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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
विमल के साथ जिंदगी तो उसने गुजारनी है ...तो क्या उसे खुद नही विमल से बात करनी चाहिए ...उसके अतीत के बारे में उससे सुनना चाहिए और अपने अतीत को खुद उसके सामने रखना चाहिए ....ताकि आगे आनेवाली जिंदगी में अतीत की कभी परछाई भी ना पड़े ....और दोनो में एक विश्वास का बंधन हो...जो कि हर दंपति की जिंदगी में होना चाहिए...क्यूंकी विश्वास ही आधार होता है एक खुश हाल जिंदगी का...नही तो जिंदगी बिखर के रह जाती है...
अपने मन में वो विमल से सवाल करने लगी ....बोलो ना विमल ..क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए वही तड़प बाकी रहेगी जिसे ले कर तुम कवि के पास गये थे मेरा हाथ माँगने...या फिर तुम मुझ से नफ़रत करोगे ..क्यूंकी मेरी जिंदगी में पहला जो लड़का आया था जिसने मुझे अच्छी तरहा दो साल तक भोगा था...वो कोई और नही मेरा बड़ा भाई था....बताओ ना विमल क्या तुम इस कड़वे सच को बर्दाश्त कर लोगे.....
विमल क्या तुम ये सुन पाओगे ..कि मैं सुनील से प्यार करती हूँ और शायद करती रहूंगी आखरी साँस तक.......पर उसके दिल में मेरे लिए सिर्फ़ एक बहन का प्यार है ...क्या ये सच मैं तुम्हें बता पाउन्गि...क्या मुझे ये सच तुम्हें बताना चाहिए .........
जब लड़की शादी के बंधन की तरफ अपने कदम बढ़ा देती है......तो हर पल उसके दिमाग़ में एक जंग छिड़ी रहती है....कुछ यही हाल रूबी का था.....
काबी उसके दिमाग़ में कोई ख़याल आता तो कभी कोई......
इस बात को अच्छी तरहा जानते हुए कि विजय और सुनील उसका कभी कोई बुरा नही होने देंगे ....वो अपनी अंदर चलती इस जंग को रोक नही पा रही थी........
रूबी ने पलट के देखा मिनी दूसरी तरफ मुँह कर के सो रही थी......दिल-ओ-दिमाग़ में चलती हुई जंग...रूबी की आँखों से नींद उड़ा चुकी थी......
वो धीरे से बिस्तर से उठी......अपने लिए एक कॉफी बनाई और धीरे धीरे सीप लेते हुए खिड़की पे आ कर खड़ी हो गयी......और दूर तक फैले समुद्र को देखने लगी....
कितना शांत था समुद्र आज .......और कभी कभी जब इसमें तूफान आता है तो ना जाने कितनी ज़िंदगियों को अपनी लपेट में लेके लेता है.......
ये समुद्र एक आईना ही तो होता है ...जो इंसान की जिंदगी का रूप दिखता है.....कभी वो कितनी शांत और सकुन से भरी होती है तो कभी ऐसे ऐसे जलजले आते हैं जो साथ जुड़ी कितनी ही ज़िंदगियों को तबाह कर देते हैं......
एक एक पल अपनी जिंदगी का रूबी की आँखों के सामने आने लगा ......पहले प्यार किया तो धोखा मिला...फिर प्यार किया तो नाकामयाब रहा.......और अब शादी...क्या वो विमल को वही प्यार दे पाएगी......जिस प्यार पे उसने सुनील का हक़ बना रखा है.......
सुनील.....देखो जा रही हूँ तुम्हारी जिंदगी से दूर....अब कभी तुम्हें मैं........(आँसू टपक पड़े रूबी की आँखों से) काश कि तुम मेरे प्यार को समझ पाते .....कोशिश करूँगी ....तुम्हारी चाहत को दिल के किसी कोने में दफ़न कर दूं....कोशिश करूँगी ..एक नयी जिंदगी विमल के साथ जीने की....पर ये आस हमेशा जिंदा रहेगी...कि वो वक़्त भी कभी आए...जब तुम्हें अहसास हो मेरे प्यार की गहराई का....
रुला के गया सपना मेरा
रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया सपना मेरा
वही हैं गमे दिल, वही हैं चंदा तारे
वही हम बेसहारे
वही हैं ग़मे दिल, वही हैं चंदा तारे
वही हम बेसहारे
आधी रत वही हैं, और हर बात वही हैं
फिर भी ना आया लुटेरा
रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया सपना मेरा
कैसी यह जिंदगी, के सांसो से हम उबे
के दिल डूबा, हम डूबे
कैसी यह जिंदगी, के सांसो से हम उबे
के दिल डूबा, हम डूबे
एक दुखिया बेचारी, इस जीवन से हारी
उस पर यह गम का अंधेरा
रुला के गया सपना मेरा
बैठी हू कब हो सवेरा
रुला के गया सपना मेरा.
