Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:57 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"हमारी कोई औलाद नहीं है सन्नी..." बाबा ने कहना शुरू किया और मेरा ध्यान उसकी तरफ गया




"20 साल की शादी में हम ने काफ़ी इंतेज़ार किया, लेकिन आज तक हमारी अपनी कोई औलाद नहीं हुई है.." बाबा की नम आँखें देख मैं भी थोड़ा भावुक हुआ, लेकिन ऐसे मौकों पे क्या कहते हैं, इस बात से अंजान, इसलिए बस खामोशी से उन्हे सुनता ही रहा




"आपने कभी डॉक्टर को नहीं बताया.." मैने कुछ देर बाद उन्हे जवाब दिया




"नहीं, क्यूँ कि ऋतु और मैं नहीं चाहते कि डॉक्टर की रिपोर्ट का असर हमारे रिश्ते पे पड़े, अगर रिपोर्ट में पता चला कि ऋतु में कमी है तो शायद मेरे दिल में उसके लिए प्यार कम हो, या अगर ऋतु को पता चला कि मेरी कमी है तो सेम वो भी महसूस करेगी.. इसलिए हम ने फ़ैसला किया था कि डॉक्टर से कभी नहीं चेक करवाएँगे.. मॅटर ऑफ हार्ट्स लड़के.." बाबा ने फाइनली मुस्कुरा के कहा




"मैं रोज़ शाम को हाजी अली जाता हूँ, बच्चा माँगने नहीं, लेकिन यह दुआ करने के जिन जिन के पास भी अपनी औलाद है, वो सब हमेशा खुश रहें और अपने अपने बच्चों का अच्छे से ध्यान रख सकें.. उस दिन भी मैं वोही करने गया था, तेरा ध्यान शायद नहीं था, लेकिन तू अंदर आते हुए भी मुझसे टकराया था और बाहर निकलते वक़्त भी मुझसे टकराया था.. दोनो बार मैने तुझे चिल्ला के पुकारा भी, लेकिन तू कहीं खुद में ही खोया हुआ था.. अंदर आके मैने जब देखा तो तू बस आँखें खोल के सामने की तरफ कुछ देखे जा रहा था, और अगले ही पल वहाँ से गायब.. पता नहीं क्यूँ तेरे गायब होने से मेरे दिल की उत्सुकता बढ़ी और मैं तुझे ढूँढने लगा.. ढूँढते ढूँढते जब मैं पीछे आया तब भी मैने देखा तू कहीं खोया हुआ था और बस डूबते सूरज की तरफ देख रहा था.. पहले तो सोचा पकड़ के तुझे उठा लूँ और पूछूँ देख के नहीं चल सकता क्या, लेकिन जैसे ही तू चाचा की आवाज़ से पलटा तेरी आँखों में कुछ था, दुख नहीं कहूँगा, लेकिन आँखों में एक अजीब सी पुकार थी, ऐसा लग रहा था मानो सबसे कटा हुआ है तू, हाला कि मैं उस बारे में इतना यकीन से नहीं कह सकता था उस वक़्त, लेकिन फिर मैने सोचा छोड़ देता हूँ तुझे, पहले ही तकलीफ़ में है.. फिर तेरी गाड़ी से जब आक्सिडेंट हुआ तब मुझे यकीन हुआ, कि अब तुझे देखना ही पड़ेगा.. जानता है, जब मैं भी 25 साल का था, मेरा कोई नहीं था, मैं भी यूँ भुजा भुजा सा रहता था, ऋतु का प्यार साथ था, लेकिन समाज के डर से हम कुछ कर नहीं पा रहे थे.. मुझे आज भी याद है, वो जुम्मा ही था जब मेरा हाथ थामने सलीम भाई आए थे.. सलीम भाई ने मुझे अपने साथ रखा, एक बेटे की तरह मेरा ध्यान रखा और ऋतु से शादी करवाई, आज मैं जो भी हूँ सिर्फ़ सलीम भाई की वजह से हूँ.. तेरी तरह मैं भी डूबते हुए सूरज को देखता था, कोई घर वाला नहीं, किसी का साथ नहीं, सुबह को उठो, रात को सो जाओ, पूरे दिन बस यहाँ से वहाँ और कुछ नहीं.. सलीम भाई ने मुझे जीने का मकसद दिया, ऋतु के प्यार ने मुझे हिम्मत दी, और उस हिम्मत की वजह से मैं आज यहाँ खड़ा हूँ.. मेरे काम तुझे ग़लत लग सकते हैं, लेकिन मेरा एक उसूल है, मैं कभी किसी बंदे के साथ ग़लत नहीं करता.. सलीम भाई से हमेशा मुझे यह सीख मिली है, तुम अच्छा करोगे तो तुम्हारे साथ अच्छा होगा, और तुम्हारे साथ बुरा हुआ है, तो उसे भूल के आगे बढ़ो, दुनिया में नफ़रत बहुत भरी हुई है, प्यार की ज़रूरत है दुनिया को, किसी का दुख नहीं बाँट सकते तो कम से कम उसका सुख मत छीनो.. 25 साल और यह बात मैं आज तक नहीं भुला.. मैं जानता हूँ कि शायद मैं तेरे लिए इतनी मायने नहीं रखूँगा कभी भी, पर मैने जो भी किया है, जो भी कर रहा हूँ वो इसलिए ताकि तू अपने दुख बाँट सके और हँसना सीखे.." बाबा ने अपनी सिगरेट फूँकते हुए कहा और अपनी नज़रें समंदर की लहरों पे जमाए रखी




"पर मुझे यह सब बेट्टिंग सिखाने का क्या फ़ायदा, और वो 1 करोड़ वाली बात.." मैने उत्सुकता से पूछा, और बाबा के एमोशन्स पे ज़रा भी ध्यान नहीं दिया




"बेट्टिंग तो एक बहाना है, मैं तुझे ज़िंदगी के उसूल सिखाना चाहता हूँ... बेट्टिंग में हम रोज़ जीतेंगे, रोज़ हारेंगे, लेकिन हम रुकते कभी नहीं हैं, इस उम्मीद में कि आज नहीं तो कल जीत हमारी ही है.. ज़िंदगी भी ऐसी ही है लड़के, रोज़ हार, रोज़ जीत, लेकिन हम रोज़ उठते हैं और भागते हैं इस उम्मीद में कि जीत बस आज चाहिए ही.. और रही 1 करोड़ की बात, ऋतु एक डॉक्टर है, और मैं ... पर शादी से लेके आने वाले 10 साल तक हम ने पैसे जोड़े हमारे आने वाले बच्चे के लिए कि हम उसको यहाँ पढ़ाएँगे, यह करेंगे, वो करेंगे, और उसे अच्छी तरह ज़िंदगी जीना सिखाएँगे.. लेकिन किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था.. ऋतु ने जब पहली बार मुझे तेरे साथ देखा तेरे जाने के बाद मैने उसे सब बातें बताई, तो उसी ने कहा के यह पैसे वैसे भी अब किसी काम के नहीं, मैं तुझे ज़िंदगी के मायने सिखाऊ, अगर तू बदल गया और जीने लगा, तो हमें ऐसा लगेगा कि पैसे कभी ज़ाया नहीं गये.." बाबा आज बहुत भावुक हो रहा था.. मैने उसकी बात का उस वक़्त कोई जवाब नहीं दिया, और बस खामोश खड़े रहे




"पहले तो यकीन नहीं हो रहा था बाबा की बातों पे, आइ मीन हां उनको कोई सलीम भाई ज़रूर मिले होंगे, लेकिन मेरे साथ यह सब, क्या इसकी कोई वजह है.. या यह बस ऐसे ही लाइन्स ठोक रहा था, घर आके मैने काफ़ी सोचा इस बारे में लेकिन कुछ जवाब नहीं मिला, मोबाइल पे मेसेज देखे तो काफ़ी मेसेज थे, कोर्स के, पेपर्स के, तब जाके याद आया के कल से एग्ज़ॅम्स हैं.. रात के 9 बजे काफ़ी दिनो बाद मम्मी पापा के साथ अच्छा सा डिन्नर किया, अच्छा मतलब अच्छा नहीं, अच्छा मतलब उन्होने झगड़ा नहीं किया आज कोई बात पे.. शांति से ख़ाके अपने रूम में आया ही था कि पंकज का फोन आया.. पहले तो दिल किया कि फोन नहीं उठाऊ, फिर सोचा देखूं क्या बोलता है




"हां भाई, बोलो.." मैने ग़मे टीवी पे कनेक्ट करके कहा




"कल से एग्ज़ॅम्स हैं, और तू आज गायब है, क्या हुआ है, कितने दिनो से कॉलेज भी नहीं आया.."




"इतने दिनो में तूने भी कहाँ फोन किया, खैर छोड़, मैं गेम खेल रहा हूँ, तू बता, क्या चल रहा है" मैने न्यू गेम ऑन की




"गेम.. पागल है, कल का पढ़ना नहीं है, और तेरे लिए एक न्यूज़ है.." पंकज ने खुशी से कहा




"पढ़ुंगा सुबह तक, रात के 2 से, अभी गेम खेलूँगा तो दिल खुश होगा, और खुशी की क्या बात है.."




"पेपर कल का लीक हुआ है, कॅंटीन वाला है ना, उसके पास है, चल लेके आते हैं, तू अच्छे नंबर से पास हो जाएगा.."




पेपर मेरे नाम से लेगा और भोसड़ी के खुद आइयीरॉक्स करवा के पास हो जाएगा, और खर्चा अपने बाप से करवाएगा.. साला मेरे पैसे क्या मुफ़त के हैं..




"भाई, जवाब दे, कहाँ मिल रहा है.." पंकज ने फिर कहा




"कहीं नहीं, चूतिया मत बना पंकज, पेपर के पैसे मुझसे निकलवाएगा और खुद आइयीरॉक्स ले लेगा.." मैने आज जवाब देने की सोची, शायद बाबा की बातों का असर था, कब तक साला दुखी रहूँगा, शुरुआत दोस्तों से करूँगा, मोम डॅड तक एंड में पहुँचुँगा..




"भाई क्या बोल रहा है, मैं तो तेरे लिए"




"चूतिया मत काट मेरा पंकज, तू अच्छे से जानता है जो मैने कहा सही कहा.. इतने दिन बेन्चोद ना फोन ना मेसेज, अजय का तो जानता ही हूँ, पर तू भी ऐसा करेगा क्या, और मेरे लिए इतनी चिंता है ना तो पेपर लेके भेज दे, आज तक इतना खर्चा किया तुम लोगों पे, तुम्हारी गर्ल फ्रेंड्स को मेरी गाड़ी में उतार चुके हो, आज पेपर ला दे , साबित कर तू खुद को मैं भी देखता हूँ.." दिल आज रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था..




"ठीक है भाई, तू रात को सोना नहीं, मैं कभी भी कॉल करके पेपर दूँगा तुझे, देख लेना.." पंकज ने कहके फोन कट किया




"हट बेन्चोद, बहुत बड़ा दोस्त है, सोता तो मैं वैसे भी नहीं, देखता हूँ कब कॉल करेगा.." मैने खुद से कहा और गेम खेलने लगा.. रात के 2 बजे से लेके सुबह 7 तक जितना हुआ पढ़ाई की, वैसे मार्क्स कभी मेरा टारगेट नहीं रहे, 50 % वाला चूतिया नहीं होता, और 90% वाले होशयार नहीं होते, यह मेरा मानना था..




