आँखें जितनी फ़ट कर बाहर आ सकती थी उतनी फ़ट चुकी थीं! मैं उठ कर खड़ा हुआ और इधर अनु शर्माते हुए नजरें झुकाये आई और उसके साथ उसकी वो बेस्ट फ्रेंड भी आई| पर मेरी नजरें तो अनु पर गड़ी थीं, उसकी नजरें झुकी हुई थीं| उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| "क्यों भाई अब तो चैन मिल गया तुझे?" सिद्धार्थ बोला| "यार जितना भी टाइम लिया पर जो खूबसूरती दिख रही है उसके आगे ये इंतजार भी सोखा लग रहा है!" मैंने कहा जिसे सुन कर अरुण-सिद्धार्थ दोनों हँसने लगे| "जानेमन! जरा नजर उठा कर हमें भी देख लो, हम भी आपकी नजरों से घायल होना चाहते हैं|" मैंने अनु से खुसफुसाते हुए कहा| तब जा कर अनु ने अपनी नजरें उठाई और मुझे देखा, ये सब इतने स्लो मोशन में हुआ की लगा मानो ये पल यहीं रुक गया हो| "हाय! कहीं मेरी ही नजर आपको ना लग जाए!" अनु ने खुसफुसाते हुए जवाब दिया|
मैंने सिद्धार्थ से माइक माँगा और उसने मुझे माइक ला कर दिया;
"क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये|"
मैंने अनु की इबादत में जब ये शेर पढ़ा तो ये सुन सारे लोग तालियाँ बजाने लगे| ये शोर सुन अनु को बहुत गर्व हुआ और उसने मुझसे माइक माँगा और जवाब में एक शेर पढ़ा;
"जर्रूरत नहीं है मुझे घर में आइनों की अब,
उनकी निगाहों में हम अपना अक्स देख लेते हैं...."
अनु का शेर सुन तो पूरे हॉल में शोर गूँज गया| हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व कर रहे थे| तभी मोहिनी मेरे पीछे खड़े होते हुए बोली; "एक शायर को उसकी कविता मिल गई!" ये सुन कर अनु की नजर मोहिनी पर पड़ी और उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी की वो हम दोनों के लिए कितनी खुश है|
खेर विधि-विधान से शादी की सारी रस्में हुईं और इस पूरे दौरान हम दोनों बहुत खुश दिख रहे थे| उसके बाद खाना-पीना हुआ, फोटो खिचवाने का काम हुआ और ये सब निपटाते-निपटाते रात के 3 बज गए| घर आते-आते सुबह हो गई थी, बड़े रस्मों-रिवाज के साथ अनु का गृह प्रवेश हुआ| भाभी ने मेरा कमरा सजा दिया था और अनु को अंदर बिठा दिया गया था| मुझे अब भी नीचे रोक कर रखा हुआ था, कुछ देर बाद जब भाभी नीचे आईं तो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कमरे तक ले गईं और बाहर चौखट पर खड़े हो कर बोलीं; "मेरी देवरानी का ख्याल रखना!" भाभी ने बड़े naughty अंदाज में ये कहा| पहले कुछ सेकंड तो मैं इसे समझने की कोशिश करने लगा और जब समझ आया तब तक भाभी का खिल-खिलाकर हँसना शुरू हो चूका था| "मेरे बुद्धू देवर! जाओ जल्दी अंदर तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया| इधर मैंने भी सेफ्टी के लिए अंदर से कुण्डी लगा दी की कहीं वो दुबारा अंदर ना आ जाएँ! हा...हा...हा...हा!!!
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01-02-2020, 07:20 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 79
कमरे में भाभी ने मद्धम सी रौशनी कर रखी थी, जो माहौल को रोमांटिक बना रही थी| बेड के बगल में एक गिलास रखा था जिसमें दूध था! ये बड़ा ही ख़ास दूध होता है, मेरे दोस्त संकेत ने मुझे बताया था की ये दूध बहुत जबरदस्त होता है! जब मेरी नजर अनु पर पड़ी तो वो गठरी बनी पलंग पर सर झुका कर बैठी थी, लाल जोड़े में आज वो क़यामत लग रही थी! आज हमें रोकने वाला कोई नहीं था, जो बंदिश मैंने खुद पर रखी थी आज वो टूटने वाली थी! मैंने धीरे-धीरे अनु के पास पहुँचा और पलंग पर बैठ गया| अनु के पाँव जो मुझे दिख रहे थे, उसने वो अपने घूँघट के अंदर छिपा लिए| मैंने हाथ बढ़ा कर अनु का घूँघट उठाया तो देखा अनु सर झुकाये नीचे देख रही है| उसके होठों की लाली देख मेरा दिल मचलने लगा था! फिर मुझे दूध के बारे में याद आया तो मैंने वो गिलास उठाया और आधा पिया, उसका स्वाद बहुत गजब का था या फिर ये अनु के हुस्न का जादू था जिसके कारन में कुछ ज्यादा imagine करने लगा था| मैंने वो आधा दूध का गिलास अनु को दिया, अब वो बेचारी शर्म से लाल अपनी नजरें उठा कर मुझे देखना ही नहीं चाह रही थी| किसी तरह उसने वो गिलास पकड़ा और आँख बंद कर के दूध पिया| दूध पी कर खाली गिलास रखने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और खुद गिलास टेबल पर रखा| उसके बाद मैं वापस सीधा बैठ गया और अनु को देखने लगा| कुछ भी करने की जैसे हिम्मत ही नहीं हो रही थी! मैं सोचने लगा शायद अनु कुछ पहल करे तो मुझे आगे बढ़ने में आसानी हो और उधर अनु का दिल धाड़-धाड़ कर के बजने लगा था| अनु का ये पहला मौका था और वो बेचारी शायद उम्मीद कर रही थी की मैं कुछ करूँगा! करीब 20 मिनट तक हम दोनों ही चुप बैठे थे, अनु की नजरें नीचे थीं और मेरी आँखें बस अनु पर टिकी थीं| मैंने नोटिस किया की अनु के होंठ थरथरा रहे हैं, मैंने इसे ही एक आमंत्रण समझा और मैं अनु के करीब खिसक कर बैठ गया| पर अनु ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, इधर मुझे झिझक होने लगी! 5 मिनट तक मैं मन ही मन इस झिझक से लड़ने लगा और फिर यही सोचा की जो भी होगा देख लेंगे! मैने अपने दोनों हाथों से अनु के दोनों कंधे पकडे और उसे धीरे से पीछे धकेल कर लिटा दिया| अनु एक दम से सीधा लेट गई और मैं उसके ऊपर झुक गया, जाने मुझे ऐसा लगा की शायद अनु ये सब नहीं करना चाहती और मुझे उसका ये विचार ठीक लगा क्योंकि अब मुझ में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी! बड़ी हिम्मत जूता कर मैंने उससे पुछा; "You don’t want to do it?” पर ये सुन कर अनु ने अपनी झुकी हुई नजर ऊपर उठा ली और मेरी आँखों में देखने लगी| अनु की आँखों में मुझे अपने लिए प्यार नजर आया पर सेक्स के लिए झिझक भी नजर आई| अब मुझ में थोड़ी हिम्मत आ गई, मैंने अपने दाएँ हाथ से अनु के बाएँ गाल को सहलाया और अपना सवाल फिर से दुहराया; "बेबी! अगर आपका मन नहीं है तो its okay! कोई problem नहीं!" ये सुन कर तो जैसे अनु को विश्वास ही नहीं हुआ की भला कोई आदमी सुहाग की सेज पर अपनी पत्नी से सेक्स करने के लिए उसकी मर्जी पूछ रहा हो! वो खामोश नहीं रहना चाहती थी पर लफ़्ज उसके गले में घुट कर रह गए| अनु ने अपनी दोनों बाहें मेरी गर्दन पर लॉक कीं और मुझे अपने ऊपर और झुका लिया| अब मुझे विश्वास हो गया की अनु ने मुझे सहमति दे दी है|