कभी कभी सपने ऐसे होते हैं जो बस रुलाते ही रहते हैं....ऐसे ही सपनो की दुनिया में रूबी जी रही थी....और उन सपनो को अपने दिल की किसी पिटारी में बंद रखने का प्रयास कर रही थी.
रात धीरे धीरे सरक रही थी .....और सरक रहे थे उसके अरमान .....फिसल के एक कोने में दुबक रहे थे.......वो अपने आप को तयार कर रही थी ....आख़िर सुनील उससे ये सवाल ज़रूर पूछेगा...कि उसने ये फ़ैसला कैसे लिया...क्यूँ लिया....
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
उसने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था कि जिंदगी को एक मक़सद मिल जाएगा....
.जब सुनील को छोड़ के आई थी तो बहुत ही निराश और टूटी हुई थी ...
अब तक जिंदगी में जितने आदमियों से पाला पड़ा था वो जिस्म के भूखे थे एक सुनील ही उसे ऐसा मिला जिसने उसकी तरफ देखा तक नही....
यही वो वजह थी ..कि सुनील उसकी रग रग में बस गया था....उसकी ही नही उसकी बेटी की रग रग में भी ...
क्या ऐसा कभी होता है..के मा और बेटी एक ही इंसान को अपने दिल में बसा लें ....और वो इंसान उनकी तरफ देखे तक ना.....
जिंदगी का ये पहलू सवी की समझ से परे था ...क्यूंकी ये सब उसे एक अजूबा लगता था....मर्द तो औरत की चूत की तरफ भागता है ...यही उसने जाना और समझा था ...लेकिन सुनील ने उसकी सभी धारणाओं को फैल कर दिया था.....क्या सही मर्द ऐसा ही होता है.....अगर हां...तो उसके नसीब में ऐसा मर्द क्यूँ नही आया ....ये सोच सोच कर उसे सुमन से जलन होती थी....क्या नही मिला सुमन को.....पहले सागर और अब सुनील.....मैने ऐसे क्या पाप किए ...जो एक ही माँ की कोख से जनम लेने पर भी मेरी जिंदगी में काँटे और उसकी जिंदगी में फूल ही फूल.......
अपनी जिंदगी के पुराने पन्ने पलटते हुए वो उन दिनो में पहुँच गयी ....जब वो बॅंगलुर में रहते थे........कॉलेज के दिनो में उसे एक लड़के से प्यार हो गया था.....लेकिन उस लड़के के साथ कुछ ऐसा हुआ ....कि वो एक दिन उसे आ कर बोला ....कि मुझे भूल जाओ ......मेरी जिंदगी अब काँटों का गुलदस्ता बन चुकी है...और मैं कभी नही चाहूँगा कि तुम्हें उन कांटो की हल्की सी भी चुबन महसूस हो......इतना कह वो चला गया.....
दूर इतना दूर की पता ही ना चला वो कहाँ गया.....अपने इस प्यार को हमेशा सूमी से छुपा के ही रखा था.....
उसके बाद जिंदगी में कभी कोई पसंद ही नही आया ....और एक दिन ...समर से उसकी शादी हो गयी........और
यहीं से हुई शुरुआत उसके पतन की ....कहते हैं कि जिंदगी में इंसान चाहे अनचाहे जो पाप करता है ....उसकी सज़ा इसी जनम में मिल जाती है.......और यही तो हो रहा था उसके साथ ....जब पाप किए तो उनके फल तो भुगतने ही पड़ेंगे ....
वो फल कब किस रूप में भुगतने पड़े ...ये कोई नही जानता...क्यूंकी सब कुछ वक़्त के गर्भ में छुपा रहता है......
.जो धीरे धीरे अपनी चल चलता रहता है और इंसान को पता भी नही चलता ....कि वो वक़्त आ गया...
जब उसे अपने किए गये पापों का फल भोगना पड़ेगा.....
ये पाप ही तो था कि समर की बातों में आ कर ऐसा जाल बुना कि सुमन को स्वापिंग के लिए मजबूर होना पड़ा .....ये पाप ही तो था ...कि सुमन को ये बोला कि दूसरा बेटा मरा हुआ पैदा हुआ ताकि समर उसे अपनी बहन की झोली में डाल सके....
.एक दूध पीते बच्चे को उसकी असली माँ से जुदा करना ....संसार का सबसे बड़ा पाप होता है .....
और समर के साथ मिल ये पाप भी तो किया था......