"भाई, तूने कल फोन नहीं किया रात को.." मैने पंकज को कहा जो क्लास में बैठ के नोट्स देख रहा था




"भाई आज करूँगा,कल ग़लत इन्फ़ॉर्मेशन थी.." पंकज का जवाब सुन मैं अपनी सीट पे आया और पेपर का वेट करने लगा.. 3 घंटे का एग्ज़ॅम शायद 2 घंटे में हो गया, नहीं, इतना होशयार नहीं था, लेकिन जितना आया उतना लिखा और क्लास में फेले हुए टेन्षन को महसूस करने लगा..




एग्ज़ॅम ओवर होते ही सोचा आज घर जाके आराम करते हैं और फिर पढ़ते हैं, बाबा से मैने कहा था कि सीधा वर्ल्ड कप के बाद मिलूँगा.. तब तक नो फोन, नो टॉक्स..




"हाई सन्नी.." श्वेता ने मेरे पास आके कहा और उसके साथ पंकज भी था




"हाई श्वेता, " मैने बस इतना ही कहा और उन दोनो को देखने लगा




जब दोनो में से कोई कुछ नहीं बोला तब मैं समझ गया कि कुछ काम है इन्हे




"बोलो भी, क्या चाहिए.. पैसा या गाड़ी..." मैने अपनी घड़ी देख कहा




"गाड़ी भाई, बस 2 घंटे, वो थोड़ा काम है, घर पे आके दे दूँगा तुझे, और हां, आज पेपर पक्का.." पंकज ने हँस के कहा




"बंद कर तेरी बकवास बेन्चोद.." मैने चिल्ला के पंकज से कहा तो वहाँ खड़ी श्वेता भी एक पल के लिए काँप उठी




"मैने कहा था ना कल रात को कि चूतिया मत बना, कोई गाड़ी नहीं देनी, और आगे से तुम लोग अपनी शकल मत दिखाना मुझे.. मुझे कोई ज़रूरत नहीं है तुम जैसे दोस्तों की, साले दोस्त दोस्त बोलते हो, कितनी बार जानने की कोशिश की कि पिछले 10 दिन मैं कहाँ था और कॉलेज क्यूँ नहीं आया था, और जब जब साथ होते भी, तब भी सिर्फ़ पार्टी, गाड़ी और पैसे.. इनके अलावा कोई बात भी की है, साले दोस्त बोलते हो.. अपनी शकल ना दिखाना मुझे कभी तुम लोग, नहीं तो एक हाथ पड़ेगा ना साले तो ज़िंदगी भर यहा मूह छुपा के घूमना पड़ेगा..." मैं इतनी तेज़ी से यह सब बोल रहा था कि बाकी सब लोग वहीं खड़े रहके तमाशा देखते रहे.. श्वेता को शायद इतनी बेज़्ज़ती झेलने की आदत नहीं थी, इसलिए पैर पटक के वो चली गयी और कुछ देर में पंकज भी उसके पीछे जाने लगा




"अबे आज के दिन तो उसकी गुलामी छोड़, कब तक यूही उसका कुत्ता बन के घूमेगा.. दोपहर को तुझसे काम करवाती है, और रात में मज़े किसी और को देती है.." मेरी यह बात सुन पंकज भी झुंझला उठा, लेकिन वो जानता था मैं सही कह रहा हूँ, इसलिए बिना कुछ आगे सुने वहाँ से जाने लगा..




"भाई, क्या हुआ अचानक आज.. ऐसे सीन मत बना यार, चल आजा मेरे साथ.." अजय ने मुझे यूँ देख कहा और सब को वहाँ से जाने को कहा




"तू कौन है बे.. हाँ, भाई है तू अपना भाई है तू अपना, भोसड़ी के इसके अलावा कभी और कुछ कहा, भाई कहाँ था 10 दिन तक, तूने सोचा, मेसेज किया क्या.. चुतियापने पे उतरो सब बस, वैसे तेरी रांड़ रिया कहाँ है, किसी और के साथ होगी बेन्चोद वो भी, जान गयी होगी तुझ में दम तो है नहीं.." मैने बस यह ही कह के एक करारा तमाचा अजय का मेरे गालों पे पड़ा..
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07-03-2019, 04:57 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"तेरी माँ का..." मैने भी अजय से कहा और गला पकड़ के उसे इतना मारा इतना मारा कि वो कभी सोच भी नहीं सकता होगा, हाथों से नहीं, मेरी एसयूवी में एक हॉकी थी, उससे, वहाँ खड़े सब लोग हमे छुड़वाने लगे लेकिन आज काफ़ी गुस्सा भरा हुआ था जो बाहर निकालना था.. जब तक अजय बेहोश नहीं हुआ तब तक उसे मारता रहा.. प्रिन्सिपल के वहाँ पेशी लगी तो पता चला एग्ज़ॅम्स नहीं दे पाउन्गा, रेसटिगेट कर दिया था




"लंड ले लो आप भी मेरा, खुद की औकात तो है नहीं बड़े आए मुझे रेसटिगेट करने, अरे मैं खुद को इस कॉलेज से निकालता हूँ.." मैने प्रिन्सिपल से कहा और बाहर निकल आया... काफ़ी देर तक सोचता रहा कि जो किया वो सही था कि नहीं, लेकिन ध्यान पोलीस के साइरन से टूटा.. पोलीस मुझे अपने साथ ले गयी, अजय की कंप्लेंट और प्रिन्सिपल का फोन, यह दोनो काफ़ी थे..




"सर, एक फोन तो कर सकता हूँ घर से किसी को बुलाने के लिए.." मैने इनस्पेक्टर से कहा जब मुझे सांताक्रूज़ पोलीस स्टेशन ले जाया गया




"ठीक है, एक घंटे में बुलाओ उन्हे.."




करीब एक घंटे बाद बाबा और ऋतु आए...




"देखिए, जब तक यह कंप्लेंट वापस नहीं लेते, तब तक हम कुछ नहीं कर सकते.." इनस्पेक्टर ने अजय की तरफ इशारा करके कहा




"मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हूँ प्लीज़, आप यह कंप्लेंट वापस ले लीजिए, और आश्वासन दिलाती हूँ कि आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा, " ऋतु ने नम आँखों से अजय को कहा, लेकिन मैं आज बिल्कुल माफी माँगने के मूड में नहीं था.. कुछ देर तक ऋतु अजय को समझाती रही और बाबा सिर्फ़ मुझे ही देखता रहा.. करीब 15 मिनिट के बाद मैं बाबा और ऋतु के साथ उनकी गाड़ी में बैठ गया. गाड़ी में ऋतु और बाबा खामोश थे, लेकिन ऋतु की आँखें तेज़ बह रही थी.. अपने साथ घर ले जाके ऋतु ने सबसे पहले मेरी चोट पे कुछ दवाइयाँ लगाई और फिर मेरे पास बैठ गयी




"आज कुछ हो जाता तुम्हे तो.. कॉलेज से निकाले गये, " ऋतु ने कहा




"निकाला नहीं, मैने ही छोड़ा... और आइ आम सॉरी, आपको इतनी तकलीफ़ हुई.." मैने फाइनली अपनी ग़लती का एहसास करके कहा




"कोई बात नहीं लड़के.." ऋतु ने बस इतना ही कहा और वहाँ से आँखें सॉफ करके निकल गयी




"आज तूने ज़िंदगी जीने का पहला कदम उठाया है लड़के..." बाबा इतनी देर से खामोश था वो ऋतु के जाने के बाद बोला




"मतलब..." मैने सिर्फ़ इतना ही कहा





"तेरे अंदर का दबा हुआ गुस्सा आख़िर कर तूने बाहर निकाला.. पहला सबक, अपने अंदर कुछ भी नहीं रखो.. जो भी है सब उसी वक़्त ख़तम करो, दिल को खाली और हल्का कर के चलेगा तो ज़िंदगी अच्छी लगेगी समझा.." बाबा ने अपने गले लगाते हुए कहा




"मैने गुस्से गुस्से में कॉलेज भी छोड़ दिया , अब मोम डॅड को क्या बोलूँगा.." मैने चिंता जनक कहा




"उसकी फ़िक्र मत कर, तेरी रिज़ल्ट तुझे मिल जाएगी.." बाबा ने एक फोन घूमाते हुए कहा

"देखिए, आप के या हमारे कहने से कुछ नहीं होता, अगर यह कंप्लेंट वापस ले लेंगे तो ही हम कुछ कर पाएँगे..." इनस्पेक्टर ने ऋतु से कहा जो मुझे इस हालत में देख रोए जा रही थी





"आप देखिए, प्लीज़ कंप्लेंट वापस ले लीजिए, और मैं आपको यकीन दिलाती हूँ कि आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा, " ऋतु ने अजय से कहा और काफ़ी देर उसे कन्विन्स करती रही...




"ओके, आप कह रही हैं तो, नहीं तो आज.." अजय बे ऋतु से कहा ही था के मैने उसे बीच में पकड़ लिया




"नहीं तो क्या बे, मेरे पैसों का ख़ाता है, साले और आज मुझे धमकी दे रहा है, " मैने उसका कॉलर पकड़ कहा कि बीच में इनस्पेक्टर आ गया और मुझे दूर धक्का दे दिया




"आप यहाँ साइन कर लीजिए, और जा सकते हैं आप.." इनस्पेक्टर ने अजय से कहा और अजय ने ठीक वैसा ही किया




"आप दोनो.. यहाँ साइन करें प्लीज़... वैसे आप दोनो कौन लगते हैं इसके.." इनस्पेक्टर ने बाबा और ऋतु से पूछा




"यह बेटा है मेरा..." ऋतु ने एक बार नम आँखों से मुझे देखा और फिर इनस्पेक्टर के दिए पेपर्स पे साइन करने लगी




आज का दिन ऐसा बीतेगा मैं बिल्कुल नहीं जानता था, पहले एग्ज़ॅम की वजह से मूड खराब होना, फिर पंकज के साथ और फिर अजय के साथ झगड़ा... कॉलेज से निकल आना,

वैसे तो कभी फ्यूचर का सोचा नहीं था, लेकिन अब सोच रहा था कि करूँगा क्या.. कॉलेज से निकलने के बाद मम्मी पापा को क्या बोलूँगा, कि मैने प्रिन्सिपल को गाली दे दी.. और फिर पोलीस स्टेशन घुमा के आया हूँ... पर वो कहते हैं ना, कि काले से काले बादलों में भी एक सिल्वर लाइनिंग दिखा जाए तो समा खूबसूरत होता है...
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07-03-2019, 04:57 PM,
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"यह बेटा है मेरा..." ऋतु का यह कहना मेरे लिए ठीक वैसा था, बाबा से बातें हमेशा रोचक रही थी, वो हमेशा एक गाइड की तरह, बट ऋतु ने जब भी बात की, उसकी आवाज़ में एक स्नेह झलकता था, चेहरे पे एक मुस्कान.. खैर, यह सब सोचते सोचते दिन ख़तम हो गया पर चिंता वोही थी, सुबह जब उठुंगा तो कहाँ जाउन्गा कॉलेज का बोल के, प्रिन्सिपल घर पे नोटीस ज़रूर भेजेगा बट वो टेन्षन नहीं थी.. जब तक नोटीस आए, तब तक क्या करूँ.. सारी रात गेम खेल खेल के यह
सोचता रहा, लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला.. ऐसे टाइम पे गर्ल फ्रेंड का होना ज़रूरी है, फोन करके मिल तो लेती, बट अभी वो भी नहीं है, तो कुछ और सोचना पड़ेगा.. सुबह के 4 बजे जो आँख लगी सीधा 7 बजे खुली वो भी कॉल से..