मैंने धीरे से अनु के लबों को अपने लबों में कैद कर लिया, फिर धीरे-धीरे मैंने उसके लबों को चूसना शुरू किया| मैं अनु के होठों को धीरे-धीरे, एक-एक कर चूस रहा था, उनका स्वाद बिलकुल गुलाब की पंखुड़ियों सा था| इधर मेरे Kiss के कारन अनु ने रियेक्ट करना शुरू कर दिया था, उसके हाथ मेरी गर्दन से रेंगते हुए मेरी पीठ पर पहुँच गए थे| मैंने एक पल के लिए अनु के होठों को अपने होठों की गिरफ्त से आजाद किया और मैं दुबारा से उन्हें अपने मुँह में भरता, उससे पहले ही अनु ने मेरे निचले होंठ को अपने मुँह में भर कर धीमे-धीमे चूसने लगी! ये अनु के लिए नया एहसास था इसलिए घबराहट उसके इस अंदाज में साफ़ दिख रही थी| दो मिनट बाद अब समय था अगले कदम का, मैंने धीरे से अपनी जीभ आगे सरकाई और अनु ने अपना मुँह खोल कर उसका स्वागत किया| अनु की जीभ इतनी खुश हुई की वो भी मेरी जीभ से मिलने आगे आई और दोनों का मिलन हुआ| इस Kiss के कारन अनु अब काफी खुल गई थी और हम दोनों अब शिद्दत से एक दूसरे को Kiss करने लगे थे| कभी अनु अपनी जीभ आगे करती और मैं उसे चुस्त तो कभी मैं अपनी जीभ अनु के मुँह में दाखिल कर देता! करीब 10 मिनट के इस रस पान के बाद अब हम दोनों के जिस्म ही गर्म हो चुके थे और ये कपडे अब रास्ते की बाधा थे| मैंने अनु के चंगुल से अपनी जीभ निकाली और उसका हाथ पकड़ के उसे बिठाया| मैंने अपने कपडे उतारने शुरू किये और अनु ने अपने जेवर उतारने चाहे, "इन्हें मत उतारो!" मैंने कहा| कुछ सेकण्ड्स के लिए अनु सोच में पड़ गई की मैं क्या कह रहा हूँ; "ये आप पर बहुत अच्छे लगते हैं!" मैंने कहा और तब जा कर अनु को समझ आया| मैं तो अपनी शेरवानी उतार चूका था पर अनु अभी अपने हाथ पीछे मोड़ कर अपनी चोली की डोरी खोलने जा रही थी| मैंने फ़ौरन आगे बढ़ कर उसकी चोली की डोरी धीरे से खोली| मुझे ऐसा करता देख अनु शर्म से लाल हो गई और उसने अपनी चोली आगे से अपने दोनों हाथों को अपने स्तन पर रख कर पकड़ ली| मैं आके अनु के सामने बैठ गया, उसकी नजरें झुक गईं थीं| मैंने अनु की ठुड्डी पलकड़ कर ऊँची की तो पाया उसने आँखें मूँद रखी हैं| मैंने दोनों हाथों से अनु के दोनों हाथ उसके स्तन के ऊपर से हटाए और उसके जिस्म से चोली निकाल कर नीचे गिरा दी| अनु के पूरे जिस्म में डर की कंपकंपी छूट गई! अनु अब मेरे सामने लाल रंग की ब्रा पहने बैठी थी और उसकी आँखें कस कर बंद थी| उसके हाथ बिस्तर पर थे और काँप रहे थे| मैंने अनु का बायाँ हाथ उठाया और उसे चूमा ताकि अनु थोड़ा नार्मल हो जाये और हुआ भी कुछ वैसा ही| मेरा उसके हाथ चूमते ही वो शांत हो गई, फिर मैं अनु के और नजदीक आया और उसके बाएं गाल को चूमा| अनु ने एक सिसकी ली; "ससस!!!" फिर मैंने अपने दोनों हाथ पीछे ले जा कर अनु की ब्रा के हुक खोल दिए पर ब्रा को उसके जिस्म से अलग नहीं किया| मैंने अनु को धीरे से वापस लिटा दिया और मैं उसकी बगल में लेट गया| मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके बाएँ गाल पर फेरा, अनु समझ नहीं पाई की हो क्या रहा है| वो तो उम्मीद कर रही थी की मैं उस पर चढ़ जाऊँगा और यहाँ मैं धीरे-धीरे उसके जिस्म को बस छू भर रहा था| दो मिनट बाद मैं उठा और अपनी दोनों टांगें अनु के इर्द-गिर्द मोड़ी और उसके लहंगे को खोलने लगा| जैसे ही लहंगा खुला अनु ने अपने दोनों हाथों से पलंग पर बिछी चादर पकड़ ली| अब भी उसकी आँखें बंद थी और डर के मारे उसके दिल की धड़कनें बहुत तेज थीं| मैंने धीरे-धीरे लहंगा निकाल दिया और नीचे गिरा दिया| अब अनु मेरे सामने एक लाल ब्रा पहने जो की उसकी छाती सिर्फ ढके हुए थी और एक लाल रंग की पैंटी पहने पड़ी थी| जैसे ही मैंने अपनी उँगलियाँ पैंटी की इलास्टिक में फँसाई अनु काँप गई| मैनेजैसे ही पैंटी नीचे धीरे-धीरे सरकानी शुरू की उसने तुरंत अपने हाथों से चादर छोड़ी और अपनी पैंटी के ऊपर रख उसे ढक दिया| मैं उसी वक़्त रुक गया और अनु के मुँह की तरफ देखने लगा| करीब मिनट बाद अनु को लगा की कहीं मैं नाराज तो नहीं होगया इसलिए उसने अपनी आँख धीरे से खोली और मुझे अपनी तरफ प्यार से देखते हुए पाया| ये देखते ही वो फिर शर्मा गई, मैंने मुस्कुराते हुए फिर से उसकी पैंटी नीचे सरकानी शुरू की पर उसे केवल उसकी ऐड़ी तक ही नीचे ला पाया क्योंकि अनु ने अपनी टांगें कस कर भींच ली थीं| उसके दोनों हाथ उसकी बुर के ऊपर थे और मैं अभी तक अनु के पूरे जिस्म का दीदार नहीं कर पाया था|