एक ठंडी साँस भर वो सोचने लगी...इन्ही पापों की तो अब सज़ा मिल रही है......
.कहाँ सुमन के पास सब कुछ ...एक जान छिड़कनेवाला नया पति ....सुनील...
कहाँ मैं...नितांत अकेली...जिंदगी की लड़ाई अकेले लड़ते हुए ....
ये पाप ही तो थे जिनकी वजह से सुनील ने ठुकरा दिया .....वरना क्या वो अपना नही सकता था......बिल्कुल अपना सकता था...पर नही....उसके संस्कार...उसकी मर्यादा ....
कहते हैं कि पापों की सज़ा तो मिलती ही है पर प्रायश्चित करने का भी मौका मिलता है......
समझदार उस मोके को पहचान लेता है ...और जाहिल उस मोके को गवाँ देता है.....
सवी को भी वो मौका नज़र आने लगा.......लेकिन साथ साथ बहुत सी कठिनाइयाँ भी नज़र आने लगी .......
अगर वो इस मोके को दबोच लेती है ...तो दिल बहुत हल्का हो जाएगा.....मगर जो तुफ्फान कुछ लोगो की ज़िंदगियों में आएगा ....
वो .वो.....उनका क्या ...कैसे झेलेंगे वो इस तुफ्फान को.....
आज सवी को ये फ़ैसला लेना था ........ये रात बहुत भारी गुजरनेवाली थी सवी पर ........ये फ़ैसला लेना कोई आसान काम नही था........
अमर सो चुका था ...पर सवी की आँखों से नींद दूर थी......बिस्तर से उठ वो खिड़की पास आ खड़ी हो गयी और आसमान पे छाए चाँद को देखने लगी .....होंठों पे आपने आप लफ्ज़ आने लगे .....कितनी कोशिश करी कि सुनील को भूल जाए....पर ये हो ना सका.....आज भी सुनील उसकी नस नस में समाया हुआ था.....
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
यहाँ तो गम की सेज पर, हमारी आरज़ू
अकेली मुँह छुपाए रो रही है
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
साथी मैने पाके तुझे खोया, कैसा है यह अपना नसीब, ओह
तुझसे बिछड़ गयी मैं तो, यादें तेरी हैं मेरे करीब, ओह
तू मेरी वाफाओं में, तू मेरी सदाओं में
तू मेरी दुआओं में
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
कट ती नहीं हैं मेरी रातें, कट ते नहीं हैं मेरे दिन, ओह
मेरे सारे सपने अधूरे, ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन, ओह
ख्वाबों में, निगाहों में, प्यार की पनाहों में
आ छुपा ले बाहों में
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
यहाँ तो गम की सेज पर, हमारी आरज़ू
अकेली मुँह छुपाए रो रही है
चाँद को देखते हुए जिंदगी से गिला करते हुए ...ये रात भी गुजर गयी.
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जहाँ एक तरफ वो बहुत खुश थी कि रूबी की जिंदगी को एक माइना मिल जाएगा.....वहीं अपने बारे में सोच वो उदासी के बादलों में खो जाती थी....
यकीन ही नही होता था...के उसकी जिंदगी में ऐसे भी दौर आएँगे ...जब वो नितांत अकेली पड़ जाएगी.......
अपने साथ लेटी रूबी को देख ...
मिनी ने आज काफ़ी दिनो के बाद खुद के बारे में सोचना शुरू कर दिया......
जिंदगी के वो सुहाने पल एक एक कर उसकी नज़रों के सामने गुजरने लगे ...माँ बाप की लाडली ...
पूरे गाँव में सबसे ज़्यादा पड़ी लिखी ....
क्यूंकी उसकी माँ चाहती थी कि वो पढ़े लिखे अपने पैरों पे खड़ी होये.....
फार्मेसी का कोर्स करने उसे मुंबई के एक कॉलेज में डाल दिया गया ..
जिसके बिल्कुल साथ ही मेडिकल कॉलेज भी था.....
वहीं तो आया था वो लड़का ...जिसके माँ बाप यूके में थे और वो कॉलेज के एक्सचेंज प्रोग्राम
में कुछ महीनो के लिए मुंबई आया था इस कॉलेज में .......आज भी वो शाम मिनी नही भूल पाती थी..जब उसकी पहली मुलाकात हुई थी सुनेल से......
कितनी हँसीन बन गयी थी वो शाम जब वो अपनी सहेलियों के साथ पास ही के एक फेमस चाइनीस रेस्टोरेंट में गयी थी .
......अभी उनको बैठे हुए कुछ ही पल गुज़रे थे कि 4 लड़के खिलखिलाते हुए उसी रेस्टोरेंट में घुसे और बिल्कुल उनके सामने वाली टेबल पे बैठ गये.........