"हेलो...." मैने नींद में नंबर देखे बिना कहा




"उह, सन्नी, आप सो रहे थे क्या.." सामने से एक मीठी आवाज़ ने इतना नज़ाकत से पूछा कि आवाज़ सीधा दिल के गेट पे दस्तक देने लगी




"कौन.." मैने बेड पे खड़े होके पूछा, इतनी उतेज्ना थी मानो वो आवाज़ सिर्फ़ यह कहे, कि मुझसे मिलो, तो मैं अभी दौड़के पहुँच जाउ




"उः, हम ऋतु बोल रहे हैं.. सॉरी, आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया.." ऋतु का नाम सुन, अरमानो पे फिर से ठंडी ल़हेर आ गयी और सुस्त गिर के बेड पे वापस बैठ गया




"जी नहीं, कहिए ना, और कल तो बेटा कह रहे थे, आज आप करके बात करोगे तो कैसे चलेगा.." मैने घड़ी में टाइम देखा तो 7 बाज चुके थे




"हाहाहा, नहीं, नतिंग लाइक दट.. बट कल के हादसे के बाद घर पे कुछ हुआ तो नहीं ना, एवेरितिंग ईज़ ओके ?" ऋतु ने चिंता जनक पूछा




"हां , एवेरितिंग ईज़ गुड , प्रिंसी का लेटर आएगा तब देख लूँगा कुछ.. वैसे आपसे कुछ बात करनी थी, क्या मैं आपके घर आ सकता हूँ.." मैने बिना सोचे समझे कह दिया




"इसमे पूछना क्या लड़के, जब चाहे आ जाओ, बेटा कभी माँ से पूछ के घर पे आता है क्या..." ऋतु की आवाज़ में वोही स्नेह झलका जो मैने कल देखा था




"मैं 8 बजे तक आता हूँ.. चलिए, बाइ.."




"आराम से आना, ओके, और गुस्से में ड्राइव नही करना प्लीज़..." ऋतु ने इतना कह के फोन कट किया




"क्या ऐसा हो सकता है, मतलब ठीक है उनके एमोशन्स अलग हैं, भावनाए हैं, लेकिन फिर भी दिल को यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसी अच्छी चीज़ें मेरे साथ हो सकती हैं, कल के सीन के बाद काफ़ी हल्का महसूस हो रहा था, अजय और पंकज के साथ सारी भडास निकाल ली, कॉलेज जाने में कोई इंटेरेस्ट नहीं था इसलिए अच्छा हुआ निकाला गया, ऋतु का ऐसा प्यार देख दिल को खुशी मिली, यह सब मेरी समझ में नहीं आता था, लेकिन जो चीज़ अच्छी लगे उससे डोर नहीं जाना था, अब यह सब मैने सोचना छोड़ दिया था, जो हो रहा है उसे होने दो.. फ्रेश होके मैं निकल ही रहा था कि मोम डॅड ने भी ऑल दा बेस्ट कहा एग्ज़ॅम्स के लिए




"सॉरी.. मैं कॉलेज से निकल चुका हूँ, कुछ दिन में आपको पता चल जाएगा.." मैने मन में खुद से कहा और उन्हे थॅंक्स कहके निकल गया




"शंभू काका.. एक सेकेंड आइए प्लीज़.." मैने गाड़ी अनलॉक ही की कि एक खुराफाती आइडिया दिमाग़ में आया




"हां सन्नी बाबा, कहो, कैसे हो, आज कल दिखते ही नहीं." शंभू काका ने पास आके कहा




"काका, वो सब बाद में, पहले आपको मेरा एक काम करना पड़ेगा.. सुनिए, कुछ दिन में घर पे जितनी भी पोस्ट्स आती हैं, आपको वो सब कलेक्ट करनी हैं लेटर बॉक्स से, फिर मुझे देंगे, मोम डॅड के पास नहीं पहुँचनी चाहिए.." मैने उन्हे कड़क निर्देश देके कहा




"ठीक है, वैसे भी मेरे पास एक लेटर बॉक्स की चाबी है... आज से लेके कर दूँगा, और कुछ.." शंभू काका ने बिना कुछ कहे बात मानी , वाह , कल से ऑल ईज़ वेल.. मैने खुद से कहा और बाबा के घर की तरफ चल दिया




"अरे इतना सब नहीं खाना मुझे.. मैं यहाँ खाने थोड़ी आया हूँ.." मैं बाबा के घर पहुँचा ही था कि ऋतु सबसे पहले नाश्ता खिलाने लगी



"पहले खा लो, फिर बात करना जो करनी थी.." ऋतु कहके मेरे सामने बैठ गयी और चमकती आँखों से मुझे देखने लगी




"पहले बात.. फिर नाश्ता.. मैने प्लेट साइड करके कहा.. अब बताइए, आप दोनो, व्हाई आर यू बीयिंग सो नाइस टू मी.." मैने सीधा पॉइंट पे आके कहा




"मतलब," ऋतु ने ट्विंकल आइज़ के साथ कहा




"मतलब, यह है कि.." मैने ऋतु को सब बताया जो बाबा ने मुझे मरीन लाइन्स पे बताया था..




"ह्म्म्म , अब जब तुम सब जानते ही हो, फिर भी कोई सवाल रह गया है दिल में ?" ऋतु ने हँस के जवाब दिया




"नहीं, ऐसा नहीं है.. पर हां, जैसे कल पोलीस स्टेशन में आप ने कहा, कि आप मेरी माँ हो, लेकिन मैने अब तक आप को माँ कहा तो नही, तो आपको बुरा नही लग रहा, " मैं एमोशनली इतना स्ट्रॉंग नहीं था, इसलिए शायद ऋतु से डाइरेक्ट कह दिया




"मॅटर ऑफ हार्ट्स यू सी... वेरी कॉंप्लिकेटेड..." ऋतु कुछ जवाब देती उससे पहले पीछे से बाबा ने जवाब दिया




"वैसे कभी सेम लाइन सुन के बुरा नहीं लगा, मेरा हाथ थोड़ा कमज़ोर है क्या अँग्रेज़ी में.." बाबा मेरे पास बैठ गया




"आप भी ना, सन्नी, कोई बात नहीं.. तुम लोग बातें करो.." ऋतु कहके निकल गयी




"तो अब, क्या करेगा.. कॉलेज जाना है तो भेज सकता हूँ, " बाबा ने मेरे हाथ में कुछ पेपर्स देके कहा.. मैने उसके हाथ से पेपर्स लिए तो देखता ही रह गया




"यह तो मेरी मार्क शीट है..." मैने एक नज़र डाली और फिर ध्यान से देखा




"जो एग्ज़ॅम मैने दी नहीं, उसकी मार्क शीट है यह.." मैने फिर देखा




"और मेरे इतने मार्क्स नहीं आते, मैं तो 50 % से आज तक उपर नहीं गया स्कूल में भी.." मैने फिर पेपर रख कहा




"वो सब छोड़, अगर कॉलेज नहीं जाएगा तो घर पे कुछ दिखाना तो पड़ेगा.. और घर पे कैसे बताएगा.." बाबा ने फिर पेपर उठा के कहा




"वो सब सोच लिया है, घर पे प्रिंसी का नोटीस पहुँचेगा ही नहीं, फिलहाल छुपा लूँगा.. बाद में देखेंगे आगे..." मैने नाश्ता खाते हुए कहा




"ठीक है, तो मतलब कॉलेज नहीं जाना चाहता..." बाबा ने फिर पूछा




"नहीं, अभी मैं कुछ सीखना चाहता हूँ, सच कहूँ, आपके साथ काफ़ी कुछ सीखा है मैने, मतलब अभी सोचता नहीं हूँ ज़्यादा, जैसे कल, कल का मुझे कोई दुख नहीं है, अभी ऐसे ही रहना चाहता हूँ..." मैने फिर बाबा से कहा और एक नज़र उसको देखा और फिर खाने पे लग गया




"एक काम करता हूँ, मोम डॅड को बोलता हूँ शाम को, के फ्रेंड्स के घर रहूँगा एग्ज़ॅम्स तक.. आपके साथ रहूं कुछ दिन तो ओके ना, " मैने बाबा से पूछा जो मुझे घूरे जा रहा था




"कोई प्राब्लम नहीं है, अगर इन्हे होगी तो यह घर के बाहर निकलेंगे.." ऋतु ने जवाब दिया और फिर बाबा को नाश्ता परोसा




"ठीक है, जब तुम दोनो को कोई दिक्कत नहीं तो मैं कौन हूँ.." बाबा ने मज़किया अंदाज़ में कहा और फिर बातें करने लगा
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07-03-2019, 04:58 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
एग्ज़ॅम्स के 5 दिन और थे, 5 वीकडेस, उन दिनो में 24 घंटे बाबा के साथ रहके उसके साथ ज़िंदगी जानी मैने, खराब चीज़े नहीं, वैसे बेट्टिंग, तीन पट्टी, आँकड़ा, वो यह सब करता था और मुझे कभी नहीं बताता था, लेकिन फिर भी, एक क्यूरीयासिटी थी यह सब जानने की, तो वो मुझे सब बताता, लेकिन हमेशा कहता कि इन सब की आदत नहीं लगाना, नहीं तो उससे बुरा कोई नहीं होगा.. खैर, हमारा वर्ल्ड कप भी चल रहा था, तो वो भी देखना पड़ता था..




"वैसे आज इंग्लेंड के साथ है मॅच.. तो आज भी इंडिया जीतेगी," बाबा ने समीर को फोन लगाते हुए पूछा




"हां, बिल्कुल, और आज सचिन भी सेंचुरी मारेगा देखना.." मैने उत्साह से कूदते हुए कहा




"हां समीर, इंग्लेंड खानी है..." बाबा ने फोन पे कहा और सौदा रखा.. तीन दिनो में खाना क्या होता है वो जान गया था मैं इसलिए खामोश रहके मॅच का चॅनेल लगा दिया




"तुझे पूरा यकीन है कि सचिन चलेगा.." बाबा ने फोन रख कुछ सोच के कहा




"अरे 100 % , " मैने फिर उत्साह में कहा




"बस, खाली कुछ भी, कुछ सोचे बिना ही बोल रहा है ना"




"सचिन के लिए तो हर कोई बोलेगा यार, आप भी ना.. चलो एक काम करो, मेरा सचिन, और आपका कोई भी दूसरा प्लेयर, जिसके हाइयेस्ट रन्स वो ट्रीट देगा ओके..




"बच्चो की, चाल रुक.. मैं तैयार होके आता हूँ, चल मेरे साथ.." बाबा ने फोन लिए अपने और मुझे अपने साथ बाहर ले जाने लगा..