मैं अनु के ऊपर आ गया, उसे लगा की मैं उसकी ब्रा हटाऊँगा और अब वो मुझे रोक भी नहीं सकती थी क्योंकि तब उसे अपना एक हाथ अपनी बुर के ऊपर से हटाना पड़ता! पर मैंने अनु के निचले होंठ को चूसना शुरू किया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसेड़ दी| मेरा पूरा वजन अनु पर था इसलिए उसने अपने दोनों हाथ अपनी बुर के ऊपर से हटा दिए और मेरी पीठ पर रख कर मुझे खुद से चिपका लिया ताकि मेरे जिस्म से उसका जिस्म ढक जाए! अगले दस मिनट तक हम एक दूसरे को धीरे-धीरे Kiss करते रहे और अब अनु की शर्म कुछ कम हुई थी जिसके फल स्वरुप उसने खुद अपनी पैंटी निकाल दी थी और अपनी दोनों टांगें मेरी कमर पर लॉक कर ली थी| दस मिनट बाद जब मैंने अनु के ऊपर से उठना चाहा तो उसने अपनी पकड़ और कस ली क्योंकि वो नहीं चाहती थी की मैं उसे बिना कपडे के देखूँ! "बेबी! मुझसे कैसी शर्म?" मैंने धीरे से अनु के कान में खुसफुसाते हुए कहा| पर ये अनु की शर्म कम और सेक्स के प्रति उसका डर था! अनु ने मेरी बात मानी और अपने हाथ और पैर ढीले छोड़ दिए पर उसने अपनी आँखें कस कर बंद कर रखी थीं| मैं वापस नीचे खिसक आया और अनु के दोनों घुटने पकड़ कर उन्हें खोलने लगा| अनु ने फिर से चादर अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ ली| मैंने धीरे-धीरे अनु की टांगें खोली और उसकी चिकनी और साफ़ सुथरी बुर देखि! दूध सी गोरी उसकी बुर और वो पतले-पतले गुलाबी रंग के होंठ देख मैं दंग रह गया| मैं अपने आप ही उस पर झुक गया और पहले उन गुलाबी होठों को चूमा| मेरे चूमते ही अनु की जोरदार सिसकारी निकली; "स्स्सस्स्स्साआह!" अनु ने अपनी टांगें बंद करनी चाही पर तब तक मैंने अपने दोनों हाथ उसकी जाँघों पर रख दिए थे और अनु अब अपनी टांगें फिर से बंद नहीं कर सकती थी| मैंने अपनी जीभ निकाली और अनु के भगनासे को छेड़ा, अनु के जिस्म में हरकत हुई और उसका पेट कांपने लगा| "सससस....आह!" अनु ने एक और सिसकारी ली| मैं जितनी अपनी जीभ बाहर निकाल सकता था उतनी निकाली और नीचे से अनु के भगनासे तक एक बार चाटा| अनु मस्ती से भर उठी और अपना सर इधर-उधर पटकने लगी! मैंने अपना मुँह खोला और उसके बुर के होठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा, इससे तो अनु की हालत खराब हो गई| उसने अपने दोनों हाथों से पकड़ रखी चादर छोड़ी और मेरे सर पर हाथ रख कर उसे अपनी बुर पर दबाने लगी| पूरा कमरा उसकी सिसकारियों से गूँज उठा था| "स्स्सस्स्स्स...आह...सससस......ममम.....ससस.....आह....हहह...ममम....आ साससससस...." इधर मुझे अनु के बुर के होठों से एक मीठे-मीठे इत्र की महक आ रहे थी और मैं पूरी शिद्दत से उन्हें चूसने लगा| 5 मिनट नहीं हुए और अनु भरभरा कर झड़ गई और उसका नमकीन पानी मेरे मुँह में षड की तरह भरने लगा| मैं भी किसी भालू की तरह उस रस की एक-एक बूँद को चाट कर पी गया| इस बाढ़ के कारन अनु की सांसें बहुत तेज हो गईं थीं, जब मैं अनु की टांगों के बीच से निकल कर सीधा हुआ तो मैंने अनु को देखा| वो आँख मूंदें हुए अपने स्खलन को एन्जॉय कर रही थी! दो मिनट बाढ़ उसने आँखें खोली और मेरी तरफ देखने लगी और फिर बुरी तरह शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया| मैं भी उसकी इस हरकत को देख मुस्कुराने लगा पर अभी तक हम दोनों में से किसी ने भी मेरे फूल कर कुप्पा हुए लंड को नहीं देखा था! मैं अनु की बगल में लेट गया और अनु ने मेरी तरफ करवट ले ली पर उसने अभी तक अपने हाथ नहीं हटाए थे|
मैंने भी उस पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं की क्योंकि मैं चाहता था की उसकी ये शर्म धीरे-धीरे खत्म हो| पांच मिनट बाढ़ अनु ने अपने दोनों हाथ अपने चेहरे से हटाए और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी, पर मैं तो कब से उसे ही देख रहा था| अनु ने दाएँ हाथ को मेरी छाती पर रख दिया और खामोशी से मुझे देखती रही| मैंने अपने दाएँ हाथ से उसके सर पर हाथ फेरा और अनु मुस्कुराने लगी| उसके मोती से सफ़ेद दाँत आज बहुत सुन्दर लग रहे थे| अनु का दाहिना हाथ मेरी छाती पर घूमने लगा और गलती से सरकते हुए मेरे लंड पर पहुँच गया| लंड का उभार महसूस होते ही अनु ने एक दम से हाथ हटा लिया और फ़ौरन अपनी आँखें उस उभार की तरफ की| उस उभार को देख कर ही उसकी हवा खराब हो गई| उसे एहसास हुआ की अभी असली काम तो बाकी है, अनु की हिम्मत नहीं हुई की वो नजर उठा कर मेरी तरफ देख सके इसलिए उसने तुरंत अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और वापस सीधे लेट गई| उसके इस बर्ताव से मुझे एहसास हुआ की अनु बहुत डरी हुई है और नहीं चाहती की मैं आगे बढ़ूँ! मैंने फ़ौरन अनु की तरफ करवट ली और खुसफुसाते हुए बोला; "Baby don’t be afraid! If you don’t want, I won’t proceed any further!” कुछ देर उसी तरह रहने के बाद अनु ने अपने दोनों हाथ अपने चेहरे के ऊपर से हटाए और मेरी तरफ देखते हुए बोली; "Its not what I want? Its what ‘WE’ want!” मैं अनु की इस बात का मतलब समझ गया और अनु भी ये बोलने के बाद मुस्कुराई| “I’ll be gentle….can’t hurt my wife!” मैंने धीरे से कहा और मैं अनु के ऊपर आ गया| डर तो अब भी था अनु के दिल में पर वो किसी तरह से उसे दबाने में लगी हुई थी| मैंने अपना पजामा निकाल दिया और उसे निकालते ही अनु को मेरा फूला हुआ कच्छा दिखाई दिया जिसमें से लंड अपना प्रगाढ़ रूप लिए साफ़ दिखाई दे रहा था| जैसे ही मैंने अपना कच्छा निकाला अनु के सामने वो खंजर आ गया जो कुछ ही देर में खून खराबा करने वाला था| कुछ क्षण तक तो अनु उसे देखती रही और इधर अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए मेरे लंड ने pre-cum की एक अमूल्य बूँद भी बहा दी| पर अनु की बुर का डर आखिर उस पर हावी हो गया! ये दानव अंदर कैसे जाएगा ये सोच कर ही अनु ने पुनः अपनी आखें कस कर मीच लीं! इधर मैंने धीरे-धीरे अनु की टांगें पुनः खोलीं ताकि मैं अपना स्थान ग्रहण कर सकूँ| जैसे ही मैं अनु की टांगों को छुआ उसकी टांगें काँप गई, अनु का पूरा शरीर डर के मारे कांपने लगा था| मन ही मन अनु सोच रही थी की वो दर्द से बुरी तरह बिलबिला जायेगी जब ये खूँटा अंदर घुसेगा!!