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनेल ने जब उसे देखा तो देखता रहा...रेस्टोरेंट का सारा स्टाफ मिनी को ललचाई नज़रों से घूर रहा था.....बारिश का ये हाल था कि दो घंटे और तो नही रुकने वाली थी....मिनी के दोनो कंधे नंगे थे ....सुनेल से ये बर्दाश्त नही हुआ कि कोई उसे भूखी नज़रों से देखे...उसने अपनी शर्ट उतार के मिनी को दी...पहन लो और खुद को ढक लो......
मिनी का तो वैसे भी चुभती नज़रों से बुरा हाल हो रहा था...नज़रों से ही सुनेल को धन्यवाद दे उसने शर्ट पहन ली ....शर्ट सुनेल के जिस्म की गर्मी से काफ़ी गरम थी और पहन कर मिनी को राहत भी मिली ....सकुचाते हुए वो सुनेल की टेबल पे उसके सामने बैठ गयी....
सुनेल ने पहले ही कड़क गरमा गरम कॉफी मंगवाली थी......एक कप मिनी को ऑफर कर खुद एक कप पीने लग गया....
आवाज़ें जो चारों तरफ थी वो तेज बारिश के गिरने की और पीछे खड़े रेस्टोरेंट के स्टाफ की फुसफुसाहट की ......
मिनी कॉफी के हल्के हल्के सीप ले कर खुद को तरोताजा महसूस करने लगी थी...एक दो बार कनखियों से उसने सुनेल को देखा ...जो बाहर खिड़की से टपकती हुई बारिश को देख रहा था.....कुछ पल जब उसने मिनी को तब देखा था जब वो भीगी हुई रेस्टोरेंट में घुसी थी और तब देखा जब वो बाथरूम से बाहर निकली थी...इसके बाद उसने अपनी नज़रें मिनी से फेर ली थी...
खिड़की से बाहर देखते हुए ही वो बोला ...'क्या ज़रूरत थी ...इतनी बारिश में भीगते हुए यहाँ आने की.....खैर तुम जानो तुम्हारी जिंदगी...'
मिनी की आँखों से आँसू टपक पड़े ....
'एक तो इतनी बारिश में रिस्क लिया ...कि मिल सकूँ..उपर से इतनी कड़वी बातें....खैर कोई बात नही .....जब तुम्हें मेरी कोई परवाह नही तो मैं ही क्यूँ करूँ.....' अपने आँसू पोछे ..मिनी ने सुनेल की शर्ट उतार वहीं टेबल पे रख दी...और भागती हुई अपने गीले कपड़े उठा बाथरूम में घुस्स गयी ..फटाफट अपने गीले कपड़े पहने ....टेबल पे पड़ा अपना पर्स उठाया और रेस्टोरेंट से बाहर ....क्यूंकी कॉलेज का हॉस्टिल कदमो के फ़ासले पे ही था...वो भागती हुई चली गयी.......और अपने कमरे में पहुँच ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.....
सुनेल जिसने अपना ध्यान खिड़की से बाहर ही रखा हुआ था...जब उसे बाहर मिनी बारिश में भागती हुई नज़र आई तब जा कर उसकी तंद्रा टूटी और उसे याद आया कि उसने क्या बोल दिया था....
ग्लानि महसूस करने लगा कि उसने मिनी का दिल दुखा दिया था....जब बारिश रुकी तो बोझिल कदमो से अपने हॉस्टिल की तरफ चला गया....
इस हादसे के बाद ना सुनेल उस रेस्टोरेंट में गया और ना ही मिनी......दोनो बस अपनी पढ़ाई में लगे रहे ....और उदासी ने उनको घेर लिया...दोनो जैसे हँसना भूल ही गये थे....वक़्त अपनी रफ़्तार से चलता रहा और एक महीना गुजर गया.....मिनी की सहेलियों ने कितना ज़ोर डाला पर नही ...उसने उनकी बात कभी नही मानी उस रेस्टोरेंट में जाने की ना ही कभी सुनेल ने अपने दोस्तो की...कहीं और चले जाते थे बस उस रेस्टोरेंट पे नही जाते थे..........सुनेल के दोस्त भी उसकी तड़प को महसूस करने लगे थे और मिनी की सहेलियाँ भी .......
एक महीना इसी तरहा गुजर गया...जब एक दिन सुनेल के दोस्तों ने मिनी की सहेलियों से बात करी और दोनो को मिलने का प्लान बनाया....जगह चुनी गयी जुहू बीच ....