"भाई जान, आप इनमे कब से पड़ने लगे..." समीर ने बाबा की बात सुन कहा




"अरे समीर वो सब छोड़ ना, तू बता, यह तू करता है कि नहीं.." बाबा ने समीर से पूछा




"भाई करते तो हैं, पर उसमे सामने कोई होना चाहिए.. खैर, पर रन आप कितना करोगे, वो बताओ..." समीर ने किसी को फोन कर पूछा




"पर रन.. सन्नी.." बाबा ने मुझे देख पूछा




"50 रुपीज़..." मैने आँखें छोटी कर कहा




"तू नहीं बोला कर, बाबा ने इरिटेट होके कहा.. समीर, सामने वाला जितना कहे, मुझे चलेगा" बाबा ने फिर कुछ सोचा और कहा




समीर ने कुछ देर फोन पे बात की, फिर बाबा की तरफ रुख़ किया




"भाई, 5000 रुपया एक रन का.. आपको चलेगा.." समीर ने बाबा से पूछा तो बाबा ने सिर्फ़ हां में गर्दन हिलाई और समीर ने कुछ कहके फोन रख दिया




"ठीक है भाई.. आप खिलाड़ी निकालो, लेकिन क्यूँ कि वो आदमी यहाँ नहीं है, इसलिए उसके बदले मैं ही ले लेता हूँ, लेकिन चिट उछालेंगे, 5 खिलाड़ी जिसके हाइयेस्ट रन्स, वो उसके हिसाब से पैसे देगा.." समीर ने बाबा से कहा और बाबा ने फिर से हां का इशारा किया




5000 रुपीज़ पर रन, बेंगलूर में मॅच, मतलब कम से कम दो लोग तो सेंचुरी करेंगे, अगर उसके पास दोनो सेंचुरी गयी तो 10 लाख.. फिर यह हारेगा और मेरा दिमाग़ सोचने लगेगा.. उपर से कम से कम 300 की पिच है, जैसे कि चिन्नास्वामी में होती है, तो उसके हिसाब से 100 रन और पकड़ ले 3 खिलाड़ियों की, तो 15 लाख... कहाँ मेने मस्ती में इसको यह कहा और यह इधर लाया.. खैर, अब जब आ ही गये है तो देख लेंगे, बी पॉज़िटिव, दोनो सेंटुरियन इसके होंगे. मैने खुद से कहा और देखने लगा बाबा को




"लीजिए भाई.. पहली चिट आप उठाओ, " समीर ने कहा और बाबा ने मुझसे कहा चिट उठाने को




"यह बिल भी मेरे नाम फटेगा यार.." मैने फिर सोचा और भारी दिल से चिट्स उठाने लगा




"तो तुम्हारे हैं... इंडिया का 2,3,4 आंड इंग्लेंड का 1 और 4.. बाकी जो बचे मेरे.." समीर ने कहा और बुक में सौदा लिख बाबा को दिखाया




"ठीक है समीर.. आज सनडे है तो घर पे देखेंगे मॅच, कल मिलता हूँ.." बाबा ने समीर से कहा और उसकी बात सुन के याद आया कि साला 5 दिन तो ख़तम हुए..

खामखा के 3 दिन समझ रहा था मैं..




"यस डॅड, मैं लेट आता हूँ, हां डॅड, सब अच्छे थे, मॅच देख के आउन्गा.." मैने डॅड से फोन पे कहा





"ओके सन्नी, एंजाय, आज रात हम घर पे नहीं होंगे, तो चाबी शंभू काका से ले लेना, ओके, बाइ."




"मैने कॉल ही क्यूँ किया, भूल गया था कि यह तो खुद में ही बिज़ी हैं.."




"मैं आज रात भी आपके घर पे सोउंगा.." मैने बाबा को अपना फ़ैसला सुनाया और उसकी गाड़ी में जाके बैठ गया




"चल मॅच देखते हैं.." बाबा ने बस इतना कहा और घर की तरफ ले जाने लगा




"मुझे मॅच नहीं देखनी, डर लग रहा है.." मैने फिर ऑर्डर जैसे कहा




"इतना सब सिखाया, वो सब वेस्ट.. तू घर चल, मॅच देख, जब डर लगे तब ऋतु के पास जाके बैठना और जब डर दूर हो तब वापस टीवी देखना.." बाबा ने जड्ज जैसे ऑर्डर देते हुए कहा
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07-03-2019, 04:58 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
बाबा के घर पे एक बात यह अच्छी थी कि उसके वहाँ खाना बहुत ही ज़्यादा टेस्टी होता था.. ऋतु जान गयी थी कि मुझे नोन वेज बहुत ज़्यादा पसंद है, इसलिए जब तक बाबा के घर रहा बस नोन वेग ही नोन वेग.. मॅच शुरू होते ही खाना, फिर मॅच ख़तम होते ही ऋतु के हाथ से स्वादिष्ट कबाब, फिर पहली इन्निंग ख़तम होते ही फिर मटन चाप...



"पूरे दिन का खाना एक साथ खाएगा क्या, " बाबा ने ताना मारते हुए कहा




"नहीं, पर टेन्षन का रास्ता ढूँढ लिया, अब जब जब टेन्षन होगी तब तब मैं इन्हे बोल दूँगा और यह कुछ खाने के लिए देगी मुझे.." मैने ऋतु की तरफ इशारा करते हुए कहा




"ऋतु, कल जा रहा है यह, तो जी भर के खिलाना ओके.. पता नहीं वापस कब आएगा इतने दिन रहने अब.."




"प्लीज़ सेंटी ना होना अब आप दोनो, और आप तो बिल्कुल नहीं.." मैने ऋतु से कहा




"रोज़ तो मिलूँगा ही, कॉलेज है नहीं तो कहाँ जाउन्गा.." मैने फिर मटन चाप को खाते हुए कहा




"वैसे तुम्हे कोई लड़की मिली कि नहीं, या अब तक इनकी दी हुई डाइयरी लिख रहे हो बेटे.." ऋतु ने आज पहली बार बेटे कहा , वैसे लड़के या सन्नी बोलती थी




"नहीं ना, अभी थोड़ी कहीं जाके लड़की ढूंढूंगा, जब होगा तब मिलेगी, फिलहाल इनकी डाइयरी लिख रहा हूँ, जब कोई अच्छी लड़की मिलेगी, उस दिन डाइयरी लिखना बंद कर दूँगा... और आप आज जीत रहे हो देखा, सचिन ने सेंचुरी मारी है और इंडिया भी 338 कर दिया, अब सब चुकता हो जाएगा, थोड़ा और दीजिए ना प्लीज़.." मैने बाबा से कहा और फिर ऋतु को प्लेट दे दी..




"उनकी बॅटिंग बाकी है, अभी रिज़ल्ट नहीं आया.." बाबा ने मुझसे कहा और देखते ही देखते दूसरी इन्निंग्स भी स्टार्ट हुई.. जैसे जैसे इन्निंग आगे बढ़ती, वैसे वैसे टेन्षन और बढ़ता जाता, मज़ाक बंद कर मैं बाबा के साथ सीरियस्ली मॅच देखने लगा




"अभी सौदा बदलना है, बोल.." बाबा ने बीच में कहा




"नहीं, इंडिया विन है.. इंग्लेंड विन नहीं है, और वैसे भी हमारा खिलाड़ी है ना स्ट्राउस, वो मार रहा है, और क्या चाहिए.. हम खिलाड़ी वाली तो जीत चुके हैं,

बस यह रिज़ल्ट का नही बदलो, हम दोनो जीतेंगे.." मैने बाबा का फोन लिया और उसे साइड में रख के मॅच देखने लगा..




"देखा, मैने कहा ना इंडिया जीतेगी, एक ओवर में 14 रन्स चाहिए.. और यह दोनो ब्लर्स हैं, नहीं मारेंगे, अच्छा हुआ ना कॅन्सल नहीं करवाया.." मैने बाबा से कहा और ऋतु को कुछ खिलाने के लिए कहा




"आप देखो, मॅच , मैं कुछ ख़ाके आता हूँ, और बताना आप कितने जाते.." मैने बाबा से आँख मार कहा और ऋतु के साथ किचन में जाके बातें करने लगा




"अब सुनना, कुछ देर में कितने लोग चिल्लाएँगे इंडिया विन पे, इन सब में बहुत मज़ा आता है.." मैने ऋतु से कहा और वो भी प्यार से मेरे लिए कुछ बनाने लगी..

ऋतु और मुझे बातें किए हुए करीब 10 मिनट हुए, लेकिन कोई शोर नहीं , कोई चीखना चिल्लाना नही..




"इंडिया हार गयी क्या.." ऋतु ने मुझे चुप बैठे हुए देखा तो कहा




"ऐसा होना नहीं चाहिए, 14 रन्स थे..." मैने किचन से बाहर निकलते हुए कहा और बाबा के पास आया तो वो टीवी बंद कर के फोन पे बात कर रहा था किसी से..




"मुबारक हो आपको..." बाबा ने फोन रख के मुझे देख कहा.. बाबा की शकल देख मुझे लगा वो खुश नहीं है, टीवी ऑन करके देखा तो मॅच टाइ..




"बहन्चोद....." मेरे मूह से इतना ज़ोर से निकला कि किचन में ऋतु ने भी सुन लिया होगा..




"आइ आम सॉरी..प्लीज़.." मैने फिर चिल्ला के ऋतु से माफी माँगी




"क्या हुआ, इंग्लेंड विन लगाने वाला था मैं, यह तो टाइ है.. कोई प्राब्लम है क्या.." बाबा ने शांति से चेयर पे बैठ कहा




"कितना हारे... हम.." बड़ी मुश्किल से शब्द निकले मेरे मूह से




"हारे नहीं जीते, 456 रन्स हमारे खिलाड़ियों के, उसके 23 लाख, इंडिया के नाम पे तूने हरवाए 15 लाख.. 8 लाख जीता है तू.." बाबा ने कॅल्क्युलेटर देते हुए कहा




"ओह्ह्ह....." मैने फिर हैरान होके कहा, शायद अभी तक इंडिया की मॅच का रिज़ल्ट हजम नहीं हो रहा था




"सबक सीख ले, कभी भी रिज़ल्ट पे नहीं पहुँचना सीधा, वक़्त के हिसाब से, स्थिति के हिसाब से, बदलाव करने पड़ते हैं.. समझा.." बाबा ने सिगरेट जला के कहा और उधर से ऋतु भी मेरे लिए कीमा बना के लाई




"भूख ही मर गयी यार.." मैने सोफे पे बैठ ऋतु से कहा




"कोई नहीं, यह सब रोज़ देखती हूँ मैं, पर ऐसे हताश नहीं हो, आज हारे हो, कल जीतोगे भी.. दट'स लाइफ ना" ऋतु ने मेरे पास बैठ कर कहा




"अरे जीता है, 8 लाख जीता है यह" बाबा ने ऋतु से कहा




"मैं नहीं जीता, आप जीते हैं, बार बार मुझे मत कहिए, जब हारा था तो आप बोल रहे थे कि आप हारे, अब जब जीते हो तो बोलो ना आप जीते हो.." मैने फिर बाबा से कहा और अपने सर पे आया पसीना पोछने लगा
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07-03-2019, 04:58 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"सन्नी, चलो सो जाओ, ज़्यादा नही सोचो अब..." ऋतु ने मेरे सर पे हाथ फेर कहा और बिना कुछ कहे वहाँ से सोने चला गया.. पूरी रात बस मॅच की रिज़ल्ट के बारे में सोचता रहा, टाइ हुआ ही क्यूँ, बट साला अभी क्या कर सकते हैं.. सोचते सोचते जब नींद आई तो सब चिंता गायब, पहली बार इतने वक़्त के बाद मैं 10 घंटे की नींद से जागा था..




"10 बज गये हैं, घर नहीं जाना क्या तुझे.." बाबा ने रूम में आके कहा




"हां, बस नहा लिया है, 10 मिनट में निकल रहा हूँ.."




"घर जाके कॉलेज की बात का ज़िक्र करना, नहीं समझेंगे जानता हूँ, पर झूठ नहीं बोलना, समझा.." बाबा ने मुझे कहा और बिना कुछ सुने अपनी बात बोलते चला गया




"चलिए, मैं जाता हूँ, और आपका नंबर भी सेव किया है, अब से इन से कोई बात नहीं , डाइरेक्ट आपको कॉल करूँगा ओके.." मैने ऋतु से गले लग के कहा और दोनो से अलविदा कहके घर चला गया




"बताऊ कि नहीं, और बताऊ तो कहाँ से शुरू करूँ बात... यार खोटा गुस्सा किया, साला.. पर ठीक है, अच्छा किया उनको मार के, लेकिन अब घर पे क्या करूँ.."