मैं अनु पर झुका और मेरा लंड आ कर उसकी बुर से बीएस छुआ और अनु के पूरे जिस्म में करंट दौड़ गया! उसने घबरा कर चादर अपने दोनों हाथों से पकड़ ली और अपने आप को आगे होने वाले हमले के लिए खुद को तैयार कर लिया| मैं अनु के ऊपर छ गया और धीरे-धीरे अपना सारा वजन उस पर डाल दिया| अपनी कमर को मैंने अनु की बुर पर दबाना शुरू किया, लंड धीरे-धीरे अपना रास्ता बनाता हुआ अनु की बुर की झिल्ली से टकरा कर रुक गया| इधर अनु को जो हल्का दर्द हुआ उससे अनु ने अपनी गर्दन ऊपर की तरफ तान ली| मैं कुछ सेकंड के लिए रुक गया ताकि अनु को थोड़ा आराम हो जाए, हालाँकि उसे अभी बीएस दर्द का एक हल्का सा आभास ही हुआ था! मैंने अपनी कमर से हल्का सा झटका मारा और लंड के सुपाडे ने वो झिल्ली तोड़ दी और अभी आधा ही सुपाड़ा नादर गया था की अनु के मुंह से चीख निकली; "आअह्हह्ह्ह्ह ममममअअअअअअअअअ...!!!!" और अनु ने अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ पटकनी शुरू कर दी| खून की एक धार बहती हुई बिस्तर को लाल कर गई थी! मैं उसी हालत में रुक गया और मैंने अनु के स्तन के ऊपर से ब्रा हटा दी| सामने जो दृश्य था उसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी| अनु के स्तन बिलकुल तोतापरी आम जैसे थे, उनकी शेप देखते ही मेरा दिल बेकाबू हो गया| मैं अपना मुंह जितना खोल सकता था उतना खोल कर अनु के दाएँ स्तन को मुँह में भर कर चूसने लगा| इस दोहरे हमले से अनु की बुर का दर्द कुछ कम हुआ और अनु ने अपना हाथ मेरे सर पर रख दिया, अनु ने मेरे सर को अपने स्तन पर दबाना शुरू कर दिया| मैंने अपने दाँत अनु के दाएँ स्तन पर गड़ा दिए और धीरे से अनु के चुचुक पर काट लिया| "स्स्सह्ह्ह्ह" अनु कराही जो मेरे लिए इशारा था की उसकी बुर का दर्द कम हो चूका है| मैंने अपनी कमर से एक और हल्का सा झटका मारा और अब मेरा पूरा सुपाड़ा अंदर जा चूका था| "आअह्म्मामा" अनु धीरे से चीखी! मुझे अनु की भट्टी सी गर्म बुर का एहसास अपने सुपाडे पर होने लगा| अनु की बुर लगातर रस छोड़ रही थी ताकि लंड का प्रवेश आसान हो जाए| इधर ऊपर अनु की गर्दन फिर से दाएँ-बाएँ होनी शुरू हो चुकी थी| अनु का दर्द कम करने के लिए मैंने उसके बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया| अनु के हाथों की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ता बनाने लगी और अनु का दर्द कुछ देर में खत्म हो गया| मेरे उसके स्तनपान करने से उसके मुँह से अब सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं थी| अब मौका था एक आखरी हमले का और वो मैं बिना बताये नहीं करना चाहता था वर्ण अनु का दर्द से बुरा हाल हो जाता! "बेबी...एक लास्ट टाइम और....आपको दर्द होगा!" मैंने अनु से कहा और ये सुन कर अनु ने चादर को पाने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया और अपनी आँखें कस कर मीच लीं| उसके चेहरे पर मुझे अभी से दर्द की लकीरें नजर आ रही थीं, दिल तो कह रहा था की मत कर पर अभी नहीं तो फिर शायद कभी नहीं! यही सोच कर मैंने एक आखरी झटका मारा जो बहुत बड़ा था| मेरा पूरा लंड अनु की बुर में प्रवेश हो चूका था और अनु की एक जोरदार चीख निकली जो कमरे में गूँज गई| "आआह्ह्ह्हह्हहहहहहहहहहहहहहहहह....हम्म्म....मममम.....ममम....ननन....!!!" मैं इस झटके के फ़ौरन बाद रुक गया और अनु के होंठों को अपने मुँह में कैद कर लिया| लगातार दस मीनू तक मैं उसके होठों को चुस्त रहा और अपने दाएँ हाथ से अनु के स्तनों को बारी-बारी से धीरे-धीरे दबाता रहा ताकि उसका दर्द कम हो सके|
पूरे दस मिनट बाद अनु का दर्द खत्म हुआ और उसने अपने हाथों की गिरफ्त से चादर को छोड़ा और मेरी पीठ तथा मेरे बाल सहलाने लगी| मैंने अनु के होठों को आजाद किया और उसके चेहरे को देखा तो पाया की आँसू की एक धार बह कर उसके कान तक पहुँच चुकी थी| अनु की सांसें काबू हो गईं थीं और उसके जिस्म में अब आनंद का संचार हो चूका था| "सॉरी बेबी!' मैंने थोड़ा मायूस होते हुए कहा| अनु के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दी और बोली; "I love you!" ये I love you इस बात को दर्शाता था की आज हम दोनों ने जिस्मानी रूप से एक दूसरे को समर्पित कर दिया है| जाने क्यों पर मेरी नजरें एक आखरी बार अनु की रजामंदी चाहती थीं ताकि ये यौन सुख चरम पर पहुँच सके| अनु ने मुझे वो रजामंदी अपनी गर्दन धीरे से हाँ में हिला कर दी| मैंने अपनी कमर को धीरे-धीरे आगे पीछे करना शुरू किया जिससे मेरा लंड अनु की बुर में धीरे-धीरे अंदर बाहर होने लगा| मेरे धक्कों की रफ़्तार अभी धीरे थी ताकि अनु को धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाए| पर इतने से ही अनु की सिसकारियाँ निकलने लगी थीं; "सससस..ससस...ममममननन...