मिनी की सहेलियाँ उसे ले कर वहाँ पहुँची और सुनेल के दोस्त उसे ले कर......
अब हाल यूँ हुआ कि एक तरफ से सुनेल और उसके दोस्त मटर गश्ती करते हुए आ रहे थे और एक तरफ से मिनी और उसकी सहेलियाँ...जैसा सबने सोचा था...हो गया आमना सामना....सुनेल के कदम वहीं रुक गये और मिनी के भी वहीं....नज़रें नज़रों से मिली और नज़रों से ही गीले शिकवे होने लगे.......
दोनो के दोस्त वहाँ से फुट लिए और छोड़ दिया दोनो को अकेला....
नज़रों का खिचाव आपस में बढ़ा और कदम एक दूसरे की तरफ बढ़ने लगे ....और इतने करीब आ गये ...कि साँसे एक दूसरे में घुलने लगी .....मिनी ने अपना सर सुनेल की छाती से टिका दिया और सुनेल की बाहों ने उसे समेट लिया.........दोनो शायद एक दूसरे के दिल की हालत बखूबी जानते थे इसीलिए तो किसी ने कोई गिला शिकवा नही किया........लव अट फर्स्ट साइट अपनी पहली मंज़िल पे पहुँच गया.....
और फिर शुरू हुआ मुलाक़ातों का सिलसिला ...एक दूसरे को पहचानने का सिलसिला.....सुनेल ने अपना इतिहास भी नही छुपाया और लंडन का जो महॉल था उसे अच्छी तरहा समझा उसका उसपे क्या असर पड़ा सब मिनी को बता दिया.....
जब ये सच मिनी के सामने आया तो कुछ दिन तो उसने सुनेल से बात भी ना करी......पर सुनेल के बार बार इसरार करने पे कि उसकी जिंदगी में अब मिनी के अलावा कोई और नही आएगा...मिनी ने उसपे यकीन कर लिया....
वक़्त इतनी तेज़ी से बीता कि दोनो को पता ही ना चला........और सुनेल के जाने का वक़्त आ गया ......लेकिन उसकी जिंदगी में जो तुफ्फान आनेवाला था...उससे वो अंजान था.....उसके बिखरने के दिन नज़दीक आ गये थे...एक सैलाब उसकी जिंदगी में आने वाला था ...जो उसके वजूद को ख़तम कर डालेगा.......
मिनी को जल्दी वापस आने का कह और रोज फोन पे बात करने का वादा दे कर ....सुनेल वापस लंडन चला गया...दिल में हज़ारों अरमान और हज़ारों उमंगे लिए हुए...उस वक़्त के इंतेज़ार में कि वो इंडिया वापस जाएगा और मिनी से शादी कर ले गा.
लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था........
अचानक घर वापस पहुँच वो अपने मोम डॅड को सर्प्राइज़ देना चाहता था...इसीलिए उसने अपनी फ्लाइट वगेरह और आने की दिन के बारे में कुछ नही बताया था....
एरपोर्ट से जब बाहर निकला तो लंडन की फ़िज़ाओं में भी उसे मिनी की महक महसूस हुई ....होती भी क्यूँ ना ...वो तो उसकी सांसो में बस चुकी थी ...दिल की हर धड़कन के साथ उसे अपने पास होने का अहसास दिलाती थी .....
उसने एक ओपन टॅक्सी ली और गुनगुनाते हुए अपने घर की तरफ निकल पड़ा....
शादी के लिए रज़ामंद कर ली,
रज़ामंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
शादी के लिए रज़ामंद कर ली,
रज़ामंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
हो उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
शादी के लिए रज़ामंद कर ली,
रज़ामंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
बन के भँवरा अब बाग मे,
बन के भँवरा अब बाग मे
कलियो के पिछे नही भगुगा मैं
शाम सवेरे बस आज से,
गलियो मे अब नही झकुँगा मैं
नैनो की खिड़की, नैनो की खिड़की
मैने बाद कर ली, हा मैने बाद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
हो उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
मेरी नज़रों ने हुश्न की,
मेरी नज़रों ने हुश्न की,
नाज़ुक बहारो को छु लिया
नाज़ है मुझको तक़दीर पर,
मैने सितारो को छु लिया
मैने तो क़िस्मत, मैने तो क़िस्मत
बुलंद कर ली, बुलंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
हो उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
उड़ती चिड़िया पिंजरे मे बंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली
आहा, शादी के लिए रज़ामंद कर ली,
रज़ामंद कर ली
मैने इक लड़की पसंद कर ली.