सोचते सोचते रास्ता ख़तम हो गया लेकिन कुछ जवाब नहीं मिला




"नहीं बताता फिलहाल.." मैने खुद से कहा और डोर बेल बजा दी




"आओ..." डॅड ने कहा और दरवाज़ा छोड़ अंदर आने का रास्ता दिया




"तेरी माँ का.... " मैने खुद से कहा जब अंदर आके यह देखा कि प्रिन्सिपल सर सामने वाले सोफे पे बैठा है और मोम और डॅड दोनो के चेहरे लाल लगे पड़े हैं

"यह सब क्या है सन्नी.." पापा ने मुझ से चिल्ला के पूछा जब प्रिंसी ने उन्हे बताया था कॉलेज में हुए हादसे के बारे में




अब मैं क्या बोलता, वो भी प्रिन्सिपल के आगे, इसलिए बस खामोश रहा और कभी एक नज़र प्रिन्सिपल को देखता तो कभी पापा को तो कभी मम्मी को.. वैसे मोम डॅड दोनो गुस्सा तो थे ही, लेकिन प्रिन्सिपल भी कुछ कम गुस्से में नहीं लग रहा था, हां, उसे गाली दी थी ना, तभी शायद..




"सन्नी, कुछ कहोगे तुम कि नहीं..." डॅड ने फिर चिल्ला के पूछा लेकिन मैने कोई जवाब नहीं दिया क्यूँ कि मैं प्रिंसी के आगे कोई सीन नहीं बनाना चाहता था




"उः, वेल आइ गेस आइ मस्ट टेक आ लीव नाउ.." प्रिंसी ने सोफे से खड़े होके कहा




"ओह, ओके मिस्टर रस्तोगी, आंड आइ अपॉलज्ज़ फॉर हिज़ बिहेवियर, आम सो सॉरी फॉर ऑल दिस मेस.."




"बट आइ आम नोट सॉरी..." मैने डॅड को बीच में काट के कहा




मेरी यह बात सुन डॅड और प्रिंसी दोनो हैरानी से मुझे देखने लगे, लेकिन कहा कुछ नहीं, शायद सोच रहे थे कि क्या कहे




"सन्नी, ईज़ दिस दा वे यू टॉक वित युवर्ज़ सीनियर्स इन कॉलेज..." इस बार मोम ने कहा, लेकिन मैने उन्हे कोई जवाब नहीं दिया




"आइ गेस आइ नीड टू लीव.." इस बार प्रिंसी ने फिर कहा और ज़्यादा कुछ सुने या बोले बिना वहाँ से निकल गया..




"यह सब क्या है सन्नी, तुम्हे पता भी है कि यह सब क्या किया तुमने, पोलीस ले गई थी तुम्हे, मेरी इज़्ज़त की धज़िया उड़ा दी तुमने..." पापा प्रिंसी के जाते ही बरसना चालू हुए




"लोगों को पता चलेगा तो क्या कहेंगे, और यह सब किया क्यूँ.. पंकज और अजय तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं, फिर यह सब क्यूँ.. और कॉलेज से रेसटिगेट किया तो खुद निकल आए.. तुमसे ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी सन्नी.." मम्मी ने फिर कहा




"यह सब तुम्हारे लाड प्यार की वजह से ही है, और चढ़ाओ सर पे, मैने बचपन में ही कहा था इसे बोरडिंग स्कूल भेजो, लेकिन तुम मेरी कोई बात कहाँ सुनती हो.." इस बार पापा ने मम्मी से कहा




"यह सब आपका कसूर है, शुरुआत से ही इसे पैसों की आदत लगा दी, अब भुगत लो.. अब खुद की ग़लती दिखी तो मुझ पे पूरा ब्लेम डालो.." मम्मी ने फिर पापा से कहा




"समझ नहीं आ रहा था आख़िर जवाब किसे दूं, मम्मी को या पापा को, और क्या जवाब दूं.. कॉलेज के बिहेवियर की वजह बताऊ या अभी जो यह लोग एक दूसरे पे हमला कर रहे थे उसका जवाब दूं, मैं बस मन में सोच ही रहा था शुरू कहाँ से करूँ, लेकिन फिर जब बाबा के वहाँ से निकला था तो ऋतु ने जाते जाते एक बात कही




"सन्नी.. कुछ भी हो जाए, तुम अपने मम्मी पापा से कुछ नहीं कहना, तुम्हारे लिए वो लाख बुरे होंगे लेकिन दुनिया में कोई माँ बाप अपनी औलाद का बुरा नहीं चाहते,

अगर उन्होने तुम्हे वक़्त नहीं दिया है तो इसकी वजह भी शायद तुम खुद हो, शायद उन्हे लगा हो कि वो तुम्हारा भविश्य सुरक्षित करके फिर तुम्हे वक़्त देंगे, या कुछ और भी, मैं उनकी साइड नहीं ले रही पर फिर भी, माँ बाप की फीलिंग्स को तुम्हे समझने में काफ़ी वक़्त लगेगा.. और जब तुम यह समझोगे उसके बाद तुम अपने मम्मी पापा से बात करना.. तब तक उन्हे पलट के कुछ मत कहना प्लीज़... अगर कमज़ोर पडो और गुस्सा आए तो चुप करके अपने कमरे में चले जाना.."




"अब कुछ कहोगे कि नहीं, तुम्हारी वजह से ही यह सब हुआ है..और यह बताओ, एग्ज़ॅम तो दिए नहीं, और पंकज अजय से लड़ाई कर ली, फिर इतने दिन कहाँ थे और किसके साथ थे.." पापा ने इस बार फिर सवाल किया जिसका जवाब मैं नहीं देना चाहता था




"सन्नी जवाब दो हमें, हम क्या पूछ रहे हैं, किसी ग़लत संगत में तो नहीं फस गये हो ना.." मम्मी ने उंगली दिखा के पूछा




"नहीं मोम.. वो दूसरा दोस्त है कॉलेज का, उसके साथ था.." बाबा और ऋतु की बात के साथ ग़लत शब्द सुन नहीं सका तभी मुझे मूह खोलना पड़ा




"कौनसा दोस्त, बात करवाओ मेरी उससे... और अभी क्या सोचा है, क्या करोगे ज़िंदगी में.. कॉलेज से तो निकाले गये.." डॅड ने बस इतना ही कहा कि मैने अपना बॅग उठाया और खामोशी से अपने कमरे की तरफ पलटा और वहाँ जाने लगा




"सन्नी, आइ आम नोट डन एट.. सन्नी इधर आओ... देखो बहुत बुरा होगा सन्नी, सन्नी..." पापा की आवाज़ तब मेरे कानो में पड़ना बंद हुई जब मैने कमरे में जाके दरवाज़ा पटका और उसे लॉक कर दिया




काफ़ी देर तक अपने कमरे में बैठे बैठे बोर हुआ तो गेम खेलने लगा और फिर मोबाइल चेक करने लगा, लेकिन कोई फोन नहीं, कोई एसएमएस नहीं.. देखते देखते शाम हुई तो नहा के फिर गेम खेली, काफ़ी भूख लगी थी, अगर बाहर जाउन्गा फिर सवाल पूछेंगे इसलिए बाहर वापस नहीं गया..




"तुम्हे कबाब बहुत पसंद हैं ना, यह लो, घर जाके खाना, इससे तुम मुझे भूलोगे तो नहीं कम से कम.." ऋतु की यह लाइन जैसे ही दिमाग़ में आई, मैं बेड से उछल के उठा और बॅग चेक किया तो उसमे एक राउंड बॉक्स पड़ा था.. फटाफट उसे ओपन किया तो ऋतु के हाथ के बने मस्त कबाब्स थे, ठंडे हो गये थे लेकिन भूख में तो क्या फरक पड़ेगा..
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07-03-2019, 04:59 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"उम्म्म... हेवेन..." मैने कबाब ख़ाके ऋतु को तुरंत ही एसएमएस किया




"क्या हुआ बेटे, और घर पे सब ठीक है ना.." ऋतु ने एसएमएस का जवाब दिया




"आपके कबाब खाए, और घर पे सब ठीक है.. मैने कुछ नहीं कहा मोम डॅड को, प्रिंसी घर आया था इसलिए उन्हे सब पता चल गया"




"हम बात करें तुम्हारे मोम डॅड से.."




"अरे, अभी तो आप लोग सिखा रहे थे कि अपनी प्राब्लम से खुद लडो, और अभी यह.. नहीं, मैं खुद मॅनेज कर लूँगा"




"ओके लड़के.. चलो अब घर कब आओगे, जब आओ तो पहले बताना, तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खाना तैयार करके रखूँगी.."




"ओके.. चलिए, बाइ"




ऋतु से बात करके काफ़ी अच्छा लगा, ऐसा लगा चलो कोई तो है जिसको मैं एसएमएस करूँ तो जवाब देता है.. डॅड की बातें दिमाग़ में फिर घूमने लगी, पढ़ाई छोड़ दी

तो क्या करूँगा, और अगर यहाँ रहा तो आज नहीं तो कल बोलेंगे उनके बिज़्नेस में जाय्न करूँ.. अब 21 साल की उमर में बिज़्नेस करूँगा क्या.. सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन फिर क्या करूँ.. सोचते सोचते दिमाग़ खराब होने लगा, तभी दिमाग़ में एक आइडिया आया.. मैने अपना बॅक पॅक निकाला और उसमे 10 जोड़ी कपड़े ले लिए और साथ ही कुछ ज़रूरी समान और अपना गेमिंग कॉन्सोल.. चाहे कुछ भी हो, गेमिंग कॉन्सोल को नहीं छोड़ूँगा मैं, 21 का हूँ या 40 का, गेमिंग कॉन्सोल तो वर्ल्ड की बेस्ट चीज़ है ही.. सब समान पॅक करके मैं रात होने का वेट करने लगा.. रात के करीब 11 बजे जब कमरे के बाहर हल्के से झाँका तो कॉरिडर और लिविंग रूम में अंधेरा था. मैं चोरों की तरह हल्के कदमों से बाहर आया और लिविंग रूम में पहुँचा तो सोफा पे एक नोट रखा था




"वी आर गोयिंग आउट, आके बात क्लोज़ करेंगे..डॅड"




"आज मैं आपके लिए एक नोट छोड़ूँगा डॅड..." मैने खुद से कहा और उनके नोट को फाड़ के अपना लेटर रखा




"मोम डॅड तो हैं नहीं, फिर क्यूँ अंधेरा करूँ.." मैने खुद से कहा और लाइट्स जला के जूते पहने जो हाथों में लिए हुए थे और बॅक पॅक लेके जल्दी से नीचे चला गया.. लेटर के साथ मेरा डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, मोबाइल, वॉलेट और कार की चाबी.. यह सब मैं घर पे ही रख आया था




जैसे ही नीचे आया तो देखा शंभू काका सो रहे थे, मैने सोचा अच्छा है चलो यह नहीं देखेंगे. बाहर आके इधर उधर थोड़ा नज़र घुमाई तो टॅक्सी मिल गयी




"ठककक ठकककककक.... ठककककक ठककक...." मैं तब तक दरवाज़े को ठोकता रहा जब तक दरवाज़ा खुला नहीं




"अरे क्या है भाई..." बाबा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और आँखें खोल फिर सामने देखा




"तू... यहाँ इतनी रात को.."