ससससस...!!!" पाँच मिनट बाद मैंने अपनी रफ़्तार धीरे-धीरे बढ़ानी शुरू की और इधर अनु अपने दूसरे चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई और अपनी दोनों टांगें मेरी कमर पर लॉक कर मुझे रुकने का इशारा किया| अनु के दोनों पाँव की ऐड़ियाँ मेरे कूल्हों पर दबाव बना कर उन्हें हिलने से रोक रहीं थी| आखिर मैंने भी थोड़ा आराम करने की सोची और अंदर को जड़ तक अंदर पेल कर मैं अनु के ऊपर ही लेट गया| अनु की सांसें उसके चरमोत्कर्ष के कारन तेज थीं और मैं अपने होंठ अनु की गर्दन पर रख कर लेट गया| अनु का स्खलन इसबार पहले से बहुत-बहुत लम्बा था जो मैं अपने सुपाडे पर महसूस कर रहा था| जब अनु का स्खलन खत्म हुआ तो उसने मेरी गर्दन पर अपनी फेवरेट जगह पर दाँत से काट लिया| ये उसका इशारा था की मैं फिर से 'काम' शुरू कर सकता हूँ! मैं उठा और इस बार पहले से बड़े और तगड़े धक्के लगाने लगा| मेरे हर धक्के से अनु के तोतापरी आम ऊपर नीचे हिलने लगे थे, इधर अनु पर एक अजब ही खुमारी चढ़ने लगी थी| अनु ने अपने दोनों हाथ अपने बालों में फिराने शुरू कर दिए, उसके अध् खुले लब हिलने लगे थे| मेरा मन तो कर रहा था उन लाल-लाल होठों को एक बार और चूस लूँ पर उसके लिए मुझे नीचे झुकना पड़ता और फिर मेरे लंड को मिल रहा मजा कम हो जाता| अगले आधे घंटे तक मैं उसी रफ़्तार से लंड अंदर-बाहर करता रहा और अनु अपनी खुमारी में अपने हाथों को अपने जिस्म पर फेरने लगी| इधर मुझे हैरानी हो रही थी की मुझ में इतनी ताक़त कहाँ से आई जो मैं बिना रुके इतनी देर से लगा हुआ हूँ! फिर ध्यान गया उस गिलास पर और मैं समझ गया की ये सब दूध का ही कमाल है जिसने मुझे और अनु को अभी तक इतनी देर तक जोश से बाँधा हुआ है|
अनु थोड़ा उठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया, इधर मैं नीचे से मेहनत करने में लगा था और उधर अनु के होठों ने मेरे होठों को चूसना शुरू कर दिया था| बीच-बीच में अनु ने अपने दाँतों का प्रयोग भी करना शुरू कर दिया था! मेरे होठों को दाँतों से चुभलाने में अनु को कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा था| अब तो मेरे दोनों हाथों को भी कुछ चाहिए था| मैंने अनु के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से दबाना शुरू कर दिया था और उँगलियों से मैं उनका मर्दन करने लगा था| नीचे बाकायदा मेरी कमर अपने काम में लगी थी और लंड बड़े आराम से अंदर-बाहर हो रहा था| दोनों ही अब अपनी-अपनी चरम सीमा पर पहुँचने वाले थे, अनु ने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ एक बार फिर मेरे बालों में चलानी शुरू कर दी थीं| उसकी बुर ने प्रेम का गाढ़ा-गाढ़ा रस बनाना शुरू कर दिया था और अगले किसी भी पल वो उस रस को छलकाने वाली थी|
दूसरी तरफ मेरी रफ़्तार अब full speed पर थी, मेरे स्खलित होने से पहले अनु ने अपना रस बहा दिया और मुझे कस कर अपने से चिपका लिया| उसके दोनों पेअर मेरी कमर पर लॉक हो गए और जिस्म धनुष की तरह अकड़ गया| उसके इस चिपकने के कारन मैं रुक गया और अपनी सांसें इक्कट्ठा करने लगा ताकि आखरी कमला कर सकूँ! जैसे ही अनु निढाल हो कर बिस्तर पर लेटी मैंने ताबड़तोड़ धक्के मारे और मिनट भर में ही मेरे अंदर सालों से जो वीर्य भरा हुआ था वो फव्वारे की तरह छूटा और अनु की बुर में भरने लगा! मैं अब भी धीरे-धीरे धक्के लगा रहा था ताकि जिस्म में जितना भी वीर्य है आज उसे अनु की बुर में भर दूँ और हुआ भी वैसा ही| मेरे वीर्य की एक-एक बूँद पहले तो अनु के बुर में भर गई और जो अंदर ना रह सकीय वो फिर रिसती हुई बाहर बहने लगीं| अब मुझ में बिलकुल ताक़त नहीं थी सो मैं अनु के ऊपर ही लुढ़क गया और अपनी साँसों को काबू करने लगा| इधर अनु ने अपने दोनों हाथ मेरी पथ पर चलाना शुरू कर दिया जैसे मुझे शाबाशी दे रही हो| मेरे चेहरे पर थकावट झलक रही थी तो वहीँ अनु के चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी|
कुछ देर बाद जब मैं सामान्य हुआ, मेरा लंड अब भी सिकुड़ा हुआ उसकी बुर में था और इसलिए मैंने अनु को ऊपर से हटना चाहा पर अनु ने अपने हाथों की पकड़ कस ली ताकि मैं उसके ऊपर से हिल ही ना पाऊँ| "कहाँ जा रहे हो आप?" अनु ने पुछा|
"कहीं नहीं बस साइड में लेट रहा था|" मैंने कहा|
"नहीं....ऐसे ही रहो....वरना मुझे सर्दी लग जायेगी!" अनु ने भोलेपन से कहा| उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और ऐसे ही लेटा रहा| घडी में सुबह के 2 बजने को आये थे और हम दोनों की आँखें ही बंद थीं| हम दोनों आज अपना सब कुछ एक दूसरे को दे चुके थे और सुकून से सो रहे थे! सुबह पाँच बजे अनु की आँख खुल गई और उसने मेरी गर्दन पर अपनी गुड मॉर्निंग वाली बाईट दी! उसके ऐसा करने से मैं जाग गया; "ममम...क्या हुआ?" मैंने कुनमुनाते हुए कहा|
"आप हटो मुझे नीचे जाना है!" अनु ने कहा| पर मैंने अनु को और कस कर अपने से चिपका लिया और कुनमुनाते हुए ना कहा| "डार्लिंग! आज मेरी पहली रसोई है, प्लीज जाने दो!" अनु ने विनती करते हुए कहा|
"अभी सुबह के पाँच बजे हैं, इतनी सुबह क्या रसोई बनाओगे?" मैंने बिना आँख खोले कहा|
"भाभी ने कहा था की पाँच बजे वो आएँगी...देखो वो आने वाली होंगी!" अनु ने फिर से विनती की, पर मैं कुछ कहता उससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हो गई| मैं फ़ौरन उठ बैठा और अनु को कंबल दिया ताकि वो खुद को ढक ले और मैंने फ़ौरन पजामा पहना और दरवाजा खोला| ऊपर मैंने कुछ नहीं पहना था और जैसे ही ठंडी हवा का झोंका मेरी छाती पर पड़ा मैं काँप गया और अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की कोशिश करने लगा| इधर भाभी मुझे ऐसे कांपते हुए देख हँस पड़ी और कमरे में दाखिल हो गईं और मैंने फ़ौरन एक शॉल लपेट ली| "तुम दोनों का हो गया की अभी बाकी है?" भाभी हम दोनों को छेड़ते हुए बोलीं| अनु तो शर्म के मारे कंबल में घुस गई और मैं शर्म से लाल होगया पर फिर भी भाभी की मस्ती का जवाब देते हुए बोला; "कहाँ हो गया? अभी तो शुरू हुआ था....हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" भाभी ने एकदम से मेरा कान पकड़ लिया; "अच्छा? मैं गलत टाइम पर आती हूँ? पूरी रात दोनों क्या साँप-सीढ़ी खेल रहे थे?" भाभी हँसते हुए बोली| इतने में अनु कंबल के अंदर से बोली; "भाभी आप चलो मैं बस अभी आई!"