अपने ख़यालों में गुनगुनाते हुए सुनेल जब घर पहुँचा तो सारा सर्प्राइज़ धरा रह गया...घर में कोई नही था........उसने घड़ी में वक़्त देखा ....अभी इंडिया में शाम थी...मिनी को फोन कर अपने ठीक तक पहुँचने की खबर दी और इंतेज़ार करने लगा ....
फिर सोचा कि घर के बाहर कितनी देर खड़ा रहेगा...तो अपने दोस्त के घर चला गया.........बहुत वक़्त बाद दोनो मिले थे तो मस्टिगिरी चालू हो गयी और दोनो वहीं एक बार में चले गये....
सुकेश ....यार तुझे रीना बहुत मिस कर रही थी...रोज ही पूछती थी तेरे बारे में
सुनेल... वो...अवेलबल फॉर ऑल टाइप्स ...लेट हर गो टू हेल
सुकेश...कुछ बदल के आया है तू इंडिया से ...लगता है वहाँ भी पटा ली...
सुनेल...पटाइ नही यार पट गया...फ्लॅट हो गया..तबाह हो गया..जिंदगी का मतलब ही बदल गया
सुकेश सीटी बजाने लगा .......यानी हमारा कॅसनोवा हुस्न का गुलाम हो गया
सुनेल..अब जब तू अपनी भाभी से मिलेगा तब समझेगा ..कॉन सी कयामत मुझ पे गिरी...सच में बहुत ही अच्छी है...बिल्कुल वैसी जैसी मैं ढूंढता रहता था.
सुकेश.....भाभी!!!!! शादी कर के आया है कययय्याआआ
सुनेल...नही यार ...इस बार मोम डॅड को लेकर जाउन्गा ...बस कोर्स पूरा हो जाए अब दिन ही कितने बचे हैं....
सुकेश.....ओह हो तो बात यहाँ तक पहुँच चुकी है...अपना कॅसनोवा वाकई में गया काम से...क्या होगा लंडन की फुलझड़ियों का....कितनो के दिल तबाह हो जाएँगे
सुनेल...कम ऑन यू नो इट वाज़ नो स्ट्रिंग्स अटॅच्ड वित एनी वन...
यूँ ही बातें करते बियर पीते 4-5 घंटे कैसे निकले पता ही ना चला और फिर सुनेल ने घर का रुख़ किया....
सुनेल जब घर पहुँचा तो उसकी माँ ने लपक के उसे गले लगा लिया और गिला किया के बताया क्यूँ नही वो लेने आती एरपोर्ट पे...पर सुनेल को घर जी हवा में कुछ बदला सा लग रहा था...ये बदलाव क्या था ये वो पहचान नही पा रहा था....सुनेल अपने डॅड से मिल अपने रूम में चला गया...पर कुछ ऐसा था जो उसे जाना पहचाना नही लग रहा था..क्या था वो...ऐसा क्या है जो मैं पहचान नही पा रहा हूँ..ये घर मुझे वो घर क्यूँ नही लग रहा जहाँ मैने अपना सारा जीवन जिया है.....फिर अपनी ही सोच पे हंस पड़ा ....उफ्फ मिनी ..ये क्या कर डाला तुमने ...अपना घर भी अब अपना नही लग रहा तुम्हारे बिना...
अपना समान रख वो फ्रेश होने चला गया...बाथरूम में शवर के नीचे जब खड़ा हुआ तो एक एक पल जबसे वो आया उसकी नज़रों के सामने घूमने लगा.....वो बात जो उसे खल रही थी...वो समझ में आ गयी थी....वो था एक तनाव ...एक तनाव जो उसने अपने मोम डॅड के बीच महसूस किया था....आज तक कभी ऐसा नही हुआ था कि उसने अपने मोम डॅड के बीच कोई तनाव देखा हो...पर आज वाकई में एक तनाव था दोनो के बीच....और इसका कारण क्या हो सकता था...ये सोच में पड़ गया वो....वो सबसे ज़्यादा अपनी मोम से प्यार करता था और कभी उसे किसी तनाव में नही देख सकता था....
नहाने के बाद वो कपड़े बदल अपने बिस्तर पे बैठ गया ...और वजह सोचने लगा...क्या हुआ हो सकता है दोनो के बीच...उसे कुछ समझ नही आ रहा था.....
सुनेल की मोम और उसके डॅड के बीच पीछे काफ़ी दिनो से एक झगड़ा चल रहा था ....वो था ये कि सुनेल की माँ जो कि समर की बहन थी ...सुनेल को उसकी जिंदगी का सच बताना चाहती थी...पर उसके डॅड बिल्कुल भी नही मान रहे थे...असल में सारी जिंदगी जब से समर की बहन ने सुमन के जुड़वा बेटे को चोरी से लिया था..उसके दिल पे एक बोझ था..एक माँ से झूठ बोल उसके बच्चे को उससे जुदा करने का...हर पल वो खुद से लड़ती थी..अब उसकी नज़र में सुनेल बड़ा हो चुका था और सब समझ सकता था..भावुकता में आ कर इंसान से ग़लती हो जाती है..पर ये तो पाप था....वो चाहती थी कि सुनेल को उसके सच का पता चल जाए और वो अपनी असली माँ सुमन से मिल सके.....