"टॅक्सी छुड़ा दो, 200 रुपीज़ दे दो इसे प्लीज़.." मैने बाबा से कहा और अंदर घुस गया




"अरे पर हुआ क्या वो तो बता.." बाबा ने फिर मुझसे कहा और पैसे देके अंदर आए




"बेटे इतनी रात को.. सब ख़ैरियत.." ऋतु ने जब मुझे देखा तो हैरान हो गयी




"यह तुम ग़लत कर रहे हो सन्नी. मैं तुम्हे ऐसा हरगिज़ नहीं करने दूँगी.." ऋतु और बाबा ने जब मेरी बात सुनी तो ऋतु के यह पहले शब्द थे




"प्लीज़ आप ऐसा मत बोलिए, अगर मुझे आपसे पूछे बिना कुछ करना होता तो मैं आप लोगों के पास नहीं आता.." मैने ऋतु से कहा




"अपने माँ बाप के बारे में सोचो सन्नी..." ऋतु ने फिर कहा




"मैं हमेशा उनके बारे में ही सोचता हूँ, आज अगर अपने बारे में सोचा है तो क्या ग़लत है उसमे, आप ही बताइए ना.." मैने फिर ऋतु से कहा




"मैं आपको एमोशनल नहीं करना चाहता, लेकिन आज तक आपको माँ नहीं कहा, लेकिन माँ मानता हूँ तभी तो आपके पास आया ना पूछने.." मैने ऋतु के हाथ को थामते हुए कहा. मेरी यह बात सुन ऋतु की आँखों से आँसू टपकने लगे लेकिन उन्हे सॉफ कर बोली




"ठीक है.. जैसे तू कहे, लेकिन रोज़ हमे फोन करेगा और इन्हे कर के नहीं, लेकिन रोज़ मुझे कम से कम तीन बार कॉल करेगा ना.." ऋतु ने मेरी बात का जवाब दिया और सेम माँ की तरह हिदायत देने लगी




"एक मिनिट रूको.. माँ बेटे, रुक जाओ..." बाबा ने कहा जो इतनी देर से खामोश था




"सन्नी, सबसे पहली बात , तू जाएगा कहाँ, और दूसरी बात, पैसे हैं तेरे पास.. टॅक्सी के लिए तो हैं नहीं, जाएगा कैसे, कहाँ रहेगा, कैसे सर्वाइव करेगा..कभी सोच भी लिया कर थोड़ा"




"वो सब मैने सोच लिया है, उसके लिए आपकी मदद चाहिए, और पैसों की बात तो ओके, वो मेरे पास आ जाएँगे.." मैने बाबा से कहा




"मदद कैसी.. और जाना कहाँ है.." बाबा ने पूछा और मैने उसे सब बताया




"इन सब कामो में कम से कम पंद्रह से बीस दिन लगेंगे...तब तक तेरे माँ बाप ने ढूँढ लिया तो.." बाबा ने यह कहा ही कि उनके पास एक फोन आया




"आन्सर कीजिए जल्दी, मेरे डॅड का है.." मैने स्क्रीन पे नंबर देख कहा




"तेरे डॅड का.." बाबा ने हैरानी से देखा और फिर आन्सर करके स्पीकर ऑन किया




"हेलो.." बाबा ने भारी आवाज़ में कहा




"अरे थोड़ा हल्के से बात करो ना, आप मेरे कॉलेज के दोस्त हो ऐसा कहा है, कॉलेज वाले क्या ऐसी आवाज़ में बात करते हैं" मैने बाबा से कान में कहा




"हेलो, ईज़ दिस समीर.." पापा ने सामने से पूछा
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07-03-2019, 04:59 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यस.." बाबा ने इतना ही कहा और मुझे और ऋतु को देखने लगा गुस्से से




"समीर, हाई, आइ आम सन्नी'स फादर, ईज़ सन्नी देयर" पापा ने फिर पूछा




"हां" बाबा ने हमारे कहने पे हां कहा, उसे समझ नहीं आई इतनी इंग्लीश




"ओके, वो थोड़ा नाराज़ है हम से, आप लोग ऋषिकेश जा रहे हो और फिर लेह लडाख आइ गेस... तो उसके पास पैसे नहीं हैं, तुम मुझे अपनी बॅंक डीटेल्स एसएमएस करो ,

मैं तुरंत ही तुम्हारे अकाउंट में पैसे डाल देता हूँ, पर उसको यह नहीं बताना.. आंड दट'स इट.. हॅव आ सेफ ट्रिप बाय्स...हॅव फन"




"थॅंक यू..." बाबा ने फिर अटकी हुई आवाज़ में कहा और फोन कट कर दिया




"देखा.." मैने बाबा और ऋतु से फोन कट होते ही कहा




"क्या देखा" बाबा ने गुस्से में पूछा




"अभी भी ऐसा नहीं पूछा, कि सन्नी कहाँ है, बस पैसों की बात की..." मैने ऋतु से कहा




"ऐसा हो सकता है उन्हे लगता हो कि तुम सो रहे हो, इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया" ऋतु ने मेरे सर पे हाथ फेरते हुए कहा




"अबे, एडे.. अब मेरा नंबर है उनके पास, तेरे जाने के बाद फिर मुझे कॉल करेंगे तो क्या कहूँगा, " बाबा ने गुस्से में कहा




"देखा, इस बार भी आपने अपनी सोची, अगर मेरी परवाह होती तो सल्यूशन ढूँढते"




"आपसे अच्छी तो यह है, अब तक कुछ भी सवाल नहीं करा, आप बात करना ना मोम डॅड से.." मैने ऋतु को गले लगा के कहा




"ऋतु, यह तुम्हे पागल बना रहा है, देखो ऐसा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है.." बाबा ने ऋतु से कहा




"आप चिंता नहीं करें, और सन्नी, तू कर जो करना है, मैं बात करूँगी तेरे मम्मी पापा से.. पर बच्चे, तू प्लीज़ सेफ रहेगा ना.. मैं जब तेरी माँ को बताउन्गी तो वो दर्द देख नहीं पाउन्गी, और हो सकता है इसके लिए ज़िम्मेदारी हम दोनो को लेनी पड़े, लेकिन फिर भी.." ऋतु ने फिर मेरे सर पे हाथ फेरके कहा




"हां जी, आपा चिंता नहीं करो.. अब मुझे कुछ खिलाइए प्लीज़.." मैने ऋतु से कहा तो वो मेरे लिए कुछ बनाने चली गयी




"यह जो तू ऋतु के साथ कर रहा है ना, यह सही नहीं है. उसका फ़ायदा उठा रहा है तू" बाबा ने मेरा कॉलर पकड़ के कहा




"मैं ऐसा नहीं बना अब तक कि मुझे खाना खिलाने वाला का फ़ायदा उठाऊ.." मैने बाबा से कहा तो उसने मेरा कॉलर छोड़ दिया




"अब बात करें..." मैने बाबा से कहा




"बता क्या करना है" बाबा ने शांत होके पूछा




"देखिए, सबसे पहले मेरी ग्रॅजुयेशन कंप्लीशन की मार्क शीट चाहिए.. वो ड्यूप्लिकेट वाली, उसके बाद मेरे सब डॉक्युमेंट्स, लाइक पासपोर्ट, पॅन कार्ड, लाइसेन्स और दूसरे जो भी.."




"वो सब तो तेरे पास हैं ना..." बाबा ने याद दिलाते हुए कहा




"ओह... हां, करेक्ट, वो रहने दो, बस तो रिज़ल्ट्स का जुगाड़ करवा दो, विथ वेरी गुड पर्सेंटेज.. और उसके बाद मैं देश के बाहर जाना चाहता हूँ, लाइक अमेरिका या कॅनडा या कही और.." मैने बाबा से कहा




"इन सब में पैसे लगेंगे, मैं मदद नहीं करूँगा पैसों की समझा" बाबा ने फिर कहा




"हां तो आप से पैसे मैने कब माँगे, कल इंडिया इंग्लेंड में जैसे पैसे जीते, वैसे निकालूँगा.."




"और अगर हारा तो, कहाँ से भरेगा.."




"अरे वो मेरी प्राब्लम है.... अब आप चलो ना, काम पे लगाओ, वो कौन है, उस्मान.. हां उस्मान भाई.. उन्हे कॉल करो और सब मन्ग्वाओ.." मैने ऋतु के पास जाते हुए कहा और उससे सब शेयर किया




"उस्मान, एक काम है.." बाबा ने उस्मान को फोन किया और मेरे लिए नकली रिज़ल्ट्स का बोल दिया
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07-03-2019, 04:59 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
जब तक नकली रिज़ल्ट्स का बंदोबस्त होता, तब तक, मतलब 3-4 दिन तक हम ने कन्सल्टेंट से बात की और बाहर जाने का प्रोसेस ढूँढने लगे..




"आप स्टूडेंट वीसा पे ही जा रहे हैं ना, तो भी बाहर जाने के लिए कम से कम आपको 20 लाख का बॅंक बॅलेन्स दिखाना पड़ेगा.." कन्सल्टेंट ने बाबा से कहा




"कोई बात नहीं, हम दिखा देंगे. आप काम शुरू कीजिए..." ऋतु ने बाबा से पहले जवाब दिया




"बस इतनी मदद ही है ना, और वैसे भी पैसे सिर्फ़ दिखाने हैं, भरेगा तो वो खुद ना.." ऋतु ने बाबा से कहा जो उसे घूरे जा रहा था




"यह लीजिए, कॉलेज के पेपर्स और बाकी सब डॉक्युमेंट्स की लिस्ट, आप फिल करके हमे 4 दिन में दे दीजिए, तो काम जल्दी निपट जाएगा, नहीं तो फिर दूसरे सेम में बात गयी तो 6 महीने और निकलेंगे"




"यह ले , भर दे..." बाबा ने मुझे फॉर्म देते हुए कहा




"यह कौन्से देश का कॉलेज है.." मैने ब्रोशर पे नज़र डालते हुए कहा




"लंडन, लंडन में हमारे दोस्त भी हैं, तो वहाँ रहोगे तो हमे तुम्हारी खबर मिलती रहेगी, इसलिए कॅनडा या अमेरिका कॅन्सल.." ऋतु ने जवाब दिया




"ओके.. नो प्राब्लम.." मैने फॉर्म भरना शुरू किया




"वैसे अब तक पोज़िशन क्या है, 7 दिन हो गये हैं, कितनी हार में है तू.." बाबा ने फिर रूखे अंदाज़ में कहा




"जीत में हूँ, 20000 रुपीज़, कम से कम 2 लाख तो करने हैं ना, सवा लाख की तो टिकेट है"




"टिकेट 50000 की है, " बाबा ने टीवी ऑफ करके कहा




"बिज़्नेस क्लास.. अपने पैसों से जा रहा हूँ तो सब अपने हिसाब से करूँ ना, और वैसे भी मैने खुद से वादा किया था, कि जब कभी फॉरेन जाउन्गा तो बिज़्नेस क्लास ही जाउन्गा.." मैं फॉर्म भरता रहा और उनसे बात करता रहा..




"और कॉलेज की फीस, वहाँ जाते ही तुझे सबसे पहले 2000 पाउंड्स भरने हैं, वो कहाँ से लाएगा, और हर सें में 2000 पाउंड्स, तो कैसे करता रहेगा यह सब.."