"ये कौन बोला?" भाभी ने अनु की तरफ देखते हुए जानबूझ कर बोला| अनु चूँकि कंबल के अंदर मुँह घुसाए हुए थी इसलिए वो भाभी को नहीं देख सकती थी|
भाभी हँसती हुईं नीचे चली गईं, मैंने दरवाजा फिर से बंद किया और अनु के साथ कंबल में घुस गया| इधर अनु उठने को हुई तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया| "कहाँ जा रहे हो? मुझे ठण्ड लग रही है!" मैंने बात बनाते हुए कहा|
"तो ये कंबल ओढो, मैं नीचे जा रही हूँ!" अनु ने फिर उठना चाहा|
"यार ये सही है? रात को जब आपको ठंड लग रही थी तब तो मैं आपके साथ लेटा हुआ था और अभी जो मुझे ठंड लग रही है तो आप उठ के जा रहे हो!" मैंने अनु से प्यार भरी शिकायत की जिसे सुन कर अनु को मुझ पर प्यार आने लगा| वो फिर से मेरे पास लेट गई और मुझे कास कर अपने सीने से लगा लियाऔर बोली; "आपको पता है, मैंने कभी सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी की मुझे आप मिलोगे और इतना प्यार करोगे! अब मुझे बस जिंदगी से आखरी चीज़ चाहिए!" ये कहते हुए अनु खामोश हो गई| उस चीज़ की कल्पना मात्र से ही अनु का दिल जोरों से धड़कने लगा था और मैं उसकी धड़कन साफ़ सुन पा रहा था| पता नहीं क्यों पर अनु की ये धड़कन मुझे अच्छी लग रही थी, अनु ने धीरे से खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया पर इस हलचल से मैं उठ कर बैठ गया| अनु ने कंबल हटाया और रात से ले कर अभी तक पहली बार अपनी नीचे की हालत देखि और हैरान रह गई| चादर पर एक लाल रंग का घेरा बन चूका था और उसके ऊपर हम दोनों के 'काम' रस का घोल पड़ा था जो गद्दा सोंख चूका था! अनु ये देख कर शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया| मैंने अनु को एक हैंड टॉवल उठा कर दिया ताकि वो अपनी नीचे की हालत कुछ साफ़ कर ले और मैं दूसरी तरफ मुँह कर के बैठ गया ताकि उसे शर्म ना आये| "आप को उधर मुँह कर के बैठने की कोई जर्रूरत नहीं है!" अनु मुस्कुराते हुए बोली और खुद को साफ़ करने लगी| मैं भी मुस्कुराने लगा पर अनु की तरफ देखा नहीं, मैं उठ कर खड़ा हुआ और अलमारी से अपने लिए कपडे निकालने लगा| इधर अनु ने भी अपने कपडे निकाले और ऊपर एक निघ्त्य डाल कर नीचे नहाने चली गई| घर में आज सिर्फ औरतें ही मौजूद थीं, बाकी सारे मर्द आज बाहर पड़ोसियों के यहाँ सोये थे, रितिका वाले कमरे में भी कोई नहीं सोया था| नीचे सब का नहाना-धोना चल रहा था और मैं नीचे नहीं जा सकता था|
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01-02-2020, 07:25 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
कुछ देर बाद भाभी नेहा को ले कर ऊपर आ गईं| मैंने भाभी को सख्त हिदायत दी थी की वो नेहा को अपने साथ रखें क्योंकि मुझे रितिका पर जरा भी भरोसा नहीं था| अपनी खुंदक निकालने के लिए वो नेहा को कुछ भी कर सकती थी| भाभी जब नेहा को ऊपर ले कर आईं तो वो रो रही थी; "संभाल अपनी गुड़िया को सुबह से केँ-केँ लगा रखी है इसने!" भाभी नेहा को मेरी गोद में देते हुए बोली| मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे अपने सीने से लगाया| नेहा ने ने एकदम से रोना बंद कर दिया, ये देख कर भाभी हैरान हो गईं और मुस्कुराते हुए चली गईं| इधर मैं नेहा को गोद में लिए कमरे में घूमने लगा, फिर मेरा मन किया की मैं नेहा के साथ खेलती०खेलते अनु को छेड़ूँ| अब नीचे तो जा नहीं सकता था इसलिए मैंने एक आईडिया निकाला| मैंने नेहा को ऐसे पकड़ा की उसका मुँह मेरी तरफ था और गाना गाने लगा;
साथ छोड़ूँगा ना तेरे पीछे आऊँगा
छीन लूँगा या खुदा से माँग लाउँगा
तेरे नाल तक़दीरां लिखवाउंगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
सोंह तेरी मैं क़सम यही खाऊँगा
कित्ते वादेया नू मैं निभाऊँगा
तुझे हर वारी अपना बनाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा
मैं तेरा बन जाऊँगा"
मेरी आवाज इतनी ऊँची थी की नीचे सब औरतें ये गाना सुन पा रही थीं और भाभी ने अनु को मेरे बदले छेड़ना शुरू कर दिया| अनु का शर्म से बुरा हाल था, उसके गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, वो उठी और जा कर माँ के पास बैठ गई और उनके कंधे में अपना मुँह रख कर छुपा लिया| माँ भी हँसने लगी और वहाँ जो भी कोई था वो मेरा पागलपन सुन हँसने लगा|
"तेरे लिए मैं जहाँ से टकराऊँगा
सब कुछ खोके तुझको ही पाउँगा
दिल बन के दिल धडकाऊँगा"
मैं ऊपर गाना जाता जा रहा था और नेहा की नाक से अपनी नाक रगड़ रहा था| नेहा भी बहुत खुश थी और हँस रही थी, अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरी बड़ी नाक पकड़ने की कोशिश कर रही थी| जैसे ही मैंने गाना बंद किया माँ नीचे बोलीं; "ओ दिल वाले....नीचे आ तेरा दिल मैं धड़काऊँ!" माँ की आवाज सुन मैं फ़ौरन नीचे आया, माँ के पैर छुए और उन्होंने मेरे कान पकड़ लिए| "बहु को छेड़ता है? रुक तुझे में सीधा करती हूँ!" ये कहते हुए माँ ने मेरे गाल पर एक प्यार भरी चुटकी खींची और मैं हँसने लगा!