पर शायद ये उसके नसीब में ना था कि वो खुद अपने और अपने भाई के कुकर्म अपने मुँह से सुनेल के सामने कबूल करे....होनी ने कुछ और ही सोच रखा था....
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07-20-2019, 09:31 PM,
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
अब रूबी को छोड़ सवी मिनी के पीछे नही जा सकती थी.......नही चाहती थी कि रूबी को अमर के अस्तित्व का पता चले.......किसी भी तरहा मिनी को वो चुप करा लेगी...
मिनी कमरे के अंदर चली गयी ......अमर खिड़की पे खड़े बाहर समुद्र को देखता हुआ पी रहा था अपने दर्द को ब्यान कर रहा था....
मिनी चलते हुए अमर के बिल्कुल पीछे पहुँच ....सुनेल
ये आवाज़ सुन अमर पलटा...सामने एक लड़की खड़ी थी....उसकी खाली नज़रें उस लड़की पे अटक गयी ....दिमाग़ में उस लड़की की फिगर घूमने लगी .......जिसका चेहरा वो नही देख पाता था...आज वो चेहरा उसके सामने था...पर फिर भी वो उसे पहचान नही पा रहा था......
मिनी....सुनेल..कहाँ चले गये थे तुम...लपक के वो अमर से लिपट गयी ....और फुट फुट के रोने लगी...
अमर जिसे कुछ याद नही था...वो एक तो मिनी को कुछ पहचाना सा जान रहा था...और उसके इस तरहा रोने और लिपटने से वो घबरा सा गया था....
मिनी एक दम उस से अलग हुई....एक ज़ोर का झटका लगा उसे ....सुनील/सुनेल...कहीं जुड़वा...ओह इसलिए वो...क्या सुमन को सुनेल के बारे में कुछ मालूम नही ...क्या सुनील भी नही जानता...ओह गॉड...ये ये....क्या खेल है....
पर ये मुझे पहचान क्यूँ नही रहा....
अमर...देखिए आप आप कॉन हैं...क्या आप मुझे जानती हैं.....?
मिनी...तुम तुम सुनेल हो ....हम मुंबई में मिले थे..एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे....फिर तुम यूके चले गये कुछ टाइम बाद अपने माँ बाप को साथ ला शादी की बात करने के लिए...लेकिन कुछ दिनो के अंदर ही तुम्हारे फोन आने बंद हो गये...मैं हर पल तुम्हारा इंतेज़ार करती रही...
अमर...सुनेल....कॉन सुनेल...मुझे कुछ भी याद नही ...ओह गॉड....(वो अपना सर पकड़ बैठ गया)
मिनी....तुम तुम सुनेल हो...याद है वो चाइनीस रेस्टोरेंट जहाँ हम पहली बार मिले थे....वो वो जुहू बीच पे हमारे दोस्त हमे ले गये थे....याद करो सुनेल...याद करो....
तभी ...पीछे से सवी की आवाज़ आई....बेटी ये सब भूल चुका है..आक्सिडेंट में इसकी याददाश्त चली गयी...पर तुम इसे कैसे जानती हो...तुम्हारी शादी तो रमण...
मिनी...रोती हुई सवी से लिपट गयी माँ ये सुनेल है...मेरा पहला और आखरी प्यार ....मैं तो सुनील को ही सुनेल समझ रही थी अब तक...
सवी...ओह! ये राज़ अभी राज़ ही रहने देना ..किसी को सुनेल के बारे में पता नही चलना चाहिए...जब तक रूबी की शादी नही हो जाती और इसकी यादाश्त वापस नही आ जाती...
मिनी...जो आप कहोगे वही करूँगी...पर मैं अब सुनेल को अकेले नही छोड़ूँगी.....मैं इनकी यादाश्त वापस ला के रहूंगी.....वापस ला के रहूंगी.....और मिनी फिर फुट फुट के रोने लगी...
सुनेल हैरान परेशान सा दोनो की बात सुन रहा था.
सवी......ठीक है तुम सुनेल के पास रहो...मैं रूबी के पास जा रही हूँ........