बाबा ने रूम के चक्कर लगाते हुए कहा




"आप बैठ जाओ ना, ऐसे चक्कर लगा रहे हो जैसे शेर पिंजरे में घूम रहा है अकेला अकेला" मैने हँस के कहा लेकिन बाबा का गुस्सा कम नहीं हुआ



"सॉरी, लेकिन आप मुझे जाने तो दो, मैं वहाँ पहुँच के करूँगा कुछ ना कुछ.. वहाँ काफ़ी इंडियन्स जॉब करते हैं, मैं खुद कर लूँगा, पर एक बार मुझ पे ट्रस्ट तो करो, खुद ही कहा था ना, कि अकेले जीके देखेगा तो पता चलेगा तू क्या कर सकता है क्या नहीं.. तो अब जाने दो ना, खुद करके देखना चाहता हूँ मैं.." मैने बाबा को उसकी बात याद दिलाई तो वो शांत हुआ और सोफा पे बैठ गया.. ऋतु ने भी यह देखा तो उसे समझाने लगी और मनाने लगी..




"सन्नी, बच्चे अपना ख़याल रखना.. और पहुँच के ही फोन करना समझा.." ऋतु एरपोर्ट पे काफ़ी एमोशनल हो रही थी




"फोन कैसे करेगा, सिर्फ़ डेढ़ लाख थे भाई साब के पास, उसमे से भी सवा लाख की टिकेट, अब सिर्फ़ 25000, मतलब वहाँ के सिर्फ़ 300 पाउंड्स, उसमे कैसे गुज़ारा करेगा.." बाबा ने ऋतु से कहा




"सन्नी, तू पैसे की चिंता ना कर, मैं दे दूँगी तुझे, बस अपना ख़याल रखना.." ऋतु ने फिर मेरे हाथ को थाम के कहा




"अरे आप चिंता नहीं कीजिए, और पैसे मैं खुद कुछ ना कुछ कर लूँगा.. आप लोगों ने इतनी मदद की क्या वो कम है, डॉक्युमेंट्स से लेके पोलीस वेरिफिकेशन और उसके बाद यह प्रोसेस इतना जल्दी निपटाना, इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता आपसे.." मैने आखरी बार ऋतु को गले लगाया और अपने बोरडिंग गेट की तरफ बढ़ने लगा..

बाबा अभी भी गुस्सा था लेकिन गेट के पास से पलटा तो उसकी आँखें भी नम थी,




"एक सेकेंड प्लीज़.." मैने सेक्यूरिटी गार्ड से कहा और वापस जाके बाबा से गले लग गया




"अपना ख़याल रखना लड़के... कहीं भी परेशानी हो, तो दिल से याद करना, बाबा वहाँ मौजूद होगा.." बाबा ने रुआंसी सी आवाज़ में कहा




"अब छोड़ो भी, इतना सेंटी ना मारो, रोज़ फोन करूँगा आपको भी, मैने बाबा से अलग होते हुए कहा और फिर ऋतु के गले लगा




"आइ विल मिस यू... अम्मी..." मैने ऋतु के कान में कहा जिसे सुन ऋतु फुट फुट के रोने लगी पर मुझे जाने के लिए कहा और वहीं खड़े रहके मुझे दोनो लोग जाते हुए देखने लगे..




"फेवव... अब यह लोग मोम डॅड को समझा सके तो गुड है, नहीं तो फिर कोई प्राब्लम ना हो.." मैने खुद से कहा और बोरडिंग अनाउन्स्मेंट का इंतेज़ार करने लगा




"10 जोड़ी कपड़े, 25000 रुपीज़.. कोई ऐसी हालत में लंडन नहीं जाता.. पर आज तक मेरे साथ सब अबनॉर्मल ही हुआ है, तो यह भी सही है




"लंडन..... हियर आइ कम...."

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"ज्योति.. शीना के वॉर्डरोब में उसके कपड़ों के नीचे देयर ईज़ आ गन हिडन... तुम्हारी पूरी फॅमिली को यहाँ हाज़िर रहना पड़ेगा किसी भी वक़्त, लेकिन अगर तुम यह सब बिना किसी को चोट पहुँचाए ख़तम करना चाहती हो, तो जब मैं तुम्हे फोन करूँ, तब तुम दिए गये अड्रेस पे शीना के साथ पहुँच जाना, क्यूँ कि इस चीज़ को ख़तम शीना के हाथ से ही होना पड़ेगा.. सन्नी.." सन्नी का यह एसएमएस पढ़ ज्योति को समझ नहीं आया कि यह सब क्यूँ हो रहा है और सन्नी आख़िर करना क्या चाहता है.. डाइयरी पढ़ते पढ़ते अभी शीना भी समझ चुकी थी कि उसके साथ जो भी हुआ है वो ग़लत हुआ है, खेला गया है उसके जज़्बातों के साथ, लेकिन जब भी सन्नी की बातें उसके ज़हेन में आती , उसका दिमाग़ कमज़ोर पड़ जाता.. शीना फिलहाल तो खामोश थी, शायद उसकी आँखों में अब आँसू बचे ही नहीं थे बहने के लिए, और दिल तो उसका टूट ही चुका था, लेकिन फिर भी टूटे ही दिल को समेट के शीना ने उसे मज़बूती देने की कोशिश की थी और डाइयरी को पढ़ रही थी

"एक्सक्यूस मी.." शीना ने सिर्फ़ इतना ही कहा और वॉशरूम में चली गयी.. शीना के जाते ही ज्योति दबे पावं उसके वॉर्डरोब की तरफ गयी और हल्के हाथों से उसे ओपन करने लगी.. वॉर्डरोब ओपन होते ही सामने रखे कपड़े देख ज्योति ने अपना हाथ नीचे किया और इधर उधर घुमाने लगी, ज़्यादा देर नहीं लगी उसे गन ढूँढने में.. गन हाथ में आते ही, ज्योति ने जब उसका वेट चेक किया तो काफ़ी हेवी थी.. यह वोही गन थी जो सन्नी ने उसे महाबालेश्वर में दी थी उसके डिफेन्स के लिए, उसके बाद सन्नी ने जान बुझ के वो गन उससे वापस नहीं ली और आज के दिन के लिए बचा के रखी थी.. एर गन नहीं, यह असली गन थी और उसके अंदर की गोलियाँ भी असली थी.. ज्योति वेट चेक करके भाँपने लगी कि यह गन असली है कि नहीं, लेकिन जब उसे आभास हुआ कि शीना बस बाहर निकलने को है तो ज्योति ने बेड के पास ड्रॉयर पे रखे शीना के बॅग पे नज़र डाली, ज्योति ने जल्दी से वो गन बॅग के सबसे नीचे वाली चैन में डाल दी और जल्दी से बेड पे बैठ गयी..




"गन लोडेड ही है अब तक, तो उससे ज़्यादा छेड़खानी नहीं करना, और जब तुम लोग यहाँ पहुँचो तब शीना को बताना गन के बारे में.. और, सबसे ज़रूरी बात.. मेरे कहने पे ही वो गन चलाएगी, मेरा एक इशारा और उसकी एक गोली.. गोली सिर्फ़ और सिर्फ़ कंधे पे लगनी चाहिए.. समझी" सन्नी ने दूसरा एसएमएस किया ज्योति को




"तुम्हे क्या लगता है, शी ईज़ आ प्रोफेशनल शूटर.. यह सब इन्स्ट्रक्षन्स दे कैसे रहे हो, आख़िर तुम लोग चाहते क्या हो, और अगर मारना ही है हम सब को तो ख़तम कर दो ना.. यह नया नाटक क्यूँ हैं आख़िर.. " ज्योति ने गुस्से में तिलमिलाके जवाब दिया




"तुम जब यहाँ आओगी तब सब बता दूँगा तुम्हे.." सन्नी ने फिर जवाब दिया




"ना ही मैं आउन्गि, और ना ही शीना आएगी..." ज्योति ने फिर गुस्से में जवाब दिया




"अगर तुम लोग नहीं आओगे, तो तुम्हारा पूरा खानदान मारा जाएगा.." सन्नी ने फिर यह जवाब दिया जिसे पढ़ ज्योति के चेहरे पे पसीना बहने लगा




"क्या हुआ... इतना पसीना क्यूँ.." शीना की इस आवाज़ से ज्योति चौंक गयी और हड़बड़ा कर मोबाइल साइड में रख दिया




"क क क क ... कुछ नाहि... कुछ भी तो नही.." ज्योति ने हकला के जवाब दिया और फिर से अपने हाथ में डाइयरी ले ली




"यह पढ़ना अब ज़रूरी नहीं है.." शीना ने निराश होके जवाब दिया
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07-03-2019, 04:59 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यह पढ़ना काफ़ी ज़रूरी है, अगर उस इंसान ने सामने से दिया है तो फिर तो पढ़ना चाहिए.. आइ नो तू कैसा महसूस कर रही है, लेकिन पढ़ के शायद तेरी राय बदल जाए.." ज्योति ने उसे आश्वासन देते हुए कहा




"तू क्यूँ बार बार मुझे उसके पास भेजने की कोशिश कर रही है.. क्या यह सब धोखा नहीं है, जो उसने मेरे साथ किया.. मेरे साथ फिज़िकल हुआ..." आखरी लाइन कहके शीना की आँख फिर भरने लगी




"फिज़िकल तू उसकी मर्ज़ी से हुई थी या अपनी मर्ज़ी से... कहाँ गया वो विश्वास जिससे तूने मुझे अपने रिश्ते के बारे में बताया था, और अगर उसका टारगेट सिर्फ़ फिज़िकल होना होता तो तू ग़लत सोच रही है.. मेरी आँखें कभी धोखा नहीं खा सकती, मैने जब जब उसकी आँखों में देखा तब तब मुझे सिर्फ़ तेरे लिए प्यार ही दिखा, और अगर तुझे उसपे विश्वास नहीं है तो मत कर, लेकिन उसके प्यार को ग़लत कहने का तेरा कोई अधिकार नहीं है.. और यह रिश्ता तुम दोनो की मर्ज़ी से हुआ था ना, क्या उसने कभी तुझे कहा था सामने आके, क्या कभी उसने तुझे यह महसूस करवाया कि तू अकेली है, जबसे वो यहाँ आया है, तब से बस तेरा ख़याल ही है उसके दिमाग़ में, प्रॉपर्टी के पेपर्स देखे बिना उसने सब तुझे लौटा दिया, इससे बड़ा सबूत कोई नहीं दे सकता.. और वैसे भी अब तक की डाइयरी पढ़ के लगा है उसे पैसों की कोई कमी नहीं है, उसकी ज़िंदगी में कमी है बस एक साथी की, वो साथी उसने तुझ में पाया है.." ज्योति ने शीना का हाथ पकड़ उसे समझाया




"मैने रिकी भाई से प्यार किया था हमेशा.. इससे नहीं.." शीना ने अपनी आँखों को झुका के कहा




"अगर यह कभी तुझे बताता ही नहीं कि यह रिकी नहीं है, फिर क्या करती.. ज़िंदगी भर तेरे साथ रिकी बनके रहता, और तू उस झूठ से हमेशा खुश रहती.. उसके लिए यह काफ़ी आसान होता, इसके बावजूद उसने आसान रास्ता नहीं चुना, आदमी कौनसी राह चुनता है उससे उसके चरित्र का पता लगता है.. उसके लिए काफ़ी आसान होता ताऊ जी की प्रॉपर्टी लेके तेरे साथ रहना, पर उसने ऐसा नहीं किया... मुझे लगा था तेरे प्यार में सचाई है.." ज्योति ने शीना से कहके अपना मूह फेर लिया.. काफ़ी देर तक शीना ने ज्योति की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और ज्योति भी उससे मूह फेर के बैठी रही.. एक अजीब सा तनाव था इस खामोशी में.. शीना के कमरे की खिड़की से बहती एक तेज़ हवा और समंदर की लहरों की आवाज़ उस तनाव को और बढ़ा रही थी




"अगर हम आए, तो क्या हमारी फॅमिली को कुछ नहीं होगा" ज्योति ने शीना से चुप के सन्नी को रिप्लाइ किया




"मैं नहीं जानता, शीना को कुछ नहीं होने दूँगा, बस यह जानता हूँ" सन्नी ने जवाब दिया




"आगे पढ़ना है मुझे..." शीना ने रूम में फेली खामोशी को चीरते हुए अपनी रुआंसी सी आवाज़ में कहा, ज्योति ने बिना कोई जवाब दिए मोबाइल छिपाया और डाइयरी की तरफ मूह किया और शीना से नज़रें चुरा के डाइयरी में आगे पढ़ने लगी


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"पॅसेंजर्स प्लीज़ टेक आ नोट दट वी आर लॅंडिंग इन लंडन.. करेंट्ली वी आर फ्लाइयिंग अट आ हाइट ऑफ 30000 फीट अबव सी लेवेल.. वी आर एक्सपेक्टेड तो लंड इन 10 मिन्स, दा करेंट टेंपरेचर इन लंडन इस 10 डिग्री सेल्सीयस.. थॅंक यू.." इस अनाउन्स्मेंट से जब मेरी नींद खुली तो पता चला कि बस कुछ ही देर में फ्लाइट लंड होने वाली है.. बिज़्नेस क्लास में फ्लाइ करने का सबसे मज़ेदार हिस्सा यह है कि अगर आप गेम खेलते खेलते सो भी गये तो एर होस्टेस्स बड़े ही प्यार से आपके उपर कंबल डाल के आपकी कॅबिन लाइट्स स्विच ऑफ भी कर देती है..