"देखत हो कितना बेसरम है ई लड़कवा! तोहार बहु तो सब के पैर छू कर आशीर्वाद ले लिहिस है और ये अभी तक केहू का नमस्ते तक ना किहिस है!" मौसी बोली| मैंने फिर एक-एक कर सबके पैर छुए और वापस ऊपर आ कर नेहा के साथ खेलने लगा| जब सब का नहाना हो गया तब मैं नहाने घुसा| गाना गुनगुनाते हुए मैं नहाया और कुरता-पजामा पहन कर तैयार हुआ| नेहा को भी मैंने ही नहलाया पर ये सब किसी को पसंद नहीं आया और उन्होंने मुझे टोका; "ओ मानु तू काहे इस सब कर रहा है?" मौसी बोलीं और उन्होंने रितिका को डाँट लगाते हुए कहा; "तू का हुआन खड़ी-खड़ी देखत है, ई काम खुद ना कर सकत है?"
"क्यों मौसी मैं क्यों नहीं कर सकता? आदमी हूँ इसलिए?" मैंने उनकी तरफ घूमते हुए कहा|
"इस घर में सबसे ज्यादा मानु प्यार करता है नेहा से! उसके इलावा वो किसी से नहीं सम्भलती!" ताई जी बोलीं|
"दीदी ईका (मेरा) बच्ची से इतनी माया बढ़ाना ठीक नाहीं!" मौसी बोलीं|
"क्यों? एक बिन बाप की बच्ची को अगर बाप का प्यार मानु से मिलता है तो क्या बुरा है?" ताई जी बोलीं और उन्होंने आगे मौसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया| पर ताई जी के ये बात मेरे दिल को लग गई! नेहा मेरी बेटी थी और सब इस सच से अनविज्ञ थे और यही सोचते थे की मेरा उससे मोह एक तरह की दया है! मैं नेहा को ले कर चुपचाप ऊपर आ गया और उसे कपडे पहनाने लगा| जहाँ कुछ देर पहले मेरे दिल में इतनी खुशियाँ थी वहीँ मौसी की बात सुन कर मेरे दिल में दर्द पैदा हो चूका था| नेहा को कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से लगा कर कमरे की खिड़की के सामने बैठ गया और नेहा की पीठ सहलाने लगा| कुछ देर में नेहा सो गई और मैं सोच में डूब गया| मुझे कुछ न कुछ कर के नेहा को अपनाना था, उसे अपना नाम देना था!
अनु समझ गई थी की मुझे कितना बुरा लगा है और कुछ देर बाद वो ऊपर आ गई और मुझे गुम-शूम खिड़की की तरफ मुँह कर के बैठा देख उसे भी बुरा लगा| वो मेरे पीछे खड़ी हो गई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "We’ll figure out a way!” मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर दिमाग मेरा अब भी रास्ता ढूँढने में लगा था| पर अनु मुझे हँसाना-बुलाना जानती थी; "Now cheer up! मुझे नीचे रसोई के लिए बुलाया है और मुझे बहुत डर लग रहा है!" ये एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "चलो आज हम दोनों खाना बनाते हैं!" ये बात भाभी ने बाहर से सुन ली और बोलीं; "खाना तो बहुरानी ही बनाएगी, तुम जा कर मर्दों में बैठो!" भाभी की बात सुन हम दोनों मुस्कुरा दिए| अनु इधर खाना बनाने में लगी और मैं बाहर निकल के पिताजी के पास बैठ गया| कुछ देर बाद सबको खाना खाने के लिए बुलाया गया, खाने में अनु ने लौकी के कोफ्ते और गोभी के सब्जी बनाई थी, साथ में रायता और गरमा-गर्म रोटियॉँ| घर के सारे लोग एक साथ बैठ गए सिर्फ भाभी, अनु और रितिका रह गए थे| अनु ने आज एक गहरे नीले रंग की साडी पहनी थी और सर पर थोड़ा घूंघट कर रखा था| ताऊ जी ने जैसे ही पहला कौर खाया उन्होंने फ़ौरन अपनी जेब में हाथ डाला और फ़ौरन कुछ पैसे निकाले| अनु को अपने पास बुलाया और उसे 5001/- देते हुए बोले; "बहु ये ले, आज तेरे हाथ की पहली रसोई थी और माँ अन्नपूर्णा का हाथ है तुझ पर, मैंने इतना स्वाद खाना कभी नहीं खाया!" उनके बाद पिताजी ने भी अनु को 5001/- दिए और बहुत आशीर्वाद भी दिया| मौसा जी ने भी अनु को 1001/- दिए, अब बारी आई ताई जी की, उन्होंने अनु को सोने के कंगन दिए और आशीर्वाद दिया| माँ का नंबर आया तो उन्होंने अनु को एक बाजूबंद दिया जो उन्हें उनकी माँ यानी मेरी नानी ने दिया था| अनु की आँखें इतना प्यार पा कर नम हो गईं थी| तब माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और उसके मस्तक को चूमते हुए बोली; "बेटी बस...रोना नहीं!" भाभी ने माहौल को हल्का करने के लिए बात शुरू की; "पिताजी आपको पता है मानु भैया कह रहे थे की वो भी रसोई में मदद करेंगे!" ये सुन कर सारे हँस पड़े और अनु भी मुस्कुरा दी|
"कल तू सब के लिए खाना बनायेगा!" ताऊ जी ने मुझसे कहा पर तभी भाभी बोलीं; "पर कल तू बहु चली जाएगी?!" ये सुनते ही मैं खाते हुए रुक गया और हैरानी से भाभी को देखने लगा| मेरी ये हरकत सबने देखि और भाभी को मेरी टांग खींचने का फिर मौका मिल गया| " क्या? शादी के अगले दिन बहु अपने घर जाती है!" भाभी ने मुझे रस्म याद दिलाई| पर बेटे के दिल का दर्द सिर्फ माँ ही समझती है; "बेटा बहु कुछ दिन बाद वापस आ जाएगी|" माँ की बात सुन कर मुझे तसल्ली नहीं हुई क्योंकि उन्होंने ये नहीं बताया था की ये कुछ दिन कितने होते हैं? खाना खाने के बाद सबसे बातें होने लगीं इसलिए हम दोनों को अकेले में बात करने का समय नहीं मिला| शाम को भी लोगों का आना-जाना लगा रहा और इसी बीच संकेत भी मिलने आया| वो मेरी शादी में नहीं आ पाया था क्योंकि कुछ emergency कारणों से उसे बाहर जाना पड़ा था और उसकी गैरहाजरी में उसका परिवार जर्रूर आया था| मैंने उसका इंट्रो अनु से करवाया तो उसने हाथ जोड़ कर अनु से नमस्ते कहा और फिर अपने ना आ पाने की माफ़ी भी माँगी|
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01-02-2020, 07:27 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