सुनेल के सर पे प्यार से हाथ फेर सवी कमरे से बाहर निकल गयी ....लेकिन उससे पहले एक साया वहाँ से भाग खड़ा हुआ...जिसके खुद के दिमाग़ में बॉम्ब फट रहे थे.........
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'न्न्न्,, नाआआअहहिईीईईईईईईईईईईईई म्म्म्म़मीईईररर्र्ररराआआआ ब्ब्ब्बााआआक्कककचहााआ!!!!!!!!!!!'
सुमन नींद में चिल्लाई.............और घबरा के उठ गयी.......
सुनील और सोनल जो उसके अगल बगल सोए पड़े थे फटा फट उठे और देखा सुमन घबराई हुई पसीने से लथपथ है....
सुनील...अरे जान क्या हुआ...सपना देख रही थी क्या...कुछ नही होगा हमारे बच्चे को...आने तो दो उसे....
सुमन.....वो वो......तुम्हारा जुड़वा था....वो नही बचा था.......
आज सुनील और सोनल के सामने ये धमाका हो गया......आज तक उन्हें नही पता था...कि सुनील का जुड़वा भी था ...जिसे सुमन को यही बताया गया था....कि वो मरा हुआ पैदा हुआ है....
सुनील...क्या मतलब !!!! मेरा जुड़वा.....?????
सुमन...हां तुम दो जुड़वा थे...तुम्हारा भाई मरा हुआ पैदा हुआ था...मैं तो वक़्त के साथ उसे भूल गयी थी...आज ना जाने क्यूँ......
सुनेल के दिल की धड़कन की आवाज़ सुमन तक पहुँच ही गयी........आख़िर माँ जो थी वो....
सुनील...किसने कहा था तुमसे वो मरा हुआ पैदा हुआ ......क्या पापा ने.....
सुमन ने हैरानी से सुनील की तरफ देखा...ना नही समर ने.....
सुनील....अपने माथे पे हाथ मारता हुआ.......वो जिंदा है सूमी....वो जिंदा है....इसमे ज़रूर समर की कोई चाल है....मैं उसे ढूँढ के रहूँगा...मेरा वादा है तुमसे.....काश ये बात तुमने तब बताई होती जब समर जिंदा था......खैर कोई बात नही...मैं उसे ढूँढ के तुम्हारी झोली में डाल दूँगा......
सुमन...नही सुनील..मुझे पाने के लिए उसने जो भी किया ...पर वो इतना नही गिर सकता था ...खैर छोड़ो...पता नही क्यूँ आज ये बात मुँह पे आ गयी...
तभी सुनील को एक झटका लग ता है...उसके दिमाग़ में एक सवाल उठता है...कॉन हूँ मैं?
कहते हैं जो जुड़वा होते हैं उनमें एक मानसिक बंधन होता है....
क्यूंकी सुनेल बहुत दूर रहा ..ये बंधन कभी ज़ोर नही पकड़ पाया......आज वो बहुत करीब था..इसलिए उसकी मानसिक तरंगे सुनील तक पहुँच रही थी.....
सुनील....नही वो जिंदा है...मैं उसे महसूस कर पा रहा हूँ...वो परेशानी में है...वो सवाल कर रहा है...कॉन हूँ मैं? ज़रूर उसके साथ कुछ बुरा हुआ है.....वो कहीं आसपास है...तभी आज उसकी मानसिक तरंगे मुझ तक पहुँच रही हैं....ऐसा सिर्फ़ जुड़वा के साथ होता है......
सुमन...तुम ना...मैं ही बेवकूफ़ हूँ..पता नही क्यूँ ये सब बक दिया और तुम्हें बिना वजह परेशान कर डाला....चलो सो जाओ..कल रूबी की सगाई है....
लेकिन नींद गायब हो चुकी थी तीनो की आँखों से...
उधर जब सवी रूबी के कमरे में पहुँची तो रूबी गायब थी.......
रूबी को गायब पा सवी घबरा जाती है..कि कहीं रूबी उसके पीछे तो नही आई थी...
थोड़ी देर में रूबी आ जाती है और सीधा इंटरकम पे विजय को फोन करती है...
रूबी ...अंकल आप और आंटी अभी आ सकते हैं क्या...
विजय...बेटे इस वक़्त...
रूबी...मेरी मम्मी आई हुई हैं मैं चाहती हूँ आप आज ही इनसे मिल लो...
विजय कुछ पल सोचता है.....ओके मैं आ रहा हूँ...
रूबी ...मम्मी ये राजेश जीजू के पापा हैं...विमल इनके दोस्त का बेटा है....
सवी रूबी को ही देख रही थी ..जो इस वक़्त अपनी नज़रें चुरा रही थी..उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था...
सवी की अंजानी आशंका से कांप उठी थी...
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