"गुड ईव्निंग सर.. होप यू हॅड आ प्लेज़ेंट फ्लाइट वित अस.." एर होस्टेस्स ने मुझे जैसे ही देखा तो ग्रीट करने आई




"ओह.. यस, इट वाज़ वंडरफुल.. बाइ दा वे, कॅन आइ प्लीज़ गेट आ कप ऑफ कॉफी.." मैने आँखें सॉफ कर के कहा




"आम अफ्रेड सर, वी आर नोट सर्विंग एनितिंग नाउ.. वी आर अबाउट टू लॅंड..."




"ओह... नो इश्यूस देन, " मैने एयिर्हसटेस्स से कहा और वॉलेट निकाल के पैसे देखे तो एग्ज़ॅक्ट 297 पाउंड्स थे मेरे पास.. मैने नोट गिने और सोचने लगा, पता नहीं कॉफी साली कितने की होगी.. होशयारी मार के साला आ तो गये, लेकिन फीस कैसे भरुन्गा, उपर से अभी कॉलेज भी दो दिन बाद है, तब तक हॉस्टिल में रहने का जुगाड़ भी बिठाना है...




"सर..." एयिर्हसटेस्स ने धीरे से कहा , मैने उसकी तरफ देखा तो उसके हाथ में हॉट चॉक्लेट देख आँखों में चमक आ गयी




"थॅंक्स, आइ थॉट यू वर नोट सर्विंग.."




"नो प्राब्लम, आइ सॉ यू गोयिंग थ्रू युवर वॉलेट.. हॅव आ गुड स्टे हियर.." एयिर्हसटेस्स ने स्माइल कर कहा और अपने काम में लग गयी..




"थॅंक्स आ लॉट..." मेरी बात सुनने से पहले वो निकल गयी और मैं आराम से अपनी कॉफी पीने लगा.. 2 मिनिट हुए थे कि फ्लाइट लॅंड हो गयी..




वर्ल्ड'स मोस्ट बिज़ियेस्ट एरपोर्ट.. हीतरो लंडन.. एरपोर्ट पे कदम रखते ही एक अलग किस्म की एनर्जी शरीर में पैदा हुई, दुनिया के हर कोने के लोग दिखने लगे, इंडियन्स, पाकिस्तानी, अमेरिकन्स, आइरिश.. जितने भी देश दिमाग़ में आ सकते हैं, वो सब.. इस टर्मिनल से उस टर्मिनल, तो कभी उस टर्मिनल से इस टर्मिनल.. मैं तो टर्मिनल 4 पे था लेकिन सोच रहा था कि कॉलेज अभी जाउ या तोड़ा टाइम इधर नज़दीक में घूम लूँ.. भीड़ इतनी के पैर रखने की जगह नहीं थी, एरपोर्ट नहीं , ऐसा लग रहा था मानो बोरीवली स्टेशन पे खड़ा हूँ..




"फ्लाइट नंबर आक्स 321 गोयिंग टू आइयर्लॅंड.... फ्लाइट नंबर आई671 गोयिंग टू देल्ही इंडिया... फ्लाइट नंबर आ212 गॉईज्ञ टू केप टाउन..." इन सब अनाउन्स्मेंट्स को सुन सुन के दिमाग़ भी खराब होने लगा था, आस पास देखा तो कोई गाज़ेटेड ऑफीसर भी नहीं दिख रहा था.. मैं लगेज बेल्ट के पास गया और अपने समान का वेट करने लगा, जैसे जैसे बॅग्स स्टार्ट हुए, वैसे वैसे मेरे आस पास खड़े लोग भी कम होने लगे.. लगेज बेल्ट के उपर लगी घड़ी में वक़्त देखा तो शाम के 6 बज रहे थे




"बॅग आ जाए तो सबसे पहले बाबा और ऋतु को फोन कर दूं, अभी तो वहाँ 11.30 ही हुए होंगे.." मैने खुद से कहा और बॅग्स देखने लगा




"एक्सक्यूस मी..." मेरे पीछे से किसी ने कंधे पे हाथ रखा तो बॅग उठा के उसकी तरफ मुड़ा




"प्लीज़ कम वित अस, वी नीड टू चेक यू आंड युवर बॅग्स.." उस ऑफीसर ने कहा और अपने साथ 2 लोगों को इशारा कर मुझे लाने को कहा.. पहली बार बाहर आया और आते ही चेकिंग.. मैने खुद से कहा और चेहरे पे आया पसीना पोंछ के उनके पीछे चलने लगा..




"सो यूआर ट्रॅवेलिंग फ्रॉम इंडिया फॉर युवर स्टडीस..." ऑफीसर ने मुझसे पूछा जब उसके हाथ में मेरा पासपोर्ट और दूसरे कुछ डॉक्युमेंट्स थे जो मुझे कॅरी करने ज़रूरी थे




"यस सर.." मैने सिर्फ़ इतना कहा और उसकी कॅबिन से बाहर की भीड़ को देखने लगा, लोग अभी भी भाग रहे थे, कोई फ्लाइट पकड़ने को, तो कोई अपनी टॅक्सी के लिए.. कॅबिन से बाहर देखते देखते मेरी नज़र टीवी पे आ रही एक आड़ पे पड़ी जिससे पढ़ के मेरी आँखें बड़ी हो गयी




"ओके.. यू कॅन गो.." ऑफीसर ने एक घंटे बाद मुझे मेरा पासपोर्ट पकड़ाया और बॅग वापस किया




"उः... थॅंक यू, बाइ दा वे, हाउ डू आइ रीच ओल्ड ट्रॅफर्ड फ्रॉम हियर.." मैने अपने पासपोर्ट को बॅग में रख कर कहा




"बट युवर कॉलेज ईज़ वॉटरलू, 17 माइल्स फ्रॉम हियर.. व्हाई डू यू वॉंट टू गो ओल्ड ट्रॅफर्ड.." ऑफीसर ने फिर बड़ी आँखें कर पूछा




"ओह, आइ आम आ कीन फॉलोवर ऑफ एमयू सिटी, आंड दे हॅव आ मॅच वित आर्सेनल टुनाइट.. सो आइ वॉंट टू . तट.." मैने टीवी की तरफ इशारा कर कहा




"ओके, यू टेक आ एग्ज़िट फ्रॉम टर्मिनल 4, गेट आउट, कॅच आ टॅक्सी आंड मूव टू दा लोकल स्टेशन.. कॅच ट्रेन टू ओल्ड ट्रॅफर्ड आंड मूव टू स्टेडियम.." ऑफीसर ने यह कहके फिर एक मॅप पकड़ाया जिसमे ट्रेन के हर रूट और हर टॅक्सी का गाइडेन्स था




"थॅंक्स आ लॉट.. फॉर दिस.." मैने मॅप को पकड़ा और टर्मिनल 4 से एग्ज़िट ले ही रहा था कि एग्ज़िट के पास फोन बूथ था




"ऋतु को कॉल करता हूँ.." मैने खुद से कहा और कुछ चेंज डाल के ऋतु को फोन किया




"सन्नी, तुम ठीक ठाक पहुँच गये.." ऋतु ने एक ही रिंग में फोन उठा के कहा




"हां जी मैं पहुँच गया, " मैने बस इतना ही कहा कि सामने से फिर बाबा की आवाज़ आई




"ठंड कितनी है उधर, और तेरे पास जॅकेट है ना.." बाबा चिल्ला चिल्ला के पूछ रहा था. एक तो आज तक यह समझ नहीं आया कि इंटरनॅशनल कॉल में हमारी आवाज़ खुद ब खुद उँची क्यूँ हो जाती है,




"अरे धीरे बोलो ना, हां ठंड है, टेंपरेचर शायद 10-11 के पास है, जॅकेट तो..." मैने बस इतना ही कहा तो याद आया, जॅकेट तो ली ही नहीं




"जॅकेट नहीं है ना तेरे पास... मैं जानता था तू कुछ भी नहीं ले गया.. अब क्या करेगा, इतनी ठंड में कुलफी हो जाएगी, उपर से पैसे भी नहीं हैं.. एक काम कर, अभी एरपोर्ट से निकल और साउत लंडन की तरफ जा.. वेंबले, अभी वहाँ के वेस्टर्न यूनियन से पैसे ले लेना, मैं भेज रहा हूँ कुछ देर में.." बाबा ने फिर चिल्ला के कहा




"ओफफो... चिल्लओ नहीं कहा ना, और अभी आपके वहाँ 12 बज रहे हैं, अभी कैसे पैसे दोगे, आंड एनीवेस, मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए... मैं खुद कर लूँगा कुच्छ.. आप फिलहाल अम्मी को फोन दो.." मैने फोन का रिसीवर दूर कर कहा




"हां बेटे बोलो, सब ठीक है ना.." ऋतु ने प्यार से कहा




"हाश, आप ने नहीं चिल्लाया, हां जी सब ठीक है, चिंता ना करें.. अच्छा अब सुनिए, मेरे पास ना कुल 294 पाउंड्स बचे हैं, तो मैं कॉलेज जाने के पहले फुटबॉल मॅच देखने जा रहा हूँ.. आप प्लीज़ यह अपने पति को नहीं बताना, और पैसों का बंदोबस्त मैं कुछ कर लूँगा... मैं आपको आपके टाइम के हिसाब से सुबह 8 बजे फोन करूँगा अब, ओके ना.."




"हां बेटे आराम से जाओ, पैसों की चिंता नहीं करो, बस ख़याल रखना.. और कल तुम्हारे मम्मी पापा के पास हम जाएँगे, तो तुम 10 बजे फोन करना, उनसे भी बात कर लेना.." ऋतु ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा लेकिन अनाउन्स्मेंट्स की वजह से मुझे कुछ सुनाई नई दे रहा था, इसलिए सिर्फ़ हां हां बोलके फोन रख दिया और टर्मिनल से एग्ज़िट ले लिया..
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