रात को खाना अनु ने ही बनाया और खाने के बाद भाभी ने उसे जानबूझ कर उसे अपने साथ बिठा लिया| इधर चन्दर भैया मुझे अपने साथ खींच कर छत पर ले आये जहाँ मेरे बाकी कजिन बैठे थे और वहाँ बातें शुरू हो गईं| भाभी वाले कमरे में मेरे मौसा जी के दो लड़कों की पत्नियाँ बैठी थीं और उन्हीं के साथ रितिका भी बैठी थी| भाभी जबरदस्ती अनु को पकड़ कर वहीँ ले आई| अब रितिका उठ कर भी नहीं जा सकती इसलिए नजरे झुका कर बैठी रही| "तो अनुराधा जी! बताइये पहली रात कैसी गुजरी? कहीं देवर जी ने आपको तंग तो नहीं किया?" भाभी ने कहा और सारे हँसने लगे| पहले तो अनु ने सोचा की बात हँस कर ताल दे फिर उसे रितिका की शक्ल दिखी और उसने सोचा की क्यों न हिसाब बराबर किया जाए| अनु ने अपना हाथ भाभी के कंधे पर रखा और अपना सर उसी हाथ पर रखते हुए बोली; "हाय भाभी! आपके देवर जी ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! निचोड़ कर रख दिया था मुझे!" अनु की बात सुन सारे शर्मा गए और भाभी अनु को प्यार से डांटते हुए बोली; "चुप बेशर्म!" उनका इशारा रितिका की तरफ था की उसके सामने अनु ये क्या कह रही है| "अरे तो इसमें क्या शर्म की बात? इसने भी तो कभी न कभी किया होगा!" अनु ने बात घुमा के कही पर वो सीधा रितिका को जा कर लगी| अनु का तातपर्य था की उसने भी तो मेरे (मानु के) साथ सेक्स किया है| रितिका को अचानक ही वो रंगीन दिन याद आ गए और उसके दिल के साथ-साथ नीचे वाले छेद में भी हलचल मच गई| "पर भाभी एक बात तो है, 'वो' आपकी हर बात मानते हैं!" अनु बोली|
"क्या मतलब?" भाभी बोली|
"कल रात आप ने कहा था ना की मेरी देवरानी का ख्याल रखना, तो उन्होंने रात भर बड़ा ख्याल रखा मेरा!" अनु बोली और फिर शर्मा गई| ये सुन कर रितिका अंदर ही अंदर जल-भून कर राख हो गई और सर झुकाये बैठी रही|
"हाँ-हाँ वो सब मैंने आज तुम-दोनों का बिस्तर देख कर समझ गई थी! वैसे सच-सच बता तूने कल रात से पहले कभी......?" भाभी ने बात अधूरी छोड़ दी पर अनु उनकी बात का मतलब समझ गई|
"नहीं भाभी....कल रात पहली बार था.....इसीलिए तो इतनी घबराई हुई थी| पर सच्ची 'उन्होंने' मेरा बड़ा ख्याल रखा और बड़े प्यार से....." अनु ने भी शर्माते हुए कहा और बात अधूरी छोड़ दी|
"पर इस मुई ने सबको बता दिया!" भाभी ने मौसा जी की सबसे छोटी बहु की तरफ इशारा करते हुए कहा| अब ये सुन कर तो अनु के कान लाल हो गए; "सबको?" अनु ने पुछा|
"अरे बुद्धू सबको मतलब माँ, चाची जी और मौसी जी को| हम तीनों ने तो साक्षात् रंगोली देखि थी!" भाभी ने अनु को चिढ़ाते हुए कहा| मतलब की घर की सब औरतों को चल गया था की अनु कुँवारी थी पर ताई जी और माँ के डर के मारे मौसी जी ने उससे कुछ नहीं पुछा था| वरना शादी होने के बाद भी अनु का कुंवारा होना मौसी जी के लिए अजीब बात थी! ये बात जिस शक़्स को बहुत जोर से लगी थी वो थी रितिका! कहाँ तो वो सोच रही थी की वो मानु को ताना देगी की उसे अनु के रूप में एक used माल मिला और कहाँ अनु एकदम कोरी निकली|
आखिर सब की बातें खत्म हुई और अनु ऊपर आई और मैं भी अभी कमरे के बाहर पहुँचा था की भाभी मुझे वहीँ मिल गई|
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01-02-2020, 07:28 PM,
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kw8890
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RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
"हो गई आपकी बातें? साड़ी बातें आप ही कर लो! मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" मैंने भाभी से शिकायत करते हुए कहा| ये सुन कर मेरी बाकी दो भाभियाँ भी हँसने लगीं अब तो अनु भी आ कर मेरे पीछे खड़ी हो गई थी; "वैसे भाभी वो कल रात वाले दूध में क्या डाला था?" मैंने कहा और सारे हँसने लगे|
"उसका असर तो अनुराधा ने बता दिया हमें और वो तुम्हारी रंगोली भी देखि थी हमने!" मेरी छोटी भाभी बोली और ये सुन कर अनु मेरे पीछे अपना सर छुपा कर मुस्कुराने लगी|
"भाभी वो दूध आज भी मिलेगा!" मैंने कहा और साड़ी औरतों ने मुझे प्यार भरे मुक्के मारने चालु कर दिए|
"दीदी सच्ची बेशर्म हो गया है ये तो!" बड़ी वाली भाभी बोलीं| भाभी दोनों को ले कर नीचे आ गईं, इधर मैं और अनु अंदर आ गए|
"तो पहले ये बताओ की कब वापस आओगे?" मैंने सीधा ही सवाल दागा|
"शायद एक हफ्ता!" अनु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया|
"एक हफ्ता क्या करोगे वहाँ?" मैंने बेसब्री से पुछा|
"नाते-रिश्तेदारों से मिलना होता है और...." अनु अभी कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसकी कमर में हाथ डाल आकर उसे अपने पास खींच लिया और उसके होठों को चूम कर कहा; "दो दिन....बस इससे ज्यादा wait नहीं करूँगा!"
"क्या करोगे अगर मैं दो दिन बाद नहीं आई तो?" अनु अपनी ऊँगली को मेरे होठों पर रखते हुए बोली|
"फिर मैं आऊँगा अपनी दुल्हनिया को लेने!" मैंने कहा और अनु को गोद में उठा लिया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया| मैं जानता था वो आज बहुत थकी हुई होगी इसलिए आज मैं बस उसे अपने से चिपका कर सोना चाहता था| मैं भी अनु की बगल में लेट गया, अनु ने मेरे बाएँ हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे चिपक कर लेट गई| मैं अनु के सर को चूमता हुआ उसके बालों में उँगलियाँ फेरता रहा और कुछ देर बाद दोनों सो गए|
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